________________ तृतीय स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 157 इन तीन कारणों से देव परितप्त होता है (364) / ३६५-तिहि ठाणेहि देवे चइस्सामिति जाणइ, तं जहा-विमाणामरणाइं णिप्पभाई पासित्ता, कप्परुक्खगं मिलायमाणं पासित्ता, अप्पणो तेयलेस्सं परिहायमाणि जाणित्ता-इच्चेएहि तिहि ठाहिं देवे चइस्सामित्ति जाणइ / / तीन कारणों से देव यह जान लेता है कि मैं च्युत होऊंगा-- 1. विमान और आभूषणों को निष्प्रभ देखकर / 2. कल्पवृक्ष को मुर्भाया हुअा देखकर / 3. अपनी तेजोलेश्या (कान्ति) को क्षीण होती हुई देखकर / इन तीन कारणों से देव यह जान लेता है कि मैं च्युत होऊंगा (365) / ३६६—तिहि ठाणेहि देवे उन्वेगमागच्छेज्जा, तं जहा--- 1. अहो! णं मए इमानो एतारूवाओ दिव्वानो देविड्डोमो दिवानो देवजुतीनो दिवानो देवाणुभावाप्रो लद्धामो पत्तानो अभिसमण्णागतानो चइयव्वं भविस्सति / 2. अहो ! णं मए माउसोयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसटु तप्पढमयाए प्राहारो आयारेयवो भविस्सति / 3. अहो ! णं मए कलमल-जंबालाए असुईए उव्वेयणियाए भोमाए गम्भवसहीए वसियव्वं भविस्सइ। ___ इच्चेएहि तिहि ठाणेहि देवे उव्वेगमागच्छेज्जा। तीन कारणों से देव उद्वेग को प्राप्त होता है-- 1. अहो ! मुझे इस प्रकार की उपाजित, प्राप्त, एवं अभिसमन्वागत दिव्य देव-ऋद्धि, दिव्य देव-धु ति और दिव्य देवानुभाव को छोड़ना पड़ेगा। 2. अहो ! मुझे सर्वप्रथम माता के प्रोज (रज) और पिता के शुक्र (वीर्य) का सम्मिश्रण रूप आहार लेना होगा। 3. अहो ! मुझे कलमल-जम्बाल (कीचड़) वाले अशुचि, उद्बजनीय (उद्वेग उत्पन्न करने वाले) और भयानक गर्भाशय में रहना होगा। इन तीन कारणों से देव उद्वग को प्राप्त होता है (366) / विमान-सूत्र तिसंठिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा–बट्टा, तंसा, चउरंसा। 1. तत्थ णं जे ते वट्टा विमाणा, ते णं पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिया सव्वलो समंता पागारपरिक्खित्ता एगदुवारा पण्णत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org