________________ द्वितीय स्थान-तृतीय उद्देश ] [76 अमितवाहणे चेव / ३६१-दो वायुकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा-वेलंबे चेव, पभंजणे चेव / ३६२-दो थणियकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा-- घोसे चेव, महाघोसे चेव / असुरकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं-चमर और बली (353) / नागकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं-धरण और भूतानन्द (354) / सुपर्णकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं--वेणुदेव और वेणुदाली (355) / विद्य त्कुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं-हरि और हरिस्सह (356) / अग्निकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं-अग्निशिख और अग्निमानव (357) / द्वीपकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं--पूर्ण और विशिष्ट (358) / उदधिकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं-जलकान्त और जलप्रभ (356) / दिशाकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं अमितगति और अमितवाहन (360) / वायुकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं-वेलम्ब और प्रभंजन (361) / स्तनितकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं-घोष और महाघोष (362) / ३६३---दो पिसाइंदा पण्णत्ता, तं जहा–काले चेव, महाकाले चेव / ३६४--दो भूइंदा पण्णत्ता, तं जहा-सुरुवे चेव, पडिरूवे चेव / ३६५-दो क्खिदा पण्णत्ता, तं जहा--पुण्णभद्दे चेव, माणिभद्दे चेव / ३६६-दो रक्खसिंदा पण्णत्ता, तं जहा--भीमे चेव, महाभीमे चेव / ३६७-दो किण्णरिदा पणत्ता, तं जहा-किण्णरे चेव, किंपुरिसे चेव / 368 --दो किपरिसिंदा पण्णत्ता, तं जहासप्पुरिसे चेव, महापुरिसे चेव / ३६६-दो महोरगिदा पण्णत्ता, तं जहा–प्रतिकाए चेव, महाकाए चेव / ३७०-दो गंधविदा पण्णत्ता, तं जहा—गीतरती चेव, गीयजसे चेव / पिशाचों के दो इन्द्र कहे गये हैं—काल और महाकाल (363) / भूतों के दो इन्द्र कहे गये हैं-सरूप और प्रतिरूप (364) / यक्षों के दो इन्द्र कहे गये हैं-पूर्णभद्र और माणिभद्र (365) / राक्षसों के दो इन्द्र कहे गये हैं-भीम और महाभीम (366) / किन्नरों के दो इन्द्र कहे गये हैं. किन्नर और किम्पुरुष (367) / किम्पुरुषों के दो इन्द्र कहे गये हैं सत्पुरुष और महापुरुष (368) / महोरगों के दो इन्द्र कहे गये हैं---अतिकाय और महाकाय (366) / गन्धों के दो इन्द्र कहे गये हैं-गीतरति और गीतयश (370) / ३७१-दो प्रणयग्णिदा पण्णत्ता, तं जहा-सणिहिए चेव, सामण्णे चेव / ३७२–दो पणपग्णिदा पण्णत्ता, तं जहा--धाए चेब, विहाए चेव / ३७३-दो इसिवाइंदा पण्णत्ता, तं जहाइसिच्च व इसिवालए चे व / ३७४–दो भूतवाइंदा पण्णत्ता, तं जहा-इस्सरे च व, महिस्सरे चेव / ३७५-दो कंदिदा पण्णत्ता, तं जहा-सुवच्छे चे व, विसाले चेव / ३७६-दो महाकदिदा पण्णत्ता, तं जहा-हस्से चे व, हस्सरती चेव / ३७७-दो कुभंडिदा पण्णत्ता, तं जहा-सेए चे व, महासेए चे व / 378 - दो पतइंदा पण्णता, तं जहा–पत्तए चे व, पतयवई चेव / अणपनों के दो इन्द्र कहे गये हैं—सन्निहित और सामान्य (371) / पणपन्नों के दो इन्द्र कहे गये हैं-धाता और विधाता (372) / ऋषिवादियों के दो इन्द्र कहे गये हैं--ऋषि और ऋषिपालक (373) / भूतवादियों के दो इन्द्र कहे गये हैं-ईश्वर और महेश्वर (374) / स्कन्दकों के दो इन्द्र कहे गये हैं—सुवत्स और विशाल (375) / महास्कन्दकों के दो इन्द्र कहे गये हैं- हास्य और हास्यरति (376) / कुष्माण्डकों के दो इन्द्र कहे गये हैं-श्वेत और महाश्वेत (377) / पतगों के दो इन्द्र कहे गये हैं-पतग और पतगपति (378) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org