________________ द्वितीय स्थान-चतुर्थ उद्देश ] [86 णो णिच्चं बुइयाई णो णिच्चं पसत्थाई णो णिच्चं प्रभYण्णायाइं भवंति / कारणे पुण अप्पडिकुट्ठाई, तं जहा-वेहाणसे चे व गिद्धपट्ठ चव / ४१४--दो मरणाई समणेण भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वणियाइं णिच्चं कित्तियाइं णिच्चं बुइयाइं णिच्च पसत्थाई णिच्चं अभणुण्णायाई भवंति, तं जहा–पाओवगमणे चव, भत्तपच्चक्खाणे चव। ४१५–पायोवगमणे दुविहे पण्णत्ते तं जहा–णीहारिमे चव, अणीहारिमे चव / णियमं अपडिकम्मे / ४१६--भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-जोहारिमे चेव, अणीहारिमे चैव / णियमं सपडिकम्मे। श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के मरण कभी भी वणित, कीर्तित, उक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात नहीं किये हैं--वलन्मरण और वशात मरण (411) / इसी प्रकार निदान मरण और तद्भवमरण, गिरिपतन मरण और तरुपतन मरण, जल-प्रवेश मरण और अग्नि-प्रवेश मरण, विष-भक्षण मरण और शस्त्रावपाटन मरण (412) / ये दो-दो प्रकार के मरण श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए श्रमण भगवान् महावीर ने कभी भी वणित, कीर्तित, उक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात नहीं किये हैं। किन्तु कारण-विशेष होने पर वैहायस और गिद्धपट्ठ (गृद्ध स्पृष्ट) ये दो मरण अभ्यनुज्ञात हैं (413) / श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निन्थों के लिए दो प्रकार के मरण सदा वर्णित, कीर्तित, उक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात किये हैं-प्रायोपगमन मरण और भक्तप्रत्याख्यान भरण (414) / प्रायोपगमन मरण दो प्रकार का कहा गया है-निहरिम और अनिर्हारिम / प्रायोपगमन मरण नियमतः अप्रतिकर्म होता है (415) / भक्तप्रत्याख्यानमरण दो प्रकार का कहा गया है--- निहींरिम और अनिर्हारिम / भक्तप्रत्याख्यानमरण नियमतः सप्रतिकर्म होता है। विवेचन- मरण दो प्रकार के होते हैं-अप्रशस्त मरण और प्रशस्त मरण / जो कषायावेश से मरण होता है वह अप्रशस्त कहलाता है और जो कषायावेश विना-समभावपूर्वक शरीरत्याग किया जाता है, वह प्रशस्त मरण कहलाता है / अप्रशस्त मरण के वलन्मरण आदि जो अनेक प्रकार कहे गये हैं उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है 1. वलन्मरण-परिषहों से पीड़ित होने पर संयम छोड़कर मरना / 2. वशार्तमरण-इन्द्रिय-विषयों के वशीभूत होकर मरना / 3. निदानमरण-ऋद्धि, भोगादि की इच्छा करके मरना / 4. तद्भवमरण--वर्तमान भव की ही आयु बांध कर मरना। 5. गिरिपतनमरण-पर्वत से गिर कर मरना। 6. तरुपतनमरण-वृक्ष से गिर कर मरना / 7. जल-प्रवेश-मरण अगाध जल में प्रवेश कर या नदी में बहकर मरना / 8. अग्नि-प्रवेश-मरण-जलती आग में प्रवेश कर मरना। 6. विष-भक्षणमरण-विष खाकर मरना। शस्यावपाटन मरण-शस्त्र से घात कर मरना। 11. वैहायसमरण-गले में फांसी लगाकर मरना / 12 गिद्धपट्ट या गृद्धस्पृष्टमरण-~-बृहत्काय वाले हाथी आदि के मृत शरीर में प्रवेश कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org