________________ तृतीय स्थान-द्वितीय उद्देश | [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं- कोई पुरुष गन्ध नहीं सूधकर' सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूघ कर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूधकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (300) / पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सुघता है इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सघता है इसलिए दर्मनस्क है तथा कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूघता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (301) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूघूगा' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूधूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूघूगा' इसलिए न सुमनस्क होता है, और न दुर्मनस्क होता है (302) / 303-- [तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-रसं प्रासाइत्ता जामगे सुमणे भवति, रसं आसाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रसं प्रासाइत्ता णोसुमणे णोदुम्मणे भवति / ३०४–तम्रो पुरिसजाया पण्णता, तं जहा - रस प्रासादेमीतेगे समणे भवति, रसं प्रासादेमोतेगे दुम्मणे भवति, रसं प्रासादेमीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / ३०५-तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रसं प्रासादिस्सामीतेगे सुमणे भवति, रसं प्रासादिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रसं प्रासादिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'रस आस्वादन कर' सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'रस आस्वादन कर' दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष ‘रस प्रास्वादन कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (303) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष रस आस्वादन करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'रस प्रास्वादन करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष ‘रस प्रास्वादन करता हूँ इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (304) / पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'रस प्रास्वादन करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'रस प्रास्वादन करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष ‘रस आस्वादन करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (305) / ] ___३०६-[तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- रसं अणासाइत्ता गामेगे सुमणे भवति, रसं प्रणासाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रसं प्रणासाइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / ३०७-तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रसंण प्रासादेमीतेगे सुमणे भवति, रसं ण प्रासादेमीतेगे दुम्मणे भवति, रसंग प्रासादेमीतेगे जोसुमणे-णोदम्मणे भवति / ३०८-तो पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-रसं ण आसादिस्सामोतेगे सुमणे भवति, रसं ण प्रासादिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रसं ण प्रासादिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं- कोई पुरुष 'रस प्रास्वादन नहीं करके' सुमनस्क होता है / कोई पुरुष ‘रस प्रास्वादन नहीं करके' दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष रसास्वादन नहीं करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (306) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'रस प्रास्वादन नहीं करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (307) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org