________________ [ स्थानाङ्गसूत्र अहवा-तिविधे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा-पापोवक्कमे, परोवक्कमे, तदुभयोवक्कमे / उपक्रम (उपाय-पूर्वक कार्य का प्रारम्भ) तीन प्रकार का कहा गया है --- 1. धार्मिक-उपक्रम-श्रुत और चारित्र रूप धर्म की प्राप्ति के लिए प्रयास करना / 2. अधार्मिक-उपक्रम-असंयम-वर्धक प्रारम्भ-कार्य करना। 3. धामिकाधार्मिक-उपक्रम-संयम और असंयमरूप कार्यों का करना / अथवा उपक्रम तीन प्रकार का कहा गया है१. आत्मोपक्रम-अपने लिए कार्य-विशेष का उपक्रम करना / 2. परोपक्रम-दूसरों के लिए कार्य-विशेष का उपक्रम करना / 3. तदुभयोपक्रम-अपने और दूसरों के लिए कार्य-विशेष करना (411) / वयावृत्यादि-सूत्र ४१२-[तिविधे वेयावच्चे पण्णते, तं जहा–प्रायवेयावच्चे, परवेयावच्चे, तदुभयवेयावच्चे। ४१३-तिविधे अणुग्गहे पण्णत्त, तं जहा-प्रायअणुग्गहे, परप्रणुग्गहे, तदुभयअणुग्गहे। ४१४-तिविधा अणुसट्ठी पण्णता, त जहा-प्रायअणुसट्ठी, परअणुसट्ठी, तदुभयअणुसट्ठी। ४१५--तिविधे उवालंभे पण्णत्त, त जहा-प्रापोवालंभे, परोवालभे, तदुभयोवालंभे] / वैयावृत्त्य (सेवा-टहल) तीन प्रकार का है ---प्रात्मवैयावृत्त्य, पर-वैयावृत्त्य और तदुभयवैयावृत्त्य (412) / अनुग्रह (उपकार) तीन प्रकार का कहा गया है-आत्मानुग्रह, परानुग्रह और तदुभयानुग्रह (413) / अनुशिष्टि (अनुशासन) तीन प्रकार की है-आत्मानुशिष्टि, परानुशिष्टि और तदुभयानुशिष्टि (414) / उपालम्भ (उलाहना) तीन प्रकार का कहा गया है-आत्मोपालम्भ, परोपालम्भ और तदुभयोपालम्भ (415) / त्रिवर्ग-सून ४१६-तिविहा कहा पण्णत्ता, त जहा-अस्थकहा, धम्मकहा, कामकहा। ४१७–तिविहे विणिच्छए पण्णत्त, त जहा-अत्यविणिच्छए, धम्मविणिच्छए, कामविणिच्छए / कथा तीन प्रकार की कही गई है—अर्थकथा, धर्मकथा और कामकथा (416) / विनिश्चय तीन प्रकार का कहा गया है-अर्थ-विनिश्चय, धर्म-विनिश्चय और काम-विनिश्चय (417) / ४१८-तहारूवं गं भंते ! समणं वा माहणं वा पज्जुवासमाणस्स किंफला पज्जुवासणया ? सवणफला। से णं भंते ! सवणे किफले? णाणफले। से गंभंते ! णाणे किंफले? विग्णाणफले। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org