________________ द्वितीय स्थान-- तृतीय उद्देश [ 56 जहा--अत्ता चे व, अणता चंव। इट्टा चेव, अगिट्टा चेव। कता चव, अकंता चव। पिया चेव, अपिया चेव / मणुष्णा चव, अमणुण्णा चेव / मणामा चव, अमणामा चेव / दो प्रकार के शब्द कहे गये हैं-यात्त और अनात्त तथा इष्ट और अनिष्ट, कान्त और अकान्त, प्रिय और अप्रिय, मनोज्ञ और अमनोज्ञ, मनाम और अमनाम (234) / दो प्रकार के रूप कहे गये हैं- प्रात्त और अनात्त, इष्ट और अनिष्ट, कान्त और अकान्त, प्रिय और अप्रिय, मनोज्ञ और म और अमनाम (235) / दो प्रकार के गन्ध कहे गये हैं-प्रात्त और अनात्त, इष्ट और अनिष्ट, कान्त और अकान्त, प्रिय और अप्रिय. मनोज्ञ और अमनोज्ञ, मनाम और अमनाम (236) / दो प्रकार के रस कहे गये हैं-आत्त और अनात्त, इष्ट और अनिष्ट, कान्त और अकान्त, प्रिय और अप्रिय, मनोज्ञ और अमनोज्ञ, मनाम और अमनाम (237) / दो प्रकार के स्पर्श कहे गये हैं--प्रात्त और अनात्त, इष्ट और अनिष्ट, कान्त और अकान्त, प्रिय और अप्रिय, मनोज्ञ और अमनोज्ञ, मनाम और अमनाम (238) / आचार-पर २३६-दुविहे प्रायारे पण्णते, त जहा--णाणायारे चैव, णोणाणायारे चैव / २४०–णोणाणायारे दुविहे पण्णत्ते, त जहा-दसणायारे चेय, णोदसणायारे चेव / २४१–णोदंसणायारे दुविहे पण्णते, त जहा-चरित्तायारे चेव, गोचरित्तायारे चेव / २४२–णोचरित्तायारे दुविहे पण्णत्ते, त जहा-तवायारे चेव, वीरियायारे चेव / प्राचार दो प्रकार का कहा गया है-ज्ञानाचार और नो-ज्ञानाचार (236), नो-ज्ञानाचार दो प्रकार का कहा गया है--दर्शनाचार और नो-दर्शनाचार (240) / नो-दर्शनाचार दो प्रकार का कहा गया है-- चारित्राचार और नो-चारित्राचार (241) / नो-चारित्राचार दो प्रकार का कहा गया है-- तपःप्राचार और वीर्याचार (242) / __ यद्यपि प्राचार के पांच भेद हैं, किन्तु द्विस्थानक के अनुरोध से उनको दो-दो भेद के रूप में वर्णन किया गया है / इनका विवेचन पंचम स्थानक में किया जायगा / प्रतिमा-पद २४३—दो पडिमानो पण्णत्तानो, तं जहा–समाहिपडिमा चेव, उवहाणपडिमा चेव / २४४-दो पडिमानो पण्णत्तानो, त जहा-विवेगपडिमा चेव, विउसग्गपडिमा चेव / २४५-दो पडिमानो पण्णत्ताश्रो, त जहा-'भद्दा चेव, सुभद्दा चेव' / २४६-दो पडिमानो पण्णत्तायो, त जहा-महाभद्दा चेव, सव्वतोभद्दा चेव / 247 -दो पडिमानो पण्णत्तानो, त जहा-खडिया चेव मोयपडिमा, महल्लिया चेव मोयपडिमा। २४८-दो पडिमाओ पण्णत्तानो, त जहा–जवमझा चेव चंदपडिमा, वइरमझा चेव चंदपडिमा। प्रतिमा दो प्रकार की कही गई हैं--समाधिप्रतिमा और उपधान प्रतिमा (243) / पुनः प्रतिमा दो प्रकार की कही गई हैं-विवेकप्रतिमा और व्युत्सर्गप्रतिमा (244) / पुनः प्रतिमा दो प्रकार की गई है-भद्रा और सुभद्रा (245) / पुनः प्रतिमा दो प्रकार की कही गई है-महाभद्रा और सर्वतोभद्रा (246) / पुन: प्रतिमा दो प्रकार की कही गई है- क्षुद्रक मोक प्रतिमा और महती मोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org