________________ तृतीय स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 127 १९५---एवं [तम्रो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-] प्रागंता णामेगे सुमणे भवति, प्रागंता णामेगे दुम्मणे भवति, प्रागंता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / 166 तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-एमीतेगे सुमणे भवति, एमीतेगे दुम्मणे भवति, एमोतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / १६७--तप्रो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-एस्सामीतेगे सुमणे भवति, एस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, एस्सामीतेगे गोसुमणे-णोदुम्मणे] भवति / १९८-तो पुरिसजाया पग्णत्ता, तं जहा–प्रणागंता णामेगे सुमणे भवति, अणागंता णामेगे दुम्मणे भवति, प्रणागंता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / एवं एएणं अभिलावेणं गंता य अगंता य, प्रागंता खल तता प्रणागंता। चिट्टित्तमचिद्वित्ता, णिसितित्ता चेव गो चेव // 1 // हंता य अहंता य, छिदित्ता खलु तहा अछिदित्ता। बूतित्ता अबूतित्ता, भासित्ता चेव णो चेव // 2 // दच्चा य अदच्चा य, भुजित्ता खलु तहा प्रभु जित्ता। लंभित्ता प्रलंभित्ता, पिवइत्ता चेव णो चेव / / 3 / / सुतित्ता प्रसुतित्ता, जुज्झित्ता खलु तहा प्रजुज्झित्ता। जतित्ता प्रजयित्ता, पराजिणित्ता चेव णो चेव // 4 // सहा रूवा गंधा, रसा य फासा तहेव ठाणा य। णिस्सीलस्स गरहिता, पसत्था पुण सीलवंतस्स // 5 // एवमिक्केक्के तिण्णि उ तिणि उ पालावगा भाणियया / १९६-तम्रो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण एमोतेगे सुमणे भवति, ण एमीतेगे दुम्मण भवति, ण एमीतेगे जोसमणे-णोदम्मणे भवति / २००-तम्रो परिसजाया पण्णत्ता, तं जहाण एस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण एस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण एस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'पाकर के' सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'पाकर के दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'प्राकर के' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता हैसम भाव में रहता है (165) / पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'प्राता हूं इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'पाता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'आता हूँ' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (166) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'पाऊंगा' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'पाऊंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'ग्राऊंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (197) / पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष नहीं आकर' सुमनस्क होता है / कोई पुरुष नहीं आकर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'नहीं आकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (198) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष नहीं आता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष नहीं आता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष नहीं पाता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (196) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'नहीं आऊंगा' इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org