________________ 80] - [स्थानाङ्गसूत्र ३७६-जोइसियाणं देवाणं दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा--चंदे चव, सूरे चेव / ज्योतिष्कों के दो इन्द्र कहे गये हैं--चन्द्र और सूर्य (376) / ३८०-सोहम्मोसाणेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा—सक्के चेव, ईसाणे चेव / ३८१-सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा-सर्णकुमारे चेक, माहिदे चव / ३८२-बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा-बंभे चेव, संतए चेव / 383 - महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा- महासुक्के चेव, सहस्सारे चेव / ३८४-प्राणत-पाणत-आरण-अच्चुतेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णता, तं जहा-पाणते चेव, अच्चुते चैव / सौधर्म और ईशान कल्प के दो इन्द्र कहे गये हैं—शक्र और ईशान (380) / सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के दो इन्द्र कहे गये हैं-~सनत्कुमार और माहेन्द्र (381) / ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प के दो इन्द्र कहे गये हैं-ब्रह्म और लान्तक (382) / महाशुक्र और सहस्रार कल्प के दो इन्द्र कहे गये हैं--महाशुक्र और सहस्रार (383) / आनत और प्राणत तथा प्रारण और अच्युत कल्पों के दो इन्द्र कहे गये हैं-प्राणत और अच्युत (384) / विमान-पद ३८५–महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु विमाणा दुवण्णा पण्णत्ता, तं जहा—'हालिद्दा चेव, सुस्किल्ला' चेव / महाशुक्र और सहस्रार कल्प में विमान दो वर्ण के कहे गये हैं-हारिद्र-(पीत-) वर्ण और शुक्ल वर्ण / देव-पद ३८६-विज्जगा गं देवा दो रयणीग्रो उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता। धेयक विमानों के देवों की ऊंचाई दो रत्नि कही गई है। द्वितीय स्थान का तृतीय उद्देश समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org