________________ द्वितीय स्थान-तृतीय उद्देश] [65 २७४–जंबुद्दोवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं हेमवत-हेरण्णवतेसु वासेसु दो वट्टवेयपव्वता पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवट्टति प्रायाम-विक्खंभुच्चतोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा-सद्दावाती चव, वियंडावाती चव।। तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव पलिप्रोवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा-साती चव, पभासे चव। ___ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में हैमवत और उत्तर में हैरण्यवत क्षेत्र में दो वृत्त वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं, जो परस्पर क्षेत्र-प्रमारण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वध संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। उन पर महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं-दक्षिण दिशा में स्थित शब्दापाती वृत्त वैताढ्य पर स्वाति देव और उत्तर दिशा में स्थित विकटापाती वृत्त वैताढ्य पर प्रभासदेव (274) / २७५---जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं हरिवास-रम्मएसु वासेसु दो वट्टवेयड्डपम्वया पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव तं जहा-गंधावाती चेव, मालवंतपरियाए चेव / तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव पलिग्रोवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा---अरुणे चव, पउमे चव। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, मन्दर पर्वत के दक्षिण में, हरिक्षेत्र में गन्धापाती और उत्तर में रम्यक क्षेत्र में माल्यवत्पर्याय नामक दो वृत्त वैताढय पर्वत कहे गये हैं। दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का उल्लंघन नहीं करते हैं। उन पर महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं--गन्धापाती पर अरुणदेव और माल्यवत्पर्याय पर पद्मदेव (275) / २७६-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पन्वयस्स दाहिणे णं देवकुराए कुराए पुवावरे पासे, एत्थ णं आस-क्खंधग-सरिसा प्रद्धचंद-संठाण-संठिया दो वक्खारपब्वया पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव तं जहासोमणसे चव, विज्जुप्पभे चेव / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में देवकुरु के पूर्व पार्श्व में सौमनस और पश्चिम पार्श्व में विद्य त्प्रभ नाम के दो वक्षार पर्वत कहे गये हैं। वे अश्व-स्कन्ध के सदृश (आदि में नीचे और अन्त में ऊंचे) तथा अर्धचन्द्र के आकार से अवस्थित हैं / वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (276) / २७७-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं उत्तरकुराए कुराए पुवावरे पासे, एस्थ णं आस-क्खंधग-सरिसा अद्धचंद-संठाण-संठिया दो वक्खारपब्वया पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव त जहा-गंधमायणे चे व, मालवंते चेव / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में उत्तरकुरु के पूर्व पार्श्व में गन्धमादन और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org