________________ तृतीय स्थान-प्रथम उद्देश 2. कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की देवियों का वारंवार आलिंगन करके परिचारणा नहीं करते, किन्तु अपनी देवियों का आलिंगन कर-कर के परिचारणा करते हैं, तथा अपने ही शरीर से बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं / 3, कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की देवियों से आलिंगन कर-कर परिचारणा नहीं करते, अपनी देवियों का भी प्रालिंगन कर-करके परिचारणा नहीं करते / केवल अपने ही शरीर से बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं (9) / मथुन-प्रकार सूत्र १०-तिविहे मेहुणे पण्णत्ते, तं जहा-दिव्वे, माणुस्सए, तिरिक्खजोणिए / ११--तम्रो मेहणं गच्छंति, तं जहा-देवा, मणुस्सा, तिरिक्ख जोणिया / १२-तो मेहुणं सेवंति, तं जहा-इत्थी, पुरिसा, णपुसगा। मैथुन तीन प्रकार का कहा गया है-दिव्य, मानुष्य और तिर्यग-योनिक (10) / तीन प्रकार के जीव मैथुन करते हैं-देव, मनुष्य और तिर्यंच (11) / तीन प्रकार के जीव मैथुन का सेवन करते हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक (12) / योग-सूत्र १३-तिविहे जोगे पष्णते, तं जहा- मणजोगे, वइजोगे कायजोगे। एवं-जेरइयाणं विलिदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं / १४.-तिविहे पोगे पण्णत्ते, तं जहा-~-मणपनोगे, वइपोगे कायपोगे / जहा जोगो विलिदियवज्जाणं जाव तहा पोगोवि / योग तीन प्रकार का कहा गया है-मनोयोग, वचनयोग और काययोग। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों (एकेन्द्रियों से लेकर चतुरिन्द्रियों तक के जीवों) को छोड़कर वैमानिक देवों तक के सभी दण्डकों में तीन-तीन योग होते हैं (13) / प्रयोग तीन प्रकार का कहा गया है-मनःप्रयोग, वचनप्रयोग और काय-प्रयोग / जैसा योग का वर्णन किया, उसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़ कर शेष सभी दण्डकों में तीनों ही प्रयोग जानना चाहिए (14) / करण-सूत्र १५–तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा-मणकरणे, वईकरणे, कायकरणे, एवं-विलिदियवज्ज जाव वेमाणियाणं / १६-तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा--आरंभकरणे, संरंभकरणे, समारंभकरणे। णिरंतरं जाव वेमाणियाणं / करण तीन प्रकार का कहा गया है-मन:करण, वचन-करण और काय-करण / इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर शेष सभी दण्डकों में तीनों ही करण होते हैं (15) पुनः करण तीन प्रकार का कहा गया है-प्रारम्भकरण, संरम्भकरण और समारम्भकरण / ये तीनों ही करण वैमानिक-पर्यन्त सभी दण्डकों में पाये जाते हैं (16) / विवेचन--वीर्यान्तराय कर्म के क्षय या क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली जीव की शक्ति या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org