________________ तृतीय स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 121 महिषियों की तीन-तीन परिषद् कही गई हैं.-ईषा, त्रुटिता और दृढ़रथा (150) / जैसा धरण की वर्णन किया गया है, वैसा ही शेष भवनवासी देवों की परिषदों का भी जानना चाहिए (151) / १५२-कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसायरपणो तो परिसायो पण्णत्तानो, तजहा-ईसा तुडिया दढरहा / १५३-एवं-सामाणिय-अगमहिसोणं / १५४–एवं जाव गोयरतिगीयजसाणं / पिशाचों के राजा काल पिशाचेन्द्र की तीन परिषद् कही गई हैं—ईशा, त्रुटिता और दृढ़रथा (152) / इसी प्रकार उसके सामानिकों और अग्रमहिषियों की भी तीन-तीन परिषद जाननी चाहिए (153) / इसी प्रकार गन्धर्वेन्द्र गीतरति और गीतयश तक के सभी वाण-व्यन्तर देवेन्द्रों की तीन-तीन परिषद् कही गई हैं (154) / १५५-चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो तओ परिसाम्रो पण्णत्तामो, त जहा-तुबा तुडिया पब्वा / १५६--एवं सामाणिय-अम्गमहिसीणं / १५७---एवं-सूरस्सवि। ज्योतिष्क देवों के राजा चन्द्र ज्योतिष्केन्द्र की तीन परिषद् कही गई हैं तुम्बा, त्रुटिता और पर्वा (155) / इसी प्रकार उसके सामानिकों और अग्रमहिषियों की भी तीन-तीन परिषद् कही गई हैं (156) / इसी प्रकार सूर्य इन्द्र की और उसके सामानिकों तथा अग्रमहिषियों की तीन-तीन परिषद् जाननी चाहिए (157) / / १५८-सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो तो परिसानो पण्णत्ताप्रो, तजहा-समिता, चंडा जाया। १५६-एवं-जहा चमरस्स जाव अम्गमाहितीणं / १६०–एवं जाव प्रच्चतस्स लोगपालाणं / देवों के राजा शक्र देवेन्द्र की तीन परिषद् कही गई हैं—समिता, चण्डा और जाता (158) / इसी प्रकार जैसे चमर की यावत् उसकी अग्रमहिषियों की परिषदों का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार शक्र देवेन्द्र के सामानिकों और त्रास्त्रिशकों की तीन-तीन परिषद् जाननी चाहिए (156) / इसी प्रकार ईशानेन्द्र से लेकर अच्युतेन्द्र तक के सभी इन्द्रों, उनकी अग्रमहिषियों, सामानिक, लोकपाल और त्रायस्त्रिशक देवों की भी तीन-तीन परिषद् जाननी चाहिए (160) / याम-सूत्र १६१-तओ जामा पण्णत्ता, तं जहा-पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे / १६२-तिहि जामेहि प्राया केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्ज सवणयाए, तं जहा–पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे / १६३-एवं जाव [तिहिं जामेहि पाया केवलं बोधि बुज्झज्जा, तं जहा-पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे। १६४-तिहि जामेहिं पाया केवलं मुडे भवित्ता अगाराम्रो प्रणगारियं पस्वदज्जा. तं जहा-पढमे जामे, मज्झिमे जामे. पच्छिमे जामे / १६५-तिहि जाहि माया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा-पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे। १६६-तिहि जामह प्राया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा-पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे / १६७-तिहि जामेहि आया केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा–पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे / १६८-तिहिं जामेहि पाया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा–पढमे जामे, मज्झिमे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org