________________ [ 166 तृतीय स्थान-तृतीय उद्देश ] [से गं भंते ! विण्णाणे किंफले ? पच्चक्खाणफले। से णं भंते ! पच्चक्खाणे किफले ? संजमफले। से णं भंते ! संजमे किफले ? अणण्हयफले। से णं भंते ! अणण्हए किंफले ? तवफले। से णं भंते ! तवे किंफले? वोदाणफले / से णं भंते ! वोदाणे किफले ? अकिरियफले। सा णं भंते ! अकिरिया किंफला? णिव्वाणफला। से णं भंते ! णिवाणे किंफले ? सिद्धिगइ-गमण-पज्जवसाण-फले समणाउसो ! प्रश्न–भदन्त ! तथारूप श्रमण-माहन की पर्युपासना करने का क्या फल है ? उत्तर-आयुष्मन् ! पर्युपासना का फल धर्म-श्रवण है / प्रश्न - भदन्त ! धर्म-श्रवण का क्या फल है ? उत्तर-आयुष्मन् ! धर्म-श्रवण का फल ज्ञान-प्राप्ति है। प्रश्न-भदन्त ! ज्ञान-प्राप्ति का क्या फल है ? उत्तर-आयुष्मन् ! ज्ञान-प्राप्ति का फल विज्ञान (हेय-उपादेय के विवेक) की प्राप्ति है। [प्रश्न -भदन्त ! विज्ञान-प्राप्ति का क्या फल है ? उत्तर-आयुष्मन् ! विज्ञान-प्राप्ति का फल प्रत्याख्यान (पाप का त्याग करना) है। प्रश्न-भदन्त ! प्रत्याख्यान का क्या फल है ? उत्तर-आयुष्मन् ! प्रत्याख्यान का फल संयम है / प्रश्न-भदन्त ! संयम का क्या फल है ? उत्तर-आयुष्मन् ! संयम-धारण का फल अनास्रव (कर्मों के प्रास्रव का निरोध) है। प्रश्न---भदन्त ! अनास्रव का क्या फल है ? उत्तर-पायुष्मन् ! अनास्रव का फल तप है। प्रश्न-भदन्त ! तप का क्या फल है ? उत्तर-आयुष्मन् ! तप का फल व्यवदान (कर्म-निर्जरा) है / प्रश्न-भदन्त ! व्यवदान का क्या फल है ? . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org