________________ 168 ] [स्थानाङ्गसूत्र मल्ली अर्हत् तीन सौ पुरुषों के साथ मुण्डित होकर (अगार से अनगार धर्म में) प्रव्रजित हुए (532) / ५३३-[पासे गं अरहा तिहिं पुरिससएहिं सद्धि मुडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइए]। (पार्श्व अर्हत् तीन सौ पुरुषों के साथ मुण्डित होकर अगार से अनगार धर्म में प्रवजित हुए (533) / ५३४–समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तिणि सया चउद्दसपुवीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसण्णिवातीणं जिणा [जिणाणं?] इव अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिया चउद्दसपुग्विसंपया हुत्था / श्रमण भगवान महावीर के तीन सौ शिष्य चौदह पूर्वधर थे, वे जिन नहीं होते हुए भी जिन के समान थे, सर्वाक्षर-सन्निपाती, तथा जिन भगवान के समान अवितथ व्याख्यान करने वाले थे। यह भगवान् महावीर की चतुर्दशपूर्वी उत्कृष्ट शिष्य-सम्पदा थी (534) / विवेचन-अनादिनिधन वर्णमाला के अक्षर चौसठ (64) माने गये हैं। उनके दो तीन आदि अक्षरों से लेकर चौसठ अक्षरों तक के संयोग से उत्पन्न होने वाले पद असंख्यात होते हैं / असंख्यात भेदों को जाननेवाला ज्ञानी सर्वाक्षर-सन्निपाती श्रुतधर कहलाता है। सन्निपात का अर्थ संयोग है। सर्व अक्षरों के संयोग से होने वाले ज्ञान को सर्वाक्षर-सन्निपाती कहते हैं / ५३४--तो तित्थयरा चक्कवट्टी होत्था, त जहा-संती, कुथ, अरो। तीन तीर्थकर चक्रवर्ती हुए-शान्ति, कुन्थु और अरनाथ (535) / प्रवेयक-विमान-सूत्र ५३६-तो गेविज्ज-विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, त जहा हेद्विम-विज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे / ___ वेयक विमान के तीन प्रस्तर कहे गये हैं-अधस्तन (नीचे का) ग्रेवेयक विमान प्रस्तर, मध्यम (बीच का) ग्रं वेयक विमान प्रस्तर, और उपरिम (ऊपर का) वेयक विमान प्रस्तर (536) / ५३७–हिट्रिम-विज्ज-विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णते, त जहा-हेटिम-हेद्विम-गेविज्जविमाण-पत्थडे, हेट्ठिम-मज्झिम-विज्ज-विमाण-पत्थडे, हेट्ठिम-उवरिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे / अधस्तन वेयकविमानप्रस्तर तीन प्रकार का कहा गया है-अधस्तन-अधस्तन ग्रे वेयक विमान-प्रस्तर, अधस्तन-मध्यमविमान-प्रस्तर और अधस्तन-उपरिमग्रे वेयक विमान-प्रस्तर (537) / ५३५---मज्झिम-विज्ज-विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-मज्झिम-हेछिम-गेविज्जविमाण-पत्थडे, मज्झिम-मज्झिम-गविज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-उवरिम-गविज्ज-विमाण-पत्थडे / मध्यम ग्रेवेयक विमान प्रस्तर तीन प्रकार का कहा गया है---मध्यम-अधस्तन ग्रं वेयक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org