________________ द्वितीय स्थान--द्वितीय उद्देश ] दो प्रकार से आत्मा तिर्यक् लोक को जानता देखता है - वैक्रिय शरीर का निर्माण कर लेने पर आत्मा अवधिज्ञान से तिर्यक् लोक को जानता-देखता है। वैक्रिय शरीर का निर्माण किये विना भी आत्मा अवधिज्ञान से तिर्यक् लोक को जानता-देखता है / अधोवधि वैक्रियशरीर का निर्माण करके या उसका निर्माण किये विना भी अवधिज्ञान से तिर्यक् लोक को जानता-देखता है (198) / १६६-दोहि ठाणेहि आता उडलोग जाणइ-पासइ, तं जहा-विउवितेणं चेव प्राता उड्डलोगं जाणइ-पासइ, अविउन्वितेणं चेव अप्पाणेणं पाता उडलोगं जाणइ-पासइ / पाहोहि विउवियाविउवितेणं चेव अप्पाणेणं आता उड्ढलोग जाणइ-पासइ / दो प्रकार से प्रात्मा ऊर्वलोक को जानता-देखता है- वैक्रिय शरीर का निर्माण कर लेने पर आत्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है / वैक्रिय शरीर का निर्माण किये विना भी अात्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है / अधोवधि वैक्रिय शरीर का निर्माण करके या उसका निर्माण किये विना भी अवधिज्ञान से ऊर्ध्व लोक को जानता-देखता है (166) / २००-दोहि ठाणेहि आता केवलकप्पं लोग जाणइ-पासइ, त जहा-विउवितेणं च व अप्पाणणं आता केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, अविउन्वितेणं चव अप्पाणणं आता केवलकप्पं लोगं जाणइ-पास। पाहोहि विउब्धियाविउवितेणं चेव अप्पाणेणं प्राता केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ / दो प्रकार से आत्मा सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है—वैक्रिय शरीर का निर्माण कर लेने पर प्रात्मा अवधि ज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता--देखता है / वैक्रिय शरीर का निर्माण किये विना भी पात्मा अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता--देखता है। अधोवधि वैक्रिय शरीर का निर्माण करके या उसका निर्माण किये विना भी अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है (200) / देशतः-सर्वत : श्रवणादि-पद २०१-दोहि ठाणेहि माया सद्दाई सुणेति, त जहा-देसेण वि पाया सद्दाई सुणेति, सव्वेणवि प्राया सद्दाई सुणेति / 202-- दोहि ठाणेहि आया रूवाइं पासइ, तजहा - देसेण वि पाया रूबाई पासइ, सव्वेणवि आया रूवाई पासइ / २०३-दोहि ठाणेहि आया गंधाइं अग्घाति, त जहा---- देसेण वि पाया गंधाई अग्घाति, सम्वेणवि आया गंधाई अग्घाति / २०४-दोहि ठाहिं आया रसाई प्रासादेति, त जहादेसेण वि पाया रसाई प्रासादेति, सम्वेण वि अाया रसाइं प्रासादेति / २०५--दोहि ठाणेहिं पाया फासाइं पडिसंवेदेति, त जहा-देसेण वि पाया फासाई पडिसंवेवेति, सम्वेण वि पाया फासाई पडिसंवेदेति / दो प्रकार से प्रात्मा शब्दों को सुनता है—एक देश (एक कान) से भी आत्मा शब्दों को सुनता है और सर्व से (दोनों कानों से) भी आत्मा शब्दों को सुनता है (201) / दो प्रकार से आत्मा रूपों को देखता है-एक देश (नेत्र) से भी प्रात्मा रूपों को देखता है और सर्व से भी आत्मा रूपों को देखता है (202) / दो प्रकार से प्रात्मा गन्धों को सूघता है--एक देश (नासिका) से भी आत्मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org