________________ द्वितीय स्थान-तृतीय उद्देश ] प्रद्धाउए अण्णत्ते, तं जहा---मणुस्साणं च व, पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं चव / २६४–दोण्हं भवाउए पण्णते, त जहा-देवाणं चे व, रइयाणं चेव / आयुष्य दो प्रकार का कहा गया है- अद्धायुष्य (एक भव के व्यतीत होने पर भी भवान्तरानुगामी कालविशेष रूप प्रायुष्य) और भवायुष्य (एक भववाला आयुष्य) (262) / दो का अद्घायुष्य कहा गया है.-मनुष्यों का और पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों का (263) / दो का भवायुष्य कहा गया है—देवों का और नारकों का (264) / कर्म-पद २६५–दुबिहे कम्मे पण्णत्ते, तजहा-पदेसकम्मे चे व, अणुभावकम्मे चव। २६६-दो अहाउयं पालेंति, त जहा–देवच्चेव, रइयच्चेव / २६७-दोण्हं प्राउय-संवट्टए पण्णत्ते, तं जहा.. मणुस्साणं च व, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव / कर्म दो प्रकार का कहा गया है-प्रदेश कर्म (जो कर्म मात्र कर्मपुद्गलों से वेदा जाय--रसअनुभाग से नहीं) और अनुभाव कर्म (जिसके अनुभाग-रस का वेदन किया जाय) (265) / दो यथायु (पूर्णायु) का पालन करते हैं- देव और नारक (266) / दो का आयुष्य संवर्तक (अपर्वतन वाला) कहा गया है—मनुष्यों का और पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों का (267) / तात्पर्य यह है कि मनुष्य और तिर्यंच दीर्घकालीन आयुष्य को अल्पकाल में भी भोग लेते हैं, क्योंकि वह सोपक्रम होता है / यह सूत्र भी पूर्ववत् अयोगव्यवच्छेदक ही है / क्षेत्र-पद २६८-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवट्ट ति पायाम-विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं, त जहा-भरहे चेव, एरवए चे के / २६६-एवमेएणमभिलावेणं हेमवते चेव, हेरग्णवए चे व / हरिवासे चे व, रम्मयवासे चेव। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर (सुमेरु) पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गये हैंभरत (दक्षिण में) और ऐरवत (उत्तर में)। ये दोनों क्षेत्र-प्रमाण में सर्वथा सदृश हैं, नगर-नदी आदि की दृष्टि से उनमें कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम (लम्बाई), विष्कम्भ (चौड़ाई), संस्थान (आकार) और परिणाह (परिधि) की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं -समान हैं। इसी प्रकार इसी अभिलाप (कथन) से हैमवत और हैरण्यवत, तथा हरिवर्ष और रम्यकवर्ष भी परस्पर सर्वथा समान कहे गये हैं (266) / २७०-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिम-पच्चरिथमे णं दो खेत्ता पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवट्टति आयाम-विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा पुव्वविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव / जम्बू द्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व और पश्चिम में दो क्षेत्र कहे गये हैं—पूर्व विदेह और अपर विदेह / ये दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, नगर-नदी आदि की दृष्टि से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org