________________ 18] [ स्थानाङ्गसूत्रम् 10. नपुसकलिंगसिद्ध-जो कृत्रिम नपुसकलिंग से सिद्ध होते है, जैसे-गांगेय / 11. स्वलिंगसिद्ध-जो निर्ग्रन्थ वेष से सिद्ध होते हैं, जैसे--सुधर्मा / 12. अन्यलिंगसिद्ध-जो निर्ग्रन्थ वेष के अतिरिक्त अन्य वेष से सिद्ध होते हैं ; जैसे-वल्कलचीरी 13. गृहिलिंगसिद्ध-जो गृहस्थ के वेष से सिद्ध होते हैं, जैसे--मरुदेवी 14. एकसिद्ध-जो एक समय में एक ही सिद्ध होते हैं, जैसे–महावीर / 15. अनेकसिद्ध-जो एक समय में दो से लेकर उत्कृष्टतः एक सौ आठ तक एक साथ सिद्ध होते हैं / जैसे-ऋषभदेव / इस प्रकार पन्द्रह द्वारों से मनुष्य पर्याय की अपेक्षा सिद्धों की विभिन्न वर्गणाओं का वर्णन किया गया है। परमार्थदृष्टि से सिद्धलोक में विराजमान सब-सिद्ध समान रूप से अनन्त गुणों के धारक हैं, अतः उनकी एक ही वर्गणा है। पुद्गल-पद २३०-एगा परमाणुपोग्गलाणं वग्गणा, एवं जाव एगा अणंतपएसियाणं खंधाणं वग्गणा। 231 -एगा एगपएसोगाढाणं पोगलाणं वग्गणा जाब एगा असंखेज्जपएसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा। २३२.-एगा एगसमयठितियाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेज्जसमठितियाणं पोग्गलाणं वगणा / २३३----एगा एगगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेज्जगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एगा अणंतगणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा। २३४-एवं वण्णा गंधा रसा फासा भाणियन्वा जाव एगा प्रणंतगुणलुक्खाणं पोग्गलाणं वगणा। . (एक प्रदेशी) परमाणु पुद्गलों की वर्गणा एक है, इसी प्रकार द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक-एक है (230) / एक प्रदेशावगाढ पुद्गलों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार दो, तीन यावत् असंख्यप्रदेशावगाढ पुद्गलों की वर्गणा एक एक है (231) / एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार दो, तीन यावत् असंख्य समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वर्गणा एक एक है (232) / एक गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार दो तीन यावत् असंख्य गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक एक है / अनन्त गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है (233) / इसी प्रकार सभी वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शो के एक गुणवाले यावत् अनन्त गुण रूक्ष स्पर्शवाले पुद्गलों की वर्गणा एक एक है (234) / २३५-एगा जहण्णपएसियाणं खंधाणं वग्गणा। २३६–एगा उक्कस्सपएसियाणं खंधाणं वग्गणा / २३७–एगा प्रजहण्णुक्कस्सपएसियाणं खंधाणं बरगणा / २३८-एवं एगा जहण्णोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा / २३९–एगा उक्कोसोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा / २४०-एगा अजहणुक्कोसोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा। २४१-एगा जहण्णठितियाणं खंधाणं वग्गणा। २४२–एगा उक्कस्सठितियाणं खंधाणं वग्गणा। २४३–एगा अजहणुक्कोसठितियाणं खंधाणं वग्गणा / २४४–एगा जहण्णगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा। २४५-एगा उक्कस्सगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा। 246 -- एगा प्रजहण्णुक्कस्सगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा। २४७-एवं-वण्ण-गंध-रसफासाणं वग्गणा माणियन्वा जाव एगा अजहण्णुक्कस्सगुणलुक्खाणं पोग्गलाणं [खंधाणं] वग्गणा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org