________________ 106 ] [स्थानाङ्ग-सूत्र तिर्यग्योनिक पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--जलचर, स्थलचर और खेचर (52) / मनुष्य-पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कर्मभूभिज, अकर्मभूमिज और अन्तर्वीपज (53) / नपुंसक-सूत्र 54- तिविहा गपुसगा पण्णत्ता, तं जहा–णेरइयणपुंसगा, तिरिक्खजोणियणपुसगा, मणस्सणसगा। ५५---तिरिक्खजोणियणपुंसगा तिविहा पण्णता, तं जहा-जलयरा, थलयरा, खयरा / ५६--मणुस्सणपुंसगा तिविधा पण्णत्ता, तं जहा–कम्मभूमिगा, प्रकम्मभूमिगा, अंतरदीवगा। __ नपुसक तीन प्रकार के कहे गये हैं--नारक-नपुसक, तिर्यग्योनिक-नपुसक और मनुष्यनपुसक (54) / तिर्यग्योनिक नपुसक तीन प्रकार के कहे गये हैं---जलचर, स्थलचर और खेचर (55) / मनुष्य-नपुसक तीन प्रकार के कहे गये हैं-कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तर्वीपज (देवगति में नपुंसक नहीं होते ) (56) / तिर्यग्योनिक-सूत्र ५७–तिविहा तिरिक्खजोणिया पण्णत्ता, त जहा-इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। तिर्यग्योनिक जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्रीतियंच, पुरुषतियंच और नपुसकतिर्यच(५७) / लेश्या-सूत्र ५८-णेरइयाणं तम्रो लेसानो पण्णत्तानो, त जहा-कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा। ५६---असुरकुमाराणं तम्रो लेसाप्रो संकिलिदानो पण्णत्ताओ, त जहा—कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा / ६०-एवं जाव थणियकुमाराणं / ६१-एवं--पुढविकाइयाणं पाउ-वणस्सतिकाइयाणवि / ६२-तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं बंदियाणं तेंदियाणं चरिदिपाणवि तओ लेस्सा, जहा रइयाणं / ६३---पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तनो लेसाप्रो संकिलिट्ठाओ पण्णत्तानो, त जहा-कपहलेसा, णीललेसा, काउलेसा / ६४--पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तम्रो लेसानो प्रसंकिलिट्ठामो पण्णत्ताओ, त जहा-तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। ६५--एवं मणुस्साण वि [मणुस्साणं तओ लेसानो संकिलिङ्कामो पण्णत्तामो, त जहा—कण्हलेसा, गोललेसा, काउसेसा / ६६-मणुस्साणं तो लेसानो प्रसंकिलिटारो पण्णत्तामो, तं जहा-तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा] / 67 -- वाणमंतराणं जहा असुरकुमाराणं / ६५-माणियाणं तपो लेस्साम्रो पण्णत्तामो, त जहा--तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। नारकों में तीन लेश्याएं कही गई हैं-कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या (58) / असुरकुमारों में तीन अशुभ लेश्याएं कही गई हैं-कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या (56) / इसी प्रकार स्तनितकुमार तक के सभी भवनवासी देवों में तीनों अशुभ लेश्याएं कही गई हैं (60) / पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में भी तीनों अशुभ लेश्याएं होती हैं-कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या (61) / तेजस्कायिक, वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में भी नारकों के समान तीनों अशुभ लेश्याएं होती हैं (62) / पञ्चेन्द्रियतिर्यगयोनिक जीवों में तीन अशुभलेश्याएं कही गई हैं-कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या (63) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org