________________ 58] [स्थानाङ्गसूत्र २३१---दुबिहा पोग्गला पण्णत्ता, त जहा-परियादितच्चेव, अपरियादितच्च व / पुनः पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं-परियादित और अपरियादित (231) / विवेचन--'परियादित' और अपरियादित इन दोनों प्राकृत पदों का संस्कृत रूपान्तर टीकाकार ने दो-दो प्रकार से किया है पर्यायातीत और अपर्यायातीत / पर्यायातीत का अर्थ विवक्षित पर्याय से अतीत पुद्गल होता है और अपर्यायातीत का अर्थ विवक्षित पर्याय में अवस्थित पुद्गल होता है / दूसरा संस्कृत रूप पर्यात्त या पर्यादत्त और अपर्यात्त या अपर्यादत्त कहा है, जिसके अनुसार उनका अर्थ क्रमशः कर्मपुद्गलों के समान सम्पूर्ण रूप से गृहीत पुद्गल और असम्पूर्ण रूप से गृहीत पुद्गल होता है / पर्यात्त का अर्थ परिग्रहरूप से स्वीकृत अथवा शरीरादिरूप से गृहीत पद्गल भी किया गया है और उनसे विपरीत पुद्गल अपर्यात्त कहलाते हैं / २३२–दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा--अत्ता चव, अणत्ता चेव / पुनः पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं-आत्त (जीव के द्वारा गृहीत) और अनात्त (जीव के द्वारा अगृहीत) पुद्गल (232) / २३३--दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तजहा–इट्ठा चव, प्रणिट्ठा चेव / कंता चव, अकंता चव , पिया चव, अपिया चेव / मणुण्णा चे व, अमणुण्णा चव / मणामा चेव, अमणामा चेव / पुनः पुद्गल दो-दो प्रकार के कहे गये हैं--इष्ट और अनिष्ट ; तथा कान्त और अकान्त, प्रिय और अप्रिय, मनोज्ञ और अमनोज्ञ, मनाम और अमनाम (233) / विवेचन--सूत्रोक्त पदों का अर्थ इस प्रकार है:-इष्ट-जो किसी प्रयोजन विशेष से अभीष्ट हो। अनिष्ट--जो किसी कार्य के लिए इष्ट न हो / कान्त-जो विशिष्ट वर्णादि से युक्त सुन्दर हो। अकान्त--जो सुन्दर न हो। प्रिय --जो प्रीतिकर एवं इन्द्रियों को प्रानन्द-जनक हो / अप्रिय-- जो अप्रीतिकर हो / मनोज्ञ-जिसकी कथा भी मनोहर हो / अमनोज्ञ-जिसकी कथा भी मनोहर न हो। मनाम-जिसका मन से चिन्तन भी प्रिय हो / अमनाम-जिसका मन से चिन्तन भी प्रिय न हो। इन्द्रिय-विषय-पद २३४-दुविहा सहा पण्णत्ता, त जहा-'प्रत्ता चव, अणता चव' / इट्टा चे व, प्रणिट्टा चव। कंता चव, प्रकता चेव / पिया चव, अपिया चेव / मणण्णा चव, अमणण्णा चव / मणामा चव , अमणामा चेव / २३५-दुविहा रूवा पण्णत्ता, त जहा---'अत्ता चेव, अणत्ता चव'। इट्ठा चव, अणिट्टा चेव / कता चव, प्रकंता चेव। पिया चव, अपिया चेव / मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चव। मणामाचे व, अमणामा चेव / २३६--विहा गंधा पण्णत्ता, त जहा---अत्ता चेव, अणत्ता चेव / इट्टा चव, अगिट्ठा चेव / कंता चव, अकता चेव / पिया चव, अपिया चेव / मणुण्णा चेक, अमणुण्णा चे थे। मणामा चेक, अमणामा चव। २३७-दुविहा रसा पण्णत्ता, त जहा-अत्ता चेव, प्रणता चेव / इट्ठा चेव, अणिट्ठा चव। कंता चव, अकंता चेव / पिया चव, अपिया च छ / मणुण्णा चे व, प्रमणुण्णा चेव / मणामा चे व, अमणामा चेव / २३८–दुविहा फासा पण्णत्ता, त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org