________________ 64 ] [ स्थानाङ्गसूत्र उनमें कोई भिन्नता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से भी उनमें कोई विभिन्नता नहीं है। इनका आयाम, विष्कम्भ और परिधि भी एक दूसरे के समान है। २७१-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो कुरानो पण्णतामो-बहुसमतुल्लायो जाव देवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव / तत्थ णं दो महतिमहालया महादुमा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णाइबट्टति अायाम-विक्खंभुच्चत्तोब्वेह-संठाण-परिणाहेणं, त जहा-कूडसामली चव, जंबू चे व सुदंसणा। तत्थ णं दो देवा महिड्डिया महज्जुइया महाणभागा महायसा महाबला महासोक्खा पलिओवमट्टितीया परिवसंति, तं जहा-गरुले चेव वेणुदेवे प्रणाढिते च व जंबुद्दीवाहिवती। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो कुरु कहे गये हैं-उत्तर में उत्तरकर और दक्षिण में देवकरू। ये दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दष्टि से सर्वथा सदश हैं. नगर-नदी में की दृष्टि से उनमें कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम, विष्कम्भ, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। वहां (देवकुरु में) कूटशाल्मली और (उत्तर कुरु में) सुदर्शन जम्बू नाम के दो अति विशाल महावृक्ष हैं / वे दोनों प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदश हैं, उनमें परस्पर कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिर्वतन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे पायाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध (मूल, गहराई), संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं / उन पर महान् ऋद्धिवाले, महा द्यु तिवाले, महाशक्ति वाले, महान् यशवाले, महान् बलवाले, महान् सौख्यवाले और एक पल्योपम की स्थितिवाले दो देव रहते हैं-कूटशाल्मली वृक्ष पर सुपर्णकुमार जाति का गरुड वेणुदेव और सुदर्शन जम्बूवृक्ष पर जम्बूद्वीप का अधिपति अनादृत देव (271) / पर्वत-पद २७२-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासहरपव्वया पण्णत्ताबहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवति प्रायाम-विक्खंभुच्चत्तोबेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा-चुल्ल हिमवंते चव, सिहरिच्च व / २७३–एवं महाहिमवंते चैव, रूप्पिच्च व / एवं-णिसढे चे व, णीलवंते चेव। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो वर्षधर पर्वत कहे गये हैंदक्षिण में क्षुल्लक हिमवान् और उत्तर में शिखरी। ये दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, उनमें परस्पर कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (272) / इसी प्रकार महाहिमवान् और रुक्मी, तथा निषध और नीलवन्त पर्वत भी परस्पर में क्षेत्र-प्रमाण, कालचक्र-परिवर्तन, आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वध, संस्थान और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (273) / (महाहिमवान् और निषध पर्वत मन्दर के दक्षिण में हैं, और नीलवन्त तथा रुक्मी मन्दर के दक्षिण में हैं।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org