________________ 108] [ स्थानाङ्ग-सूत्र अन्धकार-उद्योत-आदि-सूत्र ७२-तिहि ठाहिं लोगंधयारे सिया, तजहा-अरहतेहि वोच्छिज्जमाणेहि, अरहंत-पण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे / ७३--तिहि ठाणेहि लोगुज्जोते सिया, त जहाअरहतेहिं जायमाहिं, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु / तीन कारणों से मनुष्यलोक में अंधकार होता है-अरहंतों के विच्छेद (निर्वाण) होने पर अर्हत्-प्रज्ञप्त धर्म के विच्छेद होने पर और चतुर्दश पूर्वगत श्रुतके विच्छेद होने पर (72) / तीन कारणों से मनुष्यलोक में उद्योत (प्रकाश) होता है-अरहन्तों (तीर्थंकरों) के जन्म लेने के समय, अरहन्तों के प्रवजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (73) / ७४–तिहि ठाणेहि देवंधकारे सिया, तं जहा-अरहतेहि वोच्छिज्जमाहि, अरहंत-पण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे। ७५–तिहि ठाणेहि देवुज्जोते सिया, तजहाअरहंतेहिं जायमाहि, अरहंतेहि पव्वयमार्गाह, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु / तीन कारणों से देवलोक में अंधकार होता है-- अरहंतों के विच्छेद होने पर, अर्हत्-प्रज्ञप्त धर्म के विच्छेद होने पर और पूर्वगत थ त के विच्छेद होने पर (74) / तीन कारणों से देवलोक के भवनों आदि में उद्योत होता है--अरहन्तों के जन्म लेने के समय, अरहन्तों के प्रवजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (75) / ७६–तिहि ठाहिं देवसण्णिवाए सिया, त जहा–अरहंतेहि जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु / ७७–एवं देवुक्कलिया, देवकहकहए [तिहि ठाणेहि देवुक्कलिया सिया, त जहा-अरहतेहि जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु / ७५-तिहि ठाणेहि देवकहकहए सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु] / ७६-तिहि ठाणेहि देविदा माणुसं लोग हन्वमागच्छंति, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाहिं, अरहंतेहिं पव्वयमार्गोह, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु / ८०-एवं-सामाणिया, तायत्तीसगा, लोगपाला देवा, अगमहिसीनो देवीरो, परिसोववरणगा देवा, अणियाहिबई देवा, पायरक्खा देवा माणुसं लोगं हबमागच्छंति [तं जहा-अरहतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु] / तीन कारणों से देव-सन्निपात (देवों का मनुष्यलोक में आगमन) होता है--अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (76) / इसी प्रकार देवोत्कलिका और देव कह-कह भी जानना चाहिए। तीन कारणों से देवोत्कलिका (देवताओं की सामूहिक उपस्थिति) होती है--अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रवजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (77) / तीन कारणों से देव कह-कह (देवों का कल-कल शब्द) होता है-अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रवजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (78) / ) तीन कारणों से देवेन्द्र शीघ्र मनुष्यलोक में आते हैं—अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रवजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (76) | इसी प्रकार सामानिक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org