________________ 70] / स्थानाङ्गसूत्र २६९-एवं-हेरण्णवते वासे दो पवायदहा पण्णत्ता--बहुसमतुल्ला जाव त जहा-सुवण्णकूलप्पवायहहे चेव, रुप्पकूलप्पवायहहे चेव / इसी प्रकार हैरण्यवत क्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैं-स्वर्ण-कलाप्रपातद्रह और रूप्यकलाप्रपातद्रह / वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं / ३००--जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं एरवए वासे दो पवायदहा पण्णताबहुसमतुल्ला जाव त जहा-रत्तप्पवायहहे च व, रत्तावईपवायद्दहे चव। ___ जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में ऐरवत क्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैंरक्ताप्रपातद्रह और रक्तवतीप्रपातद्रह / वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। महानदी-पद ३०१-जंबद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे वासे दो महाणईप्रो पण्णत्तानोबहुसमतुल्लाप्रो जाव तं जहा—गंगा चव, सिंधू चेव / ___ जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में भरत क्षेत्र में दो महानदियाँ कही गई हैंगंगा और सिन्धु / वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्ध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती हैं। ३०२-एवं-जहा-पवातद्दहा, एवं गईओ भाणियव्वानो जाव एरवए वासे दो महाणईओ पण्णत्ताप्रो-बहुसमतुल्लाप्रो जाव त जहा--रत्ता चे व, रत्तावती चव। इसी प्रकार जैसे प्रपातद्रह कहे गये हैं, उसी प्रकार नदियाँ कहनी चाहिए। यावत् ऐरवत क्षेत्र में दो महानदियाँ कही गई हैं-रक्ता और रक्तवती। वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती हैं। कालचक्र-पद जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवमकोडाकोडीनो काले होत्था। ३०४-जंबुद्दीवे दोवे भरहेरवएसु वासेसु इमोसे प्रोसप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवमकोडाकोडीयो काले पण्णत्ते। ३०५--जंबद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु प्रागमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवमकोडाकोडीओ काले भविस्सति / __जम्बूद्वीपनामक द्वीप में भरत और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सपिणी के सुषम-दुषमा आरे का काल दो कोड़ा-कोड़ी सागरोपम था (303) / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में भरत और ऐरवत क्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणी के सुषम-दुषमा पारे का काल दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम कहा गया है (304) / जम्बूद्वीपनामक द्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्र में आगामी सुषम-दुषमा पारे का काल दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम होगा (305) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org