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________________ UALIBाकाल YOUCNRAO PPA Gunun MS REG a ॥श्री॥ // गुणवर्मा चरित्र,॥ SNP 15925 (मूळ अने जाषांतर सहित.) 4-9-17 संस्कृत उपरथी नाषांतर करावी छपावनार, शा. मगनलाल होशंग. ज्ञानप्रकाशना मालेक. HAMMAMMAMASALA men वीर संवत् 2420 संवत् 1958
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________________ PPA Gunnatasun MS प्रसिद्ध कर्ताए सर्व प्रकारना हक स्वाधिन राख्या . अमदावाद युनियन प्रिन्टिंग प्रेस कंपनी लिमिटेडमां छाप्यु. Jun Gun Aaradhat Trust
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________________ प्रस्तावना. आ चालता समये जैन देरासरोनी अंदर बहु वखते प्रभुनी पांच प्रकारी, आठ प्रकारी, सत्तर प्रकारी एम जूदी जूदी पूजाओ भणावता नाविक श्रावको आपणी नजरे जोवामां आवे छे; ते पूजाओ कया कया द्रव्यथी * केवा अनुक्रमे करवी ते वात तो सर्वे श्रावको जाणना होय तेथो ते वातनो वधारे विस्तार न लखतां आ ठे काणे एटलुंज लखीये छीये के, ते जूदा जूदा द्रव्यथी करेली पूजाओगें फल शुं शुं थाय छे, तेथी श्रावको बहु अजाणा होय छे, माटे ते पूजाना फलने देखाडवाना हेतुथी श्री अंचलगच्छना माणिक्यसूरिए आ गुणवर्मा चरित्र रच्यु छे अने तेमां सत्तर प्रकारी पूजानां फलो कथाओनी साथे विस्तारथी आपेलां. सत्तर प्रकारी पूजा उपर आश्चर्यकारो सत्तर कथाओनों गुणवर्माचरित्रनी अंदरज समावेश थाय छे. ___आ गुणवर्माचरित्र सत्तर प्रकारी पूजाना फलने देखाडनारं होवाथी श्रावकोने बहु उपयोगी होवाने लोधे श्री अंचलगच्छना मुनि गौतमसागरजी अमदावादमां आव्या त्यारे तेमणे अमने ते पुस्तक भाषांतर साथे छापवानी भलामण करी तेथी, तथा पुस्तकने बहु उत्तम जाणी विद्याशालाना शास्त्री हरिशंकर कालीदास पासे अमे तेनुं गुजराती भाषामां भाषांतर करावी मूल अने भाषांतर साथे छपाव्युं छे.. ___आ पुस्तक आरंभमा सारु शुद्ध मालम पडतुं हतुं तेथा अमे भाषांतर कराववानी साथे छपावq शरु करयुं, पण पाछलथी बहु अशुद्ध मालम पडयुं, अने वली तेनी वोजी प्रत पण कोइ ठेकाणेथी मली न आववाने लीधे भाषांतरक ए एक प्रत उपरथी सुधारी लीधुं छे; छतां कोइ ठेकाणे अशुद्ध रही गयुं होय तो तेने माटे सुज्ञ पुरुषोए तेवी भुल सुधारी लेवी, एवी अमारो विज्ञप्ति छे. प्रसिइका. KXXXXXXXXXXXX
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________________ LI अनुक्रमणिका. पानु.. P.P.A. Gunratnasuti MS (XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX***** विषय. विषय. पार्नु. 1 मंगलाचरण. नवमो ध्वजारोपणपूजा उपर कनक 2 नरवर्मा राजानु दिक्षा लेबु भने गुणवर्मानुं कुमारनी कथा. चार स्त्रियोनी साथे पाणिग्रहण. दसमी आभूपणपूजा उपर कनकाभनी कथा६६ 3 गुणवर्माना सत्तर पुत्रोना नाम तथा तेओए अगी आरमी पुष्पगृह पूजाउपर हेमाभनीकथा७२ पाछला भवमां करेली सत्तर प्रकारी पूजा वारमी पुष्पपकर ( ढगला ) पूजा उपर बहु / तथा तेनां फल, तेउपर जूदी जुदी कथाओ 17 बुद्धिनी कथा. पहेली स्नात्रपूजा नपर दत्तनी कथा. 18 तेरमी अक्षतमंगलपूजा उपर श्रीदनी कथा. 79 बीजी विलेपनपूजा उपर वसुदत्तनी कथा. 24 चौदमी धूपपूजा उपर श्री दत्तनी कथा. 84 त्रीजी वस्त्रपूजा उपर शुदत्तनी कथा.. 28 पंदरमी गीतपूजा उपर संखनी कथा. चोथी वासखेपपूजा उपर चित्तनंदननी कथा.३२ सोलमी वाजींत्रपूना उपर धर्मनी कथा 96 पांचमी पूष्पपूजा उपर लक्ष्मीधरनी कथा 36 सत्तरमी नाट्यपूजा उपर धीरनी कथा. 106 छठी माल्यपूजा उपर धनेशनी कथा. 41 | 4 गुणवर्माराजानुं चारित्र ले. सातमी वर्णकपूजा उपर धननाथनी कथा. 46 5 प्रशस्ति आठमी कर्पूरपूना नपर अनंतनी कथा. 50 SKkKKKKXXXXXXXXXXXXXXX 116 Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ // श्री पार्श्वनाथाय नमः // PPA Gunnatasun MS श्री गुणवर्मा चरित्र. (द्रुतविलंवितवृत्तम् ) विजयतां जिनवाक्यसुधारसः, सकलपापविषापनयनमः // अंजनि यस्य निरीक्ष्य मनोइतां, शशिधरान्निध एंव सुधाकरः // 1 // . (उपजातिवृत्तम् ) करोतु वृद्दि प्रनुपार्श्वदेवः, संकल्पितातीतफलप्रदाता // कैल्पमो युक्तमनेन साम्यं, ने सौस हि पल्लवधूननेन // // वीरो जीनः सत्यपुरावतारः, सारथि यचतु वनितां वः // यो वैईमान कमलां विधाय, पिर्तुगृहेऽनूढूँवि वईमानः // 3 // सर्व पापरूप विषनो नाश करवाने समर्थ एवो जिन वचनरूप अमृतरस विजयवंत वर्गों के जे अमृतरसना मनोहरपणाने जोईने सुधाकर मुनि शिव छे नाम जेनुं एवाज थया. अर्थात् मुक्कि पाम्या. // 1 // संकल्पथी अधिक फल आपनारा श्री पार्श्वनाथ प्रभु वृद्धि करो. कल्पवृक्ष पण ए प्रभुनी साथे सरखापणुं पल्लवने कंपाववायी पण नथी पाम्यु.॥२॥ सत्यपुरने विषे छे अवतार जेमनो एवा श्री वीर प्रभु तमने इचित एवी श्रेष्ट Jun Gun Aarada Trust
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________________ गुराण // 2 // P.PA. Gunratnasuti MS लक्ष्मी आपो. जे श्री वीरप्रभु पिता (सिद्धारथ राजा ) ना घरने विषे. वृद्धि पामती एवो लक्ष्मीए करीने पोखे चरित्र. पृथ्वीमा वर्तमान एवा नामथी प्रसिद्ध थया.॥३॥ श्री अंचलगच्छना अधिपति एवा श्रीमान् मेरुतुंग सूरीश्वर विजयवंता वर्तो. जे सूरीश्वरनी वाणीथी दुधसहित साकर पण प्रमाणवाली (थोडी मीठाशवाली) थई गई. // 4 // देव, गुरु अने धर्म ए त्रण तत्वने उत्तम प्रकारे सेवन करवाथी समकित प्राप्त थाय छे. तेज कारण माटे * (आर्यावृत्तम् ) श्रीअंचलगछेशाः,श्रीमंतो मेरुतुंगसूरीशाः // विजयंतां यहाण्या,सिता मिता संयुता पयसा // 4 // देवगुरुधर्मतत्वत्रयीसमासेवनेन संम्यक्त्वम् // 'तेनैवं देवपूजा, मलं तस्यापि विडेया // 5 // ( स्वागतात्तम् ) वर्तते यदि मनोरथमाला, राज्यऋभिरमणीषु विशाला // ईप्सिता यदि मनोइतनजास्तत्कुरुध्वमंनिशं जिनैपूजा // 6 // ( अनुष्टुप्वृत्तम् ) * मोसौरव्यं फलं मुख्यं, गौण राज्यादिकं पनादेवपूजान्निधा कैल्पवलि देत्तेऽन्वहं नृणाम् | गुरुप्रसादान्माणिक्यसुंदरः सूरिर्रल्पधीः // पूर्जाधिकारे वक्ष्यामि, गुणवर्मकामहम् // 7 // A देवपूजा ते समकितनुं पण मूल कारण जाणवू. // 5 // हे भव्यजनो ! जो तमने राज्यसमृद्धिरूप स्त्रीने विष म्होटो मनोरथ होय अने मनोहर एवा पुत्रोनी इच्छा होय तो निरंतर जिनराजनी पूजा करो. // 6 // देवपूजा छे नाम जेनुं एवी कल्पलता माणसोने निरंतर प्रथम मोक्षसुखरूप फल अने पछी राज्यादिक फल आपे छ. // 1 // // 7 // अल्पवुद्धिवाळो माणिक्यसुंदर मूरि हं, गुरुना प्रसादथी पूजाना अधिकारने विषे गुणवानी कथा क Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP Guntars MS के होश. // 8 // पूर्वे राजगृह नगरमां श्री वीरप्रभुए जेवी रीते श्रेणिक राजानी आगल कही छे तेवी रीते आ कथा पूजाना फलने देखावामां जाणवी. // 9 // आ भरतक्षेत्रमा क्रीडा करवाना स्थान, मंदिर, गढ अने दरवाजाथी मुशोभित एवं हस्तिनापुर नामर्नु नगर छे. // 10 // ए नगरमां जैनधर्ममां तत्पर एवा नरवर्मा नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने शीलव्रतरूप आभूषणथी सुशोभित एवी लीलावती नामनी स्त्री हती. // 11 // ते नरवर्मा पूर्व राजगृहे 'वीरः,श्रेणिकाये जगौ यर्था॥ तथा कर्थासौ विज्ञेया, पूजाफलनिदर्शने // // हस्तिनापुरमिय॑स्ति, पुरं नरतमंमले // विहारवेश्मप्राकारप्रतोलीधारशोनितम् // 1 // नरवर्मनृपस्त्वंत्र, जिनधर्मपरोऽनवत् // प्रिया लीलावती तेस्य, शोलालंकारशालिनी // 11 // तत्कुतिनः सुतस्तस्य, गुणवर्मानिधोऽनवत्॥ कलाकलापकुशलः, कलशःस्वकुलस्य यः॥१२॥ सन्नायां संस्थिते नूपेऽन्यदा वेत्री व्यजिज्ञपत्॥ चंपापुरनराधीशमंत्रो हारे , तिष्टति // 13 // ओनयेति नेपाझप्तः, सोऽपि मंत्रिणमानयत्॥नत्वा निवि ष्टत नूपः,स्महि विस्मापयन् बुंधान / * अस्ति चंपानिरीकंपा, देशो न क्लेशैलेशन्नाकामन्मित्रं जूंपतिः शूरः,पोति राज्यं प्रतापवान् 15 अथ मंत्रीश्वरः प्रोचे, सर्वत्र कुशलं नृप // परं येनाहमायातः, कोरणं तैनिशम्यताम् 16 / | राजाने लीलावतीना उदरथी उत्पन्न थयेलो, कलाना समूहने जाणनारो अने जे पोताना कुलने पूर्ण कलशरूप एवो गुणवर्मा नामनो पुत्र हतो. // 12 // एक दिवस नरवर्मा राजा सभामां बेठो हतो, ते वखते द्वारपाले / आवीने राजने विनंति करी के, "चंपापुरीना राजानो प्रधान आपणा द्वारे आवीनै उभो छे. // 13 // रा. जाए " तेमने तेढी लाव." एम आज्ञा आपी एग्ले ते द्वारपाल पण मंत्रीने सभामा तेडी लाव्यो. त्यां राजाने नमस्कार करीने आसन उपर वेठेला ते प्रधानने राजाए विद्वानोने आश्चर्य करता छता पूछयु. // 14 // "चंपानगरी त्रासरहित छेनी ? देश जरापण क्लेशवालो नथीनी ? अने म्हारो मित्र प्रतापी शुरराजा राज्य करे छेनी?" // 15 // पछी मंत्रीश्वरे कां. “हे महाराज ! सर्व स्थानके कुशल छे; परतुं जे कारण माटे हुं आव्यो Jun Gun Arana Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasur M.S. छु, ते कारण सांभलो. // 16 // ते अमारा राजाने गुणोना स्थानरूप गुणावली एवा नामनी राणोछे, ते राणोनाच उदरथी उत्पन्न थयेली, प्रसिद्ध एवी रत्नावली नामनी पुत्री छे. // 17 // रूप, लावण्य, सौभाग्य अने भाग्यादि गुणावलीति नाम्नास्ति,तस्य राझी गुणालया।तत्कुदिजा सुंता रत्नावली नानाच विश्रृंता 17 रूपलावण्यसौलाग्यन्नाग्यादिगुणरंजितः // तस्याः स्वयंवरं कर्तुमारेने पतिर्मुदा // 1 // प्राकारयितमादिष्टो, निःशेषान्नपंतीनहं // प्राप्तोऽत्रापि ततः प्रीत्यां, गेभ्यतां तत्स्वयंवरे // 1 // श्रुत्वेति पतिः प्राह, युक्तमुक्तं त्वया पुनः॥ तत्र नौगमनं नावि, येतो माँ बाधते जरा॥ (उपजातिवृत्तम् ) जरा नराणां खलु काष्टकीटः, काष्टं यथांततनु जीर्णयंति // तजूंर्णपातादि शुक्ललोमा, विलोक्यतेऽसौ" किले लोकः // 21 // पायो जनाः स्युः पशवः शिशुत्वे, स्त्रीशैलिन्यां शफरा युवत्वे // .. धेमें मैतिर्यस्य न वाईकेऽपि," होहा हतोऽ'सो मृगवन्मनुष्यः // 2 // गुणथी आनंद पामेला राजाये हर्षथी ते पुत्रीनो स्वयंवर करवानो आरंभ करयो छे. // 18 // तेमां सर्वे राजा* ओने बोलावानी मने आज्ञा करेली होवाथी हं अहिं आव्यो छ माटे प्रीतिथी ते स्वयंवरने विषे पधारो.॥१९॥ | मंत्रीश्वरनां एवां वचन सांभली राजाए का. “तें योग्य का; परंतु माराथी त्यां आवी शकाशे नहि. कारण के, मने वृद्धावस्था वाधा (पीडा) करे छे. // 20 // माणिक्यांकमां कां छे के-जेम लाकडानो कीटो लाकडाने 3 अंदरथी जीर्ण करी नाखे छ तेम जरावस्था माणसोना शरीरना अंदरना भागने जीर्ण करी नाखे छे. वळी ते लाकडानो भूको पडवाथी जेम लाकडं अंदरथी सली गयेलं मालम पडे छे तेम आ वृद्ध लोक पण निश्चे धोला वालवालो देखाय छे. // 21 // घणुं करी माणसो वालपणमां पशुरूपज होय छ, युवावस्थामां स्त्रीरूप नदीने Jun Gun Aaradhak Trust //
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________________ PP.AC.Gunratnasur XXXXX**kkk भी जन ISANKETARistkKX विषे मत्स्यरूप होय छे; परंतु जेनी बुद्धि वृद्धावस्थामां पण धर्मने विषे जोडाई नथी. हा हा ! ए माणस मृगनी * पेठे हणायलो छे. // 22 // माटे हुं अहिं रहिश अने पुत्रने स्वयंवरमां मोकलीश." एम कहीने नरवर्मा राजाए पोतानी पासे रहेला गुणवर्माने ते प्रधानने देखाडयो. // 23 // गुणवर्माने जोई मंत्री हर्षथी मनमां विचार करवा लाग्यो के, "जो आ राजकुमार कन्याने वरे तो तेज कन्या पृथ्वीमां धन्य छे. // 24 // पछी " त्यारे एमज * करजो." एम कहीने महामंत्री वीजे स्थानके गयो अने राजा नरवाए आज्ञा करवाथी कुमार चंपानगरी तरफ तस्तिष्टाम्यहं पुत्रं, प्रेषयामि स्वयंवरे // इत्युक्त्वादेर्शयपो, गुणवर्माणमंतिके // 3 // विलाय गुणवर्माणं,मंत्री दध्यौ मुदा है दि॥योर्ष बॅणुते कन्या, सैव घेन्या ततःकितौ // 3 // * एवमेवं ततः कार्यमित्युक्त्वा मंत्रिपुंगवः॥ ययावन्यत्र जूंपेनौदिष्टोऽचालीत् कुमारराट्॥॥ ईमार्गे व्रजन्नंग्रे, तूर्णमायातमैग्रतः // अंशदीत् करनारूढं, स पितुर्लेखंहारकम् // 6 // साश्चर्ये नुपतनये, लेखमर्पयतिस्म सः॥ तस्य शीर्षे तन्मुश्य, वाचयामास राजसूः॥२॥ स्वस्तिश्रीहस्तिनपुरान्नरवर्मनरेश्वरः॥ यथास्थानस्थित पुत्रं, गुणवर्माणादिशेत् // // अस्त्यंत्र कुशलं किंच, जयंतो नाम केवली॥प्राप्तोऽस्ति तत्समीपेऽहं",संयम लातुमुसहे शप * आगंतव्यं त्वया शीघ्रं,न्यस्य राज्यं यथा त्वयि॥स्वकार्य साधयाम्येष,उर्खनः सैमयः पुनः३० * चाल्यो. // 25 // आगल अर्दै मार्गे जता एवा कुमारे आगलथी (चंपानगरी तरफथी ) उतावले आवता अने उंट उपर बेठेला एवा पोताना पिताना कासद (पत्र लावनार) ने दीठो. // 26 // पछी पत्र लावनार कासदे * आश्चर्यवंत एवा राजकुमारने पत्र आप्यो. कुमार पण ते पत्रने माथा उपर चडावी अने पछी उघाडीने वाचवा लाग्यो. // 27 // स्वस्ति श्री हस्तिनापुर नगरथी नरवर्मा राजा जे स्थानके रहेला होय त्यां पुत्र गुणवर्माने आज्ञा र करे छे के-॥ 28 // " अहिं कुशल छे, परंतु जयंत नामना केवली मुनि आव्या छे, तेमनी पासे हुं चारित्र ले * वाने उत्साहवंत थयो छु. // 29 // त्हारे तुरत पाछु आवद् के, जेथी हुँ त्हारे विषे राज्यनो भार धारण करीने Jun Gun A a rust
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________________ गण म्हारुं पोतानुं कार्य साधुं. कारण के, आ समय फरोथी प्राप्त थवो दुर्लभ छे. // 30 // आ प्रमाणे वे कार्य साथ चरित AS प्राप्त थया जाणीने कुमार व्याकुल थरा लाग्यो. एवामां चंपा नगरीथी वीजो कोई कासद पोतानी पासे आव्यो. // 3 // * // 31 // कासदे पत्र आपी कुमारने कयुं के, " थापने शूर महाराजाए कहेवराव्यु छे के, अहिं कन्या- शरीर as सारं नहिं होवाथी स्वयंवर बंध रह्यो छे. // 32 // पछी प्रसन्न थयेला कुमारे पोताना काशदने पूछयुं के, "पि ताए तने पाछलथी मोकल्यो छे अने तुं आगलथी क्याथो आव्यो?" // 33 // कासदे कयु. " हुं महाराजनी हात्वेति' कार्ययुगलं, व्यग्रेऽथ नेपनंदने ॥पुरकोऽपि सेमायातश्चपातो लेखेंहारकः॥३१ लेखं समर्प्य सोवादीच्छूरेण कथितं हि वैः॥पटुत्वेन केन्यायाः, स्यितो ऽत्रास्ति स्वयंवरः॥ अथ प्रीतो निजं प्रोचे,कुमारो लेखेहारकम्॥पश्चात्वं प्रहितः पित्रा,समागाः पुरतः कुतः॥३३॥ से जंगी स्वामिनिर्देशाचंपामे गतोऽस्म्यहं // अनागतं च तंत्र त्वा,हात्वा व्याधुटित देणात् // पुरं प्राप्तःकुमारोऽथे,पितुःप्रीतिकृतेऽजनि।सोऽपि तस्मै निज"राज्यं,देवा संयमन्नागेनूत३५ व * गुणवर्मार्थ संप्राप्तराज्यः प्राज्यप्रतापनाक् // स्वप्रजापालयामास,वासवोपमलीलया // 36 // सन्नास्थिते नृपेऽन्योद्युई तो वेत्रिनिवेदितः॥ समेतः"प्रोचिवानेवं, पुनर्जातः स्वयंवरः॥३७ गुणवर्मा नृपोऽचालीदेथ प्रेस्थितसेनया // संप्राप्त पुरी चंपा, तस्थिवान रॉजममले॥३० आज्ञाथी चंपा नगर प्रत्येज गयो हतो, पण त्यां तमने नहि आवेला जाणी तुरत पाछो वल्यो. // 34 // पछी कुमार पाछो हस्तिनापुरे आव्यो; तेथी ते पिताने वहु प्रीतिकारी थयो. नरवर्मा राजाये पण तेने पोतानुं राज्य आपी पोते चारित्र लीधुं.॥ 35 // पछी माप्त थयुं छे राज्य जेने अने महा प्रतापवंत एवो गुणवर्मा राजा पोतानी * प्रजा- इंद्रनी पेठे रक्षण करवा लाग्यो. // 36 // एक दिवस गुणवर्मा राजा सभामां बेठो हतो एवामां द्वारपाले / भूपतिनी आज्ञाथो सभामा बोलावेला दुते " महाराज ! फरोथी चंपानगरीमां स्वयंवर थयो छे." एम कह्यु. // 3 // Jun Gun Aaradhak Trust XXXXXXXX
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS // 27 // पछा पाण करता ५पा सनासाहत गुणवमा राजा चाल्या अन चपानगराप्रत्य आवा पहाचा रा-Y * जमंडलमा रह्यो. // 38 // त्यां चंपानगरीमा म्होटा गौरवपणाथी शूर राजाए वहु सत्कार करेलो अने इंद्रना है सरखा पराक्रमवालो ते राजकुमार निवासभुवनमा रह्यो. // 39 // हवे रत्नावलीये आज्ञा आपेली सारसी नामनी सखी सायंकालनी क्रीया करी रह्या पछी कुमार गुणवर्मानी पासे आवी, त्यां राजकुमारेतेनो आदरसत्कार करयो. // 40 // पछी ते सारसी सखीये एकांत करीने राजकुमारने कह्यु के, 'हे राजकुमार ! रत्नावली राज* गौरंगौरवपूरेण, शूरेण बहु मानितः // सोऽत्रावासमैलंचके, शक्रेण समविक्रमः // 3 // रत्नावलीसमादिष्ठा, सारसी नामतः सखी // सायंतनक्रियाप्रांते, प्राप्ता सा तेन मानिताnuote * कृत्वैकांतं च सावादी त कन्योक्तं शृणु वाचिकम् ॥अपाटवस्वरूपं यत्पूर्व जज्ञे तदप्यहो"॥३१ जाते स्वयंवरारंने, 'रनेवान्येयुरन्तम् // रूपं दधाना सा सायं, गैवावस्था राजत॥५॥ चिल्ली रूदती स्येनेनैव तंत्र खगेन सा // नत्य गगने नीत्वा, वने क्वापि व्यमुच्यत॥३ न्यस्य पादं गले तस्याः,खदमकिप्य नीषणम्॥ नचे 'मुँचाम्यहं कंप्रे,मैदाचं यदि मैन्यसे // मेयोस्ति कारितं चैत्यं, वैताळ्याचलसंनिधौ // स्थापिता च युगादीशमूर्तिस्तत्र मनोहरा॥४५ कुमारीये कहेला समाचार सांभलो अने पूर्वे तेनुं शरीर सारुं नहिं रहेवा धन्युं हतुं ते आश्चर्यकारी वृत्तांत सां भलो. // 41 // स्वयंवरनो आरंभ काया पली एक दिवस भानी पेठे अद्धतरूप धारण करी ते राजकमारी* * सांजे गोखमां बेठी हती. // 42 // एवामां सिंचाणाथीज पकडायेली चकलीनी पेठे रुदन करती एवी ते राजKel कन्याने त्यांथी कोई विद्याधरे उपाडी आकाशमा लई जईनै कोई ठेकाणे वनमा मूकी. // 43 // त्यां तेणे रा-* जकन्याना गला उपर पग मूकी अने भयंकर तरवार उगामीने कडं के, " हे भीरु ! जो तुं म्हारुवचन माने तो हुं तने मूकी दउं // 44 // में वैताढय पर्वतनी समीपे एक जिनमंदिर कराव्युं छे अने तेमां मनोहर एवी श्री XX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ XXXXX PP.AC.Gunratnasuri M.S. आदीनायनी मार्त स्थापन करी छे. // 45 // त्यां हुं हमेशां रात्रीये जिनपूजा करूं छु. ते वखते सर्वे विद्याधरो चरित्र, Jat कौतुक जोवा माटे एकठा थाय छे. // 46 // अने त्यां लावण्यवाली त्रण राजकन्याओ नाच करे छ, माटे अद्भुत चातुर्यवाली तुं पण निरंतर तेमना मध्ये चोथी था. // 47 // वली रात्रीना पहेला प्रहरने विषे अदृश्य एवं वैमान नित्य आवशे, तेना उपर वेसीने त्हारे जिनमंदिरने विषे आव. // 48 // वली म्हारी रजा विना त्हारे * विवाह पण करवो नहि." ( सारसी सखी गुणवर्मा राजकुमारने कहे छे के.) कन्याये आ सर्व कबुल करयुं / | जिनैपूजामहं रात्रौ, तेत्र कुर्वे निरंतरम्॥ मिलंति" खेचराः सर्वे,'वीवितुं किले कौतुकम्॥ राजकन्या सलावण्यास्तिस्त्रो नृत्यंति तंत्र च॥ त्वमप्यद्भुतचातुर्या,तुर्या तासां नवान्वहम्॥ अदृश्यं प्रथमे यामे, यामिन्या नियमेष्यति // विमान तत्त्वयायागंतव्यं जिनमदिरे॥ नांगीकार्यो विवाहोऽपि ममा देश विना त्वयाशासास्वी कृतेऽखिले तेनै,पुनर्मुक्तास्ववेईमनि स्वस्थीनूता मया पृष्टा,तेसवै निजगाद सा॥अंगापटुत्वव्याजेन,स्थापितोऽस्यास्वयंवरः॥५॥ पिता पृचनिमित्तशमन्यदा दूनमानसः॥ को दोषो विद्यते पुण्याः, सोऽप्यन्नौषत नॅपतिम्॥५१ अस्तिदोषोमहानकोऽपि,दुःसाध्योनिजामपि नपोऽवादित्सुतोसषों, "किंस्थास्यत्य विवाहिता निमित्तझो जगादेवं ,गुणवर्मास्ति नृपतिः॥ सँ एंव पतिरस्त्वस्याः,सकर्ता दोष निर्ग्रहम् 53 * एटले ते विद्याधरे राजकन्याने फरी तेना घरने विषे मूकी. // 49 // पछी में स्वस्थ थयेली ते राजकन्याने पू. छयु एटले तेणे ते सर्व वात कही. त्यार पछी तेनो स्वयंवर शरीर सारुं नहिं होवाना मीषथी बंध राख्यो. // 50 // एक दिवस खेदयुक्त मनवाला शूर राजाए निमित्तियाने पूछयु के, " पुत्रीने शो दोष छ ?" त्यारे निमित्तियाये राजाने कयुं के, // 51 // " उपायना जाणनाराओने पण असाध्य एवो कोई पण म्होटो दोष छे." राजाये कह्यु, " त्यारे ए पुत्री शुं विवाह करया विना रहशे ?" // 52 // निमितियाये कह्यु. " हे राजन् ! गु KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust ॥धा them
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________________ PP.AC.Gunratnasuri M.S. णवो नामनो राजा छे, ते आ राजकन्यानो पति थाओ. कारण के, ते दोषनो निग्रह करशे. // 53 // पछी निमित्तियाने रजा आपीने राजाये ते सर्व पुत्रीने कहीने तत्काल स्वयंवर कराव्यो. // 54 // ( सारसी सखी गणवर्मा राजकमारने कहे छे के,) हे राजकमार! ए कारण माटे ते रत्नावली राजकुमारी तमारी प्रार्थना करे के, “निश्चे हुं तमनेज वरीश; परंतु त्यां सुधी म्हारे ब्रह्मचर्यव्रत पालवू के, ज्यां सुधी हुं संकटथी मुकाउं नहि." // 55 // राजकुमारे ते वात कवुल करी एटले हर्पितमनवाली अने प्रेमयुक्तह्रदयवाली सारसीये ते सर्व निमित्त विसृज्यार्थ, तसर्वं पृथिवीपतिः॥ सुंताया हापयित्वाशु, स्वयंवर मोरयत् 54 अतस्त्वां प्रार्थयत्येषा,त्वमेव हि वरिष्यसे॥ ब्रह्म पौख्यं मैया तावद्यावन्मौदो नै संकटात् 55 नमित्युक्ते नरेंद्रेण, सारसी हृष्टमानसा // रत्नावल्याः पुरः प्रोह, तत्सर्वं वत्सलाशया 56 अंगे राजकुले नामांकितसिंहासनस्थिते // प्राप्ता स्वयंवरं मालानारिणी राजकन्यका // 57 वर्णितेऽय प्रतीहार्या, सकले राजमंझले // गुणवर्मा तया वत्रे, जातो जयजयारवः // 5 // पाणिग्रहोत्सवे जाते, शूरेण बहु मानिताः॥ विसृष्टा नूनुजःसर्वे, ययुनिजनिजं पुरम् पण मासं संगौरवःस्थित्वा, गुणवाप्ययाचलत्॥ रत्नावल्या समं प्राप्तः, पुरं प्रौढमहोत्सवैः 60 तं मध्यसंसदासीनं. प्रेतिहरोऽन्येदा जैगौ // जूतानंदानिधो योगी, नवंतं इष्टुमि,ति॥६१॥ , वात रत्नावलीनी आगल कही. // 16 // वीजे दिवस सवारे सर्व राजाओ पोत पोताना नामवाला सिंहासन उपर वेठे छते मालाओने धारण करनारी राजकुमारी स्वयंवरमंडप प्रत्ये आवी. // 57 // पछी प्रतिहारिणीये सर्व राजमंडलनुं वर्णन करे छते रत्नावली राजकुमारीये गुणवर्माने वर यो; जेथी जयजय शब्द थवा लाग्यो.॥५८॥ विवाह उत्सव पूरो थया पछी शूर राजाये बहु सत्कार करी रजा आपेला सर्वे राजाओपोतपोताना नगरे गया // 59 // पछी गौरव सहित गुणवर्मा पण एक मास सां रहीने रत्नावली सहित चाली निकल्यो अने म्होटा महोत्सवोथी पोताना नगर प्रत्ये आवी पहोच्यो.॥ 60 // एक दिवस प्रतिहारीये सभामध्ये वेठेला Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण चरित्र, P.PA. Gunratnasuti MS जाने कह्यु के, " हे राजन् ! भूतानंद नामनो योगी आपना दर्शननी ईच्छा करे छे." // 61 // राजाये आज्ञा आपवाथी प्रतिहारीये तुरत सभामां आणेला योगीये राजाने आदरथी आशीर्वाद आपीने कह्यु. // 62 // " में मंत्रस्य वार वर्ष सुधी पूर्व सेवा करेली छे, हवे त्हारा सांनिध्यथी साधु छु; माटे तुं मने सहाय्य करनारो था. A // 63 // आजे चौदशनी रात्रीये निश्चय श्मसानमा जई म्हारे मंत्र साधवो छे, माटे तुं उपकार करवामां तत्पर था." राजाये ते कबुल करयु. पछी रात्रीये योगी तैयार थईने आव्यो एटले राजा पण श्मशानमां गयो. // 65 // राजादिष्टेन तेनाशु, समानीतःसन्नांतरम् // निगाद नृपं योगी, दैत्वाशीदिमादरात्॥६॥ मंत्रस्य पूर्वसेवा हि, कृता हादशवार्षिकी // साधयाय॑थ सांनिध्यात्तव साहायिको नेव॥६३ रात्रावेद्य चतर्दश्यामवश्यं प्रेतमंदिरे // गत्वा मंत्रो मया साध्य, नपारपरो नैव // 6 // मित्युक्ते नृपेणाथै,सळीनूय समागते॥ योगिन्येषो ऽपि यामिन्यां,जगाम् प्रेतमंदिरम्॥६५ विधाय ममलं योगी,पारेने मंत्रसाधनम् ॥करवालकरस्तस्थौ,नृपः पश्यन् दिशोऽखिलाः॥६६ जाते कणेत निर्धाते, प्रत्येकः कोऽपि'चेटकः॥ बन्नव जीर्षणाकरां, कीकां कंपयत् करे॥६॥ हसेतो नृत्यतस्तस्य, फेकारं मुंचतो मखे // चकन करवालेन, कर्जीकां साहसी नॅपः॥६॥ अहंतुष्टोऽस्मितुष्टोऽस्मी त्यूचाने चेटकेपः॥जंगौयोगिने "सिदिच,देहि क्लेशकृतेऽन्वहम्॥ * त्यां योगी मंडल करी मंत्र साधन करवा लाग्यो अने तरवार छे हाथमा जेने एवो राजा सर्व दिशाओ जोतो छतो उभो रह्यो. // 66 // क्षणमात्र थया पडी म्होटो शब्द थये छते कोई पण भूत हाथमां भयंकर आकारवाली कातरने कंपावतो छतो प्रत्यक्ष थयो.॥६७॥ हसता अने नृत्य करता वली मुखे श्वास खावाने लीध मोटा शब्द करता ते भूतनी कातर साहसवंत राजाये पोतानी तरवारथी कापी नाखी. // 68 // पछी “हुं प्रसन्न थयो छु प्रसन्न थयो छु." एम भूते को छते राजाये का के, “निरंतर क्लेशनो नाश करवाने अर्थ आ योगीने सिद्धि आप.॥६९॥ "एतो सिद्ध थयु पण तुं पोताना स्वार्थने माग." एम भुते को छते राजाये कह्यु के, " मने रत्ना Jun Gun Aaradhak Trust HIT RBARUNeupane
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________________ PPA Gunratnasuti MS वलीने विषे विरोधिनो निग्रह करवानो उपाय कर." // 70 // पछी ते भूत राजाने दिव्य अंजन आपीने अदृश्य थई गयु. पछी योगी पोताने ठेकाणे गयो अने राजा पण पोताने घेर आव्योः // 71 // पछी मुखे सूई रात्रीने निवृत करीने सवारे करयुं छे पोतानु प्रभात कर्तव्य जेणे एवा ते गुणवर्मा राजाये रत्नावलीनी साथे शास्त्र विनोदथी ते दिवसने निवृत्त करचो. // 72 / / पछी रात्रीयें नेत्रमा दिव्य अंजन करी रत्नावलीना घरप्रत्ये गयेला राजाय आकाशलक्ष्मीना काननां कुंडलरूप वैमान दीकुं. // 73 / / पछी रत्नावली सहित ते वैमान उपर सिमेतत्परं स्वार्थ, प्रार्थ येत्यत्राषिणि॥ कुरु में निग्रहोपाय, रत्नावल्यां विरोधिनः // 7 // दत्वा दिव्यांजनं तस्मै,तिरोधत्त सं चेटकः।। योगी ययौ नि स्थान,पोप्यागात् स्वमंदिरम् 71 सुखसुप्तो निशां नित्वा,कृतप्रातःक्रियः प्रग॥ रत्नावल्या समं शास्त्रविनोदै दिन मत्यगात॥७॥ कृत्वा दिव्यांजनं 'नेत्रे,गैतो रत्रावलीगृहम् // नृपो विमानमशतीत्, व्योमश्रीकर्णकुंडलम् 73 तया समं तारुह्य, व्रजनंबरवर्मना // स चैत्यं तुंगमदोर्ताट्यगिरिसंनिधौ // 4 // कृतकोलाहलं हर्षान्नृपः खेचरमंडलम् // ददर्श तत्पुरःस्थं च उँहर्षखेचरेश्वरम् // 5 // नत्तीर्य व्योमयानास,प्रणम्य वृषन्नप्रन्नुम् // अदृश्य एवं तंत्रांस्थाचित्रविक्षणलालसः // 6 // रत्नोवस्यपि तत्रार्हन्मूर्ति नत्वा खंगाझया // ऑयातास्वन्यकन्यासु, नर्तकीवन्ननर्न सा॥७॥ वेसी आकाशमार्गे जता एका राजाये वैताढय पर्वतनी पासे म्होटा जिनमंदिरने दीखें. // 7 // // त्यां राजाये इपंथी कोलाहल करता एवा विद्याधरना मंडलने जोयुं अने तेमनी आगल रहेला विकराल एवा विद्याधर पतिने * पण जोयो. // 75 // पछी गुणवर्मा राजा आकाश वैमानथी नीचे उतरी ऋषभ प्रभुने नमस्कार करी आश्चर्य जोवानी ईच्छा करतो छतो त्यां अदृश्यपणेज उभो रखो. // 76 // रत्नावली पण सां अरिहंत प्रभनी मानिने नमस्कार करीने वीजी त्रण कन्याओ आव्ये छते विद्याधरपतिनी आज्ञाथी ते नर्तकीनी पेठे नृत्य करवा लागी Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण // 6 // PPA Gunratnasuti MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX // 77 // राजा गुणवर्माए नृत्यना हावभावथी रत्नावलीनां पड़ी गयेलां आभूषण लइ लीघां अने त्रण कन्यायो चरित्र. तो गीतादि क्रिया करती हती. // 78 // पछी संगीत पूर्ण थयुं एटले रत्नावलीये विद्याधरपतिने का के, "आजे महारुं जिनमंदिरमा पडि गयेलू आभषण काई जडतुं नथीं"!!! ||79 // पछी विद्याधर पतियं क्रोधना जुस्ताथी कह्यु के, “अरे विद्याधरो ! सांभलो. तमे आ राजकन्यानु आभूषण आपीने जाओ. नहि तो हुं तेमने मारीनाखीश." // 0 // विद्याधरो क्रोधथी व्याकुल थयेला ते विद्याधर पतिने जोइ पक्षीनी पेठे नासी गया. पछी क्रोधी अने जेना . पतितानरणं तस्या, नत्यव्याकेपतो नेपः॥ जग्राह तिनःकन्यास्तु, चक्रुर्गीतादिकक्रियाम्॥ अथ निवृत्ते संगीते, खगं रत्नावली जंगौ // पतितान्तरणं 'किंचित्रं लेने ऽयं जिनालये। कोपाटोपात खगःप्रोचे, रेरे श्रीगत खेचराः॥दत्वानरणमेतस्या,गम्यतां हैन्मि वोऽन्येया 'ते ते कोपांकुलं विस्य,पैकीवत प्रर्पलायिताः॥ खंगो झैप्टो देधावे ऽय,कन्यासु करवालना वैन्हिःशुष्कर्मशुष्कं वा,पुरस्यं ज्वालयेद्यया ॥"निर्मतुं वो समतुं वा,तथा हन्यात धांधल:२ तद्दष्ट्रा नृपतिस्तस्योदृश्य एव कैरस्थितम् // कैरवालं तैदा हे, स्त्रीणां हत्यामसासहिः / अपश्यन् नृपति क्वापि,सिक्ककात्पतितौतुवत् // इतस्ततःपयतिस्म,सं विस्मयरसान्वितः तोसु कोपात्पुनःतस्मिन् , बैध्वा मुष्टिं धावति // नूंपालःकटीनूतो, कुटीनालनोषणः०५ हाथमा तरवार छ एवो ते विद्याधरपति कन्यायो तरफ दोडयो.॥८१॥ जेम अग्नि आगल रहेला सुकाने अथवा लीला ने बाली नाखे तेम क्रोधातुर एवाविद्याधरपतिये माननारने अथवा नमारनारने मारथा.८शते वखते स्त्रीयोनी हत्याने नहि सहन करनारा अने अदृश्य रहेलाज राजाए तेजोईने ते विद्याधर पतिना हाथमा रहेली तरवार खेंची लीधी. // 83 // पछी कोइ ठेकाणेपण राजाने न जोतो.तेमज सिंकाथी पडेला बलामानी पेठे विस्मय पामेलो ते विद्याधरपति आम तेम जोवा लाग्यो. // 84 // बली ते कन्याओ तरफ फरोथो मुठी वालीने ते विद्याधरपति दोडवा ला * // 6 //
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________________ ग्यो एटले भ्रकुटी चडाववाथो जयंकर एवो राजा प्रकट थयो. // 5 // पछी "हारा म्होटा कोपने धिक्कार थाओ! धिक्कार थाओ!! ते करेलुं जिनपूजन व्यर्थ छे, अरिहंतनी आशातना करी छे, तेथी तने पुण्य पण नहि प्राप्त थाय." // 86 // आ प्रमाणे बोलता एवा तेमज सूर्यना सरखा आकरा तेजवाला ते राजाने जोइने वि द्याधरपति पोताना हृदयमां एवो क्षोभ पाम्यो के जेथी ते आवोने राजाना चरणमां पडयो. // 87 // रंग मंड पमां वेठेला राजाये फरोथी पण कडं के, “रात्रोने विषे पूजा निषेयेली छे. वली जो पूजा करे तो विशेषयो XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXI | धिधिक् तेव महाकोपं,व्यर्थं ते जिनैपूजनम्॥ अर्हदाशातनाकारि, ने पुण्यमपि लेन्यतेण्६ जब्तमिति तं वीक्ष्य, सूर्यवर्दूईरौजलम् // खेटस्तथा हृदि हुँब्धो, यथा तेञ्चरणे पैतत् 7 पो नूयोऽप्यनाषिष्ट, निविष्टो रंगमंमये॥ रात्रौ पूजा निषिरित्याशातना तु विशेषतः तांबूलं नोजनं पानमुपानत् द्यूतमैथुने // स्वापो निष्टीवनं मूत्रमलौ चाशीतना 'इमे नए स्त्रीणांनोगांतरायो ऽपि,नवेत् कर्मनिबंधनम्॥श्रुत्वेति खेचरःप्रोचे, साध्वहं "बोधितस्त्वया॥ प्रियायै ननुजा देत्ते, प्रतितान्तरणे तैदा // अन्वमीयत खेटेन, सँ तस्या इंगितैः प्रियः ए? नूपं विलोक्य कन्यासु,पृवंतीषु पुनःपुनः॥ रत्नादली स्मितेनैव,स्माह स्वं लंकिता पैतिम्ए आशातना थाय छे.॥८८ // जिनमंदिरमा तावुल खाएँ, भोजन करवू, पाणी पोवू, जोडा पहेरवा, रात रमवं, मैथुन कर, सवं, थुक अने मूत्र तथा मल करवा आ दश आशातना कही छे. // ८ए // स्त्रोयोने भोगांतराय करवाथी पण कर्मनिबंधन थाय छे." आवां राजानां वचन सांभली विद्याधरपतिये कयु के, " तें मने बहु सारो बोध पमाडयो.॥९०॥ पछी राजाये पडो गयेलां आभूषण ज्यारे पियाने आप्यां त्यारे विद्याधरपतिये तेनी आ चेष्टाथी ते राजकन्यानो ते राजाने पति मान्यो. // वली राजाने जोइने वारंवार त्रण कन्याओए पूछयु एटले लज्जावत थयेली रत्नावलाये हाश्यथीज" ते राजा पाताना पात छ," एम निवेदन करयु. // 2 // XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
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________________ Gunratnasuti MS as पछी " हारो पति अमारो पण पति थाओ." एम रत्नावलीने ते त्रण कन्याओए कडं एटले ते वात सांभलीने राजाए का.॥९३ // नहिं आपेली कन्या द्वेष करे छे, तो ए अन्याय करवो योग्य नथी; माटे माता पितोये आपली ए कन्याओने हुँ निश्चे परणीश." // ए४॥ पछी विद्याधरपतिये क्षणमात्रमा ते कन्याओने पोत पो ताने स्थानके पोचाडो. गणवर्मा राजा पण प्रियासहित जिनेश्वरने प्रणाम करीने पोताना नगर प्रत्ये गयो.९५ / विद्याधरपति पोताना नगरमां गये छते. पण राजाना म्होटा उपकारने संभारवा लाग्यो. गुणवर्मा राजाये पण / अस्माकमपि कांतोऽस्त, लत्पतिस्तासु तामिति // कॉमस्वरं वदंतीषु, झौतवृत्तोऽवदन्नृपःए / अदत्ता उह्यते केन्या, ह्यन्यायोऽसौ न युज्यते / पितृमातृप्रदत्तास्तत्परिणेष्याम्यमधुर्वम् ए खेटेन निधि रेकन्याः,स्वस्वस्थानं ततः दणात्॥जिनं प्रणम्य नूपोऽपि,सप्रियःस्वपुरं ययौ / * महोपकारं स्मरति, प्रयाते स्वपरं खगे॥ पट्टदेवी केता रत्नावली राझा प्रमोदतः॥ ए६ // स्थेनोवेदितो तोऽन्यदा नूपं व्यजिज्ञपत्॥राजन् कलिंगदेशोऽस्ति ,लशलेशविवर्जितः॥ . तंत्र हेमपुरं नाम, पुरं नाममनोहरम् // राजा हेमांगदः पोति, हेमाहिरिवं धैर्यनः // हेमचूला प्रिया तस्य, सत्प्रास्यगुणक्रिया // तत्कुकिसरसि हंसी, कन्यास्ति कनकावली ॥ए। सा तारुण्ये प्रदत्तासीझे समरकेतवे // केनापि हेतुंना तस्या, विवाहो नौनवत्पुनः // 10 // 2 हपथी रत्नावलोने पट्टराणी बनावी. // 6 // एक दिवस द्वारपाले राजाने खवर आपीने सभामां वोलावेला कोइ दूत गुणवर्मा राजाने का के. हे राजन! जेमां जरा पण क्लेश नथी एवो कलिंग नामनो देश छे. // 97 // ते देशमां मनोहर नामवाला हेमपुर नामना नगर प्रत्ये हेमालय पर्वतना सरखो धैर्यवंत हेमांगद ना मनो राजा राज्य करे छे. // 9 // ते हेयांगद राजाने सत्पुरुषोने वखाणवा योग्य छे गुणक्रिया जेनी एवो हेमचूला नामनी स्त्रीने, ते स्त्रीना उदररूप तलावने विषे उत्पन्न थयेली कनकावली नामनी पुत्री छे. // 99 // ते पुत्री युवावस्थामां आव्ये छते तेनो संबंध समरकेतु राजानी साथे करयो हतो, परंतु कोइ पण कारणथो तेनुं // 7 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.Ad Gunratnasuti MS लग्न थयु नहोतुं. // 101 // पछी कामदेवथी पीडा पामती ते राजपुत्री कनकावलो तमनेज पति इच्छे छे, * माटे तेना पिताए तमारा माटे मने अहिं मोकल्यो छे. // 101 // आ नगरथो ते हेमपुरनगर पचास योजन छे अने वचे पच्चीश योजन भूमि उपर अंजनगिरि नामनो पर्वत छे. // 102 // त्यां शौर्यनी संपत्तिना संकेत स्थान सरखो समरकेतु राजा छे के, जेने ते कनकावली राजकन्या पूर्वे आपेली हती. // 173 // ए राजा जेम न जाणे तेम तमारे आववं. कारण जो जाणे तो क्रोधी एवो ते राजा विवाहने विघ्न पण करे." // 10 // अथ मन्मथदूना सा,त्वामेव पंतिमिछति ॥हितोऽस्मि ततस्तस्याः,पित्राहं नवतः कृते 151 पंचाशयोजनो च स्यात्तत्पुर नगरादतः॥पंचविंशतियोजन्यां, "गिरिरस्त्यंजनागिरिः // 10 // तंत्रॉस्ति समरकेतुः, संकेतः शौर्यसंपदाम्॥ यस्मै पूर्व प्रेदत्तासीत्कन्या सा कनकावली॥१०॥ अयं यथा न जानाति, तथागम्यं त्वर्यान्यथा॥ विधेने से विवाहस्य, व्याघातमपि चेत्कुधीः१०४ येथायोग्यं करिष्यामीत्युक्त्वा तं विसृज्य त॥ नृपतिःसुदिनेऽचालोई लेन संहितोधीधा१०५ नाग्ययोगानंदा तस्य,वैरी रोगातुरोऽनवत् ॥जंतर्मपि तं श्रुत्वा,मैनस्यैवं विणवान्॥१६॥ नृपो हेमपुरं प्राप्तः, स्वसुरेण कृतादरः // महोत्सवादुपायंस्त, संस्नेहां कनकावलीम् // 10 // दिनानि त्यपि स्थित्वा, व्यावृतः वपुरं प्रति // सैन्यमावोसयामासांजनगिरिगिरेवने 107 पछी " हुं योग्य रीते करोश." एम कही ते दूतने रजा आपीने गुणवर्मा राजाए वे प्रकारनी सेनासहित सारा दिवसे प्रयाण करयुं. // 105 // ते वखते भाग्ययोगथो तेनो शत्रु समरकेतु राजा महा रोगो थयो हतो, जेथी जता एवा ते गुणवर्माने सांभलीने मनमांज खेदातुर थयो. // 106 // ससरा हेमांगद राजाए आदर करवा पूर्वक हेमपुर नगर प्रत्ये गयेला गुणवर्मा राजा स्नेहवंत एवी कनकावलीने महोत्सवी परण्यो. // 107 // * पछी त्यां पण केटलाक दिवसो रहीने पोताना नगर प्रत्ये जता एवा गुणवर्माए अंजनगिरि पर्वतना वनने विषे Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS पोतानी सेनाने पडाव कराव्यो. // 108 // ते वखते समरसिंह राजाए मोकलेलो दूत त्यां आवी गुणवर्माने क- चरित्र हवा लाग्यो के, " तमने समरसिंह राजाए कहेला कांइ समाचार म्हारा मुखथी सांभलो. // 109 // ज्यांमधील जरावस्था आवी नथी त्यां सुधी अप्रमुता कहेवाय छे. वली तने परणेली ते युद्धमां अपराजित एवा समरने विषे तो अपरणे छे. // 110 // जो आ कनकावली राजकन्या तुं पातेज ए समर राजाने सुखे आपे तो ते त्हारो गुण माने अने जेनाथी आनो श्रम पण निवारे. // 111 // पछी गुणवर्माए काढी मूकेलो दूत गये छते सर्व दि समरप्रहितो दूतस्तत्रागत्य नपं जगौ // मन्मुखासमरेणोक्तं, शेण किंचन वाचिकम् 10 // न जरा तिता यावदप्रसूतैव तावता // कढाँप्येषां ह्येनुढेवें, सैमरे सेमराजिते // 11 // सुखेन दीयतेऽमुष्मै, यद्येषा नवता स्वयम्॥ गुणं स मैन्यते तर्हि,अमो येनास्य वारितः 111 देते निर्वासिते तेन. याते सति दिगोऽखिलाः स्त्रीवर्जस्वला जाता,वाद्यनादास्नथालवत्११२ प्रियानेत्रध्ये न्यस्य,दिव्यांजनमयो नेपः॥ प्रियां प्रोचे प्रियेऽत्रै,स्थातव्यं यावदागमम 113 बाढमुक्तेवेति नृपतौ, सायुधं थमाश्रिते // संजोनवति सैन्ये च, सा देध्यौ निजेचेतसि 114 दिव्यांजनप्रन्नावेण, न मां इक्ष्यति कश्चन // प्रियपृष्टस्थिता तस्य, विदयेऽहं युद्धकौतुकम्११५ ध्यात्वेति सानुलग्नेर्वे, चलिता ननुजा संह॥समरेण समं पैत्युर्यु६ वीक्ष्य विसिष्मिये 116 शाओ स्त्रीनी पेठे रजस्वला (रजयुक्त ) थई गई. तेमज वाजींचना शब्दो पण थवा लाग्या. // 112 // पछी गु. णवमाए पियानां नेत्रमा दिव्य अंजन आंजीने कां के,"हे प्रिया! हुंज्यां सुधीमांआधुं त्यां मुधीमांत्हारे अहि रहे. // 113 // कनकावलीये " बहु सारं." एम का एटले राजा गुणवर्मा रथ उपर वेठो अने सैन्य तैयार थो ते वखते कनकावली विचार करवा लागी के.॥ ११४॥"दिव्य अंजनना प्रभावथी मने कोई देखशे नहि, माटे पतिनी पाछल उभी रहीने हुँ तेमनुं युद्ध कौतुक जोर." // 115 // आ प्रमाणे विचार करीने पा Jun Gun Aaradhak Trust //
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________________ PPA Gunnast MS Kel छल लागलाना राजाना साथ चालला त कनकावला समरासहना साय पाताना पातनु युद्ध जाइविस्मय पामा // 116 // युद्धनं कौतुक जोती, हर्षना आंसुना समूहथी भीजायलां नेत्रवाली, आंमुथी धोवाई गयेलां दिव्य अंजनवाली तेमज गुणवर्मानी पाछल उभेली कनकावलीने समरसिंह राजाए दीठी. // 117 // पछी नासी जवाना मोषे पाछा फरीने ते समरसिंहे युद्धमाथी कनकावलीनुं हरण करयु. गुणवर्मा राजा पण युद्धमा पोताने विजयवंत थयेलो मानी हर्ष पामतो छतो पोताना पडावमां आव्यो. // 118 // त्यां ते प्रियाने नहिं मलवाने लीधे शसा पश्यंती प्रमोदाश्रुपरेण प्लावितांबका // गलदिव्यांजना दृष्टा, समरेण नृपानुगा // 117 // नव्याजादपंसृत्य, जन्ते तेन रणादियम् // नृपो जिताहवं मन्यः, स्वावासं मुंदितो ययौ॥११७ | प्रियामलन्नमानोऽसौ, झात्वा तैरणं रिपोः॥ मूर्चितः पतितः पृथ्व्यां,नँत्यैश्चैके संचेतनः॥११॥ अलं विषमचितोऽसौ, निशीथसमये नृपः // अंजनाििगरेः शृंगे, देवोद्योतमलोकत // 13 // 'किमेतदिति साश्चों, गतस्तत्र नरेश्वरः // देदर्श नरवणिं, मुंनिर्मुत्पन्नकेवलम् // 11 // / पृथुप्रमोदपूरेण, पूरितः पृथिवीपतिः // प्रणम्य पितरं पुण्योपदेशं परमं पपौ // 12 // सेमरोऽपि समायातस्त्वत्र चित्तं देवत्परम्॥ मुनिं प्रणम्य शुश्राव, देर्शनां क्लेशनाशिनीम् // 153 त्रुथी तेनुं हरण थयुजाणी मूर्छा खाई पृथ्वी उपर पडी गयो एटले सेवकोए तेने उपचारोथी सचेत करयो. // 119 // पछी बहु खेदातुर थयुं छे चित्त जेनुं एवा ते गुणवर्मा राजाये अधि रात्रीने वखते अंजनगिरि पर्वतना शिखर उपर देवताना प्रकाशने दीठो. // 120 // “ए शुं छे ?" एम आश्चर्य पामेलो राजा त्यां गयो तो तेणे उत्पन्न थयु छे केवलज्ञान जेने एवा * नरवर्मा मुनिने दीठा.॥ 11 // पछी बहु हर्षना समूहथी पूर्ण थयेला ते राजाए | पिताने नमस्कार करी उत्तम एवा पवित्र उपदेशने सांभल्यो. // 11 // समरसिंह राजा पण श्रेष्ट एवा हर्षने * पोताना पिता. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुगण P.PA. Gunratnasuti MS धारण करतो छतो त्यां आव्यो अने मुनिने प्रणाम करी क्लेशने नाश करनारी धर्मदेशना सांभलवा लाग्यो. // 123 // "माणसोनी जे बद्धि द्रव्यने विषे अथवा रूपवंता स्त्रायोने विषे होय छे ते वुद्धि जो जिनराजना धमने विषे होय तो निश्चे सिद्धि हाथांज प्राप्त थई छ. // 124 // माणिक्यांकमा का छे के, कोनी आगल पोकार कराय छ ? के हमेशां आ स्वीकाराग्रहरूप छे. आम कहेता छतां पण बालवृद्धि जीवो ते स्वीना संगने इच्छ छ ? एज खेदकारी छे. // 125 // विचक्षण पुरुषोए परस्त्रीनो विशेष साग करवा. कारण के, जे स्वीयो ' (आर्यावृत्तम् ) योऽव्येनवतिमंतिथिवारमणीषरूपयुक्तासु॥सायदिजिनवरधर्मेकॅरतलमध्यस्थितासिहि॥ पुरः पूत्क्रीयते केस्य, सँदा कारावधरियमावदंतोऽपीति तत्संगमीहते हंत बोलिशाः॥१५॥ परनार्यः परीहार्या, विशेषेण विचकणैः // विवेकस्य विनाशाय, विषवल्लीसमा हि याः॥१२६ समरोऽयाप्तवैराग्यः, मयित्वा नरेश्वरम् // समर्प्य तत्प्रियां तस्य, साँघोः पाद्येऽग्रेहीद्वैतम् 127 * स्वपुरागमने तीतं, निमंत्र्य नृपतिस्ततः चलितः पंचगव्यूत्यां, हँस्तिनापुरतः स्थितः॥१२॥ तंत्रामात्येन सै प्रोचे, महालानोऽत्र वर्तते // इदं हि देवरमणोद्यानं देववनोपमम् // 1 // दैवतस्य प्रेनावेण, नोका न च वायसा॥ न करोति तेरोनगमपि कश्चन कानने // 13 // KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust विवेकनो नाश करवाने अर्थे विपनी वेल समान छे." // 26 // पछी प्राप्त थयो छे वैराग्य जेने एवा समरसिंह राजाये गुणवर्माने खमावो तेनी स्त्री पाछी आपी पोते ते नरवर्मा मुनि पामे चारित्र लीधुं. // 127 // पछी गुणवमों पण पिता एवा नरवमो केवलीने पोताने नगरे आववानं आमंत्रण कगने चाल्यो अने हस्तिनापुरथी दश गाउ छटे रहिने पडाव करयो.॥ 128 // त्यां प्रधाने तेने का के,“हे राजन् ! अहिं म्होटो लाभ छे. कारण के, आ नंदनवनसमान देवरमरण नापर्नु उद्यान छे. // 129 // देवताना प्रभावथी आ वनमां घु
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________________ PPA Gun MS KKKKKKKKKKKKKXKXKKKKKKKKKKKXXXX वड, कागडा के बीजां कोई पण वृक्षना भंग करतां नथी. // 130 // अहिं बंधावनारनुं जाणे पुण्यज होयनी ! 5 त्री एवं जिनमंदिर छे के, जेणे दर्शनथी पण महा पाप दूर करयां छे // 131 // सां श्री पार्श्वनाथ प्रभुने नमस्कार करीने निश्चे म्होटो लाभ पेलवाय छे." आवां प्रशननां वचन सांभली हर्प पामेलो राना तुरत त्यां चाल्यो. // 132 // पछी उदार बुधिवाला अने परिवारसहित एवो ते राजा फरकी रहेली द्वजावाला, सोनाना दंड| वाला, कलशोथी सुंदर उंचां तोरणवाला तेमज श्रेष्ट स्तंभ तथा मंडपषी सुशोभित एवा प्रासादने जोईने पगे चाKa अंत्र कारयितुः पुण्यमिवास्ति जिनमंदिरम् // ऽरंतऽरितं येन दर्शनादपि दूरितम् // 131 // तंत्र नत्वा प्रतुं पार्श्व, महालानोहि Jह्यते // श्रुत्वेति मंदितो नूपस्तत्वणं चलितस्ततः॥१३॥ चैलजपटं स्वर्णदं कलशबंधुरम् // -तुंगतोरणं सारस्तंनमंझपमंमितम् // 133 // प्रसादं विक्ष्य नृपतिः, पादचारेण स जन् // जैगाम संपरिवारो, झारदेशमुदारधीः // 13 // तेत्रोवलोक्य श्रीपार्श्वनाथस्य प्रतिमामसौ॥णं स्तब्ध व स्त्विा , निविष्टः पृथिवीतले१३५ कि | जने परस्परं वीक्ष्यमाणे पो विर्मूर्छितः // पंपात पृथिवीपीठे, निमीलितविलोचनः॥१३६॥ प्रधाविरे प्रधानाद्या, वारिवारीतिनाषिणः॥वीजितो ध्यंजनैःसिक्तोऽनोनिः सोऽनसँचतनः॥ नत्याय तत्कणं मध्ये, प्रविश्यादरतो नृपः॥७त्ये प्रदक्षिणां दत्वा,"जिनं नेत्वा स्तुति व्यधात्॥ लतो छतो जिनमंदिरना बारणा पामे आव्यो. / / 133 // 134 // त्यां ते राजा श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमाने जोइ क्षणमात्र स्थंभितनी पेठे थईने पछी पृथ्वी उपर बेठो. // 135 // पाणसो परस्पर जोता हता एटलामां तो बंध करयां छे नेत्र जेणे एवो ते गजा मूर्छा पाम्यो अने पृथ्वी उपर पडी गयो. // 136 // ते जोइ प्रधान a विगेरे पुरुषो 'पाणी पाणी' एम बोलता छता दोड्या. पछी विंझणावडे पान नावेलो अने पाणीवडे सिंचन करेलो ते गुणवमा राजा सचेत थयो. // 137 // पछी राजा तुरत उठी, आदरथी मंडपनी अंदर पेसी चैत्यने Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण // 1 // P.P.A. Gunratnasuti M.S प्रदक्षिणा करी, जिनेश्वरने नमस्कार करोने स्तुति करवा लाग्यो. // 138 // कल्याणना संकेतनी शालारूप, उत्तम गुणरूप सुगंधथी मंदार जातिना पुष्पनी मालने जीतनारी, मोहनी जालने छेदन करनारो, हर्पना समूह रूप तलावने भरवामां मेघनी घटा रूप, नम्र एवी श्रीमान् राजहंसी रूप, दान आपवानी कलाथी देवताना अथवा कल्पवृक्षना मंदिरने जीतनारी, शोभाथी विशाल अने राजाओने आनंद आपनारी एवी आ तमारो मूर्ति (स्रग्धरावृत्तम् ) श्रेयःसंकेतशाला सुंगुणपरिमलैर्जेयमंदारमाला, बिनव्यामोहजाला प्रेमदन्नरसरःपूरणे मेघमाला // नम्रश्रीमन्मराला वितरणकलया निर्जितस्वर्गिसाला, त्वेन्मूर्तिः श्रोविशाला विदेलतु पुरितं नंदितदोणिपाला // 13 // खत्कर्पूरेपूरस्फुरदमलयशःशालिनस्ते समस्ते, विश्वे विश्वेश शश्वत् कलयति कमला 'क्रीमितं तदहेषु // तेषां ने कलेशलेशः कचिदपि विपैञ्छेदमेदस्विधामा, त्वं येषां क्तिन्नाजां निवससि हृदये श्रीजिनपार्श्वनामा // 14 // Jun Gun Aaradhak Trust पापने दूर करो. // 139 // हे विश्वपनि ! श्री पार्श्वनाथ जिनेश्वर नामवाला तमे जे भक्तिवंत माणसोना हृदयने विष निवास करो छो ते माणसो सघळा विश्वने विषे उज्वल एवा कपूरना समूहना सरखा स्फुरायमान निर्मल यशथी शोभता होयछे, वळी लक्ष्मी तेमना घरने विषे क्रीडा करे छे, तेमज तेमने क्यारे पण क्लेशनो लेश, वि. नि // //
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________________ P.P.Ad Gunratnasuti MS पत्ति तिरस्कार के निस्तेजपणुं यतुं नथी. // 140 // ए प्रमाणे ते श्रीमान् अरिहंत प्रभुनी स्तुति करीन अनं धोति पोति करीने गुणवर्मा राजा, साथे रहेला वीजा माणसोसहित हर्षथो विधिपूर्वक पूजा करवा लाग्यो. // 141 // ते राजा सोनाना कुंभ विगेरे सामग्रो करावीने पूजाना आ काव्यो मधुरस्वरथो बोलवा लाग्यो.॥१४॥ ___( अनुष्टुप्वृत्तम् ) स्तत्वेति श्रीमहतं. धौतपोतिं विधाय सः॥ समं परिजनैरोसीविधिपूजाचिकिच्दा // 141 // स्वर्णकुंनादिसामग्री, कारयित्वा नरेश्वरः // काव्यान्येतानि पूजाया, बताण मधुरस्वरम् // 14 // ( उपजातिवृत्तम् ) शचीपतिः सप्तदशप्रकारे त्यामरैः संघटितोपहारैः // स्वाँगनासु फ्रेमगायिनीषु, पूजां प्रनोः पार्श्वजिनस्य चक्रे // 153 // पुरंदरः पूरितहेमकुंनैरदंनमनोनिरलं सुगंधैः // . साकं सुरोधैः स्नपनेन सम्यक्, पूजां जिनेंदोः" प्रथमां चकार // 14 // अंग प्रमृज्यांगसुगंधगंधकाषायिकेनैष पटेन चेंः // विलेपनैश्चंदनकेशरादेः पूजां "जिनेंदोरैकरोत् हितीयाम् // 145 // . इंद्रे, सेवक एवा देवताओए सत्तर प्रकारनी एकठो करेली पूजानी सामग्रोथो देवांगनाओ गीतोने गावा लाग्ये छते श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी पूजा करो. // 143 // इंद्रे, सरलपणे अत्यंत सुगंधवाला जलबडे भरेला सोनाना घडाओथी देवताओना समूहो सहित उत्तम प्रकारे जिनचंद्रना पहेली पूजा करो छे. // 144 // ए इंद्रे अंगना Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गण P // 11 // NC Gunatnasuti MS मगंधित गंधवाला वस्त्रथी अंगलुहण करी अने केशरादि चंदनना विलेपनथी जिनचंद्रनी बीजी पजा करी. // 145 // चंद्रना कीरणोथी पडेलुं होयनो? एवा अत्यंत मनोहर वे दिव्य वस्त्र युक्तोथो बन्ने बाजुये मूकीने रंटे जिनचंदनी बाजी पूजा करी // 146 // पछी इंद्र कपूरनी सुगंधी विलसित वासवाला श्रीखंडचंदनना वासक्षेपथी देदीप्यमान श्री जिनेश्वरनी चाथी पूजा करी. // 147 // ते इंद्रे मंदार, कल्पवृक्ष अने ध्यतं शशांकस्य मरीचिन्तिः किं, दिव्यांशुकहंमतीव चारु // युक्त्या "निवेश्यालयपामिंः , पूजां जिनंदोरकरोत्तृतीयाम् // 16 // परसौरच्यविलासिवासैः, श्रीखंडवासैः किलें वासवोऽथ // विनासुरश्रोजिननास्करेंदोः, पूजां 'जिनेंदोरकरोचतुर्थीम् // 15 // मंदारकल्पमपारिजातजातैरैलिबातकृतानुयातैः // पुष्पैः प्रनोरंग्रथितैनवांगपूजां प्रतेने किलें पंचमी सेः // 14 // 'तैरेव पुष्परिचय्य मालाः, सौरॅन्यलोन्नमिन्जुंगमालाः // आरोपयाकपतिGिनांगे, पंजा पंटिष्टी कुरुतेस्म षष्ठीं // 14 // मंदाकिनींदीवरपोवरश्रीरक्तोत्पलैश्चंपकपाटलाद्यैः // कुर्वन्विन्नोर्वर्णकर्वर्ण्यशोजां, पूजां प्रतेने किल सप्तमी संः // 15 // पारिजातना वृक्षथी उत्पन्न थयेलां तेमज जेमनी पाछळ अनेक भमराओ भमी रह्या हता एवां गांठ (डीटा) रहित पुष्पोथी प्रभुनी पांचमी पूजा करी. // 148 // तेज पुष्पोथी जेनी पाछळ सुगंधना लोभथी भमराोनी पंक्ती भमी रही हती एवी माला वनावीने ते माला जिनेश्वरना अंगने विषे आ रोपण करता एवा इंद्रे उत्तम एवी छट्टी पूजा करी. // 149 // गंगा नदीनां कमलोथी वधारे शोभावाला रातां Jun Gun Aaradhak Trust P
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________________ PPA Gunratsuti MS कमलोथी तेम चंपा अने पाटलादिकथी प्रभुनी चंदनथी पण वखाणवा योग्य शोभाने करता एवा इंद्रे सातमी पूजा करी. // 150 // बहु भक्तिवंत एवा इंद्रे तत्काल कपूरनी रज धोइने जिनगजना मुखने विषे झट चूर्ण मूकीन इच्छितना कारण रूप आठमो पूजा करी. // 151 // इंद्रे, इंद्राणीये पहेरावेला मुकुटने नीचे मूकबापूर्वक ते जिनमंदिरने प्रदक्षिणा करी कीर्तिनी पेठे म्होटी ध्वजा चडाबीने नवमी पूजा करी. // 152 // इंद्रे मोतीना दंनोलिपाणिः परिमृज्य सद्यः, कर्पूरफालीबहुलक्तिशाली // चूर्णं मुखे न्यस्य जिनस्य तूर्णं, चक्रेऽष्टमं पूजनमिष्टहेतुम् // 151 // फूलोमजामौलिनिवेशनेन, प्रदक्षिणोकृत्य जिनालयं तम् // महाध्वजं 'कोर्तिमिव प्रतत्य, पूजामकार्षीनवमी विडोजोः // 15 // मुक्तावलीकुंडलबाहुरककोटीरमुख्यानरणावलीनाम् // प्रनोर्यास्थाननिवेशनेन, पूजामकार्षीदशमी बिडोजाः // 153 // पुष्पावलोनिः परितो विर्तत्य, पुरंदरः पुष्पगृहं मनोझम् // पुष्पायुधाजेयजयेति जब्पन्नेकादशीमांतनुतेस्म पूजाम् // 15 // कराग्रमुक्तैः किल पंचवरग्रंथपुष्पैः प्रकरं पुरोऽस्य // प्रपंचयन वंचितकामशक्तः, से द्वादशीमांतनुतेस्म पूजाम् // 155 // हार, कुंडल, बाजुबंध अने मुकुट विगेरे आभूषणोना समूहने योग्यस्थानके चडावीने पूजानी दशमी पूजा करी // 153 // इंद्रे पुष्पोना हारोथी चारे तरफ मनोहर पुष्पमंदिर बनाबीने “कामदेवथी नहि जितायेला प्रभुनो जय था." एम कहेता छतां अग्यारमी पूजा करी. // 154 // ते इंद्रे ए प्रभुनी आगल हाथथी मूकेला पांचवर्णनां डीटारहित पुष्पोथी ढगलो करीने कामदेवनी शक्तिनो तिरस्कार करनारा प्रभुनी पारमी Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण चरित्र P ॥१शा urtasun पूजा करी. // 155 // ते इंद्रे, सुवर्णना अत्यंत उज्वल एवा चोखाथी बनावेला आदर्श, भद्रासन अने वर्द्धमान विगेरे आठ उत्तम मंगलिके करीने तेरमी पूजा करी.॥१५६॥ कपूर अने काला अगुरु चंदननो धूप उवेखीने ते धमाडाना समूहथी नाश करयुं छे पाप जेणे एवा इंद्रे घंटाना शब्दनी साथे चौदमी पूजा करी.॥ 157 // ढीचण उपर बेठेलो, पृथ्वीनो स्पर्श करी रहेलो अने मस्तक उपर हाथजोडी रहेलो इंद्र एकसो आठ स्तोत्र आदर्शनासनवईमानमुख्याष्टसन्मांगलीकैजिनाग्रे // से राजतप्रोज्वलतंडुलोत्यैस्त्रयोदशीमातनुतेस्म पूजाम् // 156 // केरिकालागुरुगंधधूपमुदिप्य धूमच्छददूरितैनाः // घंटानिनादेन समं सुरें३ः, चतुर्दशीमातनुतेस्म पूजाम् // 157 // अष्टोत्तरस्तोत्रशतं पठित्वा, जानुस्थितः स्पृष्टधरः सुरेषः // शक्रस्तवं प्रोच्य शिरस्थपाणि त्वां जिनं संसदमालुलोके // 15 // आलोकनाकृतविदौ ततोऽस्य, गंधर्वनाटयाधिपती अंमत्यौ // तूर्यत्रिकं संजयतःस्म तेत्र, प्रनोनिषेणे पुरतो सुरे३ // 15 // मृदंगन्नेरीवरवेणुवीणाषडामरीझल्लरीकिंकणीनाम् // .. नादिकानां च तदा निनादैः, दणं जंगर्छब्दमयं बनूव // 16 // भणी, शक्रस्तव (नमुथ्युण) कहीने पछी जिनेश्वरने नमस्कार करी सभाने जोवा लाग्यो. // 158 // त्यां सभामां प्रभुनी सन्मुख इंद्र बेठा पछी ए इंद्रना जोवाथी आशयने जाणनारा गांधर्व अने नाट्यना अधिपती एवा बे जातिना देवताओए वाजींत्रो तैयार करयां. // 159 // ते वखते मृदंग, भेरी, (ढोल) श्रेष्ट एवा वेणु, वीणा, Jun Gun Aaradhak Trust ॥१श
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS पभ्रामरी, झालर अने घुघरीयोना बली भंभा विगेरे वीजा वाजींत्रोना शब्दयी क्षणमात्र जगत् शब्दमय थई * गयु. // 160 // पछी तुंबरु अने नारदादिके हर्षथी प्रभुना गुणाने गाता छतां देवताओना हृदयने विषे अमृतना मोजनथी पण अधिक हर्ष विस्तारयोः // 161 // पछी चंचल एवा कुंडल, देदीप्यमान मुक्ताफलना हार अने आभूषणोना समूहथी स्फुरणायमान अंगवाली तेमज विशेषे श्यामवर्णवाला जिनगजरूप मेघनी विजलीरूप मुँदा ततस्तुंबुरुनारदाद्याः, पॅनोर्गुणालोरूंपवीणयंतः // सुधाशनोंदप्यधिकं विते:, सुंधाशनानां हृदये प्रेमोदम् // 161 // तंतश्चलत्कुंमलतारहारशृंगारनारस्फुरदंगयष्टिः॥ रंना चिरं जावयतिस्म लास्यलीलां विनोलांगजिनाब्दविद्युत् // 16 // साचीकृतादीव ततो घृताची तिलोतमा चोमनाट्यशक्तिः // "मेने मनोज्ञा किले मेनकापि", कैलाकलापस्य फेलग्रेहित्वम् // 163 // ( शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ) इत्येवंविधगीतवाद्यनटनैःपूजांविधायत्रियां, तामूलाच्चियसप्तदशधाप्रीतस्तैदाखंडः // अयं धेनदत्त उज्वलसरिन्नीरैःपैटीरैःपैटुः, कैपु रैस्तुचमेरुनंदनवनीकल्पपुष्पैश्चिरम् 165 रंभा अप्सराये दीर्घ काल सुधी नृत्यलीला करी. // 162 // पछी वांका करेला नेत्रनी पेठे घृताची अने उत्तम नाट्यशक्तिवाली तिलोत्तमा तेमज मनोहर एवी मेनका पण पोतानी कलाना समूहना फल मेलववापणाने मानवा लागी. // 163 // ए प्रमाणे विविध प्रकारनां गीत, वाद्य अने नृत्यवडे त्रण प्रकारी पूजा करी अने पछी तेने प्रथमथी सत्तर प्रकारे रची ते वखते इंद्र प्रसन्न थयो. वळी ए पूजा चतुर धनदत्ते उज्वल नदीना Jun Gun Aaradhak Trust.
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________________ गुण चरित्र D.Gunratnasun MS. जलथी अने श्रेष्ट कपूर तेमज मेरु पर्वत उपरना नंदनवनमा रहेला कल्पवृक्षना पुष्पोथी दीर्घकाल सुधी करी. // 164 // ए काव्यना अनुसारे राजाए जिनपूजन करयु. तेवी रीते सर्व बाजा माणसोए पण जिनपूजन करयुं. कारणके, जेवी रीते राजा करे तेवी रीते प्रजा पण करे छे. / / 165 // मंत्रीये रंगथी रंगमंडपमां बेठेला राजाने कडं " हे नाथ! तमने अकस्मात् मूर्छा अने चेतना शी रीते थई?" // 166 // वली आ काव्य क्याथी ! तेपज आ रीत पण क्याथी मान्य करी? हे प्रभु! तमे ते मर्व मने कहो. कारण मने आ वातमां आश्चर्य थायछे. 167 / ऐतत्काव्यानुसारेण, नृपश्चक्रे जिनार्चनम् // तथा परिजनः सर्वो, यथा राजा तथा प्रेजा१६५ मंत्री प्राह नृपं रंगानिविष्टं रंगमंडपे // अकस्मानाय ते मूळ, चेतैना चौन्नवत्कथम् 166 कुतश्चैतानि काव्यानि, कुंतो 'रीतिरियं मता // सर्वमेतत्प्रनो ब्रूहि, कौतुकं मम वर्तते // पःप्रोचे ऽर्हति दृष्टे, जातिस्मृतिरंनृन्मम // सर्वः पुर्वनवो दृष्टः, स्पष्ट ऐष निशम्यताम् // अत्रैवाँसीजपुरे, पुरा'श्रेष्टी धैनावहः ॥र्धनदत्तान्निधस्तस्य, सुतस्तारुण्याश्रितः // 16 // वधूश्चतस्त्रस्तस्यासन, रूपलावण्यसंयुताःतुर्या तुं चारुचातुर्या, रत्नमालान्निधान्नवत्॥१७॥ अन्यदानि'शि निक्षणा,शिवायाः फेत्कृतानि सौ॥श्रुत्वा जाँतिस्मृतेःप्रातःवर्धेसविनयं जंगौ // प्रेत्यासने गिरौं पूर्वन्नवस्य नगिनी मम॥ शिवास्ति सुषुवे पुत्रद्वयमद्य तयाँ निशि // 17 // राजाए कयु. " अरिहंत प्रभुना दर्शन थये छते मने जातिस्परण ज्ञान थयुं छे; तेथी में म्हारो सर्व पूर्वभव स्पष्ट दीठो छे. ते म्हारो पूर्वभव तुं सांभल. // 168 // पूर्वे आज हस्तिनापुरमा धनावह नामनो शेठ रहेतो हतो, तेने युवावस्थावालो धनदत्त नामनो पुत्र हतो // 169 // ते धनदत्तने रूप अने लावण्यवाली चार स्त्रीयो हती; परंतु तेमां चोथी मनोहर चातुर्यवाली रत्नमाला नामनी हती. // 170 // एक दिवस रात्रीये उघी गयेली ते रत्नमालाये शियालना शब्दो सांभळीने सवारे जातिस्मरण ज्ञानथी पोतानी सामुने विनयपूर्वक कहेवा लागी.॥१७१॥ "आ पासे रहेला पर्वत उपर पूर्वभवनी म्हारी व्हेन शियाल रहे छे, तेणे आजे रात्रीये बे पुत्रोने जन्म आप्यो Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP A. Gunratnasuti MS छे.॥१७२॥ माटे हुं तेना बे पुत्रोनी वधाइने माटे जाउं ? कारणके मने पण त्यां लाभ छे." तेनां आवां वचन सांभली सामु विचार करवा लागी के, “आ बहु जुई तो बोलेज नहि."||१७३॥ पछी सासुये रजा आपी एटले ते रत्नमाला चालती थई. उत्तम शणगारने धारण करनारी अने हाथमां चोखाना थालवाली ते वाला अनुक्रमे पवतनी गुफा पासे आवी पहोची. // 184 // शियाल आवती एवी ते रत्नमालाने जोइ तुरत जाातस्मरण ज्ञानने पामी छती दैवना प्रभावथी माणसनी वाणीवडे बोलवा लागा. // 175 // “हे व्हेन! आव आव! हुं त्हारा यामि वैईयितंतस्याः,पुत्रौ लान्नोऽस्तिमेऽपि हि॥श्रुत्वेत्यचिंतयश्रूरिय"नै मृषा वदत् // सातया मताचालोत,स्फारशृंगारशालिनी॥र्करस्थसाहतस्थाला,बालागिरिगुहययौ // 17 // आयांतीं तो शिवा प्रेक्ष्य,जातजातिस्मृतिःदेणात् // देवतस्य पॅनावेग, मनुष्यवचसा जंगौ। * आगळांगलनंगिनि, 'प्रीतास्मि तव दर्शनात्॥ सा तो शिवीतयापुत्रौ, नव्ययुक्त्या वायत्॥ शिवापि समादाय, स्थालं गत्वा गुहांतरम् // रत्नैःप्रपूर्य देत्त्वा च, सौ विसृष्टा गृहं ययौ 177 श्वश्रूहस्ते तेया दत्ते, रत्नस्थाले मुंदा च सा // तस्याःश्वसुराँकार्य, वधूवृत्तमंचोकथत् 177 'श्रेष्टी रत्नेषु दृष्टेषु, प्रीतः प्रोचे प्रियां प्रति // नीचकर्म नै कार्या सौ, मूतलक्ष्मीरिय वधूः॥ तैतोविशेषतो मान्या, सानृत् परिजने ऽखिले ॥३या किंतुकरोतिस्म, तस्यां जेष्टंवधूस्ततः॥ दर्शनथी खशी थई छ." पछी रत्नमालाये शियालने अने वे पुत्रोने उत्तम युक्तिथी वधाव्या. // 176 // शियाले पण थाल लेई गुफानी अंदर जइ रत्नोथी ते थाल भरी रत्नमालाने आगीने रजा आपी, तेथी ते पोताने घेर गइ.॥ 177 // त्यां तेणे सासुना हाथमां रत्ननो थाल आप्यो एटले तेणे हर्षथी रत्नमालाना सासराने वो. लावी वहुनी मर्व वात कही. // 17 // रत्नो जोवाथी प्रमन्न थयेलो शंठ पोतानी स्त्रीने कहेवा लाग्यो के,"आ बहु पासे नीचकाम न कराव. कारणक ए बहु मूर्तिमंत लक्ष्मी छे. // 179 // पछी ते रत्नमाला सर्व कुटुंबी व Jun Gun Aaradjak Trust XXXXXXXXXXXXXXXX
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________________ गुण र्गमा विशेष मान्य थई, परंतु तेथी तेनी जेठाणी तेना उपर ईर्ष्या करवा लागी.॥ 18 // ते शियालना दैव योगथी बन्ने पुत्रो मृत्यु पाम्या एटले मूर्ख एवी म्होटी बहु ते वखते रुदन करीने आ प्रमाणे विचार करवा // 1 // लागी.॥१८१॥"जेवी रीते पूर्वे त्यां गयेली रत्नमाला रत्नो लावी छे, तेवी रीते हूं पण आ फेरे त्यां जई रत्नाने लावीश."॥ 18 // पछी सासुने पूछीने त्यां गयेली शृंगार धारण करी रहेली कंकुमवाली अने हाथ मां चोखानो थाल धारण करी रहेली तेने जोईने शियाल विचार करवा लागी. // 18 // “जो म्हारा दुःखना पंत्रष्ट्ये मतेतस्या, शिवाया दैवयोगतः // कृत्वा मूर्खा तदा कंद, देधौ ज्येष्टा वधूरिति // रत्नमाला गता पूर्व, यथा रत्नौनि चानयत् // तथाथमपिगत्वा तान्यानेष्याम्यंत्रवारके॥१७॥ a श्वश्रू पृष्टा गतां तंत्र, संशृंगारां सकुंकुंमांगता करस्थाकतस्थालां, शिवा वीदय व्यचिंतयत् // 'वैरिमयन्येति काप्येषा, मधुःखसमये यदि॥ तदाशिक्ष्यांप्रदास्यामि,ध्यात्वैवसाप्रधाविता // विदार्य नखरैरंग, डुकुलेन समं शिवा // तत्कौँ त्रोटयामास, समं हारेण रोषितां // 15 // कष्टानंष्ट्वा गृहं सांगाइनमाला पृथग्गृहे // Wश्रू जंगौगिन्या मे'', विपन्नं तेत्सुतक्ष्यम् 16 यामि युष्मदनुज्ञाता, तत्पुत्रमुखदर्शने // तयोक्ते सा ययौ तंत्र, शोध्यवेषधरा गिरौं // 1 // खेन विलपंती तां,देवोपालंनदायिनीम्॥अंचित् स्थापयित्वा साँ, शिवोचे मंचःशणु // KAKKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust अवसरे आ कोइपण वैरिणी आवे छे तो एने शिक्षा आपीश." एम धारीने शियाल दोडी.॥ 184 // क्रोध पामेली ते शियाले रेशमी वस्त्र सहित अंगने नखवडे विदारी नाख्युं अने हार सहित तेना बने कानने वाडी नाख्या.॥ 185 // पछी ते कष्टथी नाशीने घरे गई एटले रत्नमालाये जूदा घरमा पोतानी सामने कह्यु के, "म्हा री बहनना ते बन्ने छोकरांओ मरी गयां छे. // 186 // जो तमे आज्ञा आपो तो हुँ तेना पुत्रनां मुखने जोवा माट जाउं?" सासुये रजा आपी एटले शोककारी वेपने धारण करनारी ते रत्नमालात्यां पर्वतने विषे गइ.॥१८७॥ Na // 1 //
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________________ PPA Gutt MS ... ...... श्री जैन साहित्य न त्यां दुःखथी विलाप करती अने दैवने ठवको आपती ते रत्नमालाने महाकष्टथी छानी राखीने ते शियाले कयुं / के, हे व्हेन ! म्हारं वचन साभल. // 188 // आ पर्वतने विषे मने सुख नथी, माटे हुं बीजे कोइ ठेकाणे जइश. वली बारमे दिवसे बन्न पुत्रनुं प्रेतकार्य कर छे. // 189 / / ते दिवसे त्हारे आवg अने पतिने साथे लाववो." एम कही शियाले रजा आपेली ते रत्नमाला मरजी प्रमाणे घरे आवी. // 190 // वली बारमो दिवस आव्यो एटले ते रत्नमाला पोताना पति सहित गाडीमां बेशीने त्यां गई; तेथी ते शियाल प्रसन्न थई. // 191 // प्रेत नास्ति मेऽगिरौं सौख्यं, यासाम्यन्यत्रत्रचित् // हादशे दिवसे प्रेतकार्य कार्यचपुत्रयोः॥ तस्मिन् दिने त्वयागम्यं, सहानेयस्तुर्वल्लनः।।इत्युक्त्वा शिर्वया स्वैरं",विसृष्टा सा गृहं ययौ॥ दिने तु छांदशे प्राप्ते, सो वकांतेन संयुता॥ आरुह्य वाहिनीं तत्रागमत् पिता , सौ शिवा // तकार्ये कृते सार्वड, निधिरत्रास्ति ग्रहतामनिदेपाटि चे तान्यांसवाहिन्यांचे निवेशितः यं मनुष्यन्नापास्या, इति चिंतयतोतयोः॥ बन्नासेव्यंतरःकश्चिदद्देश्योव्योमनिस्थितः१५३ अत्रैवे नगरे देवदत्ताख्यकपणोऽनवम्॥ निक्षिप्तोनि धिरत्रांसीङातोऽहंव्यंतरस्ततः॥१७॥ अक्षयोनि धिरस्त्येषः, व्ययःकार्य:सदा त्वयों // श्रीजैनमंदिरं काय,स्थाप्यापार्श्वप्रन्नुःपुनः // तस्याधिष्टायकोनांवी, सोऽहंतजक्तितत्परः तस्मिन ताममाप्यस्ति,मोदेस्तने ति कथ्यते कार्य करी रझा पछा शियाले कह्यु के, अहिं रत्नोनो भंडार छे ते ल्यो." पछा ते बन्ने जणाये द्रव्यना भंडारने उपाडीने गाडोमा मूक्यो. // 192 // " आ शियालने मनुष्यनो भाषा केम छे ?" एम विचार करता एवा ते बन्ने जणाने आकाशमां उभेला कोई अदृश्य व्यंतरे कह्यु. // 193 // हुं आज नगरमां देवदत्त नामनो कृपण हतो, आ ठेकाणे में भंडार डाट्यो हतो, तेथी हुँ व्यंतर थयो छु // 17 // आ अक्षय भंडार छे, तेनो तमारे हमेशां व्यय करवो. श्री जिनमंदिर करावQ अने वली तेमां श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा स्थापवो. // 195 // वलो हुं तेमनी भक्तिमां तत्पर थई वेमनो अधिष्टायक थईश. तेज तीर्थमा म्हारो पण मोक्ष छे, माटे हुँ एम श्री Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्र P.P.A. Gunratnasuti MS कहुं छु. // 196 // एम कहीने व्यंतर मौन थये छते ते स्त्री पुरुष हर्षथी पोताना घरे आव्यां, जेथी सर्व कुटुंब हर्ष पाम्यु.॥ 197 // ते अवसरे धनावह शेटे धनदत्तने घरनो भार सोपी पोते भावथी दीक्षा लई माहेंद्र देव॥१५॥ लोकने विषे देवता थयो. // 198 // पछी कोई दिवसे धनदत्ते आ वनमां प्रासाद कराव्यु अने तेमां श्री पा र्थनाथ प्रभुने स्थाप्या. तेनो अधिष्टापक व्यंतर देवता थयो. // 199 // श्रेष्ट भक्तिवान् एवो ते धनदत्त शेठ ते प्रासादने विषे हमेशां सत्तर प्रकारी पूजाये करीने श्री पार्श्वनाथ प्रभुने पूजवा लाग्यो. // 200 // पछी धनद त्युिक्त्वा ध्यंतरे मौनत्नाजितौदंपतीमुँदा // स्वीयं सँग संमायातौ, सर्व है ष्टं कुटुंबकम् १ए * तत्पिता संमये तैस्मिन् , नारमारोप्य नावतः // दीदां हित्वा माहेश्देवलोकेसुरोऽनवत् // अंकारयानोऽन्यैद्युःप्रासादमिह कानने // स्थापितः पार्श्वदेवश्चाधिष्टांता व्यंतरोऽनवत् ॥१ए। प्रकारैः सप्तदशनिः, स श्रेष्टी श्रेष्टेनक्तिनाक // श्रीपार्श्व पूजयामास,प्रासादे तत्र सर्वदा 200 धनदत्तस्य कांतानां,तिसृणां च पॅथक प्रयक // चत्वारो नंदना जाता श्चतुर्थी पंचें जैझिरे 201 देत्तश्चैवसुदत्तच, सुदत्तश्चितनंदनः लँदमीधरो धनेशर्थ, धननायो धनेश्वरः // 2 // कनकः कनकानच, हेमनो हेमवर्णकः॥ "श्रीदःश्रीदत्त शंखाचं, धोधोरौन्निधस्तथा // एवं सप्तदशानूवंस्तैनयास्तस्य विश्रुताः // समये स प्रियःसोऽथ, 'प्रेपेदे संयमश्रियम् // 4 // प्रेपाट्य निरैतिचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् ॥सप्रियोऽनशनात्प्रांते, सौधर्मे स सुरोऽन्नवत् // चनी त्रण स्वीयोने जूदा जूदा चार चार पुत्रो थया अने चोथी रत्नपालाने पांच पुत्रो थया. // 201 // 1 दत्त, 2 वसुदत्त, 3 मुदत्त, 4 चित्तनंदन, 5 लक्ष्मीधर, 6 धनेश, 7 धननाथ, 8 धनेश्वर, 9 कनक, 10 कनकाम, 11 हेमांभ, 12 हेमवर्णक, 13 श्रोद, 14 श्रीदत्त, 15 शंख, 16 धर्म अने 17 धीर. // 202-203 // ए प्रमाणे तेने प्रसिद्ध सत्तर पुत्रो थया. पछी प्रिया सहित ते धनदत्ते अवसरे चारित्रलक्ष्मीनो आदर करयो. / // 204 // अतिचार विना मनोहर उज्वल चारित्र पालोने प्रियासहित ते धनदत्त अंते अनशनथी सौधर्म दे Jun Gun Aaradhak Trust // 15 //
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________________ न / PP Guasut MS Kaa वलाकन विष देवता थया. // 205 // युवान् पुरुपरूपे शय्याथी सुईने उठलो ते देवता स्नान करा आभूषण धारण करी सभामा गयो.॥ 206 // त्यां ते पुस्तक वांचाने तथा सिद्धस्थानमा रहेला जिनेश्वरोने भक्तिथी पूजीने सुधर्मा सभाने विष वेठो. // 207 // पछो अवसरे देवलोकयां सुघोषा घंटानो शब्द थयो. वली नैगमेपी देवताए तेवो रीते उद्घोषणा करी के. // 208 // " भरतक्षेत्रने विषे श्री नमिनाथ अरिहंतनो जन्म थयो छ, माटे इंद्र जिनेश्वरने स्नात्र करवा माटे मेरु पर्वत उपर जाय छे. // 209 // माटे सर्वे देवताओए त्यां आवq." पल्यंका त्थितःसुप्तस्तरुणेन नरेण संः // स्नात्वा विहितशृंगारव्यवसायः सन्नां ययौ // 6 // पुस्तकं वाचयित्वा से, सिहायतनसंस्थितान् // पूजयित्वाहतो नित्या, सुधर्मासंसदि स्थितः कोले सुघोषाघंटाया, नादोऽनूदमरालये // नँद्घोषणातयांकारि, नाकिना नैर्गमेषिणा॥ण्॥ | बनूव नरेतक्षेत्रे', श्रीनमेईतो जैनिः // इंशे यास्यति हेमांझे, स्नात्रं कर्तुं जिनेशितुःश्य * ऑगम्यता सुर:सव, श्रुत्वेत्युघोषणामसौ // सुरःसाकसुरेण, वर्णशैलगिरि येया॥१॥ सर्वैःसुरें इस्तत्राईजन्मस्नात्रमहोत्सवे // कृते सौधर्महरिणा, जिनोंबायै समर्पितः // 11 // कृत्वा नंदीश्वरेयात्रां, व्यावृत्तःसुरनायकः॥ मार्गेजनिहायाँतः, प्रासादोपरि संस्थितः३१२ वकारितमिदं दृष्ट्वा, धनदत्तामरस्तदा // विशेषतः प्रखं पार्श्व देवं प्रेणमतिस्म सः // 213 // साकं सुरैःसुरेशेऽपि, विदधेऽत्रजिनार्चनम् // काव्यान्येतानिपूजाया, धेनदत्तामरोऽपेठेत् // एवी उद्घोषणा सांभलीने ए धनदत्त देवता पण इंद्रनी साथे मेरु पर्वत उपर गयो. // 210 // त्यां सर्वे देवेंद्रोए अरिहंतनो स्नात्र महोत्सव करचे छते सौधर्मपतिये जिनेश्वरने तेमनी माता पासे मूक्या. // 211 // पछी नंदीश्वरे यात्रा करीने इंद्र पाछो फर्यो. मार्गे जतां ते अहिं आव्यो अने आमासाद उपर उभो रह्यो. // 212 // ते वखते ते धनदत्त देवता पोते करावेलु आ जिनमंदिर जोईने पार्श्वनाथ प्रभुने विशेष प्रणाम करवा लाग्यो. // 213 // देवतानी साथे इंद्रे पण अहिं जिनपूजन करयुं. पूजानां आकाव्योधनदत्त देवता बोल्यो. // 214 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण P.P.A. Gunratnasuti MS धनदत्त देवताए ते वखते साडी एकविश कान्यो इंद्रना नामथी करयां अने अर्ध काव्य पोतानी पूजाने प्रसिद्ध Red करनारुं करयुं. // 15 // हे मंत्री ! पछी देवताओ स्वर्गे गये छते ते धनदत्त देवता पण दीर्घकाल त्यां सुख // 16 // भोगवीने स्वर्गथी चवी आहं हुं पोते थयो ढु. // 216 // आजथी श्री पार्श्वनाथ प्रभुने प्रणाम करथा विना हुँ भोजन करीश नहि, माटे आहे समिपे नवीन हस्तिनापुर स्थापो."॥ 217 // राजानां एवां वचन सांभली सर्व लोक बहु हर्षवंत थया. गुणवर्मा राजा पण नवीन हस्तिनापुरमां निवास करीने रह्यो. // 218 // एक दिवस एकविंशतिकाव्यानि, सार्शनि देरिनामतः // काव्याईचं तदाकार्षीत् , र्खपूजाख्यापकं सुरः॥ तंतःस्वर्ग गतेस्वार्गलोके सोऽप्यमरश्चिरम् // सुखं नुक्त्वा दिवेश्चयुत्वा, मंत्रि–हमिहानवम् // अप्रणम्य प्रस्तुं पार्श्व, नोजनं नै करिष्यते॥ स्थाप्यतां तदिहादूरे, नैवीनं हस्तिनापुरम्॥२१॥ श्रत्वेति' सकले लोके, परमानंदमेऽरे // गणवर्मा नपस्तस्थौ, नवीने हस्तिनापुरे // 21 // सोऽन्यदा निशिनिज्ञणः, कैस्याश्चिर्करुणस्वरम् // श्रुत्वा र्गछन् पुरोऽदीउँदैतीसुदती वने। कथमेकाकिनी बाले, का त्वं सुंदरि रोदिषि॥श्रुत्वे तिरुदितं मुक्त्वा, मुंदितंसोमनो दधौ 220 अन्यत्याय संलका सा, बन्नाषे नॅपतिं प्रतिा खेटचैत्यै त्वया दृष्टा, रत्नमालान्निधास्म्यहम् // सा गंता स्वपितुः, 'सिंहनूपतेः सिहलेशितुः॥सदने स्वानुरागं च, सखीनिस्तमैयझपम्श्श् / रात्रीये उघी गयेला ते गुणवर्मा राजा कोई स्त्रीना करुण शब्द सांभली ते तरफ चाल्यो तो तेणे आगळ जतां वनमा रोती एवी कोई स्त्रीने दीठी. // 219 // " हे वाला ! तुं कोण छे ? हे सुंदरी ! तुं एकली केम रुवे छे ?" एवां वचन सांभली रोवु मूकी दई ते स्त्री हर्ष पामी. // 220 // पछी उठीने लज्जावंत एवी ते स्वीये राजाने कडं के, " विद्याधरना चैत्यने विषे तमे दीठी हती ते हुँ रत्नमाला नामनी स्त्री छ. / / 221 // ते हुं म्हारा पिता सिंहलाधिपति सिंह राजाना घरने विषे जई, अने त्यां में तमारा उपरनी म्हारी प्रीति सखीयो पासे म्हारा ks पिताने केवरावी. // 22 // म्हारं वचन पिताए न मान्यं पटले अत्यंत दःखी थयेली हुँ मूति, एवामां शय्या- // 16 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.AC.Gunratnasun M.S. माथी कोइये आ वनने विषे आणी छे. // 223 // आजे प्रियना दर्शनथी सर्व सारुं थयुं." एवां ते स्वीनां वचन सांभली हर्ष पामेलो राजा तेने लई पोताने घेर आव्यो. // 224 // वितावि पुरुषोए नहिं आपेली आ * कन्याने हरि शी रीते परणवू ?,, आ प्रमाणे राजा विचार करतो हतो एवामां प्रतिहारीये विनंता करीके. // 225 // “सिंहल राजानो प्रधान रोकी राखवाथी आपणा वारणे उभा छे." पछी राजाए रजा आपी एटले द्वारपाल तेने तुरत सभामां तेडी लाव्यो. // 226 // राजानी आगल देदीप्यमान रत्नमय भेट मूकीने पछी अमन्यमाने जनके, महाक्यमतिःखिता // सुप्ता पल्यंकतः के प्योनीतास्म्यत्र कॉननेश्५३ / / प्रियस्य दर्शनेनाद्य, सर्व नव्यमजायत // श्रुत्वेति मुंदितो गूंपस्तां हित्वा गृहं ययो व विवाह्या कन्ययमदत्ताजनकादिनिः॥ इति चिंतयति मापे, प्रतिहारो व्यजिझपत् 225 मंत्री सिंहलराजस्य,ारे तिष्टेति वारितः॥ नूपेनोक्तेन तेनाशु, से नीतः सनांतरे 226 स्फुरत्नमयं मुंक्त्वा,प्रानृतं नृपतेःपुरः मंत्री समानितोऽत्यतं,निविष्टो योग्यविष्टरे॥२७॥ कथं यूयं समायाताः,सिंहलदीपवासिनः॥इति पृच्छति पाले, से जंगौ शेणु कौतुकम्श अस्माकं स्वामिनःपुत्री,रत्नमालानिधानतः॥ सा केनापि हता तेन,नृपतिः:खितोऽनवत् // स्वप्ने केनाप्योदिष्टैस्त्वत्पुत्री हस्तिनापुरोगमुक्तास्ति मंत्रिणं प्रेक्ष्य,विवाह्या गुणवर्मणा 230 राजाए अत्यंत सन्मान करेलो ते मंत्री योग्य आसन उपर वेठो // 227 // पछी " सिंहलद्वीपमा रहेनारा तमे केम आव्या छो ?"एम भूपतिये पूछयु एटले मंत्रीये कह्यु. " महाराज ! कोतक मांभलो. // 228 // अमारा राजाने रत्नमाला नामनी पुत्री छे, ते कोईथी हरण कराइ छे; तेथी अमारो राना दुःखी थयो छे. // 229 // पछी कोईये पण स्वप्नामां राजाने कह्यु के, " रहारी पुत्री हस्तिनापुरमा मूकी छे. माटे मंत्रीने मोकली तेने गुण Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ च // 17 // P.P.A. Gunratnasuti MS . गुण वर्मा राजानी साथे परणाव." // 230 // पछी कोईनी पण सहायथी अमे अहिं आव्या छीये, माटे अमारा महाराजानी पुत्री सहित आ सर्व आप ल्यो." // 231 // राजाये ते प्रमाणे लईने पछी रजा आपी एटले ते श्रेष्ठ मंत्रीये पोताना नगरे जई सिंहल राजाने सर्व समाचार कही प्रसन्न करयो. // 232 // पछी द्वारपाले गु. णवर्माने कयुं."महाराज? कोई परदेशी प्रधान आव्यो छे. राजाए आबवानी रजा आपी एटले ते सभामां आव्योः पछी राजाये तेना मुख सामुं जोयुं एटले मंत्रीये जाणीने का. // 233 // " रत्नपुर नामना नगरने विषे रत्नां गद नामनो राजा. छे. एनी कनकमाला नामनी पुत्री दोर्घकाल थयां तमारा विषे अनुरागवाळी छे // 234 // * ततः कस्यापि सानिध्याध्यमंत्र समागताः॥ इदं स्वीक्रियतां सर्वे, स्वामिनःसुतया सहा तथा कृत्वा नृपेणार्थ, विसृष्टो मंत्रिपुंगवः // गत्वा सिंहलराजस्य, प्रीतिपूरमवईयत् // 23 // गुणवर्मा चरेणोचे, कोऽप्येति परैराष्टिकमुखं पश्यति पाले, मंत्री झात्वा व्यजिज्ञपत् * अस्ति रत्नपुरे नाम्नि पुरे रत्नांगदो नेपः॥ सुंता कनकमालास्य, चिरांत्त्वयनुरोगिणो॥२३॥ ती समादाय यात्रार्थ, समेति से महीपतिः॥ श्रुत्वेति गुणवर्मापि,नृपस्तत्संमुखं ययौ // मिलितौ नूपती तंत्राजूतां प्रीतिकरो जने // महायात्रा केता रत्नांगदेनाथ जगत्पनोः॥२३६ * पुण्यकार्य मसौ कृत्वा, गुणवर्माणमालपत् // मत्सुतामुपयच्चस्व यच्छस्व मनसि स्थितम् // तथैव कृत्वा तेनार्थ, विसृष्टो बहुमानतः ॥येयौ रत्नांगदो राजा, निज रत्नपुरं पुरम् // 30 // ते राजा ते पोतानी पुत्रीने साथे लईने अहिं यात्राने अर्थे आवे छे. एवां ते मंत्रीनां वचन सांभली गुणवर्मा राजा पण तेना सामो गयो. // 235 // त्यां एकठा थयेला ते वन्ने राजाओ लोकमां प्रीतिकारी थया. पछी रत्नांगद राजाए जगत्प्रभुनी महा यात्रा करी. // 236 // रत्नांगद राजाए पुण्यकार्य करी रह्या पछी गुणवर्माने कर्वा के, " म्हारी पुत्रीने गृहण करो अने मने मनमा रहेलुं आपो." // 237 // पछी गुणवर्माए ते प्रमाणे करीने बहु मानथी रजा आपी एटले ते रत्नांगद राजा पोताना रत्नपुर नगर गयो. // 238 // DAE Jun Gun Aaradhak Trust ...... Love M ana
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________________ P.PA. Gunratnasuti MS ए प्रमाणे निर्मल, उदार अने उत्तम वर्णवाली चार स्त्रोयो सहित गुणवर्मा राजातुल्य अने नान्हा पर्वतोथी आश्रय करायेला अने माणिक्यथो सुंदर कांतिवाला मेरुपर्वतनी शोभाने पाम्यो. // 239 // (वसंततिलका वृत्तम्.) ऐवं चतुरिमलैः सहितो धंदारै-र्दा रैः सुवर्णकलितैर्गुणवर्मनूपः // तुल्यौः श्रितस्य सँघुनिर्गिरिनि:सुमरो-'माणिक्यसुंदररूचेः श्रियमावतार // 3 // इति श्री अंचलगन्छेश श्री माणिक्य सुंदरसूरि विरचित्ते पूजाधिकारे गुणवर्माचरित्रे प्रियाचतुषय प्राप्ति वर्णनो नाम प्रथमः सर्गः // सर्ग जो॥ तासु कांतासु कांतासु, रममाणस्य भूपतेः // अथ सप्तदशाजूंवनंदनाः कृतनंदनाः // 1 // आद्यः प्रथमराजाख्यस्ततः सिंहो हेरिर्गजः॥ पद्मश्चगयाकरः शंखो ऽनंतो नांगदशाननौ॥२॥ अचलो बहुबुद्धिश्च, तारुणस्तु त्रयोदशः // चतुर्दशचक्रपाणिः, पूर्णः पंचदशस्तथा // 3 // सामःसागर इत्येवं, सुताः सप्तदश स्मृताः // प्रमोदन्नेदा इव ते , व्यरोजंते नृपालये // 4 // पछो ते मनोहर स्त्रीयोने विषे क्रोडा करता ते राजाने आनंदकारी एवा सत्तर पुत्रो थया. // 1 // तेमां पहेलो 1 प्रथम राजा नामनो, 2 सिंह, 3 हरि, 4 गज, 5 पद्म, 6 च्छायाकर, 7 शंख, 8 अनंत, 9 नाग, 10 दशाननः // 2 // 11 अचल, 13 बहु बुद्धि, 13 तारुण, 24 चक्रपाणि, तेमज 15 पूर्ण. // 3 // 16 सोम अने 17 सागर ए प्रमाणे सत्तर पुत्रो हता. ते पुत्रो जाणे हर्षना भेदो होयनो ? एम राज मंदिरमां शोभता हता. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण // 1 // P.P.A. Gunratnasuti MS // 4 // देवांगण थये छते ते सतर पुत्रो पार्श्वनाथ प्रभुने प्रणाम करया विना धावता नहि // 5 // ते वात जा- चरित्रं. णीने सर्व माणसो आश्चर्य पामवा लाग्या. एटलापां संदेहरूप अंधकारने नाश करवाने सूर्यरूप नरवर्मा केवलो आव्या. // 6 // पछो अंतःपुर अने परिवार महित गुणवर्मा राजा मुनिने नमस्कार करवा गयो. त्यां तेणे सुवर्णना कमल उपर वेठेला अने सुर असुरोए सेवन करेला ते नरवर्मा केवलाने दाठा. // 7 // गुगवर्मा ते केवलोने मदक्षिणा करवा पूर्वक बहु आदरथी प्रगाम कग अने तेमना मुख सामु जोईने शुद्ध पृथ्वो उपर वेठो / 8 / जाते देवांगणे राजपुत्राः सप्तदशापिते // अप्रणम्य प्रलं पाच, स्तन्यपान न चक्रिरे // 5 // तत्झौत्वा कौतुकं "वित्रत्यन्वहं सकले जने // केवली नरवर्मागीत् , संदेहतिमिरार्यमा // 6 // सांतःपुरपरीवारो, मुनि नंतु नृपो ययौ // ददर्श स्वर्णपद्मस्यं, तं सुरासुरसेवितम् // 7 // से तं प्रदक्षिणीकृत्य, प्रणम्य परमादरात तक्रन्यस्तनेत्राब्जो, निविष्टः शुनूतले // 7 // बालयोग्यानलंकारान्, विवाणा (पशालिनः // पत्राः संन्नासरस्यांते, राजहंसा इचार्ययुः॥ देशनां क्लेशनाशाय, मुनिश्चक्रे सुधोपमाम् // अस्मिनसारे संसारे, सारं धर्मो विधियत्ताम् // धर्मेण विपुला जोगा, धर्मेण सुरसंपदः ॥धर्मेण पुत्रमित्राणि, सर्वसौख्यानि. धर्मतः // 11 // तानि धर्मरूपाणि, पंचवा हादशाया / दानं शीलं तपो नोवो, धर्मन्नेदा अनेकशः॥१॥ आद्यं पुण्यं च तंत्रापि, श्लाध्यते जिनपूजनमायद्विनी ने हिसम्यक्त्वमपि पंफुल्यते नृणाम् / | बालकने योग्य एवा आभूषणोने धारण करनाग अने रूपवंत एवा ते गुणवर्माना सत्तर पुत्रो सभारुप तलावनो | समीपे राजहंसोनी पेठे आव्या. // 9 // पछी मुनिये क्लेशना नाशने अर्थ अमृतना सरखी देशना आपी के, "हे भव्यजनो! आ असार संसारमा माररूप धर्म करो. // 10 // धर्मथी घणा भोगो, धर्मथी देव संपत्ति, धमथी पुत्र अने मित्रो तेमज धर्मथी सर्व प्रकारना सुखो प्राप्त थाय छे. // 11 // धर्म रूप व्रतो पांच अथवा वार छ. दान, शील, तप अने भाव एवा अनेक धर्मना भेटो छे. // 12 // वली तेमां पण मुख्य पुण्य जिनपूजन व- // // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPA Gunratnasuti MS खाणाय छे. कारण के, जे जिनपूजन विना माणसोने सम्यक्त्व पण निश्चे नथी प्रकृल्लित यतुं. // 13 // तेमा | पण जिनपूजन विधिीज करवं. अहो ! युक्तिथी करेलु औषध गुणने अर्थे थाय छे // 14 // जे माणसो जिनराजनी पूजा करीने निरंतर भोजन करे छे, तेओर्नु भोजन सवे जंतुने विष आहार कहेवाय छ. // 15 // आ वखते कोई विद्वान् मुनिये नरवा केवलीने पूछयु के, “आ माधुओ जिनराजन पूजन करचा विना पण साधु ( श्रेष्ट ) केम कहेवाय ?" // 16 ॥मुनि नरवाए कह्यु. " पूजाना वे भेद कहेला छे. एक द्रव्य पूजा अने वीजी * विधिनैवै विधातव्यं, तेत्रापि जिनपूजनम् // गुणाय जायते युक्त्या, कृतं नेजमप्यहो 14 विधाय पूजा जैनी ये, नोजनं कुर्व तेऽन्वहम् // नोजनं कथ्यते तेषामाहारः शेषजंतुषु 15 अंत्रांतरे मुनिःकश्चिद्विपश्चित् प्रचतिस्मतेम्॥जिनपूजां विनाप्यते ,साधवःसाधवःथम् // 16 // मुनिः प्रोवाच पूंजाया, नेदध्यमुदाहृतम् ॥एका हि इयतःपूजा, हितीयों नावतः पुनः॥ व्यपूजां प्रकुति, विरताविरता जनाः सर्वसावधविरता, नावपूजां तु साधवः // 17 // नावपूजा निरारंना, सारंन्नं व्यपूजनम् // ज्ञातव्यो कूँपदृष्टांतो, जिनानां द्रव्यपूजने॥१॥ - अथ प्रस्तुतमाचख्यौ,मुनिः श्रृणुत नोजनाः // नोजनावसरे नूनं, जिनः पूज्यो निरंतरम् // मुख्यरीतिरियं ज्ञेया, त्रिसंध्यं यकिनार्चनम्॥अभावे जिनपूजाया, नूनं कार्या नमस्कृतिः॥ अत्रांतरे नेपोऽवादोदंतर्वक्तुं नै थुज्यते // तथापि क्रियते पृर्ची, 'हृदि माँति ने कौतुकम्॥श्शा भावपूजा // 17 // तेमां विरति अने अविरति माणो द्रव्य पूजा करे छे, अने सर्व सावद्यथी विरति पामेला साधुओ भावपूजा करे छे. // 8 // भावपूजा आरंभरहित छे अने द्रव्यपूजा आरंभ सहित छ. जिनेश्वरोना द्रव्यपूजनने विपे कूपदृष्टांत जाणवो. // 19 // पछी मुनिये प्रस्तुत वात कही के, हे भव्य ननो ! सांभलो. निश्चे भोजन करवाना अवमरे निरंतर जिनेश्वरनु पूजन करवू. // 30 // मुख्य रीत तो आ पमाणे छे के, त्रणे काल जिनपूजन करवू, अने जिनपूजन न बनी शके तेम होय तो निश्चे जिनेश्वरने नमस्कार तो करवो. // 21 // आ kkkkkXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXSI Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ ग PPA, Gunratnasuti M.S वखते राजाए कह्यु के, " वचे वोलवू योग्य नथी, तोपण पूछु छु. कारण के,म्हारा हृदयमां आश्चर्य मातुं नथी." // 22 // आ सत्तर पुत्रो ज्यां सुधी जिनेश्वरने नथी नमस्कार करता, त्यां सुधी ते ओ घणुं करीने स्तनपान पण निश्चे नथी करता." // 23 // मुनिये कह्यु. हे महाराज ! सांभल. एओना पूर्व जन्मनुं सर्व वृत्तांत त्हारी आगल कहुं छु. // 24 // आज हस्तिनापुरमां धनदत्त नामनो कोई धनवंत शेठ रहेतो हतो, ते शेठे माणसोने जोवा योग्य एक प्रासाद कराव्यो हतो. // 25 // ते धनद चने चार स्त्रीयोथी सत्तर पुत्रो थया हता. त जातिस्म सुताः सप्तदशाप्यते, जिनं यौवनमंतिन // स्तन्यपानमपि प्रॉयस्तावत् कुर्वति न धुवम्॥ - मुनिः प्रोचे महाराज, श्रूयतां पूर्वजन्मजम् // एतेषां सँफलं वृतं, कैथ्यते नवतां पुरः॥श्व र अत्रैवं हस्तिनापुरे, धनदत्तोऽनवानी // प्रासादः कारितो येन, जनानां नेत्रगोचरः // 25 // * | सुताः सप्तदशावंस्तस्य नार्याचतुष्टयात् // एतद्विातपूर्व ते', जातिस्मरणयोगतः // 6 // नमित्युक्ते नृपेणैष,मुंनिः प्रोचे ततः शणु ॥प्रेमादमदिरामत्ता, जातास्ते" तस्य नंदनाः॥४॥ यंत्र तंत्र मंतस्ते, लोलया वक्रचंक्रमाः // अन्येद्य देवरमणे प्रेयाताः'कीमितुं वने // 20 // गीतं नृत्यं स्मित वाप्यां,स्नानमंदोलन इष॥ कुर्वाणाः स्वेच्या तंत्र, प्रदेशे देदैशुर्मुनि // 3 // पारयित्वा मुनिः कायोत्सर्ग लान्नं विदन जंगौ॥आगम्यतां महानागा,"हितं किंचिनिगद्यते रण योगी आ सघलुं वृत्तांत प्रथमथीज जाणेलुं छे." // 26 // राजाए "हा ते 9 जाणुं छु." एम कर्दा एटले मुनिये कयुं के, सांभल. " धनदत्तना ते सघला पुत्रो प्रमाद मदिराथी मदोन्मत्त थया हता. // 27 // लोलाथी वक्र गतियाला ते पुत्रो ज्या त्यां भमता कोई वखते देवरमण उद्यानमां क्रीडा करवा माटे गया. 28 // ते उद्यानमा पोतानी ईच्छा प्रमाणे गीत, नाच, हास्य, वाव्यमां ना अने झाड उपर हिंचका खावा इत्यादि * क्रीडा करता ते भोए कोई मुनिने दीटा. // 29 // पळी मनिये कायोत्सर्ग पारीने लाभ जाणता छतां का. "हे राणा XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust /m ..Hici प
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________________ PPA, Gunnasuti MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX 1. गार गाना. सन फार त कहु." // 30 // पछा परस्पर हसता अन लालायाएकवा- Ay. जाना मुखने जोता एवा ते पुत्रो काईक मस्तक नमावीने मुनिना आगल बेठा. // 31 // मुनिये को. " हे महा भागवंतो ! तमे शास्त्रमा कुशल छो, माटे डाह्या पुरुषोनी साथे वात करवी ते पुण्यथी मलें छे. // 32 // आ वस्वादि आभूषणो लीलामात्रथीज तमने क्याथी मल्या ?" कुमारोए कयुं “माणसोने धनथी सर्व प्रकार- स. मर्थपणुं होय छे. // 33 // वली धनथी कीर्ति पमाय छे अने धनथी राज्यनुं मान पण मले छे." मुनिये फरी परस्परं स्मयमाना, लीलया वैकवीक्षिकाः॥ नमयित्वा शिरः किंचिन्निविष्टास्ते मुनेःपुरः॥ मुनि प्रोचे महानाग्या, यूयं शास्त्रविशारदाः॥ ततो विचक्षणैः साकं,गोष्टी पुण्येन लैन्यते३२ एषा वस्त्राद्यलंकारा लीलावत्ता नवेत् कुतः॥ ते प्राहुरर्थतःसर्वा नराणां स्युः समर्थताः॥३३॥ अर्थेन प्राप्यते कीर्तिः, स्यादाशज्यमान्यता // मुनि गौ पुनः कस्मादर्थ एवं प्रेजायते॥३४ व्यवसायादिति प्रोक्ते', 'तैः पुनर्मुनिरालपत्॥सर्वेषां किं धनं नस्याध्यवसायं प्रकुर्वताम् 35 ततस्तेष्वात्तमौनेषु, मुनिः प्रोचे विचंदणः॥ पुंस्येन प्राप्यते ह्यर्थस्तस्मात्पुरयं "विधीयते 36 . पुण्यादेव समीहितार्थघटना नो पौरुषात्प्राणिनां, यनीनोमतोऽपि नांबरपणे स्यादेष्टमः सैंधवः // स्वस्थानात्पमात्रमप्यचलतो विध्यस्य चानेकेशो, .. जायंते मंदपालिपालितयशः श्रीलंनिनःकुंनिनः // 37 // कह्यु. “धनज शाथी मले ? " कुमारोए “वेपारथी" एम कर्दा एटले फरी मुनिये का. " वेपार करनारा सर्वे * माणसोने धन केम नथी मलतुं ?" // 35 // पछी राजकुमारो उत्तर आपी शक्या नहि एटले मुनिये कह्यु. “हे / चतुर कुमारो ! निश्चे पुण्यथी धन मले छे, माटे तमे पुण्य करो पछे कह्यु के-॥३६॥ प्राणोओने पुण्यथीज ईष्ट धन आवी मले छे, परंतु पुरुषार्थथी मलतुं नथी. कारण जूओ के, आकाश मार्गे भमता एवाय पण सूर्यने आ Jun Gun Aachok Trust
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________________ गुराण PF.AC.Gunratnasuri M.S. aslठमो सिंधु थयो नथी. वली पोताना स्थानथी एक पगलं पण नाह चालनारा एवा विंध्याचल पर्वतने मदनी पालथी पालन करेला यशवाला अने लक्ष्मीने आलंबन आपनारा अनेक हाथीओ आवी मले छे. // 37 // तमे सर्वे हिनकलावाला छो, तेथी लोकमां निरमल एवंय पण तमारुं कुल ध्वजा विनाना प्रासादनी पेठे पुण्य विना नथी शोभतुं. // 38 // दान, शील, तप, भाव, सम्यक्त्व, जिनपूजन, ध्यान अने मामायिक एथी काईक पुण्य कराय छे. // 39 // . वली मुनिये अत्यंत विस्तारवंत ते पूजानो विचार कह्यो एटले ते कुमारोए कह्यु के, “हे मुनि ! अमे अत्यंत अमारे स्वाधिन एवी एक एवी पूजा करीडूं."॥४०॥ पछी “शी रीते जिनपूजन करवू? कलं वो विमलं लोके, सेकला विकलाकलाः // प्रसाद च निःकेतुर्विना पुण्यं ने राजते 30 | दानं शीलं तपोनावः,सम्यक्त्वं जिनप्रजनमाध्यानं सामायिकवापि,"किंचित्पुण्यविधीयते 'तेप्रोचुस्तहिचारे चे, साधुनोक्ते सुविस्तरे। संस्वसाध्यां विधास्यामः,पूजामेको वयं मुने // अंथ केन प्रकारेण, क्रियते जिनपूजनम् // इति पृष्टो मुनि श्रेष्टःस्पृष्टमेवैमन्नाषत // 41 // | स्नात्रं विलेपनं वस्त्रयुगलारोपणं तां // वासपुष्पमाल्यवर्णचूर्णानामधिरोपणम् // 2 // महाध्वजविनूषाणां रोपणं पुष्पवेश्म च // पुष्पाणां प्रकरश्चौग्रे, पुरतो मंगलाष्टकम् // 3 // धूपस्योरपणंगीत, नृत्यं वाद्यं मनोहरम् // एते सप्तदश प्रोक्ताः, प्रकारा जिनपूजने॥४॥ तेऽन्योऽन्यं कथयामासुः, श्रुत्वेति वैचनं मुनेःएतेषु ने मेकैकं , विधास्याम देणापिण्य एम कुमारोए पूछयु एटले ते श्रेष्ट मुनिये प्रगट कह्यु के-॥४१॥ 1 स्नात्र, 2 विलेपन, 3 वस्त्र बे चडाववा ते. मज 4 वासखेप, 5 पुष्प, 6 माला, 7 वर्ण तथा 8 चूर्ण चडावर्बु.॥४२॥ ए महाध्वज अने 10 आभूषण चडाववां. वली 11 पुष्प, घर करवू अने 12 प्रभुनी आगल पुष्पनो ढगलो करवो. तेमज आगल 13 आठ मं गलीक करवां. // 43 // 14 धूप उवेखवो. 15 मनोहर गीत, 16 नृत्य, 17 वाजींत्र. जिनपूजनयां आ सत्तर प्रकार क ह्या छे." // 4 // मुनिना पवां वचन सांभली ते कुमारोए परस्पर का के, "आपणे ए पूजाओ Jun Gun Aaradhak Trust ॥श्णा
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________________ P.P.A. Gunratnasudi MS sel माथा एक एक पूजा क्षणमात्रथा पण कराशु. / / 45 // पछा त सब उद्यमवत थया अन आमनाहर प्रासादमा से तेओए पूजानी पोत पोतानी सामग्री करी.॥ 46 // श्री पार्श्वनाथ प्रभुनो पूजा करी हर्ष पामेला ते कुमारोए मुनिराजने नमस्कार करी पोताने घेर जई भोजन करयु. // 47 पछो ते कुमारो दुकाने वेठा, एवामां कोई मित्रे तेमने जोईने कह्यु के, “जो तमे मानो तो हुं एक मनोहर वात तमने कहुं. // 48 // गीत, नृत्यना कुतूहल करावतो छतो हुं हाट उपर वेठो हतो एवामां कोईये कयुं के, आने धननी लीलाथी धन्य छे. अर्थात् एने अभ्युद्यतास्ततःसर्वे, प्रासादेऽत्र मनोहरे // सामग्री कोरयामासुः, पूजायास्ते निजां निजीम् / कृत्वा पार्श्वप्रन्नोः पूजा, मुदिता मुनिपुगवम् // नत्वा निजगृहं प्राप्ता, नोजनं चैकिरे , ते // हेटे निविष्टास्ते दृष्टा, "मित्रेणैकेन नाषिताः॥ वार्तामेको मह मि,मन्यध्वे चेन्मनोहराम्॥ * मयि हट्टे सैमासीने,गीतनृत्यकुतूहलम् // कारयत्युचिरे केचिइन्योऽयं धनलोलया ॥ए॥ * मंदस्वरं पैरःप्रोचे,म्वमित्रं मयि शृण्वति // वृथास्यं वय॑ते लीली, व्ययतः पैतृकं धनम्॥५॥ मौतुःस्तन्यं पितुर्लक्ष्मीयुज्यते बाल्य एंव हि // इति तद्वाक्यमोकर्य, युष्मदंतिकांगतः५१ तबदम्य गम्यते क्वापि,व्यवसायविचक्षणाः एकः प्रोचे तंतो वोस,पन्यां पित्रोंपिगम्यते॥ इकुक्षेत्रं समुद्रश्चं, योनिपोषणमेव च // प्रसादो नृतां चै ,देणाद "नंति दरिताम् // 53 // धन मल्युं ते योग्य छे. // 49 // पछी मारा सांभलतां बीजाए धीमेथी पोताना मित्र ने कह्यु के, “पिताना धनने वापरी नाखता एवा ए पुरुषनी क्रीडाने तुं फोगट वखाणे छे." // 50 // कारण के, “माता- दुध अने पितानी लक्ष्मी बाळकज भोगवे छे.” तेनुं एवं वचन सांभली हुं तमारी पासे आव्यो छु. // 51 // वेपार करवामां कुशल एवा हे कुमारो! 'माटे लक्ष्मीने अर्थे क्यांइ पण जइये.” पछी एके कह्यु. "आपणा पिता पण समुद्रमा अने पग रस्ते जाय छे. // 52 // कहुं छे के-शेरडीनुं खेतर, समुद्र, योनि पोषण अने राजानी मेहेरबानी एटला क्ष Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुणण चरित्र, P.P.A. Gunratnasuti MS णमात्रमा दरिद्रपणाने नाश करें छे. // 53 // वीजाए को. "तो निश्चे सिंहलीपने विषे जवं. कारणके, त्यां हाथीयोना वेपारथी म्होटो लान थाय. // 54 // तंज प्रमाणे विचार करीने घरे आवेला ते सर्वे कुमारोए समुद्र प्रत्ये जवानी महाकष्टथी पिता वगेरेनी रजा लीधी. // 55 // पछी ते वहाण तैयार करो अने तुरत शंकडा करोयाणाथी भरीने सारा दिवसे स्वजनोथी अनुसराया छता नगरथों चाल्या.॥५६॥ स्वजनोने रजा आपी अने वहाण उपर वेसी, हर्पथी तेओ थोडा दिवसेज सिंहलद्वीप प्रत्ये गया.॥५७॥ समुद्रने कांठे उतरी नगग्नी म. पेरोऽवग्गम्यतां तहि, सिंहलदीप एव हि॥ गजानां व्यवसायेन, मेहबानो यतो नैवेत्॥५॥ तथैव सर्वेऽप्यालोच्य, समुगमन प्रति // पित्रोद्यनुमतिं कॅप्टाङगृहर्गृहमागताः // 5 // 'बोहि सऊयित्वांशु, कैयाणकशतैरमी // आपुर्य सुदिने चेलुः, खंजनानुगताःपुरात् // 56 // विसुज्य खंजनांस्तोरदारुह्य वहनं मुदा॥ ययस्ते सिंहलदीपं, स्तोकैरवे "दिनैस्ततः॥५॥ नत्तीर्णास्ते बंधेस्तीरे, मध्यनगरमागताः॥ विक्रीणानाःयाणानि, व्यवसायं वितेनिरे"॥५७ दैवयोगानंदा तंत्र, राँझो रोगैzतो गेजाः। नेत्तायों ने गजो द्वीपोंदित्याझा च प्रवर्तिता॥५॥ अलान्नेन गंजानांते,स्थिताः षोडैशवत्सरीम् // ततोडमी खयमुनाज्य, ययुटीपं केटाहकम्॥ षोडशस्वर्णकोटीना, लान्नस्तेषामिहानवत् // ततः मुदिताः सर्वे, 'प्रेचेलुःस्वपुरं प्रति // 61 // अंतरा दैवतो वाताःप्रतीपा जझिरे बुधौ // ततःकंकपोत, नैदिप्तस्तुपुनःपुनः // 6 // ध्ये आवेला ते कुमारोए करीयाणाने वेचता छता वेपार चलाव्यो. // 58 // ते वखते त्या दैवयोगथी राजाना छोकरा रोगथी मृत्यु पाम्या अने तेथी "एक हाथी द्वीपथी वीजा द्वीप लेइ जवो नहि." एवी राजानी आज्ञा थइ. // 5 // // हाथीयो नहि मलवाथी तेओ त्यां शोल वर्ष रह्या. पछी एओ पोतानी मेले बंधु लइने कटाहक नामना द्वीपे गया.॥ 60 // अहिं तेमने शोल कोड सोना म्होरनो लाभ थयो; तेथी हर्ष पामेला तेओ पोताना न गर नरफ चाम्या... ..रमने मगरपां योगी तो Jun Gun Aaradhak Trust room.com TITIT
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. उच्छळवा लाग्यु. // 62 // वलो ते वखते तेओनां हृदयने विदारी नाखनारो मेघ गाजवा लाग्यो, तेथी ऊख पामता एवा ते सत्तरे कुमारो विचार करवा लाग्या के-॥ 63 // आपणे पूर्वे बाल अवस्थामां क्रीडा करवापणाने लीधे कांइ पुण्य करी शक्या नहि यने त्यार पछी वेपारथी आपणुं मन व्याकुल थइ. गयु. // 65 // विवेकवंत एवा ते धनदलना पुत्रपणाने पामेला आपणे काइ पुण्य करयुं नहि, तेथी आपणो जन्म निरर्थक गयो. // 65 // वली ते वखते ते मुनिना वचनथी आपणे जिनपूजन करयुं डे, तेदा गर्ज पर्जन्यस्तेषां हैदयपाटकः // खिताश्चितैयामासुस्ततः सप्तदशापि ते // 63 // ने लीलावतया पूर्व, पुण्यं किंचिपार्जितम् // ततश्च व्याकुलं जातं, व्यवसायेन मानतम् 65 धनदत्तस्य तस्यापि, पुत्रैर्वृत्वा विवेकिनः॥ अस्मानिन कृतं पुण्यं, गतं जन्म निरर्थकम् 65 तदा तस्य मुनेर्वाचा, विहितं जिनपूजनम् // तदेतदवलंवोऽस्ति, तत्पादाःशरणं च नः॥६६॥ त्यं चिंतयतां तेषां, बोहित्थं बुंडतिस्म तत् // अन तेषां गतिं वक्ष्ये,श्रूयतां नो प्रेथक् प्रथक् // येन पूर्व प्रनोः स्नात्रं, कृतं तस्य निगद्यते // अत्रीस्ति नरतोत्रे, पुरं पद्मपुरानिधम्॥६॥ आनंदस्तत्र नूपोऽनूदानंद इव मूर्तिमान् // जयंतीनाम तैपट्टदेवी देवीचे रूंपतः // 6 // * दैत्ताख्यः श्रेष्ठिसूस्तस्या, नदरे सेमवातरत् // स्वप्ने सरोवर पूर्ण, तूर्णमालोकितं तया // 7 // * माटे तेज आपणने आधार छे, अने ते जिनेश्वरना चरणो आपणुं शरण छ. / / 66 / / ए प्रमाणे विचार करता एवा ते कुमारोनुं वहाण दूडी गयु. (श्रो नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के,) हे राजन् ! हवे ते सत्तर - दा जूदा गात कडेछु ते तु सांभल. // 67 // पूर्वे जेणे प्रभुने स्नान करयुं छे, तेनी गति कहेवाय छे. 2 आ जरतक्षेत्रमा पद्मपुर नामर्नु नगर छे.॥६८॥ ते नगरमां जाणे मूर्तिमान आनंद पोतेन होयनी! एवो आनंद नामनो राजा हतो. रूपथी जाणे देवी पोते होयनी! एवी ते राजाने जयंती नामनी पट्टराणी हती. // 69 // | जयंतीना उदरने विषे ते शंठना दत्त नामना पुत्रनो जीव अवतरचो. ते वखते राणीचे तुरत स्वमामां पाणोथी Jun Gun Aaradha Trust
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________________ चरित्र // 2 // P.PA. Gunratnasuti MS गुण भरपूर एवं सरोवर दोठं. // 70 // तेज वखते राणीये पूछयुं एटले राजाए स्पष्ट कडं के, “हे देवी! हमणां लो- कमां दुकाल पडवानी वात चाले छे. // 7 // वळी जोशी लोकोए म्हारी आगल पण सर्व प्रकारे एमज कह्यु छे के, “मेघ वृष्टि करशे नहि, माटे धान्यादिकनो संग्रह करवो." / / 72 / / परंतु हे देवो! त्हारा आ स्वप्नथी मेघ दृष्टि करशे अने अमारा कुलने आभूषणरूप पुत्र पण अवतरशे. // 73 // पछी हर्ष पामेली राणी सुशोभित एवा पोताना स्थाने गइ. वली तेज अवसरे मेघो पण आकाशमां चडी आव्यो. // 74 // वीजलीयो झवकारा तदेवं च तया पृष्टः, स्पृष्टमांचष्ट पतिः॥ सांप्रतं विद्यते देवि, लोके निदसंकथा // 1 // सांवत्सरैमाप्यग्रे, प्रोक्तमस्तीति सर्वथा // वृष्टिं ने कर्ता पर्जन्यः कार्यो धान्यादिसंग्रहः 72 स्वप्नेनानेन ते देवि', मेघो वृष्टिं करिष्यति // अस्मदीयकलोत्तंसः पुत्रोऽप्यवतरिष्यति॥७३॥ IN ततोऽष्टा ययौ देवो, स्वस्थानं समलंकृतम् // तदैव जलदैश्चापि", गंगनं समलंकृतम् // 7 // फात्कारं विद्युतश्चक्रर्घना गर्जितर्मुर्जितम् // तत्र सर्वत्र देशेऽन्महीवृष्टिनिरंतरा // 7 // सरसीः सारसैः सारा, सरसा नीरसारसा // वारिदा वारिदानाय, विराविधुस्तदा // 6 // हदा तेदा नृपो ध्यावेहो स्वप्नस्य सत्यता // नाग्यवत्ता च पुत्रस्यार्वतीर्णस्य प्रियोदरे // 7 // | अथ पूर्णेषु मासेषु, सा रोझी सुंषवे सुतम् // सुंदरं शुनवेलायां, गुणलक्षणसंयुतम् // 7 // नृपस्तस्योत्सवं कृत्वा, जनैः प्रमुदितैः समम् // मेघनाद इति स्वप्नानुसारोदैनिधां दधौ॥९॥ करवा लागी, मेघो अतिशय गर्जना करवा लाग्यो अने त्यां मर्व स्थानके अखंडित महावृष्टि थइ. // 75 // वे वखते तलाव पक्षीयोथी श्रेष्ट थयां, जलकमलो सरस थयां अने मेघो जल आपवा माटे जाणवंत थया. // 6 // ते वखते राजा विचार करवा लाग्यो के, "अहो ! स्वप्ननु सत्यपणुं आश्चर्यकारी छे अने प्रियाना उदरने विषे अवतरेला पुत्रनु भाग्य पण आश्चर्यकारी छे. // 77 / / पछी मास पुरा थया एटले ते जयंती राणीये शुभ अवसरे गुण लक्षणवंत एवा सुंदर पुत्रने जन्म आप्यो. // 78 // राजाए हर्पदंत एवा माणसांनी माथे जन्ममहोत्सव Jun Gun Aaradhak Trust // //
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________________ PPA, Gunnanasuti MS a करीने ते पुत्रनुं स्वप्नाना अनुसारथी 'मेघनाद' एवं नाम पाडयु. // 7 // पछी अनुक्रमे वृद्धि पामतो ते कु मार कलाधरनी पेठे सर्व कला शिख्यो, परंतु कपटरहित थयो. // 80 // पछी उत्तम-युवावस्था पामेला, स्त्रीयोने मनोहर, राज्यभारने धारण करवा समर्थ एवा ते पुत्रने जोइ राजा विचार करवा लाग्यो. // 8 // पलि आव्या पहेलांज सर्वे पूर्वजोए चारित्र लोधुं हतुं, म्हारे आवो धुरंधर पुत्र छतां आ राज्य करवं योग्य नथी. // 8 // ए प्रमाणे विचार करी ते आनंद राजा सवारे पुत्रने राज्य आपोने पोते दीक्षा लइ तपथी कर्म भेदी क्रमेण वैईमानोऽथ, स केलाधरवकलाः॥ संकलाः कलयामास, किंतु कालुष्यवर्जितः॥णा तारं तारुण्यसंप्राप्तं, मानिनीनां मनोहरम् // तं वीदय नृपतिर्दध्यौ, राज्यनारधुरंधरम्॥१॥ A अदृष्टपलिताः सर्वे, पूर्वजा जगृहुतम् // इदृशे सति पुत्रे में, रोज्यमेतत्र युज्यते // 2 // इति ध्यात्वा नृपःप्रातस्तस्मैराज्यं प्रदाय सः॥ दीक्षां 'गृहित्वा तैपसा, कर्म नित्वा शिवं ययौ॥ मेघनादमदीपाले, प्रजाः प्रालयति तितौ // देशा न मुंक्ता मेघेन, काले वृष्टिविधायिना। कराले ग्रीष्मकालेऽसौ, सिंहनामनरेश्वरम् // देशक्लेशकरं श्रुत्वा, चचाल सह सेनया // 5 // * मदाटव्यां गते 'सैन्ये, जलं पाप न कश्चन // नंदी नै निरा नोत्रं, पो नै सरोवरम् // शुष्यकंगस्तृषाक्रांताः, श्रांता ब्रांता वनेऽखिले // रत्नत्वं कथयामासुर्जलस्यैवं जनास्तर्दा // नांखी मोक्ष पाम्यो. // 83 // पृथ्वी उपर मेघनाद राजा प्रजानुं पालन करतो हतो ते वखते अवसरे वृष्टि करनारा मेघ कोइ देशोने वृष्टि करया विना त्यजो देता नहि. / / 84 // ए मेघनाद भयंकर उनालानी ऋतुमा सिंह नामना राजाने देशमां उपद्रव करनारो सांभली सेनासहित चालो निकल्यो. // 85 // अनुक्रमे सैन्य म्होटा अरण्यमां पहोच्यु, पण त्यां क्याई जल मल्युं नहि. ए महा अरण्यमां नदो, झरणा, कूवा के सरोवर काई नहोतुं. // 86 // सुकाई गयेला कंठवाला, तरसथी आकुल व्याकुल थयेला, सघका वनमां भटकवाथी थाकी Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्र. PP.AC.Gunratnasuri M.S. गयेला माणसो ते वखते जलनेज रत्नपणुं कहेवा लाग्या. कडुं छे के. // 87 // पृथ्वीमांजल, अन्न अने सद्वचन ए त्रण रत्न छे, परंतु मूढ पुरुषोए पाषाणना ककडाने रत्न एवू नाम आप्यु छे. // 88 // ते वखते मेघनाद विचार करवा लाग्यो के, “हवणां हूं विद्यमान छतां पण मेघ वरसाद न वरसावे तो पछी म्हारु मेघनाद एवु नाम निरर्थक शामाटे रहे, जोईये ? " 89 // राजा आम विचार करतो हतो, एवामां सेनानी उपर गाढ एवा मेये दृष्टि करी; तेथी लोको हर्षथी ते राजानेज वखाणवा लाग्या. // 90 // पछी ए मेघनाद राजाए शत्रुन जाता पंथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जेलमनं झुन्नाषितम् // महःपाषाणखंडेष, रत्नसंझानिधीयताजा मेघनादस्तदा ध्यौ, मयि सत्यपि संप्रति // मेघोऽपि न जलं देद्यात, कथं नाम निरर्थकम् // इति चिंतयति मापे,सैन्योपरि घेनो धनः॥ वृष्टि चक्रे दालोको, नेपमेव शशंस तैमाए॥ रिपुं जित्वा सुखनवे, गत्वासौ नगरं निजम् // पछानिनं साधुचं तत्र संमागतम्॥१॥ A अटव्यां मम सैन्यस्योपरिष्टादेव वारिदः।। ष्टिं चकार को हेरचें चित्रमिदं महताए। मुनिःप्रोचे नवान् पूर्वनवेऽत्र हस्तिनापुरे // |ष्ठिनो धनदस्य, दत्तनामा सुतोऽजनि // "विहिता तेन सामग्री, जिनस्य मात्र हेतवे॥ कालेंबधौ स मृत्वान्नस्त्वमनिंदनृपांगजः॥एव अंतरेऽत्रं नृपोऽवादीकुंत्र तहस्तिनापुरम् // यतः योनिधौ गत्या, मृत्वा चौहमिहानवम् // अने मुखथी पोताना नगर प्रत्ये जईने त्यां आवेला ज्ञानि मनिचंद्र गुरुने पूछयं के. // 91 // " अरण्यमा म्हारा सैन्यनी उपर ज मेघे वृष्टि करी, तेनुं कारण शुं ? ए मने म्होर्नु आश्चर्य छे. // 92 // मुनिये कह्यु. "तुं पूर्व भवन विषे आ भरतक्षेत्रने विपे हस्तिनापुरमा धनदत्त शेठनो दत्त नामनो पुत्र थयो हतो. // 93 // ते दत्ते श्री जिनराजना स्नात्रने माटे सामग्री करी हती. पछी ते दत्त अवसरे समद्रमा बडी मरीने तं पोते आनंद राजानां पुत्र थयो छे / / 94 / / आ वखते वचे राजा बोली उठयो के. " ते हस्तिनापुर क्या छ ? के ज्यांथी हु समुद्रमा जई Jun Gun Aaradhak Trust // 22 //
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________________ P.P.AC.Gunratnasus M.S. मृत्यु पामीने आहे उत्पन्न थयो छु." // 95 // मुनिये को "अहिं एक नामथी बहु नगरीयो छे,माटे ते हस्तिनापुर जूदुं अने कुरुदेशमां पण जूदं." // 96 // राजाए " आपे प्रस्तुत कयु." एम कर्दा एटले मुनिये कह्यु के," हे भू पाल! विश्वपति एवा जिनेश्वरनी पूजानुं फल सांभल. // 97 // पूजाना प्रभावथी राज्य तो स्वाभाविक पण Kआवी मले छे, पण स्नात्र पूजाना विशेषपणाथी मेघ त्हारा वश्य थयो.॥९८॥ चारे तरफ दुकालनी वात चा लती हती एवामां त्हारो जन्म थयो एटले मेघे वृष्टि करी, तेथी तुं मेघनाद एवा नामथी प्रसिद्ध थयो छे. // 19 // मुनि गौ वहुन्यत्र, नगराण्येकनामतः // हस्तिनापुरमन्यनदेन्यच कुरुमंडले ॥ए६ // नक्तं प्रस्तुतमित्युक्ते, नृपेण मुनिपुंगवः // जगौ फैलं जगन्नाथपूजायाः अ॒णु नूपते // 9 // | पूजाप्रत्नावतो राज्यं, स्वन्नावादपि जायते // स्नात्रपूजाविशेषेण जलदस्ते वशंवदः ॥ए॥ तवावतारे उनिहवा यामपि सर्वतः॥ वृष्टिं चक्रे घनस्तस्मान्मेघनादाख्यया वान्॥एण त्वयि पालयति कोणी, उनि न नवेल्क्वंचित् // अंटव्यां तु तदा वृष्टिवितेने वैनदेवतैः॥ | ऐकोपि पूजा सफला, बहोनां कि निगद्यते // विंशतिस्थानकैरहन्ने केनापि च जायते // 11 // सर्वत्र शस्यते नावः, पुण्यकर्मणि पते // नावेनै घृतेनेव लोज्यं तत्सफैलं नवेत्॥१०॥ मेघनाद इति श्रूत्वा, स्मृत्वा पूर्वनवं निजम् // मुनि नत्वा पुनः प्रोचे,"विशेषाईर्ममादिश॥ हे राजन् ! तुं पृथ्वीनुं पालन करीश त्यां सुधी क्यारे पण दुर्भिक्ष थशे नहि. वळी ते वखते अरण्यमां वनदेवताए वृष्टि करी हती. // 100 // एक एवीय पण जिनपूजा फलवाली छे, तो पछी बहु पूजानी तो वातज शी करवी. वली एक वखते पण विशस्थानकथी तीर्थकर थायछे. // 101 // हे भूपाल ! सर्व स्थानके पुण्य कार्यमां भाव वखणाय छेवली जेम घीथी भोजन सफल थाय छे तेम भावीज ते पुण्यकार्य सफल थाय छे." // 102 // मेघनाद ए प्रमाणे मुनिनां वचन सांभली तेमज पोताना पूर्व भवने संभारी अने मुनिने नमस्कार करीने फरी /
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________________ चरित्र, PRAD, Gunratnasuri M.S. गुणण A बोल्यो के,“ मने विशेष धर्म संभलावो." // 103 // पछी मुनिये सम्यक्त्व मूल बार एवाय पण व्रत कह्या अने ते राजाए हर्षथी ग्रहण करयां. // 104 // पछी मुनिने नमस्कार करी घरे जई दीर्घकाल सुधी पृथ्वीनू पालन // करी अने छेवट पद्म पुत्रने राज्य आपीने ए मेघनाद राजाए चारित्र लीधुं. // 105 // (श्री नरवमो केवली गुणवर्माने कहे छे के,) हे राजन् ! संयमथो सौधर्म देवलोकने पामी अने त्यां सुख भोगवीने पछी चवी गयेलो ते मेघनाद त्हारो पहेलो प्रथम राजा नामनो पुत्र थयो छे. // 106 // तंतः सम्यक्त्वमूलानि, व्रतानि हादशापि हि // मनिरारोपयामास, जग्राह च मुदा नृपः। मुनि नेत्वा गृहं गत्वा, पालयित्वा चिरं नवम् // पद्मपुत्राय रोज्यं च, देवासी संयम ललौ॥ संयमात्प्राप्य सौधर्म, सुखं नुक्त्वा ततश्युतः॥ आद्यःप्रथम राजाख्यस्तायं नंदनोऽवत्॥ // इति स्नात्र पूजायां दत्तकथा.॥ कृतं विलेपनं येन, गतिस्तस्यार्थ कथ्यते // अत्रास्ति नरतत्रे, पुरी चपो गरीयसी // 17 // तंत्र श्रीनंदनो राजा, सोमश्रीस्तस्य च प्रिया // सोमैःश्रेष्टीचं तस्यासीईर्मादत्रीसितातिधीः श्रीमतीकुदिसंनूतश्चस्तस्य सुतोऽनवत् // निजान्वयनन्नोदेशे, नवीन इव चंमाः॥१०॥ साहित्ये लक्षणे तर्के, पन्नाषावपि कौशलम् // चशे बनव निस्तंमुपाध्याय प्रसादतः॥ अहं स्वकीयध्येणोपार्जितेन करग्रहम् // कस्मिीति हदि ध्यात्वा, सार्थः संयतिस्म सः॥ हवे जेणे प्रभुने विलेपन करयु छे तेनी गति कहुं छु. आ भरत क्षेत्रमा गरीष्ट एवी चंपा नामनी नगरी छे. // 107 // त्यांश्री नंदन नामनो राजा हतो,तेने सोमश्री नामनी स्त्री हती अने तेने धर्मने विषे निश्चल बुद्धिवालो सोम नामनोशेठ हतो.॥१०८॥ ते सोम शेठने श्रीमती स्त्रीना उदरथी उत्पन्न थयेलो अने पोताना वंश रूप आकाशना मध्यभागमा जाणे नवीन चंद्रमा होयनी? एवो चंद्र नामनो पुत्र थयो.॥१०॥ चंद्र अनुक्रमे गुरुना प्रसादथी साहित्य, लक्षण, तके अने छ भाषामा पण कुशल तेमज आलश्य रहित थयो॥११०॥ पछी "हं म्हारा पोताना मेलवेला धनथी विवाह Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPA Gunun MS करीश." एम हृदयमा विचार करीने ते चंद्रे सार्थ सज्ज करयो. // 111 // उत्तम बुद्धिवालो ते चंद्र पिताना रजा लइ चंद्रावती नगरी प्रत्ये जतो छतो अखंडित प्रयाणथी ते नगरी प्रत्ये पहोच्यो.॥ 112 // त्यां वेपारमा कुशल अने जिनधर्मने विषे तत्पर एवा ते चंद्रे वासणनी वखार भाडे लइ वेपार चलाव्यो. // 113 // कोइ वखते उनालानी रुतुमां कोइ कारणने लीधे ए चंद्र उद्यान्मां गयो हतो, एवामां प्रगट भयंकर वायु वावा लाग्यो. // 114 // चारे तरफ प्रसरता वायुथी वंटोलीयो थयो एटले ते चंद्र एक झाडनी नीचे उभो रह्यो एवामां संध्या | जनकस्यानुमत्या से, पुरीं चंशवतीं प्रति // गचनवचिन्नगमनस्तां अँगामानिरामधीः॥११॥ गहीत्वा नांडशाला से, व्यवसायविचक्षणः // अंकरो,व्यवसायं च जिनधर्मपरायणः॥११३॥ कदाचिग्रीष्मकालेऽस्य, वने केनापि हेतुना // गतस्य प्रगटा वातावली , विकैंटान्नवत् // धूलीरमणेमेवासीत्तया प्रसृतयोन्नितः॥ तरोमले स्थितस्यास्य संध्यायाः सेमयोऽनवत् // तेरोपरि संस्थायी, नूतो नूतं परं जगौ // अस्माकमाँगतं नूनं, महदेकं कुतुहलम् // 116 // चंज्ञवत्याधिनाथस्य, चाखेरन्नूपतेः // तृतीयदिवसे मृत्यु र्धातकस्य प्रवेशतः // 17 // मृते तस्मिन्नमात्याद्या, एतस्यांतःपुराणि च // वन्हिना मृत्युमाप्स्यंति, महदेतत्कुतुहलम् // श्रुत्वेति सहसोत्याय, चंशे नगरमागतः॥ आगत्य नांडशालायां, चिंतयामास चेतसि // 'येन केनाप्युपायेन, रक्षा स्याद्यादि घ्रपतेः तिथानव्यमिति ध्यात्वा,व्यकोणासर्ववस्तु से॥ समय थइ गयो. // 115 // ते झाडनी उपर रहेला एक भूते बीजा भूतने कयु के, “निश्चे अमारे एक म्होटुं कौतुक आव्युं छे. // 116 // आ चंद्रावती नगरीना चंद्रशेखर राजानुं त्रीजे दिवसे घातकना प्रवेशथी मृत्यु थवानुं छे. // 117 // ते राजा मृत्यु पाम्या पछी तेना प्रधान विगेरे अने अंतःपुर ए सर्वे अग्निमां प्रवेश करी मृत्यु पामशे. ए म्होर्से कौतुक छे." // 118 // भूतनां एवां वचन सांभली चंद्र तुरत उठीने नगरमां आव्यो अने वासणनी वखारे आवीने मनमा विचार करवा लाग्यो. // 119 // " जो जे ते उपायथी पण राजानो रक्षा थाय XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXII Jun Gun Asrachak Trust
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________________ चरित्र. PP A. Gunanasu MS गुण तो सारूं." आम विचार करी तेणे सर्व वस्तु वेची नांखी.॥ 120 // पछी ते राज्यने योग्य एवा पांच रत्न लई सवारे प्रतीहारनी रजाथी राजानी सभामां आव्यो. // 121 // राजाए ते रत्नो जोई तेनुं बहु मान्य करयु अने पूछयु के, तुं कोण छे ? अने क्याथी आव्यो छे ?" पछी चंद्रे राजाने का. // 122 / / हुं चंपा नगरीथी आव्यो टुं, अने आहे वेपार करूं छु. वली म्हारे काइ महाराजानु हित कहे, छे, पण अवसर नथी." // 13 // राजाए कह्यु, " रहारे सांजना वखते आव." एम कहोने रजा आपवाथी ते पोताने ईच्छित स्थानके भोजन रत्नपंचकर्मादाय, राज्ययोग्यमसौ पेंगे // प्राप्तःसन्ना नरेंइस्य, प्रतीहारनिवेदितः // 11 // राज्ञासौ तेर्थे रत्नेषु दृष्टेषु बहुमानित : // 'कस्त्वं कुंतः समेतश्चर्युचे से प्राह नूपतिम् 122 अहं चंपात आयात हास्मि व्यवसायकृत्॥हित च स्वामिनः किंचिद्वाच्यं नावसरः पुनः॥ रोशोचे पश्चिमे योमे,त्वयागंतव्यमित्य॑सौ॥विसृष्टः स्वेप्सिते स्थाने,जुत्वाप्राप्तो नृपांतिकम्॥ प्रोक्तायां गूंपवा यां, जंगौ तं प्रेति नृपतिः॥ शयनं ने कॅरिष्यामो, धर्मण्यपि गृहाईहिः॥ तं विसृज्यं स्वरक्षार्थ नृपस्तस्यौ सचेतनः॥ तृतीयदिवसे रात्रौ, महान् कोलाहलोऽनि // अमुं कुरिकया हेत्वा,भृत्यं यात्ये धावत सुन्नटा धौविता यावत्तीवत्वापि" ययौ च सेः // प्रातः प्रीतिनरा पश्चाकार्य संसदि॥ जगौ में 'जीवितं देतं, जगदानंददायकम् // 1 // करी फरी सांजना वखते राजा पासे गयो. // 124 // त्यां तेणे राजानी बात कही एटले राजाए तेने कर्ष के, "धर्मकार्यने विषे पण हुं घरथी व्हार शयन करीश नहिं." // 125 // एम कहीराजा तेने रजा आपी पोताना रक्षणने माटे सावधान रह्यो. एवामां त्रोजे दिवसे रात्रीये म्होटो कोलाहल थयो. // 126 // पछी ते राजाये रा खेला सेवकने मारीने जतो छतो दोडवा लाग्यो. पछी जेटलामां राज सुभटो दोडया तेटलामां ते मारनार क्याई IAS पण जतो रह्यो, पछी राजाए सवारमा प्रीतिना उत्कर्पथी चंदने सभायां नोलाजी के "में मने जगतने XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Asa Trust पर।
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________________ PPA Gunratnasuti MS आनंद आपनारं जीवितदान आप्यु छे." // 128 // पछो राजाए प्रधानांनी साथे विचार करीने हर्षथी पोतानी चंद्रावली पुत्री सहित अर्धं राज्य चंद्रने आप्यु. // 129 // पछी राजमंदिरनी समीपे तेना मनोहर महेलमां रहेला ते चंद्रना पितानो कोई वखते चंपानगरीथी पत्र आव्यो, ते पत्र चंद्रे वांच्यो. तेमां एम लख्यु हतुं के, // 130 // आ पत्र वांचीने एक वखते त्हारे पाणी पीवाने पण न रोकातां तुरत आर्हि आवदूं." पछी पितानी पासे जवामा उत्साहवंत एवा चंद्रे ते वात चंद्रशेखर राजाने कही. // 131 // पछी राजानी आज्ञाथी ते सांत्र चंद्रावलीने मूकीने चाली निकल्यो अने मार्गने विषे जता एवा तेणे कोई एक नदीने कांठे पडाव करीने दीवआलोच्य मंत्रिनिःसाई, राज्याई मुदितो देदौ ॥'चंशय सुतया चंज्ञवल्या साकं नरेश्वरः॥ रोजसौधांतिके रम्ये, मंदिरे तस्य तस्थुषः॥ आययौ तत्पितुलेखश्चंपातः 'सोप्यवांचयत् // अपीत्वा नीरमप्याशु, त्वयागंतव्यमेकदा // असौ तेत् झापयामास, भूलुजे गैमनोत्सुकः॥ मुक्त्वा चंज्ञवली तंत्र, नृपेणानुमतोऽचलत् ॥गछन् पथि नदीतीरे,स्थित्वासौं दिनमत्यंगात्॥ संध्यायां सरितो दूर, गतः सं त चिंतया // देदे दती कांचिदंगनां शांखिनस्तले // 133 // का त्वं रोदिषि तेनोक्ते, सा जंगौ एंवहं नंदी // अईरात्रे महापुरो, नेद्यामंत्र समस्यति // यास्यति प्रलयं सर्वो, लोकस्ते नैवं रोदिमि // श्रुत्वेति सत्वरं चचचाल संपरिच्चदः 135 पृष्टीतै जनैःप्रोक्तं श्रुत्वा पुरसमागम् // चशेर्दध्याहो कीदृगुपकारः कृतस्तया // 136 // सने निर्गमन करयो. // 132 // पछी ते चंद्र संध्या वखते नदीथी केटलेक दूर कायचिंता माटे गयो, त्यां तेणे वृक्षनी नीचे रुदन करती एवी कोई स्त्री दीठी. // 133 // पछी "तु कोण रुवे छे ? " एम ते चंद्रे पूछयुं एटले ते स्त्रीये कह्यु के, " सांभल. हुं नदी छु. आ नदीमां अधिरात्रे महापुर यावशे. // 134 // तेमां आ सर्वे लोको नाश पामशे. तेज कारणे हुं रुदन करुं छु." ते स्त्रीनां आवां वचन सांभली परिवार सहित चंद्र त्यांची तुरत चाली निकल्यो. // 135 // पछी जता एवा मुसाफर लोकोने पूछवा उपरथी तेओए नदीमां आवेला पुरनी Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण // 6 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. भो वात सांभली चंद्र विचार करवा लाग्यो के, " अहो ! ते स्त्रीये आपणा उपर केवो उपकारकरयो!!! // 136 // // 136 // चरित्र. पछी ते चंद्र कोई रस्तामां विषम एवा वनमां भोजन करवा माटे रोकायो, तें वखते तेना भुख्या एवा सर्वे सुभटो भोजन करवा बेठा. // 137 // ते वखते त्यां पर्वतना भिलोनी धाड मलिन एवा मेघनी मालानी पेठे बाणोनो वर्षाद वरसावती आवी पहोची. // 138 // ते वखते सुभटो व्याकुल थवा लाग्या अने चंद्र पण विचारमां पडयो; एवामां कोई पण घोडा उपर बेठेलो अने महातेजवंत एवो मुभट त्यांथी निकल्यो. // 139 // ते मुभटे भालाथी त्रास पमाडेला सर्वे भिलो पर्वत तरफ नासी गया. परंतु पाछा आवता ते सुभटने कोईये क्याई न विषमे सोऽय कांतारे,नोजनाय स्थितोऽतरा॥'नोक्तुं निविष्टौंःसर्वेऽपिनयास्तस्यहुँधातुराः॥ तेवं गिरिनिल्लाना, धाटी तंत्र समागताः // मलिना मेघमालेव, शरासारं वित॑न्वती॥१३॥ नटेषु व्याकुलेषूच्चैश्चं चिंतातुरे संति // निर्गत: सुन्नटः कापि, ह्यारुढो महाद्युतिः॥ लल्लेन त्रासितास्तेन,सर्वे निल्ला गिरि ययुः।। यावर्त्तमानो नो दृष्टः, सुन्नटः क्वापि केनचित्॥ चंश्चित्रमिदं चित्ते, दानः संपरिछदः // ाजगाम पुरी चपां, पितुश्चके पैरों मुंदम्॥११॥ नोजनार्दनु तातेन, सृष्टं पुत्र तवाध्वंनि // कष्टक्ष्यं समायातं, नद्यां कांतार एव च // 12 // पुत्रोऽवादीत् कथं तात, नवता झायते घई। कथं को वाँ समायातः, पूर्वमेवे ममार्गमात्॥ पिता प्रोचे न कोप्यागाळानामि स्वयमेव हि // पुत्रेण कैयमित्युक्ते', समये कथयिष्यते॥ पण दीठो नहीं. // 130 // चंद्र परिवार सहित चित्तमां आ आश्चर्य धरतो छतो चंपानगरी प्रत्ये आव्यो अनेर पिताने बहु हर्षित करया. // 141 // भोजन करी रह्या पछी पिताए पुछयु. " हे पुत्र! तने मार्गने विषे नदोमां अने अरण्यमां वे कष्ट प्राप्त थयां हतां?"॥१४२॥ पुत्रे का. “हे तात! आपे निश्चे आवात शो रोते जाणी? वा म्हारा आव्या पहेलां शृं कोइ आव्यो छे ? // 143 // पिताए कह्यु. " कोई पण त्हारा पहेला आव्युं नथी. निश्चे हुं म्हारी पोतानी मेले जाणुं छु. पुढे " तमे शी रीते जाणो छो?" एम कर्तुं एटले पिताए कह्यु के, ते // 6 // XXI Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasuri M.S. MAXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX हुं अवमरे कहीश." // 144 // एम कहीने शेठे तुरत पुत्रनी पासे सर्व लखावी लीधु, अने रात्रीये वार्ता करता तेणे पुत्रने पोतानी पासे सूवारयो. // 145 // अर्थी रात्रीये शेठे पुत्रने कयुं. " हे वत्स ! तुं जागे छ के नहिं ?" RSS पछी जागता एवा पुत्रे पोताना पिताने उंचे रहेला दोठा. // 146 // वली एक पृथ्वी उपर सूतेलाने जोई पुत्रे पिताने कह्यु. " हे तात ! हुं तमारां वे रूप देखु छु ते शुं छे ? // 1.47 // शेठे कह्यु. " हे पुत्र ! तने ते वात l कहुं छु. " तुं चंद्रावती गयो त्यार पछी म्हारं शरीर काई पीडायु क थयुं. // 148 // पछी हुं स्वभावथी जम्हारी इत्युक्त्वा श्रेष्ठिना शीघ्र, लेख्यं पुत्रेण कॉरितम्॥अरे स्वापित चौधे, रात्री वाती प्रकुर्वता॥ * अईराने गौ श्रेष्टो, वत्स जागर्षि किं न वा॥'सोऽय जागरितोऽशकोई धं पितरं निम्॥ मौ शयानमेकं चे, दृष्टा सो पितरं जगौ // "किमिदं दृश्यते तात, तेव रूपक्ष्यं मया१४७ श्रेष्टी जंगाद हेवत्स, स्वरूपं कथ्यते तव // त्वयि चंशवतीं यातेऽनन्मे किंचिदेपाटवम् // स्वन्नावेनैवें सम्यक्त्वार्युच्चार स्वयमेव हि // कृत्वा सुतःप्रमोलायाभे भृत्वा सुरोऽनवम्॥ अवधिज्ञानतो ज्ञात्वा स्वरूपं सर्वमात्मनः॥ गृहसूत्राय कायस्व स्तन्दैणादेश्रितो मया // प्रेष्य तंत्र तंतो लेखे, शीघ्रंमाकारितो नवान् // नार्या नटस्य रूपंच, केवा कष्टं निवारितम्॥ कारितं लेख्यक सर्वे, त्वं सदैव सुखी नवेः॥ स्वर्ग यौस्यायंथ स्थातुं, मर्त्यलोके न शक्यते॥ इति प्रोच्य गते तस्मिन् , विद्युतात्कारकारिणी॥शवमेव पुरो दृष्टा, चपुत्कारमौतनोत् // पोतानी मेले स्वम्यक्त्वादिकनो उच्चार करीने सूतो अने रात्रीने विषे मृत्यु पामीने देवता. थयो. // 149 // पछी अवधिज्ञानथी पोतानुं सर्व वृत्तांत जाणोने में गृहसूत्रने माटे तुरत पोतानी पूर्व कायानो आश्रय करयो. // 150 // पछी त्यां पत्र मोकलोने तने तुरत तेडाव्यो. वली स्त्री अने सुभटनुं स्वरूप करीने त्हारं कष्ट नि* वारयं. // 151 // छेवट सर्व लेख पण कराव्यो. तुं निरंतर सुखी था अने हवे हं स्वर्ग प्रत्ये जास्त : देवथी मृत्युलोकमा रहि शकातुं नथी." // 152 / / एम कहीने विजलीनी पेठे झात्कार करतो एपो ते देव चा XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण a PP.AC.Gunratnasuri M.S. ल्यो गयो एटले चंद्रे पोतानी पासे फक्त शबने जोइने पोकार करयो. // 153 // सवारे स्वजनो भेगा यया चरित्र. म एटले ते पितानुं प्रेत कार्य करी अनुक्रमे शोक रहित थयेलो चंद्र चंद्रावती नगरी प्रत्ये गयो. // 15 // त्यां ते बगीचादिकने विषे निरंतर चंद्रावतीनी साथे क्रीडा करतो छतो लीलाथी देदीप्यमान बहु दिवसोने निवृत्त करथा.॥१५५ // कोई वखते चंद्रावली कोइपण रोगथी पीडायुक्त थइ; तेथी तेना शरीरे दुर्गध थवा लागी अने तेथी तेना पिता अने पति बहु दुःख पामवा लाग्या. // 156 // पछी पिता अने पतिये वहु मंत्र तंत्र अने औमिलिते स्वजने प्रातः, प्रेतकार्याणि तस्य सः॥ कृत्वा मेण निःशोकः,पुरी चंज्ञवतीमगात् / | चंज्ञवल्या समं कीडनांकीडादिषु सोऽन्वहम् // वासरान् गमयामास, लीलातिशयनासुरान् // विकारेणान्यंदा चशवली केनापि बाधिता // जाता धुगंधता देहे, पिता नर्ता च खितौ॥ कारयामासतुमंत्रतंत्रौषधपरंपराम् // दिनमेकं गुणे इष्टे, जातो दोर्षस्तथैवें सः // 15 // चके विलेपनं यः प्राग्वसत्तानिधःपनोः॥ सोऽवातरर्तदा तस्याः, कुदो हंसें इवांबुजे॥१५७ तस्मिन्नुत्पन्नमात्रेऽस्या, गंता धुगंधता देणात् // मध्यस्थचंदनेने, प्रत्युतान्त्सुंगंधता // 15 // | तोते कांते चं हृष्टे सा समये सुषुवे सुतम् // चंण स्वसुरेगोपि, केतास्तस्य महोत्सवाः // अनेन चंदनेनेव, कृता मातुः सुगंधता // अतोऽस्य चंदनसार, 'इति नाम "विनिर्मितम् // पध कराव्यां, परंतु एक दिवस गुण देखाया पछी फरी तेज रोग प्रगट थाय. // 157 // (श्री नरवर्मा केवली - गुणवर्मा राजाने कहेछे के,) हे राजन् ! पूर्वे वसुदत्ते जिनराजने विलेपन करयुं हतुं, तेज ते वखते कमलने विषे हंसनी पेठे ते चंद्रावलीना उदरने विषे अवतरयो. // 158 // ते पुत्र उदरमा आव्यो त्यारथीज ए चंद्रावलीनी दुर्गध तुरत जती रही अने वनमां मध्यभागमा रहेला चंदनवृक्षथी जेम वन सुगंधीवालुं थाय तेम उलटी ते सुगंधी शरीरवाली थइ.॥१५९॥ पछी पिता अने चंद्र हर्ष पाम्ये छते ते चंद्रावलीये अवसरे पुत्रने जन्म आप्यो, जेथी चंद्रे अनेसासरा एवा चंद्रशेखरे ते पुत्रना जन्म महोत्सव करया.॥१६०|आ पुत्रे चंदनवृक्षनी पेठे माताने सुगंधवाली करी Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ * PP Guru MS छे, एकारण माटे आपुत्रनुं 'चंदनसार' एवं नाम पाडयु.॥१६१॥ पछी चंद्रशेखर अने चंद्रे अनुक्रमे वृद्धि पामेला तथा कलामां प्रविण एवा ते चंदन सारने युवावस्थामां कमला नामनी राजपुत्री साथे परणाव्यो.॥१६॥कोइ वखते दैवयोगथी चंद्रशेखर राजाने रात्रीदि वस दुःख आफ्नारोदाहज्वर उत्पन्न थयो. // 163 // ते वखते जोशी लोको राजाने सूर्यादि गृहोए करेली पीडा,वैद्यो रोगथी थयेली पीडा अने मंत्रशास्त्री लोको भूतथी थयेली पीडा कहेवा लाग्या. ॥१६॥पाणी, वेलुनुं घर,चंदन अने चंद्रमा ए सर्वे पण ते राजानी पीडा शमाववाने समर्थ थया नहि.॥१६॥ए / वईमानः कमातान्यां, कलाकौशलबंधुरः॥ तारुण्ये कमलाराजपुत्र्याँसौ परिणायितः॥१६॥ अन्यधुंदैवयोगेन, चझोखरनूपतेः // दाहज्वरः समुत्पेदे, दिवारात्रौ हि खदः // 163 // संवत्सरा गृहकृतां, वैद्यार्श्व व्याधिसंन्नवाम् ॥मांत्रिका नूतसंनूतां पीडामाहुर्महीपतेः॥१६॥ सलिलं वालुकासमं, चंदनं चापि चश्माः॥तापं शमयितुं शक्ता, नोवंस्तस्य नृपतेः॥१६॥ नीतायामपि एमास्यां, स्वप्नं लेने नराधिपः॥ वेत्रीति कुलदेव्याह, दौहित्रश्चंदनोऽस्ति ते" तेस्य हस्तेन संघृष्टय, चंदनेन विलेपनम् // कार्य सर्वांगमेतेन, तापः शांति मुंपैष्यति॥१६॥ स्वप्नं लब्ध्वा प्रबुशेऽय,प्रातर्जूपैः प्रकाश्य तम्॥ दौहित्रं निजमाकार्य,विलेपैनमकारयेत्॥१६॥ शांततापे सैति मापे, प्रावतत महोत्सवाः॥ आशीर्वचांसि देदिरे चंदनाय जना मुदा १६ए . चतुर्सानधरोऽत्रागोन्मुनिमुनिस्तदा // तं नं"चं ययौ राजा चश्चंदनसंयुतः // 17 // प्रमाणे छ मास निवृत्त करथा, एवामां राजाए स्वप्न जोयुं तेमां द्वारपाल रूप कुलदेवीये एम कडं के, " त्हारे / चंदनसार नामनो दौहित्र (पुत्रीनो पुत्र ) छे. // 166 // तेना हाथथी चंदन घसावीने सर्व अंगे चोपडवू; तेयी ताप शांति पामशे.॥ 1.67 // आवा स्वमने पामीने पछी सवारे जागी उठेला राजाए ते स्वमनी वात कहीने पोतानी पुत्रीना पुत्रने बोलावीने पोताने शरीरे विलेपन कराव्यु.॥१६८॥ राजा दाहज्वरथी शांत थयो एटले महोत्सवो थवा लाग्या अने माणसो हर्षथी चंदनसारने आशीर्वाद आपवा लाग्या. // 169 // ते वखते Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण ॥श्न PPA Gunrata MS चार ज्ञानना धारणहार मुनि चंद्रसूरि चंद्रावती नगरी प्रत्ये आव्या अने चंदनसार सहित चंद्रशेखर राजा तेमने वंदना करवा गयो.॥१७०॥ त्यां राजाए धर्मोपदेश सांभलीने मुनिने पूछयु के, “चंदनवृक्षनी पेठे आ चंदनसारनो अधिक महिमा शाथी थयो ? // 171 // मुनिये चंदननो पूर्वभव कह्यो के, “हस्तिनापुर नगरमां धनदत्त शेठने वसुदत्त नामनो पुत्र थयो हतो. // 172 // पूजा करचे छते ते चंदनसारे जिनेश्वरने चंदननुं विलेपन करयुं हतुं, तेथी दे चंदननुं सौभाग्य आश्चर्यकारी . // 173 // चंदनसार पण पोतानो पूर्वभव सांभलीने जाति र धर्मोपदेशमाकर्ण्य, मुनि प्रोचे महीपतिः॥ मैहिमा चंदनस्येवं, चंदनस्य कुतोऽधिकः 171 मुनिःपूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे॥ श्रेष्टिनो धनदत्तस्य, वसुदत्तः सुतो जनि // 17 // पूजायां क्रियमाणायां, चंदनस्य विलेपनम् // कृतं जिनस्य तेनास्य, तेन सौभाग्यमनतम्॥ चंदनोऽपि नवं पूर्व, श्रुत्वा जातिस्मरोऽनवत् // विशेषादर्हितं धर्म, 'प्रपेदे मुनिसंनिघौ // चशेखरचं तौ, मुनि नत्वा पुरं गतौ // राज्यं चंदनलाराय, दत्वा प्रविजतां मुंदा // 175 // रोजा चंदनसारोऽपि, प्राज्यं राज्यपालयत् // प्राप्तप्रौढप्रतापोडेपि, प्रजातापहरः परः 176 समये सोमपुत्राय, राज्यं देवा नरेश्वरः // पाल्य संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽनवत् // चिरं सौरव्यानि नुक्त्वासौ, देवलोकार्त्ततच्यतः॥हितीय सिंह नामान्नूतनयस्तव नूपतः॥ | स्मरण ज्ञान पाम्यो, तथा तेणे मुनिनी पासे विशेष अरिहंत धर्म आदरयो. // 17 // // पछी चंद्रशेखर अने चं दनसार बन्ने जणा मुनिने नमस्कार करी नगरमां गया, त्यां चंद्रशेखरे चंदनसारने राज्य आपी हपंथी दीक्षा लीधी.॥ 175 // महा प्रतापवालो छतां पण प्रजाना तापने दर करनारा राजा चंदनसारे पण विस्तारवंत एवा राज्यर्नु पालन करयु.॥ 176 / / पछी चंदनसार राजा अवसरे सौमपुत्रने राज्य आपी पोते चारित्रने पाली अंते सौधर्म देवलोकने विषे देवता थयो.॥१७७॥ हे राजन्! त्यां ते दीर्घकाल सुधी सुख भोगवी अने पछी चवीने त्हारो सिंह नामनो बीजो पुत्र थयो छे. // 178 // // इति विलेपन पूजायां वसुदत्त कथा // enना
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________________ PP.AC.Gunratnasus M.S. म हवे जेणे जिनराज उपर वे वस्त्र चडाव्यां छे तेनुं फल कहुंछं. ते हे भव्यजनो ! तमे भावथी सांभलो.॥१७९॥ आ भरतक्षेत्रने विषे जयंती नामनी नगरी छे, त्यां क्षेमंकर नामनो राजा राज्य करतोहतो, तेने रत्नवती नामनी स्त्री हती.॥१८०॥ हवे ते सुदत्तनो जीव मृत्यु पामीने ते रत्नवतीना उदरने विषे आव्यो, अने तेणे अवसरे उत्तम लक्षणवाला पुत्रने जन्म आप्यो. // 181 // क्षेमंकर राजाए महोत्सव करीने ते पुत्रनु रत्नध्वज एवं प्रीतिकारी नाम पाडयु. // 182 // माता पिताना इपनी साथे नवीन चंद्रनी पेठे वृद्धि पामता ते रत्नध्वजे सर्वे अथ येन कृतं वस्त्रयुगलारोपणं जिने // कथयामि फैलं तस्य, नव्या गुणुत नीवतः॥१७॥ अत्रास्ति चरतोत्रे, जयंती नामतः पुरी // तत्र देमंकरो राजा, तस्य रत्नवती प्रिया॥१७॥ जीवस्तस्य सुंदत्तस्य, मृत्वा तत्कुदिमागतः // तया च सुषुवे पुत्रः, समये °नलक्षणः // कृत्वा महोत्सवं तस्य, पुत्रस्य पृथिवीपतिः॥ रत्नध्वज इति प्रीतिधाम नाम' विनिर्ममे // - साकं 'पित्रोः प्रमोदेन, वैईमानो नवेंदुवत् ॥कलाः सर्वाः स जंग्राह, ताः पुंसों किले मनम्॥ सोऽन्येानीमग्रीष्मर्ती, निशायां धर्मपीडितः॥आसीनश्चशालायां, चंद्रपादानसेवत॥१॥ 'मित्रैः साकं से कुर्वाणः, सुन्नाषितकुतुहलम् // प्रेमीलया पॅरिस्पृष्टलोचनद्वितीयोऽनवत् // सुप्तेषु तस्य मित्रेषु, तत्रैव कलकुटिमे // अईरात्रेऽचैलचंचूडचे खेचराग्रणी // 16 // * तेस्योत्तरीयमुत्तंगविमानवलन्नीस्थितम् ॥पात वातवेगेन, सौधे रत्नध्वजोपरि // 17 // | कलाओनो अभ्यास करयो के ते पुरुषोने निश्चे आभूषण छे. // 183 // एक दिवस भयंकर उनालानी रुतुमा रा त्रीने विषे तापथी पीडा पामतो ते रत्नध्वज चंद्रशालामां वेठो छतो चंद्र किरणोनी शीतल हवा लेतो हतो.॥१८॥ बली मित्रोनी साथे सभापितन कतहल करतो एवो ते रत्नध्वज निद्राथी व्याप्त एवा वे नेत्रवालो थयो. अर्थात उघी गयो. // 185 // वली ते चंद्रशालामां तेना मित्रो पण उघी गया, एवामां अर्द्ध रात्रे विद्याधर राजा चंद्रचूड त्यांथी निकल्यो. // 186 // ते चंद्रचूडनु उंचा विमानना काष्ट उपर रहेलुं पासे राखवानुं वस्त्र वायुना वेगथी
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________________ चरित्र, PP.AC.Gunratnasuri M.S. गुण ते महेलने विषे रत्नध्वजना उपर पडयु. // 187 // पछी जागी उठेला रत्नध्वजे चंद्रकिरणोथी पडेलं होयनी? एवं अने चंद्रकिरणोनी साथे हरिफाइ करवा योग्य तेमज दिदीप्यमान एवा ते अद्भुत दिव्यवस्वने दीखें. // 188 पछी रत्नध्वज ते वस्त्रने संताडीने पोतानी शय्यामां सूइ गयो अने सवारे जागी उठीने ते वस्त्रने लइ वारंवार जोवा लाग्यो. // 189 // ते वखते ते तेवू वस्त्र खभे नाखीने, परंतु तेवा पहेरवाना वस्त्र विना खेद पामेलो ते राजपुत्र रत्नध्वज पोताना मनमा विचार करवा लाग्यो के. // 17 // मारे पहेरवाना वस्त्र विना तेवा पासे सोऽथ जागरितोऽडाँकी नैति'व्यं वैस्त्रमद्भुतम् ॥चंशंशुन्निरिव च्यूतं,लक्ष्यं चंशशुन्निःस्फुरत्॥ संगोप्य तेहुकूलं से स्वीयं तत्पमशिश्रियत् // प्रातः बुइस्तवावा, पश्यतिस्म पुनःपुनः॥ * कृत्वोत्तरोये तत्ताहक्, परिधानं विना तदा॥विर्षणश्चिंतयामास, निजचेतसि राजसृः॥१॥ अंतरीयं विना ताहगुत्तरीयेण किं मम पंचदोझिततल्यस्योपरि चंशेर्दयेन किम् // 11 // ईतीयीकं विना योग्यमेकेन चिरेणे किम् ॥'वरं मुखं वेदेककुंझलार्दप्यकुंडलम्॥१७॥ एवं चिंतातुरं चित्तं, द॑धानं राजनंदनम् // विलोक्य सुहृदः प्रोचुवैलेक्ष्यं "किमिदं तव // एतेन्यः किमयुक्तेन, प्रोक्तेन वेचसाधुना॥साधुना वैचनेनेति', तेन तेने मनैःसुखम् // 1 // ततो मनोविनोदाय, वने क्रीडाकुतूहलैः॥मि त्रैः संह जंगामांसी,वासौकसि विषसधीः॥१९॥ राखवाना वस्त्रथी शुं ? कारण ओछाड विनानी सय्याना उपर चंद्रवान प्रयोजन शुं होय ? अर्थात् ओछाड विनानी शय्या उपर चंद्रवो बांधवा जेवू थायछे. // 191 // योग्य एवा बीजा वस्त्र विना मनोहर एवा एक वस्त्रथी शुं ? एक कुंडल पहेरवा करतां कुंडल विनानुं रहेवू ते वधारे सारं छे.॥ 192 // आ प्रमाणे चिंतातुर चित्तवाला राजपुत्रने जोइ मित्रोए कह्यु के, " तमे आq विलक्षणपणुं केम पाम्या छो? // 193 // हवणां आ मित्रोए कहेला अयोग्य वचनी शुं आम थयोछे ?" जो एम होय तो तेनार्थीज कहेवरावेलां सारां वचनथी त्हारा मनने सुख उपजाव्यु.॥ 19 // // निवास स्थानने विषे खेदयुक्त बुद्धिवालो ते रत्नध्वज पछी क्रीडा कुतुहलथी Jun Gun Aaradhak Trust HERE
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS मनना विनोदने अर्थे मित्रो सहित उद्यानमां गयो. // 195 // जेम गजराज नर्मदा नदीना कांगगनुं स्मरण करे तेम त्यां तलावने विषे अने वाव्यने विष कमलना तंतओने जोतो छतो रत्नध्वज पेला वस्वनंज ध्यान करवा ला ग्यो.॥ 196 // ए रत्नध्वज केलना वनने विषे क्रीडा करतो छतो तेना तंतुओनी पंक्तिने जोइने जाणे पोताना इष्टदेवतुं स्मरण करतो होयनी ? एम ते दिव्य वस्त्रने संभारतो हतो. // 197 // ते रत्नध्वज शतपत्रोनां पुष्पोने विषे उज्वल एवी तंतुओनी पंक्ति जोइने जेम मंत्रनो जाण पुरुष मंत्र, स्मरण करे तेम दीर्घकाल पर्यंत वस्त्रनुं सरस्यां दीर्घिकायां चं, पद्मतंतून विलोकयन् ॥ऽकूलमेवें संस्मार,रेवाकुलमिवं द्विपः॥१६॥ नासु कोमितं कुर्वनसौ ततंतुसंततिम् ॥विलोक्य वस्त्रं संस्मार, तदिव्यं देवतामिव॥१॥ पुष्पेषु शतपत्रीणां, केशरश्रेणि मुज्वलाम्॥ वीक्ष्यं वस्त्रस्य सोऽस्मान्मंत्रझोमंत्रर्वञ्चिरम् // * एवं तत्रैवं संध्यायाः समयः समजायत // रंजीगृहं समाश्रित्य विशश्राम नरेंड्नू // 1 // सुप्तेसु सर्व मित्रेषु, शर्वाँ वर्यवाससा // कृतावासेन तैच्चित्ते, निज्ञ रं निवारिता // 30 // अईरागते सोऽथ सुंश्राव श्रवणोत्सवम् // गीतेन मिश्रितं वाद्यहृद्यं नाट्यध्वनि क्वचित् // नत्थाय तस्य वीदयार्थ, ततो गचन्नतुबधीः // पुरो विलोकयामास, देवतान्नवनं वने॥२०॥ तस्मिन् गते मनुष्यत्वानदणं प्रेदणं स्र्थितम् // असौ विचारयामास, नाट्यं दैवतमेतत् // ध्यान करवा लाग्यो. // 198 // ए प्रमाणे क्रीडा करता त्यांज संध्यासमय थयो, तेथी राजपुत्रे केलना मंडपनो आश्रय करीने विश्रांती करी.॥ 119 ॥रात्रीने विषे सर्व मित्रो मूह गया, पण ते रत्नध्वजना चित्तने विषे निवास करी रहेला श्रेष्ट वस्त्रे ते राजकुमारनी निद्रा दर करी. // 200 // पछी ते राजकमारे अझै रात्री गये बते कोई ठेकाणे कानने उत्सवरूप, गीत सहित अने बाजींत्रोथी मनोहर एवा नाचना शब्दने सांभल्यो.॥२०१|| पछी उत्तम वुद्धिवाला ते कुमारे उठीने ते नाचने जोवा माटे जता छता आगल वनने विषे देवमंदिरजोयु.॥२०२॥ राजकुमार मंदिरमा गयो एटले ते पोते माणस जाति होगी तुरत नाट्य बंध थयु, तेथी ते राजकुमार विचार Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण DEON PP.AC.Gunratnasus M.S. न करवा लाग्यो के, “निश्चे ते दिव्य नाटक हतुं. // 203 // मंदिरनी मध्यमां आवीने त्यां मूर्तिने शोधता एवा चरित्र ते राजकुमारे पोतानी सन्मुख सिंहासन उपर बेठेलां लक्ष्मीदेवीने दोठां.॥२०४॥ “घर प्रत्ये रहेलाने इष्ट फल आपनारो हे लक्ष्मीदेवी!' एम कहोने राजपुत्र त्यां आसन पाथरोने सूतो.॥ 205 // पछी ते राजकुमारना पुण्यना वशथी प्रसन्न थयेली लक्ष्मीदेवीये सवारना वखते हर्षथी दिव्य वे वस्त्र तेना खोलामां मूक्यां. // 206 // पछी सवारे ते मनोहर दिव्य बे वस्त्रने जोइ रत्नध्वजे तेज वखते एक वस्त्र पहेरयुं अने एक पासे राख्यु.॥२०७॥ मध्येनवनमागत्य, तंत्र मूर्ति गवेषयन् ॥पुरो विलोयलक्ष्मी, देवतामासनस्थिताम् // 4 // हेलक्ष्मी देवते गेहमासीनः कामितप्रदे // इत्युक्त्वों पूरयामासासँनं तत्रै नूपन्नूः // 5 // तेस्य पुण्यवशात्प्रोता, प्रैनातसमये रैमा // दिव्यं वस्त्रद्वयं रंगाऽत्संगाश्रितमातनोत्॥२०६॥ प्रातर्विलोक्य तद्वस्त्रद्वंद्व दिव्यं मनोहरम् // अंतरीये कैरोतिस्म, "वोत्तरीय तदेव सः॥७॥ तैत्ताहग्वेषधारी सँ, 'मित्रैः सह पुरं गतः // सन्नायां नूपतेराँगात्पनीनरविन्नाकरः // 20 // नत्वा निविष्टं तं नूपः स्पष्टमाचष्ट किं नवान् // वने तस्थौ यतो दोस्य सौख्यं नैवति देवतः॥ पुत्रः प्राह ततस्तात, "नैवं प्रायः करिष्यते // नेपोऽयं वीक्ष्य तेद्वस्त्रे, 'तषं हृदयं देधौ॥ स्वामिवेशाधिको वेशोऽन्येषामिद ने युज्यते // अयं स्वयं न जानाति, तत्पुरः कस्य कथ्यते॥ A तेथी तेवा वेशने धारण करनारो अने तेजना समूहथी सूर्य समान ते राजकुमार मित्रो सहित नगर प्रत्ये आवी ने राजसभामां आव्यो. // 208 ॥त्यां पिताने नमस्कार करी वेठेला ते राजकुमारने भूपतिये स्पष्ट पूछयु के, "तुं शुं बनने विषे रह्यो हतो के, जेथी तने हाथमा रहेढुं सुख दैवी प्राप्त थयुं?' // 20 // पछी पुत्रे कयुं. " हे तात! हवे घणुं करोने हुं ए प्रमाणे नहि करूं." पछी राजाए ते वने वस्त्र जोइने मनमा तेनो द्वेप राख्यो. // 210 // * * अहीं वोजाओने राजाना वेशथी अधिक वेश न घटे; परंतु ते वात आ पोते जाणतो नथी, तेथी ते वात कोनी Jun Gun Aaratha Trust
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________________ P.P.A. Gunatnesut MS आगळ कहेवी !!" // 211 // ए प्रमाणे विचार करोने सभा विसर्जन थया पछी राजाए पुत्रने कयु के, "हारे ए वस्त्रो क्यांथी आव्यां छे, ते कहे ? // 212 // “आवेलां शुं कहेवाय छे ?" एम लीलाथी वोळतो कुमार राजाने नमस्कार करी पोताने घेर आव्यो.॥ 213 // भोजन करया पछी ते कुमार विचार करवा लाग्यो के, "निश्चे सभामा जता छतां म्हारो योग्य वेश पण राजाने रुच्यो नहि. // 21 // ए प्रमाणे विचार करीने रत्न| ध्वजे यत्नथी ते बन्ने वस्त्रोने गोपीने पोतानी दासी साथे राजाने धारण करवाने अर्थे मोकल्यां // 215 // ध्यात्वत्यसौ विसृष्टायां, सन्नायां नंदनं जगोपीयातानि कुतस्तानि वस्त्राणि तव कथ्यताम् // आयातानि किमुच्येत, सलोलमिति जपतानत्वा नृपं विनिर्गत्य,कुमारेग गते गृहम्॥१३॥ लोजनार्दनु दध्यौ स,रांझे शोऽपिरोचितः॥"नोचितो में ततो नूनं,सजायांगवतः संतः॥ * चिंतयित्वेत्य सौ वस्त्रयुग्मं संवत्य यत्नतः॥ स्वचेच्या प्रेसयामास, परिधानाय ननुजे॥१५॥ किमिदं वस्त्रयुग्मं रे, केन च प्रहितं वृया // गठ वत्सस्य वस्त्राच्यामिह नास्ति प्रयोजनम्॥ इति जल्पति नूपाले, कुमारोऽपि समागतः // प्राह तात नैवद्योग्यं, वैस्त्रयुग्मॅमिदं खेलु // नूपोऽवग् वत्स ते पूर्ववस्तु विस्मृतिमागतम्॥"किमनेनाधुना तर्हि, गृहित्वा वत्स गम्यताम्॥ जपे निषिध्यति प्रोजैः, कुमारे चं प्रयचति // से]ण राज्ञा तद्दत्तं, मोगधायांबरच्यम्॥१॥ कचेतास्ततो गत्वा, कुमारोदध्यिवानिति ॥स्वल्पेन वस्तुना किं स्या दाप्तापि न गौरवम्॥ Pal "अरे! आवे वस्त्र शां? अने ते फोगट कोणे मोकल्यां छे ? जा, अहिं ए पुत्रनां वस्त्रनुं प्रयोजन नथी." // 21 // राजा आ प्रमाणे बोलतो हतो एवामां कुमार पण त्यां आव्यो अने तेणे कर्वा के, "हे तात! आ बन्ने वर आपने योग्य छे. // 217 // राजाए कह्यु. “हे वत्स! तुं पूर्वनी वस्तु भूली गयो? जो एम थयु होय तो हमणां आवस्यवडे ? माटे ते लइने चाल्यो जा. // 218 // राजा ना कहेतो हतो अने कुमार आपतो हतो, तेथी ईवित राजाए ते वन्ने वस्त्र चारणने आपी दीधा // 219 // पछी क्रोधयुक्त चित्तवालो कुमार चाली निक Jun Gun Aaradha Trust
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________________ गा गुणण P.P.A. Gunratnasuti MS KXXXXXXXXXXXX लीने आ प्रमाणे विचार करवा लाग्यो के, “जो पोताना माणसथी पण गौरव नथी तो पछी अल्प वस्तुथी शृं? // 220 // आ प्रमाणे विचार करतो एवो ते राजकुमार दिवसने निवृत्त करी रात्रीये सूतो. पछी सवारे जागी उठेला तेणे पोताना शिंगे ते बन्ने वस्त्र दीठां.॥ 221 // "आ कौतक शुं?" एम चित्तमा विचार करतो ते रत्नध्वज तुरत ते बन्ने वस्त्र लइ राजसभामां गयो.॥२२२॥ त्यां राजानी आगल ते वन्ने वस्त्र मूकीने “आ अंगोकार करो." एम कुमारे कयुं एटले राजा विचार करवा लाग्यो के // 223 // "शुं चारण पासेथी पाछां लइने / इति ध्यायन दिन नीत्वा, निशायां सुप्तवानसौ // प्रातः बुशेऽपयत्तेचीरयुग्मं शिरस्तले॥ किमतत्कौतुकं चित्ते', चिंतयन्निति सत्वरम् // वस्त्रयुग्मं समादाय, स ययौ नृपसंसदि 222 पुरो विमुच्य तवस्त्रयुग्मं स्वीक्रियतामिति ॥कुमारे जल्पति मापश्चिंतयामास चेतसि 223 गृहीत्वा मागधादेव किमिदं दीयते मम // मांगधर्श्व तदैवागाँवस्त्रद्वयविनूषितः ॥श्वा नवीनं घटतीत्येतदिति ध्यात्वा पोऽवदत् // किमर्थं क्रियते वत्स, वैहु इयव्ययो वृंथा // बहुनि राजकार्याणि, सर्वत्रापि धनव्ययः॥गृहीताचं नटाहस्तितुरंगाः कार्यकारकाः॥२६॥ पुत्रोऽवादीदिह व्यव्ययो ने जियते मया // पृच्छतां कोऽपि' केनापि', देतं वस्त्रद्वयं मम॥ तेतः कुतः समायाति, नवं नैवमिदं तव // पुत्रः प्रोवाच संतुष्टा, 'दत्ते श्री देवता मम 27 आ बन्ने वस्त्र मने आपवा आव्यो छे." आम राजा विचार करेछे एटलापां तेज वखते पोताने मलेला बन्ने वस्त्रधो सुशोभित बनेलो मागध पण सभामां आव्यो. // 224 // पछी "आ कुमार पासे रहेलां वस्त्र नवोन छे." एम धारी राजाए कह्यु. “हे वत्स! तुं शा माटे फोगट बहु धननो खरच करे छे ?" // .225 // राजकार्यो बहुछे अने सर्व स्थानके धननो खरच करवो पडे छे. वली कार्य करनारा सुभट, हाथी, घोडा लोधा छे. // 26 // पुत्रे कह्यु." अहिं में धननुं खरच करयुं नथी. पूछो, कोइये पण मने ते वन्ने वस्त्र आप्यां छ?" // 227 // राजाए कह्यु. "तो त्हारे आ नवां नवां वस्त्र क्यांथी आवे छे?" पुत्रे का. प्रसन्न थयेली लक्ष्मीदेवी ते मने आपे छे." // 2 // *****KXXX******XXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust . POR
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________________ PPA Gunnast MS 1 // 228 // राजाए कहूं. "तो सवारे फरी उज्वल एवां वे वस्त्र लावबां." एम कही राजाए प्रथमनां आवेलां ते बन्ने वस्त्र पोतानी पासे राख्यां. // 229 // सवारे फरीथी वोजां वे वस्त्र प्राप्त थये छते ते क्षेमंकर राजाए पोते तेने आभूषण रूप करीने कुमारनो सत्कार करयो. // 230 // पछी तेवा वेशने धारण करनारा राजा अने कुमार बन्ने जणा सभा मध्ये एकठा थयेला धर्म अने अर्थनी पेठे शोभता हता. // 231 // ते वखते आर्यरक्षित नामना चार ज्ञानना धारणहार मुनि आव्या. राजा तेमने वंदना करवा गयो.॥२३॥ कुमार सहित राजाए ते तेतः प्रातः पुनर्वस्त्रद्वयमानेयमुज्वलम् // इत्युक्त्वा स्थापयामास, पूर्वीयातं नरेश्वरः 22 // पुनर्वस्त्रद्वये प्रातः, संप्राप्ते से महीपतिः // तन्नेपथ्यं स्वयं कृत्वा, कुमारायान्वमन्यत // 330 | महीपालकुमारेझे, तेत्तादग्वेशधारिणौ // विरेजाते सन्नामध्ये, धर्मार्थाविवं संगतौ // 231 // आर्यरक्षित इत्याख्या, वहन्नागान्मुनिस्तदा।चतुर्सानधरस्तं च,वंदितुं' पतिर्ययौ // 23 // कुमारसहितो नूपस्तं नत्वा धर्मदेशनाम्॥श्रुत्वा पॅपच्छ वत्सस्य,"किमेवं लाग्यमनुतम्॥२३३ मुनिः पूर्वनवं प्रोचे', नगरे हस्तिनापुरे॥श्रेष्टिनो धनदत्तस्य, सुंदत्ताख्यः सुतोऽर्जनि॥२३॥ | पूजायां क्रियमाणायां, यदनेन जिनेशितुः // विहितं वस्त्रयुगलारोपणं नावशालिना // 23 // | तेनं पुस्येन नूपाल, त्वत्कुलेऽसौ समागतः॥ वस्त्रदयं प्रदत्ते स्मै, श्रीदेवी च नैवनम् // इति श्रुत्वा कुमारोऽत्रै, जोतिस्मृतिमुपागतः॥विशेषार्ममार्हतं, प्रेपेदे मुंनिसंनिधौ॥२३॥ * मुनिने नमस्कार करी अने धर्मदेशना सांभलीने पूछयुं के, " हे मुनि !आ पुत्रनु आव॒ अद्भुत भाग्य शी रीते ?" // 233 // मुनिये तेनो पूर्वभव कह्यो के, " हस्तिनापुर नगरने विषे धनदत्त शेठने सुदत्त नामनो पुत्र थयो हतो. // 23 // पूजा करवा मांडथे छते भाववंत एवा ए सुदत्त पुत्रे जिनेश्वरनी उपर बे वस्त्र चडाव्यां हतां. // 235 // हे राजन् ! ते पुण्यथी ए मुदत्त तमारा कुलमां उत्पन्न थयो अने एने लक्ष्मीदेवो नवां नवां ववे वस्त्र आपे छे." // 236 // मुनिनां एवां वचन सांभली कुमार जातिस्मरण ज्ञान पाम्यो, तेथी तेणे मुनिनी पासे विशेषे अरिहंत Jun Gun Aaradha Trust
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________________ गुण // 3 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. KEXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXKKKK धर्म अंगीकार करयो. // 237 // पछी अवसरे पितानुं राज्य पामी अने पृथ्वोनुं दीर्घकाल सुधी पालन करी चरित्र, तेमज अंते चारित्र पाली ते सुदत्त सौधर्म देवलोकमां देवता थयो. // 138 // (नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहेछे के ) हे भूपाल ! ए सुदत्त दीर्घकाल सुधी देवलोकनुं सुख भोगवी अने पछी त्यांची चवीने त्हारो त्रीजो हरि नामनो पुत्र थयो छे. काले राज्यं पितुः प्राप्य,पालयित्वा चिरं नवमाप्रेपाट्य संयमं प्रीते, सौधर्मे त्रिदेशोऽनवत् // 'चिरं सौख्यान्य सौनुवत्वा, देवलोकात्ततश्युतःतेतीयो हरिनामानूतनयस्तव नूपते // 3 // // इति वस्त्रयुगल पूजाधिकारे सुदत्त कथा // वासपूजा कृता येने, फेलं तरय निगद्यते // अत्रास्ति नरतत्रे, मथुरानगरी किलं // 24 // नूपतिर्वासवरतंत्र, नवीन इव वासवः॥ जयंती वैजना तस्य, जयंती रूपतः श्रियम्॥५१॥ अन्यदा नारदः शौवैयजितशारदवारिदः // पारदयतिराँयासीढीदितुं नूपसंपदम् ॥श्व॥ * रोझा संमान्य सँ 'प्रोचे, किमयाँश्चर्यमीक्षितम् // सोऽवादीनपतेनमिविविधौश्चर्यसंकुला // इत्युक्त्वा सहसोत्पत्य, जयंती नृपवजन्नाम् // वोक्तितं स ययौ किंत, से तैया "नोपलदिती॥ जेणे वासक्षेपथी पूजा करीछे, तेनुं हुं कहुंछं. आ भरतक्षेत्रने विषे मथुरा नामनी नगरी छे. // 240 // ते नगरीमा नवीन इंद्रना सरखो वासव नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने रूपथी लक्ष्मीने जीतनारी जयंती नामनी स्त्री हती. // 241 // कोइ वखते उज्वलपणाथी जित्यो छे शरद रूतनो मेघ जेणे एवा तथा पाराना समान कांतिवाला नारद राजा वासवनी संपत्ति जोवा माटे आव्या. // 242 // राजाए सन्मान करीने नारदने पूछयु. “मुनि! आपे काइ आश्चर्य जोयुंछे ?" नारदे उत्तर आप्यो के, "हे राजन्! पृथ्वी विविध प्रकारना आ__ श्चर्यवाली छे," // 243 // एम कहीने नारद तुरत त्यांथी उठी राजस्वी जयंतीने जोवा माटे अंतःपुरमां गया; प * // 3 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. रंतु त्यां जयंतीये नारदने जोया नहि. // 24 // त्यां क्षणमात्र उभा रहीने क्रोधथी भरपूर एवा नारद पाछा वलीने विचार करवा लाग्या के, “ए जयंतीये म्हारो सत्कार करयो नहि तो हवे तेने हुं शुं हुं करुं?"॥२४॥ ए प्रमाणे विचार करता नारद जयंती उपर वहु क्रोध धारण करीने जता छता जिनदत्त शेठना महेल आगळ थइने चाल्या.॥४६॥ ते जिनदत्तनो लावण्यवाली अने गोखमां बेठेली धनश्री नामनी कन्याने जोइ नारद विचार करवा लाग्या के, “निश्चे आ कन्याथी ए जयंतीना अभिमाननो नाश थशे. // 247 // आ प्रमाणे देणंस्थित्वाषापूर्णो,व्यावृत्तोऽसौव्यचिंतयताअनयानोपलेदयेऽहं,"किंकिमस्या कैरोमितत॥ इति ध्यायनसौ गचन्नतुवं मत्सरं वहन् // श्रेष्टिनो जिनदत्तस्य, प्रौचाली मंदिरोपरिश्व६॥ * सलावण्यां गवादस्थां,तेस्य कन्यां धनैश्रियम्॥ईष्टा सदध्यौ तस्याःस्यान्मोनच्छेदोऽनया ध्रुवम् / ध्यात्वेति नारदस्तस्यापं चित्रपटेऽलीखत् ॥नृपीय दर्शयचायाश्चर्यमिह देश्यताम्॥५॥ नृपोऽवोचंदियं लक्ष्मीहोर्वास्ति चतुर्जुजा // नौरती किम हंसा सा,वीणापुस्तकधारिणी // तैवैवं नगरे किंतु, जिनदत्तो महाधनी // घनश्री तिनाम्नांस्य, सुंता रूपश्रियायुता // 25 // रत्नं रत्नेन घटतामितिध्यात्वा मया तवादर्शितास्ति यथायोग्यं, कार्य कार्यमंतःपरम्॥५१॥ इति प्रोच्य गते तस्मिन् , रोजाहूयं स्वमंत्रिणम्॥स्वरूपं झापयित्वोचे, श्रेष्टिमीकार्यतामिहें। विचार करी नारदे चित्रपटमां ते धनश्रीन रूप आलेखीने राजाने देखाडयुं अने कह्यु के, "आ आश्चर्य जो. // 248 // राजाए कह्यु. अरे! आ चतुर्भुजा लक्ष्मी छे के हंसना वाहनवाली अने वीणा पुस्तकने धारण करनारी सरस्वती पोते छे. // 249 // आ कोइ देवी नथी; परंतु त्हारा नगरने विषे जिनदत्त नामनो महा धनवंत शेठे रहेछे तेनी आ पोतिना नामथी धनश्री नामनी रूप संपत्तिवाली पुत्री छे. // 250 // "रत्न रत्ननी साथे जोडाओ." एम विचार करता एवा में तने ए देखाडी छे, माटे हवे जेम योग्य कार्य होय तेम करो." // 251 // एम कहीने नारद गया पछी राजाए मंत्रीने वोलावीने सर्व वात कही अने कह्यु के, “जिनदत्त शेठने बोलाव." un Gun Asracha Trust
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________________ गुणण // 33 // PP.AC.GunratnasunM.S. // 252 // पछी मंत्रीये शेठने बोलाव्यो एटले राजाए शेठ पासे ते धनश्री कन्या- मागु करयु. पछी शेठे आ चरित्र.. पेली ते कन्याने राजा सारा दिवसे परण्यो. // 253 // पछी वासव राजानुं मन धनश्रीने विषे प्रीतिवालुं जोइने वैजयंती ध्वजानी पेठे जयंती कोइ ठेकाणे स्थीरतापणं पामी नहि.॥ 25 // हवे जेम नंदनवनमां कल्पवृक्ष जन्म धारण करे तेम ते वासपूजा करनार चित्तनंदन धनश्रीना उदरने विषे अवतरयो. // 255 // पछी अनुक्रमे धनश्रीने पुत्र थयो एटले राजाए महोत्सव करीने “धनराज" एवं प्रीतिनुं स्थान नाम पाडयु.॥२५६॥ आकारितस्ततः श्रेष्टी, तसे कन्यां ययाचताय तेन प्रदत्ता सौ, नेपेणोढी शुन्ने दिने" घनश्रियां मनस्तस्य, रोझो दृष्टानुरोगन्नाग // जयंती वैजयंतीव, स्वयं प्रॉप न हि"क्वचित् // वासपूजाकरश्चित्तनंदनारयो धनश्रियाः // लेनेऽवतारं कुदौ स, नंदने कल्पवृक्षवत्॥५॥ धनश्रिया सुते जाते, नॅपः कृत्वा महोत्सवम् // धनराज ईतिप्रीतिधाम नाम विनिर्ममे"॥ कियन्मात्रेषु घस्त्रेषु, जयंत्या अप्यनूत्सुतः // तस्यौसीत्पद्म इत्याख्या, प्रवितोमुन्नौ सुतौ॥ लेखेशालागमाहौं तौ', जयंती वीदय देध्युषी ॥धनश्रियाः सुतो वृशे, मम पुत्रो लघु पुनः॥ वृहत्वानराजाय, रोजा राज्यं प्रैदास्यति // नत्पादयामि तत्किंचित, 5षणं तस्य सांप्रतम् // ध्यात्वेति योगिनं किंचिदाकार्य कपटे पैटुंम्॥नुशावय॑सा 'प्रोचे, किंचिचूर्णादि दीयताम् / केटलाक दिवसो गया पछी जयंतीने पण पुत्र थयो तेनुं “पद्म" एवं नाम पाडयु. अनुक्रमे ते वन्ने पुत्रो वृद्धि / पामवा लाग्या. // 357 // जयंती लेखशालामा जवाने योग्य एवा ते वन्ने पुत्रोने जोइ विचार करवा लागा के, "धनश्रीनो पुत्र म्होटो छे अने म्हारो पुत्र न्हानो छे. // 258 // राजा वृद्ध होवाने लीधे धनराजने राज्य आपशे, माटे हवणां धनराजने काइ दुषण उत्पन्न करूं." // 259 // आ प्रमाणे विचार करी जयंतीये करवामां कुशल एवा कोइ योगीने वोलावी अने तेनो बहु सत्कार करीने कडं के, "मने कांइ चूर्णादि वस्तु // 33 // Jun Gun A nak Trust .. ]
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________________ PPGUMS आपो." // 260 // पछी योगी चूर्ण आपी " आ चूर्ण मस्तक उपर नाखवाथी गांडापणुं थायछे." एम कहीने ते चाल्यो गयो. // 261 // पछी ते चूर्ण मुठीमा राखी जयंती हर्ष पामती त्यां वेठी, एवामां धनराज क्रीडाथी रमतो रमतो त्यां आव्यो. // 262 // जयंतीये दंभथी वे धनराजने बोलावी तेना माथा उपर चूर्ण नाख्यु; परंतु तेना पुण्यप्रभावथी ते वृथा थयु. // 263 // कपटवाली ते जयंतीनो पुत्र पद्म पण त्यां आव्यो, तेथो तेणे तेने चुंबन करतां स्नेहथी हाथवडे तेना माथानो स्पर्श करयो. // 264 // ते जयंतीना हाथमां आंगलांनी चूर्ण दैत्वा स च प्रोचे, दिप्तेनाननं मस्तकाहिलत्वं भवत्ये "वेत्युक्त्वा 'योगी जैगाम सं॥ तेच्चूर्ण मुंष्टिगं कृत्वा, सा प्रीता तंत्र तस्थुषी // ईतश्च धनराजोऽत्र, समागात् क्रीडया रेमन् // सा तं देनासमाहूय, चूर्ण चिकेप मस्तक॥ तस्य पुण्यप्रनावण, तध्ययं समजायत॥२६३॥ बैद्मवत्याःसुतस्तस्या, अपि पद्मः समागतः॥सा तं पैस्पर्श चुंबती, 'स्नेहारिसि पौणिना अंगुल्यंतरगं किंचिच्चूर्णं तस्याः करे स्थितम् // तेनापि पंतितेनासौ,तत्क्षणं दिलोऽनवत् // रुदंती चोरैमातेवं, प्रेञ्चनं स्वं निनिंद सा // ईतच धनराजोऽपि, तोरं तारुण्याश्रितः॥६६॥ पुत्री मंत्रिवरस्यांसौ, नूपेन परिणायितः॥ कीडतं च तया वीट्य, जयंती "चिखेदे हदि // तेतः स्वराज्यदानाय, धनराजस्य नूंपति // मुंहूः गणयामास, गणकैर्गुणबंधुरम् // 6 // वचमा काइक चूर्ण चोटी रयुं हतुं, ते पद्मना माथा उपर पडवार्थी ते पद्म तुरत गांडो थई गयो. // 265 // पछी चोरनी मानी पेठे रुदन करती ते जयंती गुप्त रोते पोतानी निंदा करवा लागी. एवामां धनराज पण उत्तम एवी युवावस्था पाम्यो. // 266 // वासव राजाए धनंजयने पोताना श्रेष्ठ प्रधाननी पुत्री साथे परणाव्यो अने पछी ते प्रधान पुत्रीनी साथे धनंजयने क्रीडा करतो जोई जयंती मनमा बहु खेद पामवा लागी. // 267 // पछी राजा वासवे, धनराजने पोतानुं राज्य आपवा माटे जोशीयोनी पासे उत्तम गुणवंत मुहूर्त जोवराव्यु // 268 // Jun Gu r u
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________________ 3 P.PA. Gunratnasuti MS गुणते वखते तेज योगी फरी जयंतीना घरे आव्यो अने तेणे कयु के, "म्हारा चूर्णथी हारो मनोरथ सिद्ध थयो?" // 269 // निसासा मूकती एवी जयंतीये कयुं. "ते तो दैवे अवलुं करयु. कारण तमारुं चूर्ण शौक्यना पुत्रने // 3 // विषे व्यर्थज थयु.॥ 270 // आंगलीनी वचमा रहेला एवाय पण ते चूर्णथी म्हारो पुत्र तुरत गांडो थइ गयो. हाय हाय! दैवथी हुँ ठगाइ छु. // 271 // जो राजा धनश्रीना वणिक् पुत्रने पोतानुं राज्य आपे छे तो मने दाझा उपर फोल्लो थयो जाणवो. // 272 / / माटे मने कांइक आपो के जेनाथी निश्चे तेना अंगो रही जाय. कातेदा योगी स एवार्गाऊँयंत्या मंदिरं पुनः // स "प्रोचे मेम चूर्णेन, तैव "सिझो मनोरथः // निश्वासान् मुंचती सोचें, देवेने तमन्यथा // सपत्नीनंदने जातं, तच्चूर्णं व्यर्थमेवे ते // अंगुल्यंतरगेणापि, तेन चूर्णेन मत्सुतः॥ तत्कणं हिलो जातो, हाँ देवेनोस्मि वैचितौ // स्वराज्यं वणिजे तस्याः, पुत्राय यदि पतिः॥ ददाति स्फोटकस्तर्हि, देग्धोपरि ममानवत् // तैत्किंचिद्दीयतां येन, तिष्टंत्यंगानि तस्य हि॥ वरं राज्यमिदं शून्यं,वणिकपुत्रे तु 'नोचितम्॥ दत्वा चूर्ण जगौ योगी, त्वया प्यमिदं जले॥अनेन लैंग्नमात्रेण, स्थास्यंत्यंगानि तस्य हि // इत्यक्त्वा स ययौ योगी,सातच्ग कथंचन॥राज्याभिषेककलशोदके चिके इष्टधोः॥७॥ मंडले मांडलिकानां, मिलिते च महोत्सव। वर्तमाने सुतस्तस्या,ग्रहिलो समागतः॥६॥ A यंत्र क्षिप्तं तेया चूर्ण, तमेव कलशं रयात् // मामाकुर्वति लोके सौ, निजैशीर्षे व्यलोठयत्॥ रण आ राज्य राजा विना शून्य रहे ते सारु, पण वणिक पुत्रने आपे ते योग्य नथी." // 273 // योगीये चूर्ण आपीने कड्यु. “हारे आ चूर्ण अभिशेकना कलशमां नांख. ए चूर्ण तेना शरीरे अडशे एटले निश्चे तेनां अंगो रही जशे." // 274 // एम कहीने ते योगी गयो एटले दुष्ट बुद्धिवाली जयंतोये ते चूर्ण कोइपण रीते राज्याभिषेक करवाना कलशना जलमां नांख्यु. // 275 // मांडलीक राजाओगें मंडल एकळु थयुं अने महोत्सव चालुं थयो एवामां जयंतीनो ते गांडो पुत्र पद्म त्यां आव्यो.॥२७६॥ जयंतीये जे Jun Gun Aaradhak Trust , RomamRNIRANImam tammnate
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS पने लइने लोको नाना कहेता हता एटलामा पोताना माथा उपर ढोली दीधो.॥२७७॥ तेथी ते पद्मना सर्व अंगो तुरतज रही गया. ते वात सांभलीने जयंती ते पुत्रने उपाडी पोताने घेर गइ. // 278 // पछी धनराजने राज्या भिषेक थयो एटले वासव भूपतिये गुरु पासे संयम लई पोतानुं कार्य साध्यं. // 279 // ते धनराज राजा पृथ्वीने पालन करवा लाग्यो एटले देशो सुखवंत थया अने निरंतर सुभिक्ष थयु.॥२८० // हवे पांचाल देशमा कांपील्यपुर नगरने विषे धनराजनो द्वेषी एवो वैरी शल्य राजा राज्य करतो हतो. // 281 // ए राजाए गोस्य॑ितानि तेस्य सर्वाण्यंगानि तत्कणमेवै हिँ तिच् त्वा सौ जयंती तैमुत्पाद्य संदनं ययौ॥७॥ राज्यानिषेके संजाते, धनराजस्य नूपतिः॥ गुरोःसंयममादाय,निजकार्यमसाधयत्॥ धनराजमहीपाले, तेस्मिन् पालयति दितिम् // देशा न मुक्ता सौख्येन, सुनिक्षेण च सर्वदा॥ ईतश्च देशे पांचोले, कॉपीब्यपुरपत्तने // धनराजप्रतिषी 'वैरीशल्यो नृपोऽनवत् // 1 // गोशीर्षचंदनोद्भूतं, वासं वासितविष्टपम् // विषमिश्रं विधायांसौ, स्वनरान् प्रत्यनाषयत् // वैणिग्वेषधरैर्वृत्वा, मथुरा पुरी गम्यताम् // वैरिधीतकरो वासः, कर्तव्यः पात्रतोपरि // 3 // अनेन घातमात्रेण, गते यामदये सति // तत्कणं प्राप्यते मृत्युरिदं नवति नौन्यथा ॥धा वैरी' जेनीयते वास, यावत्तावत्सन्नांतरे // स्थातव्यमन्यथा मृत्युनविता नवतामपि॥५॥ इति शिक्षा स्वयं दत्वा, वैणिग्वेशधरान् नरान् ॥प्रेषयामास मथुरापुर्यां ते च समागताः // शीर्ष चंदनथी उत्पन्न थयेलां अने मंदिरने सुगंधवाला करनारा वस्त्रने विषे मिश्रित करी पोताना माणसोने कह्यु के. // 282 // तमे वेपारीनो वेश धारण करी मथुरापुरी प्रत्ये जाओ. त्यां तमारे वैरीनो नाश करनारं आ वस्त्र भेट करवू. // 283 // आ वस्त्रने मुंघवा मात्रथीज बे प्रहर गये छते तुरत मृत्यु थायछे. ए बीजी रीते थवान नथी.॥२८४ // ज्यां सुधी शत्रु आ वस्त्रने मुघे त्यां सुधी तमारे पण सभामा बेस. नहि तो तमारुं मृत्यु थशे. // 285 // आ प्रमाणे पोते शिखामण आपीने वेपारीना वेशने धारण करनारा ते माणसोने मथुरा Jun Gundadak Trust
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________________ गुण PP.AC.Gunratnasus M.S. नगरी प्रत्ये मोकल्या अने ते माणसो पण ते नगरी प्रत्ये आवी पहोच्या. // 286 // त्यां द्वारपाले जाहेर करेला तेओ धनराजनी सन्नामां आव्या अने राजानी आगल भेट मूकीने तेना उपर वस्त्रनो डावडो मूक्यो.॥२८७॥ जेम भमरी पुष्पने सुंघे तैम राजा धनराजे पण सभाना मध्यजागने सुवासित करनारा अने डाबडामा रहेलां वस्त्रने जोइने सुंघ्यु. // 288 // आपणुं कार्य सिद्ध थयुं एम जाणी प्रसन्न थयेला ते माणसो राजानी रजा लइ फक्त सभामांथीज नहि, परंतु नगरथी पण चाली निकल्या. // 289 // पछी वे प्रहर गया एटले धनराज राजा तेवेत्रिवेदिता प्राप्ताः, धनराजस्य संसदि॥ विमच्य प्रानतं तस्योपरि वासपुटं निर्धः॥२॥ वासयंतं सन्नामध्यं, वासं वीदय पुटस्थितम् // जे'घीयतेस्म नूपालो, मरःकुसुमं यथा // सिंह कार्यमिति प्रीता, अनुज्ञाप्य नरेश्वरम् // न केवलं सन्नायास्ते', निर्गता नगरोदपि // अथ यामदये जाते, धनराजो महीपतिः॥ विषेर्ण व्याकुलो जातः, पंपात पृथिवीतले॥श्ए॥ 'विषं विर्षमिति व्यग्रा, वदंतः सचिर्वादयः॥ कारयंतः प्रकारांश्च,नपं चक्रुःसंचतनम्॥॥ नृपतिः शोधयामास, तान्नरान् गरेऽखिले ॥अदृष्टास्तदा मेने,तान विर्षदायकान्॥श्ए॥ विषव्यापे गते तस्मिन् , संजीतते च पार्थिवे॥ सर्वत्र नगरे तंत्र,प्रोवर्त्तत महोत्सवाः॥श्ए३॥ इतश्च ज्यसिंहाख्यः, ऍरिस्तत्रं समागतः // चतनिधरस्तं च वंदितुं पतिर्ययो" श्ए नत्वा च सपरिवारः, श्रुत्वा धर्मोपदेशनाम् // पंप्रच्छ कर्मणा केन, प्राज्यं रोज्यमिदं मम॥ * विषथी व्याकुल थइने पृथ्वी उपर पडयो. // 290 // "विष विष" एम कहेता व्यग्र वनेला प्रधानोए उपचारो करता छता राजाने सचेत करचो. // 291 // राजाए ते माणसोने सघला नगरमां शोध्या, परंतु ते वखते तेओ ने न जोइने तेओनेज विष आपनारा मान्या. // 292 // ते विपनो प्रचार नाश पाम्यो अने राजा सज्ज थयो / एटले त्यां नगरमां सघले ठेकाणे महोत्सवो थया. // 293 // एवामां चार ज्ञानना धारणहार जयसिंह मूरि यां आव्या अने राजा तेमने वंदन करवा गयो. // 294 // परिवार सहित राजाए मुनिने नमस्कार करो अने ध- Jun Gun Aaradhak Trust XXXXXXXXXXXXXXXXXXX 35 //
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________________ मोपदेश सभिलीने पूछयु के, "हे भगवन्! मने कया कर्मथी आ विस्तारवंत राज्य प्राप्त थयु. // 295 ॥मुनिए | पूर्वभव कह्यो के, "हस्तिनापुर नगरमां धनदत्त शेठने चित्तनंदन नामनो पुत्र थयो हतो. // 296 // प्राप्त थये ला हर्षना उत्कर्षवाला तें शुभ भावथी जिनपूजन करयुं हतुं; तेथी तने आ समृद्धिवंत राज्य मल्युं छे. // 297 // हे राजन् ! वली वासक्षेपनी विशेष पूजाथी वाल्यावस्थामां, राज्याभिषेक वखते अने हवणां पण तुरत विनो P.P.AC.Gunratnaasun MS. * मुनिः पूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्टिनो धनदत्तस्य, सुतोऽनूंचितनंदनः // 26 // * प्राप्तहर्षप्रकर्षेण नवता जिनपूजनम् // विहितं शुननावेन, प्राज्यं राज्यमिदं ततः ॥ए॥ वासपूजाविशेषेण, तूर्णं विघ्नो व्यंलीयत // बाल्ये राज्यानिषेके च, संप्रत्यपि नेरेश्वर॥शए॥ इति श्रुत्वा मुनेवाचं, नेपो जातिस्मरोऽनवत् // विशेषादोर्हतं धर्म, 'प्रपेदे तस्य संनिधौशए मुनिं नत्वा पुरं गत्वा, पालयित्वा चिरं जुवम् ॥देत्वा कुशलपुत्राय,राज्यं रोजा ग्रेहीद्वैतम्॥३०॥ प्रैपाल्य संयम नव्यन्नावेन से मुनीश्वरः॥विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽनवत् // 31 // 'चिरं सुखान्यसौ क्त्वा, देवलोकात्ततर्युतः॥ ●तुर्थो गैजनामानूतनयस्तव नूपते // 3 // पासे विशेष अरिहंत धर्म अंगीकार करयो. // 299 // पछी मुनिने नमस्कार करी, नगरमा जइ दीर्घकालसुधी पृथ्वीनुं पालन करी अने पुत्र कुशलने राज्य आपी राजा धनराजे चारित्र लीधुं. // 300 // ते मुनि उत्तम भावथी चारित्र पाली अंते अनशन लइ सौधर्म देवलोकने विषे देवता थया. // 301 // (नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहेछे के) हे राजन् ! ते धनराज मुनिनो जीव त्यां दीर्घकालसुधी सुख भोगवी अने पछी देवलोकथी चवीने त्हारो चोथो गज नामनो पुत्र थयो छे. // 302 // // इति वासपूजायां चित्तनंदन कथा. // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्र, गुण P.PLAC.Guriratnisun Ms. स्नात्रादिपूजनचतुष्कफलानि पुण्यमाणिक्यसुंदररुचिर्नृपतेःपुरस्तात् // . .. क्त्वा 'विशेषसहितानि हिताय साधुः, पुष्पादिपूजनफलं गदितुं प्रवृत्तः // 303 // पवित्र माणिक्यना सरखी सुंदर कांतिवाला अथवा पवित्र माणिक्य सुंदर रुचि मुनि राजानी आगळ हितने अर्थे विशेष्य सहित स्नानादि चारना फलने कहीने पुष्पादि पूजनना फलने कहेछ. // 303 // // इति अंचलगन्छे श्री मणिक्यसुंदर सुरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्माचरित्रे _ स्नात्रविलेपनवस्त्रयुगलारोपवासपूजाफलवर्णनोनाम द्वितीयःस्वर्गः // .... - -- Jun Gun Aaradhak Trust // 36 //
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________________ // सर्ग 3 जो॥ PP Ad Gunu MS नरवर्मा मुनिः प्राह, गुणवर्मणि शृंगवति // पुष्पपूजा :ता येन, फैलं तस्य निर्गद्यते // 1 // अत्रास्ति नरते नॅमिरमणीमणिकुंडलम् // कुंडलं नाम नंगरं, तंत्रौनूदिक्कमो नृपः // // . गुणवर्मा राजा सांभळता छतां नरवर्मा मुनि कहेछे के, जेणे जिनराजनी पूष्पवडे पूजा करीछे, तेनुं फल कहेवाय छे. // 1 // आ भरत क्षेत्रमा पृथ्वी रूप स्वीना मणिकुंडल रूप कुंडल नामर्नु नगर छे, त्यां विक्रम नामनो राजा राज्य करतो हतो. // 2 // तस्य शीलवती नाम, ललना शोलशालिनी // पुष्पपूजाकरो लक्ष्मीधरस्तत्कुदिमाययो॥३॥ स तेया समये जातः प्रातस्तऊनॅनोत्सवम् // कृत्वा विजयचंज्ञख्या, विहितास्य महोनूजा // 4 // ___ ते राजाने शीलथी सुशोभित एवी शीलवती नामनी स्त्री हती. हवे जिनेश्वरनु पुष्पवडे पूजन करनार ल.. क्ष्मीधरनो जीव तेना उदरने विषे आव्यो. // 3 // शीलवतीये अवसरे सवारमां तेने जन्म आप्यो एटले राजाये जन्ममहोत्सव करीने तेनुं विजयचंद्र नाम पाडयु. // 4 // पाल्यमानः संयत्नेन, रत्नेन सम कांतिनाक् // हर्षदः पिर्तृमातृन्यां, पंडर्षीयोऽनवक्रमात्॥५॥ अन्येयुर्विक्रमो नूपस्त्रि विक्रमसमोऽरिषु // सन्नां विषयामास, मंत्रिसामंतपूरिताम् // 6 // _यत्नथी पालन करातो, रत्नना सरखी कांतिवालो अने माता पिताने हर्ष आपनासे ते पुत्र अनुक्रमे छ वपनो थयो. // 5 // कोइ वखते शत्रुओने विषे त्रिविक्रम समान विक्रम राजा मंत्री अने सामंतोथी भरपूर एवी सभामां वेठो हतो. // 6 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ रित्र. %3D PPAC Gunratnasuti MS तैदा लक्ष्मीधरो नाम, व्यवहारी विदेशतः // वेत्रिणा वेदितस्तत्र, समायातः सन्नांतरे // 7 // रिक्तहस्तै दृश्यंते, रोजानो निषजो गुरुः॥ इति न्यायेन पुष्पाणि, सोऽमुंचद्रूपतेः पुरः॥॥ ते वखते परदेशथी आवेलो लक्ष्मीधर नामनो वेपारी द्वारपाले जाहेर कर यो छतो त्या सभामां आव्यो.॥७॥ "खाली हाथे राजा, वैद्य अने गुरु पासे न जq." ए न्यायथी ते लक्ष्मीधर शेठे राजानी आगल पुष्पों मूक्या.॥८॥ तेषां परिमलोऽत्यंत, विष्वक् तत्र प्रसृत्वरेन्पो जगाद पृष्पाणि, दीयंतां संन्यपाणिषु॥णा तेषु प्रदीयमानेषु, पुष्पेषु व्यवहारिणा // बालहारोगतो बालः, पुत्रो राज्ञः समागतः॥१॥ ते पुष्पनो सुगंध अत्यंत सभामां चारे तरफ प्रसरी रह्यो एटले राजाए कह्यु के, "सभामां बेठेला माणसोना हाथमां ते पुष्पो आपो." // 9 // लक्ष्मीधर शेठ ते सभाना माणसोने पुष्प आपतो हतो एवामा रक्षक पुरुषे तेडेलो बाल राजकुमार त्यां आव्यो. // 10 // राजा दधौ निजोत्संगे, तं रंगेर्ण मनोहरम् // मूर्तिमंतमिवानंद, वस्त्रान्तरणन्नासुरम् // 11 // याचमानस्य पुष्पाणि, दीयमानानि पश्यतः।। कुमारस्य करे पुष्पयुग्मं लक्ष्मधरोऽमुचत् // राजाए मूर्तिमंत आनंदनी पेठे मनोहर अने वस्त्र आभूषणथी देदीप्यमान एवा ते पुत्रने हर्षथी पोताना खोळामां बेसारयो. // 11 // सभामा पुष्पो वेहेंचतां जोइने ते पुष्पोने मागता एवा कुमारना हाथमां लक्ष्मीधर बे पुष्पो आप्यां. // 12 // आजिघ्रन् पुनरेतानि, कुसुमानि ययाच सः॥ अन्याघ्रातानि तान्येषं ,दोर्यमानानि नौ देते॥ एतजातीयपुष्पाणि, नव्यान्येव प्रेयच मे // इत्यगृह्णति पुत्रे च, नेपो लेक्ष्मीधरं जंगौ // 1 // ते पुष्पोने सुंघता एवा कुमारे वोजा ते पुष्पो माग्यां एटले वीजाओए सुंघलां पुष्पा आपवा मांडयां, पण ते तेणे न लीघां. // 13 // "नवोन आ जातनां पुष्पोज मने आपो." एम कहीने कुमारे ते पुष्पोने न लीधां एटले राजाए लक्ष्मीधरने कह्यु. // 14 // Jun Gun A nak 11B JIS
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________________ PPA Guntasun MS कुतस्त्वया समानीतान्येतान्येष नृपं जंगौ।। चतुष्पाविति श्रुत्वा, नूपो नृत्याननापत // 15 // * गत्वा नो यत्रतत्राप्यारामिकाणां चतुष्पथे।ानीय देत पुष्पाणि, पाणौ में तनुजन्मनः॥१६॥ ____ "तें आ पुष्पो क्याथी आण्यां?" लक्ष्मीधरे राजाने कर्तुं. " चौटामांयी." शेठनां आवां वचन सांभली राजाए सेवकोने कह्यु. // 15 // "हे सेवक ! ज्यां त्यां मालोयोना चोकने विषे जाओ अने पुष्यो लावी म्हारा पुत्रने आपो." // 16 // - परिजम्य समायातास्ते प्रोचुर्नपतिं प्रेतिम् // ने व्यान्ये पुष्पाणि, सर्वतःशोधितान्यपि॥ तेदा बाढतरं बालः, प्रोरेने कुसुमाग्रहम् // नानुक्त नोज्यमादत्त, न फैलं ने जैल पंपौ // 1 // ___पछी ते सेवको भमीने पाछा आवीने राजाने कह्यु के, “चारे तरफ शोध्या छतां पण पुष्पो मल्यां नहि. // 17 // ते वखते विजयचंद्र कुमारे पुष्पने विषे अत्यंत आग्रह आरंभ्यो; तेथी तेणे भोजन करयुं नहि, फल खाधां नहि अने पाणी पण पीधुं नहि. // 18 // तेस्य मातापि संतापानाजुक्त सपरिचदा // राजाँपि खितो दध्यावहो बॉलकदाग्रहः // 1 // नूपोऽथ मंत्रिणं प्राह, येनानितानि मूलतः॥ ततःस्वरूपं विझाय, पुष्पाण्यानय सत्वरम् // // कुमारनी माताये पण संतापथी परिवार सहित भोजन न करयु, तेथो राजा पण दुःख पामीने विचार करवा लाग्यो के, "अहो! आ बालकनो कदाग्रह आश्चर्यकारी छे !!! // 19 // पछी राजाए प्रधानने का. "जेणे पुष्पो मूलथी आण्यां छे, तेथी तेनुं स्वरूप आणीने तुरत पुष्प लावो. // 20 // ततो मंत्री नेपादेशादारामिकचतुष्पदे।। प्रारामिकान् सर्वांस्तेषामेक स्त्विदं जंगौ॥१॥ आरामिकः समायातः, प्रातरेव पुनर्गतः॥ प्रत्यासन्ने वैसत्येष, ग्रामे सुग्रामनामनि // 22 // ____ पछी राजानी आज्ञाथी मंत्रीये मालीना चोकमां सर्वे मालीने पूज्यु एटले तेमाथी एके या प्रमाणे कयु.॥२१॥ एक माली आव्यो हतो अने ते सवारेज पाछो गयो छे. ते पासेना सुग्राम नामना गाममा वसे छे. // 22 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण // 3 // PPA Gunratnasuti MS तेन पुष्पाण्यपूर्वाएयांनीतान्यंत्र चतुष्पथे // स्वर्णपंचशतैस्ताँनि, क्रोतानि व्यवहारिणा॥३॥ चरित्र. मंत्री मूलमितिात्वा, तस्य ग्रामं गतस्ततः॥श्रीरामि कंतमाहूये, कैलुमानि ययाच सः॥२॥ ते मालीये आ चोकमां अपूर्व पूष्पो आण्यां हतां अने कोइ वेपारोये ते पांचशो सोना म्होरथी खरीयां हता." // 23 // मंत्री ए प्रमाणे मूल जाणी अने पछी ते मालीना गामने विषे गयो त्यां तेणे ते मालीने बोलावीने पुष्पो माग्यां // 24 // से जंगाद मैमा मे, तदृता एंव संतिन // मंत्री प्रोचे कुंतःस्थानादौनीतानि ततो वैदे॥५॥ सोऽर्वक् प्रातरिहायोतः, शैलस्यास्य गुहांतरे॥ शिलातलोपरिस्थानि, कुसुमान्यहमोददे॥२६॥ ____ मालीये कह्यं. "ते वृक्षोज म्हारा बगीचामां नथी." मंत्रीये कह्यु. "तो कया स्थानथी ते पुष्पो आण्यां हां ते कहे ?" // 25 // मालाये कह्यु. " सवारे अहिं आवेला में आ पर्वतनी गुफामांथी शिला उपर रहेला पुष्पो / लीधां हतां // 26 // शिलायां विक्षोतायांच,लब्ध्वा पुष्पचतुष्टयम् ॥मंत्री प्रमुदितः प्रैषोत्तदैवामूनि नूंनुजे॥॥ शिलायां कुतरेतानि, समेतानीति चिंतयन् // सर्पतमंतः सपै स, देशैंक मैदातनुम् // // ___ शिला जोइ एंटले चार पुष्पो मल्या, तेथी हर्पित थयेला तेणे ते वखते ते पुष्पो रानाने मोकली आप्यां | // 27 // शिलामां आ पुष्पो क्याथी आव्यां ?" एम विचार करता एवा मंत्रीये अंदर फरता म्होटा शरीरवाला सर्पने दोठो. // 28 // . शिरःस्फुरन्मणिज्योतियोतिताखिलदिग्मुखम् // तं दृष्टा कातराः केचित्पलायांचक्रिरे ततः स्वमणिज्योतिषापास्तांधकारपटलस्ततः // सर्पश्चचाल पातालविवरेण शनैःशनैः // 30 // ___ माथाना देदीप्यमान मणिथी सर्व दिशाओने प्रकाशीत करनारा सर्पने जोइने पछी केटलाक कायर माणसो नासी गया. // 29 // पछी पोतानी मणिना तेजथी अंधकारना समूहने नाश करनारो सर्प धोमे धीमे पाताल गुफा तरफ चाल्यो. // 30 // Jun Gun Aaradha Trust KIR
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________________ PPA Gunnsut MS आगच्छेति वचः श्रुत्वा, तस्य वक्रविनिर्गतम् // मंत्री धार मनः कृत्वा, प्रचालादनुपनगम 31 इन्च गच्चन मैत्री सुखं सर्प, धृतदीप वांग्रगे // पातालविवरे शेशीइम्यां कुसुमवाटिकाम्॥३॥ ते सर्पना मुखथी निकलेला “म्हारी साथे चाल" एवां वचन सांभली मंत्री मनने धीर करी सर्पनी पाछल चाल्यो. // 31 // दीवाने धारण करी रह्यानी पेठे सर्प आगल चाले छते मंत्रीये सुखे जता छतां पाताल मुफामां मनोहर एवी पुष्पनी वाडी जोइ. / / 33 // मंदारचंपकाशोकपाटलऽमवासिताम् // तां वीदय हेदि दध्यौ स, महदेतत्कृतहलम् // 33 // वाटिकांतःस्थित तारतादृक्पुष्पविराजितम् // मैदारतरुमालोक्य, स एवं मुदादधेः // 3 // ___मंदार, चंपो, अशोक अने पाटलाना वृक्षोथी सुगंधवाली ते बाडीने जोइ मंत्री हृदयमां विचार करवा लाग्यो के, "आ म्होटुं आश्चर्य छे." // 33 / / वाडीनी मध्यमा रहेला अने उत्तम तवां पुष्पोथी सुशोभित एका मंदारवृक्ष ने जोइ मंत्री ए प्रमाणे हर्ष पाम्यो. // 35 // . तेरुतोऽमूनि पुष्पाणि, गृहीत्वा यामि नूरिशः॥ दत्तेष्वेतेषु पुत्राय, प्रीतो नेवेतु पौर्थिवः॥३॥ इति ध्यात्वा ततः पुष्पाप्त्यादौतुर्मुपचक्रमे // सर्पःस्पृष्टं तमाचष्ट, मर्यवाचा ग्रेहाण म॥३६॥ ___ " वृक्षथी घणां एवां आ पुष्पोने लइने हुं जाउं अने राजपुत्रने ते आपे छते राजा प्रसन्न थाओ". // 36 // ए प्रमाणे विचार करीने पछी जेटलामां ते पुष्पोने लेवानो आरंभ करे छे तेटलामा सर्प मनुष्यनी वाणीथी तेने | स्पृष्ट का के, “ए पुष्पोने तुं न ले. // 36 // . लच्यते न मुधा पुष्पाण्यप्रनुर्वाटिकापि नः॥गल वत्स गृहीत्वा तत् कुसुमानां चतुष्टयम्॥३॥ कार्य चेत्प्रचुरैरे'तैस्तदा मान्यं वचो मम // अहं प्रातःसमेष्यामि, स्वयमेवे सन्नातरे॥३॥ ___ अमारी वाडी छे पण असमर्थ पुरुष पुष्पोने फोगट लइ शकतो नथी, माटे हे वत्स! चार पुष्पोने लइ चाल्यो जा. // 37 // जो आ घणां पुष्पोर्नु काम होय तो म्हारं वचन मान्य करवं. हुं सवारे म्हारी पोतानी मेले सभामां आवीश." // 38 // . Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण // 3 // P.P.A. Gunratnasuti MS **XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX इति प्राध्य स्थिते सर्प, कुसुमानां चतुष्टयम् // गृहीत्वा सचिवोऽचालीसपोऽनूँत्पूर्ववत् पुरैः३५ चर्चा स्थिते से गुहाघारे मैत्रो विस्मितमानसः॥ आगत्य नूपते पार्थे,' ददौ पुष्पचतुष्टयम् // ___ए प्रमाणे कहीने सर्प उभो रह्यो एटले प्रधान चार पुष्पोने लइ चाली निकल्यो एटले सर्प पूर्वनी पेठे / आगल चाल्यो. // 39 // गुफाना बारणे सर्प उभो एटले विस्मितमनवाला मंत्री राजानी पासे आवी चार पुष्यो आप्यां.॥४०॥ गृहीत्वा तानि पुष्पाणि, पत्रे प्रमुदिते सति॥ नुजाने नोज्यमबापि,प्रीतानुक्त संखोयुता॥१॥ मंत्रिणा सर्ववृत्तांते, कथिते सति नूपतिः॥ प्रातः संन्नामलंचके, नन्नोदेशमिवार्यमा // 3 // ते पुष्पो लइने राजकुमारे भोजन करे छते माताये पण प्रसन्न थह सखोयो सहित भोजन करयुं. / / 41 // मंत्रोये सर्व वृत्तांत को छते राजाए सवारमा सूर्य जेम आकाशने सुशोभित करे तेम सभाने सुशोभित करी.॥४२॥ वेत्रिणा वेदितो वृशे, विप्रस्तत्र समागतः। तस्य पृष्टानुगा कन्या, सलावल्या समाययौ॥३॥ | मंदारामपुष्पाणि, प्रानृतीकृत्य पाणिना। से विप्रो नजे दैत्वांशीर्वाद च निविष्टवान॥४॥ ते वखते द्वारपाले जाहेर करेलो वृद्ध ब्राह्मण त्यां सभामां आव्यो अने तेनी पाछल आवती एदी लावण्यवाली कन्या पण त्यां आवी. // 43 // ते ब्राह्मण राजाने हाथवती मंदार वृक्षना पुष्पो भेट करीने अने आशीर्वाद आपीने वेठो. // 44 // के यूयं कुत आयाताः, केयं कन्या मनोरमाएतानि कुत्र लन्यते,पप्पाणिप्रेचुराणि च॥४५॥ सोऽवादीन कथं पृष्टस्त्वया मैत्री सएव हि // यं तस्याग्रे गुहामध्ये, प्राँगे प्रकटोऽनवम् 46 पछी राजाए पूछयु " तमे कोण छो? क्याथी आव्या छो? आ मनोहर कन्या कोण छे ? अने आ बहु पुष्पो क्याथी लाव्या छो?" // 45 // ब्राह्मगे कयु. " तमे ते मंत्रीने शुं नथी पूछयु? जे हुँ गुफानी मध्ये तेनी आगल प्रथमज प्रगट थयो इतो. // 46 // Jun Gun Aaradhak Trust XBaa
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________________ P.PAGunratnasuti MS नृपे मंत्रिमुखं पश्यत्यंकरोत्दणादसौ // सर्परूपं महाकायं, शिरःस्फू जन्मणिद्युतिः॥४॥ लोके बिभ्यति तत्कालं,विप्ररूपं पुनर्दधौ ॥विस्मितस्तंनृपः प्रोचे,कोऽसि त्वं सत्यमुच्यताम् 48 राजाए मंत्रीना मख सामु जोयु एटले ए ब्राह्मणे तत्काल म्होटा शरीरवालुं अने माथा उपर देदोप्यमान मणिनो कांतिवालु सर्परूप करयं. // 47 // लोको भय पामवा लाग्या एटले तुरत तेणे फरी ब्राह्मणर्नु रूप धारण करयु. पछी विस्मय पामेला राजाए तेने पूछयु के " तमो कोण छो? ते सत्य कहो." // 48 // से जंगौ देवशर्मानूप्रिो वेदेषु पारगः॥ सुग्रामनामनि ग्रामे, गौरी तेस्य च वैजना॥ वाईकेच तयोर्जाता, सुता रूंपजितामरो // चतुर्वर्षप्रमाणायां, तस्यां स ब्राह्मणो मृतः॥५॥ तेणे कयु. " सुग्राम नामना गामने विषे वेदपारगामी देवशर्मा नामनो ब्राह्मण हतो अने तेने गौरी नामनी स्त्री हती. // 49 // वली वृद्धावस्थामा तेओने रूपथी देवांगनाओने जीतनारी पुत्री थइ. ते पुत्री चार वर्षनी थइ एटलामां ते देवशर्मा ब्राह्मण मरी गयो. // 50 // ब्राह्मष्यपि मृता सोऽनध्यंतरेषु महोरगः॥पातालविवरे तेन क्रीडार्थं वोटिका केता // 51 // अवधिज्ञानतो ज्ञात्वा, निराधारां निंजा सुताम् ॥स्वपार्श्वे स्थापयामास,कियत्कालं समाहितः॥ ब्राह्मणी पण मरी गइ. ते ब्राह्मण व्यंतर देवतामां महा सर्प थयो अने तेणे पाताल गुफामां क्रीडाने माटे वाडी बनावी // 51 // पछी अवधिज्ञानथी पोतानी पुत्रीने निराधार जाणीने तेणे सावधानपणाथी केटलोक काल तेने पोतानी पासे राखी. // 52 // तेस्या योग्य नवत्पुत्रं, झात्वा सांप्रतमेतयागयुक्त्या सोऽहं संमायातस्तत्कीर्य सिध्मिानय // तैदानाय्य नेपः पुत्रं, निजोत्संगन्यवेशयत् ॥योग्यं वरं च कॅन्यांच,हेष्वा ?ष्ठोऽखिलो जैनः एच ते म्हारी पुत्रीने योग्य तमारा पुत्रने जाणीने ते हुँ हवणां आयुक्तिथी अहिं आव्यो छु, माटे ते कार्यने * सिद्ध करो. // 53 // ते वखते राजाए पुत्रने बोलावीने पोताना खोलामां बेसारयो एटले योग्य एवा वरने अने कन्याने जोइ सर्वे माणसो हर्ष पाम्या. // 54 // . Jun Gun Aaradhak Trust Dna avne
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________________ गुण Hon PP.AC.Gunratnasuri M.S. | तदा पुष्पाणिपुष्पाणी त्येवं जैब्पन् सुकोमलम् // लात्वा तानि पुरस्थानि,जंघौ नॅपतिनंदनः॥ नागो जंगौ चेङ्गामाता, जातो मेऽयं र्नु तन्मयाँ // नित्यमस्मै प्रदेयोनि, 'मदारकुसुमान्यपि // __ते वखते "पुष्पो पुष्पो" एम मधुर वचन बोलतो राजकुमार ते आगल पडेलां पुष्पोने लइने सुंघवा लाग्यो. // 55 // नागे कह्यु."जो आ म्हारो जमाइ थयो छे! ! तो म्हारे तेने निरंतरमंदार जातिनां पुष्पो पण आपवा.॥५६॥ नवत्कुले पिनो सर्पविषं च निविष्यति // अथो नपस्तयोः पाणिग्रहोत्सवमैकारयत्॥५॥ अनुज्ञाप्य गते नागे, राजा राज्यमपालयत् // नागपुत्र्या संमं रेमे", यौवनस्थो नृपांगजः एज ___ वली तमारा कुलने विषे पण सर्प विष नहि चडे." पछी राजाए तेओनो विवाह महोत्सव कराव्यो. // 57 // पछी नाग रजा लइने गयो एटले राजा राज्य करवा लाग्यो अने यौवनावस्थामां आवी पहोचेलों राजकुमार नागपुत्रोनी साथे क्रीडा करवा लाग्यो. // 58 // ईतश्च धर्मघोषाख्यः, सूरिस्तंत्र समागतः॥ ज्ञानवास्तं नैपो"नंतुं, पुत्रेण संहितो ययौ।एण॥ श्रुत्वोपदेशं प्रच, नृपस्तं केन हेतुना // पुत्रस्य नाग्यं सौन्नाग्यमद्भुतं चं निरीक्षते" // 6 // ___ एवामां त्यां ज्ञानवंत एवा धर्मघोषसूरि आव्या, तेथी पुत्रसहित राजा तेमने वंदना करवा गयो.॥५९॥ त्यां धर्मोपदेश सांभल्या पछी राजाए तेमने पूछयु के, “शा हेतुथी पुत्रनुं भाग्य अने अद्भुत सौभाग्य देखाय छे. 60 मुनिः पूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, सुतो लक्ष्मीधरोऽवत्॥६१॥ अनेन शुनावेन, यच्चक्रे जिनपूजनम् // पुष्पपूजाविशेषच, तेनास्यानुतनाग्यता // 6 // ___ मुनिये पूर्वभव कह्यो के, इस्तिनापुर नगरमां धनदत्त शेठने लक्ष्मीधर नामनो पुत्र हतो.॥ 61 // एणे शुद्ध भावथी जे जिनपजन करयं अने पुष्पपजा विशेप करीः तेथी तेनं अन्नत भाग्यपणं छे. // 12 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasus M.S. साफल्यं जायते किंतु, पुष्पाणां जिनपूजनात्॥श्रतोऽस्य पूजनं कार्य, श्रेयोर्थ कुसुमोत्करैः कुमारस्य नवे प्राच्ये,श्रुतेऽनूऊन्मनःस्प॑तिः॥'विशेषादोर्हतं धर्म, 'प्रपेदेऽसौ ततो मुंनेः॥६॥ वली जिनराजना पूजनथी पुष्पोर्नु पण साफल्य थायडे, माटे कल्याणने अर्थे पूष्पना समूहथी जिनराजनुं पूजन करवं. // 63 // पूर्वभव सांभले छते कुमारने जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न थयु, तेथो तेणे मुनिनी पासे विशेषे अरिहंत धर्म आदरयो. // 64 // * मुनि नत्वा पुरं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसुनवे॥पतिर्विमः प्रौप्य, संयम शिवमासदत॥६॥ | अंथो विजयचंशेडेपि,प्राज्यं राज्यपालयत्॥ ग्रीष्मे रिपुं महामन्चं, 'निर्जेसं गतोऽन्यदा॥ पछी मुनिने नमस्कार करी, नगरमा जइ अने पोताना पुत्रने राज्य आपी राजा विक्रम चारित्र लइ मोक्ष - पाम्यो. // 65 // पछी विजयचंद्र पण समृद्धिवंत एवा राज्यनुं पालन करवा लाग्यो. कोइ दिवस ते उनालानी रुतुमां महामल्ल नामना शत्रुने जितवा माटे चाल्यो. // 66 // सैन्ये गते महाटव्यां, स्थिते सति महीपतौ // जिनपूजोद्यते नागस्तदा पुष्पाणि नोनयेत् // देवदग्धमायां चाटव्यामपि जनःवचित्॥ न लेने कुसुमं कंचित् , सर्व खिनं ततो बैलम्।। म्होटा अरण्यमा आवी पहोचेला सैन्ये पडाव करयो अने राजा त्यां जिनराजनुं पूजन करवा तैयार थयो, परंतु ते वखते हमेशनी पेठे नाग पुष्पो लाग्यो नहि. // 67 // वली माणस दावानलथी दग्ध थयेला ते वनमा कोइ ठेकाणे कांइ पुष्प मेलवी शक्या नहि, तेथी सर्व सैन्य खेद पाम्यु. // 68 // . सामंता नृपति प्राहुः, पूजां चंदनकेशरैः॥ कुंरूष्व नोजनं चापि, शेरीरं सहते ने हि // तथापि निश्चले राझि, नोजनं "नै कुर्वति॥ दिनस्य पश्चिमे पामे, नौगो व्योनि समापयौ॥ ____सामंतोये राजाने का. " हे महाराज ! चंदन केशरथी पूजा करो अने भोजन पण करो. कारण निश्चे शरीर भूख सहन करी शकशे नहि." // 69 // सामंतोये कह्या छतां पण निश्चल एवा राजाए भोजन करयु नहि, एवामां दिवसना पाछला प्रहरे नाग आकाशमां आव्यो.॥ 70 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasuri M.S.. XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX | जय त्वं पृथिवीनाथ, परीकेयं कृता मया॥ Jहाणैतानि पुष्पाणि, कुरु पंजी जिनेशेतुः॥१॥ चरित्र, पूजां कृत्वा च नुक्त्वा चे, नेपो यावत्सुखं स्थितः॥ तावनागेन बैशेरिन गपासैःसमागतः।। ___हे भूपाल! तुं जयवंतो रहे. में आ रहारी परीक्षा करीछे. आ पुष्पो ले अने जिनेश्वरचं पूजन कर. // 71 // पछी पूमा करी अने भोजन करी राजा विजयचंद्र जेटलामां सुखे बेठो छे तेटलामा नागे नागपासथी वधिलो शत्रु महामल्ल त्यां आव्यो. // 72 // मानयित्वा निजामाझा, सेनेपेन विमोचितः॥ ततो येयौ निजं स्थानं, महोत्सवपुरस्सरम्॥ पालयित्वा चिरं राज्यं, प्रोंते दत्वा स्वसूनवे ॥गुरोः संयममाप्या सौ, सौधर्मत्रिदिवं ययौ॥ - पंछी विजयचंद्रे तेनी पासे पोतानी आज्ञा मनावीने छोडी दीधो अने पोते महोत्सवपूर्वक पोताना नगरप्रत्ये आव्यो. // 73 // त्यां ते बहु काल राज्य पाली अंते पोताना पुत्रने आपो पोते गुरु पासे चारित्र लइ पोते सौधर्म देवलोक प्रत्ये गयो. // 74 // सुखान्यसौं चिरं नुक्त्वा, देवलोकार्ततयुतः // पंचमः पद्मनामाननयस्ते नेरेश्वर॥५॥ . (नरवर्मा गुणवर्माने कहेछे के,) हे राजन्! त्यां ते वहुकाल सुख भोगवी अने पछी देवलोकथी चवीने ते त्हारो पद्म नामनो पांचमो पुत्र थयो छे. // 75 / / // इति पुष्पपूजाधिकारे लक्ष्मीधर कथा // Jun Gun Aaradhak Trust * माल्यपूजा कृता येने, फैलं तस्य निर्गद्यते // नरतक्षेत्रमध्येऽस्त्ययोध्यानाम महापुरी॥६॥ __जेणे माल्यपूजा करी छे तेनुं फल कहेवाय छे. आ भरतक्षेत्रनी मध्ये अयोध्या नामनो महानगरी छे.॥७६॥ 1 // RTILITIET ATMITTIT
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________________ PPAC Gunun MS | श्रीदत्तो नृपतिस्तंत्र, श्रीमती तस्य च प्रिया // धनेशो माल्यपूजाकृत्तत्कुका समवातरत् / / स दोहंदावसरे तस्या, माल्यतल्पे सुखं शेये॥ इत्यनूदोहँदः सोऽपि",ईपितः प॒थिवीजे // ते नगरीमां श्रीदत्त नामनो राजा राज्य करतो हतो अने तेने श्रीमती नामनो खो हतो. हवे माल्यवडे / जिनराजनुं पूजन करनारो धनेश ते श्रीमतीना उदरने विषे अवतरयो. // 77 // दोहदना अवसरे ते श्रीमतीने "माल्यनी शय्यामां सूदूं." एवो दोहलो उत्पन्न थयो, तेथी तेणे राजाने ते दाहलानी वात जणावी. // 78 // आरामिका नृपादिष्टा, मायानयनहेतवे // प्रोचिरे देवे निर्दग्धं, हिमेनं सकलं वनम्॥ IN 'चेनं प्रतीतिस्तनृत्यैनि जैरेव निरीदताम् ॥'तथैवं कृत्वा नूपालश्चिते चिंतातुरोऽनवत् // a पछी माल्य लाववाने माटे राजाए आज्ञा करेला मालो लोकोये कडं के, " हे देव! हिमधी सघलुं वन बली गयुं छे. // 79 // वली जो आपने विश्वास न भावतो होय तो आपना ज सेवको मोकलीने जोवरावो." राजा पण तेम करीने पछी चित्तमा बहु चिंतातुर थवा लाग्यो. / / 80 // दोहेदापूरणा देवी, निशां निन्ये कशा संतो // प्रातरारामिकोवं', विज्ञप्तं च महीनुजे॥ अहो चित्रं अहो चित्रं, सायं दग्धमधनम्॥'पुष्पितं दृश्यते से,वसंत व सांप्रतम् // 7 // __जेनो दोहद पूर्ण थयो नथी एवी राणी श्रीमतीये दुर्बल थइने रात्री निवृत्त करी, पवामां सवारे माली लोकोये आवीने राजाने आ प्रमाणे विनंती करी. // 81 // "अहो आ आश्चर्य छे! अहो आ आश्चर्य छे !! के जे सांजे वन बली गयेलु इतुं ते हमणां वसंत रुतुनी पेठे सघलं पुष्पवंत थयेलु देखाय छे. // 8 // तंदैवारानीकानीता, पुष्पमाल्यप्रकल्पिता ॥तटपमासेव्य सा देवी, जीता संपूर्णदोहदा॥३॥ संजाते समये पुत्रे,कृत्वा जन्ममहोत्सवम्॥माल्यदेव इति प्रोत्या, तस्य नाम नृपोव्यधात्॥ ते वखते पुष्पमाला रचिने माली लोंको लाव्या तेथो तेनी सय्यामां सयन करोने श्रामतो पूर्ण दहोला वालो थइ.।।८३॥अवसरे पुत्र उत्पन्न थयो एटले राजाए जन्म महोत्सव करीने तेनुं प्रोतिथी माल्यदेव ए नाम पाडयु.७४ Jun Gun A nak Trust @ne
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________________ PP Guntasun MS गुण वईमानः कृमेणासौ, कलाकौशलपेशलः // तारुणयमाश्रितश्चक्रे, कन्याचिंतापरं नृपम् // आध॥ ईतश्च नदिलपुरे, सोमदेवनृपोऽनवत्॥ सोमचंशनिधा देवी, सोम॑श्री तत्सुता नवत् // 6 // ___ अनुक्रमे वृद्धि पामतो अने कलानो जाण एवो ते कुमार युवावस्थामां आवी पहोच्यो, तेथी राजा कन्यानो शोध करवामां चिंतातुर थयो. // 85 // हवे ते वखते भदिलपुरमा सोमदेव राजा राज्य करतो हतो, तेने सोमचंद्रा नामनी स्त्री हती. ते राणीने सोमश्री नामनी पुत्री हती. // 86 // . तस्याः संखीत्वमापन्ना, मंत्रिश्रेष्ठिपुरोधसाम् // पुत्र्यास्तानियुता सैषा,ययौ क्रीडाँचलं वन॥ मंतेस्म मंतिस्म, जल्पंतिस्म यदृच्छया।तास्तत्र वानरीवृंदं, पश्यंतिस्म संवानरम्॥ज्जा * मंत्री, शेठ अने पुरोहितनी पुत्रीयो . ते राजकुमारोनो व्हेनपणीयो थइ तेथी ते राजकुमारी ते व्हेनपणीयो [25] सहित वनमां क्रीडा करवाने पर्वत उपर गइ. // 87 // त्यो तेश्रो मरजी प्रमाणे रमती हती, भमता हता अन बोलती हती एवामां तेमणे वानर सहित वानगना टोलाने दीर्छ. // 88 // वानरीनिः संह कीडनबीडंस्तानिरीकेतः॥ कपिश्चपलतां चक्रे, वृक्षाणामंतरं जन् // 7 // वानर्यः प्रोचिरे शैल पर्युपरिपादपान् ॥पैश्यंत्यस्ताः संजो देहि, पुष्पाणां नैः पृथक्पृथक् वानरीयोनी साथे क्रीडा करतो अने ते कन्याओए जोवायेलो वानर वृक्षोनी अंदर जतो छतो चपलपणुं करतो हतो. // 89 // पछी पर्वत उपर वृक्षांने जोती एवी वानरीयो कहेवा लागी के, “पुष्पोनी ते मालाआ अमने जूदी जूदी आप. // 90 // एका नमिस्थितस्य नितंबस्थस्य चापरा ॥शंगस्थस्य तरोन्या, येयाचुः कुसुमस्रजः॥ * फालां दत्वा देणेनैर्षे, तान्यस्तोः कुसुमस्रजःदिदौ तहोदय तोः संख्यः, प्रोचिरेच परस्परम् _____ एके भूमि उपर रहेला वृक्षस्य, बीजीये पर्वतना मध्यभाग उपर रहेला वृक्षनी अने त्रीजीये शिखर उपर * रहेला वृक्षनी पुष्पमाला मागी. // 91 // ए वानरे क्षणमात्रमा फाल दइने ते पुष्पमाला ते स्वीयोने आपो. ते जोइ ते सखीयो परस्पर कहेवा लागी. // 92 / / Jun Gun Aaradhak Trust Ang //
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS धन्या इमास्तिरश्चोऽपि, यासामेवं' वैशंवदः // देदाति वानरः कांतः, कॉमिताः कुसुमस्रजः॥ सोमश्रीस्ता प्रति प्रोचे, "किमेवं कथ्यते हैलाः॥ गुणा एंव विलोक्य ते, नारीणां नर्तृमानदा॥ ___आ तिर्यंचोने पण धन्य छे के, जेमने आ प्रमाणे वश थइ रहेला वानरपति इच्छित एवी पुष्पमाला आपे | छे. // 93 // सोमश्रीये ते सखीयोने कह्यु. “अरे तमे एम केम बोलो छो ? कारण स्त्रीयोना पतिने मान आपनारा गुणोज जोवाय छे. // 94 // यावद्विवाहो मे जातो, हे'संख्यः किल तावता॥ओनाययिष्यते नत्रा, मौला मेरूँतरोरपि // संख्यस्ता प्रोचिरे मुग्धे, वक्तुं नो वेर्सि सर्वथा॥ मानवानां कुतो मेहँस्थितकल्पतरोः संजः॥ ___हे सखीयो ! जेटलामां म्हारो विवाह थयो तेटलामां निश्चे हुं पतिनी पासे मेरुपर्वतना वृक्षना पुष्पोनी माला - मगावीश. || ए | सखीयोए कह्यं. "अरे मुग्धा! तं सर्व प्रकारे बोलावाने जाणती नथी. कारण माणसोने र मेरुपर्वत उपर रहेला कल्पवृक्षनी माला क्याथी होय? // 96 // तावत्मानं प्रयच्छति, यावद्युक्तं हि याच्यते // नारोऽप्यवमन्यंते, त्वयु ते ब्रह्मदत्तवत् 9 // को ब्रह्मदत्त इत्युक्ते, प्रोचे पुत्रो पुरोधसः // पंचालदेशे कॉपीटयपुरमस्ति मनोहरम् // 9 // जेटलुं योग्य याचना कराय तेटलुं त आपे छे, परंतु पतियो पण अयोग्य याचनाने विषे ब्रह्मदत्तनी पेठे के अपमान करे छे." // 97 // "ब्रह्मदत्त कोण?" एम राजकुमारोये पूछयु एटले पुरोहितनी पुत्रीये कयु के, "पांचाल देशमां मनोहर एबुं कांपोल्यपुर नामर्नु नगर छे. // 98 // ब्रह्मदत्तोऽनवत्तत्र, चक्री सुशमसंनिन्नः / तस्मै तहकनागेन, वरो देत्तोऽयमोदृशः॥ए॥ सर्वेषामपि जीवानां, नाषां त्वमवनोत्स्यते // यदा वैदेसि चान्यस्मै, तैदा मृत्युमवाप्स्यसि // त्या ब्रह्मदत्त नामनो इंद्र समान चक्री राजा हतो. ते राजाने तक्षक नागे एवो वरदान आप्यो हतो के.॥१९॥ "तुं सर्वे जीवोनी भाषाने समजीश, पण ज्या ते वात बीजाने कहीश त्यारे तुं मृत्यु पापीश. // 10 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ // 3 // PPA Gunnatut MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX अन्यदा ग्रीष्मकालेऽ सौ, स्नात्वा विहितन्नोजनः पुष्पस्त्रग्चंदनालेपशाली तडपमसेवत // तेदा पुष्पवती देवी देवीवाद्भुतरूपन्नाक् // शसनर्मलंकृत्य, निविष्टों चुपतेःपुरः // 17 // ____ कोइ वखते ते राजा उनालानी रुतुमा स्नान करी, भोजन करी अने पुष्पनी माला धारण करवा पूर्वक शरीरे चंदननो लेप करी शय्यामां सूतो हतो. // 101 // ते वखते देवीना समान अद्भुतरूपवाली पुष्पवती राणी भद्रासनने सुशोभित करीने राजानी आगल वेठी. // 102 // चारुकपुरकस्तुरिचंदनवनाजनम् ॥नारपट्टस्थिता गोधा, वीक्ष्य प्राह पति प्रति // 103 // पतित्वा नारपट्टात्त्वं, चंदनवनाजने // आलेपय मँमाप्यंगं, स्वांगसंगेन 'हेप्रिय // 10 // ____ आ वखते भारवाट उपर वेठेली घरोलीये मनोहर कपूर अने कस्तूरिवाला चंदनना रसना पात्रने जोइ पतिने कडं. // 103 // हे प्रिय ! तमे भारवाटथी चंदनना रसना पात्रने विषे पडीने पोताना अंगना संगी म्हारा शरीरने पण लेप करो." // 104 / / इति श्रुत्वा च तंद्राषां, पॅरिझाय च नृपतिः॥ हाश्यं चकार गोधीया,अध्यहो कीदृशी स्पृहा॥ नृपं पुष्पवती 'प्रोचे,तेदृष्टी स्वात्मशंकिता। हास्ये प्राणेश को देतः से जंगी नास्ति कश्चन॥ __आवां घरोलीनां वचन सांभली अने ते समजीने राजा हश्यो अने विचार करवा लाग्यो के, "अहो ! घ रोलोने पण केवो स्पृहा होयछे. // 105 // ते जोइ पोताने विषे शंका पामेली पुष्पवतोये राजाने कयु. “हे पाणनाथ ! आप शा कारणथी हश्या!" राजाए कह्यु. “काइ नहि." // 106 // मेघाविनां विना हेतुं हास्यं न क्वापि जायते।तेदापास्यामिनोदयेच,यदा त्वं कथयिष्यसि॥ राणीये कह्यु. “बुद्धिवंतने कारण विना हास्य क्यारे पण होतुं नथी, माटे ज्यारे तमे कहेशो त्यारेज हुं * पाणी पीश अने भोजन करीश. // 107 // कयुं छे के Jun Gun Aaradhak Trust 3 //
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________________ P.PA. Gunratnasuti MS बालसखित्वमकारणहास्यं, स्त्रीषु विवादमसैऊनसेवा // __गर्दनयानमसंस्कृतवाक्यं, बसु नरा बँघुतामुपैयांति // 17 // . बालकनी साथै मित्रता, कारण विना हास्य, स्त्रीयोने विषे विवाद, असज्जन माणसनी सेवा, गधेडा उपर बेसबुं अने विचार विना बोलवू ए छने विषे माणसो हलकाइ पामे छे.॥ 108 // इत्याग्रहपरां देवी', पुनः प्राह महीपतिः।नतोस्मिन्न गुणः कोऽपि",प्रत्युतापार्य एव हि // सा प्रोचे तत्करिष्यामि,निश्चित काष्टलक्षणम् // नूपो जगौ नविष्यामि,तदहं मैपि पृष्टगः॥ राजाए ए प्रकारना आग्रहवाली राणीने फरीथी कह्यु के, “निश्चे ते कहेवामां काइपण गुण नथी, परंतु | नाश ज छे. // 109 // पुष्पवतीये कह्यु. "तो हुँ निश्चे अग्निमां बली मरीश." राजाए कह्यु. "तो हुँ पण रहारी पाछल आवीश. अर्थात् हुं पण वली मरीश. // 110 // तेतः सा चलिता शीघ्रं, काष्टलक्षणहेतवे // रुंदता परिवारेण, संहिता साश्रुलोचनम् // 111 // मंत्रिन्नूपालसामंतैर्वार्यमाणो महाग्रहात् ॥चयपिचालीनत्स्नेहपाशबश्पतत्रिवत् 112 // ___पछी ते आंसुने वरसावता, रुदन करता परिवार सहित बली मरवा माटे तुरत चाली निकली. // 111 // मंत्रि, राजाओ अने सामंतोए बहु आग्रहथी वारया छतां पण ब्रह्मदत्त चक्री ते स्त्रीना स्नेहपाशथी बंधायेला पक्षीनी पेठे तेनी पाछल चाल्यो. // 112 // प्रातचतुष्पथे चक्री,संशोकै 'क्षितो जनैः।ततःशएवति नूप च,गंगी गगं जंगाविति // जातोऽस्ति दोहदो मेऽद्य, हृद्यं शकटसंचयात् ॥यांनीय देहि त्वं मां,यवपूलकपंचकम् // . सवारे चोकमां चक्रीने शोकवंत एवा माणसो जोवा लाग्या, एटलामां राजाना सांभलतां छतां कोइ बकरीये बकराने कह्यु. // 113 // "आजे मने दोहलो उत्पन्न थयो छे, माटे तमे आ गाडाओमांथी मनोहर जवना पांच पूला लावीने मने आपो. // 114 // . Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण // 4 // PP.AC.Gunratnasun M.S. से जगौ शकटा एते, राज्ञस्तुरंगहेतवे // नीलैर्यवैनृतो याति, गुणन् माज नैरहम् ॥११॥चा सा प्रोचे कातरः कीद्वंग , वर्तसे त्वं वस्तले // अयं चक्रधरो योति, नार्यया सह मृत्यवे॥ ... बकराए का " लीला जवथी भरेला आ गाडाओ राजाना घोडा माटे जायछे, माटे जो हुं तेमांथो लघु तो माणसोनो मार खावो पडे. // 115 // बकरीये कह्यु. "पृथ्वी उपर तु केवो कायर छ ? आ चक्रवर्ती - राजा पण स्त्रीनी साथे मृत्यु पामवाने मारे जायछे, // 116 // से प्रोचे केवलं नाम्रा,बोकटोऽस्मि परं नृपः॥ परिणामेन यः स्यर्थे,वृथा रोज्यं समुज्झति॥ श्रुत्वेति सस्मितश्चक्रो, व्यावृत्तः स्वगृहं प्रति ॥प्रोचे प्रिये वयं योमस्त्वया गेम्यं यथारुचि॥ _.. बकराए कह्यु. “हुँ फक्त नाम मात्रथी वकरो छु; परंतु राजा तो परिणामथी बकरो छे के, जे स्त्रीने मारे न राज्यने वृथा त्यजी दे छे." / / 117 // बकराना एवां वचन सांभली हास्यसहित ब्रह्मदत्त चक्री घर तरफ पाछो चाल्यो. वली तेणे स्त्रीने कडं के," हे प्रिये! अमे घरे जइए छीए अने हारे मरजी प्रमाणे जवू."॥११८॥ श्रुत्वेति'नॅपतिं वीक्ष्य,प्रेयांत स्वगृहं प्रति॥ लोके हँसति संप्राप्ता,विलेंदा सोपि" मंदिरेम्॥ ब्रह्मदत्त कथासैषा, नरतेऽर्थ नविष्यति // जूतवनविनां प्रोन्यमित्यतीता मैयोदितौ // 10 // ए प्रमाणे सांभली अने पोताना घर प्रत्ये जता एवा राजाने जोइ लोको हसवा लाग्ये छते विलक्ष थयेली ते पुष्पवती पण घरे गइ. // 119 // आ ब्रह्मदतनी कथा भरतक्षेत्रमा थइ छ, माटे थवा जेवू कार्यज कहे. ए कारण माटे में आ थइ गयेली वात कही छे. // 120 // अंतस्त्वयापि वक्तव्यं, युक्तमेव स्वनर्तरि॥ प्रायः पुमांसः स्वाधिनाः पराधिना हि योषितः॥ सोमश्रीस्ताः प्रति प्रोचे, तत्त्वं शणत हेहेलापर्बलाकिमपि न प्राप्यं गुणे रैव च लेन्यते॥ ____ माटे त्हारे पण पोताना पतिने योग्यज कहेवू. कारण घणुं करीने पुरुपो स्वाधिन होयछे अने स्त्रीयो पराधिन होय छे. // 121 // सोमश्रीये ते सखोयोने कह्यु. " हे सखोयो! तत्त्व सांभलो. बलथी काइपण मलतुं नथी, परंतु गुणथीज मले छे. // 122 // धा Jun Gun Aarada Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS "इंदं तावन्मया प्रोक्तं, नवतानिः श्रुतं पुनः॥ समय ज्ञास्यत सव, साप्रत किमु कथ्यत 13 अथ ताः स्वगृहं प्राप्ताः प्रीतिन्नाजः परस्परम् // श्रीदत्तसूनवे देत्ता, सोमश्रीः समहोत्सवम् // प्रथम आ में कहेलुं छे अने तमोए सांभल्युं छे, ए सर्व अवसरे जणाइ आवशे. हमणां शं कहीये. // 123 // पछी परस्पर प्रीतिना पात्ररूप ते सर्वे कुमारीयो पोते पोताना घरे गइ. सोमदेव राजाए पण श्रीदत्त राजाना पुत्र माल्यदेवने महोत्सवपूर्वक सोमश्री आपी. // 124 // श्रीदत्तो माल्यदेवाय,दैत्वा राज्यं स्वसूनवे॥ गृहीत्वा तापसी दीदी,ज्योत्तिष्केवमरोऽनवत् // माल्यदेवस्तया सोमश्रिया सह मधौवनम्॥ ययौ सयौवनस्तां स, रमयामास 'नंगीनिः॥ पछी श्रीदत्ते पोताना पुत्र माल्यदेवने राज्य आपी पोते तापसीदीक्षा लइ ज्योतिष्क देवताने विषे देवपणुं पाम्यो. // 135 // कोइ वखते माल्यदेव वसंतऋतुमां ते सोमश्री सहित उद्यानमा गयो, त्यां योवनवंत एवो ते सोमश्रीने क्रीडाथी रमाडवा लाग्यो. // 126 // तिश्च नारदो देवगंधर्वोऽष्टापदे जिनम् // नपवीण्य प्रमोदेन, चलतिस्म दिवं प्रति // 17 // तेस्य वीणास्थिता माला पैतिता वायुवेगतः।तस्याः सोमश्रियाः शीर्षे,स्थिता चातपशोषिता॥ एवामां देवगंधर्व नारद अष्टापद उपर जिनेश्वरने स्तवन करीने हपंथी स्वर्ग प्रत्ये जता हता. // 127 // ते * नारदनी वीणा उपर रहेली माला वायुवेगथी पडी गइ अने तापथी करमाइ गयेली ते माला ते सोमश्रीना माथा उपर पडी. // 18 // तो स्रजं सा करे कृत्वा,पश्यंती प्रेयसो मुखम्॥प्रोचे शुष्मापि कीदृता,मौला परिमैलान्विता॥ नेपः प्रोचे प्रिये सेयं,स्वर्गमसमुन्नवा ॥बाल्योक्तं स्ववचः स्मृत्वा,साततो पति गौ // सोमश्री ते मालाने हाथमां लइ पतिना सामु जोती छती कहेवा लागी के, "करमाइ गयेली एची पण आ * माला केवी सुगंधवाली छे.!!! // 129 // राजाए कहूं. "हे प्रिय! ते आ स्वर्गना कल्पवृक्षना पुष्पनी बनावेली माला छे." पछी ते सोमश्रीये बाल्यावस्थामां कहेलुं पोतानुं वचन संभारीने राजा माल्यदेवने कह्यु.॥१३० Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ A. PAPA Gunratnasuti MS मंदारतरुसंन्नता, माला नव्या प्रेयच्छ में॥अन्यथा नैव नोये , न पास्यामि चे किंचन // चरित्र. // 4 // नृपः प्राह कुतः स्वर्गपुष्पमाला नवेद्भुवि।सा प्रोचे 'जीवितेनालं, सैराज्येनापि तन्मम 135 - "मने मंदारवृक्षनां पुष्पथी बनावेली नवीन माला आपो, नहि तो हूं भोजन नहि करूं; तेमज काइ पण / पान नहि करूं."॥ 131 // राजाए को. “पृथ्वी उपर स्वर्गनां पष्पनी माला क्याथी होय" ? र्गनां पुष्पनी माला क्याथी होय"? सोमश्रीये - कह्यु. " तो म्हारे राज्यसहित एवा पण जीवितथी शरयुं. // 13 // * तेया सह गृहं गत्वा, नृपश्चिंतातुरोऽनवत् // मंत्रिन्निबोधिताप्येषो, न मुंमोच केंदाग्रहम् 133 रात्रौ व्यचिंतय पस्तल्पे सुप्तोऽप्यसुप्तवत्॥ यद्यषा म्रियते तर्हि, जीवितव्येन किं मम॥१३॥ ते सोमश्री सहित घरे जइने राजा माल्यदेव चिंतातुर थयो. मंत्रीयोए बहु समजावी, पण सोमश्रीए पोतानो कदाग्रह त्यजी दोधो नहि. // 133 // रात्रीये शय्यामां सूता छतां न मूतानी पेठे राजा विचार करवा लाग्या के, "जो आ स्त्री मृत्यु पामे तो म्हारे जीववाथी शुं!" // 134 // दुलना स्वस्तरोर्माला, सुलन्नो जीवितव्ययः॥ अंत एंव करिष्यामि, प्रातर्निर्गमनं पुरात् 135 तिध्यात्वा पो, यावनिर्ययौ निजमंदिरात् // आकाशात्पैतिता तावन्माला सैवें मनोहरा॥ स्वर्गना वृक्षनां पुष्पोनी माला दुर्लभ छे अने मृत्यु पाम, ए सुलभ छे, माटे हुं सवारे नगरथी चाल्यो ज2 इश." // 135 // आ प्रमाणे विचार करी राजा जेटलामां पोताना मंदीरथी निकल्यो तेटलामां आकाशी तेज मनोहर माला नीचे पडी. // 136 // अहो चित्रमहो चित्रमिति जल्पनरेश्वरः। सोत्कंगयाःवकांतायाः, कंठे मौलां न्येवीविषत्॥ माला कंठे नीवेईयेनों हष्टा रांझीनकेवलम्॥तस्याःसंख्योऽपि तौःश्रुत्वा,फ्रेमात्यापुःपरामुर्दम् // "अहो! आ आश्चर्य छे ! अहो! आ आश्चर्य छे !!" एम बोलता एवा राजाए उत्साहवंत एवी पोतानी प्रियाना कंठने विषे ते माला पहेरावी. // 137 // एमालाने कंठमां पहेरीने फक्त राणीज हर्ष पामी एम नहोतं.परंत तेनी सखीयो पण ते वात सांभलीने अनक्रमे वह इ पामी. // 138 // // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.GunratnasunM.S. A एवं निरंतरं प्रातरेकी माला सेमीयुषी // महेंइसूरिस्तत्रागा चतुझानधराऽन्यदा // 13 // पः प्रियान्वितो गत्वा, वने नत्वा मुनीश्वरम् // श्रुत्वोपदेशं पंप्रड, मालागमनकारणम् // ए प्रमाणे निरंतर सवारे एक एक माला आववा लागी. हवे कोइ वखते चार ज्ञानना धारणहार महेंद्रमुरि * त्यां अयोध्या नगरीमा आव्या. // 139 // सोमश्री प्रिया सहित माल्यदेव राजा उद्यानमां गयो. त्यां तेणे मु* निश्वरने नमस्कार करी अने धर्मोपदेश सांभली मालानुं आश्वानुं कारण पूछयु. // 1.40 // मुनिः पूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, धनेशाख्यः सुतोऽनवत् 141 तेदा धनेशजीवेन यत्त्वया जिनपूजनम् // विदधे शुलावेन, प्रॉज्यं रोज्यं ततस्तव॥१५॥ ___ पछी मुनिये पूर्वभव कह्यो के. हस्तिनापुर नगरमां धनदत्त शेठने धनेश नामनो पुत्र हतो. // 141 / / ते वखते धनेशना जीवरूप तें शुद्धभावथी जे जिनपूजन करयुं, तेथो तने आ समृद्धिवंत एवं राज्य प्राप्त थयुं. // 142 // माल्यपूजाविशेषेण मातुस्ते दोहँदक्षणे // संपुष्पा विहिती वृताः, सर्वेऽपि वनदैवतैः॥१३॥ त्वत्पिता तापसीनूय, ज्योतिष्कामरतां गतः॥ कांता कंदाग्रहे माला, दैत्वा देत्ते पि संप्रति॥ माल्यपूजाना विशेषथी त्हारी माताना दहोलाना अवसरे वनदेवताओए उद्यानना सर्वे पण वृक्षो पुष्पवंत करयां हतां.॥ 143 // त्हारो पिता तापस थइने ज्योतिष्क देवता थयो छे, तेणे त्हारी स्त्रीना कदाग्रहथी तने प्रथम पुष्पमाला आपी हती. वली हवणां पण तेज आपे छे. // 144 // जिनेशे यदि नावेन, पूज्यते मालया तया॥ तदा सँफलता स्वस्य, व्यर्थता स्वांगसंगता॥१५॥ ईतश्च राझी पप्रच, तँदा क्रीडावने मया // संखोनियुतयोलोकि, वानरो वानरैर्वृतः // 146 ___ जो भावथी ते मालाथी जिनेश्वर पूजाय तो पोतानुं सफलपणुं, नहि तो पोताना अंगर्नु संगपणुं (जन्म) वृथा जाणवू. // 145 // एवामां राणीये पूछयु के, “ते वखते क्रीडा वनमां सखीयो सहित में वानरीयोर्थी विंटलायला वानराने जोयो हतो. // 146 // Jun Gun Aaradhak Trust XXXXXXXXX
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________________ गुण // 6 // PPA, Gunratnasuti MS KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX फाला दैत्वा गिरेःशृंगं,गत्वा माला विवाय सः॥ कंडे चिकेप कांतानां, कोकि सौ सेंमर्यता॥ चरित्र मुनिःप्रोवाच ता:सर्वा, न वानर्यःकपिन च॥ चिकोडुः स्वेच्या किंतुं, व्यंतेरा व्यंतरीयुताः 147 - ते वानराए फालो दइ पर्वतना शिखर उपर जइ माला वनावीने वानरीयोना कंठमा नांवी,ते शुं वानरानुं सामर्थ्यपणुं छे?" // 147 // मुनिये कडं. "ते सर्वे वानरीयो नहोती अने वानरो नहोतो, परंतु व्यंतरीयो स| हित व्यंतरी पोतानी मरजी प्रमाणे क्रीडा करता हताः // 148 // अथ पूर्वनवं श्रुत्वा, नूपो जोतिस्मरोऽनवत् // विशेषादहितं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ॥१४॥ मुनि नत्वा, गृहं गत्वा, मालया जिनपूजकः // संमयं गैमयामास, वसुधां पालयनसौ॥१५० पछी पूर्वभव सांभलीने राजा माल्यदेव जातिस्मरण ज्ञान पाम्यो तेथी तेणे मुनि पासे विशेष अरिहंत धर्म अंगीकार करयोः // 149 // मुनिने नमस्कार करी अने घरे जइ मालावडे जिनराजनुं पूजन करनारा ते माल्यदेव राजाए पृथ्वीनुं पालन करतां समयने निर्गमन करयो. // 15 // राज्यं दैत्वा स्वपुत्राय, गृहोत्वा संयमं गुरोः // विहितानशनःप्रीते, सौधर्मे त्रिदशोऽनवत् // चिरं सुखान्य॑सौ नुकत्वा, देवलोकाततश्च्युतः // षष्टःचायाकरो नाम, तनयस्तेऽनवन्नृप 152 ____पछी पोताना पुत्रने राज्य आपी पोते गुरु पासे संयम लइ अंते अनशन धारण करनारा ते माल्यदेव मुनि * सौधर्म देवलोकमां देवता थया. // 151 // नरवर्मा केवली गुणवर्मा ने कहेछे के, हे राजन् ! त्यां दोर्घकालसुधी सुख भोगवीने पछी त्यांची चवी ते माल्यदेवनो जीव हारो छठो च्छायाकर नामनो पुत्र थयो. // 152 // // इति माख्यपूजाधिकारे धनेश कथा // Jun Gun Aaradhak Trust // 46 //
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________________ PP.AC.Gurmatnasun M.S. विहितो वर्णकारोपो, जिनेंदोर्येन पूंजने // फलं तस्यायें वक्ष्यामः, श्रूयतां नेविका जैनाः॥ श्रावस्ती नगरी रम्या, श्रीधरस्तंत्र नूपतिः॥ तस्य बंधुमतो नारो धर्मकर्मैकबंधरा॥१५॥ हवे जेणे पूजनमां जिनराज उपर वर्णक-चडाव्यु छे. तेनुं फल कहुं . हे भव्य ननो! ते तमे सांभलो.१६३ श्रावस्ती नामनी मनोहर नंगरी छे, त्यां श्रीधर नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने धर्मकार्यमां चतुर एवी बंधुमती नामनी स्त्री हती. / / 154 // जीवोऽथ धननाथस्य, तदा तत्कुदिमागताः। स तया समये जीतः,पिता ओके महोत्सवम्॥ बँदमोधर ति प्रोत्या, नाम तस्मै ददौ नृपः॥ वईमानः मेगासौ, तीरं तारुण्यमाश्रितः // ____ हवे धननाथनों जीवं ते वखते ते बंधुमतीना उदरमां आव्यो. तेणे असरे तेने जन्म आप्यो एटले पिताएं पुत्र जन्मनो महोत्सव करयो. // 155 // राजाए पोतिथी ते पुत्रनुं लक्ष्मीयर एवं नाम पाडयु. पछी अनुक्रमे वृद्धि पामतो ते कुमार श्रेष्ट एवी युवावस्था पाम्यो. // 156 // सोऽन्येयुः प्रातरायातस्तातं नंतुं सन्नांतरे // पश्यतिस्म हेयं रेभ्य, केनापि प्रान्तीकृतं // * अमूल्यस्यावरत्नस्य, मूल्यं कुरुते स्वयम् // गतिविलोक्यता पूर्व मिति तैनिकोऽवेदत् // कोई वखते ते राजकुमार सवारमा पिताने नमन करवा माटे सभामां आव्यो अने कोइए भेट मोकलेला 2 मनोहर घोडाने जोवा लाग्योः // 157 // "कयो माणस पोतेन आ अमूल्य एवा अश्वरत्ननुं मूल्य करे ? माटे - प्रथम तेनी गति जुओ." एम ते भेट आपनारे कडूं. // 158 // अथो वाजिनमारुह्य, नृपादेशानृपांगनूः // गत्वा परोक्षयामास, वाघाल्यां वाद्यकोविदः // शरीरे सुकुमारेण स कुमारेण तत्कणम् // प्रेरितस्तुरगोऽचोलोत् , पैवस्ये बांधवः॥१६॥ पछी अश्वपरीक्षामां चतुर एवा राजकुमारे राजानी आज्ञाथी अश्व उपर बेसीने रहवाडीये जई परीक्षा करी. // 159 // अत्यंत सुकोमल एवा कुमारना शरीरे मेरेलो ते अश्व तुरंत पवनना बंधुनी पेठे चाल्यो // 160 // Jun Gun Asachakrust ANXXXX M A IL.........
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________________ चरित्र गण // 7 // PIP.AC.GunratnasuriM.S. *XXXXXXXXXXXXXX तंत्र केपि तुरंगस्तं निनाय कैणमात्रतः॥ न वृक्षा न फैलं नावं, केवलं यत्र तु स्यलम् // * स्वयमेवं स्थिरीनूताऽत्तीर्य तुरगादसौ // जलं गवेषयामास, र्तृषाशुष्कोष्टपल्लवः // 16 // ___ अश्व ते कुमारने क्षणमात्रमा क्याइ पण लइ गयो के, ज्यां झाड फल के जल कांइ नहोतुं, पण फक्त रणज हतुं. // 161 // पछी पोतानी मेलेज उभा रहेला ते अश्व उपरथी उतरीने तरसाथी सुकाइ गयेला होठ रूप पल्लववालो ते राजकुमार पाणीनी शोध करवा लाग्यो. // 162 / / हैष्ट्वा जटाधरं कंचित्, कमंडलुकरं पुरः॥स प्राह सादरं स्वधगिरा कास्ति सरोवरम् // 163 // - आगति वचः प्रोच्य, तं नीत्वा क्वापि पटवले॥ तापसः पाययामास, जैलं पोयुषमंजुलम् // ___आगल जतां हाथमां कमंडलने धारण करनारा कोइ जटाधर तापसने जोइ लक्ष्मीधर कुमारे आदरस हित स्वच्छ वाणीथी का के, “क्यांइ सरोवर छे ?" / / 163 // तापसे "चाल." एम वचन कही तेने कोइ > सरोवर पासे लइ जइ अमृतसमान मनोहर पाणी पायु. // 164 // स्थूलस्थले त्वयागम्य मंत्रास्मीति वदन्नथ // जगाम तापसकादि', स चचाल हेयं प्रति // अप्राप्य तुरगं कापि, वलितःसरसीं प्रति // तामप्यदृष्ट्वा से प्राप, स्यलं तापसवेदितम् 166 पछी " त्हारे म्होटा पर्वत आवq. हुं त्यां छु." एम कही तापस क्याइ गयो अने राजकुमार घोडा तरफ चाल्यो. // 165 // कुमार त्यां कोइ ठेकाणे पण घोडाने न पामीने फरी सरोवर तरफ बल्यो, परंतु सरोवर पण . देखवाथी तापसे कहेला पर्वत आव्यो. // 166 // स्फूर्जऊटाकलापं तं, नत्वा तापसमग्रतः॥ निषणः सैष पंप्रच, दृष्टा यूयं सरोवरे // 16 // ___ देदोप्यमान जटाना समूहवाला ते तापसने नमस्कार करीने तेनी आगल वेठेला ते कुमारे पूछयु के, “सरोवरने विपे में तेमने जोया छे. // 167 // Anas Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS से प्राह रुदेशे न, ताद वास्ति सरोवरम् // त्वया वयं ने दृष्टास्म, "सोऽन्यः "कोऽपि नविष्यति // 16 // तापसे कह्यु. "मरुदेशमां तेवू सरोवर क्याइ नथी. वली तें अमने जोया नथी ते तापस तो बीजो कोइ हशे."॥ तेतश्चित्रं द॑धानोऽसो, पुनःप्रोवाच तापसम् ॥कुत्रत्यस्त्वं कुंतो"हेतोः,स्थिरस्थूलस्थले स्थितः॥ से प्राह श्रूयतां नर, प्रत्यासन्नमतःस्थलात् // अस्ति वीर्तनयं नाम, पैननं चित्तनंदनम् 170 ___पछी आश्चर्य पामता एवा कुमारे फरी तापसने कह्यु. " तमे क्याथी आल्या छो? अने शा कारण माटे आ म्होटा पर्वत उपर रह्या छो? // 169 // तापसे कह्यु, "हे भद्र! सांभल. “आ स्थानथो समीपे चित्तने आनंदकारी वीतभय नामर्नु नगर छे. // 170 // . हेमचूलान्निधो नूपस्तंत्र राज्यमपालयत् // चैत्रःपुरोहितस्तस्य, नित्यं देणमोचयत् 171 पुरोनिविष्टे पाले, केणं कुर्वन् विचक्षणे // नजारं स करोतिस्म, सुरागंधसमन्वितम् 172 त्यां हेमचूल नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेनो चैत्र नामनो गोर नित्य कथा वाचतो हतो. // 17 // चतुर एवो राजा सन्मुख वेठे छते कथा करतो एवो ते गोर मदीराना गंधवाला ओडकार करतो हतो. // 172 // हदि झात्वा स्थितो नपो, विसृष्टे देणतःदणे॥ सैन्यानाकार्य पप्रंच, तदाकाले समीपगान् // 'तैरप्युक्ते तथैवागात्र चामरधारिणी // तं हात्वा चे हसित्वा च प्रोवाच नृपति प्रति 17 मया सह सुरापानं, केत्वा रात्रौ तवाग्रतः॥ दणं प्रकुर्वतोऽमुष्य,साहसं महतो महत् // 17 // _ पछी मनमां समजी रहेला राजाए क्षणमात्रे कथा वंध थइ एटले ते अवसरे पासे रहेनारा सभाना माणसोने बोलावीने पूछयु.॥ 173 // सभाना माणसोए पण तेज प्रमाणे कयु. एवामां त्यां चामरधारिणी आवी, ते चामरधारिणीये ते वात जाणी अने हसीने राजाने कह्यु के-॥ 174 // .. रात्रीये म्हारी साथे सुरापान करी तमारी आगल कथा करता एवा ए गोरनुं साहस घणुं म्होहुँ छे.॥१७५ / Jun Gun Aaradhak Trust mmmmmmmmmmTRAKTANTRVACHPATRIENTERevi a estroPARTAINMENT
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________________ जा PPA Gunatnesut MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX पृष्ट्वा पौराणिकान् सर्वान् , प्रायश्चितकृते नृपः॥ पुष्णं पाययामास, संक्रोधस्तं पुरोधसम्॥ चरित्र मृत्वा पुरोहितो जातो, रौशदो नाम रौकसः॥ शिलातलं विकृत्यास्थात् , वेर स्मृत्वा पुरोपरि पछी क्रोध करता एवा राजाए सर्वे पौराणिकोने पूछीने प्रायश्चितने माटे ते गोरने उनु तर, पायु.॥१७६ / गोर मृत्यु पामीने रौद्राक्ष नामनो राक्षस थयो. ते पूर्व वैर संभारीने नगर उपर शिलातल विकुर्वा उभो रह्यो.१७७ तेत् दृष्ट्वा व्याकुलो लोको, नूपोऽपि स्नानपूर्वकम् // बलिं चके बनाये च बहकोश इदं वचः येदोवा राक्षसोऽन्यो वा,यः कोऽप्यस्ति प्रकोपितः। वयं तदीप्सितं देनःप्रत्यकीनूय याच्यताम् | ते जोइ लोको व्याकुल थया. राजाए पण स्नान करी बलीदान करयुं अने हाथजोडी आ प्रमाणे वचन कहूं. // 178 // " यक्ष, राक्षस के बीजो जे कोइपण कोप पाम्यो होय तेने अमे इच्छित वस्तु आपीथु, माटे है ते प्रत्यक्ष थइ अमारी पासे मागो.॥ 179 // स्वं झापयित्वा से 'प्रोचे, रेपोपपरायणाः॥ दणांचूर्णयिष्यामि, पूर्णयिष्याम्यहं रुषम् // कृपां कुरु हिंतोतस्त्वमपराई कर्मस्व नः॥ इत्यादिवचनैर्लोकः, संनूपोऽमयञ्च तेम् // 11 // ___ पछी ते रौद्राक्ष राक्षस पोताने जणावी कहेवा लाग्यो के, " अरे पापीयो! हुं तमोने क्षणमात्रमा चूर्ण करी नाखीश अने म्हारा क्रोधने पूर्ण करीश. // 180 // " हे तात! तमे निश्चे कृपा करो अने अमारा अपराधनी क्षमा करो." इत्यादि वचनथी राजा सहित लोको तेने खमाववा लाग्या. // 181 // किंचित्प्रशांतकोपोऽथे, बन्नाषे कसो नृपम् // तदा मुँचाम्यहं चेन्मी, प्रोसादस्थ त्वमसि स्वीकृते वैचने तस्य, लोकैःसाकं महीन्नुजां // शिली विदूरयामास, नगराशंकसःदयात् // __ पछी शांत थयेला कोपवाला राक्षसे राजाने कयुं. ज्यारे तुं मने मंदिरमा स्थापन करीने पूजीश त्यारे हुँ तने मूर्काश." // 182 // पछी लोको सहित गजाए तेनुं वचन कबूल करयुं एटले राक्षसे नगर उपरथी तुरत शिलाने दूर करी.॥ 183 // GI Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.AGunnast MS प्रासादे स्थापयित्वा तेन्मूर्तिनित्यं नरेश्वरः // पुप्पचंदनकपूर':, पूजयामास सादरम् 185 // तमप्रणम्य लोकोऽपि,न चके कोऽपिन्नोजनम्॥"वैरं संस्मार्य चने,रॉकसःकुपितःपुनः॥ ___पछी राजाए ते राक्षसनी मूर्तिने मंदिरमा स्थापन करीने निरंतर पुष्प चंदन कपूर विगेरेथी आदर सहित पूजन करवानो आरंभ करयो. // 185 // लोक पण ते मूर्तिने प्रणाम करथा विना कोइ पण भोजन करतुं नहोतुं, तोपण ते राक्षस मनमा पूर्वना वैरने संभारी फरी कोप पाम्यो. // 186 // प्रत्यक्षीनूय से प्रोचे, रे रेनश्यत ऊनाः॥ अंलं "मेनवतां नक्त्या, "पैरदं पुःपायितः॥ युष्मान् धैक्ष्याम्यहं सर्वानियुचानेऽथराक्षसे। पतिःप्रांजलीनूय, नयस्तं नक्तिना जगौ॥ तेथी ते राक्षस प्रत्यक्ष थइ कहेवा लाग्यो के, "अरे दुर्जनो! नाशो जाओ. म्हारे तमारी भक्तिनुं कांइ जरुर नथी के, जे तमोए मने तरवू पायुं छे. // 187 // पछी “हुं तमने सर्वेने वाली नाखोश." एम राक्षसे कह्यु एटले भक्तिवंत एवा राजाए फरी हाथजोडी तेने कह्यु. // 188 // नपायो विद्यते कोऽपि, येन त्वं खलु तुष्यसि // स प्राह श्रूयतां पोप, यदि सिध्यति तत्कुरु // कुसुमैः पंचवर्णान्नैस्त्रिसंध्यं चेन्ममार्चनम् // क्रियते संकलैलोकैस्तैदा मुंचामि नान्यथा॥१९॥ कोइ पण उपाय होय के जेणे करीने तुं निश्चे संतोष पामे." राक्षसे का. "हे पापी! सांभल. जो सिद्ध थाय तो ते कहे. // 189 // जो सर्वे लोको त्रणकाल पांच वर्णनां पुष्पथी म्हारे पूजन करे तो हुं मूकीश. नहि तो बाली नाखीश." // 190 // सामान्यतोऽपि नो पुष्पं, पायो देशेऽत्र दृश्यते ॥पंचवर्णानि लैन्यंते. केसुमानि ततःकृतः॥ कुंज्ञदेश इति झात्वा, सर्वे नष्टास्ततो जनाः॥ जनाधिपोऽहं संजातो, वैराँग्यात्तापैसवती १एश् - आ देशमा घणुं करीने साधारण पुष्प पण देखातुं नथी, तो पछी पांच वर्णनां पुष्प तो क्यांधीज मले? // 191 // आवो राक्षसनो तुच्छ हुकम जाणीने पछी सर्वे माणसो नासी गया अने राजा एवो हुँ पोते वैरा - Jun Gun Aaradhakrust
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________________ गुण EXXXX PPA Gunnatasun MS चरित्र. ग्यथी तापस थयो. // 192 // नशूरो विद्यते विश्वे, यः प्रशांतं करोति तम्॥"प्रोचे कुमार श्रृंत्वेति , तापसंप्रति साहसो॥ पुरस्य तस्य मार्ग में, दर्शयाशु पुरो नव।। इत्युक्ते तापसस्तस्मै, 'देर्शिताध्वा न्येवर्त्तत॥१७४ र ___ जगत्मां एवो कोइ शूरवीर नथी के, जे ते राक्षसने शांत करे." आवां ते तापसनां वचन सांभली साहसी एवा लक्ष्मीधर कुमारे तापसने कह्यु. // 193 // "ते नगरनो मार्ग मने झट देखाड अने म्हारी आगल था." एम कडं एटले तेने मार्ग देखाडीने तापस पोताने आश्रये आव्यो. // 194 // कुमारः पंत्तनं गत्वा, रक्षसोनवनं ययौ // पंचवर्णउकुलस्य, पुष्पाणि विदधे सुधीः ॥१ए तत् दृष्ट्वा राक्षसो दध्यौ, बालवचनं मम॥ अस्ति प्रारब्धेमेतेन, 'वीके तावत्करोति किम्॥ .. कुमार नगरमा जइ राक्षसना मंदिर प्रत्ये आव्यो. सां उत्तम बुद्धिवाला तेणे पंचरंगी लुगडानां पांच व र्णनां पुष्पो बनान्यां. // 195 // ते जोइ राक्षस विचार करवा लाग्यो के, "एणे पने बालकनी पेठे छेतरवानु / आरंभ्यु छे. पण प्रथम जोवू जोइये ते शुं करे छे.॥ 196 // .. कृत्वा पुष्पाणि वस्त्रस्य, कुमारो रोकसं जगौ॥ त्वं माता त्वं गुरूस्तीतः, देमतां बोलचेष्टितम् / इत्युक्त्वा तानि पुष्पाणि,कत्रिमाण्यपि यावता॥ निर्धत्ते तावता तान्यकेत्रिमाएयेवं जैझिरे॥ . कुमारे पण वस्त्रोना पुष्पो बनावीने पछी राक्षसने कह्यु. "तमे माता, पिता अने गुरु छो, माटे म्हारी वालकनी चेष्टानी क्षमा करो". // 197 // एम कहीने ते कृत्रिम एवां पण पुष्पो जेटलामां चडाव्यां तेटलामां ते अकृत्रिम ( साचां) थइ गयां // 198 // दृष्ट्वा परिमलाढ्यानि, तानि तं राक्सो जगौ॥ अहो पुण्यप्रन्नावस्ते, यहो"ते हिरुज्वला अहं तुष्टोऽस्मि याचस्व,वानितं ते ददाम्यहम् // सोऽवादीनगरं शैन्यं,सकलं वास्यतामिदम् ते पप्पोने मगंधवाला जोड राक्षसे कमारने कहां. "टारो पण्य प्रभाव आश्चर्यकारी! तेमज हारी उ- Naणा Jun Gun Aaradhat Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasun MS RXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ज्वल बुद्धि पण आश्चर्यकारी छे !!! // 199 // हुं प्रसन्न थयो छ, माटे माग. हुं तने वांछित आपुं." कुमार कह्यु. आ शून्य सर्व नगर वसावी आप." // 20 // तत्पुरं वासयामास, स्थापयामास तं प्रनुम् // तवृत्तं झोपयामास, तत्पितुर्थ से रोक्षसः 501 पित्रा स्वमंत्रिणं प्रेष्याकोरितो लेखपूर्वकम् ॥राज्यस्य सूत्रणां कृत्वा, कुमारःस्वपुरं ययौ // पछी ते राक्षमे ते नगरने वसावो आप्युं, तेमज ते लक्ष्मीधर कुमारने तेनो राजा करयो अने तेना पिताने ते सर्व वात जणावी. // 201 // पछी पिता श्रोधर राजाए पत्र सहित पोताना प्रधानने मोकलीने तेडावेलोर कुमार राज्यनु रक्षण करीने पोताना नगरे गयो. / / 202 // पुरं प्रविश्य सोत्साहं, पितृपादाननाम संः // ऑलिंग्य जनकापुत्रं, पंच सकलां केथाम् // . अन्यदा तंत्र संप्राप्ताः, श्रीसिंहव्रतसूरयः॥ तानंतु संसुतो नूपो, ययौ नक्तिनरोद्धुरः॥ 20 // ___कुमारे उत्साह सहित नगरमा प्रवेश करीने पिताना चरणमां प्रणाम करयो. पिताए पण पुत्रने आलिंगन करी सर्व वात पूछी. // 203 // कोइ वखते ते श्रावस्ती नगरोमां श्री सिंहवतसूरि आव्यो एटले महाभक्तिवंत एवो पुत्र सहित राजा तेमने वंदन करवा गयो. // 20 // श्रुत्वोपदेशं पंप्रड, पुत्रन्नाग्यस्य कारणम्॥ मुनिः पूर्वन्नवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे॥५॥ श्रेष्टिनो धेनदत्तस्य, धननासुतोऽन्नवत् // जि पूजामुना चक्रे, बांधवैः सँह संमंदात् // त्यां तेणे धर्मोपदेश सांभली पुत्रना भाग्यनु कारण पूछयु एटले मुनिये पूर्वभव कह्यो के, हस्तिनापुर नगरने विपे धनदत्त शेठने धननाथ नामनो पुत्र हतो. ए पुत्रे पोताना बंधुओ सहित हर्पथी जिनराजनुं पूजन करथु हतुं // 205 // 206 // जिनपूजाप्रत्नावेण, राज्यं लब्धं महाद्भुतम् // वर्णिकाणां विशेषेण, यत्फलं तच्चे कथ्यते // एष कृत्रिमपुष्पाणि, राक्षसाय तदा न्यधात // अकृत्रिमाणि जातानि, वर्णकस्य विशेषतः॥ Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण ATKARXXX P.P.A. Gunanasuti MS जिनेश्वरनी पूजाना प्रभावथो तेने महा अद्भुत एवं राज्य प्राप्त थयु. वलो वर्णिकाना विशेष पूजनथी जे फल एण प्राप्त थयुं ते कहेवाय छे. // 207 // वली ते वखते आ कुमारे कृत्रिम पुष्पो राक्षसने चडाव्यां पण वर्णिक पूजाना विशेषपणाथी अकृत्रिम थइ गयां. // 208 // सुनुमचक्रिणः स्थानं, नृणां पुण्याढ्यनुपते // चक्रित्वं कुलिशत्वंच, प्रपेदाते हि पुण्यतः॥ पुण्येन कर्करो रत्नं, पुण्येन च विषं सुंधा // सर्प-पुण्येन मला स्यात् कुमारस्य तथान्नवत्॥ हे पुण्यवंत राजा! माणसोने सुभुम चक्रवर्तीतुं स्थान, चक्रवर्तीपगुं अने इंद्रपणुं पुण्यथोज प्राप्त थाय छे. // 209 // पुण्यथो कांकरो रत्न थाय छे, पुण्पथो विष अमृत थाय छे अने पुण्यथो सर्प पुष्यनो माला थाय' * छे. तेम कुमारने पण थयु छे. // 210 // * कुंमारोऽपि मुनि ग्राह, पूर्व येर्ने हतोऽस्म्यहम्॥ स वोजो न स्थले 'दृष्टो, न च दृष्ठं सरोवरम्॥ को हेतु प्रोचिवान् सूरिहेमचूलस्य यः पिता॥ जातोऽस्ति ध्यंतरस्ते ,पुरवासाय तत्कृतम् कुमारे पण मुनिने कडं. "हे मुनि! पूर्वे जेणे मारुं हरण कर्यु हतुं ते अश्व ते स्थानके में न दीठो अने ते सरोवर पण में न दीर्छ, तेनुं शुं कारण?" सूरिये कयुं. "हेमचूलनो पिता जे व्यंतर देवता थयो हतो तेणे तेने . पोतानां नगरमा राखवा माटे ते सर्व कर्यु हतुं // 211 // 212 // लक्ष्मीधरो नवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मृति ययौ // विशेष(दहितं धर्म, 'प्रपदे मुनिसंनिधौ // - मुनिं नत्वा गृहं गत्वा, राज्यं लक्ष्मीधरे सुते // निवेय श्रीधरो राजा,जैगृहे संयम स्वयम् // लक्ष्मीधर पण पोताना पूर्वभवने सांभलो जातिस्मरण ज्ञान पाम्यो; तेथी तेणे मुनि पासे विशेष अरिहंत* नो धर्म धारण कर्यो. // 213 // श्रीधर राजाए पण मुनिने नमस्कार करो, घरे जइ अने लक्ष्मोधर पुत्रने रा ज्य आपी पोते चारित्र लीधं. // 214 // अय लक्ष्मीधरो नूपः, पालयन् पृथिवी चिरम् // जिनपूजापवित्रात्मा, धर्मकर्म चंकार संः॥ Jun Gun Aaradhak Trust //
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S समयेऽयं सुते राज्यं, न्यस्य संयममग्रहीत् // विहितानशनः प्रीते, सौधर्मे त्रिदेशोऽनवत् // पछी ते लक्ष्मोधर राजाए दीर्घकाल पर्यंत पृथ्वीनुं पालण करता छता जिनराजनी पूनाथी पवित्र आत्मावाला थइ धर्मकार्य कयु. // 215 // पछी अवसरे पूत्रने राज्य सोंपी तेणे चारित्र लीधुं अने अंते अनशन A लइ ते लक्ष्मीधर सौधर्म देवलोकने विषे गयो. // 216 // चिरं सुखान्यसौ नुक्त्वा, देवलोकार्त्तत युतः // सप्तमःशंखनामा त यस्तवनंपते // __ ( श्रीनरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के ) हे भूपति ! ए लक्ष्मीवर त्यां बहु काल सुधी सुखो * भोगवोने पछी देवलोकथी चवेलो ते त्हारो सातमो शंख नामनो पुत्र थयो छे. // 217 // // इति पूजाधिकारे धननाथ कथा // Jun Gun Aaradhak Trust चूर्णपूजा कृता येन, फैलं तस्य प्रकाश्यते // चूर्णशब्देन कर्पूरो, हातव्योऽत्रं मनीषिन्तिः॥ ____ जेणे चूर्ण पूजा करी छे, तेनुं फल प्रकाश कराय छे. अहिं विद्वानोए चूर्ग शब्दयी कपुर जाणवो. // 218 // * अस्त्यत्रे नगरं रम्यं, जरते श्रीपुरानिवम् // श्रीवंशे नृपतिस्तंत्र, तेत्य चंवतो प्रिया // | तत्रैवं नगरे श्रेष्टी, पन त्यनिर्धानतः // प्रिया धैनवतो तस्य, सँती गुंगवती बन्नौ // 220 आ भरतक्षेत्रने विषे श्रीपुर नामर्नु मनोहर नगर छे. त्यां श्रीचंद्र नामनो राजा राज्य करतो हतो, तेने & चंद्रावती नामे स्त्री हती. // 219 // ते नगरमा धन ए नामनो शेठ रहेतो हतो. तेने सती एवी धनवती नामनी स्त्री गुणवंती हती. // 220 // .
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________________ गुण // 51 // PPA Gunratsuti MS चरित्र धनेश्वरस्य जीवोऽथे, तस्याः कुदि समागतः॥ समये स तयासूतः, पिती चक्रे महोत्सवम्॥ रत्राकर तिपित्या, नाम तस्मै ददौ पिता॥ क्रमेण मानोऽष्टवर्षमानो बेनूव सः // 22 ___पछी धनेश्वरनो जीव ते धनवंतीना उदरने विषे आव्यो. अवसरे तेणे पुत्रने जन्म आप्यो एटले पिताए तेनो जन्म महोत्सव को // 222 // पिताए प्रितीथो तेनुं रसकर एवं नाम पाडयु. अनुक्रमे वृद्धि पामतो ते पुत्र आठ वर्षनो थयो. // 222 // केलाकलापकौशल्यवल्लीनां च महीरुहः॥ न जहार मनः कस्य, स प्रंशस्यगुणोत्करः // 23 ईतश्च राजा श्रीचंशे, लोवृत्तबुन्नुत्सया // निर्यातो नष्टचर्यायामंधकारपटावृतः // // _कालना समूहने विष कौशल्यता रुप लताओना आधार एवा वृक्षरुप ते वखाणवा योग्य गुणसमूहवाला राजकुमारे कोना मनने हरण कर्यु नहोतुं ? अर्थात् सर्वना मनने हरण कर्यु हतुं. // 233 / / हवे कोइ वखते श्रीचंद्र राजा लोकना वृत्तांत जाणवा माटे गुप्तरीते अंधारव स्त्रो ओढीने फरवा निकल्यो. // 224 // ब्राम्यस्त्रिकचतुष्केषु, वीक्ष्य प्रेदणकं स्थितः॥ नटेन पठितं नाट्ये, 'लोकं सुश्राव नूपतिः॥ बुर्यिस्य बलं तस्य, निर्बस्तु कुँतो बलम् // वने सिंदो मंदोन्मतः,शंशकेन निपातितः॥ त्रण सेरी अने चार सेरीमा फरता अने कोइ ठेकाणे थता नाटकने जोइने उभा रहेला राजाए नाटकमां नटे कहेला एक श्लोकने सांभल्यो. // 225 // जेने वुद्धि तेनुं वल. वुद्धि रहितने बल कयांथी होय. बु- * दिना वलथी वनमां मदोन्मत्त सिंहने शशलाये कूवामां पाडयो छे. // 226 // ततो मे मंतिमान्मंत्री, निश्चित कोऽपि वीयते॥इति ध्याय न्नैपो"गेहं, गत्वा सुष्वाप निया - प्रातः प्रबुझः प्रातस्त्यकार्यं कृत्वा नरेश्वरः // ययो तुरंगमारुढो, दृष्टुं निजसरोवरम् // 2 // ___ पछी "म्हारे निश्चे कोइ पण बुद्धिवान् प्रधान शोधी लेवो.” एम विचार करतो राजा घरे जइ निंद्राथी उघी गयो. // 227 // सवारे जागी उठेलो ते राजा प्रातःकार्य करीने घोडा उपर वेसी पोतानुं सरोवर जोवा // 1 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. माटे गयो. // 228 // चलच्चकोरचक्रांगचक्रवाकचयाकुलम् // ब्रमभ्रमरऊकारमुखरीनवउत्पलम् // 2 // प्रंसपल्लहरीबाहुवल्लरीश्लिष्टपादपम् // वनार प्रीतिसंन्नारं, कासारं वीक्ष्य पतिः॥२३॥ चालता चकोर, चक्रांग अने चकलाओना समूहथी व्याप्त, भमता भमराओना झंकारथी वाचाल कमलोवालुं अने चारे तरफ प्रसरती लहेरो रुप हाथनी वेलोथी वृक्षोने स्पर्श करता एवा ते तलावने जोइ राजा बहु प्रशन्न थयो / / 229 // 230 // कासारांतःस्थितं स्थंन्न, दृष्ट्वा प्रोचे महीपतिः॥ शेषवंतु मंत्रिणः सर्वे, सर्वे लोको कोविदः अकृत्वा सलिले पादनिवेशं तीरसंस्थितः॥ बन्नाति यः सरस्तंन्नं, मंत्रिता तस्य दीयते॥२३॥ ___ पछी तलावनी अंदर रहेला स्थंभने जोइ राजाए कह्यु "चतुर एवा सर्वे मंत्रीओ अने सर्वे लोको! तमे / सभिलो / / 231 // पाणीमां पग मूकया विना फक्त कांग उपर रहीने जे पुरुष तलावनी मध्यमां रहेला स्थंभने बांधशे, तेने हुं मंत्रीपणुं आपीश. // 232 // इत्युद्घोषणया सर्वे, मिलितास्तंत्र मंत्रिणः॥ संगताश्चतुरा लोकाः प्रो, रेवं परस्परम् // कथं तैटस्थितैः स्तंनो, बध्यते मध्यसंस्थितः॥ नत्तानेनापि दस्तेन, स्पृश्यते "नेमंगलम् // राजानां आवां वचनथी त्यां एकठा थयेला सर्वे मंत्रीओ अने मलेला सर्वे लोको परस्पर एम कहेवा लाग्या के, // 233 // "कांठे उभेला माणसोथी मध्यमा रहेलो स्थंभ शी रीते बंधाय? कारण उंचा करेला ए वाय पण हाथथी चंद्रमंडलने स्पृश करी शकातुं नथी. // 234 // एके विवेकिनः प्राहुर्बुझिरेवै विलोक्यते॥ लक्ष्मीरिर्वं परं सापि", नाप्यते सुकृतं विना // 235 बुद्ध्या सिध्यंति कार्याणि, विर्षमान्यपि तत्कणात् // स्वबुझ्या वंचैयामास, चंडिका कमलो यथा / 201838 Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण चरित्र PPA Gunnasuti MS विवेकी एवा केटलाके कयुं के, राजा आपणी बुद्धि जुए छे; पण लक्ष्मीनी पेठे ते बुद्धि पण पुन्य विना प्राप्त थती नथी. // 235 // बुद्धिथी विषम एवां पण कार्यों तुरत सिद्ध थाय छे. जेम कमले पोतानी बुद्धिथी चंडिकाने छेतरथा. // 236 // तथाहि नरतेऽत्रास्त्यवंतीनाम महापुरी॥ तंत्र श्रीपालनूपालो नूमीपालशिरोमणिः // 237 / / "पंमित्तः कमलाख्योऽस्य, स्वन्नावविमलाशयः॥ द्विसप्ततिकलापात्रं, विख्यातः पृथिवीतले॥ (लाको परस्पर तेज वार्ता करे छे के,) आ भरतक्षेत्रने विषे अवंती नामनी नगरी छे. त्यां राजाओमां मुकुटमणिरूप श्रीपाल नामनो राजा राज्य करतो हतो. // 237 // ए राजाने स्वभावथी निर्मल मनवालो, बोतेर कलानु पात्र अने पृथ्वीमां विख्यात एवो कमल नामनो पंडित हतो. / / 238 // सोन्याश्चितयामास झसप्ततिकलाःकिल // विझातास्ति मया किंतु, कलानामेकॅसप्ततिः॥ हासप्ततितमी चौर्यकलां शिके कुतोऽप्यहम्॥ई हातं द्युतकारेन्यः,सौ शियेत विचक्षणैः॥ ____ एक दीवस ते कमल विचार करवा लाग्यो के, "निश्चे कलाओ बोतेर छे, पण मेंतो इकोतेर कलाओनो अभ्यास कर यो छे. // 239 // हवे हुँ बोतेरमी चौर्य कला कोनी पासेथी शीलूँ ? हा जाण्यु. विचक्षण पुरुषो ते विद्या जुवारी लोको पासथी शीखे छे." // 240 // ध्यात्वेति' द्यूतकाराणां, स सेवा कर्तुमुद्युतः॥ तैः पृष्टो हेतुना केनं, सेवेनीया वयं तव // 41 से प्रोचे प्रायसःसर्वकलासु कुशलोऽस्म्यहम् ॥किंतु चौर्यकैलाया में ,किंचिन्मर्म प्रकाश्यताम, ___आ प्रमाणे विचार करी ते कमल जुवारी लोकोनी सेवा करवाने उद्यमवंत थयो, तेथी तेओए तेने पूछयु के, शा कारणथी अमे त्हारे सेववा योग्य थया छीये. // 241 // कमले कह्यु. "घणुं करीने हुं सर्व कलामां कुशलछु, परंतु मने चौर्यकलानो कांइक मर्म प्रकाश करो." // 242 // 'तेप्रोचुमन्यते नैवे, कृते चौर्ये केदाचन ॥इति शिदां समादाय, स्वस्थानं पंमितो ययौ // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS सपादकाटोमूल्यस्यान्यानूपातससाद // केनापि ढाकिता हारः, सामंतायानरोदितः // ___चोरोए कह्यु. "चोरी करे छते क यारे पण मानवू नही." एवी ते चारांनी शिखामण लइ पंडित कमला पोताने घेर आव्यो. // 243 // कोइ वखते राजसभामां कोइए मोकलेलो सवाक्रोड मूल्यनो हार सामंतादिकाए जोयो. // 244 // 'पंमितोऽपि करे कृत्वा, हारं बाह्यंतरें क्षिपत्॥ नचिता च संना सर्वा, नूंपश्चात :पुरं येयौ // हारं श्रुत्वा महादेवी, प्रार्थयामास जूनुजम् // कोशाध्यदं समाकार्य, तं च पंप्रेच नूमिपः॥ ___पंडिते पण हारने हाथमां लइ बांयनी अंदर नांखी दीधो. वली सर्व सभा उठी गइ अने राजा अंतःपुरमा गयो // 245 // त्यां हारनी वात सांभली पट्टराणीए ते जोवाने राजानी विनंती करी, तेथी राजाए की भंडारीने वोलावीने तेने पूछयुं // 246 // सोऽवादीन केरे हारः, प्राप्तो मे देव सर्वथा // संन्याः पृष्टास्ततः सर्वे, नूपनृत्यैः पृथक्पृथक्॥ | केचित् 'प्रोचिरैयं हारःपंमितस्य करं गतः॥ होतस्तेन चान्येने, को वेति" झॉनवर्जितः॥ ___ भंडारीए कहूं. "हे देव ! म्हारा हाथमा हार आव्यो नथी. पछी राजाना सेवकोए सर्वे सामंतोने जुदु जुदु पूछयु // 247 // कोइए कह्यु के, ए हार पंडितना हाथमा हतो, तो तेणे अथवा वीजा कोइये लीयो छे? ते ज्ञान विनानो कोण जाणी शके ?" // 248 // तेच्चुत्वा पंडितः प्राह, निर्विष्टो नूपसंसदि ॥ने गृहीतोऽस्त्यसो हारः केलंकस्तु तथाप्यन्त्॥ अकृत्वाहं महादिव्यं, नोबाँस्याम्ये सर्वथा॥पः प्रोचे मृषा "लोको, नाषते त्वं कर्मस्व तेत॥ ___ ते वात सांभली पंडिते का. “ए हार में राजमभामां मूकयो छे, लीयो नथी. तोपण मने कलंक पाप्त थयं // 249 // हवे हुँ महादिव्य कर्या विना सर्वथा उठीश नही.” राजाए कह्यु. लोको जूळू बोले छे, माटे तमे क्षमा करो // 250 // Jun Gun Aaradhak Trust | KXXXXXX
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________________ PIP.AC.Guriratnasun.M.S. गुण तेत्रास्ति चैमिका देवी, दिव्यप्रत्ययकारिणी॥स्थापितो नवने यस्या,यन्यायो "नै जीवति॥ चरित्र. al ततस्तेन सह मापो, देवतान्नवनं गतः॥ प्रोवाच चंडिके देवि, शैक्षिकाद्य "पंझिते // ते नगरमां दिव्यन पार करनारी चंडिका देवी छे, ए देवीना मंदिरने विषे राखेलो अन्यायी / * जीवी शकतो नथी. // 251 // पछी राजा 1 पांडत सहित देवाना मंदिरमा गयो अने कहेवा लाग्यो के, 2 "हे चंडिका देवी ! आजे पंडितनी शुद्धि करवी. // 252 // आनाय्य तंत्र पत्राणी, पंमितः कुसुमानि च॥ निविष्टः पुरतो देव्याः, सर्वलोको विनिययौ"॥ दाप्य तालकं हारे, पोऽपि संदने ययौ // पंमितः पुरतो देव्या, नदतिस्म देलानि सः // पंडित पण त्यां तांबुलपत्र अने पुष्प मंगावीने देवीनी आगल बेठो अने सर्वे लोको चाल्या गया. // 253 // राजा पण बारणे तालुं वासीने पोताने घेर गयो. पछी ते कमल पंडित देवीनी आगल तांबुलनु * भक्षण करवा लाग्यो. // 254 // चर्वं च च पैत्राणि, तांबूलं देवतां प्रति // चिके निर्नयः सोऽप्यात्रिश्च सेंमागतः // रौपं दधाना सा, मुखे हुंकारकारिणी // खनन्नापयंती चे प्रत्यक्षा देवतानवत् // 256 वली निर्भय एवो ते पत्रने चावतो चावतो तेनो रस देवता उपर नाखवा लाग्यो. एवामां अर्द्धरात्री थइ. // 255 // भयंकर रूपने धारण करती मुखे हुंकार शब्द करती अने खड्गने उच्छालती ते देवी प्रत्यक्ष थड // 256 // त्वमिणी च सूर्याणी, ब्रह्माणी परमेश्वरी // पंडितस्तां च तुष्टाव, वैनापे सौ च तं प्रति॥ 'रे हारं चोरयित्वात्र, निषणोऽसि मैमाग्रतः॥तांवलं तिपसि स्वैरं, वीक्ष्यतां किं करोम्यहम् // __ पछी "तुं इंद्राणी, 'सूर्याणी, ब्रह्माणी अने परमेश्वरी छे." एम पंडित देवोनी स्तुति करवा लाग्यो एटले देवीए तेने कह्यु. // 257 // अरे ! तुं हारने चोरीने अहिं म्हारी आगल बेठो छे ! अने मरजी प्रमाणे तांबूल फेंके छे ! जो. हवणां हुँ करुंछं. // 258 // an53 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS PARAXXXXXXXXXXXXXXXXXXX************ चारिता न मया हारा, वचत परमवार / / सावक ज्ञानन पश्यामि, कि त्वउक्तन उट र से प्रोचे यदि ते झानं, वर्तते देवि चंडिके॥ तदा मे संशयच्छेद, केत्वा कुर्याद्यथारूचि॥ पंडिते कडं. " हे परमेश्वरी ! में हार चोर्यो नथी." देवीए कह्यु. अरे दुष्ट ! हुं ज्ञानथी जोबुछु. हारा कहेवाथी शुं ? // 259. // कमले कयुं, " हे देवी चंडिका ! जो तने ज्ञान होय तो म्हारो शंसय छेदोने तुं मरजी प्रमाणे कर. // 260 // कः संशय इति प्रोक्तं, से 'प्रोचे शृणु चमिक॥ पिता पुत्र उन्नौ मार्गे, चेलेंतुः प्रोतिशालिनी॥ तौ विलोक्यः पदन्यासं, नार्योरेन्योन्यमुचतुः॥ एका नीचों परत्युञ्चों, तन्मार्गे जतः स्त्रियोः / " हारे शो शंसय छे ?" एम देवीए कह्यु एटले तेणे कह्यु के, हे चंडो! सांभल. पिता अने पुत्र प्रीतिवंत एवा ते बन्ने जणा मार्गने विष जता हता. // 261 // ते पिता पुत्र रस्तापां वे स्त्रीयोनां पगलां जोइ परस्पर कहेवा लाग्या. ते मार्गमां जती एवी स्त्रीयोमा एक नीची अने बीजी उंची हती. // 265 / / पुत्र प्रोवाच नीचा मे,प्रोचालवतु ते पितः|अन्योन्यमिति जल्पंतौः, तोते देशतः स्त्रीयौ नीचा पुत्रेण चानीता, प्रोच्चा तु जनकेन सा॥तेच तांन्यां कृते नार्ये, प्रोच्चा पुत्री पैरा प्रसूः॥ पुत्र कह्यु. " हे पिता" म्हारी नीची अने तमारी उंची थाओ." एम परस्पर बोलता एवा ते बन्ने जणाए ते बन्ने स्त्रीओने दीठी. // 263 // पछी पुत्र नीची स्त्रीने लाग्यो अने पिता उंची स्त्रीने लाव्यो. वली तेओ ते स्त्रीयोने परण्या. तेमां उंची पुत्री हती अने नीची मा हती. // 264 // तेषां च तदपत्यानां, संबंधः किमायत // इति मे संशय निंहि झानं 'चेत्तवें वर्तते // तस्यां तस्योत्तरं चिंतयंत्यां गता निशा देव्याम् // कैलाशमाप्तयां, प्रेनातं च ततोऽनवत् // तेओनो अने तेओनां छोकरानो संबंध शुं थाय ? ए म्हारो संशय छेद. जो हारामां ज्ञान होय / *तो." // 265 // पछी ते देवी तेनो उत्तर विचारवा लागी, एटलामां रात्री गइ तेथी देवी कैलाश गइ अने प्रभात थइ गयो॥ 266 // K***XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXYY Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ K* PGBUMS गुण नूपालस्तूर्णमागत्योहट्य तालकमादरात् // स्तुवंतं देवतां प्रेक्ष्य, पमित प्रतिमाप सः // चरित्र. RWAD स्वगृहे सोत्सवं प्रेष्य, पंमितं पतिययौ // दिने तृतीये 'तं होरमर्पयामास सँ स्वयम् // ते राजा पण तुरत त्यां आवी आदरथी तालाने उघाडी अने देवीनी स्तुति करता एवा पंडितने जोइ प्रीति पाम्यो. // 267 // पछी पंडितने उत्सव सहित तेना घरने विषे मोकली भूपति पोताने घेर गयो. . ते पंडिते पोते पण त्रीजे दिवसे ते हार राजाने सोंप्यो. // 268 // किमेतदिति नूपाले, पृथति स्माह पंडितः॥ परीक्षा सिँवितायाः स्वकलायाः प्रेक्षिता मया॥ इत्यादि सर्वलोकोषु, प्रजल्पत्सु परस्परम् // धनश्रेष्टिसुतो रात्नाकरस्तैत्र समागतः // 70 // ___ "आ शुं" एम राजाए पूछयु एटले पंडिते कडे के, में शाखेलो पोतानो कलाना परोक्षा जोइ. // 269 // इत्यादि सर्वे लोको परस्पर वातो करता हता. एवामां धनशेठनो पुत्र रत्नाकर त्यां आव्यो. // 270 // . तत्स्वरूपं परिझाय, से नेत्वा नूपति जगौ॥ पश्चादपि हि यो वैक्ति, से वैक्तु प्रथम मति // लोकेषु कृतमौनेषु, सर्वेषु से नृपाझया // रज्जुमानाययामास, स्तंन्नबंधकृते कृती // 7 // रत्नाकर ते वात जाणी राजाने नमस्कार करोने कहेवा लाग्यो के, " जेने पाछ लथो कहे, होय ते पोतानी बुद्धिने प्रथम देखाडी आपो. // 271 // पछो सर्वे लोको वाल्या विना उभा रह्या एटले बुद्धिवंत ए. el वा ते रत्नाकरे राजानो आज्ञाथी स्तंभने बांधवा माटे दोरो मंगावा. // 272 // तत्प्रांतं पतेः पाणौ, नृस्य धृत्वा चता स्वयम् // तटस्थ एवं बब्राम, तेटाकं परित : सुधीः॥ ऐवं कृते स्वयं स्तनब सति महीपतोः // सर्वमुद्रां ददौ तस्मै, विस्मयस्मेरमानसः॥७॥ बुद्धिवंत रत्नाकर त दोरोनो डेडो राजाना हाथनां आपी अने पछी ते सर्व दोरी पोते लेइने तलावने कांठे कांठ रह्यो छतो सर्व तलावने चारे तरफ फरो बल्यो- // 273 // एम क * धायो एटले आश्चर्यथो हर्पित मनवाला राजाए तेने प्रधानमुद्रा आपो. // 27 // **XXXXX************XXXXXX**** Jun Gun Aaradhak Trust Nuut
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________________ PPA Guntarasut MS पोऽपिसोऽपि लोकोऽपि, मुंदिता स्वगृहं ययुः॥ विशेषान्मंत्रिगो गेहं. वनूव सुमहोत्सवः॥ संप्रेाज्यराज्यकार्याणि,कुर्वन् शिशुरैपि स्वयम्॥ वृहन्योऽपि हि मान्योऽनलेन्य ईव सन्मणिः॥ पछी राजा अने सर्वे लोको पण हर्पित थइने पोत पोताना बो गया. विशेष मंत्राना घरने विषे उत्तम उत्सव थवा लाग्या. // 275 // रत्नाकर पोते बालक छतां उत्तम एवां राज्य कार्यने करतो छतो पर्वतो करतां * जेम उत्तम मणि मान्यवंत होय तेम वृद्ध पुरुषा करतां वधारे मान्यवंत थयो. // 276 // अन्यदा शूरनूपालः कालवत्कुपितो नृशम् // आगचंतत्पुरं "राझे, झापितश्चतुरैश्चरैः॥ // रोजा मंत्रिणंमाकार्य, तत्स्वरूपं न्यवेदयत्॥ स प्रोवाच स्थिरैन्नीयं, स्थिराणां स्युर्यंत श्रियः॥ कोइ वखते कालनी पेठे बहु कोप पामेलो शूर राजा श्रीपुर उपर चडी आवतो हतो ते बात चाकर चर लोकोए श्रीचंद्र राजाने कही. // 277 / / राजाए प्रधानने (रत्नाकरने ) बोलावोने ते वात कही एटले प्रधाने कर्तुं के, “आप धीरज राखो. कारण के, धारजथो विजय होय छे." // 278 // इत्युक्त्वा सऊयन् वप्रं, प्रचन्नं स नरैर्निजै // शत्रोरुत्तीरकस्थाने, निधानानि तितो न्यधात् // समेते शूरनपाले, ससैन्ये परितःस्थिते // लिर्खित्वा से स्वयं लेख, प्रेषयामास तत्कृते॥ एम कहीने ते प्रधाने पोताना माणसो पासे किल्लाने गुप्त रोते सज्ज करावीने शत्रुने उत्तरवाने ठेकाणे * पृथ्वीमां धन डटावी दीधुं. // 279 // पछी शूरराजा आव्यो अने सैन्यसहित चारे तरफ पडाव करीने र ह्यो एटले रत्नाकरे पोते एक पत्र लखीने शूरराजा उपर मोकल्यो // 280 // लेखोऽयं च स्वयं वाच्य, इति वाच्यं त्वया मुखात्॥शियित्वेत्यसो 'विप्रं, स्वं प्रैषीत् शूरनूलुजे॥ लेखं से वाचयामास, स्ययमेवेति मातुलः // मदीयोऽस्ति नवन्मंत्रो, तेने संबंधैवानहम // वली " आ पत्र तमारे पोताने वांचवो. एम हारे मोढेथीं कहेवू." एम ते रत्नाकर पोताना ब्राह्मणने शिखामण आपो शूरराजा पासे मोकल्यो. // 281 // पछी ते शूरराजा पोतेज आ प्रमाणे पत्रने पांचवा लाग्यो के, “तमारो प्रधान म्हारो मामो थाय छे, तेथो तेमनो साथे हुं संबंध धराबुछु. // 282 / / TXXXIKKIKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXYYYY Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. तेव सूत्रे विनष्टे स्यानदीयमपि नश्वरम् ॥झोपयाम्युपकाराय, तस्यापि च तैवापि च // 23 चरित्र. सामंताःस्वामिनास्माकं,त्वदीयाः संतिलोनिताः॥बध्वा ते त्वां प्रैदास्यंति, मत्प्रनोरिति चिंतये "SL तमारी व्यवस्थानो नाश थये लते तेमनो पण नाश थाय. माटे तमाम अने तेमना उपकारने माटे कई छु के, // 283 // तमारा सामंतोने अमारा महाराजाए लोभ पमाडया छे, तेथी ते तमारा सामंतो तमने / | पोताने बांधो म्हारा महाराजाने सोंपशे, एथी हुँ आ कहुं छु. // 284 // चेन्नै प्रतीतिस्तत्तेषां,शोध्या नत्तारकास्त्वया॥ मयास्ति झापितं योग्य,विधेय स्वहितं त्वया॥ * वाचयित्वेति त लेख, सामंतोतारेकषु सः ॥शोधितेषू च दृष्टेष,निधानेषु पलायितः॥ 6 // ____जो आ वातनो विश्वास न होय तो तमारे तेओना उतारा तपासवा. में आ तमने खवर आपी छे, माटे *तमारे योग्य प्रमाणे पोतानुं हित करवू." // 285 // आ प्रमाणे पत्र वांची शूरराजा पोताना सामंतोना उ तारा जोवा लाग्यो अने तेमां धन जोइने पोते नाशी गयो. // 286 // पलायमानं तं ज्ञात्वा, सामंता अनुधाविताः। विशेषांन्त्रयन्नोतोऽसौ, पवनाऊँवनोऽनवत् // * अस्मिन्नवसरे हाते, सति श्रीचभूपतिः // तेषामुत्तारकान् सब्लुिटयामास गछताम् // तेने नाशी जतो जाणी सामंतो पण तेनी पाछल नाशी जवा लाग्या, तेथी वधारे भय पामेलो शूरराजा - पवनथी पण वधारे वेगवालो थयो. // 287 // आ अवसरे ते वात जाणी श्रीचंद्रराजाए नाशी जता एवा | तेओना सर्व उतारा लुटी लीधा. // 288 // मंतिमत्यंभूतां तस्य, चित्ते चिंतयंता भृशम्॥ मेने मेनोझता राज्ये, राज्ञा तनैवं मंत्रिणीं। अथ चंज्ञवतीदेव्या, लध्वी रत्नवती स्वसा // दत्ता श्रीचनूपाय, रूपचंदेश नूनुजा // 3 // ते रत्नाकरनी अति अद्भूत मतिनो चित्तमां बहु विचार करता एवा राजाए ते प्रधानथी राज्यने विषे मनोहरपणुं मान्यु. // 289 // हवे श्रीचंद्रराजानी स्त्री चंद्रावती राणानी न्हानी व्हेन रत्नवती रूपचंद्रराजाए (तेना पिताए ) श्रीचंद्रनी साथेज परणावी. // 29 // KXXXXXXXXXXXXXXXXXX XXXXXXXXXXXXX
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________________ PIPAC.GunratnasunMS. विवाहावसरे पित्री, झापिते सति नृपतिः॥ राजाक्रांत शरीरोऽनहलाये च स्वमंत्रिणम् // मम खमं समादाय, गत्वैतेने विवाह्य तीम् // तं रत्नावतोमत्रानयं ज्ञेयविशारद॥ श्ए॥ विवाहने अवसरे रूपचंद्र राजाए खबर आपी, पण ते वखते श्रीचंद्रराजाने शरीरे रोग थयो हतो, तेथी तेणे पोताना प्रधान रत्नाकरने कह्यु. // 291 // हे कार्यचतुर ! म्हारा खड्गने लइ तुं त्यां जा अने ते खड्गनी साथे लग्न करी ते रत्नावतीने अहिं झट लाव." // 292 // तथैवं कृत्वा भूपाझां, से समेतः पुरंः निर्जम् // बह्वमन्यत भूपः स्त्रीरत्नं रत्नवतीमिति // अथ चंज्ञवती ध्यौ, स्वसा पूर्वमपि स्वसा // संपत्नीत्वेन संजातोधुना देतो मां पुनः // रत्नाकर पण तेवीज रीते राजानी आज्ञा प्रमाणे करी पोताना नगरे आव्यो. राजा श्रीचंद्रे पण स्त्रीरत्न रूप रत्नवतीने बहु मान्यथी राखी. // 293 // पछी चंद्रावती विचार करवा लागी के, "प्रथम व्हेन छतां पण हवणां शोक्यपणाने पामेली ते व्हेन फरी पण मने बाले छे. // 294 // प्रागेवे तत्करिष्येऽहं,विरक्तःस्यान्नॅपो यतः॥ध्यात्वेति "तं गौ कोले, मंत्रिश्लाघाविधायिनम्॥ अतिश्लाघा ने कस्यापि, प्राणनाथ विधीयते॥ मंत्रिगायत्कृतं मार्गे, तत्सर्व "मे जैगौ स्वसा॥ प्रथमज हुँ ते, करीश के, जेथी राजा विरक्त थाय." आ प्रमाणे विचार करी ते चंद्रावतीए अवसरे * | मंत्रीनां वखाण करनार राजाने कह्यु. // 295 // “हे प्राणनाथ ! कोइनां बहु वखाण न करवां. कारण रस्तामा मंत्रीए जे कयुं छे ते सर्व म्हारी व्हेने मने कह्यं छे. / / 296 // श्रुवेति कुपितो नूपस्त्यक्त्वा रत्नवतीगृहम्॥जिघांसुमैत्रिणं 'कंचिउपायं स व्यचिंतयत् // कुन्नं स्वर्णमयं नृत्वा, नश्मना दौमवेष्टितम्॥ कृत्वा दत्वा स्वयं मुश, बनाये मंत्रिणं प्रति प्रियानां एवां वचन सांभली कोप पामेला राजाए रत्नवतीना घरने त्यजी दीधुं. वली मंत्रीने मारी नांख| वानी इच्छावलो ते काइ उपायने शोधवा लाग्यो. // 297 // पछी राजाए सुवर्णना कुंभमां भश्म भरी उपर * शमा बम बाधा अन पात साका मारान पछी मत्रान कयु. / / 298 / / / Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P A , Gunratnasuti MS गुण रेऽस्ति श्रीकांचनपुरे, मन्मित्रं नृपतिः पृथुः // अनेन प्रभृतेन त्वं प्राग् रूँष्ट प्रीणायाशु तम् // मुज्ञ में नापनेतव्या, मार्गे किंतु सन्नांतरे // बोटॅयित्वा त्वया देयः केरोस्ति मैनोरमः // // 56 // .. अरे मंत्री ! श्रीकांचन नगरमां म्हारो मित्र पृथुराजा छे. तुं पूर्व म्हारा उपर रोष पामेला ते राजाने आ भेटथी झट प्रसन्न कर. // 299 // रस्तामा म्हारा सीकाने तोडवो नहिं, परंतु सभामा त्हारे छोडीने राजाने देखाडवो. एमां मनोहर कपूर छे. // 300 // इति शिक्षा स्वयंमत्वा, 'प्रेषितोऽसौ महीनुजा // मंत्री तथैव चक्रे तैनशम केर्पूरतां गतम् // राज्ञा समानितोऽत्यंत, राजकार्य विधाय सः॥ निजपुर समागत्य, प्रेणनाम नरेश्वरम् // 30 // आ प्रमाणे पोते शीखामण आपी राजाए मोकलेला ए रत्नाकर मंत्रीए तेज प्रमाणे कर्यु. अने ते घडानी ) अंदर भरेली भश्म कपूर थइ गइ. // 301 // पछी ते पृथुराजाए अत्यंत सत्कार करेला रत्नाकर मंत्रीए राज कार्य करी पोताना नगरे आवी श्रीचंद्र राजाने नमस्कार कर्यो. // 302 // विस्मितोऽपि हेदि मापः; स्वरूपं विनिवेदयत्॥पुनात्वा तमौदिल्लिखित्वा लेखमात्मना arl पुरे हेमपुरे हेमकुंनो नूपः सुहन्मम // तस्मै लेखं दायेति", वाच्यं वाच्यः स्वयं त्वया // 304 हृदयमा विस्मय पामेला श्रीचंद्र राजाए ते स्वरूप निवेदन करी अने फरी विचार करीने पोताना हाas थथी पत्र लखी ते रत्नाकर मंत्रीने आज्ञा करी // 303 // हेमपुर नगरने विषे हेमकुंभ नामनो राजा म्हारो है मित्र छे, तेने आ पत्र आपी एम कहेवू के, तमारे पोताने आ पत्र यांचवो. // 304 // इति शिक्षामयो बिबेन्मंत्री निगरं गतः // लेखं दत्वा नॅप नेत्वासोनः शिष्योक्तिपूर्वकम् // नूपतिर्वाचयामास, तं लेखमिति मत्र्य 'सौ॥ वध्यो लोकापवादेन, मैया "हतुं न शक्यते // _ पछी ए प्रमाणे शाखामण सांभली मंत्री हेमपुरे गयो अने त्यां पत्रं आपी राजाने नमस्कार करी समाचार कहेवा पूर्वक बोल्यो. // 305 // पछी राजा ते पत्रने आ प्रमाणे वांचवा लाग्यो के,"आमंत्रो लोकापवादथी वध करवा योग्य छे, परंतु ते म्हाराथी वध करवो अशक्य छे. // 306 // DUEIL Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. ततस्त्वया रहो वध्य, इति लेख प्रवाच्य सः॥ विसृज्य मंत्रिणं सोयान्हे "तमाकोग्यत्पुनः // रहो नीत्वासिमाकृष्य, तहतुं स प्रवृत्तवानास्मिंत्वोचे संचिवः सत्वं, शृंगपुचोप्रितः पशुः // माटे तमारे एकांते मारवो.” आ प्रमाणे पत्र वांची हमचंद्र राजाए तेने रजा आपीने फरी मांजे तेने बोला* व्यो. // 307 // हेमचंद्र राजा तेने एकांतमां लइ जइ तरवार खेंची मारवा तैयार थयो एटले रत्नाकर * हसोने बोल्यो के, " तुं शीगडा अने पुच्छडा विनानो पशु देखाय छे.” // 308 // नृपः प्रोचे नवद्भर्तुर्मया शिदया विधीयते // सावक "तेनैवे' मूर्खत्वं,नाति मे"नॅपते तवे॥ नेनु मैऊन्मनि प्रोक्तं, देवैः सांवत्सरिति // तनुस्थाने हा 'संति, पतीता बलवतरा // 310 // राजाए कह्यं. "हारा राजानो हुकम म्हारे मानवो जोइए. " मंत्री रत्नाकरे कडं. "हे राजन् ! तेथीज हारुं मूर्खपणुं मने जणाय छे. // 309 // निश्चे म्हारा जन्म वखते चतुर एवा जोशी लोकोए एम को हतुं के, आना देहभुवनमा बहु बलवंत ग्रहो पडेला छे. // 310 // मृत्युः करिष्यते यत्र, बलादेस्य केदाचन // द्वात्रिंशतंत्र वर्षाणि, निदं नितिष्यति // 311 देण स्वामिनास्माकं, प्रहितोऽस्मि तत स्तव॥ मया हेतुरयं प्रोक्तो, यऽभ्यं तत्कुरुष्वं नो॥ - कयारे पण वलथो आर्नु मृत्यु जे ठेकाणे करीश त्यां वत्रीश वर्ष पर्यंत दुर्भिक्ष पडशे. // 311 // हे राज- : * न् ! माटे चतुर एवा म्हारा राजाए मने मोकल्यो छे. में आ हेतु तने कह्यो. हवे जे योग्य होय ते करो."॥३१२॥ उर्लिकनीतोनूपोऽवक, स्वामी ते न सुदृन्मम॥सत्यं बंधुरै सि त्वं तु,येन में "विहितं हितम्॥ * संवृत्य खजमालिंग्य, समान्य वसैनादिन्निः ॥विसृष्टः सोऽपि संप्राप्तः, संदृष्टः स्वपुरं ततः // पछी दुर्भिक्षथी भय पामेला राजाए कह्यु के, "हाग राजा म्हारो मित्र नथी, परंत मत्य तुंज मित्र , के.जे ते म्हारु हित कयु. // 313 // पछी खड्गने म्यानमा नांखी अने तने भेटी तेमज वस्त्र विगेरेथा सत्कार करी रजा आपेला ते रत्नाकर पण हर्ष पामतो छतो पोताना नगरे आव्यो. // 314 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPA Gunratnasuti MS गुण सोपोलनं सुहृल्लेख, मुक्त्वा नूपं ननाम सः॥ तत्स्वरूपे परिझाते, सैति सोऽयं विसिमिये॥ चरित्र, तथापि हंतुकामरतमंन्ये द्युनूपति जंगौ // मनोझमद्य कर्पूरं पत्राणि च समानय / / 316 // // 5 // त्यां नेणे सभामां ठबका सहित हेमकुंभ राजानो पत्र मुकी श्रीचंद्र राजाने नमस्कार कर्यो. ए चंद्र पण ते वृत्तांत जाणी विस्मय पाम्यो. // 315 // तोपण कोइ दिवसे रत्नाकरने मारवानी इच्छावाला राजाए तेने क युं के, “आजे मनोहर कपूर अने तांबूल लाव्य. // 316 // , तथाकृते नेपो रात्रौ, सामंतेभ्यः स्वपाणिना // ददौ कर्पूरमिश्राणि पत्राणि परमादरात् // 317 नूपः करतले तस्य, विषं न्यस्य दैलैः समम् // कर्पूरो गृह्यतां मंत्रिन् , नक्ष्यतामित्यनाषत // रत्नाकरे कपर अने तांबुल लावी आप्या एटले राजाए रात्रीए पोता हाथैथी. सर्वे सामंतोने बहु आद: रथी ते कपूरयुक्त तावुलो वेहेंची आप्यां. // 317 // राजाए पोतानी हाथलीमां तांबुलनो साथे विष मूकी मंत्रीने “हे प्रधान ! आ कपूर गृहण करो अने भक्षण करो." एम कडं. // 318 // विषं कर्पूरतां प्राप्तं, नकतिस्म स तत्क्षणम् ॥नूपे चमत्कृतेऽकस्मान्मध्ये कोलौहलोऽनवत् // आगता त्वरितं दासी, स्माह स्वामिनिशम्यताम् // देवी चंशवतो बाढं, व्याकुला वर्ततेऽधुना॥ . ते वखते विष कपूर थइ गयुं ते प्रधाने तुरत भक्षण कर्यु, जेथी राजा चमत्कार पाम्यो. एटलामां अक* स्मात् अंतःपुरनी मध्ये कोलाहल थयो, // 319 // पछी तुरत सभामां आवेली दासीये कह्यु के, हे स्वामीन् ! - सांभलो. हवणां चंद्रावती देवी वहु व्याकुल थइ गया छे. // 320 // चपेटया ईता केनाप्यदृष्टान्यनै तल्पतः॥ पतिती पृथिवोपीठे, सुंठति ग्रेहिलेवे सा // 31 // नृपेण शीघ्रमागत्य, गुगुलोजाहपूर्वकम् // नाषिता सा बैषा तस्मै, चपेटां दाँतुमुद्यता // 322 वली कोइ वीजाए अदृश्यपणे लपडाकथी मारेला होयनी? एम ते शय्याथी पृथ्वी उपर पडीने गांडानी पेठे आलोटे छे." // 31 // पछी राजाए तुरत त्यां आवो गुगुलनो धुमाडो करीने बालावी एटले ते क्रोधथी राजाने लपडाक मारवाने तैयार थइ. // 322 // Jun Gun Aaradhak Trust anaa
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. सौ कथंचिनरर्वों, नाषिता मंत्रवादिनिः॥ नूतो वो राक्षसो वापि,शाकिनी चेति वादिनिः॥ सा रेषा नृपति प्रोचे, रेतघ्नशिरोमणे॥ मायया वचसैतस्या मंत्री 'हंतुं विचिंततः // 33 // पछी " तुं भूत, राक्षस अथवा शाकिनी छ ? एम बोलता एवा मंत्रवादीओए वोलावेली ते चंद्रावतीने र | राजपुरुषोए महा कष्ठथी वांधी // 323 // पछी चंद्रावतीये क्रोधथी कह्यु के, " अरे कृतघ्न शिरोमणि ! तें आ त्हारी प्रियाना वचनथो मायावडे मंत्रीने हवणाना विचार कर्यो छे. / / 324 // मया करितां नीतं', पूर्व लश्म ततो विषम // अहं तवास्मि रे'राज्याधिष्टात्री कुलदेवता // अथैतों न हि मायामि, हनिष्याम्ये सर्वथा // ततो मंत्रिणेमाकार्य, नृपः कैमयतिस्म तम् // __अरे! दु त्हारा राज्यनी अधिष्टायक कुलदेवी छ. मेंज पूर्वे भश्म कपूर वनावी हती अने पछी विषने / * पण कपूर कयु हतुं. // 35 // वली हुं आ चंद्रावतीने निश्चे नहि छोडो देउं, परंतु सर्व प्रकारे मारोश." पछी राणाए मंत्रीने बोलावीने तेनी क्षमा मागो. / / 326 / / / * तामप्यलुढयत्पादयुगले मंत्रियो मुहुः // मिता बहुमानेन, सी ततो देवता गैता // 327 // जातायामेथ सजायां, देव्यां हृष्टो जनोऽखिलः।। मंत्रिणं श्लाघयामास, विदधानो महोत्सवम् // पछी चंद्रावतीने पगे लागी मंत्रीये वारंवार बहुमानथी क्षमा पमाडेली ते राज्याधिष्ठायक कुलदेवी चाली गइ. // 327 // पछी चंद्रावती सारो थइ एटले हर्षित थयेला सर्वे माणसो महोत्सव करोने मंत्राने वखाणवा लाग्या. // 328 // रत्नवयंप्यमान्या सा, मान्या रांझा ततः कृता॥मंत्री विचिंतितश्चिंते, जीवितादेपि वल्लनः // श्रीमंतोऽजितसिंहाख्यः, सूरयो झानिनोन्येदा॥ संप्राप्तास्तान्नृपो नेतु, मत्रिणा सहितो ययो॥ __पछी रानाए अमान्य एवी पण रत्नवताने मान्य करी अने मंत्राने चित्तमां जीवितथी पण वधारे वहालो धारयो // 329 // कोइ वरवते श्रीमान अजितसिंह नामना ज्ञानो गुरु श्रापुर नगरे आव्या, तेथी रत्नाकर प्रधान सहित राजा तेमने वंदन करवा गयो. // 330 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण PPAC Gunnatasudi MS *श्रुत्वोपदेशं पैप्रल, मैत्रिणो नाग्यकारणम् // मुनिः पूर्वनवं पोचे, नगरे हँस्तिनापुरे // 331 // चरित्र. श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, धनेश्वरसुतोलवत् // जिनपूजामुना चक्रे, बांधवैः सह संमदात् // 33 // राजाए उपदश सांभलीने पछी मंत्रोना भाग्य कारण पूछयु एटले मुनिये मंत्रोनो पूर्वभव कह्यो के, "हस्तिनापुर नगरने विषे धनदत्त शेठनो धनेश्वर नामनो पुत्र थयो. ए धनेश्वरे पोताना बंधुओ सहित हर्षथी जिन पूजा करी // 331 // 332 // कर्पूरार्चा विशेषेण, कर्पूरो विर्षनश्मनी // जातः क्रमेण राज्यं चं, प्राज्यमस्य नविष्यति // मंत्री पूर्वनवं श्रुत्वा, जातिस्मरण भाप सः // विशेषादर्हितं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // 335 विशेषे तेणे कपूरथी पूजा करी के, जेथी विष अने भश्म कपूर थइ गया. वली ए रत्नाकरने अनुक्रमे 2 रूद्धिवंत राज्य प्राप्त थशे." // 333 // पछी ते मंत्री पोतानो पूर्वभव सांभली जातिस्मरणज्ञान पाम्यो, IA तेथी तेणे विशेषे मुनि पासे अरिहंत धर्म आदरयोः // 33 // . मुनि नत्वा गृहं गत्वा, दैत्वा राज्यं स्वमंत्रिणे // निरंपत्यो नृपः पार्थे, गुरोः संयममग्रहीत् // अथ रत्नाकरो राजा, पालयित्वा नुवं चिरम् // पुत्राय रत्नदेवाय, राज्यं दत्वागृहोश्चत्तम् // 336 / / . पछी पुत्ररहित राजाए मुनिने नमस्कार करी घरे जइ पोताना प्रधानने राज्य आपी गुरु पासे चारित्र लोधुं. // 335 // पछी रत्नाकर राजाए वहुकाल पृथ्वीनुं पालन करी रत्नदेव पुत्रने राज्य आपी | चारित्र लोधुं // 336 // पाल्य संयम नव्यन्नावेन से मुनीश्वरः // विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽलवत् // चिरं सुखान्यसौ नुक्त्वा, देवलोकार्त्ततश्चयूतः॥ अष्टमोडेनंतनामासीत्तनयस्तव नूपते // 330 // ___अनुक्रमे ते मुनिश्वर श्रेष्ट भावथी चारित्रने पाली अने अंते अनशन लइ सौधर्म देवलोके देवता थया. // 337 // ( श्रीनरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के.) हे राजन् ! ए मुनिनो जीव त्या दोर्वकाल मुखोने भोगवी अने पछी सांथी चवाने त्हारो आठमो अनंत नामनो पुत्र थयो छे. // 338 // XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust एना
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________________ P.P.A. Gunnarasut MS पुष्पादिपूजनचतुष्कफलानि पुण्यमाणिक्यसुंदररुचिः नृपतेः पुरस्तात् // नक्त्वा विशेषसहितानी मुनिर्ध्वीद्यारोपादिपूजनफलं गदितुं प्रवृत्तः // 335 // पवित्र माणिक्यना सरखी सुंदर कांतिवाला अथवा पवित्र एवा माणिक्यसुंदररुचि मुनि राजानी आ. | गल विशेष सहित पुष्पादि चार पूजनना फलने कही धजादि आरोपणना फलने कहे छे. // 339 // इति श्री अंचलगछेशमाणिक्यसुंदरसूरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्माचरित्रे पुष्पमाल्यवर्णकचूर्णारोपण पूजनफलवर्णनो नाम तृतीयः स्वर्गः Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण स्वर्ग 4 थो. . PPA Guntarasut MS Is ध्वजारोपः कृतो येन, फलं तस्य निगद्यते ॥अत्रास्ति नरतक्षेत्रे, पुरमिपुरं परम् // 1 // तत्रानूद्देवचंज्ञख्यो, भूपो देवेंइसन्निनः // देवी च देविला तस्य, देवकांतेव दिरुव्यक् // 2 // जेणे जिणेश्वरना मंदिर उपर पजा चडावी छे, तेनुं फल कडेवाय छे. आ भरतक्षेत्रमा उत्तम एवं इंद्रपुर नामर्नु नगर छे. // 1 // ते नगरमां इंद्रना सरखो देवचंद्र नामनो राजा हतो अने ते राजाने देवांगनाना समान Ite दिव्य कांतिवाली देविला नामनी स्त्री हती. // 2 // कनकस्य ततो जीव स्तस्या कुकिं समागतः॥ समये स तया सूतः, पिता चके महोत्सवम् // गरुडध्वजश्त्याख्यां तस्य जाता मनोरमा // तस्मै प्रवईमानाय, राज्यं दत्वा पिता मृतः // 4 // * हवे कनकनो जीव ते देविना उदरने विषे आव्यो, अवसरे देविलाये तेने जन्म आप्यो. जेथी देवचंद्र रा जाए पुत्र जन्मनो म्होटो उत्सव करयो. // 3 // पिताए ते पुत्रनुं मनोहर " गरुडध्वज " एवं नाम पाडयुं पछी a अनुक्रमे म्होटा थयेला ते पुत्रने राज्य आपीने देवचंद्र राजा मृत्यु पाम्यो. // 4 / / गरुडध्वज नृपालेऽन्यदा संसदि संस्थिते // वेत्रिप्रवेशितो दूतो, नत्वा कार्यमन्नाषत // 5 // अस्ति पंचालदेशेषु, पुरं शिवपुरानिधम् // तत्र श्रीशंकरो राजा, शिवचंज्ञस्य तु प्रिया // 6 // एक दिवस गरुडध्वज राजा सभामां बेठो हतो एवामां द्वारपाले सभामा प्रवेश करावेला कोइ दूते राजाने नमस्कार करीने कार्य कहेवा लाग्यो. // 5 // हे राजन् ! पंचालदेशमा शिवपुर नामर्नु नगर छे. त्यां शंकरनामनो राजा राज्य करे छे. वली ते राजाने शिवचंद्रा नामनी स्त्री छे. // 6 // . Jun Gun Asracha Trust पणा
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________________ P.P.A. Gunanasuti MS तत्कुपिद्मिनोहंसी, कन्या नाम्ना सरस्वती // सरस्वतीव संजातसर्वशास्त्रार्थसंग्रहा // 7 // पाणिग्रहमकुर्वाणा, तारतारुण्यशालिनी // प्रोचे सदेव्या स्त्रोत्संगे, निवेश्य निजनंदनी॥॥ ते राजाने शिवचंद्राना उदररूप कमलीनीने विषे हंसी समान अने सर्व शास्त्रार्थनो अभ्यास करवाथी जाणे सरस्वती पोतेज होयनी? एवी सरस्वती नामनी पुत्री छे. // 7 ॥कोइ वखते शंकर राजा शिवचंद्रा प्रिया सहित, विवाह नहि करती अने मनोहर युवावस्थाथी सुशोभित बनेली पोतानी पुत्रीने पोताना खोलामा बेसारीने पूछवा लाग्यो. // 8 // न मन्यसे कुतो हेतोः, पाणिग्रहणमंगजे॥ यञ्चिते वर्तते तन्मे, प्रकाशय सरस्वति ॥ए // सा प्रोचे किं कुतेनापि, पाणिग्रहणकर्मणा // कांता यदक्ति तत्कार्य, नर्त्तान कुरुते यदि // __ हे पुत्री ! तुं विवाह करवो शा माटे कवुल करती नथी? हे सरस्वती! त्हारा चित्तमां जे होय ते मने कहे. पुत्रीये कयु. “हे तात ! स्त्री जे कार्य कहे ते कार्य जो पति न करे तो विवाह कार्य करवाथीपण शुं ? // 10 // सर्वकार्याणि यः कुर्यान्मउक्तानि निरंतरम् // वरःस मेऽन्यथा नास्ति, विवाहेन प्रयोजनम्। इत्युक्त्वा सा समुत्याय,जनन्युत्संगतो गता॥ माता संजातसंतापा, तत्मापाय निवेदयत् // जे पुरुष म्हारां कहेला सर्व कार्यों निरंतर करे तेज म्हारो पति थाओ. ए विना म्हारे विवाहथी कोड : प्रयोजन नथी. // 11 // एम कहीने ते कन्या उठीने माताना खोलामा गइ; तेथी जेने अधिक संताप उत्पन्न थयो हतो एवी शिवचंद्राये राजाने कह्यु के. // 12 // अबालत्वेऽपि बालत्वं, तस्याः किमतिचिंतयन् // नृपो मंत्रिणमाकार्य, तत्स्वरूपं स्वयं जगौ॥१३ स प्राह पुरुषः कोऽपि, प्रायस्तादृग् न विद्यते॥कुर्यात्सर्वाणि कार्याणि, नारीणामेव वाक्ष्यतः॥ ___" तेनुं आ यौवनपणामां पण बालपणुं शुं ?" अत्यंत विचार करता एवा राजाए पण प्रधानने बोलावी पोते ते सर्व वात कही. // 13 // प्रधाने कयु. " घणुं करीने कोइपण तेवो पुरुष नथी के, जे वचनमात्रथी a स्त्रीयोनां सर्व कार्यों करे.॥ 14 // Esk2K2R5Raik Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुणा P.P.AC.Gunratnasun M.S. नवत्यपिवरः कोऽपि, तड्पं वीक्ष्य रंजितः // अन्वंकारीनटीरुपात्परिणीता सुबंधना // 15 चरित्र ततः स्वयंवरस्तस्याः, कार्यते कार्यकोविदः। तत्प्रतिज्ञावचः श्रुत्वा, यो वृणोति वृणोतु सः॥ ___जो कोइपण वर तेना रूपने जोइने प्रसन्न थाय तो अन्वकारीभरी रूपथी ते कन्या परणशे. // 15 // माटे तेनो स्वयंवर करावीये. तेमां ते प्रतिज्ञाना वचन सांभली कार्यनो जाण एवो जे पुरुष वरे ते वरो // 16 // लोकोनिरुत्तरैरेवं, नूयते नूयसाथ किम् // इति मंत्रिगिरा भूपोऽचीकरत स्वयंवरः // 17 // आहुता भूभुजः सर्वे, दूतान् प्रेष्य प्रथक् प्रथक्॥तबंतोऽपि संप्राप्ता वीक्ष्यते तत्स्वयंवरे // बली लोकमां आ प्रमाणे निरूत्तरवडे घणो वखत | रही शकाय ?" आवी मंत्रीनी वाणीथीं शंकर राजाए स्वयंवर करयो. // 17 // तेमां जूदा जूदा दूतो मोकली सर्व राजाओने बोलाव्या छै; माटे ते स्वयंवरमा तमारी पण वाट जोवाय छे. // 18 // इतितद्गिरमाकण्य, सस्मितं नूपतिर्जगौ // अस्मान्निरस्मिन्नर्थेऽम्थितैराखुत्तरं नवेत् // 15 // दूतः प्रोवाच दुःसाध्य, चिंतयित्वात्र संस्थिता॥ यथा यूयं तथान्येऽपि, कथं नावि स्वयंवरः॥ दूतनी एवो वाणो सांभली हाश्यथी राजा देवचंद्रे कडं के, " आ प्रयोजनमा तो अहिं रहेला एवाय पण अमारावडे उत्तर कराय छे. अर्थात् कन्याना कहेवा प्रमाणे अमाराथी करी शकाय तेम नथो, जेथो अमारे त्यां न आवq ते वधारे सारुं छे. // 19 // दूते कह्यु. “महाराज! ए कार्य थर्बु अशक्य छे एम विचारी जेवी a रीते आप अहिं रहेशो तेवी रीते बीजा राजाओ पण पोते पोताने त्यां रहेशे तो पछी स्वयंवर शी रीते थशे. - तस्याः पाणिग्रहे कोऽपि, बलात्कारो न विद्यते // मिलंतु नूनुजः सर्वे, रुचिर्यस्य करोतु सः॥ *इत्युक्त्वा सज्जयित्वा तं, दूतोऽन्यत्र जगाम सः॥ गरुमध्वजन्नूपालश्च चालाभि स्वयंवरम् // बली ते. राजकन्याना पाणिग्रहणने विषे कोइपण बलात्कार नथी. सर्वे राजाओ एकठा थाओ; परंतु जेनी मरजी होय ते तेनी साथे विवाह करो. // 21 // एम कहोने ते देवचंद्र राजाने तैयार करी ते दूत वीजा नगर * प्रत्ये गयो. गरुडध्वज राजा पण स्वयंवर सन्मख चाल्यो. // 22 // .. * णा
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________________ P.P.AC.Gunratnasun M.S. मार्गे ग्रामाकरगाल्लंघमानस्य नूपतेः॥ अन्येयुः सरितस्तीरे स्थितं सैन्यमदैन्यन्नाक् // 33 | अहात्रे नृपस्तत्र, कस्यचित् करुणस्वरम् // श्रुत्वाचलत् करालेन, करवालेन संयुतः // 4 // . रस्तामां गाम, खाण देशने उल्लंघन करता एवा ते राजानो परिश्रमरहित एवा सैन्ये एक दिवस नदीने A कांठे पडाव करयो. // 23 // त्यां ते गरुडध्वज राजाए आधि रात्रीने विषे कोइनो करुणस्वर सांभल्यो; तेथी ते भयंकर तरवार लइ चाली निकल्यो. // 24 // गछन् शब्दानुसारेण, श्मशाने क्वापि नूपतिः॥ कंदतं नरमशक्षीत् , कदाक्षिप्तं हि राक्षसा // करवालं करे कृत्वा, नूपालः स्माह राक्षसम् // क्रंदतं कातरं मुंच, मामेहि यदि शक्तता॥६। ____ शब्दना अनुमाने जता एवा राजाए कोइपण पशानने विषे राक्षसे काखमा घालेला अने रोता एवा पुरु पने दीठो. // 25 // राजाए तरवार हाथमां लइ राक्षसने कह्यु. " तुं ए रोता एवा कायर पुरुषने मूकी दे 'अ2 थवा जो शक्ति होयतो म्हारा सामो आव्य. // 26 // रहः प्रोचेऽमुना मंत्रो, मदीयो जपितश्चिरम् ॥प्रत्यक्षतां गतेना सौ, नृमासं याचितो मया॥ न दत्तेऽसाविति क्रुधः,कातरं पीडयाम्यमुम् ॥न विद्यते तव स्वार्थो, व्रज मार्गे समाधिना॥ राक्षसे कह्यु. " आ पुरुषे म्हारो मंत्र बहु काल सुधी जप्यो छे तेथी प्रत्यक्षपणाने पामेला में तेनो पासे मनुष्यनुं मांस माग्युं छे. // 27 // परंतु ते आपतो नथी, माटे क्रोध पामेलो हुं आ कायर पुरुपने पीडा करुंछु. हे राजन् ! अहिं त्हारे स्वार्थ नथी; माटे तुं समाधिथी त्हारे मार्गे चाल्यो जा. // 28 // पलादंति नूपालः, प्रोवाच मयि पालके // मास्त्वन्यायो न युज्यते, तस्मात्त्वं कातरं त्यज // शिक्षा नोचेत् प्रदास्यामि, खजेन कणमात्रतः // इत्युक्त्वा पुगे नूपो, दधावे राक्षसंप्रति॥३० राजाए राक्षमने कह्यु. “हुं पालक छतां एनो अन्याय करता योग्य नथी, माटे तुं कायरपणुं त्यजी दे. 29 // जो तुं एने नहि त्यजी दे तो हुं क्षणवारमा तरवाडवडे तने शिक्षा आपीश." एम कहीने असह्य एवो ते राजा राक्षस सामो दोडयो. // 30 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ // 6 // PP.AC.Gunratnasun M.S. कर्तिकां नर्तयन् पाणौ, बलादपि पलादराट् // नूनुजा तामितः शीर्षेट्टहासस्फेटितांवरः॥३१ चा चकर्न कर्तिकां चाशु, करवालेन नूपतिः // रदकोऽवादोन ते कोलस्त्वं धोराणां शिरोमणिः॥३२ राक्षस पण वलथी हाथमां कातरने नचावतो छतो सामो आव्यो. तेने राजाए माथामां ताडन करयो तेथी तणे अट्टाटहासथी आकाशने गजावी मूक्युः // 31 // राजा गरुडध्वजे राक्षसनी कातरने तरवारवडे / ae तुरत कापी नाखो; तेथी राक्षसे कह्यु के, “हे राजन् ! तने क्षोभ थयो नहि, माटे तुं धोर पुरुषोमां शिरोमणो छे. साहसात्तव तुष्टोऽस्मि, वरं वृणु समोहितम् // स जगाद स्मृतो येन, तस्य त्वं सिक्ष्तां नज॥ सिइमेतत्परं स्वार्थ, प्रार्थयेति तदीरितः // स प्रोवाच तथा कार्य, यथा सा वियते मया।३।। द्वारा साहस पणाथी हं प्रसन्न थयो. माहे इलित वर माग." राजाए कॉ. “जेणे तने संभारयो छ तेना तुं सिद्धपणाने पाम." // // 33 // " एतो सिद्ध ययुं, परंतु तुं पोताना स्वार्थने माग." एम राक्षसे कह्यु. एटले राजाए कयु के, ते सरस्वती मने वरे तेम त्हारे कर." // 34 // नमित्युक्त्वा पलादेन, विसृष्टः स्ववलं गतः // प्रातश्च चलितो भूपः, क्रमाधिवपुरं ययौ // 35 // तत्र सिंहासनासीने, नूपवृंदे स्वयंवरे // वरमाला करे बिज्रत्यागता सा सरस्वती // 36 // "बहु सारूं." एम कहीने राक्षसे रजा आपवाथी राजा पोतानी सेनामां आव्यो. पछी सवारे चालेलो त्र ते अनुक्रमे शिवपुर नगर प्रत्ये आवो पहोच्यो. // 35 // त्यां स्वयंवरमां राजाओनो समूह सिंहासन उपर बेठे - छते वरमालाने हाथमां धारण करती एंवी ते राजकन्या सरस्वती आधी. // 36 // तां प्रोवाच प्रतिहारी, हारीकृतरदद्युतिम् // अंगुल्या दर्शयंतो तानामग्राहं नरेश्वरान् // 37 // अंगवंगतिलंगानां, कलिंगानां महीनुजः // मिलिताः संति सर्वेऽपि, कृतार्थ्यतां त्वया दशा // ___ हार सरखो करी छे दांतनी कांती जेणे एवी प्रतिहारीये आंगली वड़े नाम ग्रहण करवा पूर्वक ते राजाओने देखाडती छती सरस्वताने कहेवा लागी. // 37 // " हे राजकुमारी ! अंग, वंग, तैलंग अने कलिंग देशोना आ राजाओ मलेला छे, ते सर्वने तुं हारी दृष्टिथी कृतार्थ कर."॥ 38 // // 6 // ***XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXK Jun Gun Aarada Trust
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________________ P.PA. Gunatnasuti MS विलोक्य तांस्ततो वाला, पूर्वश्लोकं पपाठ सा ॥तं श्रुत्वा जझिरे तेच, निराशास्तत्करग्रहे॥३॥ सर्वकार्याणि यः कुर्यान्मक्तानि निरंतरम्॥वरः स मेऽन्यथा नास्ति विवाहेन प्रयोजनम् // 40 // पछी ते राजाओने जोइने ते राजकन्या सरस्वतोये पूर्वनो (सर्व कार्याणि ए ) श्लोक कह्यो. तेने सांभलीने * ते सर्वे राजाओ तेनी साथे विवाह करवाने निराश थया. // 39 // जे पुरुष म्हारां कहेलां सर्व कार्यो निरंतर * करे तेज म्हारो पति थाओ. ए विना म्हारे विवाहथी काइ प्रयोजन नथी. // 4 // प्रतिनूपमिमं श्लोकं, पती प्रचचाल सा // न कोऽपि तस्या मालार्थी, बनूव क्षितिनायकः॥ ततस्तस्याः पिता किंचिन्मचिंतयत् हहा विधे॥ अस्या गुणनिर्दोषः कृतः कस्मात्कदाग्रहः॥ ____ सरस्वती ए श्लोक दरेक राजा पासे बोलती बोलती चाली; परंतु कोइपण राजा तेनी मालानो अर्थी थयो नहि. // 41 // पछी तेनो पिता कांइक मनमां विचार करवा लाग्यो के, अरे विधि तें आ गुणसमुद्र सरखो पूत्रोनो कदाग्रहरूपी दोष केम प्रगट करयो ? // 42 // (मालिनी वृत्तम् ) शशिनि खलु कलंक कंटकाः पद्मनाले, जलधिजलमपेयं पंडिते निर्धनत्वम् // दचितजनवियोगो उर्जगत्वं सुरूपे, धनिषु च कृपणत्वं रत्नदोषी कृतांतः॥४३॥ ___निश्चे चंद्रने विषे कलंक, कमलनालने विषे कांटा, समुद्रनुं नहि पीवा योग्य ( खारं ) पाणी, पंडितने विषे / 1 निर्धनपणुं वहाला माणसोनो वियोग, सारा रूपवालाने विपे दुर्भाग्यपणुं अने धनवंतने विष कृपणपणुं होवाने * लीधे कालज रत्ननो दूपित करनारो छे. // 43 // स्वयंवरप्रयासो मे,विफलः सकलोऽन्नवत् // कथं यास्यति नूपाला, बालां परिणयं विना॥४४ ___म्हारा सर्व स्वयंवरनो प्रयास निष्फल थयो. तेमज आ राजाओ पण राजकुमारीने परण्या विना शी रीते पाछा जशे" !!! // 44 // Jun Gun Aaradhat Trust
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________________ 6 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. गुण तत्ताते चिंतयत्येवं, चित्तांतः सा सन्नांतरे // श्लोकं पठंती तत्रागाद्यत्रास्ते गरुमध्वजः // 45 // चरित्र. राक्षसोक्तं वचो नूपस्तदा सस्मार चेतसि // राक्षसश्च ततश्चक्रे, स तस्या मतिविनमः // 6 // आ प्रमाणे शंकर राजा मनमां विचार करतो हतो एवामां ते. राजकन्या मभाना अंदर श्लोक बोलती ती त्यां आवी के. ज्यां गरुडध्वज राजा बेठो हतो. // 45 // ते दखते गरुडध्वज राजाए राक्षसे कहेलां वचनने मनमां संभारछु, तेथी राक्षसे सरस्वतानी बुद्धिने भ्रम करो नांखा. // 46 // सा स्थाने सर्वशब्दस्य, पुण्यशब्दं प्रयुज्यत // श्लोकं पपाठ तच्छुत्वा, सर्वो लोको विसिष्मिये॥ पुण्यकार्याणि यः कुर्यान्मउक्तानि निरंतरम् // वरः स मेऽन्यथा नास्ति, विवाहेन प्रयोजनम् // तेथी ते राजकन्याये " सर्व कार्यने ठेकाणे पुण्यकार्य शब्द जोडो दोधो अने तेम. श्लोक बोलवा लागी. 2 ते सांभली सर्व राजाओ विश्मय पामी गया. // 47 // जे पुरुष म्हारां कहेलां पुण्यकार्यो निरंतर करे, ते म्हारो * पति थाओ. ए विना म्हारे विवाहयो कांइ प्रयोजन नथी. " // 48 // इति श्रुत्वा महिपालस्तन्मालार्थी बन्नृव सः॥ सा निचिकेप सोकलं, तत्कंठे वरस्त्रजम् // 3 // दिप्तायां वरमालायां, बालया मतिविन्रमः॥ परिझातः परं प्रोता, वरं वोक्ष्य गुणालयम् // 5 // | ते सरस्वतीनां एवां वचन सांभली गरूडध्वज राजा तेनी मालानो अर्थी थयो. मरस्वतीये पण उत्साह सहित तेना कंठने विषे वरमाला पहेरावो. // 49 // वरमाला पहेराव्या पछा राजकुमारोये पोतानो बुद्धि नोभ्रम जाण्यो; परंतु गुणवंत एवा पतिने जोइ प्रसन्न थइ. // 50 // ततस्तत्र तयोर्जाते, पाणिग्रहमहोत्सवे // विसृष्टा नूनुजः सर्वे, स्थानं निजनिजं ययुः // 51 // गरुमध्वजन्नपोऽपि, स्थित्वा तत्र कियदिनान् // तया सह समायतः स्वपुरं समहोत्सवम् // 53 पछी त्यां तेमनो विवाहमहोत्सव थया पछा रजा आपेला सर्व राजाओ पात पोताने स्थानके गया. 151 // गरुडध्वज राजा पण त्यां शिवपुरमा केटलाक दिवसो रहाने ते सरस्वती सहित म इंद्रपुर आव्यो . // 52 // दशा Jun Gun Aaradhak Trust ताना
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________________ P.P.A. Gunnatut MS तक्तपुण्यकार्याणि, कुर्वाणः प्रीतमानसः // समयं गमयामास, नृपः सुखमयं सदा // 53 // * गवाहस्थस्तया साकमन्यदा नूपतिर्वने // समेतं संघमशदीत्कुतश्चित्प्रौढतोर्थतः // 55 // . ____सरस्वतीये कहेलां पुण्यकार्यों करता एवो प्रसन्न पनवालो राजा हमेशां सुखमय कालने निवृत्त करवा ला| ग्यो. // 53 // कोइ वखते ते सरस्वतीनी साथे गोखमां बेठेला राजाए उद्यानमा कोइ म्होटा तीर्थथी आवता / | एवा संघने दीठो. // 54 // तया सह नृपस्तत्र, संघ इष्टुं वने ययौ // संघोऽप्यावर्जयामास, नृपति स्वयमागतम् // 55 // संघसार्थे समायातान् ,धर्मघोषाह्वयान गुरुन्॥प्रणम्य नूपतिस्तत्र, सकांतोऽपि निषएगवान् // __पछी राजा सरस्वती सहित संघने जोवा माटे त्यां वनमां गयो. संघे पण पोतानी मेले आवेला राजानो सत्कार करचो. // 55 // संवनी साथे आवेला धर्मघोष नामना मुनिने प्रणाम करी त्यां प्रिया सहित गरुडध्वज राजा वेठो. // 56 // समेतं तत्र संघेशं, नृपतिर्बहुमानयन् // गुरूपदेशं शुश्राव, तीर्थयात्राधिकारिणम् // 57 // समेतेऽष्टापदे शत्रुजये रैवतपर्वते // वाराणस्यादितोर्थेषु, नव्यैर्यात्रा विधियते // 5 // ___ पछी त्यां आवेला संघपतिने बहु मान आपता एवा राजाए तीर्थयात्राना अधिकाररुप गुरुए आपेलो धर्म उपदेश सांभल्यो. // 57 // भव्यजनो! संमेतशिखर, अष्टापद, शत्रुजय रेवताचल अने वाराणसी विगेरे तीर्थोने विषे यात्रा करे छे. // 58 // . ( इंद्रवज्रा वृत्तम् ) तीर्थेषु ये श्रीजिननाथन्नक्तिं, कृत्वा कृतार्थी रचयंति लक्ष्मीम् // त एव धन्या धरणीतलेऽत्र, नवंति नाराय परे मनुष्याः // एए॥ “जे माणसो तीर्थने विषे श्री जिनराजनी भक्ति करो लक्ष्मीने कृतार्थ (सफल) करे छे, तेज माणसोने आ पृथ्वी उपर धन्य छे. बीजा माणसो तो नरकने अर्थे थाय छे." // 59 // . Jun Gun Aaradhatust
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________________ गुण P.PAd Gunratnasuti MS श्चमाकएर्य संघेशवल्लनासंसदि स्थिता // प्रतिराझोमिति स्माह, सोत्साहहृदया मुदा॥६॥ गुरुना एवां वचन सांभलीने सभामां बेठेली अने हर्षथी उत्साहवंत हृदयवाली संघपतिनी स्त्रीये राणी // 63 // सरस्वतीने आ प्रमाणे कयु. // 6 // अस्मानिर्विहिता यात्रा, पूर्व शत्रुजये ततः॥ रेवताझै च किंवत्र, कौतुहलमिदं पुनः // 61 // शत्रुजये रैवते चाप्येके एव महाध्वजः // दत्तश्चितप्रमोदेन, एवं न दास्यते परः // 6 // अमे प्रथम शत्रुजयने विषे यात्रा करी अने त्यार पछी रेवताचले यात्रा करी; परंतु अहिं वली ए आश्चर्य हतुं / / 61 // अमे शत्रुजय पर्वत उपर अने रेवताचल पर्वत उपर हर्षित चित्तथी एकज महाध्वज चडाव्यो छे. ए प्रमाणे बीजो नहि चढावे. // 62 // राझो हसित्वा तां प्राह, संमेतेऽष्टापदेऽपि च // अस्मानिःक्रियते यात्रा, हृदये चिंत्यते पुनः॥ एतयोस्तीर्थयो रेवमेक एव महाध्वजः॥ दीयते किं त्वया श्लाघा स्वयमेव विधीयते // 6 // राणीए हसोने कह्यु." अमे पण समेतशिखर अने अष्टापदने विषे यात्रा करीए. वली ते मनमा विचार | करवा लागी के. // ए तीर्थने विषे तो एकज ध्वजा चडावायछे, तेमां तुं पोतानाज शुं वखाण करे छे?"॥६॥ नूपो विसृज्य संघेशं, पत्न्या सह गृहं ययौ // समये च तयानाणि, पूस्यकर्तव्यमस्ति नौ // संघेशवल्लन्नाग्रे यत् , पूर्व प्रोक्तं तया रयात् // तदेव कथयामास, पुरतो नूपतेरपि // 66 // पछी राजा संघपतिने रजा आपी पोते स्त्री सहित घरे आव्यो. वली अवसरे स्त्री सरस्वतीये तेने कह्यु के, 2 " आपणे पूण्यकार्य करवू छ." // 65 // पछी तेणे पूर्व जे संघपतिनी स्त्री आगल कयुं हतुं तेज तुरत राजानी * आगल पण कडुं. // 66 // तनु त्वा नूपतिर्दध्यावहो प्रोक्तं किमेलया // कुत्राष्टपदशैलेशः, कच संमेतपर्वतः // 67 // ते सांभली राजा विचार करवा लाग्यो. अहो ! आ स्त्रीये शुं कडं !!! अष्टापद पर्वत क्यां ! अने समेत शिखर पर्वत क्यां!!॥६॥ EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXKARI Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasuri M.S. S तयोर्यात्रा विधातव्या, संघतश्च परस्परम् // द्वयोरपिध्वजारोपः, कथमेतद्विधियते // 6 // संघथी परस्पर ते वन्ने पर्वतने विषे यात्रा करवी अने उपर ध्वजा चडाववी. ए शी रीते करी शकाय!!॥६८॥ मौनमाधाय नूपाले, स्थिते चिंतातुरे सति // गता सरस्वतीदेवी, नितांतंखिन्नमानसा // 6 // सचिवो ज्ञातवृत्तांतस्तांमुवाच विचक्षणः // स्वामिनि प्रायो वक्तव्यं, युक्तमेव हि सर्वथा // 70 ___ पछी मौन राखी गरुडध्वज राजा चिंतातुर थइ वेसी रह्ये छते अत्यंत खेदयुक्त मनवाली सरस्वती राणी | चाली गइ. // 69 // पछी जाण्युं छे वृत्तांत जेणे एवा चतुर प्रधाने राणीने कयु के, हे महादेवी ! निश्वे माणसोए घणुं करीने सर्वथा प्रकारे योग्यज बोलवू जोइये. // 70 // सा जगाद सन्नामध्ये, यन्मया कश्रितं मुदा॥अन्यथात्वं बजत्यत्र, जीवितान्मे मृतिवरम् // इति तनिश्चयं ज्ञात्वा राजा चित्तेऽतिखितः॥ रात्रावनुक्त्वा कस्यापि, निर्ययौ निजमंदिरात्॥ * सरस्वतीये का. " में सभामां हर्षर्थ जे कहेलुं छे ते जो बीजी रीते थायतो म्हारे जीववाथो मरवू सारूं."* * // 71 // तेना आवा निश्चयने जाणी चित्तमा अत्यंत दुःखी थयेलो राजा गरुडध्वज कोइने पण कह्या विना * रात्रीये पोताना घरैथी चाली नीकल्यो. // 72 // स्थाने स्थाने ब्रमनेष, तुंगशृंगाभिधं गिरिम् // निरीक्ष्य नृगुपाताय, गन्नालोकयन्नरौ // 73 // तौ शीर्षे ग्रंथिकां कृत्वा, बतौ पर्वतं प्रति // तथैवाचलितौ तूर्णं, तथाकारौ पुनःपुनः // 4 // ठेकाणे ठेकाणे भमता एवा ते राजाए तुंगशिखर नामना पर्वतने जोइ तेना उपरथी झंपापात करवाने अर्थे / जता एवा ते राजाए कोई बे पुरुषोने दीठा. // 73 // ते बन्ने पुरुषो माथे गांसडीओ मूकी पर्वत उपर जता, ते5 वीज रीते तुरत उभा रहेता, एम वारंवार करता इता, // 74 // . * विलोक्य भूपतिश्च तावुचे हे सुहृदौ कथम् // गमागमौ विघीयेते, युक्तं चेत्तर्हि कथ्यताम्॥७॥ - राजाए तेओने जोइने कह्यु. “हे मित्रो! तमे मा माटे जावआव करो छो? जो योग्य होयतो कहो. // 7 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरि A Gunratnasuti MS नृपमुचे तयोरेकः, स विवेक निशम्यताम् // सारंगपुरमित्यस्ति, नगरं सागरांतिके // 76 // ते बे 'पुरुषोमांथी एके राजाने कहूं. "हे विवेकवंत सांभल. समुद्रनी पासे सारंगपुर ए नामर्नु नगर छे.॥७६॥ तत्र चित्रांगदो राजा, राझी तस्य मनोरमा // यया मनोरमाकारात्कारिता दास्यमिंदिरा॥७॥ तां हृत्वा चंमवेगाख्यः, खेचरः खेचरन्नय॥ गत्वा जलनिधेमध्ये, हीपे क्वचिदवस्थितः // 70 या चित्रांगद नामे राजा छे अने तेने मनोरमा नामनी राणी छे. जे मनोरमाए पोताना मनोहरस्वरुपथी लक्ष्मीने पण दासीपणुं कराव्यु छे. // 77 // हवे चंडवेग नामनो विद्याधर ते मनोरमाने हरण करी आकाश मार्गे जतो छतो समुद्रनी मध्ये जइने कोइ द्वीपमा रह्यो. // 78 // परनार्यपहारेण, धरणे व्यवस्थया // विद्यानंसोऽन्नवत्तस्य, स तत्रैवास्त्यवस्थितः // 79 // नैमित्तिकाच्च तदात्वा, दध्यौ चित्रांगदो नृपः॥ कथंकारं रिपुं हन्मि, काम्यकांतापहारकम् // धरणेंद्रे करेली व्यवस्थान लीधे ( धरणेंद्रे परस्रीन हरण करवानी ना कही हती तोपण तेणे करेला ) परस्त्रीना हरणथी तेनी आकाशगामिनी विद्यानो नाश थइ गयो तेथी ते विद्याधर त्यांज रह्यो छे. // 79 // पछी निमित्तियाथी ते वात जाणी चित्रांगदराजा विचार करवा लाग्यो के, " हुं मनोहर स्त्रीनु हरण करनारा शत्रने शी रीते हणं." // 80 // एवंचिंतयतः सिह, पुरुषस्तस्य हपथम् // संप्राप्तो बहुमानेन, तेन भक्त्या च तोषितः // 71 ___आ प्रमाणे विचार करता एवा ते राजानी आगल कोइ सिद्ध पुरुष आव्यो. राजाए बहु मानथी अने भक्तिथी तेने संतोष पमाडयो. // 81 // आकाशगामिनी विद्या, विद्य चिंतितवानी // प्राप्त्यादिमहाविद्यावन्महाबलवत्तरे // // हे विद्ये नूनुजे तस्मै, तेन दत्ते मनिषिणा।। एक्या गम्यते व्योम्नि, वाईते शस्त्रमन्यया कया॥ प्रज्ञप्त्यादि महा विद्याना सरखी महा वलबंत एवी एक आकाशगामिनो विद्या अने वीजी चिंतित शस्त्रने वधारनारी विद्या एवी ए वे विद्याओ ते सिद्ध पुरुष ते चित्रांगद राजाने आपी के, जे एक विद्याथी आकाशमां जवाय अने बीजी विद्याथी शस्त्र वृद्धि पामे. // 82 // 83 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPAC Gunun MS MAKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX यथा शस्त्रस्य वृद्धिः स्यात्तरस्यापि तथा नवेत् // योजनाना शत वाहः सहस्त्रमाप लाग्यतः | जेवीरीते शस्त्रनी वृद्धि होय तेवी रीते वेग पण थाय. सो योजन वधे तेमज भाग्यर्थी हजार योजन पण थाय. चक्रिणो दंझरत्नस्य, सहस्त्रं वृष्हिरूच्यते // चर्मउत्रयस्यास्य, वृद्धिदशयोजनी // 85 // * विद्याया बहुरूपित्या, रूपाणि च सहस्त्रशः // जायते कौतुकं नात्र, विद्यान्निःकिं न साध्यते॥ चक्रवर्तीनी दंडरत्ननी हजार योजन वृद्धि कही छे.तेमज तेना चर्म अने छत्र रत्ननी वार योजन वृद्धि कहीछे.वली * बहु रुपिणी विद्याथी हजारो रूपो थायछ.एमां आश्चर्य नधी.कारण विद्याथी शं नथी सघा तुं?अर्थात् सर्व सघायछे.८६ विद्याइयेन सिइन, यत्र तत्र स्थितौ रिपुः // हेलया हन्यते मित्र, साधने युक्तिरूच्यते // 8 // यत्र सिंहो वसत्यशै, साध्यते तत्र सा निशि // विद्यां साधयतः पुंसो, हरिः शांतोऽवतिष्टते॥ - ए वन्ने विद्याथी सिद्ध थयेलो पुरुष ज्यां त्यां रहेला शत्रुने लीलामात्रथी मारी शके छे. हे मित्र हवे ते विद्याने साधवानी युक्ति कहुंछु के // 87 // जे पर्वतने विष सिंह रहे छे त्यां ते विद्या रात्रोये सधाय छे. पुरुष विद्या साधन करवा लाग्ये छते सिंह शांत धइ बेसी रहे छे. // 88 // पुष्पगुग्गुलधूपानां, वहतौ ग्रंथिकामिमां // पितापुत्रौ समायातावावामिह दिनात्यये // // गच्छावः पर्वतं यावत्त्वरितं साधनेछया // सिंहनादममुं श्रुत्वा, तिष्टावस्तावता निया ॥ए॥ - सिद्ध पुरुपना आवां वचन सांभली मंत्रसाधन करवा जवाना पुरुषोमांथी एकजण कहे छे के पुष्प, गुगुल, धूपनी आ गांसडीयो लइने अमे पिता पुत्र अहिं सायंकाले आव्या. / / 89 // पछी साधननी इच्छाथी जेटलामा * अमे उतावला पर्वत उपर जता हता तेवामां आ हवणां थयेलासिंहना शब्दने सांभलीने भयथी उभा रह्या.॥२०॥ आवां किं कुर्व हे मित्र, न स्थिरं चित्तमाययौ // विद्यासिनिवेनो वा, सिंहान्मृत्युस्तु निश्चितम्॥ * नृपः प्रोचे नवज्यां चेन्मह्यं विद्या प्रदीयते॥साधयित्वा ततः शीघ्रं, दर्शये प्रत्ययं युवाम् // हे मित्र! हवे अमे शुं करीए ? अमारुं चित्त स्थिर नथी र हेतु.कारण विद्यासिद्धि थाय अथवा न थाय, परंतु सिंहथी मृत्यु तो निश्चय थायज. राजाएक झुं. "जो तमे मने विद्या आपो तो हुंझट साधीने तमने विश्वास देखा९.९२ Jun Gun A nak Trust
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________________ PPAC Gunratsuti MS गुण तान्यां विद्याध्यं दत्तं, विधिपूर्वक मेजसा // नूपतिः साधयामास, निर्नीकः सिंहसंनिधौ ए३ चरित्र. सिइविद्यो विसृज्येतो, नृपतिः स्वपुरं ययौ // मंत्रिन्निः संमुखायातैः, सह मंदिरमागतः एव पछी ते बन्ने पुरुषोए विधिपूकज बळथी बन्ने विद्या आपी. निर्भय एवा गरुडध्वज राजाए पण ते विद्या सिंहनी पासे साधी. // 93 // पछी विद्यासिद्ध थयेलो राजा ते वन्ने पुरुषोने त्यजी दइ पोताना नगरप्रत्ये आव्यो; त्यां सामा आवेला मंत्रियोनो साथे ते पोताना घेर आव्यो. // 9 // न देवि नवने क्वापि, दृश्यते नोजनादनु॥ति पुति नूपाले, मंत्री कृष्णाननो जगौ॥९५ तदा विनिर्गतान युष्मान् ,सर्वत्रापिच सोधितान्॥अलब्ध्वा सकलो राजलोको फुःखाकुलोऽन्नवत् / त्यां भोजन करया पछी " मंदिरमा क्यांइ पण पट्टराणी देखाती नथी ? " एम राजाए पूछयु एटले जेनुं * श्याम वर्ण मुख थइ गयुं छे एवा मंत्रीये कह्यु.॥ 95 // ते वखते चाल्या गयेला तमने सर्व स्थानके शोध्या, पण क्यांइथी मल्या नहि तेथी सर्वे राजलोको दुःखथी आकुल व्याकुल थवा लाग्या. // 96 // देवी त्वत्यंतऽःखार्ता, स्वं निंदती कदाग्रहम् // लोकेन वार्यमाणापि, गवाक्षा त्पतिता भुवि ए७ आकाशात्पतिता दृष्टा, न पतंती नुवस्तले // न ज्ञायते गता क्वापि, देवीवृत्तमिदं प्रत्नोए॥ वली अत्यंत दुःखथी पीडा पामेलां देवीये पोताना कदाग्रहने निंदता छता लोके वारयां तो पण गोखमाथी पृथ्वी उपर पडयां. // 97 // उंचेथी पडतां दीठां पण पृथ्वी उपर पडेलां दीठां नहि. क्यां पण गयेलां जN णातां नथी. हे प्रभु ! आ प्रमाणे सरस्वती देवीनु वृत्तांत छ. // 98 // नृपः श्रुत्वेति सूत्कारान् , मुंचंश्चित्ते व्यचितयत् // यदर्थेऽहमुपक्रांतः सैव देवेन दूरिता // 19 // इति चिंतयति मापे, वर्ध्यसे देव वर्ध्यसे // जल्पंतीति समायाता, दासी प्रीतिमतिर्जगौ 100 ___ मंत्रीनां आवां वचन सांभलीने राजा निशाशा मूकतो छतो मनमा विचार करवा लाग्यो के, " जेने पाटे हुँ अहिं आव्यो तेनेज देवे दूर करी छे. // 99 // आ प्रमाणे राजा विचार करतो हतो एवामां " हे देव ! वधाइ छे ! वधाइ छे !! एम बोलतो आवेली दासी मितिमतिये को के. // 10 // Jun Gun A nak
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________________ PPA Gun MS KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX गवादयात्याततायस्मात्तत एव समागता / / स्वामिना दृश्यत स्वामिन् सारगारजापुरा 19 हर्षात्पश्यति नूपाले, राझी तत्र समागता // नशसने निषणा च, कस्य प्रीतिं चकार न 102 “हे स्वामिन् ! उत्तम शणगारथो देदीप्यमान एवां महाराणी जे गोखथो पडयां हतां त्यांीज आवतांदेखाय छे."॥१०१॥ पछी राजा हर्षथी जोतो हतो एटलामां त्यां आवेली अने भद्रासन उपर बेठेली राणीये कोने मीति न करी ? अर्थात् सर्वने आनंद पमाडया. // 102 // अनौचित्यं तदा ज्ञात्वा, संकथानां परस्परम् // नूपः प्रियान्वितो यात्राकरणाय समुद्यतः 103 र संघेन सहितो नूपः, पूर्व संमेतपर्वते // सप्रियः स्नात्रसंघा ध्वजारोपादि स व्यधात् 104 ते वखते परस्पर एक वीजानी वार्तानु अचिंत्यपणुं जाणीने प्रियासहित गरुडध्वज राजा यात्रा करवा माटे उद्यमवंत थयो. // 103 // संघ सहित प्रियायुक्त ते गरुडध्वज राजाए प्रथम समेतशिखर पर्वत उपर स्नात्र, I संघर्नु वात्सल्य अने धजा चडाववा विगेरे सत्कार्य करयुं. // 104 // ध्वजारोपं ततः कुर्वन् , विद्याध्यबलान्वितः // पटे संघं समारोप्याष्टापदाइिंगतो नृपः॥१५ तत्र पूजां प्रत्नोः कृत्वा, बध्वा तं च महाध्वजम् // मनोरथं प्रपूर्यासौ, पुनः संमेतमाययौ // पछी ध्वजा चडावीने वे प्रकारनी विद्याना बलवालो ते गरुडध्वज राजा पेट उपर संघने वेसारी अष्टापद पर्वत उपर गयो. // 105 // त्यां प्रभुनी पूजा करी अने ते महाधजाने बांधीने पोतानो मनोरथ पूर्ण करीने ते राजा फरी संमेतशिखर आव्यो. // 106 / / . संघेन सहितस्तस्मानिजं प्राप्य पुरं नृपः॥ महोत्सवैः प्रविश्यात्र, निजं राज्यमपालयत् 107 / तदा देवेंसिंहाख्याः सुरयोऽत्र समागताः // तानंतुं नृपतिः प्राप, सप्रियः पावनं वनम् 17 त्यांथी संघसहित गरुडध्वज राजा पोताना इंद्रपुर नगरे आवी अने ते नगरमा महोत्मबोथी प्रवेश करीने पोताना राज्यनुं पालन करवा लाग्यो. // 17 // ते वखते ए नगरमां देवेंद्रसिंह नामना मूरि आव्या तेमने वंदना करवा माटे प्रियासहित राजा गरुडध्वज पवित्र एवा उद्यानपत्ये गयो.॥ 108 // Jun Gun Aaradha Trust
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________________ गुण ***** श्रुत्वोपदेशं पप्रल, देवी कुत्र गता तदा // सूरिः प्रोवाच मातास्याः कृत्वा पुण्यं मृता सती // चरित्र जाता व्यंतरेऽस्य, वल्लन्ना प्रियदर्शना // आयाता च सुतास्नेहात्, पतंती तां ददर्श सा 110 व त्यां राजाए उपदेश सांभलोने पछी मूरिने पूछयु के, " ते वखते देवी ( सरस्वती ) क्यां गइ हती ?" - सूरिये कह्यु के, "एनी माता पुण्यकार्य करीने मृत्यु पामी छती. // 109 ॥व्यंतरना इंद्रनो प्रियदर्शना नामनो स्त्री थइ छे अने पुत्रीना स्नेहथी आवेलो तेणे गोखथी पडती एवी पुत्रीने दोठो. // 110 // ग्रहित्वा पाणिपद्मेन, पतितां पृथिवीतले // तां सुखं स्थापयामास, तवागमननेऽमुचत् // 111 // * कश्चित्पप्रच किं मृास्तिष्टंति सुरवेश्मनि // मूरिः प्रोवाच गंगायाः, सदने नरतः स्थितः // . पृथ्वी उपर पडेली ते सरस्वतीने इस्तकमलथी लइ सुखे पोताने त्यां राखी अने तुं आव्यो एटले तेने अहिं / मूकी दोशी.” // 111 ।पछी कोइये पूछयुं के, “माणसो देवताना घरे शुं रहे छे ? " सूरिये कह्यु के, "गंगा त्रि देवीना घरने विषे भरत राजा रह्यो छे. // 112 // स्थाता च चमरेंद्रस्य , नुवने चेटको नृपः // अथ पूर्वनवं वदये, त्वदीयं शृणु नूपते॥११३॥ श्रेष्टिनो धनदत्तस्य, नगरे हस्तिनापुरे // पुत्रः कनकनामासीत् , ध्वजपूजा कृता मुना // 11 // | वली चेडा राजा चमरेंद्रना घरे रह्यो छे. हवे हे राजन् ! त्हारो पूर्व भव कहुंछु ते तुं सांभल. // 13 // * तुं पूर्वभवे हस्तिनापुर नगरमां धनदत्त शेठने कनक नामनो पुत्र हतो, ते भवमां तेणे ध्वजपूजा करी छे. / / 114 // राज्यं तव ध्वजार्चातः, संमेतेऽष्टापदेऽपि च // चक्रे महाध्वजारोपं, नवान् विद्याध्यान्वितः॥ नृपः पूर्वनवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽनवत् // विशेषादाईतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // 16 // ए ध्वजाना पूजनथी तने राज्य प्राप्त थयुं छे. वली आ भवमा संमेतशिखर उपर 'अने अष्टापद उपर वे प्रकारनी विद्यावाला ते महाध्वजा चडावी छे. // 115 // राजा पोतानो पूर्वभव सांभलो ते बखते जातिस्मरण PL ज्ञान, पाम्यो. तेथी तेणे मुनिनी पासे विशेष अरिहंतनो धर्म आदरयो. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ / PP Ad Gunratnasuti MS मुनि नत्वा गृहं गत्वा, पालयित्वा चिरं भुवः // दत्वा राज्यं स्वपुत्राय, गुराः संयममग्रहात् // प्रपाख्य निरतिचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // विहितानशनः प्राते, सौधर्मे त्रिदशोऽन्नवत् // पछो मुनिने नमस्कार करी, घेर जइ, बहुकाल पृथ्वीनु पालन करी, पोताना पुत्रने राज्य आपीने ते ग2 रुडध्वज राजाए संयम लीधो. // 117 // अतिचार रहित श्रेष्ट उज्वल चारित्र पालीने छेवट अनशन लइ ते * गरुडध्वन मुनि सौधर्म देवलोकने विषे देवता थया. // 118 // *चिरं सुखान्य सौ नुक्त्वा, देवलोकाततश्चयुतः॥ नवमो नागनामा नूतनयस्तव नूपते॥११॥ A (नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के,) हे राजन् ! ए गरुडध्वजनो जीव त्यां दीर्घकाल मुधी सुख * भोगवी अने पछी ले देवलोकथी चवीने त्हारो नाग नामनो नवमो पुत्र थयो छे. // 119 // // इति ध्वजारोपप्रभाववर्णने कनक कुमार कथा समाप्ता. // Jun Gun Aaradhak Trust येनान्तरण पूजात्र, विहिता तत्फलं ब्रुवे // अत्रास्ति नरतत्रे, मिथिलानामतः पुरो॥१२॥ हे राजन् ! अहिं जेणे आभरणपूजा करी छे, तेनुं फल कहुं छु. आ भरतक्षेत्रने विपे मिथिला नामनी * नगरी छे. // 120 // तत्र शत्रुजयो राजा, शत्रूणां जयकारकः॥ श्री चंज्ञनाम तत्पत्नी, चंज्योत्स्नेव निर्मला // जीवोऽय कनकानस्य, तदा तत्कुदिमागतः // समये च तया सूतः, पित्रा चके महोत्सवम // - ते नगरमां शत्रुनो विजय करनारो शत्रुजय नामनो राजा राज्य करतो हतो. चंद्रज्योत्स्नाना सरखी निमल श्रा चंद्रानामनी तेने स्त्री हती. // 121 // हवे कनकाभनो जीव ते वखते श्री चंद्राना उदरने विषे आव्यो अने तेणे अवसरे पुत्रने जन्म आप्यो एटले पिताए महोत्सव करयो. // 122 //
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________________ गुण - P.PA. Gunatnasuti MS कुलन्नूषण इत्याख्या, तस्य जाता मनोरमा // वमानः कलाशाली, कमात्तारुण्यमाप सः॥ चरित्र. न केवलं पिता तस्य, कंन्यां योग्यां विचिंतयत् // बहिर्विहारे गळतं, तं वीक्ष्य सकलो जनः॥ नाले स्वन्नावसभूतं मद्भुतद्युतिभासुरम् // स्वर्णमौक्तिकरत्नानि, विनापि सुमनोहरम् ॥युगम्॥ ते पुत्रनुं 'कुलभूषण' एवं मनोहर नाम पाडयु. पछी कलाओनो अभ्यास करतो वृद्धि पामतो ते कुमार | अनुक्रमे युवावस्था पाम्यो. // 123 // पछी फक्त पिताज तेनी योग्य कन्यानो विचार करतो नहोतो, परंतु व्हार क्रीडा करवा जता, भाळमां स्वभावी उत्पन्न थयेला, अद्भुत कांतिथी देदीप्यमान तेमज सुवर्ण, मोती अने रत्नोनां आभूषणो विना पण अत्यंत मनोहर एवा ते राजकुमारने जोइ सर्वे माणसो पण तेनी योग्य क न्यानो विचार करता हता.॥ 124 // 125 // * विवाणा तिलकं कांचिदंगनां कांचन विम् ॥सोऽशतिदन्यदा स्वप्ने,मा वृणिष्वेति नाषिणीम्॥ एक दिवस ते कुलभूषण कुमारे तिलकने धारण करी रहेलो, सुवर्णना समान कांतिवाली अने " तुं म्हारा A विना वीजानी साथे विवाह करीश नहीं." एम कहेती एवी कोइ स्त्रीने स्वप्नामां दीठी. // 126 // * स्वप्नं दृष्ट्वा प्रबुशेऽसौ, चिंतयामास चेतसि // तिलकस्यैव चिन्हेन, परिणेया मयागना // 1 // इति निश्चित्य पित्रासौ, कन्यकावरणेऽनिशम् ॥याच्यमानोऽपि नो मेने, मानिनीना मनोहरः॥ * स्वप्न ने जोइ जागी उठेलो कुमार मनमां विचार करवा लाग्यो के, " तिलकनां चिन्हे करीने अर्थात् ति लकाचिन्हवाली म्हारे स्त्री परणवी." // 127 // ए प्रकारे निश्चय करीने स्त्रीयोने मनोहर एवा ए राजकुमारे * पिताए निरंतर विवाह करवान कह्या छतां पण ते मान्युं नहि // 128 // मंत्रिमात्रादिनिर्मित्रं, प्रेरितो मतिसागरः // तमूचे हेतुना केन, विवाहं नहि मन्यसे // 15 // नक्तं विना न वैद्योऽपि, पुःखं जानाति कस्यचित् // विनाध्वनिं मयुराणां, वारिदोऽपि न वर्षति // पछी मंत्री अने मातादिके मेरेलो मतिसागर नामनो मित्र कुलभूषण कुमारने कहेवा लाग्यो, " हे मित्र ! ant KXXXXXXXXXXXXXX**** Jun Gun Aracak Trust
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________________ P.P.A. Gunarasut MS as निश्चे तुं शा कारणी विवाहने कबुल करतो नथी ? // 129 // वैद्य पण कह्याविना कोइना दुःखने जाणतो नथी, as तेमज मोरोना शब्द विना मेघ पण वरसतो नथी. // 130 // विना त्वचनं तातस्त्वदियो नावबुध्यते // यञ्चितें वर्तते तन्मे, प्रकाशय शुन्नाशय // 131 // ततस्तं स्वप्नवृत्तांतं, प्रतिमित्रमुवाच सः // तज्जगाद पुरे नात्र, दृश्यते तादशी वधूः // 13 // तेमज त्हारा वचन विना त्हारा पिता पण जाणी शके नहि, माटे हे शुभ विचारवाला ! जे त्हारा मनमा होय ते मने कहे. // 131 // पछी राजकुमारे ते मित्रने स्वप्नानी वात कही एटले मित्र कह्यु के, "आ नगरमा तेवी स्त्री देखाती नथी. // 132 // कुमारः सुहृदं प्राह, विदेशे तर्हि गम्यते // कलशं लन्नते चक्रमपि न ब्रमणं विना // 133 // चेलतुस्तौ विचिंत्येति, मिलितौ रजनीमुखे॥ अलक्ष्यौ गोरजःपूरे, प्रचुरे तिमिरोपमे // 13 // कमारे मित्रने का. "त्यारे आपणे परदेश जइए. कारण के भम्या विना कलश अथवा चक्र पण न मली है शके. // 123 / / ए प्रमाणे विचार करीने गायोनी रजथी गाढ अंधकार समान थयेला संध्याकालने विषे गुप्त रीते एकठा थयेला ते वन्ने मित्रो चाली निकल्या. // 134 // दिवारात्रौ बजतौ तौ, फलांबुकतनोजनौ // वने शिलातलासीनं,मुनिध्यमपश्यताम्॥१३॥ तौ वंदित्वा मुनिइंछ, निषणौ नक्तितः पुरः // मुनिरेकोऽवदत्प्राप्तौ, मिथिलाया युवामिह 136 दिवसे अने रात्रोये चालता तेमज फल अने जलनु भोजन करता एवा ते बन्ने मित्रोए वनमा एक शिला उपर बेठेला बे मुनियोने दीठा. // 135 // मुनियोने वंदना करीने ते बन्ने मित्रो भक्तिथी तेमना आगल बेठा एटले एक मुनिये कडं के, " तमे मिथिला नगरीथी अहिं आव्या छो." // 136 // तौ प्रोचतुर्मुने कुत्र, दृष्टावावां पुरा त्वया // क्षितीयः साधुरित्याह,झानमस्य विभते॥१३॥ अवधिज्ञानतो वेत्ति, युष्मदृत्तमयं मुनिः // कुमारस्तं ततः प्रोचे, चिंतितं मे नविष्यति 137 Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गए चरित्र. // 6 // PIP.AC.Gunjatnasuri M.S. .. बन्ने कुमारोए कह्यु. " हे मुनि ! तमे पूर्वे अमने क्याइ दीठा हता ? " बीजा साधुओए कह्यु के, " ए मुनिने ज्ञान उदय थयु छ. // 137 // माटे ए मुनि तमारा वृत्तांतने अवधिज्ञानथी जाणे छे. " पछी राजकुमारे तेमने कह्यु के, " हे मुनि ! म्हारुं चिंतवेलुं कार्य थशे ?" // 138 / / नविष्यति तृतीयेऽन्हि, साधुनेति प्रजल्पिते // कुमारोऽवक् कुतस्तेऽनूराग्यात्संयमोद्यमः // सोऽवादीन्मालवे देशेऽवंतीनाममहापुरी // अवंतिसेनो नूपालस्तनार्या सुरसुंदरी // 10 // .. "आजथी त्रीजे दीवसे थशे." एम साधुए कह्यं एटले राजकुमारे कह्यं के," तमने वैराग्यथी संयम ले वानो उद्यम क्याथीं थयो ?" // 139 // मुनिये कहूं. "मालवा देशमा अवंती ( उज्जण ) नामनी म्होटी नगरी A छे, त्यां अवंतिसेन राजा राज्य करें छे. तेने सुरसुंदरी नामनी स्त्री छे. // 140 // सुतोऽस्यामरदत्तोऽनूत, पुत्री चामरसुंदरी // सा संजझे कलाकेलि कलाकेलिकलालया॥११॥ आ जन्मतोऽपि संजात मुद्दामद्युतिन्नासुरम् // ललाटेतिलकं तस्या, दिदीपे दीप्रदोपवत् // 142 __ए अवंतिसेन राजाने अमरदत्त नामनो पुत्र अने अमर सुंदरी नामनो पुत्री हती. ते पुत्रो कलाक्रिडार्नु पात्र थइ. // 141 // जन्मथी आरंभीने ते पुत्रीना कपालमा उत्पन्न थयेलुं अने उत्कट कांतिथी देदीप्यमान एवं * तिलक झहलहता दीवानी पेठे शोभतुं हतुं. // 14 // योग्यं वरं वरीष्यामि, विचिंत्येति विचारवित् // अनवद्यामियं विद्या, सिषवे प्रीतिकारिणीम् // " हुं योग्य वरने वरीश." एम विचार करीने विचारने जाणनारी ते अमरसुंदरी राजपुत्रीये प्रीतिकारी * अनवद्या (उत्तम ) एवी विद्यादेवीनी सेवा करवा लागी. // 143 // सा विद्यादेवता स्वप्ने, तां प्रति प्रीतिदायकम् // हारकुंडलकौटीरैः, स्वन्नावोत्यैरलंकृतम् 154 लसल्लावल्यलीलाढयं,नरं निरूपमाकृति॥मां वृणीष्वेति जल्पंतं, दर्शयामास कंचनम्॥युग्मम् .. पछी ते विद्या देवताये ते सुरसुंदरी राजकन्याने स्वप्नामां प्रीति करनारा, स्वभावथो उत्पन्न थयेला हार, Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS EARXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Se] कुंडल अने मुकुटथी सुशोभित यनेला, मनोहर लावण्यनी लीलाथी युक्त, उपमा न आपाशकाय एवा स्वरूप वाला अने " मनेवर. " एम बोलता एवा कोइ पुरुषने दीठो. // 144 // 145 / / प्रबुद्धा स्वप्नदृष्टं तं, नरं निरुपमं श्रिया // स्मारंस्मारं स्मराक्रांतमानसा सा व्यचिंतयत् // पछी जागो उठेला अने कामथी खेचायेला मनवाली अमरसुंदरी स्वप्नमां दाठेला अने कांतिथो उपमा रहित एवा ते पुरुषने वारंवार स्मरण करती छती विचार करदा लागी. // 16 // यदि इक्ष्यामि तादृदं, वरिष्यामि ततो वरम् // अन्ययाहं मरिष्यामि, न करिष्ये करग्रहम् // * वरेषु वीक्ष्यमाणेषु, तातं सा तं न्यवारयत् // अत्याग्रहे बन्नाषेसा,वरिष्ये वीक्षितं वरम् 147 जो हुं तेवा वरने देखीश तो वरीश. नहितो मृत्यु पामीश, पण विवाह करीश नहि." // 147 // पछी | अवंतिसेन राजा पुत्रीना वरनी शोधं करवा लाग्ये छते अमरसुंदरीये ते पिताने ना कही. पछी बहु आग्रह क रयो एटले ते पुत्रीये कह्यु के, " हुं पसंद पडेला वरने वरीश." // 148 // नूपतिः कारयामास, सप्तवारं स्वयंवरम् // परं न तस्याः संजझे, वरःकोऽपि विचिंतितः१४॥ अन्यदा तां गवाहस्थां, चंञ्चूमोऽहरत्खगः // याति यातीति जल्पाके वीक्ष्यमाणे जनेऽखिले // राजाए सातवार स्वयंवर कराव्यो, परंतु तेने कोइ इच्छितवर मल्यो नहि. // 159 // एक दिवम चंद्रघड नामना विद्याधरे गोखमां बेठेली कन्याने " आ जाय आ जाय" एम सर्व माणसो बोलता छतां अने जोता - छतां हरण करी. // 150 // न नूभून नटश्चापि, नानू कोऽपि पराक्रमः // आकाशचारिणा साकं, नूचराणां कियबलम् // तत्पिताहरणं तस्या,वोक्ष्य चित्ते विषमवान् ॥चिंतयामास संसारे,धिधिक् मोहविटंबना 15 नहि राजा के नहि बीजो सुभट. एम कोइ पण पराक्रमी थयु नहि. कारण आकाशमां गति करनारा विद्याधरोनी साथे पृथ्वी उपर गति करनारा माणसो केटलुं बल. पछी अवंतिसेन राजा पुत्रीना हरणने जोइ
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________________ GusMS गुण चित्तमा खेद पामतो छतो विचार करवा लाग्यो के, “संसारमा मोहनी विटंबनाने धिक्कार छे! धिक्कार छे!! 152 चरित्र. कस्य पुत्राः कलत्राणि, सुहृदाः कस्य वलन्नाः॥ देवाधिनं जगत्सर्वं, न प्रभुः कोऽपि वर्तते / 153 * // 6 // मयि सत्यप्यसूरेण, चौरेण तनुजा हृता // असार एष संसारस्त्याज्य एव ततो मया // 154 // कोना पुत्रो ? कोनी स्त्रीयो ? अने कोना वहाला मित्रो ? आ सर्व जगत् दैवाधिन छे. कोइपण समर्थ न2 थी. // 153 // म्हारा उतां पण कोइ असुर अथवा चोरे म्हारी पुत्री- हरण करयु. माटे म्हारे असार एवो आ संसार त्यजी देवो योग्य छे. // 15 // . .. * इति ध्यात्वा हृदा पुत्रं, स्थापयित्वा निजे पदे // गृहितसंयमः प्राप्तावधिज्ञानोऽ हमेव सः॥१५॥ कुमारस्तं मुनिं प्रोचे,स्वप्ने या विदिता मया॥ सा सैव किं न सान्या वा,मुनिरुचे च सैव सा१५६ | आ प्रमाणे मनमा विचार करीने अने पोताना पदे पुत्रने स्थापन करीने धारण करी छे दीक्षा जेणे तथा as प्राप्त थयु छ अवधिज्ञान जेने एवो ते अवंतिसेन राजा हुँ पोतेज छं." // 155 // कुलभूषण कुमारे ते मुनिने र al कह्यु. " में स्वप्नामां जे कन्या जोइ छे. ते तेज के वीजी कोइ छे ?" मुनिये कयु. “ते तेज कन्या छे." 156 / * विद्यादेवतयादर्शि, यस्तस्याः स्वप्नमध्यगः॥ स नरः खेचरोऽन्यो वा, मुनिरुचे त्वमेव सः॥१५॥ विद्यादेवतया तस्यै, तुभ्यं चापि परस्परम् // रूपे प्रदर्शिते वे दे, योग्ययोगविधित्सया // 15 // कुमारे कह्यु. " विद्यादेवीये ते राजकन्याने स्वप्ननी मध्ये जे पुरुष देखाडयो ते माणम छे के बीजो कोई विद्याधर छे ?" मुनिये कयुं. ते तुं पोतेज छे. // 157 // विद्यादेवीये योग्य योग मेलबवानी इच्छाथी ते राजकन्याने अने तने परस्पर ववे रूप देखाडयां छे. " // 158 // कुमारः प्रोतिन्नाक् प्रोचे, द्वितोयस्य मुनेरपि // वैराग्यकारणं ब्रूहि, श्रोतृपोयुषपारणम् // 159 साधुः प्रोवाच वैताढये, गिरौ गगनवलन्ने॥ पुरेऽनूद्रत्नचूडाख्यः, प्रख्यातः खेचराग्रणी // 16 // पछी प्रसन्न थयेला कुमारे वीजा मुनिने पण का. " हे मुनि ! तमे पण कानने अमृतना पारणा सर त Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPS VS नाग पराप] कारण पहा. // 19 // साए काल. 'पताहय परत उपर गगनयनभ नगरन विप रत्नच नामनो प्रख्यात विद्याधर राजा हतो. // 160 // चंद्रचूडः सुतः सोऽस्य, येन मे नंदिनो हृता॥ असौ तं वारयामास, कन्या हरणतस्तदा॥१६१॥ तथापि सो मुचन्नतां, स्थापयित्वा ग्रहे स्थितः॥न सेहे तस्य नामापि, साकदाप्यर्थिता सती॥१६ ते चंद्रचूड आ रत्नचूडनो पुत्र हतो के जेणे म्हारी पुत्रीनु हरण करयुं हतुं. ते वखते आ राजा कन्याना हरणथी तेने वारतो हतो. // 161 / / तो पण ते तेने न त्यजी देतां घरमा राखीने रह्यो. वली तेणे याचना करेली छतां पण ते कन्या क्यारे पण तेनु नाम पण सहन करती नहि. // 162 // विद्यादेवतया स्वप्ने, दर्शितो योऽस्ति लक्षणैः॥ स एव मे वरो नान्यः, सेत्युक्त्वा तं न्यषेधयत् // 163 / तत्पिता रत्नचूडोऽय, दृष्ट्वा तत्पुत्रचेष्टितं॥ दध्यौ वैराग्यमापनो,धिक धिक् कामविडंबनाम्॥१६॥ वली “विद्यादेवीए स्वप्नामां लक्षणोवडे जे पुरुष देखाडयो छे, तेज म्हारो पति छे. बीजो नहि." एम x कहीने ते कन्या चंद्रचूडने निवारती हती. // 163 // पछी ते चंद्रचूडनो पिता रत्नचूड तेवा पुत्रना कृत्यने जोइने वैराग्य पाम्यो छतो विचार करवा लाग्यो के, " काम विडंवनाने धिक्कार छे ! धिक्कार छे ! ! // 16 // नवंति ग्रहिला वीक्ष्य, महिला अपि पंमिताः॥कामस्य पारवश्येनावश्यं त्याज्यो नवस्ततः 165 चिंतयित्वेति तं पुत्रं,राज्यचिंता विधायकम् ॥मुक्त्वा संयममादाय,विचरनिह सोऽमिलत् // 166 / / पंडित पुरुषा पण स्त्रीयाने जोइने कामना परवशपणाथी गांडा थइ जाय छे. माटे म्हारे निश्चय संमार * त्यजी देवो. // 165 // ए प्रमाणे विचार करीने राज्यनी चिंता करनारा पुत्रने त्यजी दइ संयम लइ विचरता छता अहिं ते आ मुनि मल्या छ. // 166 // द्वावप्यावामिह स्वैरं, वैरंगिकतया स्थितौ // शिलातलसमासीनौ, तिष्टावः कष्टवर्जितौ // 16 // कुमारस्तं पुनः प्राद,नान्यथा नवतां वचः॥अहमत्रास्मि सा तत्र,कथं योगो नविष्यति॥१६॥ Jun Gun A kust
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________________ गुण PPA Gunnatasu MS ___ अमे बन्नै जणा पण अहिं इच्छा प्रमाणे विरागपणाथी रह्या छता तेमज शिलातल उपर बेठा छता कष्टविना रह्या छीथे. // 167 // कुमारे फरी मुनिने कह्यु. " तमाहं वचन वृथा नथी; परंतु हुं अहिं छु अने ते राजकन्या // 7 // खां छे. तो अमारो मेलाप शी रांते थशे ?" // 168 // मुनिरूचेऽत्र का चिंता, पुण्यमेव विचिंतय // पुण्यस्यैव प्रनावेण, चिंतिताः स्युर्मनोरथाः 169 मुनीनां सेवया नइ, पुण्याचिंतितमाप्यते // इति तवचसा तत्र, कुमारो निश्चलः स्थितः१७० मुनिय कह्यु. " एमां शो चिंता ? पुण्यनो ज विचार कर. कारण पुण्यना प्रभावथी ज चिंतवेला मनोरथो * थाय छे // 169 // हे भद्र ! मुनिनो सेवावडे उत्पन्न थयेला पुण्यथा इच्छित मेलबाय छे. " एवा तेमना वच नी कुमार त्यां निश्चल थईने रह्या. // 17 // * तृतोये ध्यानतस्तस्य, चारणस्य मुनेर्दिने // नत्पेदे केवलज्ञानं, देवास्तत्र समागताः // 11 // कुतश्चित् खेचरात्तातवृत्तं ज्ञात्वा तदंगजः॥ चंचूडस्तदा तातं. नंतुमुत्कंठितोऽन्नवत् // 17 // पछी ते रत्नचूड चारण मुनिने ध्यानथा त्राजे दिवसे कवलज्ञान उत्पन्न थयु. जेथो त्यां देवताओ आव्या. कोइ विद्याधर पासेयो पिताना वृत्तांतने जाणा तेमनो पुत्र चंद्रचूह ते वखते पिताने वंदना करवाने उत्साहवंत थयो. तं ज्ञात्वा तत्र गळतं, बन्नाषेऽमरसुंदरो // साथै नयसि चेन्मां त्वं, तदा प्रोता नवाम्यहम् 173 ततो रम्यं करिष्यामोत्युक्ते प्रीतः स खेचरः॥ तया सह विमाने नाययौ केलिप्सन्निधौ // 174 तेने त्यां जतो जाणा अमरसुंदरोये कह्यु. " जो तमे मने साथे लई जाओ तो हुँ खुशो थाउं // 173 // पछी तमने खुशो करोश." एम कयुं एटले ते चंद्रचूड विद्याधर प्रसन्न थयो, तेथा ते अमरसुंदरोने साथे लइ वैपान उपर बेसो केवलो पासे आव्यो. // 174 // * तां स्फुरत्तिलकं नाले, बिभ्राणां वीक्ष्य नूपन्नः // तत्कणं लक्रयामास, पुरापि स्वप्नवीक्षिताम्॥ तत्कालजातालंकारनासुरं वोदय सापि तम् // स्वप्नदृष्टं विचित्य ज्ञग् ,हर्षादुत्पुलकानवत् // X***XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust 7 //
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________________ P.PA. Gunratnasuti MS EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX PAN कपालमा ददाप्यमान तिलकन धारण करता त राजकन्यान जाइ कुलभूपण राजकुमार तुरत पूर्व पण स्व मामां जोयेलो तेने ओलखी. // 175 // ते राजकन्या अमरसुंदरी पण तत्काल उत्पन थयेला आभूपणोयो | देदाप्यमान ते कुलभूषण कुमारने जोई स्वप्नामां दाठला पुरुषनो विचार करो तुरत हर्पयो रोमांचित बनी गई. // 176 // कणात् करतले तस्या, गऊंकारहारिणी // वरमाला समायाता, सभ्यलोकैर्विलोकिता 177 सा सनूपुरऊकारा, मा मा कुर्वति खेचरे // सोत्कंठे कंपीठेऽस्य, वरमालामलूलुढत् // 17 // * पछा क्षणवारमा ते राजकन्याना हाथमां गुंजारव करता भ्रमराने खेचतो एवो वरमाला आवो ते सर्व * सभाना लोकोये दाठो. // 177 // पछी विद्याधरे नाना को छते पण झांझरना शब्द करतो एवी राजकन्याए * उत्कंठामहित ते कुळभूषण कुमारना कंठने विषे वरमाला पहेरावो. // 1.78 // जाते जयजयारावे, दुंदुन्निध्वनिमिश्रिते // सभ्याः केवलिनं प्रोचुः, किमिदं कौतुकं महत् // 179 मुनिः पूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, कनकान्नसुतोऽनवत् // 18 // * पछो नगारांना शब्द सहित जयजय शब्द थयो एटले सभ्यपुरुषोए केवलीने पूछयु के, " आ म्होटुं कौ- तुक शु"!! // 179 // मुनिये पूर्वभव कह्यो के, " हस्तिनापुर नगरने विष धनदत्त नामना शेठने कनकाभ *नामनो पुत्र हतो. // 180 // पूजायां क्रियमाणायां, वांधवैः सह संमदात्॥ जिनस्यानरणारोपो, विहितोऽनेन पूजने // 171 तेन पुण्यप्रनावेण, जातोऽयं कुलभूषणः // विद्यादेवतयाकारोचरीरमरणादिकम् // 182 // बंधुओनो साथे हर्षथी पूजा करे छते ए कनकाभे पूजनमां जिनेश्वरने आभूषण पहेराव्यां हता. ते पुण्यना प्रभावथो आ कुलभूषण कुमार थयो छे. वलो विद्यादेवोये तेना शरीरने विषे आभूपणादिक करयां छे."१८२ कस्मादमरसुदर्यास्तिलकं दृश्यतेऽलिके // इति पृष्टो मुनिः प्राह, केवलज्ञाननास्करः // 18 // नरते पुरि चंपायां, दत्तस्य श्रेष्ठिनः प्रिया ॥श्रीमतोनाम संजझे, पुण्यकर्मणि तत्परा // 18 // KKKKKKXXXKKKKKKKKKXXXXKKKXXXXYYRI Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण चरित्र. P.PA. Gunratnasuti MS पछी "आ अमरसुंदरीना कपालमां तिलक शाथी देखाय छे?" एम पूछयु एटले केवलज्ञाने करीने सूर्य रूप मुनिये कयु. भरतक्षेत्रने विष चंपा नगरीमां दत्त शेठने पुण्यकार्यमा प्रवीण एवी श्रीमती नामनी स्त्री हती.१.८४ 1 // नलस्य दवदंत्याश्च, चरित्रं शुश्रुवेऽन्यदा // वीरमत्या जिनेभ्यस्तिलकान्युपनिन्यिरे // 18 // *पुण्येन तिलकं तेन, दमयंत्या नवेऽनवत् // श्रुवेति नव्यतीर्थेषु, साहवस्तिलकं ददौ॥१८॥ * एक दिवस तेणे नल अने दवदंतीनुं चरित्र सांभल्युं,तेमा वीरमतीये जिनेश्वरोने तिलको चडाव्या. ते पुण्यथी तेने दमयंतीना भवमा तिलक थयु. एम सांभलीने ते श्रीपतीये नवीन तीर्थोने विषे अरिहंत प्रभुने तिलक चडाव्यां.१८६ समये शुननावेन, मृत्वा सामरसुंदरी // संजाता तिलकं तेन, दृश्यतेऽस्या ललाटगम् 187 पुत्रं वीक्ष्य मुनिः स्माहादत्तकन्यासु नोचितम् ॥मनो विधातुं ददाणां, परदारेषु किं पुनः 188 पछी ते श्रीमती अवसरे मृत्यु पामीने अमरसुंदरी थइ छे. ते ज कारणथी एना कपालमा रहेलु तिलक देखाय छे." // 187 // पछी रत्नचूड मुनिये पुत्र चंद्रचूडने जोईने कह्यु के, डाह्या पुरुषोए अदत्त कन्याने विषे मन करवू ते योग्य नथी तो पछी परस्त्रीने विषे मन न करवू, तेमां तो शुं कहे." // 188 // इति श्रुत्वा पितुर्वाचं, खेचरस्तां ननाम सः ॥बंधोराशोर्वचस्तस्मै, ददौ सापि विचरणा१८९ पुण्योपदेशं श्रुत्वा ते, तत्र नूचरखेचराः॥ समुत्थितास्ततश्चक्रुस्तयोः पाणिग्रहोत्सवम्॥१९॥ पितानां आवां वचन सांभली ते चंद्रचूड विद्याधरे अमर सुंदरीने नमस्कार करयो. विचक्षण एवी अमर सुंदरीये पण तेने बंधुना आशीर्वचन आप्यां. // 189 // त्यां ते माणसो अने विद्याधरो मुनिना धर्मोपदेशने सांभलीने उठया अने पछी ते कुलभूषण कुमार अने अपरसुंदरोनो विवाह महोत्सव करयो. // 10 // शृंगारतिलके दृष्टा, ताभ्यां नाम्नी जना ददुः // एषः शृंगारसारोऽस्तु, परा तिलकसुंदरी 191 अयं मुनिध्यं नत्वा, चंचूडेनमनितम् // ययौ विमानमारुढः, सप्रियः ससहृत् पुरम् // 195 ते बन्नथी शृंगार अने तिलक जोइने माणसोए तेमनां नाम पाडयां के, " आ शृंगारसार थाओ अने बीजी KXXXXXXXXXXXXXXXX SRKKKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX****** Jun Gun Aaradhak Trust XXXXXXXXXXXXX // 1 //
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS तिलकसुंदरी थाआ." // 191 // पछी त बन्न मुनिने नमस्कार करान चंद्रचूड विद्याधरे उत्पन्न करला वमान * उपर बेठेलो ते कुलभूषण कुमार मिया अने मित्र सहित पोतानो नगरो प्रत्ये गयो. // 102 // * महोत्सवैर्गृहं गत्वा, पितृपादौ ननाम सः॥ समं तिलकसुंदर्या, मातुः क्रमयुगेऽपतत् // 193 // समये पृथिवीं तस्मै, दत्वा भूपः परासुताम् // प्राप निःपापधीरेष, तत्र राज्यमपालयत् 195 त्यां ते महोत्सवी घरे जइ पिताना पगमा नम्यो भने तिलक सुंदरी सहित माताना बन्ने पगमां पण न* म्यो. // 193 // पछी शत्रुजय राजा अवसरे ते कुलभूषण कुमारने राज्य आपो मृत्यु पाम्मो एटले निर्मलबु द्धिवालो ते कुलभूषण राज्य करवा लाग्यो. // 194 // * शानिनस्तत्र संप्राप्ताः, श्रीधर्मव्रत सूरपः॥ नूपः सपरिवारोऽपि, तान् गत्वा प्रणनाम सः॥ नपदेशमयं शांतरसोपेतं सुधामयम् // पोत्वा वैराग्यमापनोऽनवत्संयमसादरः // 196 // .. कोइ बखते त्यां ज्ञानवंत एवा श्री धर्मव्रतमूरि आव्या एटले परिवार सहित ते कुलभूषण राजाए त्यां जइ तेमने वंदना करी // 195 // त्यां ते शांत रसवाला अमृतरुप उपदेशने सांभलो वैराग्य पाम्यो छतो संयम लेवाने आदरवंत थयो // 16 // मुनि नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे // प्रपाल्य संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽन्नवत् // चिरं सुखान्य सौ नुक्त्वा, देवलोकात्ततश्चुतः॥ तनयस्तव संजातो, दशमोऽयं दशाननः॥१९८ पछा मुनिने नमस्कार करी घरे जइ पोताना पुत्रने राज्य आपो अने अंते संयम पालाने ते कुलभूषण राजा * सौधर्म देवलोकने विषे देवता थयो // 17 // (श्री नरवर्मा केवळी गुणवर्मा राजाने कहे छे के ) त्यां ते दोIAS घंकाल सुधी सुख भोगवीने पछी देवलोकथी चवीने त्हारो आ दशमो दशानन नामे पुत्र थयो छे // 1 // // इति आभरण पूजायां कनकान कथा // Jun Gun Aaradhak Trust 000000 10000 ---
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________________ गुणकृतं पुष्पगृहं येन, जिनेंदोस्तत्फलं वे // अस्त्यत्र नरतकेत्रे, पुरी पुष्पकरंडिनी // 1 // पुष्पकेतुर्महीपाल स्तस्य पुष्पावती प्रिया॥ तत्र श्रेष्टो गुणाधारो, लक्ष्मी सागर इत्यन्नः // 7 // ॥शा जेण जिनचंद्रनुं पुष्पगृह रचेलु छ, तनुं फल कहुं छु. आ भरतक्षेत्रने विषे पुष्पकरंडिनी नामनो नगरी छे ॥१एए॥ त्यां पुष्पकेतुं नामनी राजा हतो; तेने पुष्पावतो नामनो स्त्री छे. ते नगरीमां गुणोनो आधार एवो लक्षमासागर नामनो शेठ रहतो हतो. // 20 // तस्य लक्ष्मीवतोकांताकुदिकासार पंकजम् ॥हेमान्नात्मन्नवत्पुत्रो, लक्ष्मीचंति स्मृतः॥२-१ शिव तामसौ कन्यां, यौवने परिणायत // लीलया गमयामास, समयं सममेतया // 30 // ते शेठने लक्ष्मोवता स्त्रोना उदररुप तलावने विषे कमलरुप हेमाभनो जीव लक्ष्माचंद्र एवा नामनो पुत्र थयो. // 201 // ते पुत्र यौवनावस्थामां शिवकांता नामनी कन्याने परण्यो, अने तेनो साथे तेणे लीलामात्रमा बहु - समय काढी नाख्यो // 202 // मन्नमरऊकारं, किल सौरन्यसुंदरम् // विना पुष्पगृहं नासौ, निशं प्राप कदाचन // 203 // सोऽन्येयुः पितुरादेशात् , पुरं नागपुराह्वयम् // सार्थेन महता प्राप्तो, व्यवसाय विसारदः॥४॥ ए लक्ष्मीचंद्र भमता एवा भमराओना झंकार शब्दवाला अने सुगंधियो सुंदर एवा पुष्पना घर बिना क्यारे पण निद्रा पामता न होतोज // 203 / / वेपारमा कुशल एवो ते लक्ष्मीचंद्र कोइ वखते पितानी आज्ञाथी as नागपुर नामना नगरे म्होटा संघथो गयो // 20 // तत्रासौ नांडशालायां, स्थितो द्रव्य नपार्जयन् // क्रीणानश्च ददानश्च, क्रयाणं कृत्वा तान्यपि // * अन्यदासौ स्थितस्तत्र, नगरे पटहध्वनिम् // श्रुत्वा पप्रन तत्रत्यं, कंचित् किमिहकारणम् // 6 // . त्यां ते खरीद करतो, आपतो पोतानां वासणोनो पण वेपार करतो छतो धनने मेलवतो वामणोनो वखारने विषे रह्यो // 205 / / कोइ वखते वासणोनी वखारे रहेला ते लक्ष्मीचद्रे नगरमा पटहनो शब्द सांभली त्यांना कोइ माणसने पूछयु के, " ए शा कारणथी वागे छे ? " // 206 // XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX**XXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.PAr Gunratnasuti MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX सोऽवादीनगरं, नागपुर मेतन्मनोहरम् ॥अत्र देमंकरो राजा, वनूव कम कारक // 20 // तस्य लीलावती कांता, निरपत्यावःखिता॥ सखिन्निः सहितान्येयुः, नागानां नवनं गता॥ ते माणसे कह्यु, "आ मनोहर नागपुर नामर्नु नगर छे. अहिं कुशलकारी एवो क्षेमंकर नामनो राजा हतो. * // 207 // ते राजाने प्रजा न होवाने लीधे बहु दुःखी एवी लीलावती नामनी स्त्री हती. एक दिवस सखीयो सहित ते लीलावती नागमंदीरे गइ. // 20 // तयोपयाचितिं तेभ्यो, यदि पुत्रो नविष्यति // तदा दिनत्रयं पूजा, तत्पंचम्यां करिष्यते॥ण्णा जातोऽस्या दैवयोगेन, ततः पुत्रः प्रियंकरः // नागैर्दत्त इतिख्यातेर्नागदत्तानिधोऽनवत्॥१॥ त्यां तेणे नागोनी पासे याचना करी के, जो पुत्र थशे तो ते पंचमीने विषे पूजा करशे. // 209 / / पछी तेने दैवयोगथी पियंकर नामनो पुत्र थयो, परंतु नागोए आपेलो एवी ख्यातिथी ते नागदत्त एवा नामथो प्रसिद्ध थयो. // 31 // नागानां विहिता पूजा, लीलावत्या ततः परम् // वर्षे वर्षे पुरेऽमुष्मिन्, जायते सा दिनत्रयम् // ताते परासौ संजाते, नागदत्तोऽनवन्नृपः॥ सांप्रतं सा समायाता, वर्तते नागपंचमी // 212 // पछी लीलावतीये नागोनी पूजा करी. त्यार पछी आ नगरमां वर्षे वर्षे ते नागपूजा त्रण दिवस थाय छे. // 211 // पिता क्षेमंकर राजा मृत्यु पाम्या पछी नागदत्त राजा थयो छे. वली हवणां ते नागपंचमी पण आ*वेली छे. // 212 // . पारामिको यः पुष्पाणि, नागानां नवनं विना // अन्यत्र दास्यते तस्य, राजा दंमं करिष्यति॥ श्रेष्टी वा व्यवहारी वा, मंत्री वान्योऽपि यःक्वचित् // अपि देवार्चनं कर्तुं, कर्ता कुसुमसंग्रहम् // जे वागवान् नागना मंदीर विना वीजे पुष्पो आपशे, तेनो राजा दंड करशे. // 213 // शेठ, वेपारी, प्रधान __ अथवा वीजो जे कोइ पणं क्यारे देवपूजन करवाने पण पूष्पनो संग्रह करशे तो. // 21 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ // 73 // P.PA. Gunratnasuti MS गुण सर्वस्वं तस्य हत्वासौ, राजा दंडं करिष्यति ॥इत्येवं जायमानोऽयं, श्रूयते पटहध्वनिः॥१५॥ लक्ष्मीचंद इति श्रुत्वा, दध्यौ पुष्पगृहं विना॥ निज्ञ नैति मम क्वापि, कथं कार्य दिनत्रयम् // तेनुं सर्व धन लइने आ राजा दंड करशे. आ प्रमाणे थयेलो ते पटहनो शब्द संभलाय छे." // 215 // ते पुरुषना आवां वचन सांभली लक्ष्मीचंद्र विचार करवा लाग्यो. "पुष्पना घर विना मने क्यारे पण निद्रा आवती नथी, तो म्हारे त्रण दिवस शुं करवू ?" || 216 // अतीते यामिनीयामे, सचिंताचांतचेतसा // तले सुष्वाप न प्राप, प्रमीलालेशमप्यसौ॥२१६॥ चिंतया परितः पश्यन् , पाणिभ्यां पुष्पमंदिरम् // जातमेतत्स्वयं दृष्ट्वा हृष्टो निशमथाप सः॥ __ पछी एक महर रात्री गइ, पण ते चिंतातुर चितथी शय्यामां सूतो परंतु निद्रानो लेश पण प्राप्त थयो नही. // 217 // पछी चिंताथी चोर तरफ पुष्पमंदिरने बने हाथथी स्पर्श करतो छतो पोतानी मेळे प्रगट थयेला ए पुष्पमंदिरने जोइने हर्षे पामेलो लक्ष्मीचंद्र निद्रा पाम्यो.॥२१०॥ ततःप्रातः प्रबुझेऽस्मिन् , सुहृदोऽस्य समागताः॥ तहीदय पुष्पप्रासाद, वीक्ष्यांचक्रुः परस्परम् // तथा दिने द्वितीयेऽपि, जाते पुष्पगृहे क्रमात्॥ तलारदैरपि ज्ञात्वा, विज्ञप्तमिति नूनुजे॥२॥ ____पछी सवारे ते लक्ष्मीचंद्र जागी उठयो एटलामां तेना मित्रो आव्या, ते ते पुष्पना मंदिरने जाइ परस्पर एक बीजा सामुं जोवा लाग्या. // 219 // तेवी रीते वीजे दिवसे पण पुष्पमंदिर थयुं एटले अनुक्रमे ते वात तलार * लोकोए जाणी, तेथी तेमणे राजाने आ प्रमाणे कर्तुं. // 220 // लक्ष्मीचशे विना पुष्पगृहं न स्वपति प्रनो // श्रुत्वेति कुपितो नूपस्तत्दणं तैस्तमानयत् // त्वयाझा खंमिता कस्मादिति प्रोक्तो महीनुजा // स प्रोवाच न राजाज्ञां, खमयामि कदाचन // " हे प्रभु ! लक्ष्मीचंद्र पुष्पना घर विना सूतो नथी." एवां तलार लोकनां वचन सांभली कोप पामेला राजाए तुरत ते तलार लोको पासे तेने तेडाव्यो. // 221 // "तें म्हारी आज्ञा केम लोपी?" एम राजाए कडं एटले लक्ष्मीचंद्रे कह्यु के, " हुं क्यारे पण राजानी आझा खंडन करतो नथी." || 222 // . . EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS MKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX स्वरूप पुष्पगहस्य, प्राक्त सात महापातः // उच ताह त्वयागत्य, निद्रा कार्या ममालये 223 तत्रापि तस्य सुप्तस्य, जाते पुष्पगृहे तथा // नृपतिर्विस्मितश्चिते, कमयामास तं प्रगे // 22 // पछी तेणे पुष्पना घरनी वात कही एटले राजाए कह्यु के, " त्यारे हारे म्हारा घरे आवीने मुइ रहे." 223 त्यां पण सूतेला तेने तेवीज रीते पुष्पहैं घर थये छते चित्तमां विस्मय पामेला राजाए तेने खमायो.२३४ तेनापि सहितो नूपस्ततोऽगानागमंदिरम् // पात्रावतीर्णा भूपं च, बन्नाषे नागदेवता // 22 // असौ पुण्यप्रन्नावाढयः पुण्यात्तुष्यंति देवताः // अस्माकं कथमर्चा स्यादश्य पुष्पगृहं विना // पछी लक्ष्मीचंद्र सहित राजा नागपंदिरे गयो. वली त्यां पण पात्रथी नीचे उतरेना नागदेवताए राजाने कह्यु. // 225 // " आ पुण्यना प्रभाववालो छ. देवताओ पुण्यथी प्रसन्न थाय छे. तो एने पुष्पना घर विना अमारी पूजा शी रीते थाय ?" // 226 // अथ हृष्टो महोनाथस्तन साकं गृहं ययौ // सामान्यः स्थापितो मंत्री, कृत्याकृत्यविदा मुना // देवस्य प्रतिकुलत्वाकांतः शूलरूजा नृपः // अंत्यावस्थां गतो लक्ष्मीचं प्रोवाच साश्रुहक् // पछी हर्ष पामेलो राजा तेनी साथे घेर गयो. त्यां कार्य अकार्यना जाण एवा तेणे लक्ष्मीचंद्रने सामान्य मंत्रीपदे स्थाप्यो. // 227 // कोइ वखते दैवना प्रतिकुलपणाथी राजाने शूलनो रोग थयो, तेथी अंत्य अवस्थामां आवी पडेलो ते रोतो छतो लक्ष्मीचंद्रने कहेवा लाग्यो. // 228 // मित्रत्वं तव देवेन, दूरितं दृश्यतेऽधुना // धुनाति जीवितं वृदं, मृत्युमत्तगजेंवत् // 22 // स प्रोचे परमं मित्रं, जिनधर्मो धरापते // पतेन जोवो यं यानपात्रं लब्ध्वा नवांवुधौ // 230 // ___“वणां दैवे त्हारुं मित्रपणुं दूर करेलु देखाय छे. कारण जेम वृक्षने पदोन्मत्त हाथी कंपावे तेम मृत्यु महारा जीवितने कंपावे छे. // 229 / / लक्ष्मीचंद्रे कह्यु. " हे पृथ्वीनाथ ! जिनधर्म उत्तम पित्र छे. कारण के जीव जे जिनधर्मरुप वहाणने पामीने संसाररुप समुद्रमा पडतो नयी." // 230 // कयुं छे केः Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ र PER A Gunratnasuti MS a जननी जनको नाता, पुत्रो मित्रं कलत्रमितरो वा॥ , दूरीनवंति निधने, शरणं जीवस्य जिनधर्मः // 231 // ___ मृत्यु प्राप्त थये छते माता, बाप, भाइ, पुत्र, मित्र, स्त्री अथवा वीजो कोइ जे होय ते सर्वे दुर थाय छे. अने जीवने एक जिनधर्मज शरण छे. // 231 // श्रवधाने नृपे जैनधर्म शर्मप्रदं नृणाम् // स प्रोचे शमपीयूषरससागरसन्निन्नम् // 232 // पछी राजा श्रद्धावंत थये छते लक्ष्मीचंद्रे माणसोने सुख आपनागे अने शांतिरुप अमृतरसना समुद्र समान जिनधर्म करो. // 232 // चतुःशरणसर्वात्मदामणादिकमप्यसौ // नृपतिं कारयामास, सोऽपि तत्प्रत्यपद्यत // 233 // नूपो मंत्रिणमाकार्य, बन्नाष गुणरंजितं // अस्यैव मम दातव्यं, प्राज्यं राज्यमिदं त्वया॥२३॥ पछी लक्ष्मीचंद्र राजा पासे चार शरण अने सर्व जीवोनी क्षामणादिक कराव्यु. राजाए पण ते सर्व करयुं. // 233 // गुणोवडे प्रसन्न थयेला राजाए मंत्रीने वोलावीने कयुं के, " त्हारे आम्हारूं समृद्धिवंत म्होटुं राज्य आ लक्ष्मीचंद्रनेज आप." // 234 // / तेन प्रपन्ने नूपालः, समाहितमना नृशम् // नमस्कारं स्मरन्मृत्वा, ब्रह्मलोके सूरोऽन्नवत् // नूपकृत्ये कृते तत्र, लक्ष्मीचंशेऽनवन्नृपः॥ पुर्याः पुष्पकरंमिन्याः स कुटुंबमथानयत् // 236 // मंत्रीये ते कबुल करयुं एटले अत्यंत शांत मनवालो राना नमस्कारने स्मरण करतो छतो मृत्यु पामीने / ब्रह्म लोकने विषे देवता थयो. // 235 // राजानुं अंत्यकार्य करया पछी त्यां लक्ष्मीचंद्र राजा थयो. पछी * तेणे पुष्पकरंडिनी नगरीयी पोताना कुटुंबने तेडाव्यु. // 236 // आकारणे समेतेऽस्य, गंतुकामः सुतांतिकम् // स लक्ष्मीसागरः पुष्पकेतुं नूपं व्यजिज्ञपत् // स्वामिनागपुरे खामी, मदीयस्तनुजोऽनवत् // गचाम्यहं तवाज्ञातः, सकुटुंबस्तदंतिके // 23 // nel Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS लक्ष्माचनु तदुभाव्य छत पुत्रना पास जवाना इच्छावाला त लक्ष्मामागर शठ पुष्पकतु रामान बनता करी के, // 237 // हे स्वामिन् ! म्हारो पुत्र नागपुरने विषे राजा थयो छे, माटे तमारी आज्ञाथी कुटुंब सहित हुं तेनी पासे जाउं छु, / / 238 // हसित्त्वा नूपतिः पश्यन् कत्रियाणां मुखंजगौ // तुलादमो वणिपाणी, नाति खड्गः पुनर्नहि॥ अत्रैव तेन तिष्ट त्वं, सोऽप्यत्रैव समेष्यति // तज्ञज्यमहमादास्ये, राज्यं योग्ये विराजत॥२४॥ राजाए 'हसिने सामंतोनां मुख सामु जोता छता कडं."वणिक्ना हाथमां ताजवू शोभे छे. पंरतु खङ्ग शोभतुं | नथी. // 239 // ते कारणमाटे तुं अहिं ज रहे, ते पण अहिंज आवशे, तेना राज्यने हुं लइश; कारण के राज्य योग्य पुरुषने विषे शोभे छे." // 240 // इत्युक्त्वा तं विसृज्यासौ, पुष्यकेतुर्नृपस्ततः॥ सेनया कंपयन पृथ्वी, ययौ नागपुरं प्रति // 51 // लक्ष्मीचंइस्तमायांतं, श्रुत्वा सबलवाहनः॥ चचाल करवालेन, नूपयन दक्षिणं करम् // // एम कहीने लक्ष्मीसागरने रजा आपीने पछी ते पुष्पकेतु राजा सेनाथी पृथ्वीने कंपावतो छतो नागपुरे गयो. // 241 // तेने आवतो सांभलीने सेना तथा वाहनो सहित लक्ष्मीचंद्र पण तरवारथी जमणाथी शोभावतो छतो चाल्यो. // 242 // देशसंधौ समागत्य, लक्ष्मीचं३ स्थिते सति // पुष्पकेतुरपि प्राप्तःस्तत्र शत्रुत्वसादरः ॥श्व३॥ विधातुमदमे संध्यं, मंत्रिवर्गेध्योर्बलम् // डुढौके इंद्वयुझाय, शस्त्रमात्कारकारकम् // 4 // पोताना देशने सीमाडे आवीने लक्ष्मीचंद्रे पडाव करयो एटले शत्रुपणामां आदरवालो पुष्पकेतु राजा पण त्यां आव्यो. // 243 // त्यां प्रधानो संधी करवाने समर्थ थया नहि एटले शस्त्रोना झलझलाट करनारु बन्ने राजानुं सैन्य द्वंद्वयुद्ध करवाने समीपे आव्युं. // 244 // त्रासिता वैरिनिःसर्वे, लक्ष्मीचंनटाः कणात्॥ कृत्रियःक्षत्रियो नूनं, वणिगेव वणिक पुनः॥ एवं हसत्सु क्षत्रेषु, लक्ष्मीचं तदाकुले // नागदत्तामरोऽझासोदवधिज्ञानवानिदम् // 26 // Jun Gun Aaradha Trust
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________________ चरित्र गुण PA // 7 // Gunratnasuti MS पछी शत्रुओए क्षणवारमा सघला लक्ष्मीचंद्रना सुभटोने त्रास पमाडया." निश्चे क्षत्रिय ते क्षत्रिय अने वली वणिक् ते वणिक्." // 245 // एम क्षत्रियो हसवा लाग्या एटले ते वखते लक्ष्मीचंद्र आकुल व्याकुल थवा वाला नागदत्त देवताए ते वात जाणी. // 246 // तत्कालं स समागत्य, मित्रसानिध्यहेतवे // संक्रम्य तबरीरे च, शमयामास वैरिणः॥३७॥ शृगालीव वनाधीशा बृष्ट्वा रे कुत्र यास्यथ // मान्यां मन्यध्वमस्याज्ञां,यदि वो जीवितं प्रियम्॥ पछी ते देवताए मित्रने सहाय करवा माटे तुरत त्यां आवी अने लक्ष्मीचंद्रना शरीरमा प्रवेश करीने शत्रु- ओने शमावी दोधा. / / 247 // " अरे ! सिंह पासेथी शियालनी पेठे नासीने तमे क्या जवाना छो ? जो तमने जीवित वहालुं होय तो आ लक्ष्मीचंद्रनी मान्य एवी आज्ञाने मानो." // 248 // इत्याकण्य नन्नोवाचं, पुष्पकेतुर्नृपस्तदा // प्रानृतेन समागत्य, लक्ष्मीचंइमतूतुषत् ॥श्वए॥ लक्ष्मीचंइस्ततस्तेन, साकं नागपुरं ययौ // झापयित्वोपकारं च, नागदत्तामरो दिवम् // 25 // एवी आकाशवाणी सांभलीने ते वखते पुष्पकेतु राजाए आवीने भेटथी लक्ष्मीचंद्रने संतोष पमाडयो.॥२४९॥ as पछी लक्ष्मीचंद्र पुष्पकेतु सहित नागपुरे गयो अने नागदत्त देवता पण पोताने करेला उपकारनी वात कहीने स्वर्गे गयो. // 25 // पुष्पकेतुं नृपं प्रेक्ष्य, सकुटुंबो महीपतिः॥ स राज्यं पालयामास, तत्र नागपुरे पुरे // 251 // स्तश्च सिंहतिलकज्ञानवन्मुनिपुंगवाः // तत्रायाताः स तान्नंत, जगाम सपरिचदः // 5 // पछी पुष्पकेतु राजाने रजा आपीने कुटुंब सहित ते लक्ष्मीचंद्र राजा ते नागपुरनगरने विषे राज्य करवा * लाग्यो. // 251 // एवामां सिंहतिलक नामना ज्ञानवंत मुनिश्रेष्ट ते नगरमां आव्या एटले परिवार सहित राजा तेमने वंदना करवा गयो. // 252 // श्रुत्वोपदेशं पप्रच, निजराज्यस्य कारणम् // मुनिः पूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // 53 // श्रेष्टिनो धनदत्तस्य, हेमानाख्यः सुतोऽन्नवत् // पूजायां क्रियमाणायां, पुष्पगेहमसौ व्यधात् // HIKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust 5 //
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________________ PPA Gunnsut MS . धर्मोपदेश सांभलीने पछी राजाए पोताने राज्य मलवानुं कारण पूच्छयु एटले मुनिये तेने पूर्वभव कह्यो के,' A " हस्तिनापुर नगरने विषे. धनदत्त शेठने हेमाभ नामनो पुत्र हतो, तेणे जिनेश्वरनी पूजा करे छते पुष्पन घर * बनाव्युं हतुं. // 253 // 254 // जिनपूजाप्रनावेण, प्राज्यं राज्यं तवान्नवत् // पुष्पगेहविशेषात्ते, पुष्पगेहं तदान्नवत् // 25 // नूपः पूर्वनवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽत्नवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // 26 // श्री जिनराजनी पूजाना प्रभावथी तने विस्तारवंत राज्य मल्युं छे. वली पुष्पघर करवाथी तने ते वखते पुष्पघर थयुं हतुं." // 255 // आ प्रमाणे राजा पूर्वभव सांभलीने ते वखते जातिस्मरणज्ञान पाम्यो; तेथी तेणे | मुनिनी पासे विशेषे अरिहंतनो धर्म आदरो. // 256 // मुनिं नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे // गृहित्वा संयम प्रांते. सौधर्मे त्रिदशोऽनवत् चिरं सुखान्यसो नुक्त्वा, देवलोकात्ततश्च्युतः॥ एकादशोयमचलो, नाम्ना वे तनयोऽनवत् // ___मुनिने नमस्कार करी घरे जइ पोताना पुत्रने राज्य आपी अने अंते चारित्र लइ ते लक्ष्मीचंद्र सौधर्म देवता थया. // 257 // त्यां ते दीर्घकाल सुधी सुख भोगवीने पछी देवलोकथी चवेलो ते आ अचल नामनो त्हारो अगीयारमो पुत्र थयो छे. // 258 // // इतिपुष्पगेह पूजायां हेमान्न कथा. // Jun Gun Aaradhat जिनाग्रे विहितः पुष्पप्रकरो येन नावतः॥ फलं तस्याथ वक्ष्यामः, श्रूयतां नविका जनाः॥ विदर्ता नगरी रम्या, दक्षिणस्या विनूषणम् ॥नरसिंहनृपस्तत्र, सुरामसमविक्रमः // 260 // हवे जेणे भावथो जिनेश्वरनी आगल पुष्पना समूह करयो छे, तेनु फल कहुंछं. ते हे भविकजनो ! तमे सभिलो. // 259 // दक्षिण दिशाना आमूपण रूप विदर्भा नामनी मनोहर नगरी छे. त्यां इंद्रना सरखो पराक्रमी नरसिंह नामनो राजा राज्य करतो हतो. . ..... ist
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________________ गुण ME PPA, Gunratnasuti MS श्रीदेवीवल्लन्ना, तस्य, शीलशृंगारशालिनी // मतिसारानिधो मंत्री, मनोज्ञमतिवैनवः 261 चरित्र तस्य सत्यवती कांता, कांतन्नक्तिमनोहरा // हेमवर्णकजीवोऽय, तस्याः कुहिं समागतः // ते राजाने शोलरूप शरगारथी सुशोभित श्री देवी नामनी स्त्री हती अने मनोहर वुद्धिना वैभव रूप मतिसार नामनो मंत्री हतो. // 261 // ते मंत्रीने पतिनी भक्तिथी मनोहर एवी सत्यवतो नामनो स्त्रो हतो. पछी हेमवर्णकनो जीव ते सत्यवतोना उदरने विषे आव्यो. // 262 // तदा च नृपतिः प्रोचे, सचिवं सुचिवाक् पटुः // तोल्यः पट्टगजेंशेऽयं, नारोऽस्य ज्ञायते यथा // कुशदेशममुं ज्ञात्वा, मंत्री मंदिरमागतः // अत्यंतं तं सचिंतं च, दृष्ट्वा सत्यवती जगौ 264 ते वखते पवित्र वाणीवाला अने चतुर एवा राजाए प्रधानने कह्यु के, " आ पट्टहस्तिने तोलवो के, जेथी एनो भार जाणी शकाय" // 263 // आ तुच्छ हुकम जाणी मंत्री पोताना घेर आव्यो अने त्यां तेने अत्यंत चिंतातुर जोइ सत्यवतीये कह्यु. // 264 // हेतुना केन मालिन्यमाननं तव दृश्यते // राजादेशेऽमुना प्रोक्ते, सा स्मित्वोचे न करम् // सरिति स्थाप्यते क्वापि,नौका निश्चिइतान्विता // यावती सास्वन्नारेण, जलमध्ये निमज्जति // “शा कारणथी तमारुं मुख चिंतावालुं देखाय छे ?" मंत्रोए राजानो हुकम कही संभलाव्यो एटले ते स- त्रि त्यवतीये हसीने कह्यु के, " ए दुष्कर नथी." // 265 // कोइपण नदीमां छिद्र विनानी नाव मूकवी. ते नाव पोताना भारथी पाणीमां जेटली बूडो जाय. // 226 // तावंती रेखया युक्ता, कृत्वात्रारोप्यते गजः॥ यावतो तस्य नारेण, नीरं मजति सा ततः५६७ तावंती रेखयित्वा तां, तत नत्तार्यते गजः॥ आगजारोपरेखं सा, वस्तुन्निभ्रियते तरी // 26 // तेटली ते रेखाथी युक्त करी तेमां हाथी चडाववो. पछी ते हाथीना भारथी पाणीमां जेटली ते बूडी जाय. // 267 // तेटली ते नावने रेखावाली करीने पछी हाथीने उतारी लेवो. पछी ते नाव हाथी चडावता जेटली रेखा सुधी बूढी गइ हती त्यां सुधो बूडी जाय एटली वस्तु वडे भरवी. // 268 // . Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. ततस्तत्तोल्यते वस्तु, समस्तमपि कोविदः॥ वस्तुनो यत्प्रमाणं स्याङ्गजेंऽस्यापि तनवेत् २६ए / * श्रुत्वेति सचिवो दध्यौ, नास्या बुहिरियं कुतः // किंतु गर्नस्थितस्यैव, कस्यचिद्भाग्यशालिनः॥ * पछी पंडीत पुरुषोए ते सघली वस्तु तोली जोवी ते वस्तुनुं जे प्रमाण थाय ते हाथी, पण जाणवू. " // 269 // प्रियानां आवां वचन सांभली मंत्री विचार करवा लाग्यो के, " आ बुद्धि एनी नथी. परंतु गर्भमां रहेलाज कोइ भाग्यवंतनी छे." // 270 // . चिंतयन्नित्यसौ गत्वा, नृपायादातउत्तरम्॥ तद्बुधिरंजितः सोऽस्मै, विशेषान्मानदोऽनवत५७१ समये सुसुवे सूनुः, सत्यवत्या शुन्ने दिने // तस्मै सुमतिरित्याख्या, सचिवः सोत्सवं दधौ२७२ ए प्रमाणे विचार करता मंत्री राज्यसभामां जइ राजाने तेनो उत्तर आप्यो तेथी ते मंत्रोनी बुद्धिथी प्रas सन्न थयेलो राजा तेने वधारे मान आपवा लाग्यो. // 271 // पछी सत्यवतीये अवसरे शुभ दिवसे पुत्रने जन्म आप्यो. प्रधाने उत्सव करी तेनुं " सुमति ' एवं नाम पाडयुं. // 272 // वईमानः कलाशाली, कमात्तारुण्यमाप सः // अन्येद्युYनुजा मंत्री, समाहृत्येति नाषितः // Jun Gun Aaradhak Trust त्रीने बोलावीने आ प्रमाणे कडं के. // 273 // " म्हारा महेलने माटे अरण्यमांथी लाकडां लइ आवो. "मधान " बहु सारं." एम कही घेर आव्यो. आ वात मुमतिये जाणी तेथी तेणे पिताने कह्यु के, // 274 // अहं गत्वा समानेष्ये, तानीत्युक्त्वा जगाम सः // सूत्रधारैः सहाटव्यां, संकुलायां लताडुमैः॥ "हुँ जइने लाकडां लइ आवीश." एम कहीने ते सुथार सहित लता अने झाडोथी भरपुर एवा वनमां गयो. // 275 / / जे वनमां ताल हंताल, मायुर खजूर, अर्जून अने चंदनना असंख्यात वृक्षो झाडो अने चारे तरफ पर्वतो पण हता. // 276 //
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________________ // 7 // PP.AC.Gunratnasun M.S. गुण तत्र त्रसमं पृथ्व्याः , पुष्पतारकपूरितम् ॥विशाखा सहितं सम्यग, हिजराजविराजितम् 178 चरित्र * नीलामललसवायं, दृढमूलं महत्तरं // प्रतिबिंबमिव व्योम्नस्तरुमेकं ददर्श सः // 27 // त्यां पृथ्वीना छत्र सरखं, पुष्पसमूहथी भरपूर, नानी डालो सहित अने उत्तम पक्षीयोथो सुशोभित 277 * श्याम अने निर्मल शोभंती छापावालु, मजबूत मूलवालुं अने असंत म्होर्ट जाणे आकाशन प्रतिविंव होयनी ? ए, एक वृक्ष ज्ञाड ते सुमतिये दीर्छ. // 178 // तं दृष्ट्वा दध्यिवानेष निरधिष्टायको न हि // तरुर्गुरुतरस्तेन नेतुं नाईति सर्वथा // 279 // तं चेतुमनसं सुत्रधारवर्ग निवार्य सः॥धूपगंधार्चनं कृत्वा, तस्याधस्तानिविष्टवान् // 280 // | ते वृक्षने जोइ चंद्रकुमार विचार करवा लाग्यो के, " निश्चे आ वृक्ष अधिष्टायक विनानुं नथी, माटे ए अत्यंत म्होटुं वृक्ष सर्व प्रकारे छेदी नाखवा जेवू नथी. // 279 // पछी चंद्र ते वृक्षने कापी नाखवाना मनवाला * सुथारोने ना पाडी पोते गंध धूप विगेरेथी ते वृक्षनी पूजा करीने तेनी नोचे वेठो. // 280 // प्रत्यदीनूय तं प्रोचे, व्यंतरस्तदधिष्टित H // प्रीतोऽस्मि तव बुझ्याहमुचितं तरं ददे // 281 // सर्वत्र चिंतितः पुष्पप्रकरो नवतः पुरः॥ नवितैत्येवमाकण्य, तं प्रोचे सचिवांगजः // 28 // ते वखते वृक्षना अधिष्टायक व्यंतरे प्रत्यक्ष थइ तेने कह्यु के, " हुं त्हारो बुद्धिथी प्रसन्न थयो , माटे यो*ग्य वरदान आपुंछु के, // 28 // त्हारी आगल सर्व स्थानके चिंतववाथी पुष्पनो ढगलो थशे." व्यंतरनां PS आवां वचन सांभली प्रधान पुत्रे तेने कह्यु. // 282 // वरो मेऽस्तु परं सौधे, नारपट्टोविलोक्यते॥अनेन शाखिना सोऽयं, समर्थ खलु जायते 583 // ततो मेऽनुमतिं देहि, यथा कार्य विधीयते॥स प्राहच्छेदने नालमन्येषामपि शाखिनाम् // 7 // ___ मने ए वरदान हो, परंतु महेलने माटे वार वाट जोवे छे अने ते आज वृक्षथी थाय तेम छे. // 283 // माटे मने अनुमति आप के, जेथी कार्य कराय." व्यंतर कयं के, " बीजापण वृक्षोने कापवानुं कांइ प्रयोजन नथी. // 284 // 1330 Jun Gun A chat Trust
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________________ PPAC Gunratnasuti MS SEXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX सौधयोग्यानि काष्टानि, समेतानि पुरे तव // प्रातावदारका भूपमनुष्यस्त समपात // 285 // MAY एवमुक्त्वा गते तत्र, व्यंतरे मंत्रिनंदनः // पुरतः पुरतः प्राप्त मदोन्मानुषं प्रगे // 6 // __ हारा नगरने विष महेलने योग्य एवां लाकडां आव्यां छे अने सवारे तने राजानो माणस सुथार मलशे. // 285 // त्यां ए प्रमाणे कहीने व्यंतर गयो एटले मंत्रीपुत्र सुमतिये सवारे आगल आगल प्राप्त थयेला म.. नुष्यने दीठो. // 286 // . तेनापि हि तथैवोक्ते, मंत्रोसूः शिल्पिन्निः सह ॥आयातः स्वपुरं तातस्तबुझ्या रंजितो नृशम्॥ तदा नगा चंपायां, नरेंद्रोऽनून्महाबलः // तस्य सागरमंत्रीदोः सुता कमललोचना // 289 // ते पुरुषे पण निश्चे तेज प्रमाणे कयुं एटले सुमति सुथारो सहित पोताने नगरे आव्यो, जेथी पिता मतिसार पण बहु प्रसन्न थयो. // 287 // ते वखते चंपानगरीमां महावल राजा राज्य करतो हतो, तेना सागर मंत्रीश्वरने कमललोचना नामनी/स्त्रो)हतो. // 288 // याचिता मतिसारण, सेयं सुमतिसूनवे / यावत्प्रदीयते तेन, तावद्धृत्यो जगाद तम् // 79 // आयातो मथुरापुर्याः, सचिवो बुद्धिसागरः॥स्वपुत्रजयचंज्ञर्थे, पुत्री याचितुमेति वः // 290 // मतिसारे पोताना सुमति पुत्रने माटे ते कन्यानु मागु करयुं अने सागरमंत्री तेनी साथे पोतानी पुत्रीनो सं| बंध जेटलामां करे छे तेटलामां सेवके आवीने सागरमंत्रीने कयु के, // 289 // " मथुरा नगरीथी आवेला बु| द्धिसागर प्रधान पोताना पुत्र जयचंद्रने अर्थे तमारो पुत्रीनु मागुं करवा आवे छे. // 290 // तदा तत्र समायातं, तं दृष्ट्वा सचिवाग्रणी // आसनादि प्रदानेनावर्जयामास गौरवम् // 29 // तेनापि हि तथैवोक्ते, सागरोऽथ व्यचिंतयत् // तुल्ययोर्वरयोरेषा, कस्मै कन्या प्रदीयते 29 // ते वखते त्यां आवता ते बुद्धिसागरने जोइ मंत्रोश्वर सागरे आसनादि आपवाथी तेमन बहु गौरव क* रयु. // 291 // तेणे तेज प्रमाणे कमललोचनानु मागुं करयुं एटले सागर विचार करवा लाग्यो के, बन्ने वर सरखा छे तो पछो कन्या कोने आपवी. 292 // k******KkkXXXXXXXXXXXXXYYYNVI Jun Gun Aarada Trust E
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________________ ॥पना PP.AC.Gunratnasuri M.S. गुणविमृश्याहं करिष्यामीत्युक्त्वा तौ हौ विसृज्य सः॥चिंतयाचांत चित्तोऽस्थात्तं दृष्ट्वा च सुता जगौ॥ चरित्र. खिद्यसेऽद्य कथं तात, स्वरुपे कथितेऽमुना ॥सा प्रोचे वरनामाकं, क्रियतां पत्रिकाध्यम् 194 // ___ पछी " हुं विचार करोने कहोश." एम कहोने ते बन्ने प्रधानोने रजा आपो सागरमंत्री चिंताथी व्याकुल चित्तवालो थयो एटले तेने जोइने पुत्री कमललोचनाए कह्यु. / / 293 // “हे तात ! आजे केम खेद पामो र छो?" सागर पोतानी ते वात कही एटले कमललोचनाए कह्यं के, " वरना नामनी वे चीठीओ करावो." * कुलदेवोकरे न्यस्य, योग्यं देहीतिनाषकः // अन्यथा कन्यया पत्रोमेकमादाय निर्णयः // 5 // * एवमेव कृते तेन, प्राप्ता सुसतिपत्रिका // प्रबनं सा ततस्तस्मै, प्रेषील्लेखं स्वपाणिना // 296 // . पछी ते वन्ने चीठीयो कुलदेवीना हाथमा मूकीने " योग्य आपो." एम कही वोजो कोइ कुमारो पासे ए* क चीठी उपडावीने निर्णय करवो. // 295 // सागरे एज प्रमाणे करयुं एटले सुमतिना नामनी पत्रिका प्राप्त * थइ. पछी कमललोचनाए पोताना हाथथी लखेलो गुप्त पत्र सुमति उपर मोकल्यो. // 29 // नूनं मयाहतोऽसि त्वं, स्वबुध्या बुद्धिसागर // मंत्री त्वया तथा वार्यो, यथा कोपं करोति न॥ वाचयित्वेति तं लेखं, वलमानं लिलेख सः // सापि तं वाचयामास, समेतं नृत्यपाणिना 297 “हे बुद्धिना समुद्र ! निश्चे में पोतानी बुद्धिथी तमारो आदर करयो छे, माटे तमारे मंत्रीने तेवी रीते वा* रवा के, जेवी रीते ते कोप करे नहि." // 297 // आ प्रमाणे ते पत्रने वांची सुमतिये वजतो पत्र लख्यो. क मललोचनाए पण सेवकना हाथथी पोताने मलेला ते पत्रने बांच्यो के, // 298 // आगतो नवतीलेखो, नव्यमेव नविष्यति // अस्मदागमने सोप्याह्वातव्यो बुद्धिसागरः श्एए॥ तथा बुद्धिविधास्यामि, यथा कोऽपि न रोक्ष्यति // तथैव कारयामास, वाचयित्वेति तं मुदा // हारो पत्र आव्यो, सारुंज थशे अने अमे त्यां आवोये एटले बुद्धिसागरने तेडायवो. // 299 // हुँ तेवी रीते करीश के, जेथी कोइ रीश पामशे नहि." आ प्रमाणे पत्रने हर्पथी वांचीने कमललोचनाए ते प्रमाणे कराव्यु. // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS विवाहसमये तत्र, मिलिते स्वजनेऽखिले // समेते सहपुत्रण, साचव वाइसागर // 3 // मतिसारे निविष्टे च, जायमाने महोत्सवे // सुमतिसुहृदा ज्ञातसंकेतेनेत्यन्नाषत // 30 // पछी विवाहना अवसरे त्यां सर्व स्वजनो एकठा थया अने बुद्धिसागर प्रधान पुत्र सहित आव्यो. 301 // KE मतिसार प्रधान पण सभामां बेठो अने महोत्सव चालु थयो ते वखते संकेतना जाण सुमतिना मित्रे आ प्रमाणे कडं. // 302 // मिलिताः स्वजना एते, गौरवार्हा गुणान्विताः // स्वयमेवागतैः पुष्पैः, कुरुध्वं प्रकरानिहं // सर्वेष वीक्ष्यमाणेष, वक्रमेव परस्परम्॥ जयचंमसौ प्रोचे, बुद्धिसागरनंदनम् // 304 // गोरखने योग्य अने गुणवंत एवा आ स्वजनो एकठा थया छे. तेओ पोतानी मेलेज पडेलां पुष्पोथी अहिं गला करो," // 303 // पछो सर्व परस्पर मुख जोवा लाग्या एटले ए सुमतिना मित्रे बुद्धिसागरना पुत्र जa यचंद्रने कयुं. // 304 // * यदि शक्तिस्ते, सुमतिः कुरुतेऽन्यथा // यः करिष्यति तत्कार्य, स कन्यां परिणेष्यति // as परैरपि प्रोक्ते, सुमतिस्तदणादपि // तं वृदयंतरं स्मृत्वा, पुष्पाणा प्रकरान् व्यधात् // - जोहारी शक्ति होयतो तुं पुष्पदृष्टि कराव्य, नहि तो सुमति करावे. जे आ कार्य करशे तेज कन्याने परणशे. * प्रमाणे वीजाने पण कडं एटले सुमतिये तुरत ते वृक्षना अधिष्टाक व्यंतुरनु स्मरण करी पुष्पोना प्रकारो बनाव्या. बाला सोत्कंगिता मालामस्य कंठे व्यवेशयत् // पाणिग्रहोत्सवश्वके, पितृभ्या मेतयोस्ततः३०७ तीये दिवसेऽकस्मादपुत्रस्तत्र नूपतिः // केनापि घातकेनाशु, प्रविश्य निशि संहतः // 308 // पछी उत्साहवंत कमललोचनाए ए सुमतिना कंठमां वरमाला पहेरावी, जेथी तेमना मातापिताए तेओनो विवाह उत्सव करयो. // 307 // हवे त्रोजे दिवसे त्यां कोइपण घातके तुरत रात्रीने विषे प्रवेश करी अपत्र एवा ते महाबल राजाने मारी नाख्यो. // 308 // IXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXYYYA Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण PPA Gunun MS अधिवास्य प्रगे पंचदिव्यानि नगरेऽखिले ॥मुमोच मंत्रियोग्याय, राज्यं दत्तेति नाषकः॥३९॥ चरित्र तानि तत्र समेतानि, सुमतिर्यत्र वर्त्तते // हयो हेषारवं चके, गजो गर्जितमुर्जितम् // 31 // // 7 // सवारे पंचदिव्य प्रगट करी सर्व नगरमां " योग्य मंत्रीने राज्य आपशे" एम उद्घोषणा करी. // 309 // as पछी ज्यां सुमति हतो त्यां ते सर्व आव्या, ते वखते घोडो खोखारा करवा लाग्यो अने हाथी गर्जना करवा लाग्यो. त्रि विस्तीर्ण शिरसि उत्रं, सुमते स्वयमेव तत् // रेजाते परितस्तं चाधूनिते चारुचामरे // 311 // राजशृंगारमादाय, गजारुढो जनैर्वृत्तः // सुमतिर्नूपतिर्जीयादित्युक्तः स सन्नां ययौ // 31 // सुमतिना माथा उपर ते विस्तारवालुं छत्र पोतानो मेळेज शोभवा लाग्युं अने ते सुपतिनो चारे तरफ म-. नोहर वे चामरो उच्छलवा लाग्या // 311 // राज शणगारने लइ हाथो उपर वेलो अने माणसोथी विंटलायलो ते, सुमति राजा जयवंतो व? एम कहेतो छतो सभामां आव्यो // 31 // .. न्यायेन पालयामास, स्वजनानंददायकः // राज्यं हरिरिव स्वर्गे, सुमतिनूमिनायकः // 313 // अन्यदा शानिनस्तत्र, महेंझनुसूरयः॥समायाताः स तानत्वा श्रौषोद्धर्मोपदेशनम् // 314 // . स्वजनोने आनंद आफ्नारो अने पृथ्वीनो अधिपति एवो सुमति, स्वर्गमां इंद्रनी पेठे न्यायथी राज्यनु पा* लन करवा लाग्यो. // 313 // कोइ वखते ते चंपानगरीमां ज्ञानो एवा महेंद्रप्रभसूरि आव्या एटले सुमति रा जाए तेमने वंदना करी धर्मोपदेश सांभल्यो. // 314 // श्रुत्वोपदेशं पप्रच, निजराज्यस्य कारणम // सूरिः पूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // 315 // श्रेष्टिनो धनदत्तस्य, हेमवर्णः सुतोऽनवत् // असौ जिनैपूजायां, पुष्पाणां प्रकरं व्यधात् 316 ___ उपदेश सांभल्या पछी तेणे पोताने प्राप्त थयेला राज्यनुं कारण पूछयु एटले सरिये तेनो पूर्वभव कह्यो के, " हस्तिनापुर नगरने विषे // 315 // धनदत्त शेठने हेमवर्ण नामनो पुत्र हतो, ए हेमवर्णे जिनेश्वरनी पूजाने विष पुष्पोनो प्रकर करयो हतो. // 316 // Jaansur Jun Gun Aaradhat Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS जिनपजाप्रन्नावण, प्राज्यं राज्यमिदं तव // पुष्पप्रकरतः पुष्पप्रकरस्ते तदान्नवत् // 317 // भपः पूर्वनवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽन्नवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // 318 // " ए हेमवर्णना जोवरुप तने जिनपूजाना प्रभावथी आ समृद्धिवंत राज्य प्राप्त थयुं छे. वली ते जिनेश्वरनी आगल पुष्पनो प्रकर करयो हतो, तेथो ते वखते त्हारी आगल पण पुष्पनो प्रकर थयो हतो. // 317 / / सुमति राजा पोतानो पूर्वभव सांभली ते वखते जातिस्मरणज्ञान पाम्यो, तेथी तेणे मुनिनी पासे विशेष अरिहंतनो धर्म आदरयो. // 318 // मनिं नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे॥ गृहीत्वा संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽनवत३१ए / चिरं सुखान्य सौ नुक्तवा, देवलोकात्ततश्चयुतः // हादशो बहुबुद्धिस्ते, तनयो नूपतेऽन्नवत् // पली मनिने नमस्कार करी घरे जइ पोताना पुत्रने राज्य आपी अने अंते चारित्र लइ ते सुमति सौधर्म देवलोकने विषे देवता थयो. // 31 // // ( श्री नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के, " हे भूपति ! ए मति त्यां बहुकाल सुख भोगवी अने पछी देवलोकथी चवीने त्हारो बारमो बहु बुद्धि नामनो पुत्र थयो छे. वस्त्रादिपूजनचतुष्कफलानि पुण्य-माणिक्यसुंदररूचिर्नृपतेः पुरस्तात् // नक्त्वा विशेषसहितानि तदादतादि पूजाफलानि गदितुं स पुनः प्रवृतः // 31 // पवित्र एवा श्री माणिक्यसुंदरसूरि राजानी आगल विशेष सहित वस्त्रादिचारना पूजन फलने कहीने फरी नमन ते वखते अक्षत विगेरेना पूजनफलने कहेवा लाग्या. // 321 // श्री अंचलगजेश श्री माणिक्यसूरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्माचरित्रे महाध्वजान्नरणारोपपुष्पगृहपुष्पप्रकरपूजाफल वर्णनो नाम चतुर्थः सर्गः Jun Gun Aaradha Trust
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________________ गुण // स्वर्ग 5 मो.॥ PPA Gunnatut MS KXXXXXXXXXXXXXXXXXXX अथतार्चा कृता येन, मंगलाष्टकपूर्वकम् // फलं तस्याश्च वक्ष्यामः, श्रूयता नविका जनाः॥१॥ पुरी शुनंकरा तत्र, हरिर्नाम्ना महीपतिः // सौन्नाग्यदेवो देवी च, देवीवत्द्युतिशालिनी // 2 // जेणे अष्टमंगलिकपूर्व अक्षतपूजा करी छे, तेनुं फल कहुं छु, हे भव्यजनो! ते तमे सांभलो. // 1 // शुभंकरा नगरीमा हरिनामनो राजा हतो अने तेने देवांगना समान कांतिवाली शौभाग्यदेवी नामनी पहराणी हती. // 2 // तनुजो धनदत्तस्य, श्रीदस्तत्कुदिमागतः॥ समये स तयासूतः, पिता चक्रे महोत्सवम् // 3 // * कनकध्वज इत्याख्या, कृता तस्य महीनुजा // वर्द्धमानः कलाशाली, कमात्तारुण्य माप सः 4 .. धनदत्तनो पुत्र श्रीदते सौभाग्य देवीना उदरने विषे आव्यो. देवीये अवसरे तेने जन्म आप्यो, जेथी पि ताए महोत्सव करयो. // 3 // हरि राजाए ते पुत्रनुं कनकध्वज एबुं नाम पाडयु. पछी वृद्धि पामतो अने कलाथी asl सुशोभित एवो ते कुमार अनुक्रमे युवावस्था पाम्यो. // 4 // अन्येयुः सहितो मित्रैर्वने क्रीडन्नसौ ययौ // जिनेनवनं नेत्रध्यप्रीतिकरं नृणाम् // 5 // * नत्वा जिनपतिं तत्र, वीक्ष्यमाणो विचित्रताम्॥ तुकाममसौ देवान प्राप्तं स्त्रीवर्गमैक्तः॥६॥ ___ कोइ वखते ए कनकध्वज पोताना मित्रोसहित वनमा क्रीडा करवा गयो, त्यां तेणे मनुष्योना बन्ने नेत्रोने प्रीतिकारी जिनराजनुं मंदिर दीढुं. // 5 // त्यां जिनराजने नमस्कार करी विचित्रपणुं जोता एवा ते कनकध्वजे जिनेश्वरने वंदना करवा आवेलो स्त्रीयोना समूहने दीठो.॥६॥ Jun Gun Aradhak Trust जा
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________________ PPA Gunnarasut MS तन्मध्ये कन्यका कापि, करस्थितशुकाननम्॥ पश्यंती तत्र संप्राप्ता, लसल्लावण्यशालिनी 7 अदतान् ढोकयंती सा, जिनस्य पुरतः स्वयम् // तेनैव ढोकयामास, शुकेनापि विवेकिना 8 ते स्त्रीयोनी मध्ये हाथ उपर बेठेला पोपटनां मुखने जोती अने सुशोभित लावण्यवाली कोइ पण कन्या त्यांनी आवी. // 7 // जिनराजनी आगल पोतानी मेले चोखा मूकती एवी ते कन्याए विवेकी एवा ते पोपटनी पासे / पण जिनराजना आगल चोखा मूकाव्या. // 8 // अक्षतांतः शुको वक्रेणालिखन्मंगलाष्टकम् // ततस्तया समं प्रीत्या पागेजिनपतिस्तुतिम् // अदतं यानपात्रं त्वं, वर्तसे नववारिधौ // अक्तं शिवसौरव्यं नस्त्वं देहि परमेश्वर // 10 // पोपटे पोतानां मुखथो चोखानी मध्ये अष्टमंगलीक आलेखोने पछी ते कन्यानी साथे प्रीतिथी जिनराजनी स्तुति भणवा लाग्यो. // 9 // हे परमेश्वर ! तमे आ संसार समुद्रमा अखंडित एवा वाहाणरुप छो, माटे तमे अमने अक्षय एवं मोक्ष सुख आपो. // 10 // एतच्चित्रकरं दृष्ट्वा, विस्मितः कनकध्वजः // मित्रेण प्रछया मास, कांचित्तन्मध्यगां स्त्रियम् // सा प्रोचे जिनदत्तस्य, सुतेयं कमलानिधा // जातायां मंदिरे यस्यां, पितुर्घनमन्नूहनम् // __ आ आश्चर्यकारी जोइ विस्मय पामेला कनकध्वजे पोताना मित्रनी पासे ते स्रोयोनी मध्येनी कोइ स्त्रीने पूछाव्यु. // 11 // ते स्त्रीने कयु. “आ जिनदत्त श्रावकनी कमला नामनी पुत्री छे. आ पुत्री उत्पन्न थइ त्यार Se पछी पिताना घरने विषे वह धन एकटं थयं छे.॥१२॥ अष्टवर्ष प्रमाणाया, अस्याः करतले स्वयम् ॥समागत्य शुकस्तस्थौ, कमले राजहंसवत् // एषा कणमपि प्रायो, न तिष्टति शुकं विना // अत्यजंती मनोरंगादंगाजिवमिवान्वहम् // आठ वर्षनी आ पुत्रींना हाथमां कमलने विपे राजहंसनी पेठे पोपटे पोतानी मेले आवीने निवास करयो * छे. // 13 // जेम अंगथी जोव जूदो न रहे तेम निरंतर मनोरंगथी पोपटने न त्यजी देती एवी आ कन्या घj करीने पोपट विना एक क्षणणत्र रहेती नथी. // 15 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण चरित्र. PPA Gunnast MS पाणिग्रहणयोग्यापि, वरमेषा न वाचति // श्तश्च तत्र संप्राप्ता, श्रीमंतो धर्मसूरयः // 15 // * करे न्यस्तशुकामेतां, सहादाय समागतः // श्रेष्टी पाच तान्नत्वा, केनेयं स्नेहनाक् शुके // विवाहने योग्य एवीय पण आ कन्या पतिनी इच्छा करती नथी एवामां त्यां श्रीमान् धर्ममूरि आव्या. // 15 // पछी हाथ उपर पोपटने धारण करी रहेली आ पुत्रीने साथे लइ मुनि पासे गयेला शेठे तमने नमस्कार करीने पूछयु के, " आ पुत्री शा कारणथी पोपटने विषे स्नेहवाली छे." // 16 // ते प्रोचुर्मगधान्निरव्ये, देशे सग्रामनामनि॥ ग्रामे स्यामाकनामानूत्कृषिकर्मेपि जीवकः॥१७॥ वर्षाकालेऽमुना शालिकेत्रं विहितमादरात् ॥आनिन्ये सोमया पत्न्या, सहासौ शालितंदुलान्॥ (स्त्री कनकध्वज कुमारने कहे छे के) हे कुमार ! पछी ते सूरिये कयुं के, " मगध नामना देशमा सग्राम Ki नामना गामने विषे खेतीथी आजीवीका चलावनारो स्यामाक नामनो कणवी रहेतो हतो. // 17 // ए क णबीए वर्षाकालमां आदरथी डांगरनु खेतर वाव्यु हतुं, तेथी ते पोतानी सोमा स्त्रीनी साथे डांगरना चोखा घरे लावतो हतो. // 18 // देत्रमार्गे स्थितं जैनमंदिरं वीक्षणचया // सोमा समागता शीर्षे, वहंती शालितंउलान् // 15 // अनत्वा जिनमुःस्था, तीर्थवंदारुसाधुना // बन्नाषे सा महानागे, पुण्यं किंचिधिोयते // खतरना मार्गे जैनमंदिर हतुं, तेथी ते जोवानी इच्छाथी सोमा माथे डांगरना चोखाने उपाडती छती त्यां मंदिरमा गइ. // 19 // सां ते जिनराजने नमस्कार करया विना उभी रहेली सोमाने तीर्थपतिने वंदन करवा आ वेला साधुए कह्यु के, "हे महाभाग ! कांइक पुण्य कर. // 20 // सा प्रोचे हेमुने नूनमस्माकं सुकृतं कुतः॥ नित्यं नवनवक्षेत्रकर्मकर्मग्चेतसाम् // 1 // मुनिः प्रोचेऽस्ति किं शीर्षे, सा जगौ शालितंकुलाः॥ स प्राह चेऊिनाग्रेऽमी, ढोकंते सुकृतं ततः॥ सोमाये कह्यु. " हे मुनि ! नित्य नवां नवां खेतरनां कार्यमा वेहेंचाइ रहेला चित्तवाला अमारे पुण्य क्या- XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust 16
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS थी होय ? // 21 // मुनिये कह्यु. " दारा माथा उपर शुं छे ? " सोमाए कह्यु " डांगरना चोखा छे. " मुनिas ये फरी कह्यु के, जो तुं ते जिनेश्वरनी आगल मके तो तेथी तने पुण्य थाय. " // 22 // | साकतान् ढौकयामास, जिनं नत्वा मुनेगिरा // नानाम्यहम्मकृत्वेदमित्यन्निग्रहमग्रहोत्॥३॥ * वर्षाकाले महामेघे, नशंवर्षति नूतले // नोजनं न तयाकारि, ह्यकृत्वाक्षतपूजनम् // 5 // ___ पछी सोमाए चोखा मूक्या अने जिनेश्वरने नमस्कार करीने मुनिनां वचनधी " हुँ आ प्रमाणे करथा विना भोजन करीश नहि." एवो अभिग्रह लोधो. // 23 // कोइ वखते चोमासानां पृथ्वी उपर महामेघ बरसवा लाग्यो, जेथी ते सोमाए अक्षत चोखाथी जिनराजनुं पूजन करया विना भोजन करयुं नहि. // 24 // दिनत्रयं महावृष्टिं, कारंकारं घने स्थिते // कृतोपवासत्रितया, प्रासादं प्रति साचलत् // 25 // * अंतरा उस्तरानयां, प्राप्ते पूरेऽपि साविशत् // स्तोकं जलमिति ज्ञात्वा, पयसा च प्रवाहिता - त्रण दिवस सुधी महावृष्टि करतो एवो मेघ रह्यो एटले जेने त्रण उपवास थया छे एवी ते सोमा जिनराजना मंदिर तरफ चाली. // 25 // रस्तामा दुस्वरनदीमा पूर आव्युं हतुं तोपण ते मापा "थोडं पाणी छे." एम जाणी तेमां पेठी अने पाणीना प्रवाहमा तणाइ. // 26 // अहतान् ढोकयाम्येषा, जिनाग्रेऽहं कथंचन // चिंतयंतीति सा मृत्वाधुना तव सुतानवत् 27 एतस्याःसमये नर्ता, मृत्वा सोऽयं शुकोऽन्नवत्॥अन्योन्यमनयोः स्नेहस्तेनायं दृश्यतेऽधिकः ए सोमा " हूं जिनेश्वरनी आगळ आ चोखाने शी रीते मूकुं." एम चितवन करती उती ते मृत्यु पामीने हवणां तारी पुत्री थई छे. // 27 // पछी अवमरे ए सोमानो पति ते स्यामाक कणवी पण मृत्य पामोने पोपट थयो छे. ए कारणथी आ बन्नेनो परस्पर आवो अधिक स्नेह देखाय छे. // 28 // जिनस्यादतपूजातः, सेयं तव सुतान्नवत् // तिर्यक्योनौ पुनर्जझे, तना पुण्यवर्जितःrum इति श्रुत्वा तयोर्जाता, जातिस्मृतिरय दणात् // अपुण्यकारिणं स्वं च, स निनिंद शुकस्तदा // KXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गणत च PP.AC.Gunratnasuri M.S. - जिनराजनी अक्षतवडे पूजा करवाथी ते भा त्हारो कमला पुत्रो थइ छे. वलो पुण्यरहित एवो ते सोमानो पति तिर्यच योनीमां आ पोपट थयो छे." // 24 // (स्त्री कनकध्वज राजकुमारने कहेने के,) मुनिनांएवां वचन सांभलीने पछी क्षणमात्रमा ते कन्याने अने पोपटने जातिस्मरण ज्ञान थयुं अने तेथी ते वखते ते पोपट अपुण्यकारो एवा पोतानी निंद्या करवा लाग्यो. // 30 // नरो न रोचते कोऽपि, वरोऽस्या नविता न वा // श्रेष्टिनोक्ते गुरुःप्रोचे,शुको नर्ता नविष्यति॥ जने हसति सर्वस्मिन् , सूरिःप्रोचेऽत्र पत्तने // वत्सरांते शुको मृत्वा, नावी धनपतेः सुतः 35 वली " कोइ पुरुप ए पुत्रीने रूचतो नथी, माटे एने पति मलशे के नहि ?" एम शेठे पूछयु एटले गुरुए al कह्यु के, " आ पोपट एनो पति थशे."॥ 31 // मूरिनां आवां वचन सांभलो सर्वे माणसो हसवा लाग्या एटले सूरिये फरी कह्यु के, एक वर्ष पछी आ पोपट मृत्यु पामीने आज नगरमां धनपति शेठनो पुत्र थशे // 32 // एषापि पंचवर्षांते, निश्चितं मृत्युमाप्स्यति // तवैव नविता पुत्री, नाम्ना कनकसुंदरी॥३३॥ एतयोस्तारतारुण्यमाप्तयोः करपीऽनम् // नविताकृतपूजातः, सुखमप्यतं तयोः // 3 // तेमज आ कन्या पण पांच वर्ष पछी निश्चय मृत्यु पामशे, अने त्हारोज कनक नामनो पुत्रो थशे ॥३३॥उत्तम एवी युवावस्थाने पामेला ते बन्नेनो विवाह थशे अने अक्षतवडे पूजन करवायो तेमने अखंडित एवं मुख पण प्र प्राप्त थशे." // 34 // स्वसुता शुकयोवृतं, श्रुत्वेति मुनिपुंगवात् ॥श्रेष्टी नक्त्या च तं नत्वा, सपुत्रोको गृहं ययो॥ जिनपूजा परं पुण्यमिति निश्चित्य मानसे // कुरुते कारयत्येनं, शुकं साइतढौकनम् // 36 // (स्त्री कनकध्वज कुपारने कहे छे के, ) हे कुमार ! ए प्रमाणे मुनिराजथी पोतानी पुत्री अने पोपटना वत्तांतने सांभळी अने ते मुनिने भक्तिथो वंदना करो पुत्रीसहित शेठ पोताना घरे गयो. // 35 // पछी ते आ पोतेज कन्या "जिनराजनो पूजा एज उत्तम पुण्य" एम मनमां निश्चय करोने पोते जिनेश्वर आगल अक्षत के छे अने पोपट पासे मूकावे छे. // 36 // Jun Gun Aaradhak Trust शा
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________________ PPA Guntrast MS इति श्रुत्वा तयोर्वृत्तं, कुमारः कनकध्वजः // अवता कृते नावं, विशेषेण वनार सः // 37 // | तदा पारापतः कोऽपि, तत्रैव जिनमंदिरे॥लेखं मुमोच तत्पाणौ, सोऽपि वाचयतिस्म तम्॥ __आ प्रमाणे ते कन्या अने पोपटनां वृत्तांतने सांभलीने ते कनकध्वजकुमार. पण अक्षतवडे जिनेश्वरनो पूजा करवाना भावने विशेषे धारण करवा लाग्यो. // 37 // ते वखते कोइपण पारवे तेन जिनमंदिरमा कनकध्वज कुमारना हाथमां पत्र मूक्यो. कुमार पण ते पत्रने वांचवा लाग्यो. // 38 // स्वस्तिलंकामहादीपाद्विल्लोषणपुरादतः // रामदेवानिधः श्रेष्टो, कुमारं कनकध्वजम् ३ए वदत्यदस्त्वयागम्यं, मत्पुत्रीकरपीडने // वाचयित्वेति तं लेखं, दधौ चित्रं नरेंड्नुः // 4 // __ स्वस्तिश्री लंका महादीपरूप आ विभोषणना नगरथी रामदेव नामनो शेठ कनकध्वज कुमारने कहे छ के, "तमारे अहिं म्हारी पुत्रीनो साथे लग्न करवा माटे आवq." आवो पत्र वांचो कुमार आश्चर्य पाम्यो.।।३९-४०॥ * यावत्पश्यति तं पारापतं नूपतिनंदनः // तावता नररूपेण, स्कंधमारोप्य सोऽचलत् // 1 // लंकाहीपे स तं नीत्वा, रामदेवगृहेऽमुचत् // रम्यरामाजनोलूलमदंगध्वनि सुंदरे // 2 // पछी राजकुमार कनकध्वज जेटलामां ते पारेवाने जुए छे, तेटलामां ते पारेवो पुरुषरूप धारण करो कुमारने पोताना खभा उपर बेसारो चाली निकल्यो. // 41 // ते पुरुषे पण कुमारने लंकाद्वोपमा मनोहर एवा स्वायोए वगाडेला मृदंगना शब्दे करीने सुंदर एवा रामदेव शेठना घरने विपे मूक्यो. // 42 // , . तत्राष्टौ कन्यकाः सारशृंगाराः पूर्वसहिताः // परिणिन्ये प्रमोदेन, पूरिताः स महोत्सवात् // जाते विवाहे जामाता, स्वसुरं स्माद कौतुकम् // किमिदं स जगावेत छिनीषणपुरे पुरम् // त्यां ते कुमार उत्सवथी श्रेष्ठ सणगारवाली, प्रथमथी तैयार थइ रहेली अने हर्पथी पूर्ण एवो आठ कन्याओने परण्यो. // 43 // विवाह थया पछा जमाई कनकध्वजे सासराने.आ कौतुक पूछयु एटले ते रामदेवे का के."विभीषणना नगर (लंका)मां आ पुर छे // 44 // Jun Gun Aaradha Trust
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________________ PPM Gunun MS श्रेष्टी च रामदेवोऽहमिमा अष्टौ सुता मम // नार्याचतुष्कसंजाताः, समं संजातयौवनाः॥ निमित्तझो जगौ सोमो, मया पृष्टस्तवांगजाः॥ कनकध्वजनूपस्य, नविष्यंति सुवजनाः // // 73 // * वलो रामदेव नामनो हुं शेठ . म्हारे आ आठ पुत्रीयो छे. ते म्हारो चार स्त्रीयोथी उत्पन्न थइ सायेज * यौवनावस्था पामी छे. // 45 // कोइ वखते में सोम नामना निमित्तीयोने पूछयु एटले तेणे कर्दा के, त्हारो पुत्रीयो कनकध्वज राजकुमारनी उत्तम स्त्रोयो थशे. // 46 // / कामिदेवान्निधो यक्षस्ततः संसेवितो मया // तेनानीय प्रदत्तोऽसि, कृतोऽयं च महोत्सवः॥ इति श्रुत्वा स्थितस्तानि जानः सौख्यमनुतम् // विसस्मार निजं स्थानमप्यसौ तद्विमोहितः / ___पछी में कामीदेव नामना यक्षनुं सेवन कर्यु के जेथी तेणे तमने अहिं लावी आप्या अने आ महोत्सव करयो. // 47 // रामदेवनां आवां बचन सांपली त्यां रहेलो तेमन ते पोतानी स्त्रीयोनी साथे अद्भुत सुख भोगवतो अने तेमनाथी मोह पामेलो ते कनकध्वज कुमार पोतानुं स्थान पण विसरी गयो. // 4 // प्राप्तेषु यानपात्रेषु, निजस्थानागतानरान् // विलोक्योत्कंठितो जातः, स्वपित्रोःसंगमाय सः॥ स्वसुरःज्ञातवृत्तांतः, कालोपमसासहि // यकेण स कणानितस्तान्निः सह निजं पुरम् ॥णा - कोइ वखते त्यां लंकाद्वीपमा पोताना देशथी वहाण आव्यां अने तेमां पोताना स्थानथी आवेला माणसोने जोइ कनकध्वज पोताना माता पिताने मलवाने उत्साहवंत थयो. // 49 // आ वात ससरा सोमदेवे जाणी, तेथी तेणे कालक्षेप न करता ते यक्षनी पासे कनकध्वजने ते स्त्रीयो सहित तेना नगरे पहोचाडयो. // 50 // अकस्मादागतं गेहे, प्रियान्निः परिवारितम् // तं प्रेक्ष्य पितरौ प्रीतिं,परमां प्रापतुः प्रगे॥५१॥ अथो हरिर्महीपालस्तस्मै राज्यं प्रदाय सः॥ कृतप्रांतार्दपुण्येन, परलोकमसाधयत् // 5 // ___सवारे ओचिंता घरे आवेला अने प्रियाओथी विंटलायला तेने जोइ माता पिता बहु हर्ष पाम्या. // 51 // पछी ते हरि राजाए ते कनकध्वजने राज्य आपी पोते अंते अरिहंत धर्मना पुण्यथी परलोक पाम्यो. // 52 // Jun Gun Aaradhat Trust 3 //
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________________ P.P.Ad Gunratnasuti MS AS कनकध्वजन्नूपालः, पालयन् वैनवं निजम् // समयं गमयामास, तानिःसह मुधामयम् 53 अन्यदासौ बहिर्गछन् , केनापि प्रीतिशालिना // पुंसा प्रोचे समागत्य, त्वयाहमुपलक्षितः 54 ___ कनकध्वज राजा पण पोताना वैभव- पालन करतो छतो ते स्त्रीयोनी साथे अमृतमय समयने निर्गमन करवा लाग्यो. // 53 // कोइ वखते कनकध्वज राजा वहार जतो हतो, एवामां प्रीतिवंत एवा कोइ पण पुरुषे आवीने कह्यु के,"तमे मने ओलख्यो ?" // 54 // शुकजीवोऽस्म्यहं प्राप्तजातिस्मरः निजप्रियः॥ श्रुत्वेति पूर्ववृत्तांतं, स्मृत्वा प्रोतिमवाप सः॥ तं कृत्वा सौ हयारुढं, सह नीत्वा बहिर्ययौ // तावता तत्रसंप्राप्ता, मुनिशेखरसूरयः // 56 // ___“पोताने प्रीय एबुं प्राप्त थयुं छे जातिस्मरणज्ञान जेने एवो हुँ पोपटनो जीव छ." ते पुरुषनां आवां वचन सांभली अने पूर्वनुं वृत्तांत संभारी कनकध्वज राजा हर्ष पाम्यो.॥५५॥ कनकध्वज राजा ते पुरुषने अश्व उपर बेसारी साथे लइ जेटलामां बहार गयो तेटलामां त्यां मुनि शेखरसूरि आव्या. // 56 // झानिनस्तानृपो नत्वापृचत्पूर्वनवं निजम् // निःशेषं प्रोचिरे तेच, पुरतस्तस्य विस्तरात् 57 हस्तिनागपुरे श्रेष्टी, धनदत्तानिधोऽन्नवत् // श्रीदनामा सुतस्तस्य, विदधे जिनपूजनम् 57 - राजाए ते ज्ञानिगुरुने नमस्कार करी पोतानो पूर्वभव पूछयो अने मुनिये पण तेनी आगळ विस्तारथी सर्व कर्दा के, // 57 // हस्तिनापुरने विषे धनदत्त नामनो शेठ हतो, तेना श्रीदनामना पुत्रे जिनपूजन करयु.॥५॥ R अदतार्चा कृता पूर्व, मंगलाष्टकपूर्वकम् // अदतं राज्यमेतान्निः, सह प्राप्त त्वया ततः 55 नृपः पूर्वनवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽनवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ॥६॥ . पूर्वे तेणे अष्ट मंगलिक पूर्वक अक्षतवडे जिनराजनुं पुजन करो, तेथी ( श्रीदना जीव रुप ) तने आ आठ As स्त्रीयो सहित अखंडित एबुं राज्य मल्युं छे. // 19 // राजा कनकध्वज पोतानो पूर्व भव सांभली ते वखते जाति स्मरण ज्ञान पाम्यो, तेथी तेणे मुनि पासे विशेषे अरिहंतनो धर्म आदरयो. // 6 // PRXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्र GH PPA Gun MS गुण* मुनि नत्वा गृहे गत्वा, मित्रं धनपतेः सुतम् // कृत्वासौ पुण्यकर्माणि, कुर्वन् राज्यमपालयत्॥ मित्रस्य शुकजीवत्वाचुकनाम ददौ नपः॥ लोकैरपि तथा ख्यातो, ददोऽयं पुण्यकर्मणि 65 _ पछी मुनिने नमस्कार करी घेर जइ अने धनपति शेठना पुत्रने मित्र करो ए कनकध्वज राजा पुण्यकार्य करतो छतो राज्य करवा लाग्यो. // 61 // राजाए मित्रनुं पोपटना जीवपणाथी शुक एवं नाम पाडयुं. पुण्यका र्यने विष चतुर एवो ते शुक पण लोकमां तेवाज नामथी प्रसिद्ध थयो. // 62 // A समये स्वस्य पुत्राय, राज्यं दत्वा निजं नृपः॥ तेषामेवं गुरूणां स, पार्श्वे संयममाददे // 63 // *प्रपाल्य निरतिचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // विहितानशनःप्रांते, सौधर्मे त्रिदर्शाऽनवत् // ____ पछी ते राजाए अवसरे पोताना पुत्रने राज्य आपी तेज ज्ञानि गुरु पासे चरित्र लोधुं. // 63 / / अतिचार रहित उत्तम उज्वल चारित्रने पाली अंते अनशन व्रत लइ ते कनकध्वज सौधर्म देवलोकमां देवता थयो.।६४। चिरं सुखान्यसौ नुक्त्वा, देवलोकात्ततश्चयुतः॥नुपते तनयस्तेऽनृत्तारणाख्यः त्रयोदशः 65 (श्री नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के,) हे भूपति ! ए त्यां बहु काल सुधी देवसुख भोगवी अने पछी ते देवलोकथी चवी त्हारो तारण नामनो तेरमो पुत्र थयो छे. // 65 // ॥इति अहत मंगलपूजाया श्रीद कथा.॥ Jun Gun Andhak Trust धूपपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते // अत्रास्ति नरतत्रे, तामलियाख्यया पुरी॥६६॥ सिंहो महीपतिस्तत्र, सिंहवविक्रमास्पदम् // देवी उद्धनदेवी च, देवीव उर्खन्ना परैः // 6 // जेणे धूप पूजा करी छे तेनुं फल कहेवाय छे. आ भरतक्षेत्रने विपे तामलिप्ती नामनी नगरी छे. त्यां सिंहना सरखो पराक्रमी सिंह नामनो राजा हतो अने तेने वीजाओने दुर्लभ एवी देवीनी पेठे दुर्लभदेवी नामनी स्त्री हती.६७ मा
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________________ KK PPA Gunratnasut MS "श्री काहित्य सुबुझिसचिवस्तस्य, बुधीहंसीसरोवरम् // हंसी नाम्ना प्रिया तस्य, प्रशस्यगुणशालिनी // ते राजाने बुद्धीरूप हंसीने रहेबाना सरोवररूप सुबुद्धी नामनो प्रधान हतो अने ते प्रधानने उत्तम गुणीथो सुशोभित एवी हंसी नामनी स्त्री हती. // 6 // श्रीदत्तो धनदत्तस्य, सुतस्तत्कुदिमागतः // समये स तयासूतः, पिता चके महोत्सवम्॥६॥ अस्य प्रायः सुगंधोऽस्ति, कायः कमलवत्किल // गंधराज इति प्रीत्या, तस्य नाम ददौ पिता // ___हवे धनदत्तनो पुत्र श्रीदत्त ते हंसीना उदरने विषे आव्यो. अवसरे ते हंसीये पुत्रने जन्म आप्यो एटले. en पिताए जन्ममहोत्मव करयो. // 69 / / " घणुं करीने आ पुत्रनुं शरीर कमलनी पेठे निश्चे सुंगंधीवालुं में WALA एम धारी पिताए तेनुं "गंधराज" एबुं प्रीतिथी नाम पाडयु. // 70 // कलाकलापकोशल्यशालो शालीनमानसः // लसल्लावण्यलीलावांस्तारं तारुण्य माप सूः।। 31 अन्येयुः सहितो मित्रैः किमार्थं स ययौ वनम् // सयौवनं नरं लीलातरुं वल्लीव वेष्टयेत् ____ कलाना समूहना जाणपणाथी सुशोभित, सुंदर मनवाळो, लचकता लावण्यनी लीलावालो ते गंधराज उत्तम एवी युवावस्था पाम्यो. // 71 // कोइ वखते वेलोथी विंटलायला वृक्षनी पेठे ते राजकुमार मित्रोथी विंटलायलो छतो क्रिडा करवा माटे वनमां गयो. // 72 // तले तरोरशोकस्य, वीक्ष्य च प्रीतिकारकम्॥ मुनि नत्वा निविष्टोऽसौ, पुरतस्तस्य नक्तिनाक्॥ प्रनो वयसि तारुण्ये, कुतः संयममग्रहोः // इत्युक्ते गंधराजेन, मुनिः प्रोचे निशम्यताम // ___ अशोकवृक्षनी नीचे प्रीतिकारी मनिने जोइ अने तेमने वंदना करी भक्तिवंत एवो गंधराज तेमनी आगळ बेठो. // 73 // " हे प्रभु ! तमे युवान अवस्थामां चाग्त्रि केम लीधुं ?" एम गंधराजे पुछयु एटले मुनिये कडं सांभळ. |74|| XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण *चरित्र.. // PPA G MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXX**** वत्सदेशेऽम्ति विख्याता, कौशाबी नामतः पुरो॥श्रेष्टो च विजयस्तत्र, पवित्र पुण्यकर्मणा॥ विजयश्रोरिति ख्याता, प्रियातस्य क्रियान्विता ॥तयोः पद्माकरः पुत्रः, पद्माकर चामलः॥ वत्स, देशमा प्रसिद्ध एवी कौशांबा नामना नगरी छे, अने त्यां पुण्यकार्य पवित्र एवो विजय ना शेठ | रहे छ. // 75|| ते शेग्ने विजयश्रो एवा नामनी कार्यनिपुण स्त्रा हती. तेओने चंद समान निमेल पद्माकर ना. मनो पुत्र हतो.॥७॥ पद्मश्रीरिति नाम्नास्य, वधुर्विधूसमानना // यां विना सैष शिश्राय, स्वप्ने पि न. परां स्त्रियम् 77 * एकांते कांतया साकं, तयासौ कांतयानिशम् // नाना कोमान्निरकोमदनेषु नवनेषु च // 7 // ए पद्म'करने पद्मश्री एना नामनी चंद्रना समान मुखवाला स्त्रा हती. ए पद्मश्रा विना ए पद्माकरे स्त्रमामां पण बीनी स्त्रीने सेवन करी हती नहि. // 77|| ए पद्माकर निरंतर एकांतमां मनोहर एवी ते स्वानो साथे वनमां अने घरमां नाना पकारनी क्रीमाथी रमनो हतो. / / 78 // अन्येद्यरुथ्थिता प्रातर्मत्तात्रांतलोचना // यत्तजजल्प सा नूमौ, लुलोठ च रुरोद च // 79 // कणं गातं दणं हास्यं, कणं नृत्यं चकार सा // न चकार परं लजां, न वस्त्रस्यापि संवरम् 10 एक दिवस सवारे उठेला ते मदोन्मत्तनी पेठे भ्रांत नत्रवानी पद्मश्री जेम तेम बोलवा लागी अने पृथ्वी उपर लोटवा लागी तेमज गंवा लागी. / / 72 // ते पद्मश्री क्षणमां गीत गाय, क्षणमां हास्य करे अने क्षणमां नृत्य करे, परंतु लज्जा पामे नहि तम वस्त्रने ओढे पण नाह. // 70 // वधूमेवविधां वीक्ष्य, वजनः म्वसुरोऽपि च // द्वावपि व्याकुलौ जातो, चक्रतुस्तत्प्रतिक्रियाम्॥ मिलिता निषजोऽनेके, मांत्रिका जगऽश्च ते // रोगवेतालशाकिन्याकिदोषान् प्रथक् प्रथक् ___ आ प्रकारनी वहुने जोइ तेना पति अने सामरो बन्ने जणा व्याकुल थड गया अने ते ओ तेने उपाय करवा लाग्या. // 85 // अनेक वैद्यो तमज मंत्रिको भेगा थया अने तेओ जूदा जूदा रोग, वेताल शाकिनी विगेरेना दोषो कहेवा लाग्या. // 82 // XXKKXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPA Gunnatut MS XXXXXXXX तत्र रत्नान्निधो मंत्रवादी प्राह निशम्यताम् // दोषस्य निग्रहं कुर्वे, सर्वे तिष्टिति चेजनाः 73 अथासौ मंडलं कृत्वा, गुग्गुलाग्राहपूर्वकम् // निवेश्य तत्र तां मंत्रैरनाषयत मांत्रिकः // 4 // - तेमां रत्न नामना मंत्रवादीये कह्यु. “मान लो. जो सर्वे माण ग उभा रहो तो हुं दोपने दूर करूं. // 3 // पछी ते मांत्रिक गुगलनो धूप करवा पूर्वक मंडल करी अने त्यां ते पाश्रीने वेपारी मंत्रोवडे बोलवा लाग्यो 84 साप्रोचे सैष नूतोऽस्मि, लग्नः कासारसंनिधौ॥ मोक्ष्यामि सर्वथा नैतां, हनिष्याम्येव लीलया अस्याःशोणितमांसान्यामेकविंशतिमाहुतीम् // यदि दास्यथ तजावितव्यं नवति नान्यथा॥ ते वखते ते पद्मश्री बोली. ते या हु भूत छ, तलावने कांठेथी तने वलग्या छं. हुं तेने कोइ रीते छोडीश 'नहि, परंतु लीलाथी मारो नांखीश. / / 85 // जो आ पद्मश्रीना रुधिर अने मांसथी एकविश आहुति आपशो तो ते जीवश, नहि तो नहि जोव. // 6 // अस्या यदि न दोयेत, तन्नर्तुश्च ददातु मे // इत्युक्त्वा विरतो नूतो, सचिंतोऽनूऊनोऽखिलः 7 र कांतानुरागवान्पनाकरो धैर्यधरोऽवदत् // किमिदं प्राणसैन्यासमेतदर्थ करोम्यहम् // 88 // जो आ पद्मश्रीनां रुधिर अने मांमनी आहुति न आपो तो तेना पनिनां साधर अने यांमनी आइति मने आपो."श्रा प्रमाणे कहो भूत न बोल्यो एटले मर्वे माणसो चिंतातुर थया. // 87 // पछी पियाने विषे प्रेघधारी अने धैर्यवत एका पद्माकरे कडुं. आ शरीर शा कामर्नु छ ? माटे हुं तेना माटे म्हारा रुधिरथी आइति आपशि. // 88 // बेदं बेदं स्वमांसानां, खंडानि रुधिरैः समम् // एतस्यामेव पश्यंन्या, जुहाव ज्वलितानले नए अष्टावाहुतयो यावङाता नूतो जगाद तम् // तावदेतेन कार्येण, पूर्ण तुष्टोऽस्मि धैर्यतः // 9 // _ पछी ते पद्माकरे कापी कापीने पोताना गांनना ककडा रुधिर सहित ए पद्मश्री जोतां छनां अग्नियां हाम्या. // 89 // जेटलामा आठ आहुति परी थइ तेटले भूते पद्माकरने कयुं के, " आ कार्य करवावडे हारा धेयथी हुं बहु प्रसन्न थयोछु. / / ए० // XXXXXXXXXXXXXXYYY XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्र. PPC Gurratsuti MS ==XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX तदंगं पाणिना स्पृष्ट्वा, रूढयित्वा च तत्क्षणात् // गते लोऽनवत्तापि, सका हृष्टो जनोऽखिलः यादृक् स्नेहः स्वकांतायामस्य तादृक् परस्य न // इति वार्ता जगत्यासोज्जनानां प्रोतिकारिणो॥ ते पद्माकरना शरीरे हाथ लगाडी अने तेना घाने तुरत रूझवी नाखी भूत चाल्युं गयुं एटले ते पद्मश्री साजी थइ अने माणसो हर्ष पाम्या. // 91 ॥“आ पद्माकरने जेवो स्नेह पोतानी स्त्रीने विषे छे, तेवो वीजा कोइ पुरुषने पोतानी स्त्रो उपर नथी." एवी जगत्मां माणसाने प्रीति करनारी बात थवा लागी. // 92 // अन्यदा सा गवाक्षस्था, पथि यांतं नृपांगजम् // ददर्श सोऽपि दैवात्तां, दृष्ट्वा जातोऽनुरागवान्॥ सापितं तादृशं वीक्ष्य, सानुरागां दृशं दधौ // सोऽफिचमणात्तस्यै, संकेतस्थानमब्रवोत् // कोइ वखते गोख उपर बेठली ते पद्यश्रीये राजपार्गे जता एवा राजपुत्रने दीठो. राजपुत्र पण ते पद्मश्रीने जोइ प्रीतिवंत थयो. // 93 // पद्मश्री पण ते राजकुमारने जोइ अनरागवाली दृष्टीने धारण करवा लागो, तेथी राजपुत्रे भ्रकुटीने भपाववाना मीषथी तेने संकेतस्थान कह्यं. // 94 // A गते तस्मिन्नथोवाच, सा कांतं यदि कानने // गत्वा क्रीडाव आवां तत्प्रीतिर्मनसि जायते 95 *अथ तौ काननं प्राप्तौ, यावत्तावन्नृपांगजः॥ वृक्षांतरे स्थितस्तत्र, यत्र पश्यति सा दृशा॥९६॥ ते राजकुमार गया पछी पद्मश्रीये पोताना पतिने कडं के, " जो उद्यानमां जइने आपणे क्रीमा करीये *तो म्हारा मनमां प्रीति थाय. // 95 // पछी ते बन्ने जणां जेटलामा उद्यानमां गयां तेटलामां राजपुत्र त्यां वृक्षनी नीचे उभो हतो के, ज्यां पद्मश्री दृष्टिथी जोइ रही हती. // 96 // तं निरीक्ष्य गता, सद्यं निजकांतं विहाय सा // पद्माकरो विषादेन, पूरितः सदनं ययौ // 9 // | आत्मियो रूपकः कूटो, वादः किं वणिजा सह // यदि साखलु तादृक्षा, कः कोपस्तनपांगजे॥ ___ पद्मश्री ते राजकुमारने जोइ अने पछी पोताना पतिने त्यजी दइ ते राजकुमार पासे गइ, तेथी अत्यंत द पामेलो पद्माकर पोताना घरे गयो. // 97 // जो पोतानो रूपियो खोटो छे तो पछी वेपारीनी साथे वाद श्यो करवो? जो ते स्त्रीज एवी छे तो पछी ते राजपत्रने विष कोप शा माटे करवो? // 98 // Jun Gun Aaradhak Trust //
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________________ PPA Gunnasuti MS * अग्नौ हुते.मया मांसशोणिते अपि यत्कृते // यदि सा खलु तादृक्षा, धिक् कृतघ्ना श्माःस्त्रियः // ति वैराग्यतः सोऽहं, मातापित्रोरनुझया // गृहोत्वा संयमं प्राप्तो, विहरवत्र संप्रति // 10 // _जेना माटे में अग्निमां मांस अने रुधिर होम्यां तेज स्त्रो जो तेवा थइ तो पछो कृतघ्न एवो खायाने धिक्कार छे. // 99 // (श्री मुनि गंधराजने कहे छे के ) हे कुमार ! एवा वैराग्यथो तेज हुं माता पिताना आज्ञाथो चारित्र लइ विहार करतो हवणां अहिं आव्यो छं. // 10 // श्रुत्वेति गंध राजोऽपि, विरक्तः स्त्रीषु तं मुनिम् // नत्वागत्य गृहं मातापितरौ स्वौ व्यजिज्ञपत् // | गृहोष्याम्येव चारित्रमादेशो मम दोयताम् // तावूचतुर्न जीवठ्यामनुज्ञा तव दोयते // 12 // मुनिराजनां आवां वचन सांजली गंधराज पण स्त्रोयोने विष विरक्त थयो छतो मुनिने नमस्कार करो घर आवोने पोताना माता पितानो आ प्रमाणे विनंतो करवा लाग्यो. // 101 // " हे मात पिता! हुं चारित्र लइश, माटे मने आज्ञा आपो." तेओए कयु " अमे जोवतां तने आज्ञा आय नहि. // 102 // ततःस्थितोऽसौ वैराग्यरंगणैव निरंतरम् // तदा उलनदेवीतः, सुतैका नूपतेरनूत् // 13 // दृष्ट्वा तामतिगंधां, दासिकास्तत्यजुर्वने // देव्यै तु कथयामास, मृता जातेति ताःपुनः 104 पछी ते गंधराज निरंतर वैराग्यवासित थइने घरमा रहेवा लाग्यो. आ वखते सिंह राजाने दुर्छन पट्टराa णीथी एक पुत्री प्राप्त थइ. // 103 // ते पुत्रीने बहु दुर्गंधवालो जोइ दासीयोए वनमां त्यजो दीधी अने वलो तेओ पट्टराणीने “ए पुत्री मृत्यु पामेली जन्मी हती." एम कयु. // 10 // ततः षोडशवर्षेषु, व्यतीतेषु नृपोऽन्यदा // प्राप्तपुरां नदी इष्टुं, ययौ कौतुकपुरितः // 105 // आगळती जले दृष्ट्वा, मंजूषा नूपतिस्ततः॥ आकृष्योद्घाट्यामास, दृष्टा काचिदिहागना 106 __पछी शोल वर्ष वीती गयां एटले कोइ वखते आश्चर्यवंत एवो सिंह राजा पुर आवेली नदीने जोवा माटे गयो. // 105 // त्या राजाए पाणीमां तणाती आवती पेटीने जोइ तेने वहार कढावीने उघडावी तो | तेमां तेणे कोइ स्त्रीने दोठी. // 106 // KXXXXX*KKKKK2SKKKisikikikikikikxxKkKXYYYY Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ c.Gunratnasun M.S. गुणशयाना निंबपत्रेषु, मोलितादी विचेतना // सर्पण दृष्टा विज्ञाता, नून्नुजा सागलणेः 107 चरित्र मणिना बाहुरकस्य, तत्कणं निर्विषीकृता॥ आनिन्ये सा गृहं राझ्या, मान्या लावण्यतोऽनवत्॥ // 7 // ... राजाए लीवडाना पानडामां सूतेली, आंखो बंध करेली अने चेतना रहित एवी ते स्त्रीने अंगलक्षणथी सर्प न डंप दीधेली जाणी. // 107 // पछी राजा बाहुरक्षना मणिथी तुरत विष रहित करेली ते स्त्रीने घरे लाव्यो. ते स्त्री पण लावण्यने लीधे पट्टराणीथी पण मान्य थइ. // 108 // . न कस्या अपि देव्या मे, पुत्रः संप्रति वर्तते / तदिमां परिणेप्यामि, सुतार्थ शुनलक्षणाम् // इति ध्यात्वा नृपस्तस्याः पाणिगृहणहेतवे // गणर्गणयामास, लग्नं शुई विशेषतः // 11 // ____“हवणे म्हारे कोइ पण स्त्रीने पुत्र नथी तो पुत्रने अर्थे आ शुभ लक्षणवाली स्रीने हुं परणीश. // 109 // आ प्रमाणे विचार करी राजा ते कन्यानी साथ विवाह करवा माटे जोशी लोकोनी साथे विशेषे शुद्ध एवा लग्नने जोवा लाग्यो. // 11 // इतश्च तत्र संप्राप्ताः श्रीपुण्यप्रनसूरयः // तया च पट्टदेव्या तान् , साकं नंतुं नृपो ययौ॥१११ वंदित्वा तानपोऽवादो उपदेशः प्रदीयताम् // ते प्रोचुरुपदेशैः किं, पुरतस्ते प्रजायते // 11 // एवामां त्यां श्रीपुण्यप्रभ मूरि आव्या एटले राजा ते नवीन पट्टराणी सहित तेमने वंदना करवा गयो. // 111 // राजा ते मुनीश्वरने वंदना करीने बोल्यो के, " अमने उपदेश आपो." पछी ते सूरिये कयुं के. " हे प्रजापति ! त्हारी आगल उपदेशे करीने शुं ? / / 112 // * असंबईमिदं तेषां वाक्यं श्रुत्वा नृपो जगौ॥ कः प्रजापतिरत्रास्ति, ते प्रोचुःसत्वमेव हि 113 नृपेण कथमित्युक्ते, प्रोचुस्ते दक्षिणे स्थिता // एषा कन्या सलावण्या, गंगजा तव नूपते // . तेओर्नु आवु अयोग्य वचन सांजली राजाए कह्यं के, " अहिं प्रजापति कोण छे ?" तेश्रोए कह्यं के, * "निश्चे ते तुं पोतेज छे. // 1.13 // राजाए " हुं शी रीते प्रजापतिछ ? एम पूछयु एटले तेओए कह्यु के, "हा / भूपत ! निश्च दक्षिण बाजुए बेठेली आ लावण्यवाली कन्या हारी पुत्री थाय छे. // 11 // RXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun A da Trust
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________________ P.PA. Gunratnasuti MS जन्मन्येता सुदर्गंधां, तत्यजुर्दासिका वने // क्रमेण कर्मयोगेन, तस्या बुगंधता गता // 115 // नारडपक्षिणा नीता, देशं मालवनामकम् // आरामे कापि तेनासौ, जीवंतीति समुकिता // ____ जन्मने अवसरे आ दुर्गधा पुत्रीने दामीयोए वन त्यजी दीधी हती. अनुक्रमे कर्मना योगथी तेनी दुगंध गइ. // 115 // पछी भारंड पक्षी तेने मालव देशमा लइ गयु. त्यां तेणे कोश उद्यानमां ते कन्याने जीवतीज त्यजी दीधी. // 116 // तत्र खेटपुरं नाम पुरमस्ति महर्दिकम् // रामदेवस्ततश्चारामिकः स्वाराममाययौ // 117 // पतिता वोदिता तेन, प्राग्जन्मजनकेन सा, गृहीत्वा निजकांतायै, समर्प्य प्रतिपालिता 118 ___त्यां खेटपुर नामनुं महामृद्धिवालुं नगर हतुं, ते नगरथी रामदेव नामनो माली ते पोताना उद्यानमां आव्यो. // 117 // पूर्व जन्मना पिता एवा ते मालीये त्यां उद्यानमां पडेली ते कन्याने जोइ अने लइ पोतानी स्वाने सोपीने तेनुं पालन करयुं. // 118 // आराममध्ये लब्धेयमिति वत्सलचेतसा // आरामनंदिनी नाम, तस्यास्तेन विनिर्ममे 11 जाता षोडशवर्षीया, दृष्टा सर्पण चान्यदा // मंत्रैः कृतप्रतीकाराप्यसाध्येति विनिश्चिता 120 ___ पछी प्रीतिवंत चित्तवाला ते रामदेव मालीये " आ पुत्री मने आराम (वगीचा ) मध्येथी मली छे." एम धारी तेनुं "आरामनंदिनी नाम पाडयं. // 119 // ते पुत्री अनुक्रमे शोल वर्षनी थइ, एवामां कोइ दिवस सर्प तेने डंश दोधो. मंत्रोथी बहु उपायो करया तोपण ते असाध्यज रही. // 120 // मंजूषायां च निक्षिप्य, नदोपूरे प्रवाहिता // आयातात्रगृहोतेयं, त्वया कौतुकतस्तदा // 11 // पालिता फलराजीवदय नोक्तं त्वयेष्यते // अहो व्यामोहवृक्षाणामालवालायतेऽवलाः 122 तेथी पेटीमां घालीने तेने नदीना पूरमां तणाती मूकी ते अहिं आवी. ते वखते आ कन्याने ते कौतकथी ग्रहण करी. // 121 // फल समूहनी पेठे पालन करी अने पछी तुं तेनेज भक्षण करवानी ( भोगववानी ) इच्छा करे छे. आश्चर्य छे के, स्त्रोयो पोते आ मोह वृक्षोना क्यारारूप बनी जाय छे. // 12 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्र गुण न PP.AC.Gunratnasun M.S. श्रुत्वेति नूपतिः प्रोचे,घिधिग् मे इष्टचिंतितम् // केनाप्ययो विवाह्येता, गृहीष्ये संयमं ध्रुवम् इत्युक्त्वा नूपतिर्नत्वा, सूरिज्ञन् सपरिबदः॥ गृहमागत्य नुक्त्वास्या, योग्यं वरमचिंतयत् // ____ मुनिनां आवां वचन सांभली राजाए कह्यु के, म्हारा दुष्ट विचारने धिक्कार छे ! धिक्कार छ !! हवे हुं आ पुत्रीने कोइनी साथे परणावीने निश्चय धारण करीश. // 123 // आ प्रमाणे कहीने परिवार सहित राजा मुनिने नमस्कार करी घरे आवी भोजन करीने ते कन्याना योग्य वरनो विचार करवा लाग्यो. // 124 // तस्यामेव त्रियामायां, जन्मकण इव क्षणात् // तस्या शरीरे दौगंध्यदोषः पोवमवाप सः॥ * विनाते विविधैवैद्यवचनैर्वसुधाधवः // औषधं कारयामास, तस्या आरोग्यहेतवे // 156 // . हवे तेज रात्रीमां जन्म अवसरनी पेठे क्षणमात्रमा ते पुत्रीना शरीरे ते दुर्गधनो दोष प्रगट थयो. // 125 // प्रभाते राजाए विविध एवा वैद्यना कहेवा प्रमाणे ते पुत्रीना आरोग्यने माटे औषध कराव्युं. // 126 // अनिरुजितामालोक्य, नीरजाहां नरेश्वरः॥ चिंतातुरो गुरुं नंतुमगात्तुर्य दिने पुनः // 127 // तस्याः स्वरूपे नूपेन, कथिते सति सूरयः॥ प्रोचिरे प्रायसः पुण्यांतरायः प्रचुरा नृणाम् // ___राजा पुत्रीने रोग रहित न जोइने चिंतातुर थयो छतो फरी चोथे दिवसे गुरुने वंदन करवा गयो. // 127 // त्यां राजाए ते पुत्रीनी वात कही एटले सरिये कह्यु के, माणसोने घj करीने पुण्यना अंतरायो होयछे / 128 // नूपःप्रोचे प्रन्नो यो मे, संयमस्य मनोरथः॥ ससेत्स्यति न वा तस्या, नैरुज्यं वा नविष्यति // * नैरुज्यं च विना तस्या, विवाहेऽप्यकृते सति // संयमो नोचितो नूनं, हृदये रोचतेऽपि मे // राजाए कयु. " हे प्रभो ! म्हारो जे संयम लेवानो मनोरथ छे ते सिद्ध थशे के नहि अने ए पुत्री रोग रहित थशे के नहि ? // 12 // // वली ते पुत्रीना रोग रहित थया विना अने तेनो विवाह करया विना मने पण योग्य एवो संयम लेवो रुचतो नथी. // 130 // Jun Gun Aaradhat Trust
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________________ PPA Gunratnasuti MS प्रनो ज्ञानधनोऽसि त्वं, झानिनां नास्त्यगोचरः // मम संदेहसंदोहमपाकुरु कृपां कुरु॥१३१ / सूरिः प्रोवाच नोनूप, नविता तव संयमः॥ भविष्यति च नैरुज्यं, तस्याः कित्वस्ति कौतुकम् / हे प्रभो ! तमे ज्ञानधन छो, वली ज्ञानियोने कांइ अजाण्युं होतुं नथी, माटे कृपा करी म्हारो संदेह समूह * दूर करो." // 131 // सूरिये कह्यु. " हे भूपति ! तने चारित्र लेवाशे अने तेने निरोगीपणुं थशे; परंतु एक * कौतुक छे. // 13 // - नैरुज्यं न विना पाणिगृहं तच्च विना न तत् // अन्योन्याश्रयदोषोऽत्र, कथमेकं निरस्यताम् // एवंविधायास्तस्याः कः, परिणेता नविष्यति // विना पाणिगृहं तस्यारारोग्यं जायते नहि॥ रोगरहित विना पाणिगृहण थाय तेम नथो अने पाणि गृहण करया विना निरोगोपणुं थाय तेम नथो. आम परस्पर दोष आवी पडयो छे. तो एकनो शी रीते नाश थाय?॥ 133 // आवी रोगवाली ते कन्याने IN कोण परणशे, अने परण्या विना तेनुं आरोग्य थाय तेम नथो."॥ 134 // श्रुत्वेति चिंतया चांतःचेतसि वितिपे नृशम् // तापं बिज्रति सूरीस्तं सिषेच वचोऽमृतै // यदा पाणिगृहं तस्या, गंधराजः करिष्यति // तदा सुगंधतां सर्वामपि सो हि हरिष्यति॥१३६ आवां मुनिनां वचन सांभलो राजा चिंताथी मनमां बहु ताप पामवा लाग्यो एटले सुरीश्वरे तेने वाणीरूप 2 अमृतथी सींचन करयो के, // 135 // ज्यारे गंधराज ( प्रधाननो पुत्र ) ते तमारो पुत्रीनो पाणिगृहण करशे. त्यारे ते कुमार तमारी पुत्रीनी सर्व दुर्गधने दूर करशे. // 136 // श्रुत्वेति सदनं प्राप्तो, नृपः सचिवमूचिवान् // कारय स्वसुतं पाणिग्रहे मे कन्यया सह॥१३७ कृतांजलिरसौ प्रोचे, सुतो वैराग्यवासितः॥ आस्तां विवाहो नारीणां, नामापि सहते नहि // __ मुनिना आवां वचन सांभली पोताना घरे गयेला राजाए प्रधानने कयुं के, " म्हारी पुत्रीनी साथे / त्हारा पुत्रनुं लग्र कर. // 137 // हाथ जोडी प्रधाने कडं. “महाराज! म्हारां पुत्र वैराग्यवासीत थयो तेथी विवाह तो दर रह्यो; परंतु स्त्रोर्नु नाम पण सहन करतो नथो." // 138 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्र 15. PPA Gunun MS गुण विसृज्य मंत्रिणं नूपः, स्वांते बुद्धिं व्यचिंतयत् // तत्पाहणं तेन, यया स्याक्रियते तथा // प्रायो येनाध्वना याति, गंधराजो दिनात्यये // निर्णीयस्थानके तत्र, नूपो गर्नामचीखनत् // _ पछी मंत्रीने रजा आपी राजा पोताना मनमा विचार करवा लाग्यो के, "ते गंधराज म्हारो पुत्रानो साथे लग्न करे तेम म्हारे करवू जोइये."॥१३९॥ पछी वणुं करीने जे मार्गे सांजे गंधराज जाय छे तेनो निर्णय करीने ते स्थानके राजाए खाइ खोदावो. // 140 // शिक्षयित्वा सुतां देव्याः, सखीं चैकां नरेश्वरः॥ प्रेषयामात गर्तायाः, संनिधौ वासरात्यये // सुखेन मध्येग तां, निवेश्य प्रथमं सखी॥ आयातं गंधराजं च, दृष्ट्वा पूत्कारमातनोत् // 142 पछी राजाए पोतानो पुत्रोने शखिवीने अने एक राणीनी दासीने शीखवाने ते बन्नेने सांजे ते खाइनी पासे मोकल्यां. // 141 // दासीये पण प्रथम ते राजपुत्रीने खाइ मध्ये सुखेथी उतारीने पछी गंधराजने आवतो जोइ पोकार करवा लागी.॥ 14 // नोलोका धावत विप्रं, गंधराज त्वरांनज // गर्गयां पतिता बाला, कृष्यतां म्रियतेऽन्यथा // आकर्ण्य गंधराजस्तत्, कृपापूरितमानसः॥ धावित्वा दक्षिणं हस्तं, तामाकृष्टुमदात्तदा॥१४४ . हे लोको झट दोडो, अरे गंधगज उतावल करो. आ खाइमां पडेली कन्याने काढो, नहितो ते मरी जशे. * // 143 // कृपाथी पूर्ण मनवाला गंधराजे ते पोकार सांभलीने ते वखते दोडीने तेणे कन्याने खेंची काढवा पोतानो जमणो हाथ आप्यो. // 144 // करेण दक्षिणेनेयं, गृहीत्वा तत्करस्थिता // गता जुर्गंधता दोषा, तेनाकृष्य बहिष्कृता॥१५॥ बहिर्गता सा तत्पाणिं, मुमुचे मोचितापि न // शुन्नलग्ने गृहोतोऽयं, न मया मुच्यते करः // - जमणा हाथवडे ए कन्याने ग्रहण करी अने पछी तेना हाथमा रहेली दुर्गधता जती रही. कुमारे पण तेने खेंचीने खाइनी बहार काढी. // 145 // खाइ बहार निकल्या पछी कुमारे पोतानो हाथ छोडावा मांडयो, पण कन्याए छोडयो नहि, वली ते कहेवा लागी के, में शुभ लग्ने ग्रहण करेलो हाथ हवे मूकाय नहि. // 146 // KAKXXXXXX******XXXXX Jun Gun Aaradhak Trust // 9 //
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS तत्दणं मिलिता लोकाः, परेऽपि स्वजना अपि // नूपतिस्तत्पिता चापि, सर्वेऽप्येवं बनापिरे॥ श्यं बाला विशालाको, वरं त्वामेव वांचति // ततो विवाहं मन्यस्व, कागेन्यं नोचितं तव // आ वखते तुरत बीजा अने पोताना माणसो एकठा थइ गया. राजा अने ते गंधराजनो पिता (सुबुद्धि) पण आव्या अने सर्वे एम बोलवा लाग्या के, // 147 ॥"आ विशाल नेत्रवाली बाला तनेज पोतानो पति इच्छे छे, माटे विवाह कबुल कर. कारण तने योग्य कठीणपणुं नथी." / / 148 // श्त्यर्थितोऽसौ नूपेन, जनैस्तैः स्वजनैरपि॥ प्रशस्तांगोमुपायंस्त, तां महोत्सवपूर्वकम् // 14 // तत्पाणिमोचने तस्मै, राज्यं राजा निजं ददौ // समं वरवधूच्यां च, गुरुपादानवंदत॥१५०॥ ए प्रमाणे राजाए, बीजा माणसोए अने स्वजनोए पण विनंती करेलो गंधराज ते मनोहर अंगवाली कन्याने महोत्सव पूर्वक परण्यो. // 149 // ते कन्याना हस्तमेलाप वखते ते गंधराजने राजा सिंहे पोतार्नु राज्य आप्यु. वली ते वहु वरे साथेन गुरुना चरणने वंदना करी. // 150 // अप्रादोच्च प्रनो कस्मात्पुत्र्या सुगंधतान्नवत् // प्रनावो गंधराजस्य, करे केन च कर्मणा // सूरिः प्राह पुरा हेमपुरे श्रेष्ठी शिवोऽन्नवत् // कमलाविमलानाम्न्यौ, है नार्ये तस्य बंधुरे // वली राजाए सूरिने पूछयु के, " हे प्रभो ! शा कारणथी पुत्रीने दुर्गध थयो अने गंधराजना हाथने विषे * कया कर्मथी एवो अद्भुत प्रभाव थयो ?" || 151 // सूरिये कह्यु. “पुर्वे हेमपुर नगरमां शिव नामनो शेठ रहेतो * हतो, ते शेठने कमला अने विमला नामनी उत्तम वे स्त्रीयो हतो. // 15 // पूजयंतो जिनं प्रोचे, विमला कमलां प्रति॥ तमानीयतां धूपो, गंधपूजां करोम्यहम् // 153 साप्रोचे कर्मकुर्वाणा, विना गंधं नवेन किम् // जिनेश्स्याप्यहो देहे,कापि धुगंधतास्ति किम। कोइ वखते जिनराजनुं पूजन करतो विमलाए कमलाने कछु के, "तुं झट धूप लावो आप, हं गंधपजा करुंडूं." // 153 // कमला घरनुं काम करती हतो तेथी तेणे उत्तर आप्यो के, "धूप विनाशं पजा नथी थतो ? अहो ! जिनेश्वरना देहने विषे पण काइ दुर्गधता रहि छे के शुं ? // 15 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण // RUN P.P.A. Gunratnasuti MS एवं हसंती संप्राप्तसाध्वीयुगलकेन सा // नाषिता हेमहानागे, जिननिंदा करोषि किम् // 155 सा मिथ्याःकृतं दत्वा, कमयामास तत्क्षणात् // एवं हितोयवेलायामपि तस्यास्तथान्नवत् ... ए प्रमाणे हसतो एवी कमलाने त्यां आवेला बे साध्वायोए कयुं के, " हे भाग्यवतो ! तुं | जिनराजनी निंदा करे छे ? // 155 // कमलाए मिथ्यादुःकृत आपो तुरत क्षमा मागो. ए प्रमाणे वीजी वखत पण तेने तेज प्रमाणे थयु.॥ 156 // तथाच मुदिता चित्ते, तस्मै साध्वोझ्याय सा // दानं ददौ ततो नोगफलकापि चार्जयत्॥ मृत्वा सा ते सुता जाता, जिननिंदोबकर्मणा // प्राप्त दुर्गंधतादोषो, वारघ्यमनूततः॥१५॥ वलो पण चित्तमां हर्ष पामेली ते कमलाए ते वन्ने साध्वीने दान आप्यु, तेथा तेणे वलो भोगफलकर्म पण मेलव्यु. // 157 // ( सूरिसिंह राजाने कहे छे के,) पछो ते मृत्यु पामीने त्हारी पुत्रो थइ छे. जिननिंदाथी उत्पन्न थयेला कर्मने लीधे तेने वे वार दुर्गधतानो दोष प्राप्त थयो. // 158 // दानपुण्यप्रनावेग, राज्यसौख्यमुपेयुषी // आरामनंदनी सेयं, क्रमात्स्वर्गमुपष्यति // 159 // प्राच्यजन्मन्यसौ गंधराजः श्रीहस्तिनापुरे // श्रेष्टिनो धनदत्तस्य, श्रीदत्ताख्यः सुतोऽनवत् // ___ दानपुण्यना प्रभावथी राज्य सुखने पामेलो ते आ आरामनंदनो अनुक्रमे स्वर्ग पामशे. // 159 // वली आ गंधराज पूर्व जन्मने विषे हस्तिनापुरमां धनदत्त शेठनो श्रीदत्त नामनो पुत्र इतो. // 160 // पूजायां क्रियमाणायां, धूपपूजामुना कृता // तेन पुण्यप्रनावेश, प्राज्यराज्यमन्नूदिदम् // धूपपूजाविशेषेण, प्रन्नावोऽस्य करेऽन्नवत् // यथा तव सुता नीरुक, तथान्योपि नवत्यतः॥ पूजा करे छते ए श्रीदत्ते धूप पूजा करी हती तेथी ते पुण्य प्रभावथी तेने आ भवमां आ महा समृद्धिवंत राज्य मल्यु. // 161 // धूप पूजाना विशेषपणाथो आ गंधराजना हस्तने विषे प्रभाव थयो. जेम त्हारी पुत्री रोग रहित थइ तेम बीजा पण तेथी निरोगी थशे."॥ 162 // Jun Gun Aaradhak Trust 9 //
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________________ PPA Gunun MS as श्रुत्वा पूर्वनवं गंधराजो जातिस्मरोऽनवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपदे गुरुसंनिधौ // 163 // | नृपः सिंहस्ततःपार्श्वे, सूरेः संयममग्रहोत् // गंधराजः पुरं गत्वा, निजराज्यमपालयत्॥१६॥ - गंधराज पोतानो पूर्वभव सांभली जातिस्मरण ज्ञान पाम्यो, तेथी तेणे गुरु पासे विशेष अरिहंतनो धर्म A आदरयो. // 163 // पछी सिंह राजाए मूरिनी पासे चारित्र लीधुं अने गंधराज नगरमा जइ पोताना राज्यनु पालन करवा लाग्यो. // 164 // अन्यदा तत्र संप्राप्ता, जयशेखरसूरयः॥ धर्मोपदेशं गत्वासौ, शुश्राव सपरिचदः // 165 // आरामनंदनो कुरिजातं नंदननामकम् // राजा न्यस्य सुतं राज्ये, तेषां पार्वेऽग्रहोदतम् // कोइ वखते त्यां जयशेखर सूरि आव्या. परिवार सहित राजा गंधराजे सूरि पासे जइ धर्मोपदेश सांभल्यो. // 165 // पछी गंधराजाए आरामनंदनीना उदरथी उत्पन्न थयेला नंदन'पुत्रन राज्य सौंपी पोते ते गुरु पासे चारित्र लीधुं. // 166 // प्रपाल्य निरतिचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽन्नवत् // | चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततश्चयुतः // तनयस्तव संजझे, चक्रपाणिश्चतुर्दशः 168 __ अतिचार रहित श्रेष्ट नज्वल एवा चारित्रने पाली अंते अनक्षन लइ ते गंधराज सौधर्म देवलोकमां देवता थयो. // 167 // (श्री नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के, ) हे राजन् ! ए बहु काल सुख भोगवी त्यांची चवीने त्हारो चउदमो चक्रवाणि नामनो पुत्र थयो छे. // 168 // // इति धूप पूजायां श्रीदत्त कथा समाप्त. // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPC Gurut MS गुण गोतपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते // अस्ति जांबुनदं नाम, नगरं कुरुममले // 16 // // चरित्र // 9 // महीपालान्निधो नूपस्तत्र रूपमनोनवः॥ तस्य रूपवतो नार्या, नामतः परिणामतः॥१७॥ (नरवर्मा केवली गुणवर्माने कहे छे के,) जेणे गीतपूजा करो छे, तेनुं फल केहेवाय छे. कुरुदेशमां जांबुनद मर्नु नगर छे. // 169 // त्यां रूपथी कामदेव समान महीपाल नामनो राजा हतो, तेने नाम सरखा गुणवालो रुपवती नामनो खो हती. // 17 // तनुजो धनदत्तस्य, शंखस्तत्कुदिमागतः॥ समये स तयासूत, पिता चके महोत्सवम् // 171 / मकरध्वज इत्याख्यां, प्रोत्या तस्मै ददौ पिता॥ गोतप्रिय इति प्रोचे, जनैर्गीतप्रियत्वतः 172 . हवे धनदत्त शेठनो पुत्र शंख ते रुपवतीना उदरमां आव्यो. तेणे अवसरे पुत्रने जन्म आप्यो, जेथी पिताए महोत्सव करयो. // 171 // पिताए तेनुं प्रोतिथी मकरध्वज एवं नाम पाडयं, पण गोत प्रियपणाने लोधे लोकोए तेने गीतप्रिय एवा नामथो बोलावा मांडयो. // 172 // क्रमेण वइमानोऽसौ, कलाकौशल्यबंधुरः॥ लसल्लावण्यलोलावांस्तारं तारुण्यमाप सः॥१७३ गीतं शुश्राव जैन, श्रुत्वासौ मुदितोऽनवत् // गीतानोयैश्च गोयंते, तेन्यो दानं परं ददौ१७४ ___कलामां प्रवीण अने लचकता लावण्यथो लोलावान् एवो ते गोतप्रिय अनुक्रमे वधतो छतो उत्तम एवो युवावस्था पाम्यो. // 17 // जिनेश्वरना गीतने सांभलतो अने सांभलीने हर्ष पामतो. वलो गायक लोको पासे गा यन करावतो अने तेओने उत्तम भेट आपतो. // 174 / / * जगौ गीतं स्वयं सोऽपि, निजरंगतरंगितः॥ हंसकोकिलमुख्यानां, जयं कृत्वा स्वकंठतः // अनूत्प्रवीणो वीणाया, वादनेऽसौ विशेषतः॥अशेषतत्वं वानामझासीहएयतोयधीः॥१७६॥ पोताना कंठथी हंस कोकिल विगेरेनो जय करी पोतानाज रंगना उच्छरंगथी ते गीतप्रिय पोते पण गोतने गातो हतो. // 175 // ए विणाने वगाडमां विशेष प्रवीण थयो. एटलुंज नहि पण स्वर ग्राम विगेरेने उत्तम रीते जाणवा लाग्यो. // 176 // Jun Gun Aaradhat Trust 91 //
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________________ PPA Guntasun MS अन्येयुः सहितो मित्रैर्गत्वासौ जिनमंदिरम् // जिनं नत्वा प्रमोदेन, पुरो गीतं जगौ प्रनोः॥ पुनः प्रनुमसौ नत्वा, यावन्निजगृहं ययौ // तावदारामिको मालां, ढोकयामास तत्पुरः॥१७* ___कोइ दिवस मित्रो सहित ते गोतप्रिय जिनमंदिरमा जइ अने जिनेश्वरने नमस्कार करी हर्षथी प्रभुनो आगल गीत गावा लाग्यो. // 177 // फरी ते गोतप्रिय प्रभुने नमस्कार करी जेटलामा पोताना घरे गयो तेटलामां मालोये तेनी आगल माला मूकी // 178 // चंचञ्चंपकपुष्पाणां मालामालोक्य नूपन्नूः // इधुं मदनवीरेण, प्रहितां तामतर्कयत् // 17 // * ब्रामंभ्रामं च कुर्वाणं, ऊंकारान्मधुरस्वरम् // हेमवर्णमसौन्नुंगं, मालास्थितमलोकयत्॥१८० राजकुमारे मनोहर चंपाना पुण्पोनी माला जोइने मदन ( कामदेव ) वीरे मोकलेली ते मालाने तेनुं वाण धारयु. // 17 // ए राजकुमारे, भमता अने मधुर स्वरे झंकार शब्द करता तेमज माला उपर बेठेला एक सोनाना भमराने दोठो. // 18 // शुका नीला सिता हंसाः, अमराः कृष्णवर्णकाः // विपरितमिदं किंतु, येनालिः कनकप्रनः॥ * यादृग्वास्ति मालासौ, तादृग्वण्यो मधुव्रतः // सदृशं सदृशेनेदं, संगतं शोनतेऽथवा॥१७२ ___पछो ते कुमार विचार करवा लाग्यो के, " अहो ! पोपट लीला होय छे, हंस घोला होय छे अने भ. . मरा काळा होय छे; परंतु आतो विपरित देखाय छे के, जे भमरो पण सोनाना सरखी पीली कांतिवालो छे !!! // 181 // आ माला जेवी वखाणवा योग्य छे तेवोज वखाणवा योग्य भमरो छे; अथवा आ सरखी वस्तु पोताना सरखो वस्तुयी एकठो थइने शोभे छे ? // 182 // .. एवं तस्मिन्वदत्येव, मुंगो महँगिरा जगौ // माला गंधर्वमाला सा, त्वं चास्यां ब्रमरो जव॥ गंधर्वमालावरांगी, त्वं चासि कनकप्रन्नः॥ नन्नयोर्जायतां योगो, जगदानंदहेतवे // 18 // ___आ प्रमाणे गीताप्रिय कुमार बोलतो हतो, एवामां भमराए मनुष्यनी वाणीथी कयुं के, "ते गंधर्वमाला Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ रण // 9 // PP.AC.Gunratnasus M.S. माळारुप छे अने तु ए गंधर्वमालाने विषे भ्रमररूप था. // 183 // गंधर्वमाला उत्तम अंगवाली छे अने तुं सुवर्ण चरित्र समान कातिवालो छे, माटे जगतना आनंदने माटे तमारा बन्नेनो योग थाओ." // 184 // | तच्छ्रुत्वा नूपन्नूर्दध्यौ, जल्पंतो वीदिताः शुकाः॥ ब्रमरा न पुनः क्वापि, महदेव कुतुहलम् // गंधर्वमाला बाला का, कुतस्तस्याश्च संगमः // केवलं ब्रमरो नासौ, खेचरो वामरोऽस्तु वा॥ ___भमरानां आवां वचन सांभली राजपुत्र विचारवा लाग्यो के, " पोपटोने बोलता जोया छे, परंतु क्याइ पण भमराने बोलता जोया नथी. आ एक म्होटुं आश्चर्य छे. // 185 // गंधर्वमाला कन्या कोण ? अने तेनो समागम क्यांथी होय ? निश्चे आ भमरो नथी, परंतु कोइ विद्याधर अथवा देवता हशे"!! // 186 // एवमेव वदत्यस्मिन्नलिरूपं विहाय सः॥ तत्क्षणं खेचरो जझे, सर्वालंकारसुंदरः // 187 // विलोक्य विलसत्कांतिं, तं चित्राभूपन्नूजगौ॥ कस्त्वं नो खेचरं मन्ये, स्पृशनिश्चरणैनूवम् // ___ कुमार आ प्रमाणे कहेतो हतो एवामां ते, भमरानुं रूप त्यजी दइ तुरत सर्व प्रकारनां अलंकारोथी सुंदर / एवो विद्याधर थयो. // 177 // राजकुमारे देदीप्यमान कांतिवालाने जोइने आश्चर्यथी कह्यु के, “हे भाइ ! तुं / B कोण छे ? तुं पगवडे पृथ्वीनो स्पर्श करे , माटे हुँ तने विद्याधर धारुंछु." // 188 // स प्राह शृणु वैताढ्ये, पुरे संगीतनामनि // वर्तते गीतरत्याख्यः, खेचराणां शिरोमणिः // * जयादेवीप्रसूतास्य, सुता कनकमालिका // मयोढा वेगवन्नाम्ना, मणिचूमस्य सूनुना ॥१ए तेणे कडं. " सांभल. वैताढय पर्वत नपर संगीत नामना नगरमां विद्याधरोनी मध्ये शिरोमणि एवो गीतरति नामनो विद्याधर छे.॥ 18 // // ए गोतरति जयादेवाथी उत्पन्न थयेली कनकमाला नामनी पुत्री छे के, जेने मणिचूड विद्याधरनो पुत्र वेगवान् नामवालो हुं परण्यो छु. // 190 // तस्या एवानुजा संप्रत्यस्ति गीतरतेः सुता // वाला गंधर्वमालारख्या, शाला सर्वगुणावलेः॥ वीणायां सुप्रवीणा सा, गीतागने सुकौशला // इति प्रतिज्ञामादत्त, सखीवृंदसमकम् // , हवणां ते कनकमालानी नानी व्हेन के, जे गीतरतिनी पुत्री अने सर्व गुणोनी भूमि एवी गंधर्वमाला ना // 9 // Jun Gun Aaradhat Trust
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. A मनी कुमारी छे. // 191 // वीणामां अति प्रवीण तेमन गीतगानमा बहु कुशल एवी ते गंधर्वमालाए पोतानी सखोयोना समक्ष एवी प्रतिज्ञा करी के, // 192 // विजेष्यते यो वीणायां, गीतागानेऽपि मां नरः // स खेचरःपरो वास्तु, वरणीयः स एव मे // | तत्र विद्याधराः सर्वे, मिलिष्यति महाबलाः॥ अबलाया मनस्तस्या, न जाने को ग्रहीष्यति॥ जे पुरुष वीणामां अने गीत गानमां पण मने जोतशे, ते विद्याधर हो अथवा बीजो मनुष्य हो, परंतु तेज म्हारे वरवा योग्य छ. // 193 // त्यां महावलवाला सर्वे विद्याधरो एकठा थशे; परंतु है नथी जाणतोकेर अबलानुं मन कयो पुरुष ग्रहण करशे. // 194 // अद्य स्वयंवरो नावी, सांप्रतं तत्र पत्तने // अस्मिन्नवसरे सोऽहं, वेगवानागतो नवम् 155 * अदृश्य एव प्राप्तःप्राकू, पुरं तव मनोहरम् // नत्या प्रगतवानस्मि, जिनेडान जितना आजे ते नगरमां हवणां स्वयंवर थवानो ने. आ अवसरे ते 9 वेगवान् पृथ्वो उपर आव्योहोरी प्रथम है अदृश्यज त्हारा मनोहर नगरे आव्यो हतो अने त्यां भक्तियां जिनमंदिरने विषे जिनेश्वर करतो हतो. // 196 // नवांस्तत्र मया दृष्टो, जिनेश्मुपवीणयन् // त्वां वीक्ष्य तस्या योग्योऽयमेवेति हामि नत्वा जिनं त्वामायातमत्र मित्रत्वसस्पृहः // नपकतुमनास्तस्या, विवाहेनाहमागतः॥१॥ त्यां में तने जिनेश्वरनी आगल गायन करतां दोठो. तने जोइने में " ते कन्याने आज योग्य छे." एस उदयमां चिंतव्यं. // 197 // जिनेश्वरने नमस्कार करी अहिं आवता एवा तने ते कन्याना विवाहथी उपकर करवाना मनबालो तेमज हारा मित्रपणानी स्पृहावालो हुं त्हारी पासे आव्यो. // 198 // कत्वा चंपकमालास्थ, हेमवर्ण मधुव्रतम् // औचित्यं च वचस्तस्या, योगतः कथितं मया॥ त्वमागच मया साकं, यथा नीत्वा कणादपि // तस्याःपाणिग्रहं तत्र, कारये सुहृदं निजमा Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुणा चरित्र // 22 // PP.AC.Gunratnasun M.S. ____चंपकमाला उपर रहेलुं सुवर्णमय भ्रमररूप करीने योग्य एवं वचन ते कन्याना योगथोज में कहेलुं छे. // 199 // तुं म्हारी साथे चाल, जेथी क्षणमात्रमा त्यां लइ जइ ते कन्यानो हस्तमेलाप म्हारा मित्र एवा हारी साथे करावं. // 20 // * कारणं समवाप्यात्र, त्वगुणा एव बंधुराः // निमित्तं पुनरेषोस्मि, तदीवाहविधावहम् // 201 // मदीयकांतया तस्याः, स्वस्त्रा नैमित्तिकोत्तमः॥ पृष्टः प्रोवाच तद्योग्यं, वरं नूचरमेव हि // ____ अहिं उत्तम एवा त्हारा गुण एज कारण पामोने वली आ हुं पोतेज त्हारो विवाहविधिमां निमित्त कुं. / // 201 // ते गंधर्वमालानी बहेन के, जे म्हारी स्त्री थाय छे, तेणे ( कनकमालाए) कोइ उत्तम निमित्तियाने पूछयु एटले तेणे निश्चे तेने योग्य एवो मनुष्यज पति थवानुं कहुं छे. // 20 // एतेनाप्यनुमानेन, सा कांता ते नविष्यति // मा शंकिष्टाः प्रयासस्य, वैफल्यं हृदये निजे॥ इत्युक्त्वा हंसरूपेण, तमारोप्य निजोपरि // असौ स्वयंवरं प्राप्तोऽस्थापयत्तं च विष्टरे // 204 * आ अनुमानथी ते त्हारो थशे. वली पोताना हृदयमां आ प्रयासर्नु निष्फलपणुं शंकोश नहि. // 203 // a एम कहीने हंसरूप धारण करी ते विद्याधर पोतानी पीठ उपर तेने बेसारी ए स्वयंवरमां आव्यो अने ते गीत प्रियने सिंहासन उपर बेसारी दीयो० // 20 // खेचरेषु समग्रेषु, विरेजे तत्र सोऽधिकम् // प्रस्फुरत्कांतिसंन्नारस्तारकेष्विव चश्मा // 205 // * गंधर्वमाला बित्राणा, वीणां वामकरे निजे // मालां च दक्षिणे पाणी, स्वयंवरमथाययौ५०६ तारापोमा देदीप्यमान कांतिवाला चंद्रभानी पेठे यां ते गीतप्रिय सर्व विद्याधरोमां अधिक शोभवा लाग्यो. // 205 // पछा पोताना डावा हाथमां वीणा अने जमणा हाथमां वरमालाने धारण करती एवी गंधर्वमाला स्वयंवरमां आवी. // 206 // प्रतीहारी जगादेति, नो नो शृणुत खेचराः॥ कन्या प्रतीझा श्लोकं च, पपारेति मनोझवाक्॥ विजेष्यते यो वीणायां, गीतगानेऽपि मां नरः // खेचरो वा परोवास्तु, वरणोयः स एव मे // Jun Gun A cha Trust XXXXXXXXXXX ETIT P
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. AAAAXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX= पछो प्रतोहारीये आ प्रमाणे कडं. " हे विद्याधरो ! सांभलो. वली मनोहर वाणीवाली कन्या प्रतीझा लोकने आ प्रमाणे बोली. // 207 // जे पुरुष वोणामां अथवा गायनमां मने जोतशे ते विद्याधर अथवा बाजो गमे ते हो; परंतु तेज म्हारे वरवा योग्य छे" // 20 // श्रुत्वेति शक्तिः कस्यापि, न तां जेतुं खगेष्वनूत् // नीचैर्मुखतया नीता, वधूत्वं ते स्वयं तया॥ * मित्रेण प्रेरितःप्रोचैर्गीतप्रियस्तदावदत् // मुग्धेऽहं गर्वसर्वस्वं, कणादपनयामि ते // - गंधर्वमालानां आवां वचन सांभलो विद्याधरोमां कोइनो पण ते कन्याने जीतवानो शक्ति थइ नहि, तेथी * कन्याए करीने ते राजाओ पोते न नीचुं मुख राखीने बेसी रहेवाने लीधे वधु (वहु) पणुं पाम्या. // 20 // ते वखते मित्रनी रजाथी गीतप्रिय उंचा शब्दथी बोल्यो के, " अरे मुग्धे ! हुं त्हारा गर्वरुप सर्व धनने क्षणमात्रमा नाश करूं छु. // 210 // वादयस्व स्वयं वीणां, गीतगानपुरःसरम् // ततोऽहमपि तत्कुर्वे, ज्ञायते कौशलं यथा॥११॥ मत्तेव नारती देवी, वोणामादाय सा ततः // जगौ गीतं गुणैः स्फोतं, रंजितः सकलो जनः तं पोतेज गीतगानपूर्वक वीणा वगाड. पछी हुं पण तेमज करुं के, जेथी कुशलपणुं जणाय. // 211 // पळी ते गंधर्वमाला मृत्तिवंत सरस्वती देवीनी पेठे वीणाने लइन गुणाथा प्रगट एवा गीतने गावा लागी. जेपी सर्वे माणसो प्रसन्न थया. // 212 // गीतप्रियोऽपि मित्रेण, दत्तां वीणामवादयत् // इयं गर्भवती वीणेन्युनवा लोकमहाशयत // | लोकैःकथमिति प्रोक्ते,स प्रोचे कर्करोऽत्र यत् // आदौ शुष्यति वीणाया दंडमध्ये स्थितोऽस्तिनो गोपिय पण मित्रे आपेली वीणाने वगाडवा लाग्यो. वली तेणे " आ वीणा गर्भवाली छे" एमको लोकने इसाव्या. // 213 // लोकोए " एम केम ? " एम कहुं एटले तेणे कडं के, "हे लोको ! आमा करो छे, जेथी प्रथम वीणामां घसाय ने अने ते वीणाना दंडनी मध्ये रहेलो छे. // 14 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ रित्र, PPA Guarasut MS KXXXXKXXXXXXX वीणां विदार्य तं वीक्ष्य, विस्मिते सकले जने // गंधर्वमाला वीणां स्वां, तस्य दस्ते समर्पयत्च तुंबर्नारदो वासौ, पुंरूपा वा सरस्वती // तां वीणां वादयत्यस्मिन्न कश्चित्ते व्यतर्कयत् // पछो वीणाने चीरी अने ते कांकराने जोइ सर्वे माणसो विस्मय पाम्या एटले गंधर्वमालाए पोतानी वीणा. तेना हाथमा आपी. // 215 ॥ए गीतप्रिय वीणा वगाडवा लाग्यो एटने " आ तुंवरु छे ? नारद ने ? के पुरुषरूप धारण करनारो सरस्वती पोते छे." एम कोणे चित्तमां तर्क नहोतो करयो ? अर्थात् सौ तर्क करवा लाग्या हता. // 216 // * गीते च गोते जैनेये, वय॑नाषामनोहरे // गंधर्वमालया साकं, रंजिता सर्वखेचराः // 17 // अचैतन्यं तथा तेषां, जज्ञे गोतं च शृण्वंताम् // मित्रेण हारयामास, यथासौ तधिनूषणम् // वली वर्ण्यनापाथी मनोहर एवा जिनराजनां गीतगान करयां, तेथी गंधर्वमाला सहित सर्वे विद्याधरों प्रसन्न थया. // 217 // वली गोतने सांभलता एवा ते विद्याधरो एवा मोह पामी गया के, जेथौ गीतप्रिये पो ताना मित्र पासे तेओनां घरेणां हरण कराव्यां. // 218 // A कस्यचित्कुंभलं कर्णाद्भुजात्कस्यचनांगदम् // मित्रेण कौतुकाऊहे, करात्तस्याश्च कंकणाम् // * गीते मुक्ते ततस्तेन, सर्वे जाताः सचेतनाः॥ रिक्तमान्नरणैरंगं, दृष्ट्वान्योऽन्यं विलोकयन् // मित्रे कौतुकने लोधे कोइना कानथो कुंडल, कोइना हाथथी बाजु अने ते गंधर्वमालाना हाथथी कंकण | हरण करी लीधुं. // 219 / / पछी कुमारे गीत बंध करयुं एटले सर्वे सचेतन थया. पछो तेओ आभूषण पोतानां अंगने न जोइ. परस्पर एक वीना सामु जोवा लाग्या. // 220 // स्मित्वा तभूषणे दत्ते, विचेतन्योक्तिपूर्वकम् // गंधर्वमाला तत्कंठे, वरमालां मुदाविपत् // तयोविवाहे संजाते, रूपलावण्यतुल्ययोः॥ सदृशं सदृशेनैव, नातीति जनता जगुः 122 पछी हसीने तेओने मोह पामवानी वात कहेवापूर्वक आभूषणो पाछां आप्यां एटले गंधर्वमालाए हर्पयो Jun Gun A chat Trust // 9 //
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS है/ गीतप्रियना कंठमां वरमाला पहेरावी. // 221 // रूप अने लावण्यथो तुल्य एवा ते बन्नेनो विवाह थयो एटले * " सर सरखाथीज शोन्ने छे." एम माणमो कहेवा लाग्या. / / 222 // विसृष्टाः खेचराः सर्वे, ययुनिजपुराएयथ // गंधर्वमालया रेमे, तत्रासौ सुस्थितश्चिरम् 223 अन्येयुः स तया साकं, खेचरैः परिवारितः॥ वर्यं विमानमारूढो, जांबूनदपुरं ययौ // 22 // पछो रजा आपवाथी सर्वे विद्याधरो पोत पोताना नगरे गया एटले त्यां सुखे रहेला गोतमिये दीर्घकाल सुधी गंधर्वमालानी साथे क्रोडा करी. // 223 // कोइ वखते ते गीतप्रिय प्रियाने साथे लइ अनेक विद्याधरो * सहित उत्तम वैमानमां बेसी जावूनद नगरे गयो. // 224 // तदैवालानमुन्मूल्य, पट्टहस्ती नरेशितुः॥ मतश्चचाल विध्याइिं, स्मृत्वा पर्वतसंनिन्नः तरंगांस्त्रासयस्तूर्ण, रथान्विश्लथयन्नथ // नाशयन्नरनारीश्व, स चके व्याकुलं पुरम् // * आवखते राजा महीपालनो मदोन्मत्त अने पर्वत समान पट्टहस्ति विंध्याचल पर्वतर्नु स्मरण थवाथी आSel लान स्थंभने उखाडी नाखीने चालो निकल्यो. // 325 // पछी घोडाने असंत त्रास पमाडता, रथोने 2 भागी नाखता अने स्त्री पुरुषोने नसाडी मूकता ते हाथ,ये नगरने व्याकुल करयु. // 226 // जगौराजा गवाहस्थो, यो वशं कुरुते गजम् // ददे राज्याईमाप्यस्मै, तत्पुनःश्रय और गीतप्रियस्तदालोक्य, व्याकुलत्वं निजे पुरे // करेगुं तं वशं कर्तुं, वीणां दधे निजे ___ पछी गोखमां बेठेला राजाए कह्यु के, “जे हाथीने वश करशे तेने हुं अर्धं राज्य आपीश." परत ते * कोइये सांजल्युं नहि. // 227 // ते वखते पोताना नगरमां व्याकुलपणुं जोइ गीतप्रिये ते हाथीने व माटे पोताना हाथमां वीणा लीधी. // 228 // गायतिस्म तथा गीतं, वीणयासौ मनोहरम् // श्रुत्वा शांतो यथा हस्ती, हृष्टश्च सकलो जनः ततो विशेषतस्तत्र, जायमाने महोत्सवे // गत्वा सत्नां पितुः पादौ, स ननाम सखेचरः२३० | Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ // 9 // PP.AC.Gunratnasun M.S. *****XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Patel, पछी ते कुमारे एवी रीते मनोहर गायन करयु के, जेथी हाथी ते गीतने सांभली शांत थइ गयो अने सर्वे * * माणसो हर्ष पाम्या. // 229 // पछी त्यां विशेष महोत्सव थयो एटले विद्याधरो सहित गोतप्रिय कुमारे सभा मां जइ पिताना पगमां प्रणाम करयो. // 260 // नामग्रारं कुमारेण, शतान् सहसमागतान् // नूपतिः प्रोणयामास, प्रतिपत्या नन्नश्चरान् // गंधर्वमालामालोक्य, पतंती निजपादयोः॥ श्वश्रः स्वचित्ते हृष्टा ता, प्रोणयामासचाशिषा॥ ___कुमारे नाम ग्रहण करवा पूर्वक जाहेर करेला अने साथे आवेला विद्याधरोने राजाए जक्तिथी संतोष पमाडया.॥२३१ // वली पोताना पगमां प्रणाम करती एवी गंधर्वमालाने जोइ पोताना चित्तमां हर्ष पामेली * सासुए तेने आशिष आपीने प्रसन्न करी. // 232 // विसृज्य खेचरान् सर्वान् , न्यस्य राज्ये निजं सुतम् ॥स्वला साधयामास, नूपतिर्धर्मकर्मणा गंधर्वमालया साकं, रममाणः स्वतुल्यया // स्वराज्यं पालयामास, गोतप्रियनरेश्वरः // 23 // __ पछी राजाए सर्वे विद्याधरोने रजा आपी अने पोताना पत्रने राज्यासन नपर बेसारी पोते धर्मकार्यथी स्वर्गे गयो. / / 233 // पोताना तुल्य एकी गंधर्वमालानी साथे क्रीडा करतो गीतमिय राजा पोताना राज्यनुं पालन करवा लाग्यो. // 234 // अन्येशुरागतास्तत्रालयसिंहेति सूरयः // तानंतुं सपरिवारो, ययौ गीतप्रियो नृपः // 235 // नत्वा श्रुत्वोपदेशं च, पप्रच स्वन्नवं नृपः // प्रोचिरे सूरयस्तं च, पुरतस्तस्य विस्तरात् 236 कोइ वखते ते नगरमा अजयसिंहमूरि आव्या एटले परिवार सहित गीतपिय राजा तेमने वंदन करवा गयो. // 235 // रानाए नमस्कार करी, उपदेश सांभली पोतानो भव पूछयो एटले सूरिये विस्तारथी तेनी धागल तेने कह्यु. // 236 // हस्तिनागपुरे श्रेष्ठो, धनदत्तानिधोऽनवत् // शंखनामा सुतस्तस्य, गीतपूजामसौ व्यधात् 237 जिनपूजाप्रनावेण, प्राज्यं राज्यमन्नूदिदम् // गीतपूजाविशेषेण, गीतसफलतामगात्॥३८॥ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun A da Trust 9 //
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________________ PPA Gunarasut MS __हस्तिनागपुरमा धनदत्त नामनो शेठ हतो, तेने शंख नामनो पुत्र हतो. तेणे गीतपूजा करी छे. // 237 // * शंखना जीवरूप तने आ भवमा गीतपूजाना प्रभावथी आ ऋद्धिवंत राज्य मल्युं छे. वली गीतपूनाना विशेषप णाथी आ गीत सफलपणुं पाम्युं छे. // 238 // . गीताजंधर्वमालाला, गीतादश्यो गजः कृतः॥अनंतफलमित्याहुर्जिनगीतार्चनं जिनाः॥२३९॥ इंद गीतप्रियः श्रुत्वा, तदा जातिस्मृरोऽनवत् // विशेषादाईतं धर्म, प्रपेदे गुरुसंनिधौ 250 // तेन गीतथी गंधर्वयाला प्राप्त थइ, गीतथी हाथीने वश्य करयो, माटे निनेश्वरे गीतपूजन अनंत फलवारों * कयुं छे. // 23 // // गीतप्रिय आ सर्व सांभलीने ते वखते जातिस्मरण ज्ञान पाम्यो, तेथी तेणे गुरुनी पासे वि शेषे अरिहंतधर्म अंगीकार करयो. // 240 // | मुनि नत्वा गृहं गत्वा. पालयित्वा चिरं नुवम् // पत्न्यां गंधर्वमालायां, पुत्र सोममजीजनत् पुनःप्राप्तेषु तेष्वेव, सूरींचु नरेश्वर // श्रुत्वोपदेशं संप्राप, वैराग्यं पापनाशनम् // 252 // ___मुनिने वंदना करी, घरे जइ अने दीर्घकाल सुधी पृथ्वीनु पालन करी गंधर्वमाला स्त्रीने विषे सोम नामना पुत्रने पाम्यो. // 241 // वली तेज सूरि वीजीवार आव्या एटले राजा तेमनो उपदेश सांभली वैराग्य पाम्यो.२४२ ततो राज्यं स्वपुत्राय, महोत्सवपुरसरम् // दत्वा गुरूणां पाश्वेऽसौ, चारु चारित्रमग्रहीत् // | प्रपाल्य निरतिचारं, सारं संयममुज्वलम् // विहितानशनःप्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽन्नवत् // पछी पोताना पुत्रने महोत्सवपूर्वक राज्य आपो ए गीतपिय राजाए गुरु पासे उत्तम ए, चारित्र लोधुं. अतिचार IAS रहित, उत्तम तथा उज्वल एवां चारित्रने पाली अने अंते अनशन लइ ते गीतप्रिय मौ धर्मदेवलोकमां देवता थयो. चिरं सुखान्यसो नुक्त्वा, देवलोकाततश्चयुतः॥ पूर्णः पंचदशोजातस्तनयस्तव नूपते॥श्व५॥ (श्री नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छ के,) हे भूपति ! ए गीतप्रिय त्यां बहु काल सुख भोगवी अने पछी ते देवलोकथी चवीने त्हारो पूर्ण नामनो पंदरमो पुत्र थयो छे. // 245 // - // इति गीतपूजायां शंख कथा // askXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गण चरित्र. PPA Gunnanasuti MS EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX वाद्यपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते // कमलापुरमित्याख्यं, पुरमस्ति मनोहरम् श्व६ . जेणे वाद्यपूजा करी छे, तेनुं फल कहेवाय छे. कमलापुर ए नामर्नु मनोहर नगर छे. // 246 // कीर्तिचंशे नृपस्तत्र, कोर्तिनिर्जितचंश्माः // प्रिया यशोमतोतस्य, यशस्तर्जितमल्लिकाः // तनुजो धनदत्तस्य, धर्मस्तत्कुदिमागतः॥ दोहदावसरे तस्या, दोहदोडयमनूदिति // 4 // त्यां कीर्तिथो चंद्रने पण जीतनारो कीर्तिचंद्र राजा राज्य करतो हतो, तेने यशथी मल्लिकाने पण जीतनारी यशोमात नामनी स्त्री हती. // 247 // हवे धनदत्त शेठनो पुत्र धर्म यशोमतिना नदरमां आव्यो एटले दोहदना अवसरे तेने एवो दोहद उत्पन्न थयो के.॥२४८ / / सा जानाति समारुह्य, मृगारातिं महोत्कटम् // अनाहतेषु वाद्येषु, नदत्सु व्योमवर्त्मनि श्वाए सन्नूपा सपरिवारा, पौरलोकैर्विलोकिता // करोमि नगरे चैत्यपरिपाटीमहं मुदा // 25 // ते एम जाणवा लागी के,“म्होटा उत्कट सिंह उपर वेमी अने आकाशमां अखंडित वाजित्रो वाग्ये छते | राजा अने परिवार सहित तेमज नगरवासी लोकोथी जोवायलो हुं हर्षथी नगरमां चैयपरिपाटी करूं. 249-250 अनेनापूर्यमाणेन, दोहदेन कृशामिमाम् // सखीनिः पृश्नयामास, नूपतिस्तन्मनोरथम् // * झाते दोहदवृत्तांते, भूकांतेन मनीषिणः // मंत्रिणः प्रोचिरे कश्चिायः क्रियतां जुतम् 252 __ नहि पूर्ण श्रयेला आ दोहदे करीने दुर्बळ थयेलो यशोमतिने राजाए दासीयो पासे तेनो मनारेथ पूछाव्यो. // 25 // राजाए दोहदनी वात जाणीने बुद्धिवंत एवा मंत्रीयोने कह्यु के, "झट कांड उपाय करोके.।२५२॥ येन प्रपूर्यते देव्या, दोहदो हृदये स्थितः॥ अन्यथा सा कथाशेषा दिनैःस्तोकैर्नविष्यति 353 मंत्रिणः कथयामासुरन्योपायो न कश्चन // दर्शयन्निः परं लोनं, दाप्यते पट्टहं पुरे // 25 // जेणे करीने देवीना मनमा रहेलो दोहद पूर्ण कराय. नहितो थोडा दिवसमां ते मृत्यु पामशे. // 253 // .मंत्रीयोए कह्यु. " महाराज ! वीजो काइ उपाय नथी, परंतु लोभ देखामीने नगरमा पट्टह वगडावीये. // 25 // Jun Gun Asrachak Trust // 9 //
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________________ PPA Gunratnasuti MS अद्यियामे नृपादेशात्प्रोचुः पट्टहदायकाः // स एकं लन्नते लदं,यः पूरयति दोहदम्॥५५॥ * यामे हितीये घस्त्रस्य, पोचुः पट्टददायकाः // हे लदे लन्नते सैष, यः पूरपति दोहदम् 556 दिवसना पहेला पहोरने विषे राजाना हुकमथी पट्टह वगाडनाराओए कह्यु के, “जे माणस राणोना दोहदने पूरण करशे ते एक लक्ष धन पामशे." // 255 // दिवसना बीजा पहोरने विषे पट्टह वगाडनारायओए कह्यु A के, “जे माणस राणीना दोहदने पूरण करशे, ते वे लक्ष धन पामशे." // 256 // * एवं तृतीयतर्यादियामेषु जगतीपतेः // आदेशावईयामासुलेकमेकं नराः क्रमात् // 27 // षड्लक्षामपि जातायां, निशीथसमये ततः // नास्पृशप्तटहं कोऽपि, देव्यासीदाकुला पुनः॥ एवी रीते त्रीजा चोथादि प्रहरने विषे राजाना हुकमथी पट्टह वगाडनारा पुरुषोए अनुक्रमे एक एक लक्ष * धन वधारयु.॥ 257 // पछी अर्धी रात्रीये छ लक्ष धन थयु, पण कोइये पट्टहने स्पर्श करयो नहि, जेथी बस यशोमति आकुल व्याकुल थवा लागी. // 258 // राज्याई कमतः पुत्र्यां, प्रोक्तायां च नृपाझया // अस्पृशत्पटहं विप्रः, क्षिप्रमागत्य कश्चन२५॥ विनातायां वीन्नावर्या, ददृशुस्ते नरा द्विजम् // कुरूपं कुत्सितं कुब्ज, कृष्णवर्णं च वामनम् // ___अनुक्रमे पट्टह वगाडनाराओए राजानी आज्ञार्थी अधु राज्य भने राजकन्या आपवानो पट्टह वगाडयो.. जेथी कोइ ब्राह्मणे तुरत आवीने पट्टहने स्पर्श करयो. // 252 // पछी प्रभात थयो एटले ते पुरुषोए करूप, खराब, कुब्ज, कृष्णवर्ण अने वामन एवा ते ब्राह्मणने दीठो. // 26 // विज्ञातपटहस्पर्शवृत्तांतप्रीणिते नृपे // नृपस्य पुरुषा विप्रं, निन्यिरे नृपसंनिधौ // 26 // विषमचेताः सर्वोऽपि, तं विलोक्यान्नवजनः // नृपतिस्तु विशेषेण, तेन देयास्य यत्सता . राजा पट्टहने स्पर्श करयानी वात सांभली प्रसन्न थयो. पछी राजाना पुरुषो ते ब्राह्मणने राजसभामा - ड गया. // 261 // ते ब्राह्मणने जोइ सर्वे माणसो खेद पाम्या अनं राजातो वधारे खेद पाम्यो. कारणले तो तेने पुत्री आपवी हती. // 262 // KKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPA Gunarasut MS गुण मुंचतो गृह्णतो वापि, नान्नवत्काचिदौचितो॥ वीक्ष्य ततो हृदः पूर्णोऽप्रदत्ता चैव कन्यका // विप्रःप्रोचे विलंबोऽत्र, राजन्मे जायते वृथा // कार्यं कृतेन कार्येण, यदि तत्कारय फुतम् // ___आपता अथवा न आपता कोइ योग्य यतुं नहोतुं, तेथी ते ब्राह्मणने जोइ पूर्ण हृदयवाला राजाए तेने कन्या आपी नहि. // 263 // ब्राह्मणे कयुं. "हे राजन् ! अहिं मने वृथा विलंब थाय छे. जो कार्य कराव वानी जरुर होय तो झट करावो. // 264 // ... * कुरूपत्वं ममालोक्य, बुझ्या किं खिद्यसे मुधा // कुरूपो वा सुरूपो वा, कार्यकर्ता विलोक्यते राजादनादपि प्रायो, रिंगणं रूपतोऽधिकम् // किं क्रियेत पुनस्तेन, येन कार्यं न सिक्ष्यति // म्हारुं कुरूप जोइने बुद्धिथी वृथा खेद शा माटे करो छो ? कुरूप होय वा सुरुप होय; परंतु कार्यनो करनारज जोवाय छे. // 265 // राजादनयको पण घj करीने रिंगणुं रूपथी अधिक होय छे, परंतु तेणे करोने शुं के, जेनाथी कार्यसिद्ध थाय नहि. // 266 // कयुं छे के:कोकिलानां स्वरो रूपं, नारीरूपं पतिव्रता // विद्यारूपं कुरूपाणां, हमारूपं तपस्विनाम् // ___कोकीलाने स्वर ए रुप छे, पतिव्रता ए नारीनुं स्वरुप छे, कुरूपिओनुं विद्या ए रूप छे अने तपस्वीयोनुं क्षमा ए रूप छे. // 267 // नूपतिमैत्रिणं प्रोचे, तलिंबक्रिया कुतः // अनेन कार्यतां कार्य, जीवतात् सा यथातथा // राजाए प्रधानने कडं के, " ते कार्यनो विलंब शा माटे करे छ? आ माणसनी पासे कार्य कराव्य के, जेयी जेमतेम करीने ते जीवती रहे. // 268 // | मंत्री प्राह प्रनो तथ्यं, परमस्ति विचारणा // कृते कार्य प्रदातव्यमस्मै सर्वं निवेदितम् 269 राज्याईदाने विप्राय, विलंबो ननवेत्तव // कन्या कुतस्तु दातव्या, तस्या यदर्तते न सा // मंत्रोये कयु. " महाराज ! ए सत्य छे, परंतु एक विचार थयो छे के, आ माणस कार्य करशे तो आपणे Jun Gun Aaradhat Trust // 9 //
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________________ PPA Guntatasun MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX जे कबुल करेलु छे ते सर्व एने आप, पडशे. // 269 // महाराज ! आप ब्राह्मणने अर्धं राज्य आपवामां विः लंब नहि करो; परंतु कन्या क्याथो आपको ? कारण ते राणीने कन्या नथी." // 270 // / * सचिंते राझि कोऽप्युचे,राझी ते विजयास्ति या॥ श्यामा नाम्नी सुता तस्याः,सैव तस्मै प्रदीयते मंत्री प्रोचे त्वया रम्यमुक्तं सा चेन दास्यति / ततःकोऽपि बलात्कारो, नविता किं तया सह ____ पछी राजा विचार करवा लाग्यो एटले कोइये कयुं के, " तमारे जे विज्या नामनी राणीछे, तेने श्यामा नामनी पुत्री छे, ते आ ब्राह्मणने आपवी." // 271 // मंत्रीये कह्यु. " तें सारं कह्यु; परंतु जो ते नहि आपेतो तेनी साथे | कांइ पण बलात्कार थशे ?" // 27 // ततो राजा स्वयं गत्वा, तामाचख्यौ विचक्षणः॥ प्रदीयलां निजा पुत्री, तस्मै विप्राय वल्लन्ने सारुष्यंती नृपं प्रोचे, वरं कूपे जलेऽनले // वरं व्याघ्रमुख पुत्रीं, दिपे नास्मै ददे पुनः 14 पछी विचक्षण एवो राजा पोते जइने ते विज्या राणीने कहेवा लाग्यो के, " तुं त्हारी पुत्री ते वल्लभ विप्रने आपः // 273 // विज्याए क्रोध पामीने कयु के, “पुत्री कुवामां, पाणीमां, अग्निमां नाखीश ए. सारं, वली वाघना मुख आगल नाखीश ते सारु, पण ते ब्राह्मणने नहि आपुं. // 274 // सचिवास्तां प्रतिप्राहुराज्ञा राझो विधियते // अन्नीष्टान्यप्यन्यानि, स्वात्मतो वल्लनानि न // त्यजेदेकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुल त्यजेत् // ग्रामं जनपदस्यार्थे, स्वात्मार्थे पृथिवी त्यजेत् // पछी प्रधानोए विज्या राणीने कयुं के, तमारे राजानी आज्ञा प्रमाण करवी जोइये. कारण के, बहु इष्ट र पवी पण बीजी वस्तओ पोताना आत्माथी वहाली नथी. का छे के:-कलने अर्थे एकने त्यजी देवो गाने अर्थे कुलने त्यजी देवू, देशने अर्थे गामने त्यजी देवु अने पोताना आत्माने अर्थे तो पृथ्वीने पण त्यजी देवी. अपूर्णे दोहदे देवी, मृत्युं याति यशोमती // तस्यां मृतायां गर्नश्च, निश्चितं स विनश्यति / ततः परं नृपस्यापि, नित्यं सुखार्तचेतसः॥ अरम्यं नावी चेत्तर्हि, कन्यायाः किं करिष्यसि Jun Gun Aaradha Trust
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________________ चरित्र. PPA Gunnasuti MS गुण दोहद पूर्ण न थवाथी यशोमती देवी मृत्यु पामशे अने ते मृत्यु पाम्या पछी गर्भ पण नाश पामशे.॥२७७॥ पछी निरंतर दुःखथी पीडा पामता चित्तवाला राजानुं पण मृत्यु थशे. जो आ प्रमाणे सर्व खोटुं थयुं तो पछी // 9 // तुं कन्याने शुं करीश. // 278 // ततो विमृश्यतां पुत्रीमस्मै देहि छिजन्मने // राजापि प्रीणितस्तुन्यं, दास्यते बहुमान्यताम् ततः सोवाच यत्कार्य, कथ्यते समये मया।स्वामिना तध्धिातव्यमिति मे प्रतिपद्यताम् // माटे विचार करो अने ए ब्राह्मणने पुत्री आपो, जेथी प्रसन्न थयेला राजा पण तमने वहु मान आपशे." // 279 // पछी विज्या राणीये कह्यु. “हुँ अवसरे जे काम कहुं ते राजाए करवू, एम म्हारी पासे कबुल करो." तेन प्रपन्ने तद्दत्ता, श्यामा श्यामाननान्नवत् // तामालोक्य नृपो दध्यावितो व्याघ्र इतस्तटी सदाकारा सलावण्या, नेत्रनिर्जितपंकजा // सेयं चंद्रमुखी कन्या, कथं तस्मै प्रदीयते 282 राजाए ते कबुल करयुं ऐंटले विज्याये पुत्री आपवानुं कबुल करयुं, जेथी श्यामा श्याम मुखवाली थइ. पछी ते पुत्रीने जोइ राजा विचार करवा लाग्यो के, "म्हारे आ बाजु वाघ अने आ बाजु नदी एम वन्यु जे. // 281 // उत्तम आकृतीवाली, लावण्यवाली अने कमलथी पण अधिक शोभावंत नेत्रवाली जे आ चंद्रना सरखा मुखवाली कन्या ते कुरूपवाला ब्राह्मणने केम अपाय ? / / 282 // कल्पवल्ली कथं देया, करन्नाय सुकोमला // करीर एव तद्योग्यः,कर्कशः कंटकीतनुः॥२८३॥ * तथाप्यहं कथं कुर्वे, प्रियागर्नोस्ति नाग्यवान् // विप्रोऽपि नाग्यवानस्ति, दोहदेनामुना ध्रुवम्॥ ...' सुकोमल एवी कल्पवेल उंटने केम अपाय? अरे! कठोर अने कांटायुक्त शरीरवालो केरडोज ते उंटने योग्य होय छे.तथापि हं शंकरं ! प्रियानो गर्भज भाग्यवान् छे.वली आ दोहदथी निश्चे ब्राह्मण पण भाग्यवंतज छे. र ततो झ्यस्य रक्षार्थ, श्यामिका दीयते मया // अपत्यान्यपि दोयतेऽतराले ज्वलितेऽनले // * न पुत्री पितृपुण्या स्यादात्मपुण्यैव सा नवेत् // तत्का चिंतेत्यसौ ध्यात्वा, धरानाथःसन्नां ययौ Jun Gun Auch Trust // 9 // Spearswerpoi
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________________ PPA Guntars MS __ पछी बन्नेना रक्षणने माटे म्हारे श्यामिका ते ब्राह्मणने आपवी. कारण के, अन्नी सलगी उठे त्यार वचमा / छोकराने पण आडा धराय छे. // 285 // पुत्री पिताना पुण्यवाली होती नथी; परंतु आत्मपुण्यवाली होय छे, तो पछी शी चिंता करवी?" एम विचार करीने ते राजा सभामां आव्यो. // 286 // नूपति मंत्रिणः प्राहुः पुनर्विप्रं विलोक्यताम् // अत्र नास्ति कला काचिदाकारोऽपि वदत्यदः // आकारसदृशा प्रज्ञा, प्रझया सदृशागमः // आगमैः सदृशारंन्नः, प्रारंनसदृशोदयः // 28 // प्रधाने राजाने कह्यं. “महाराज ! फरी ब्राह्मण सामु जूओ- एने विषे कांइ पण कला नथी; एम आ तेनी आकृतिज कही आपे छे // 287 // कडं छे केः-आकृती समान वुद्धि होय छे, बुद्धि समान अभ्यास होय छे, अभ्यास समान आरंभ होय छे अने आरंभ समान उदय होय छे. // 288 / / ततो विप्रं नृपःप्राह, सत्यं नो क्षिप्रमुच्यताम् // कलाप्राप्तिः कुतस्तेऽनदोहदः पूर्यते यया नए स प्रोवाच महाराज, पुरं राजपुरं परम् // तत्रास्ति ब्राह्मणश्चैत्रस्तस्य जातावुन्नौ सुतौ / पछी राजाए ब्राह्मणने कह्यु. " हे विप्र! तुं झट सत्य कहे के, तने कलानी प्राप्ति क्याथी थइ छ के, जेथी तुं दोहदने पूर्ण करे छे. // 279 // ब्राह्मणे कयुं. " महाराज ! उत्तम एवं राजपुर नामर्नु नगर छे, त्यां चैत्र नामनो ब्राह्मण रहे छे, तेने बे पुत्रो छे. // 290 // एको नदिलनामासीदपरः स्कंदिलःपुनः॥ नदिलोऽनूत्सलावण्यः, सदाकारो मनोरमः 2U ] समान्यः सर्वलोकोनां, जातः पितुरनंतरम् // स्कंदिलस्त्वीदृशाकारो, निर्गतो नगराहिः। ___एक भद्दिल अने बीजो स्कंदिल. तेमां भदिल लावण्यवालो, उत्तम आकृतिवालो अने मनोहर इतो. पिता मत्य पाम्या पछी भदिल सर्व लोकोने मान्य थयो जेथीर्थ्याने लीधे कुरूपवालो स्कंदिल नगरथी बहार चालो निकल्यो. वाणारस्यामसौ गत्वाचले मृत्युकृतेऽचटत् // तत्र संन्यासिकेनोचे, केनाप्येष कृपालुना शU३ अकालेऽपि त्वया मृत्युः, कथमेवं विधीयते // स प्रोचे निजदौस्थ्यं च, कुरूपत्वं च तत्पुरः॥ Jun Gun Aaradha Trust
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________________ गुण चरित्र. चा // 99 // PP.Ac:Gunratnasun M.S. ते अनुक्रमे वाणारसी नगरी प्रत्ये जइ मृत्यु पामवा माटे पर्वत उपर चडयो, त्यां कृपालु एवा कोइ संन्या- सीए कह्यु के. // 293 // “तुं अकाले पण आ प्रमाणे शा माटे मृत्यु पामे छे ?" पछी तेणे ते संन्यासी पासे पोतार्नु दुःखीपणुं अने कुरूपपणुं कही देखाडयु. // 294 // स प्राह नव सोत्साहः, कुरूपत्वेऽपि यत्तव // राज्यं संपत्स्यते प्राज्यं, रम्या रामा च निश्चितम् कलामेकां प्रदास्यामि, रंजितो नूपतिर्यया // अाईराज्यं च कन्यां च, स्वयमेव प्रदास्यति // - संन्यासीये कह्यु. तुं उत्साहवंत था. कारण के, तने आ कुरुपपणामां पण निश्चे समृद्धिवंत राज्य अने उतम स्त्री मलशे. // 25 // हुं तने एक कला आपीश के, जेथी प्रसन्न थयेलो राजा पोतेज तने अर्ब राज्य अने कन्या आपशे. // 296 // ततस्त्वया तया साकं, कार्य केलिकुतुहलम् // अधुना मृत्युना किं ते, गृह्यतां जन्मनः फलम्॥ आराध्यतां त्वया देवी, नवानी सिंहवाहना // सा तुष्टा सर्वकार्याणि, करिष्यति तवान्वहम् // पछी त्हारे ते कन्यानी साथे कीडाकुतुहल करवू. हमणां तने मृत्यु पामवाथी शुं ? जन्मनु फल गृहण कर. // 297 // तुं सिंहवाहन वाली जवानीदेवीनू आराधन कर के, जेथी प्रसन्न थयेली देवी त्हारां निरंतर सर्व कार्य करशे // 298 // | तदाराधनविद्या मे, दत्ता तेन मनीषिणा // साधयित्वा च तां सोऽहं, संप्राप्तोऽस्मि तवातिकम्॥ नृपःप्रोचे ततः शिघ्रं, कुरुष्व निजसजताम् // अथासावुबितोऽचालोत्सिंहानयनहेतवे॥३०॥ (स्कंदिलं, कोर्तिचंद्र राजाने कहे छे के) हे राजन् ! पछी ते संन्यासीये मने देवीनी आराधनविद्या आपी अने तेने साधीने हुं पण तमारी पासे आव्यो छु." // 299 // राजाए कह्यु. " तो पछी तुं ज्ञट त्हारी तैयारी कर." पछी ते स्कंदिल त्यांथी उठीने सिंहने लाववा माटे चाली निकल्यो. // 30 // लोकैः परिगतो गत्वा, वनांतमंत्रपूर्वकम् // पूर्वस्यां दिशि चिकेप, सादेपं सर्पवानसौ॥३१॥ कृतफाले मृगेंऽऽय, समेते सति विन्यतम् // लोकं निवार्यहत्तेन, तं दध्र केसरेष्वसौ॥३०२॥ Jun Gun A chat Trust Sh99 //
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________________ PPG . .) . क्ष - पछी लोकोथी विंटलायेला तेणे वनमा जइ मंत्र जणीने पूर्व दिशामां आक्षेपसहित सपर्व फेंक्या.॥३०॥ पछी फाल देतो सिंह आव्यो एटले भय पामता एवा लोकोने निवारीने ते स्कंदिले सिंहने केसवालीमां पकडयो. तं मत्तं वृषवद्धृत्वा, नापयंतमपि प्रजाः॥ानीय नूपतेहरे, स्थापयामास चंचलम्॥३०३ आनीयतामयो देवीं, सिंहमारोप्यतामिति // कथिते तेन सा प्रीता, प्राप्ता तत्र यशोमती३० प्रजाओने भय पमाडता एवाय पण ते मदोन्मत्त अने चंचल एवा सिंहने तेणे राजाना बारमा लावीने उनो राख्यो. // 303 // पछी “देवी यशोमतीने लावो अने सिंह उपर बेसारो.” एम ते स्कंदिले कयं एटले प्रसन्न थयेली यशोमतो त्यां आवी. // 30 // चंचलत्वं विशेषेण, तदा सिंहे प्रकुर्वति // नूपः प्रोवाच नो राझी, त्वमेवारोपय स्वयम३०५ श्रुत्वेति चिंतयच्चिते, जनः पश्यन् परस्परम् // वामनोऽयं कथंकारं, राझीमारोपयिष्यति // ते वखते सिंह विशेषे चपलपणुं करवा लाग्यो एटले राजाए कह्यु के, अरे स्कंदिल ! तुज पोते ए राणीने सिंह उपर बेसार." // 305 // राजानां आवां वचन सांभली माणसो परस्पर जोता छता चिंतमां विचार करवा लाग्या के, "आ वामणो राणीने सिंह उपर शी रीते बेसारी शकशे." // 306 // तामालिंग्य दृढं दोयो, सिंहपृष्टेऽधिरोपणम् // तस्य कारयतस्तूर्णं मंगाहामनता गता 307 लोके सविस्मये सिंहे,तमारोप्य समाधिनासोऽस्याः पार्श्वस्थितोऽचालीत् ,सन्नपाश्च जनाःपर as ___ पछी बे हाथवडे राणीने दृढ पकडी सिंहनी पीठ उपर बेसारता ते वामणानुं अंग तुरत म्होर्ट थडग // 307 // लोक विस्मय पामे छते राणीने समाधियी सिंह उपर बेसारी राजा अने नगरवासी जनो महिना स्कंदिल राणीने पडखे चालवा लाग्यो अने राजा सहित माणसो आगल चालवा लाग्या. // 308 // अनाद्यतेषु वाद्येषु, श्रूपमाणेषु सर्वतः // देवी सिंहसमारुढा, पोरगौरीव विदिता // 30 // प्रणम्य सर्व चैत्यानि, कृत्वा तत्र महोत्सवम् // पुनर्मंदिरमायाता, तेनैवोत्तारिता च सारे .. संग्रह, *मु ..... SO . श्री Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण - // 10 // PP.AC.Gunratnasun M.S. ___चारे तरफ अखंडित वागतां वाजींत्रो संभलाये छते नगरवासी जनोए पार्वतीनी पेठे जोवायली ते सिंह पर बेठेली राणी सर्व चैत्योने नमस्कार करी अने त्यां महोत्सव करी फरी पोताना घर प्रत्ये आवी एटले स्कंदिले तेने सिंह उपरथी उतारी लीधी. // 305-310 // तस्या प्रीणितचित्ताया, संप्राप्तायां स्वमंदिरे // विप्रो व्यलोकयनूपं, राज्यकन्यानिलाषुकः / / तेन तनिश्चये दत्ते, मगेई स व्यसर्जयत् // स च विद्युल्लताकारं, दर्शयन्नन्नसा ययौ॥३१२॥ ___पछो प्रसन्न चित्तवाली ते राणी यशोमतो पोताना घरे गइ एटले राज्य अने राजकन्यानी इच्छा करता एवा विप्रे राना सामु जोयु.॥ 311 // राजाए तेनो निश्चय आप्यो एटले विगै सिंहने छोडी दीधो, जेथी ते विजलीनी पेठे आकाश मार्गे चाल्यो गयो. // 313 // प्रदाय तस्मै राज्याई, नृपः श्यामामजूहवत् // रूदत्यागाऊनन्या सा, साकमाकुलिताशया // श्यामां श्यामामिव श्यामामश्यामोनूपतिरपि // तत्पार्श्वे स्थापयामास, वीवाहावसरे स्वयम् पछी राजाए ते विप्रने अर्दू राज्य आपीने श्यामाने बोलावी. आकुल व्याकुल चित्तवाली श्यामा पण रुदन करती पोतानी माता सहित त्यां आवी. // 313 // अश्याम एवा राजार पण श्यामाना सरखी श्याम श्यामाने वीवाहना अवसरे ते स्कंदिल विपनी पासे वेसारी. // 31 // स्वरूपस्य स्वरूपं यो, पश्यन्नस्याः करग्रहम्॥ करिष्यति न लजास्य, परेच्यः स्वात्मनोऽपि च एवं जल्पति सर्वस्मिल्लोके शोकेन संकुले // करेण तस्य कन्यायाः, करो योजि पुरोधसा॥ जे आ पोताना रुपने जोतो छतो आ कन्याना हाथने ग्रहण करशे, परंतु एने बीजाथी अथवा पोताथी लजा नहि थाय? / / 315 // ए प्रमाणे शोकथी व्याप्त एवा सर्वे लोको बोलता हता, एवामां गोरे ते स्कंदिलना हाथनी साथे कन्यानो हाथ मेलाव्यो. // 316 // संजाते तत्करश्लेषे, तत्कणं तां कुरूपताम् // विहाय खेचरः सोऽनूदिव्यरूपो विनूषितः // हारकुंडलकोटोरकांतिमंझलमंमितः // श्राखंमल श्वाखमलावण्योऽसौ विरेजिवान् // 31 // Jun Gun Aaradha Trust 1 //
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________________ PPC Gunun MS ते कन्याना दाथनो स्पर्श थयो एटले तुरतज ते पोतानां कुरूपपणाने त्यजो दइ ते स्कंदिल दिव्यरूप से वालो सुशोभित एवो विद्याधर थयो. // 317 // हार, कुंडल अने बाजुनी कांतिना मंडलथी सुशोभित एवो Re ते अखंड लावण्यवाला इंद्रनी पेठे शोभवा लाग्यो. // 318 // P तकं पूर्णचंद्रानं, तदालोक्य हसन्मुखी // अराकापि बन्नौ राका, श्यामा श्यामापि कांतितः / * पद्मिनोवत्सुवक्रापि, प्रचन्नलोचनांचलैः // पायं पायं तदास्येंदु, श्यामा तृप्तिमवाप न॥३०॥ ते वखते पूर्णचंद्रना सरखी कांतियाळु ते स्कंदिलनु मुख जोइने इसतां मुखवालो श्यामा कांतिथी श्याम * अने अमास पुनमरूप बनी गइ. // 319 // कमलना समान उत्तम नेत्रवाली अने वस्त्रथी ढंकायला नेत्रवाली एवीय श्यामा ते स्कंदिलना मुखरूप चंद्रने पान करती करती तृप्ति पामती नहोतो. // 320 // असौ नाग्यवतो श्यामा, यस्याः सौन्नाग्यसुंदरः॥ पुरंदर श्व प्रेयान् , प्राप्तोऽयं पुण्ययोगतः॥ तऊनन्यां च लोके च, जल्पत्येवं महीपतिः॥ श्यामाखेचरयोश्चके, पाणिग्रहमहोत्सवमा - आ श्यामा भाग्यवाली छे कारणके जेने पुण्यना योगथी इंद्रना सरखो सौनाग्यथो सुंदर एवो आप 5 प्राप्त थयो. // 31 // तेनी मा अने बोजा लोको एम बोलता हता, एवामां राजाए श्यामा अने विद्याध| रनो लग्नमहोत्सव करयो. // 322 // नपो जामातरं प्रोचे, जातं किमिदमत्रुतम् // स जगावस्ति वैताब्ये, पुरं गगनवल्लन्नम 323 मणिकुंडलरत्नान्ननामनौ तत्र खेचरौ // तौ प्रीत्या पर्वतं प्राप्तौ, हीमंतं सुहृदौ मिथः॥३ पछी राजाए जमाइने पुछयु के,"आ आश्चर्य शुं थयुं" 1 तेणे उत्तर आप्यो के, " वैताढ्य पर्वत उपर गगन 21 वल्लभ नामनं नगर छे, // 323 // त्यां मणिकुंडल अने रत्नाभ नामना के विद्याधर रहेता हता. परस्पर पित एवा तेओ प्रीतिथी होमंत नामना पर्वत उपर गया. // 324 // विद्यां साधयितुं तत्र, स्थितोऽसौ मणिकुंझलः॥ रत्नानःप्रेषितस्तेनोपहाराय निज परे 32 // सत्वरं स स्वमित्रार्थ, गछन् गगनवम॑ना // स्खलितश्चिंतयांचके, कःपापोयो रुणहिमाम Jun Gun Aaradhat Trust
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________________ - PP.AC.Gunratnasun M.S. ए मणिकुंमल त्यां विद्या साधवा माटे रह्यो अने तेणे रत्नाभने पोताना नगर पूजानो सामान लेवा मो- चरित्र कल्यो. // 325 // पछी ते रत्नाभ पोताना मित्रने माटे आकाशमार्गे थइने उतावलो जतो हतो तेमां स्खलना // 11 // पाम्यो, तेथी ते विचार करवा लाग्यो के, " अरे ! अहिं एवो कोण पापो छे के, जेणे मने रोको दोधो" !!! * अधो गवेषयनेष, पश्यतिस्म तपस्विनम् // कुरूपकुचितं कुब्जं,कृष्णवर्णं च वामनम् // 32 // रूपं दृष्ट्वा हसित्वा च, तं बनाये स खेचरः // करोषि स्खलनं कस्मान्मित्रार्थे मम गवतः // ___ पछी नीचे जोता एवा तेणे कुरूपने लीधे खराव, कुन्ज, कालावर्णवाला अने वामणा एचा एक तपस्वीने A दीठा. // 327 // पछी ते विद्याधर तपस्वीना रूपने जोइ अने हसीने कहेवा लाग्यो के, मित्रना कार्य माटे जता एवा मने तमे शा माटे स्खलना पमाडयो // 320 // नीलां कुरूपतामेतां, विलोक्यापि न लजसे॥ धिक् तपस्ते मुघा क्लेशं, यो हि त्वं सहसेऽनिशम् इति तद्वचसा कुठःस तपस्वी शशाप तम् ॥रेखेचर पुराचार, नवान् भवतु मादृशः 330 ___ आ काला कुरूपने जोतो छतो पण तुं लज्जा नथो पामतो ? त्हारा तपने धिक्कार छ के, जे तुं निरंतर | वृथा क्लेशने सहन करे छे." // 329 // विद्याधरना आवां वचन सांभली क्रोध पामेला तपस्वोये तेने श्राप | आप्यो के, अरे दुराचारी खेचर ! तुं पण म्हारा सरखो था. // 330 // ततो निपतितो व्योम्नः, सोऽनूत्तादृश एव हि // पतित्वा पादयोस्तं च कमयामास खेचरः॥ * अज्ञानस्यापराध मे, कमस्वैकं दमाधर // इत्युक्तः शांतहत् किंचित्तपस्वी प्रति तं जगौ // .. पछी आकाशथी पडेलो ते विद्याधर निश्चे ते तपस्वी सरखो थयो. तेथी ते विद्याधरे तपस्वीना पगमां पडी तेमने खमाव्या. // 331 // हे क्षमाधारी! अजाण एवा म्हारो एक अपराध क्षमा करो." आम कहेवाथी काइ शांत थयेला हृदयवाला तपस्वीये ते विद्याधरने कह्यु के. // 332 // नूपप्रियापरिरंन्ने, वामनत्वं गमिष्यति // प्रयास्यति कुरूपतत्वं, राजकन्याकरग्रहे // 333 // * श्रुत्वेति खेचरो दध्याविदं मे घटते नहि // कुरूपता ततः सेयं, यावजिवं समागता // 33 // 11 // Jun Gun Aaradha Trust
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________________ . -4 PP.AC.Gunratnasuri M.S. "राजानी स्त्रीनो स्पर्श करवाथी हारु वामनपणुं नाश पायशे अने राजपुत्रीनो हस्तमेलाप थतौं कुरूपपणुं पण नाश पामशे."॥ 333 // तपस्वोना आवां वचन सांभली विद्याधर विचार करवा लाग्यो के, मने ए राजानी स्त्रीनो स्पर्श अने राजकन्यानो हस्तमेलाप घटतो नथी, माटे आ कुरूपपणुं जीवतां सुधो आवी मल्यु. राज्ञः प्रियायाः कन्याया, दर्शनं मम उर्खन्नम् // संसावेत कुतस्तर्हि, परीरंजकरग्रहौ 335 परीरंभं परस्त्रोणां, वारयंतिस्वयं बुधाः // अयं तु कारयत्येतं, तत्त्वं तन्नावबुध्यते // 336 // मने राजानो स्वोर्नु अने पुत्रोनुं दर्शन दुर्लभ छे तो पछी तेमनो स्पर्श अने हस्तमेलाप तो क्याथीज थाय ? // 336 // विद्वान परुषो पोते परस्त्रोयोना मेलापने निवारे छे खार आ तपस्वी परस्रोयोना मेलापने करावे छे, माटे ते तत्त्वने जाणतो नथी. // 336 // एवं मह्यं कुरूपाय, दत्तेऽन्योऽपि न कन्यकाम् // कुतस्तज्ञजकन्यायाः, पाणिग्रहणसंनवः // | वीरेण कपिलादानं, कालान्महिषरक्षणम् // श्रेणिकाय यथा प्रोक्तं, तथानेन ममाप्यदः // आ प्रकारना मने करूपने कोइ साधारण माणस पण कन्या आपे नहि, तो पछो राजपुत्रोनो साथे पा कने कह्यु तेवी रीते एणे मने पण कयुं छे. // 338 // विधीद्वारा निषेधोऽयमनेन कथितो मम // भेरीनुढं तरुबायायोगो रोगापहो यथा // 33 // इत्यादिध्यायतस्तस्य, वने तत्रैव तस्थुषः // गृहं साधितविद्योऽगात्तन्मित्रं मणिकुंमलः 300 जेम भेरीनां भंभं शब्द अने वृक्षनो च्छायानो योग रोगनो नाश करवामां कहेवा मात्र छ तेसपोनर विधीद्वारथी निषेध करयो छे. / / ३३ए // इत्यादि विचार करता अने तेज वनमां निवास करोने रहेला ते विद्याधरनो मित्र मणिकुंडन विद्यानं साधन करोने घरे आव्यो. // 340 // अदृष्टा सुहृदं कापि, सर्वत्रासौ परिव्रमन् // वने तत्रैव संप्राप, यत्र तिष्टति तत्सखः३४ नपलक्ष्य निजं मित्रं, साश्रुडकू मणिकुंमलम् // सुहृत्कुरूपो वृत्तांतं, बन्नाषे श्रापमोकयोः॥ KXXXXXXXXXX**
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________________ KXXXXX चरित्र PP.AC.Gunratnasun M.S. JUML एमाणकुडल पोताना मित्र रत्नाभने क्याइ पण न जोइने सर्व ठेकाणे भमतो छतो तेज वनमां आव्यो के, ज्यां तेनो मित्र रत्नाभ रह्यो हतो. // 341 // पछो पोताना मित्र मणिकुंडलने ओलखो आंमुथो भरपूर ।।?शा नेत्रवाला कुरूप रत्नाभे पोताने थयेलुं श्राप अने निग्रहनुं वृत्तांत कही संभळाव्यु // 34 // * श्रुत्वेति स परित्राम्यन्नाययौ नगरं तव // ज्ञात्वा दोहदवृत्तांतं, पुनर्मित्रांतिकं ययौ // 33 // वामनत्वकुरूपत्वमोहोऽत्रैव नविष्यति // इति तेन सामानोय, स्थापितोऽयं पुरे तव॥३॥ ___(चंद्रकीर्ति राजाने तेनो जमाइ कहे छे के) रत्नाभनां एवां वचन सांभळीने पछी ते मणिकुंडल भमतो भमतो अहिं तमारे नगरे आव्यो अने दोहदनो वृत्तांत सांभली फरी मित्र रत्नाभ पासे गयो॥ 343 // " अहिंज तेना वामणपणानो अने कुरुपपणानो नाश थशे." एम धारो मणिकुंले तेने अहिं लावी तमारा नगरमां राख्यो. // 344 // * मणिकुंझलसानिध्यात्, कार्यं कृत्वा ततस्तव // वामनत्वकुरूपत्वमादं प्राप कणादसौ 345 सिंहारोपे प्रियायास्ते, वामनत्वमसौ जहौ // श्यामायाः करसंश्लेषे, कुरूपत्वं च सोऽमुचत्॥ ___ पछी मणिकुंडलनी सहाय्यथी तमारं कार्य करो ते रत्नान क्षणमात्रमा वामनपणाथी अने कुरुपपणाथी छुटो थयो. // 345 // तमारी प्रियाने सिंह उपर वेसारवाथी तेणे वामनपणुं त्यजो दोधुं अने श्यामाना हस्त मेलापथो तेणे कुरुपपणुं पण छोडी दोधुं. // 346 // सोऽहं रत्नाननामास्मि, खेचरो निजरूपन्नाक् // नदिलस्कंदिलाद्यं यत्तत्सर्वं कल्पितं मम॥ नत्तमानां हि सांगत्याउत्तमत्वं नजेन्नरः // सुवर्ण चूर्णसंयोगालोहं नवति कांचनम् // 348 // ते हुं पोते रत्नाभ नामनो पोताना रुपने पामेलो विद्याधर लु, अने जे भधिल स्कंदिल विगेरे कह्यु हतुं ते सर्व म्हारु कल्पीत कहेg हतुं. // 347 // उत्तम माणसना संगथो नाणस नत्तमपणुं पामे छे. जेम लोहुँ सुवर्णना चूर्णना योगथी सोनुं वनी जाय छे. // 348 // EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradha Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS * इत्युक्त्वा निजवृत्तांतं, प्रोणिताशेषसऊनः // नूपतेराग्रहात्तस्यौ, कियत्कालं स खेचरः 340 अनुशाप्य महीनाथमन्येद्युः श्यामया सह // कृत्वा विमानमारुह्य, ययौ वैताव्यपर्वतम् 340 ए प्रमाणे पोतानुं वृत्तांत कही सर्व सजनोने प्रसन्न करनारो ते विद्याधर कीर्तिचंद्र राजाना आग्रहथी केटलाक दिवस त्यां रह्यो. // 349 // पछी कोइ बखते रत्नाभ विद्याधर कीर्तिचंद्र राजानी रजा लइ श्यामा सहित वैमान नपर बेसीने वैनाढय पवेत उपर गयो. // 350 // संपूर्णदोहदा सेयमि देवी यशोमतो // समये सुषुवे पुत्रं, पवित्रद्युतिशालिनम् // 35 al अतुलमुत्सवं कृत्वा, सर्वत्र नगरे निजे // सिंहनाद इति प्रोत्या, तस्मै नाम ददौ पिता॥३५॥ हवे आ प्रमाणे पूर्ण थएला दोहदवाली यशोमतो राणोये अवसरे पवित्र कांतिथी सुशोभित एवा एक पत्रI ने जन्म आप्यो. // 351 // पिता कोर्तिचंद्र राजाए पोताना सर्व नगरमा म्होटो उत्सव करीने मितीथी तेनं * सिंहनाद नाम पाडयु. // 352 // कलाकलापकौशल्य-वल्लीवासमहोरुहः॥ लसल्लावण्यलीलावांस्तारं तारुण्यमाप सः॥३३॥ ततो विजयसेनाख्यो, विजयायाः सुतोऽन्नवत् // क्रमेण ववृ सोऽपि, कलालावणयबंधरः॥ कलाना समूहनी कौशलतारूप वेलने निवास करवामां वृक्षरुप तथा लचकता लावण्यनो लोलाबालो ते * कुमार उत्तम एवी यौवनावस्था पाम्यो. // 353 // पछो विज्याराणीने पण विजयसेन नामनो पुत्र थयो. ते पण कलाना समूहनो जाण एवो अनुक्रमे वृद्धि पाम्यो. // 354 // * शत्रुमर्दनन्नूपस्य, दे कन्ये परिणायितौ // तौ हावपि मुदा कोडां, चक्रतुःस्वेच्छया सदा 34 | अन्येापतिःप्राह, मंत्रिणं प्रति धर्मधीः॥ स्वराज्यं सिंहनादाय, दत्वा लास्यामि संयममा ___ कीर्तिचंद्र राजाए ते बन्ने पुत्रोने शत्रुमर्दन राजानी वे पुत्रीनो साथे परणाव्या. पछी ते बन्ने कमारोपण पोतानी इच्छा प्रमाणे निरंतर हपैथी क्रीडा करवा लाग्या. // 355 // कोइ वखते धर्मबुद्धिवाला कीर्तिचंद्र राजाए मंत्रोने कह्यु के, म्हारुं राज्य सिंहनादने आपी हुं चारित्र लइश. // 356 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ गुण चरिः !!103 // TAITAC.Gunratnasun M.S. तत् ज्ञात्वा विजया दध्यौ, प्राग्दत्तोऽस्ति वरो ममा॥ तेन स्वस्वामिना राज्यं, निजपुत्रायदापये॥ श्रुतायामिति वार्ताया, नूपश्चिते व्यचिंतयत् // कुत्र स्थाने गृहीतोऽस्मि, तयाप्यबलयाधुना॥ आवात जाणोने विजया विचार करवा लागी के, " मने राजाए पूर्व वरदान आप्यु छे, माटे हुं तेमनो पासेथी म्हारा पुत्रने राज्य अपा. // 357 // विजयानो आवो विचार सांभली राजाकीर्तिचंद्र पण विचार करवा लाग्यो के, "अहो ! हवणां ते निर्बल एवी स्त्रोये पण मने केवा स्थानमा वश करी दीधो छे."॥३५८॥ इति चिंतयति मापे, वनपालो व्यजिझपत् // समेताः कानने संति, प्रन्नो श्रीप्रनसूरयः॥ श्रुत्वति नूपतिः कांताहितीयेन समन्वितः // जगाम सपरिवारः, सूरीनंतु महोत्सवात् // आ प्रमाणे राजा विचार करतो हतो, एवामां वनपाले आदीने विनंतो करोके, “हे प्रभो! उद्यानमां श्री प्रभसूरि आव्या छे."॥३५९ // वनपालनां एवां वचन सांभली वे स्रोयो सहित परिवारे विटलायलो राजा महोत्सवथी मूरिने वंदना करवा गयो. // 360 // तत्र गत्वा गुरूत्रत्वा, निविष्टो नूपतिः पुरः॥ शुश्राव क्लेशनाशाय, पेशलां देशनामिति // मित्रपुत्रकलत्राणि, विघटते क्षणात्पुनः // सम्यगाराधितो धर्मो, न जंतुषु कदाचन // 362 // त्यां जइ अने गुरुने नमस्कार करी तेमनी आगल बेठेलो राजा क्लेशने नाश करवा माटे उत्तम एवी देशाना ने आ प्रमाणे सांभलवा लाग्यो. // 361 ॥“मित्र पुत्र अने स्त्रो ए क्षणमात्रमा नाश पामी जाय छे, परंतु उत्तम रीते आराधेलो धर्म प्राणीने विषे क्यारे पण नाश पामतो नथी." // 36 // देशनामित्यसौ श्रुत्वा, प्रवुहृदयोऽनवत् // नृपः पुनर्गुरून्नत्वा, जगाम निजमंदिरम् 363 र | निविश्य मंत्रिनिर्यावशज्यचिंता करोत्यसौ // तावत्तत्र समायाता,विजया वीक्ष्यतेस्म सा॥ ए प्रमाणे देशना सांभलीने राजा प्रतिबोध पाम्यो; तेथी ते फरी गुरुने नमस्कार करी पोताना घेर गयो. // 363 // पछी ए राजा मंत्रीनी साथे बेसीने राज्यनो विचार करतो हतो, तेटलामां तेणे त्यां पोतानी पासे आवती एवी ते विजयाराणीने दीठी.॥३६४॥ Jun Gun Ancho Trust 13 //
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS मदोयमानसे योऽस्ति, मनोरथतरुर्महान् // तनंजनार्थमायाता, विजया करिणीसमा // 36 // 2 इति ध्यायति नूपे सा, निविष्टा नविष्टरे॥ इत्येवं स्पृष्टमाचष्ट, प्राणेश श्रूपतां वचः // 366 * पछी " म्हारा मनमां जे मनोरथरुप म्हॉटुं वृक्ष छे, तेने तोडी पाडवा माटे हाथणी सरखी आ विजया as आवी छे." // 366 // राजा आ प्रमाणे विचार करतो हतो एवामां भद्रासन उपर वेसीने राणी विज्याए आ प्रमाणे स्पष्ट कह्यु के, “हे प्राणनाथ ! म्हारां वचन सांभलो. // 366 // 2 यः पर्व मे प्रदत्तोऽस्ति, वरं स्मरसि तं प्रिय // यदि स्मरसि तत्राथ, यद्याचे तत्प्रसाद ततस्तु नपतिर्दध्याव निष्टत्त्वेन तझिरि // विस्तरेण तया व्याप्तं, कार्यमेव न जल्पति 350 हे प्रिय ! आपे पूर्व मने जे वरदान आप्यो हतो, ते वर आपने सांभरे छे ? जो ते सांभरतो होय तो आजे जे मागं ते आपो." // 367 // पछी तेनी वाणीमां अनिष्टपणाथी राजा विचार करवाना विस्तारथी व्याप्त एवं कार्य न कह्यु. // 367 // ततो हमिति राझोक्ते, सा जगाद ततः प्रिय // दापय संयमो मह्यं, गुरुपादांतिकेऽधनाRETU श्रत्वेति नपति प्रीतः,प्रोताः सचिवपुंगवाः॥सर्वेऽपि श्लाघयामास, साधु साध्विति तां महः॥ __ पछो 'हं' एम राजाए कयु एटले राणोये कह्यु के, " हे प्रिय ! हरणां मने गुरु पासे चार maavप्रियानां आवां वचन सांभली राजा प्रसन्न थयो, तेमज श्रेष्ट प्रधानो पण खशी थयाः तेथी ते मौ तेनां "बहु सारुं बहु सारूं." एम वारंवार वखाण करवा लाग्या. // 370 // जपः प्रोचे प्रियेगं ते,कोमलं कठिनं वृत्तम् ॥कथमौचित्यमत्रास्ति,मोहोऽपि खल इस्त्यजः। माख्यरूपदेशेन, व्यामोहो मेऽवलीयत // पश्यामि सकलं विश्वं, ततोऽहं सदृशं दृशा 10 सजाए को."हे प्रिया ! न्हालं अंग कोमल छे तेमज वृत कठीण छे, माटे ए योग्य शी रीते पण नि दस्त्यज छे." // 371 // विजयाए कछु."गुरुना उपदशथी म्हारो मोह नाश पामी गयो छे. तेथी। दृष्टिथी सर्व विश्वने समान देखुर्छ. // 372 / / XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust 372
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________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. XXXXXXXXX | पुमपा जगादता, कृत्वा राज्यस्य सूत्रणाम् // आददाने गुरोर्दादां, मयि त्वमपि तां नज॥ चरित्र M परीक्षार्थ पुनः सोऽवक्, कस्मै राज्यं प्रदास्यते ॥सा जगौ तत्र जानामि, यद्योग्यं तत्समाचर // 10 // दास राजाए फरो तेने कह्यु. "राज्यनी व्वस्था करीने हं गुरु पासे दीक्षा लउ एटले तुं पण दोक्षा लेजे"॥३७॥ वली राजाए परीक्षा माटे कह्यु के, " राज्य कोने आपीशुं ?" विज्याए उत्तर आप्यो के, हुं जाणुंछ के तमे राज्य सिंहनादनेज आपशो, माटे जे योग्य होय ते आचरो. // 374 // हृष्टो राजा विसृज्यैनां, सिंहनादाय सूनवे // राज्यं दत्वा तया साकं, गुरूपांतेऽग्रहीद्रतम् // अथ राज्यं पपौ तत्र, सिंहनादो नरेश्वरः // प्रतापाक्रांतदिकचक्रः, शक्रोपमपराक्रमः // 376 न ____ पछी हर्ष पामेला राजाए विज्याने रजा आपीने सिंहनाद पुत्रने राज्य सोप्यु. पछी तेणे विज्या सहित गुरु पासे चारित्र लीधुं. // 375 // पछी प्रतापथी सर्व दिशाओने वश्य करनारो अने इंद्रना सरखी उपमा वालो सिंहनाद राजा राज्यनुं पालन करवा लाग्यो. // 376 // | अन्येद्युपतेस्तस्य, समज्यामधितस्थुषः // रवेबिमिवायासीद्विमानं व्योममंझले // 37 // नई पश्यत्सु लोकेषु, रत्नानः खेचरस्ततः // श्यामया सहितः प्रापदास्थानं तन्नरेशितुः 378 __ कोइ वखते ते राजा सभामां बेठो हतो एवामां आकाशने विषे सूर्यना मंडल समान वैमान आव्यु. 377 पछी सर्व लोको उचुं जोता हता एटलामा रत्नाभ विद्याधर श्यामा सहित ते राजानो सभामां आव्यो // 378 // नत्याय नूपतिः साकं, सन्नया सन्नया सह // तौ हौ गौरवयामास, स्वसारं नगिनीपतिम् * स्वस्त्रा प्रीत्या प्रदत्ताशीस्तनिर्दिष्टः स विष्टरे // आसीनः खेचरं वीक्ष्य, पप्रच्च कुशलं नृपः॥ पछी राजा, समा अने सभा सहित उठीने ते पोतानो व्हेन अने बनेवी ए वन्नेनो सत्कार करवा लाग्यो. व्हेने प्रीतिथी आशीप आपेला अने आसन उपर वेठेला राजाए रत्नाभ विद्याधरने जोइने कुशल पूछयु।।३८०॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ XYYYINS P.P.A. Gunratnasuti MS Ke तेनोक्ते कुशले स्वीये, राजाप्याचष्ट तं निजम् // एवं परस्परं वार्तावल्लोपल्लवितनयोः 301 विद्याधरे पोतानु कुशल कह्या पछा गजाए पण पातानुं कुशल तने कयु. ए प्रमाणे परस्पर वातोथा प्रफुलित मुववाला ते बन्ने थया. // 371 // दमापति खेचरः प्रोचे, त्वयि गलस्थिते मया // अनाहतानां वाद्यानां, मातुस्तेऽपुरि दोहदः॥ पछो विद्याधरे सिंहनादने कह्यु के, " तमे गर्नमा हता त वखत तमारो मातानो अखंडात वाद्य संबंधी दोहद में परचो हतो. // 382 // 1 नूपःप्रोचे महाविद्या, यदनाहतवाद्यता // स प्रोवाच मया दत्ता, तुन्यं सा यदि रोचते 3.3 / * ततः पठिता सिासा, तेन दत्ता प्रमोदतः॥ आददे नूतुजा विद्यानवद्याश्चार्यकारिणो Bhim गजाए अनाहत वाद्यता महाविद्या विद्या पूछो एटले विद्याधर कधु के,"जो ते तमने सरेनोन * पीश // 383 // पछो भणेला अने सिद्ध एगो ते विद्या विद्याधरे आपो अने राजाए ते आश्चर्यकारिणी विद्या ग्रहण करो. // 384 // अथागृह्णति नपाले, स्थि यर्थ खेचरो जगौ // मलयागिमिष्यामि,तत्र मे सालिका त्यक्तिप्रवमारुह्य. विमान श्यामया सह // हशारदृश्यता साऽगात, स्वप्र . पछा राजाए रहेवानो बहु आग्रह करयो एटले विद्याधरे कछु के, “हु मल्याचल पर्वत उपर जाकार के. त्या म्हारा सोबतीयो गया छे. // 385 / / आ प्रमाणे कहान श्यामा सहित विपान उपर बेसी ते वि. * द्याधर स्वप्नाना पेठे क्षणमात्रमा अदृश्य थइ गया. / / 206 // ततः परं नरेऽस्यांगणे धर्मनसासमम् // अनाहतानि वाद्यानि, विशेषाञ्च रणांगणे // 387 // *ततो निता नपाःसर्वे, तस्यप्झामेनिरे स्वयम् / तस्मं च ददिरे दममखमद्यतिशालिने 38. पली राजाना आंगणे अन दुमेननी साथे रणांगणमां अनाहत वानींत्री विशेष बागवा लाग्यां.॥३८ पड़ी भय पामेला सर्वे राजाओ सिंहनादनी आज्ञा मानीने अखंड कातिवाला तेने दड आपत्रा लाग्या. // 3n ताः // EX***********************X Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPA Gunst MS साम्राज्यं कुर्वतस्तस्य, प्रजापालनशालिनः // वत्साराणां सहस्त्राणि, नित्यं सुखमयान्यगुः॥ चरिर अन्येास्तत्र संप्राप्ता, मुनिचंज्ञख्यसूरयः॥ तानंतु सपरीवारो, जगाम पृथिवीपतिः // 350 // 10 // ____ प्रजानु पालन करवावाला ते राजा राज्यने करता छता सुखमयमा हजारो वर्षों चाल्यां गया. // 389 // कोई वखते त्यां मुनिचंद्रसूरि आव्या. तेवारे राजा परिवार सहित तेमने वंदना करवा गयो. // 39 // नत्वा श्रुत्वोपदेशं च, पप्रच स्वन्नवं गुरुन् // ते प्रोचिरे पुरस्तस्य, नगरे हस्तिनापुरे // 31 // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, धर्मनामानवत्सुतः॥ पूजायां क्रियमाणायां, वाद्यपूजा कृतामुना ३ए। ____त्यां तेणे गुरुने नमस्कार करी उपदेश सांभली पोतानो भव पूछयो एटले गुरुए कह्यु के, " हस्तिनापुर नगरमां // 391 // धनदत्त शेठने धन नामनो पुत्र हतो. पूजा करतां छतां तेणे वाद्यपूजा करी हती. // 392 // जिनपूजाप्रत्नावण, प्राज्यं राज्यमिदंतव // वाद्यार्चनविशेषात्ते, तदानाहतवाद्यता // 393 // | श्वं पूर्वनवं श्रुत्वा, नृपो प्राज्यस्मरोऽन्नवत् // विशेषादर्हतधर्म, प्रपेदे गुरुसन्निधौ // 3 // ते जिन पूजाना प्रभावथी आ भवमां तने उत्तम राज्य मल्यु; तेमज बाद्यपूजाना विशेषपणाथी ते वखते - अनाहतवाद्यपणुं प्राप्त थयु. // 393 // ए प्रमाणे पूर्वभव सांभली राजा जातिस्परण ज्ञान पाम्यो, तेथी तेणे गुरुपासे विशेष अरिहंत धर्म अंगीकार करयो. // 394 // a गुरुन्नत्वा ग्रहं गत्वा, चिरं राज्यं स पालयन् // तनुजं नानुनामानं, पट्टदेव्यामजीजनत् ३ए। समये सूनवे राज्यं, दत्वा वैराग्यसन्नृतः // तेषामेव गुरूणांस, पार्श्वे संयममाददे // 396 // पछी गुरुने नमस्कार करी घरे जइ दीर्घकाल पर्यंत राज्यनु पालन करता तेने पट्टराणीथी भानु नामना As पुत्रने पाम्यो. पछी अवसरे पुत्रने राज्य आपी वैराग्यवंत एवा ते राजाए तेज गुरु पामे चारित्र लीधुं. // 396 / / प्रपाल्य निरंतिचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // वाहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽन्नवत् // चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततश्च्युतः॥ षोमशःसोमनामासौ, तनुजस्तवनूपते 3 1050 RXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXKX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS अनुक्रमे अतिचार रहित उन्मल उत्तम चारित्रने पाली अंते अनशन लइ ते राजा सौधर्मदेव लोकपां देव ता थयो / / 397 // (श्री नरवमो केवलो गुणवर्मा राजाने कहे छे के,) हे राजन् ! पछी त्यां बहु काल सुख भोगवी चलो ते त्हारो आ सोम नामनो सोलमो पुत्र थयो छे. // 398 // // इति वाद्यपूजायां धर्मकथा // नाट्यपूजा कृताये न, फलं तस्य निगद्यते // पुरं पृथ्वीप्रतिष्टानं, महाराष्टेषु विद्यते॥३९॥ * बनूव जयदेवाख्यस्तत्र नूपतिकुंजरः॥ करेणुक्यानित्नातस्यानूऊयश्री सुवञ्जना // // जेणे नाट्यपूजा करी छे, तेनु कहेवाय छे. महाराष्ट्र देशमा पृथ्वीप्रतिष्टान नामर्नु नगर छे. // suum सां राजाभोमां हस्तिसमान जयदेव नामनो राजा हतो. तेने हाथणीममान जयश्री नापनी स्त्री हती. // 400 // तनुजो धनदत्तस्य, धोरस्तत्कुदिमागतः॥ समये स तया जातः, पिताश्चके महोत्सवम् 401 रत्नसिंहारख्या सोऽयं, वईमानो दिने दिने // कलाकलापकौशल्यशालो तारूण्यमासदत 402 हवे धनदत्तनो पुत्र धीर ते जयश्रीना उदरमां आव्यो, अवसरे तेने जन्म आप्यो अने पिताए महोत्सव करचो. // 401 // रत्नसिंह नामनो ते कुमार दिवसे दिवसे वधता छतो कलाना समूहनो जाण थड युवावस्था पाम्यो. // 40 // धरणीधरन्नपस्य, धारिणीकुक्षिसंनवा // रमति कन्या तेनोढा, रेमे च स तया सह // 4 // 3 // अन्यदा रत्नसिंहस्य, रत्नपल्यंकशायिनः // निशोथसमये निश, नेत्रतो दूरतां गता HDH धरणीधर राजानी स्त्री धारिणीना उदरथी उत्पन्न थयेलो रमा नामनी कन्याने परणीने ते प र स्त्रीनी माथे क्रीडा करवा लाग्यो. // 403 // कोइ वखते रत्ननी शय्यामां सूतेला रत्नसिंहनां नेत्रमाथी अधि रात्री वखते निद्रा जती रही. // 40 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ चरित्र गुण 12 // PPA Gurut MS सोऽथ जागरितोऽश्रीसोनाट्यध्वनिममंदधोः // मृदंगादिकवादित्रगोतगानमनोहरम् // 305 // रणनूपुरऊकारघर्घरीघोषबंधुरम् // नल्लसन्मेखसादामकिंकणी कंकणक्वणम् // 406 // . ___ पछी जागी गयेला त उत्तम बुद्धवाला कुमारे मृदगादी दाजींत्रोना शब्दोथी अने गीत गानथी मनोहर शब्दायमान थता मांझरना झंकार अने घुघर्गोथी मनोहर तेमज उच्छलती मखलानो घुघरीयोना शब्दवाला नाट्यशब्दने सांभल्यो. // 406 // श्रुत्वेति दध्यिवानेष, स धन्यो यस्य कस्यचित् // पुरतो जायते नाट्यमिदमाश्चर्यकारणम्॥ नत्याय तल्पतः सैष, गवाक्षादिषु वोक्षराम् // चकार चतुरस्तेनादिप्तचेताः पुनः पुनः 408 ____आवा नाट्यने सांभलो रत्नसिंह कुमार विचार करवा लाग्या के, “जेनी कोइ पुरुषनी आगल आवं आश्चर्यकारी नृत्य थाय छे तेने धन्य छ. // 407 // पछी शय्यामाथी उठीने गोख विगेरेमा चतुर एवा ते कुमारे वारंवार आम तेम जोयु. // 408 // परं ददर्श नक्कापि, केवलं तद्वनिःश्रुतः // असौ विचिंतयामास, किमिदं कौतुकं महत् // अश्वप्लुतं यथा जायमानं श्रूयेत निश्चयः॥ परं न शक्यते कर्तुः कुतश्चिन्नवतोत्यदः // 410 // परंतु कोइ ठेकाणे नाट्य दिठं नहि, पण तेनो शब्द मांभल्यो तेथी ते कुमार विचार करवा लाग्यो, "अ. हो! आ कांड म्होटुं आश्चर्य छे ?" // 409 // जेवी रीते अश्वप्लुत थतो निश्चे संभलाय छ, पण तेवो करवा समर्थ थवातुं नथो तेम आ नाट्य क्यांइ पण थाय छे. // 410 // पाताले नूतले वापि, गिरौ वा गगनेऽपिवा // अन्यत्र वा नवेत्कापि, नृत्यमेतन्मनोहरम् // कर्णयोर्जायतेहर्षे, नाट्यस्य ध्वनितःश्रुतेः॥ तस्यावीक्षणतः किंतु, खेद्यते नेत्रयोर्युगम् 412 पातालमां, पृथ्वी उपर, पर्वत उपर, आकाशमां अथवा वीजे कोइ ठेकाणे आ मनोहर नृत्य थाय छे. // नाट्यनो शब्द सांभलबाथी बन्ने कानने हर्ष थायछे अने ते नाट्यने न जोवाथी बन्ने नेत्रने खेद थाय छे / / 412 // *****XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Awacha Trust 16 //
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS एवं चिंतयतस्तस्य, श्रृण्वतस्तद्ध्वनिमुदा॥ यामो जगाम यामिन्याः,प्रिया तेनाथ बोधिता॥ बोधयित्वा स तां यावत् ,प्रतिस्म सविस्मयः॥तावनाट्यध्वनि तस्यौ,सा प्रोचेबोधितास्मि किम् ____ आ प्रमाण विचार करतां अने नाट्यशब्दने हर्षथी सांभलतां एक पहोर जतो रह्यो पछी तेणे पोतानी खीने जगाडी // 413 // प्रियाने जगाडीने जेटलामां ते विस्मय सहित पूछे छे तेटलामां नाट्यशब्द बंध भयो पछी स्त्रीये पूछयुं के, “मने तपे केम जगाडी." // 14 // स जगाद श्रुतं किंचित्त्वया सापि पुनर्जगौ // श्रूयते नैरवीशब्दः, श्रृगालानां रवस्तथा 415 स चकार ततो हास्यं, सा प्रोचे किं स्मितं प्रिय // अयुक्तं किं मया प्र.क्तं, येनेत्थं दस्यते वया ___ पतिये का. "ते काइ सांभल्युं ?" स्त्रीये उत्तर आप्यो के भैरवा शब्द अने शीयालोना शब्द संभलायो खीनां आवां वचन सांभली रत्नसिंह इमी पडयो एटले स्वीये कह्यु के, "हे प्रिय! तमे केम दृश्या? योग्य कह्यु छ के, जेथी तमे आप हो छो?" // 416 // ततो नाट्यस्वरूपं स, जगाद दयितां प्रति // सा प्रोचेऽहं न जानामि, प्रमिलायां किमप्यत पाकिमप्यनूत् त्रि तस्यां संप्राप्त निशयां, पुनः शुश्राव स ध्वनिम् ॥तेन शग्बोधिता सातु, न शुश्राव किमी ____ पछी पतिये नाट्यनी वात कही एटले स्वीये कह्यु के, “हुँ नथी जाणती जे रात्रीने विषे शं या | स्त्रो फरी उघी गइ एटले रत्नसिंहे फरी नाट्यशब्द सांभल्यो, तेथी तण स्त्रीने तुरत जगाडी पहली काइ पण सांभल्युं नाहे. // 418 // किं तथेति तया प्रोक्ते, विलद स्वपितिस्म सः // प्रातः प्रबुदः प्रान्नातकार्याणि विदधे सघोर नाट्यस्वरूपं पप्रच. स स्वमित्राणि चैकसः॥ परंप्रोचे न केनापि, स्वल्पनिमा मेमने वृथा शा माटे जगाडो छो?" एम स्वीये कहेवाथी विलक्ष बनेलो कुमार उघी गयो. पनी मन जागी उठेला ते उत्तम वुद्धिवाला कुमारे सवार संबंधी कार्यों करयां. पछो तेणे पोताना नाट्यस्वरूप पुछयूं; परंतु अल्पनिद्रावाला पण कोइये ते कडुं नहि. // 420 // Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPC Guru MS गुणस एवं निशि निशि श्रुत्वा, तं नाट्यध्वनिमद्भुतम् // मुहुर्मुहुश्च प्रचतं, दारामित्राणि तं जगुः // // 10 // तव ब्रांतिरियं काचिदथवा चित्तवालकः // ततोऽसौ मौनमाधाय स्थितः श्रृण्वत्यपि स्वयम् ___ए प्रमाणे दरेक रात्रीये अद्भुत नाटयशब्द सांभलतो कुमार हमेशां पोतानी स्त्रो अने मित्रोने पूछतो अने तेओ तेने कहेता के, // 421 // " आ तमने काइ भ्रांति अथवा चित्त चपलपणुं थयुं छे." पछी ते कुमार मौन राखीने हमेशां ते नाट्यशब्दने पोतेज सांभलतो. // 422 // एकविशंतिघस्त्रेषु, व्यतीतेषु तथैव सः // नाट्यचिंतातुरो रात्रा, तेजः पटलमैक्षत // 423 // सोद्योते मंदिरे जाते, तेजसा तेन सोग्रतः॥ ददर्श दैवतं दिव्यमालालंकारसुंदरम् // 24 // एज प्रमाणे एकवीस दिवस गया पछो बाबोसमे दिवसे नाव्यविचारमां आतर एवा ते कपारे रात्रीने विषे तेजनो समूह दीठो.॥४२३॥ तेजथी मंदिर देदीप्यमान थयु एटले रत्नसिंहे पोताना आगल दिव्यमालाना अलंकारथी सुंदर एवा कोइ देवताने दोगे. // 424 // विस्मितो रत्नसिंहस्तं, विलोक्य रविन्नास्वरम् // वक्रपद्मं दधौ युक्तं, रात्रावपि विकस्वरम् // कोऽयं कथं कुतः प्राप्त, इति चिंता वितन्वति // तस्मिन्नतौ जगादेति, श्रूयतां सुकृतालय // देवताने जोइ विस्मय पापला रत्नसिंहनुं मुखकमल रात्राने विषे सूर्य या प्रफुल्लित एवा कमल मरस्बु थयु. // 425 // आ कोण छे ? केम श्राव्यो छे ? अने क्यांथो आव्यो छे ? एम कुमार विचार करतो हतो एवामां ते देवताए कह्यं के, "हे पुण्यवंत ! सांपल. // 426 // नाटयस्य चिंता ते चित्ते, वरिवर्तिनिरंतरम् // तत्स्वरूपमहं वक्तुं, प्राप्तोऽस्मि व्यंतरामरः॥ मूलतः शृणु संबंधमस्ति रत्नपुरं पुरम् // शंकरा नूपतिस्तत्रालवल्लोकप्रियंकरः // 458 // त्हारा चित्तमां नाट्यनी चिंता निरंतर रहे छे, तेनुं स्वरूप कहेवा माटे हुं व्यंतर देवता अहिं आव्योछु. // 427 // मूलथो संबंध मापल. रत्नपुर नामर्नु नगर छे, त्या लोकने प्रियकारी एवो शंकर नामनो राजा राज्य करतो हतो. // 428 // KXXXX7232325222262XXXXXXXXXXXXXXXXXX kakkak****KXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Awraca Trust // 10 //
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________________ P.PA. Gunratnasuti MS * गौरी नाम्ना प्रिया चासीत्, गौरीवाम्य मनोहरा // शैवधर्मेतयोश्चित्तं, वसतिस्म क्रमागते अन्यदा सुसुवे पुत्रपुत्रीयुग्मं नृपप्रिया // पद्मनामानवत्पुत्रः पुत्री च कमलाख्यया // 30 // ते शंकर राजान गौरीना सरखी गौरी नामनी स्त्रो हती. ते स्त्री पुरुपर्नु चित्त पाताना कुल परंपराए चालता आवेला शिवधर्मने विषे हतुं. // 429 // कांइ वखते गौरीये पुत्रपुत्रीना जोडलांने जन्म आप्यो. तेमां पत्र नुं नाम पद्म पाडयु अने पुत्रीनुं नाम कमला पाडयु. // 430 // तयोर्मासेव्यतिक्रांते, तत्रायातास्तपस्विनः // नं तुं जगाम नूपालः पालयन् स्वकुलकमम॥ तेषां धर्मोपदेशंत, श्रुत्वा वैराग्यकारणम् // मासं जातं सुतं न्यस्य, राज्ये दीदामुपादे॥ ते पुत्र पुत्री एक मासनां थयां, एवामां त्यां कोइ तपस्वी आव्या एटले राजा पोताना कुळक्रमने पाळतो छतो तेमने वंदना करवा गयो. / / 431 // तेओनो वैराग्यकारण उपदेश सांभलो राजाए एक मासना पत्रो राज्यासने बेसारी दीक्षा लोधी. // 432 // बित्राणःस जटान्नारं, नस्मोद्वलितगात्रन्नाक् // नूपो जगाम तैः साकमाश्रमं श्रमवर्जितः // पितर्ग्रहं प्रति प्राज्यपरिवारसमन्विता // मिलनाय तदा राझी, युगलेन सहाचलत // 23 पछी भस्मथी लेपायला शरीरवालो शंकर राजा जटाना भारने धारण करतो छतो श्रम रहित ह . पस्विओनी साथे तेमना आश्रममा गयो. // 433 // पछी उत्तम परिवार सहित राणी पोतानां पत्रपत्रीने साथे लइ पिताना घर प्रत्ये मलवा माटे चाली. // 434 // राज्यनारधृतौ स्तंन्ना, निर्दना मंत्रिणस्तदा // अनुगत्य कियद्राझी, तदिसृष्टा परं ययौ की तस्यामटव्या प्राप्ताया, निल्लघाटो समापतत् // लोकेषु खुंटयमानेषु, प्रणष्टाःसनटाला ते वखते राज्यभारने धारण करवामां स्तंभ सरखा अने सरल एवा मंत्रीयो केटलेक सुधी राणीनी पालन जड़ने पछी राणीये रजा आपवाथी नगरमा आव्या. // 435 // अनुक्रमे राणी अरण्यमां आवो पहोंची र भिन्न लोकनी धाड आदी अने राणीने लुटवा मांडी, जेथो मुभटो पण नासी गया.॥३६॥ EXKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhox Trust
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________________ गुण // 10 // PPA Gunratt MS | ततःपलायमानासा, गृहीत्वा तनयं गता // अत्यंतव्याकुलत्वेन, पुत्री तत्रैव विस्मृताः 437 ततो गतेषु तेषु च, लोकास्ते मिलिताःपुनः॥ विस्मृतां शोधयामास, राझी निजसुतां नरैः॥ __ पछी नासी जती एवी राणी पण पुत्रने लइने नासी गइ. अने अत्यंत व्याकुलपणाथी पुत्रीने त्यांज भली गइ. // 437 // पछी से भील्ल लोको चाल्या गया एटले राणीना सौ माणसो एकठा थया. वे वखते राणीये पोतानी खोवाइ गयेली छोकरीने शोधाववा मांडो. // 438 // अप्राप्य तां वने क्वापि,सा जगाम पितुर्गृहम् मातापितॄन्यामानंदं ददाना तत्र तस्थुषी॥४३९॥ तत्र स्थित्वा कियत्कालं, सा जगाम निजं पुरम् // तनयं वईयामास, शैशवादपि नूपतिम्॥ ____ वनमां क्यांइथी पण पुत्रीने न पामीने ते राणी गौरी पिताना घरे गइ अने सां ते मातापिताने आनंद पमाडती छती रही.॥ 439 // त्यां केटलोक रह्या पछी ते राणी पोताना नगरे गइ अने राजारूप पाताना पुत्रने बाल्यावस्थाथी म्होटो करयो.॥ 440 // तत्र तारुण्यमारुडे, लसल्लावप्पयशालिनि // तद्योग्यां कन्यकां राझी, पप्रच निजमंत्रिणः // कोऽपि प्रोचे पुरे पद्मनानाख्ये शिवनूपतेः॥ वनमालानिधा कन्या, वर्त्तते रूपशालिनो वश राजकुमार पद्म उत्तम लावण्यथा शोभता एवो योवनावस्थामां आवो पहोच्यो एटले राणीये ते कुमारने योग्य एवी कन्यानी वात पोताना मंत्रीयोने पूछा. // 441 // ते वखते कोइये कडं के, पद्मनाभ नगरमां शिवराजाने वनमाली नामना रूपवनी पुत्रो छे. // 443 // तदैव प्रेषयामास, तदर्थे सा निजानरान् // पद्मनानपुरं गत्वा, ते शिवं तां ययाचिरे 443 तां प्राप्य लग्नं संस्थाप्य, ते निजं पुरमागताः॥ गौर्यै विज्ञापयामास, स्तत्सर्वं मत्सरोमिताः॥ ___ पछी तेज वग्वने राणी गौरीये ते कन्यानुं मागु करवा माटे पोताना माणसो मोकल्या. माणसोए पण पद्मनान्न नगरमां नड शिवराजा पामे तेनी वनमाला पुत्रानुं मागु कर्यु. // 443 // राजा शिवे ते कवुन करयु एटले लग्ननो दिवस नक्की करी ते उद्यमवंत माणसोये पोताना नगरे आवी गौरी राणीने सर्व वात कही. | Jun Gun Amachak Trust |
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________________ Sy PP.AC.Gunratnasun M.S. EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ततो विवाहसामग्री, जायतेस्म महोद्यमात् // ताशंकरराजर्षिः सहसा पुरमाययौ॥४५॥ तमायांतं वने दृष्ट्वा, मंत्रोस्वन्नवने स्थितः // वातायने निविष्टः स्वे, चिंतयामास चेतसि // पछी म्होटा उद्यमथी विवाहनी सामग्री करवा मांडी, एवामां शंकर राजर्षि (गौरी राणीनो पति) तत्काल ते नगर प्रत्ये आव्या. // 445 // तपस्वीने नपवनमां आवेला जोइ मंत्री पोताना घरने विषे रह्यो छतो गोखमां बेसीने पोताना चित्तमा विचार करवा लाग्यो- // 446 // हलकष्टाममीनूमि, नाकामंति तपस्विनः // ततःकथमयं प्राप्तः, किंमनस्तपन्निःश्लथम् // तदा राज्यं परित्यज्य, रान्नस्यने वयं ययौ // विध्यं गज श्व स्मृत्वा, पुनरेषसमाययौ धवन a आ तपस्वीयो हलथी खेडेली भूमिने उल्लंघन करता नथी, तो पछी ए केम आव्या हशे ? शुं एमनुं मन * तपथी शिथील थयुं छे. ? 447 // तेओ ते वखते राज्यने त्यजी दइ वनमां गया हता अने हवणां विद्याचलने हाथी स्मरण करीने त्यां चाल्यो ज़ाय एम फरी अहिं आव्या छे. // 8 // परीक्ष्यामि गत्वाहं, स्वरूपं स्वयमेव तत् // पश्चात्पद्मनरेंशय, कथयामि यथोचितम प्र0 इति ध्यात्वा वनं गत्वा, मुनिं नत्वा निविष्टवान् // प्रपञ्च कुशलं मंत्री, नक्त्या विरचितांजलिः॥ * प्रथम त्यां जइ हुं तेमनी परीक्षा करुं अने पछी पद्मराजाने योग्य वात कहुं. // 449 // आ प्रमाणे विksi चार करी मंत्री उपवनमा जइ मुनिने नमस्कार करीने बेठा अने भक्तिथी हाथ जोडी कुशल पूछवा लाग्यो.४५० s/ अस्माकं केवलाद्भाग्याधुयमत्र समागताः॥ केनापि हेतुना वेति, विज्ञप्तो मुनिरब्रवीत् 451 * सर्वत्र कुशलप्रभः, प्रायसः क्रियते जनैः॥ परं मंत्रिन् मनुष्याणां, कुशलत्वं विलोक्यते // ____ अमारा भाग्थथी तमे अहिं आव्या छो अथवा कोई कारणथी आव्या छो ? एम विनंती करी एटले मुनिये कां. // 451 // “घणुं करीने सर्व ठेकाणे माणसो कुशलप्रश्न करे छे, परंतु हे मंत्री ! मनुष्योनुं कुशलपणं जोवाय छे. // 452 // KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPC Gurut MS गुण पद्म किं न समायातस्तन्माता किं समेति न // ता वार्ताःकारय प्रिं, ब्रवीम्यागमकारणम् // श्रुत्वेत्यचिंतयन्मंत्री, यन्मया चिंतितं पुरा // तदेव घटते सत्यं, हा त्वया किं कृतं विधे॥५॥ // 19 // अहिं पद्म केम नथी आव्यो ? तेनी माता केम न आवी ? ए वात झट प्रथम कहे. पछी हुं मारूं आवबार्नु कारण कहूं. // 453 // शंकर राजर्षिनां आवां वचन सांजली प्रधान विचार करवा लाग्यो के, "जे में प्रथम चिंतव्यु हतुं तेज सत्य घटे छे. हाय ! हाय! हे विधि ! तें आ शुं करयं? // 454 // विहिते कुशलप्रश्ने, कुशलत्वं विलोक्यते // इत्येषा कापि वक्रोक्तिविशेषं वक्ति कंचन॥४५॥ इति ध्यायनसौ शीघ्रं, गत्वा गौर्ये न्यवेदयत् // तत्दसापि साशंका, कार्य पुत्रमन्नाषत // "कुशल प्रश्न करथा पछी कुशल जोवाय छे." एम एमणे जे का ते वक्रोक्ति छे; माटे ते काइ वधारे as कहेवा धारे छे." // 455 // आ प्रमाणे विचार करीने मंत्रीए तुरत जइने गौरीने ते वात कही, तेथी गौरी पण शंका पामीने कांइ कार्य पुत्र पद्मने कहेवा लागो. // 456 // हे वत्स जनकस्तेद्य, संप्राप्तो वर्तने वने // सोऽवादीत्तर्हि तं नंतुं, गहामि सपरिबदः // 45 // सा प्रोचे वत्स नो वेत्सि, स्वरूपं रूपमन्मथ // स्थातव्यं तावदत्रैव, यावनाकारयाम्यहम् // ___" हे पुत्र आजे त्हारो पिता उद्यानमां आवेला छे." पुढे कह्यु. " हारे हुं परिवार सहित तेमने वंदन करवा जाउं ?" // 457 // गौरीये कडं. "हे सुंदर ! तुं एमनो आशय जाणतो नथी, माटे ज्यां सुधी हुं न तेडावू त्यां सुधी त्हारे थहिंज रहे." // 458 // इत्युक्त्वा तत्र संस्थाप्य, पद्मं पद्मोपमानना // तेनैव मंत्रिणा साकं, सा गता मुनिसंनिधौ // वाताहतमिवादशैं, किंचिहिचायतां गता // वदनं तस्य पश्यंती, दंडवत्प्रनाम सा // 6 // एम कहीने पद्मना सरखा मुखवाली ते गौरी पद्मने त्यांज राखो पोते ते मंत्रोनी साथे मुनिनी पासे गइ.४५९ वायुथी हणायेला दर्पणनी पेठे कांइक लजायुक्त थयेली ते गौरीये मुनिना मुखने जोती छती दंडवत् प्रणाम करया. // 460 // Jun Gun Aaradhat Trust 109 //
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS मुनिः प्रोवाच किं नागात्पद्मः किं वारितस्त्वया // अहं स्वरूपं जानामि, तवास्य सचिवस्य च श्रुत्वेति राझी मंत्री च, किंचिघीय परस्परम् // निश्चयं चक्रतुस्तस्य, चिंतितस्यैव मानसे // मुनिये कयु. “पद्म केम न आव्यो ? अथवा शुं तें वारी राख्यो छे ?" हुं त्हारी अने आ प्रधाननी सर्व वात जाणंठं // 461 // शंकर राजर्पिनां आवां वचन सांभलो राणी अने प्रधान ए वने जणाये कांडक एक वीजा सामु जोइ पोताना मनमां मुनिना चिंतवेला कार्यनो निश्चय करयो. / / 462 // | राझी बन्नाषे वः पुत्रः, सांप्रतं परिणेष्यते // ततो विवाहसामग्रो जायतेऽद्य महोद्यमात् // अस्य चिंता गले क्षिता, नवनियाल्प एवहि // ततस्तेनैव सा कार्या, कस्तस्यान्यःकरोति ताम् ____ पछी राणीये कह्यु के, “हवणां तमारो पुत्र परणवानो छे, माटे आजे वहु उतावलथी विवाहनो सामग्री थाय छे. // 463 // तमे बालक एवा ते पुत्रना गलामां चिंता नाखो छे, तो पछो तेने ते चिंता करवीज पडे, कारण तेनी चिंता बोजो कोण करे? // 464 // शिरो धुन्वन्मुनिःप्रोचे, चिंतयालं त्वयाधुना // यददं वच्मि तञ्चिते, चिंततां नान्यथाशनम राको दध्यौ ध्रवं चित्तमस्य राज्यानिलाषुकम् // दत्ते श्रापमयि क्रुश्स्ततौ नवति किं शुन्नम॥ पछो मुनिये माधुं धुणावतां कयु के, " त्हारे हवणां ए चिंता करवानी काइ जरुर नथो. हं तने जे को सनिमारण करनहितो अशुभ थशे.॥ 5 ॥राणो विचार करवा लागी के,"निश्चे आ राजपिन चित्त राज्यनी इच्छा करे छे; परंत जो तेमने राज्य नापीये तो ते क्रोधथी थाप आगे नोलोजी पणुं शुभ शुं थाय? // 466 // किंचित्रमत्र चेष्ठिश्वामित्राद्या अपि वंचिताः॥ विषयैर्वनवासेऽपि वनितावेषवीक्षणे॥४६॥ यहा नित्यं पुराणेपि, श्रुतं नागवतान्निधे // नारदात्प्राप्तवैराग्यः, प्रवृज्यायां परायणः / प्रियवृतनृपो राज्यं, बुन्नुजे तुजविक्रमी // तदंशे च क्रमेणानुक्षनः प्रथमो जिनः // usum Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ P.P.A. Gunnatnasuti M.S जाकएमा आश्चर्य शुं छे? कारण विषयोए वनवासमा रहेला विश्वामित्रादिकने पण स्त्रीयोना वेशमात्रने देखवामात्रमा छेतरी लीधा छे // 467 // अथवा निरंतर नागवत नामना पुराणमा सनिलीये छोयेके, नारदथी प्राप्त थयेला वैराग्यवाला प्रवृज्यामां तत्पर अने महा भुज पराक्रमी एवा प्रियवृत राजाए पण प्रवृज्या लीधा पछो राज्य भोगव्युं छे; वलो ते राजाना वंशने विषे अनुक्रमे पहेला श्री ऋषभदेव प्रभु थया छे.६९ चित्तं पुण्यगृहे स्थंनस्तञ्चेचलितमात्मनः // तत्कथं स्थिरतां याति, वाक्यपुर्बलदारुन्निः 470 पुण्यरूप घरनो चित्त ए स्थंभ छे, ते चित्तरूप स्थंभ पोतानो मेले खशी गयो तो वाक्यरूप पातला लाकडाना टेकाथी ते पुण्यरूप घर शी रोते उभुं रहो शके ? // 470 // हसतां रुदतां वायमतिथिः समुपागतः // हसनिर्गह्यते तर्हि, यनाव्यं तन्नवत्यथ // 471 // | चिंतयित्वेति सा राझी, पुत्रमाकारयत्तदा // तत्कणंस समायातो, मुनि नत्वा निविष्टवान् // हसो अथवा रुवो. परंतु आ परुणोतो आव्यो , तो पछी हसतांज तेने ग्रहण करोये; कारण जे थवानुं हशे तेज थाय छे. // 471 // आ प्रमाणे विचार करोने राणीये तेज वखते पुत्रने बोलाव्यो. पुत्र पद्म पण तुरत त्यां आवो मुनिने नमस्कार करी योग्य आसने बेठो. // 472 // मुनिःप्रोचे यदस्माकं, चित्ते तन्नवतां नहि // अन्यतो जायते बुबा, व्याहारा कियतेऽन्यतः // * अहिताय समायातस्तातः कातरतां गतः॥ इति चिंता न कर्तव्या, त्वया वत्स कदाचन USA पछी मुनिये कह्यु के, " जे अमारा मनमा छे ते तमारा मनमां नथो. ए एक तरफ वूम पडो अने वीजी तरफ दोडवा जेवू थयुं छे. // 474 // हे वत्स ! त्हारे " आ पिता कायरपणुं पामीने अमारा अहितने माटे आव्यो छे." एम चिंता क्यारे पण न करवी. // 474 // तपांसि कुर्वतो ज्ञानमुप्तनं मम सांप्रतम् // तेन झानेन विज्ञातं, नवतामसमंजसम् // 475 हितार्थ नवतां पृथ्वी, हलैः कृष्टामचिंतयन् // इहायातोऽस्मितत्सर्वैः श्रूयतां तत्वसंकथा H76 // 11 // Jun Gun Aaradhak Trust XXXXXXXXXXX
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________________ PPA Gun MS तप करता एवा मने हवणां ज्ञान उत्पन्न थयुं छे, अने ते ज्ञानथी में तमारुं अकल्याणकारी कार्य जाण्यं छे. / 479 // तमारा हितने माटे आ हलथी खेडायली पृथ्वीनो विचार न करतां हुं अहिं आव्यो ढुं, माटे तमे सौ तत्व वात सांभलो. // 476 // * या बाला वनमालाख्या, याचिंता शिवनूपतेः॥ ज्ञायतां ननु सामुष्य, सुतस्यैव सहोदरी // पित्रोः संगमसोत्कंग, पुत्रमाता तदाचलत् // प्राप्तायामटविमस्यां, निल्लधाटी समापतत् // तमे शिवराजा पासेथी जे वनमाला कुमारीनी मागणी करी छे, ते निश्चे आ पद्मकुमारनी व्हेन थाय छे. तेम जाणो. // 477 // पिताने मलवानी उत्कंठावाली आ पुत्र पद्मनी माता जती हती एवामां रस्ते प्राप्त थ. येला अरण्यमां ओचिंती भिल्लोनी धाड पडी.॥ 78 // नष्टा पलायमानेयं, पुत्री तत्रैव विस्मृता // शोधितापि न सा लब्धा, पितुर्गृहमियं ययौ / तदा तां पतितां तत्र, पद्मनान्नपुराधिपः // मृगयार्थं समायातः शिवो दृष्ट्वाग्रहोऽतम् // 4 // राणी त्यांची नासीने जती रही अने पुत्रीने त्यां भूली गइ. पछी त्यां बहु वखत शोध करी पण ते पत्री A जडी नहीं एटले ते (आ राणी) पिताने घेर गइ // 7 // // पछी ते वखते त्यां पद्मनाभ पुरनो राजा शिव मगया * रमवा आव्यो, तेणे ते पुत्रीने त्यां पडेली जोइ तुरत लइ लीधी. // 480 // Ik अनपत्येन तेनेयं, गत्वा पत्न्यै समर्पित // वने लब्धेति सावईनमालारख्यया सुखम् 181 शति स्वरूपं विझाय, कार्य कार्य यथोचितम् // आशीर्वचोऽस्तु पुत्राय, वयं यामो निजाश्रम * पुत्र रहित एवा ते राजाए घरे जइ ते पुत्री पोतानी स्त्रीने आपी, पछी वनमां प्राप्त थवाथी वनमाला KE नामनी ते पुत्री सुखे वृद्धि पामवा लागी. // 481 // आ प्रमाणेनी वात जाणीने हवे तमारे योग्य मार्ग पुत्रने आशिर्वाद हो, अने हवे अमे अमारा आश्रमे जइशें. // 482 // / मनिं मंत्रोच राझीच, दमयामासतुस्ततः॥ हितस्य हित चित्तेऽस्ति, चिंतितं हन्यतामिति अथ गते मुनौ तत्र, तेऽपि मंदिरमागताः // सचिवेन शिव प्रष्टे, ज्ञातवृताश्चमत्कृताः। un Gun A chat Trust
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________________ चरित्र. P.P.A. Gunratnasuti MS - पछी मंत्री अने राणी ए वन्ने जणाए मुनिनी क्षमा मागी. कारण के हितकारीना चित्तमां हितज होय छे, माटे चिंतितकार्यने दूर करो. // 483 // पछी मुनि पोताने आश्रमे गया एटले तेओ पण पोताना घरे गया. // 11 // परी प्रधाने ते शिवराजाने वनमालानी वात पूछीने जाणी, तेथो तेओ सौ चमत्कार पाम्या. // 48 // ततःसा चलिता सैन्यसहिता नगरानतः // प्राय शंकरराजर्षिसंश्रितं वनमंतरा // 45 // सात्र तातं निजं ज्ञात्वा, ववंदे सपरिचदा // प्रमोदाश्रुपरिव्याप्तमाननेत्रध्या रयात् // 486 // पी वनमाला पण त्यांथी सैन्यसहित चाली निकली अने शंकर राजर्षि ज्यां रहेता हता त्यां वनमा a आवी पहोची. // 485 // हर्षना आंसुथी व्याप्त नेत्रबाली ते वनमालाए त्यां पोताना पिताने जाणीने लेमने A परिवार सहित वेगथी वंदना करी. // 486 // | तपस्विना बन्नाषेसा, तपोग्रहणहेतवे // नानुमेने च सा बंधुजननोसंगमोत्सुका // 487 // ततस्तेन विसृष्टा सा, ययौ रत्नपुरं पुरम् // अन्यायातप्रसूवंधुप्रोणिता सौधमागता // 4 // तपस्वीये तेने तप आचरवानो बहु आग्रह करयो, पण बंधु अने माताने मलवा माटे नत्साहवाली वनमा लाए ते कबुल करयो नहीं. // 487 // पछी तपस्वी शंकर राजर्षिए रजा आपवाथी ते वनमाला रत्नपुर नगरे 25 गइ. त्यां सामा आवेला बंधु अने माताए प्रसन्न करेली ते राजमहेलमा गइ. // 488 // वरेषु चिंत्यमानेषु, तद्योग्येष्वन्यदा मुदा // बांधवस्यांतिकं प्राप्ता, सन्नायां सा सुलोचना // समुद्रमंत्रिणःपुत्रः सागराख्यः सरागधीः॥ संपूर्णयौवनामेतां दृष्ट्वा चित्ते व्यचिंतयत् // 4 // ____ माता अने बंधु ते वनमालाना योग्य वरनो विचार चलावता हता, एयामां कोइ वखते ते सुंदर नेत्रवाली पोताना बंधुनी पासे सभामां गइ. // 489 // आ वखने संपूर्ण यौवनवाली ते कन्याने जोइ रागवंत थयेलो | समुद्र मंत्रीनो पुत्र सागर पोताना चिंत्तमा विचार करवा लाग्यो. // 490 // XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust X|111 //
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________________ PPA Gunnast MS येन केनाप्युपायेन, स्वीकार्यासौ मया ध्रुवम् // पारवश्यं न यात्येषा, यावदन्यस्य कस्यचित ध्यात्वेति स जगौ तातं, रहःस्थित्वा विलऊधीः॥ पुत्रेण यदि कार्य ते, तउक्त कार्यमेव तत् // "आ कन्या जेटलामां वीजा कोइने न परणे तेटलामां म्हारे जे ते उपायथी तेने निश्चे अंगीकार करवी." R // 491 // आ प्रमाणे विचार करीने लज्जारहित बुद्धिवाला तेणे एकांतमा जइ पिताने कह्यु के, “जो तमारे पुत्रनी जरुर होय तो तेनुं कहेलुं एक कार्य करो. // 492 // बुद्धिं कुरुष्व तां तात, कातर्येणोधितां यया॥ वनमाला विशालाको, जायते गुहिणी मम // * मुखे प्रदाय हस्तं स, बन्नाषे किं त्वयोदितम् // सा कयं लभ्यते वत्स, परिणेतुं प्रत्नोः स्वसा॥ Rela हे तात! तमे कायरपणा विनानी तेवी बुद्धि करो के, जेथी विशाल नेत्रवाली वनमाला म्हारी स्त्री थाय." * // 493 // पछी पिताए मुख आडो हाथ राखीने कां के, अरे! पुत्र! ते ए शुं कर्यु ? महाराजानी व्हेन परण वाने शी रीते प्राप्त थाय? // 494 // सोऽवादीत् किं बहुक्तेन, वरं कूपे पताम्यहम्॥ दिपामि कुरिकां कुदौ, नच तिष्टामि तां विना * मंत्री प्रोचे न तेवत्स, नूपजीवतिसान्नवेत् ॥स्वामिशेहोऽपितच्चिंत्यः,सोऽवादीत् कुरुतत्क्षणम पुढे कह्यु. “वधारे कहेवाथी शुं ? बहु सारु, हुं कूवामां पडीश अथवा पेटमा छरी नाखीश, पण तेना र विना नहि रहुं. // 495 // मंत्रीये कह्यु. “हे वत्स ! राजा जीवतो होय त्यांमुधी ते त्हारी थइ शके नहीं. वली राजानो द्रोह ते पण विचारवा योग्य छे.' पुढे कह्यु. " तो तुरत ते स्वामिद्रोह पण करो." // 496 // इति मंत्रं चतुःकर्ण कृत्वा तो निर्गतौ बहिः॥ तथैव चक्रतुदेवा, विषं पद्माय पापिनौ 47 विषेण व्याकुले नूपे, पतिते पृथिवीतले // सा गौरी वनमाला च, मिलितश्च परिबदः 47 ___ए प्रमाणे विचार करी ते बन्ने जणा वहार गया अने ते पापीयोए पद्म राजाने विष आपीने तेवंज कार्य करयु. // 497 // राजा विषथी व्याकुल थइ पृथ्वी उपर पडयो, एटलामां गौरी, वनमाला अने परिवार त्यां आवी पहोच्यो.॥४९॥ KXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun A chat Trust
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________________ गुण // 11 // PPC Guru MS चित्तं विना प्रतीकारा, जुतमारेनिरे ततः॥ गुणो न तस्य कोऽप्यासीरोदितिस्म जनोऽखिलः चरिर रुदत्यां वनमालायां, गौस्यां वा सपरिचदे॥ चारणश्रमणश्चस्तत्रागाल्लानहेतवे // 500 // पछी मन विना उपायो करवा मांड्या, परंतु तेथी कांइ गुण थयो नहीं; तेथी सर्व माणसो रोवा लाग्या॥ वनमाला, गौरी अने परिवार रोवा लाग्या, एटलामां त्यां कोई चंद्र नामना चारण मुनि लाभ माटे आव्या. 500 अहोन्नाग्यमहो नाग्यं, प्राप्तोऽयं मुनिपुंगवः // एतेन ज्ञायते नूनं, नव्यमेव नविष्यति 501 एवंलोके वदत्येव, तत्पाददालनोदकैः॥ मातृस्वसृन्यां सिक्तोऽनूनिर्विषो नृपतिःक्षणात् 55 - अहो ! आ म्होठं भाग्य अहो ! आ म्होटुं भाग्य ! जे आ उत्तम मुनि आवी पहोंच्या निश्चे एमनाथी सारुं थशे एम समजाय छे. // 501 // लोको एम बोलता हता एवामां माता अने व्हेन ते मुनिना चरणना जल थी ते पद्म राजा उपरथी सिंचन करयुं, जेथी ते राजा तुरत विष रहित थयो. // 502 // अथोत्याय निविष्टोग्रे, मुनिं नत्वा नृपो जगौ // कथ्यतां केन मे दत्तं, वैरिणा विषमुत्कटम् // चित्ते व्याकुलयो बोढं, प्रश्नेऽस्मिन् मंत्रिपुत्रयोः॥मुनिःप्रोवाच जानिते, के दमंत्वं विधास्यति ___ पछी उठीने मुनिने नमस्कार करी तेमनी आगल बेठेला राजाए कह्यु के, " हे मुनि ! मने विष कोणे आप्युं हतुं ते कहो ? // 503 // राजाए आ प्रमाणे प्रश्न करयो एटले मंत्रो अने तेनो पुत्र बन्ने जणा व्याकुल थवा लाग्यो. मुनिये कह्यु. “ए वात जाण्याथी तुं तने विष आपनारने शो दंड आपीश ?" // 504 // नूपो जगौ रुषा मूलात्नमुन्चेश्यामि निश्चितम् ॥मुनिः प्रोचे ततो राजन् , श्रूयतां कथ्यते यथा विषस्य दायकौ तौ हो, संप्रताय निरंतरम् // यत्रैकस्तत्र चान्यः स्यादेवं प्रीति परायणौ // * राजाए का. "हुं तेने क्रोधथी निश्चे मूलमाथी उखेडी नाखीश." मुनिए कह्यु. " जो एम छे तो हे राजन् ! सांभल. हुं तेने कहुं छु. // 505 // विष आपनारा ते वे जणा निरंतर रया छे के जेमां एक तेमां वीजो एवा ते परस्पर प्रोतिवाला छे. // 506 // Jun Gun Amaca Trust 11 //
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________________ PPGMS * अस्मिन्नवसरे तौ द्वौ, दध्यतुनिज चेतसि // सा कुबुद्धि कृतावान्यां, यया प्राप्तः कुलक्षयः॥ मुनिः प्रोचे तयोर्नाम, कथ्यमानं निशम्यताम् ॥रागोषस्तथा तौ हौ, प्रत्यासन्नौ शरीरिणाम् ___ आ वखते मंत्री अने तेनो पुत्र ते बेजणा पोताना चित्तमा विचार करवा लाग्या के, “आपणे तेवी कुछ दि करी के जेथी कुलनो क्षय प्राप्त थयो. // 507 // मुनिए कह्यु. "तेओर्नु नाम कहुंछु ते तुं सांजल, " राग . अने द्वेष" आ बन्ने शत्रुओ माणसनी पासेज रहे छे. / / 578 // * यत्र रागो नवेत्तत्र, षो नवति निश्चितम् // सानिध्यं नवतः शश्वविख्यात वैरिणस्तयोः तो त्वं मूलादपि झि, यदि सत्यप्रतिज्ञता // एवमुक्त्वा स्थिते साधौ, सर्वःकोऽपि विसिष्मिये ज्यां राग त्यां द्वेष होय छे. वली ते त्हारा प्रसिद्ध शत्रुओ हमेशां हारी पासे रहे छे. // 579 // जो त्हारी प्रतिक्षा सत्य होय तो ए वन्ने शत्रुओने तुं मूलमाथी छेदी नाख." आ प्रमाणे कहीने मुनि वेसी रह्या एटले सर्वे RTE लोको विस्मय पाम्या. // 510 // .. मोजतुर्मंत्रिपुत्रौ च, स्पृशंतौ चरणौ मुनेः॥ नाग्येन सर्वलोकानां, बनूव नवदागमः॥५११॥ पुनर्जूपं मुनिःप्रोचे, नराः सर्वे नराधिप // प्रेरिता रागद्वेषान्यामकृत्यानि प्रकुर्वते // 512 // पछी मंत्री अने तेना पुत्रे मुनिना चरणने स्पर्श करता छतां कह्यु के, “सर्वे लोकोना नाग्यथीज आपनं अहिं आवq थयुं छे." // 511 // मुनिए फरी राजाने कर्यु के. " हे राजन्! रागद्वेषथी प्रेरायला सर्वे माणसा अकृत्य करे छे. // 5 // 2 // | प्रस्तरेणाहतः क्लिवः, प्रस्तरं दष्टुमिच्छति // मृगारिस्तुशरं प्राप्य, शरोत्पत्तिं विलोकयेत् 513 यत्प्रेरितेना केनापि, विषं दत्तं तवाधुना // तन्नाम्नि कथिते किं स्याशंगं देषं च संहर // 14 // पथ्थरथी मरायलो कुतरो पथ्थरने करडवानी इच्छा करे छे अने सिंह वाणना प्रहारने पामीने ते वाणना याववाना मार्गने जावे छे // 513 // हवणां जेना प्रेरवाथी कोइये तने विष आप्युं हतं, तेना आपवाथी शं यवानुं छे, माटे रागद्वेपनो नाश कर." // 514 // . Sun Gun Aaradhak Trust
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________________ PPA Gunratt MS 2 पादित वक, मत्रा प्रोवाच सादरम् // सत्यं तदेव हे देव, यन्मुनिर्वक्ति वत्सलः॥५१॥ चारत्र प्रोचे प्रबुद्धे नूपस्तं, राज्यं क्वापि निधीयताम् // अपुत्रोऽहं यथा दीदां,गृह्णामि मुनि संनिधौ॥ पछी राजाए मंत्रीना मुख सामु जोयु एटले मंत्रीए आदरथी कह्यु के, " हे देव ! प्रीतिवंत एवा मुनि जे कहे छे ते सत्य छे." // 515 // पछी प्रबोध पामेला राजाए कह्यु के, " म्हारुं राज्य कोइने सोंप के, जेथी अपुत्र एवो हुं मुनिनो पासे दीक्षा लन" // 516 // . तशज्यं सागरायैव, दत्वा मंत्रिनरेश्वरो // पार्श्वे प्रावृजतां तस्य, साधोः साम्यरसान्वितौ // प्रतासमितिर्वाचः साधुनामिति सागरः॥ शिवधर्म परित्यज्य, जिनधर्मपरोऽन्नवत् // 51 // ठी ते राज्य सागरकमारने सोंपी शमतावंत एवा मंत्री अने राजाए ते मनि पासे दीक्षा लीधी साधुनी समिति अने वाणी अद्भूत होय एम जाणी सागर राजाए शिवधर्म सजी दइ जैनी दीक्षा लीधी.॥५१८॥ तान्यां युगे गते साधौ, सागरः पृथिवीपतिः॥ तज्ञज्यं पालयामास, रेमे च वनमालया५१० वनमालान्यदा स्वप्ने तातं वीक्ष्य, तपस्विनम्॥ नृपानुमत्यागत्वतत्पाा जाता तपस्विनी५३० पठी ते नवा वे साधु सहित चंद्रमुनि चाल्या गया एटले राजा सागर ते राज्यनु पालन करवा लाग्यो अने वनमालानी साथे क्रीडा करवा लाग्यो. // 519 // कोइ बखते वनमालाए स्वप्नमां पोताना पिता तापसने दीठा, तेथी ते सागरनी रजा लइ त्यां जइ अने तपस्विनो थइ. // 520 // .. .. काले शंकरराजर्षिर्णहितानशनस्तया // प्रोचे तात त्वया बोध्याहं नवेत्र परत्रवा // 521 // तत्प्रपद्य मृतः सोऽनूझ्यंतरेंशे नुवस्तले // परिज्ञेयः स एवाहं, नवतःपुरतःस्थितः // 522 // ...पछी शंकर राजपिए अवसरे अनशन लीधुं ते वखते ते वनमाला पुत्रीये तेमने कह्यु के, " हे तात ! तमारे पने आ भवमा अथवा बीजा भवमा प्रवोध पयाडवो. // 521 // पछी ते वात कबुल करी शंकर राजर्षि मृत्यु पामीने पृथ्वीना नोचे व्यंतर देवता थयो. ( रत्नसिंह राजकुमारने व्यंतर देवता कहे छे के, ) तेज व्यंतर देवता त्हारी आगल उभेलो मने तुं जाण. // 522 // 113 / /
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________________ V Gurbatasun MS मया पूर्वनवेऽकारि, शैवधर्मोऽन्वहं पुनः // जिनधर्मसमो धर्मो, न नूतो न नविष्यति 523 वनमालापि मृत्वात्पुर्यामस्यां धनेशतुः॥ धनेश्वरानिधानस्य, रत्नश्रीरितिपुत्रिका // 5 // - में पूर्वभवमां निरंतर शिवधर्म पाल्यो छे, परंतु जिनधर्म समान धर्य कोइ थयो नथी अने थशे पण नहि. // 523 // वनमाला पण मृत्यु पामोने आ नगरीमां धनवंत धनेश्वर शेठनी रत्नश्री नापनी पुत्रो थइ छे. // 52 // साधुना यौवनेनालं, कृता लावण्यसाधुना // तद्दोधाय समेतोऽस्मि, सा पुनर्नैव वुध्यते 555 तस्याःस्वप्ने मया स्वर्गा नरकाश्चापि दर्शिताः // मालास्वप्नानहं पश्यामीति प्रातर्जजल्प सा ते रत्नश्री हवणां उत्तम लावण्यवाला यौवनथी अलंकृत थइ छ, हुं तेने बोध करवा आव्योछं. पण ते वोध पामती नथी. // 525 // में तने स्वमामां स्वर्ग अने नरक देखाड्यांः पण तेतो एम कहे छे के, में स्वप्नामां * मालानां स्वमो जोयां छे. // 526 // . दिव्यनाट्यध्वनिश्चके; चैकविंशतिवासरान् // परंतस्याः प्रमीलायां, न सोऽनूत्कर्णगोचरः॥ प्रत्यहीनूय चेत्किंचित्स्वरूपं कथयाम्यहम् ॥नीता विमुच्य पूत्कार, सा तन्नश्यति बालवत॥ में एकविश दिवस सुधी रात्रीये दिव्य एवा नाट्यनो शब्द करयो, ते पण तेना कानमां प्राप्त थयो नहीं. अर्थात् तेणे सांभल्यो नहि. // 527 // जो हु प्रत्यक्ष थइ तेने काइ कहेबा जाउंछु तो भय पामी बालकनी परे बूमो पाडोने नाशो जाय छे. // 520 // एवं विधे स्वरूपेऽस्याः, कथं धर्मः प्रकाश्यते // ग्रामं विना कुतःसीमा, विना पुत्रं कुतःकलम | त्वं तु पूर्वकृतप्राज्यपुण्यसंन्नारसंश्रितः॥ स्वयमेवशृणोष्येनं, दिव्यनाटयध्वनि निशि // 30 // ___आ प्रमाणे वात तो पछी हुं तेने धर्म शो रोते कहुं ? कारण गाम विना सोमा क्याथी होय, अने पत्र 2 विना कुल क्यांथी होय ? // 525 // परंतु तु पूर्वे करेला उत्तम पूण्यसमूहने आश्रय करी रहेलो छ के, जेथी तुं पोते रात्रीने विपे ए दिव्य नाट्यशब्दने सांभले छे. // 530 //
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________________ PPA Gunnatut MS तारपद्य सुदर / / त्वया प्राताववाद्यासा, त्वत्सगाममाप्स्यात J सा पार्श्वे जैनसाधूनां, नेतव्या धर्महेतवे // तुष्टो चाद्यानिलाषे ते दिव्यनाट्यं करोम्यहम् // // 11 // - हे सुंदर ! हवे हुं तेने विषे थाकीने त्हारी आगल आव्यो छु; जेथी तुं सवारे तेनी साथे विवाह करजे; कारण ते हारा संगथी धर्म पामशे. // 531 // तेने हारे धर्म माटे जैन साधु पासे लइ जवो. आजे आवा अभि लापथो प्रसन्न थयेलो हुं दिव्यनाटय करुंळु. // 532 // . * एवमुक्त्वा स्वरूपं स व्यंतरेऽस्तिरोदधे // प्रातः प्रवुदः स्वंतातमयं नंतुं समागतः // 533 // * तदा धनेश्वरः श्रेष्टो, स्थालमापूर्यमौक्तिकैः // नृपाय प्रानृतीचके, प्रोचे च रचितांजलिः // - ए प्रमाणे सर्व वात कहीने ते व्यंतरदेव अदृश्य थइ गयो. पछी सवारे जागी उठेलो रत्नसिंह पिताने * नमन करवा गयो. // 533 // ते वखते धनेश्वर शेठे मोतीथो थाल भरी राजा जयदेवने अर्पण करयो अने हाथ जोडी कडेवा लाग्यो के, // 534 // दे देव देवता कापि, स्पप्नेमांमित्युपादिशत् // रत्नसिंहाय दातव्या, स्वपुत्रो नृपसूनवे॥५३॥ तेनेषा दोयते तस्मै, वरेष्वन्येषु भूरिषु // नमित्युक्ते नरेंण, स तया परिणायितः // 536 // "हे देव ! मने कोइ देवताए स्वप्नमां एम कहुं छे के,"त्हारे पोतानी पुत्री जयदेव महाराजाना पुत्र रत्नसिंहने आपवी. / / 535 // माटे वीजा वरो बहु छतां पण ते हुं आपना पुत्रनेज आपुं छ. " राजाए ते वात कवुल * करी एटले रत्नसिंहने ते रत्नश्री साथे परणाव्यो. // 536 // तान्यां शुन्नाभ्यां नार्याभ्यां,सहितोऽयमनंगवत्॥रतिप्रीतिसमान्यां स, रेमे स्वैरं वनादिषु॥ इतश्च तत्र संप्राप्ता, रत्नसखरसूरयः // नूपो जगाम तं नंतुं, परिवारसमन्वितः॥ 538 // . रति अने प्रीतिसहित कामदेवनी पेठे ते रत्नसिंह कुमार पोतानी रमा अने रत्नश्री सहित पोतानी मरजी प्रमाणे नपवादिकने विषे क्रोडा करवा लाग्यो. // 537 // पछी त्यां रत्न शेखर सुरी आव्या, तथी राजा परिवार सहित तेमने वंदना करदा गयो. // 538 // KXT23233 (KXXXX Jun Gun anchal Trust
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________________ P.P.AC.Gunratnasun M.S. प्रियाध्ययुतो रत्नसिंहोऽपि प्रीतमानसः // गत्वा नत्वा च सूरीशनीषोऽर्मदेशनाम् 535 नो नो अनादिमिथ्यात्व परिहारेण नावतः॥ जैनधर्मो विधातव्यः, शिवधर्मनिबंधनम् // - प्रसन्न मनवाला रत्नसिंहे पण बन्ने स्त्रीयो सहित त्यां जइ सूरीश्वरने नमस्कार करी धर्मदेशना सांभली५३९ हे लोको ! तयारे भवथी अनादि एवा मिथ्यात्वने त्यजो दइ मोक्षनु कारण एवो जैनधर्म आदरवो // 540 // शैवं मोमांसकं सांख्य, बौधं नैयायिकं तथा // एतानि दर्शनान्याहुर्घम मर्मविवर्जितम् 541 स्याहादरूपं मर्म स्यादथवा प्राणिनां दया // तेन मुक्तोऽखिलो धर्मो, जीवेनांगमिवाफलम। ___ शैव, मोमांसक, सांख्य, बौध, नैयायिक ए पांच दर्शनो मर्म विनाना धर्मने कहे छे. // 541 // ते म स्याद्वादरूप होय छे अथवा प्राणो नपर दया करवारूप होय छे. जेम जोव विनानुं शरीर निष्फल तेम मर्म विनानो धर्म पण निष्फल छे. // 542 // वने वासः प्रकुर्वाणाः शैवास्तावत्तपस्विनः // दीनुन्मुलयंत्येव, त्वचं गुह्याति शाखिनाम् // शोमाकिनींगुदीतैले, संचिन्वंत्यन्वहं च ये // दहंति समिधस्तेषां, धर्ममर्मझता कुतः // 54 // - प्रथम वनमां निवास करता शैव तापसो दर्डाने नखेडी नाखे छे अने वृक्षोनी छालने गृहण करे छ. 643 शोमाकिनी अने इंगुदिना तैलने निरंतर शोधता एवा जे शैवो लाकडांओने वाली नाखे छे, तो पछी योग धर्मना मर्मन जाणपणुं क्याथी होय ? " // 544 // शास्त्राएयधित्य ये विप्राद्या अपि प्राणिहिंसनम् // कुवैति सर्वदा तेषां धर्ममर्मझता कता - जे ब्राह्मणादिक शास्त्रोनो ' अभ्यास करीने पण निरंतर जीवहिंसा करे छे, तेओने धर्मना मर्मनं जाणपण क्यांथी होय? अर्थात् नन होय. // 545 // एवंश्रुत्वा गुरोर्वाक्यं, रत्नश्री जातिमस्मरत्॥ मिथ्यात्वं स्खं च निंदती, सा सम्यक्त्वमपाद व्यंतरेशेऽपि तत् ज्ञात्वा, गत्वानत्य प्रमोदतः॥ नाटयं विधाय सम्यक्त्व मुपादत्त मुनीश्वरात Jun Gun Awadhak Trust
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________________ गुराण चरित P.P.AC.Guntainesun XX गुरुना आवां वचन सांभलो रत्नश्री जातिस्मरण ज्ञान पामी, तेथी ते पोताना मिथ्यात्वनी निंदा करती छती सम्यक्त्व पालवा लागी.॥५४॥ व्यंवरदेवे पण ते बात जाणी हथोत्यां आवी नाट्य करीने मुनि पास // 11 // सम्यक्त्व अंगीकार करयु.॥ 547 // रत्नसिंहोऽपि पप्रन, निजं पूर्वनवं गुरुन् // ते प्रोचुः श्रूयतामस्ति, हस्तिनागपुरं पुरम् एवज श्रेष्टयत्र धनदत्तोऽनूत्तस्य धीरान्निधःसुतः॥ श्री जिनेंस्य पूजायां, नाट्यपूजामुना कृता ५४ए रत्नसिंहे पण गुरुने पोतानो पूर्वभव पूछयो, तेथी गुरुए कह्यु. सांभल. हस्तिनागपुर नाम नगर छे. 548 ए नगरमां धनदत्त नामनो शेठ रहेतो हतो, तेने धीर नामनो पुत्र हतो. ए पुत्र श्री जिनेश्वरनी पूजामा नाट्य पूजा करी हती. // 549 // तळोवस्त्वमन्नूशजकुले राज्यं च लप्स्यसे॥ नाट्यपूजाविशेषण, व्यंतरो नाट्यकृत्तव॥५५॥ श्रुत्वेवं वनवं रत्नसिंहो जातिल्परोऽनवत् // विशेषादार्हतधर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // 551 // . ते धीरनो जीव तुं आ राजकुलमा उत्पन्न थयो छे. नाट्यपूजाना विशेषथा व्यंतरे त्हारो पासे नाट्य करयुं हतुं. वलो तुं राज्यने पामीश. // 550 // रत्नसिंह आ प्रमाणे पोतानो पूर्वभव सांभली जातिस्मरणज्ञान * पाम्यो, तेथी देणे मुनि पासे विशेषे अरिहंत धर्म आदरयो. // 551 // मुनि नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे // गुरोःसंप्राप्तवैराग्यो, जयदेवोऽग्रहीवृतम् 555 प्रियान्यां सहितः पुण्य-कर्त्तव्येषु परायणः॥ रत्नसिंहोऽय नूपालस्तत्र राज्यमपालयत् 553 पछी युनिने नमी, घरे जइ अने पुत्रने राज्य आपी वैराग्यवासीत एवा जयदेव राजाए गुरु पासे चारित्र लीधुं. पछी बन्ने स्त्रीयोसहित अने पुण्यकार्यमां तत्पर एवो रत्नसिंह राजा राज्य करवा लाग्यो. // 553 // अन्यदा न्यस्य राज्येऽसौ, पुत्र रत्नप्रियान्निधम् // तेषामेव गुरुणां स, पार्श्वे संयममग्रहीत् // * प्रपल्य निरतिचारं, चारु चारित्र मुज्वलम् // ग्रहीतानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽलवत्॥ Kkkk Jun Gun A KXXXX*****KKK chat Trust
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________________ PPA nandsut MS कोई वखते रत्नसिंहे पण पोताना पुत्र रत्नप्रियने राज्य सोंपी पोते तेज गुरु पासे चारित्र लीधुं. // 554 // पछी निरतिचार श्रेष्ट उज्वल चारित्रने पाली अंते अनशन लइ सौधर्म देवलोकमां गयो. // 555 // चिरं सुखान्यसौ नुक्त्वा, देवलोकात्ततच्युतः // राजन सागरनामानुत्पुत्रः सप्तदशस्तव // (श्रो नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के,).त्यां ते दीर्घकाल सुख भोगवोने पछी चबाने हे राजन् त्हारो सागर नामनो सत्तरमो पुत्र थयो जे. // 556 // // इति नाट्यपूजायां धीरकथा // Jun Gun A | एवं सप्तदशाप्येते, सुतास्ते शैशवादपि // जातिस्मरणमापन्ना, दृष्टे पार्श्वे जिनालये // 55 // श्री नरवर्मा केवली गुणवर्माने कहे छे के, ए प्रमाणे ते आ रहारा सत्तर पुत्रो पोतानी पासे जिनालय देखवाथी बाल्यावस्थाथी आरंजी आतिस्मरण ज्ञान पामेला छे. // 557 // तेन स्तन्यमपि प्रायो, न पिवंति विचक्षणाः // यावन्नमंति न पार्श्वदेव मेते प्रगे मदा UP प्रवईमानाः सर्वेऽमि, जिनन्नक्तिमनोहराः॥ विशेषतो नविष्यंति, जलसिक्ता माश्चा . ते कारणथी ज ते विचक्षण पुत्रो ज्यां सुधी सवारे पार्श्वनाथने नमन करता नथो त्यां सुधी घणं करीन नपान पण करता नथो. // 558 // आ बुद्धि पामता सर्वे पुत्रो जलथो सिंचन करेला वृक्षोनी पेठे विशेपे जिन भक्तिथो मनोहर एवा थशे. // 559 // जिनपूजाविधानेन, नवता नवतारणम् // विंशतिस्थानकेष्वाद्यं, स्थानं स्पृष्टं विन्नाव्यताम तीर्थकृत्समकासी, त्रिविधं तेन पार्थिव ॥जिनो महाविदेहेषु,नूत्वात्वं सिध्मिाप्स्यसि॥५६१॥ nak Trust
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________________ चरित्र PPC Guru MS KakkxxXXXXX - जिन पूजा करवाथी विशस्थानकोमा प्रथम भवतारक स्थान स्पर्श करेलुं छे. // 560 // हे पार्थिव ! तुं तीर्थकर समान त्रण प्रकारना कर्मवालो छे, जेथी तुं महाविदेह क्षेत्रने विषे तीर्थंकर थइ सिद्धि पामीश // 561 // // 116 // तदा सप्तदशाप्यते, सुता गणधरास्तव // नवितारस्तमोध्वंसे, सवितार श्वामलाः // 56 // ति श्रुत्वा मुनेर्वाक्यं, नूपतिःप्रीतमानसः॥ पुनःपप्रच संदेहमकं नृपशिरोमणिः // 563 // . ते वखते अज्ञानरूप अंधकारनो नाश करवामां सूर्यना सरखा निर्मल आ सत्तर पुत्रो त्हारा गणधर थव शे." ए प्रमाणे मुनिनां वचन सांभली प्रसन्न मनवाला राज शिरोमणि गुणवर्माए एक शंसय पूजयो के.॥५६॥ कथं सिंहलराजस्य, सुतात्र स्वयमागता // तधिवाहकृते तस्याः सचिवोऽपि ययौ चक्क 564 मुनिः प्रोवाच पार्श्वे साधिष्टाता व्यंतरस्तव // हितैषी कृतवान्सर्वमेतत् सुकृतशालिनः॥५६॥ ते सिंहलराजपुत्री आहिं एकली शी रीते आवी अने तेनो विवाह थया पछी तेनो प्रधान क्यां जतो रह्यो. मुनिए कह्यु. त्हारी पासे ते अधिष्टाय व्यंतर हतो तेणे हितेच्छुए पुण्यवंत एवा तने ए सर्व करयुं हतुं. // 565 // पूर्वजन्मानुरागेण, पूर्वजन्म प्रिया इमाः॥ चतस्त्रोऽपित्व प्रापुरधुनापि कलावताः // 566 // इति श्रुत्वा मुनि नत्वा, प्रमोदात् पृथिवीपतिः॥ सपुत्रसपरिवारो, जगाम निजमंदिरम् 567 . पूर्वजन्मना अनुरागथी पूर्व जन्मनी आ कलावाली चार स्त्रीयो हवणां तने प्राप्त थइ ने. // 566 // ए * प्रमाणे मुनिनां वचन सांभली अने तेमने वंदना करी गुणवर्या राजा हर्पथी पुत्रपरिवार सहित पोताना घरे गयो.॥ * नरवर्मापि धर्माधिसमुद्वेलनचंद्रमाः // विजदार सनीहारहारोज्वलयशानरः // 567 // .. काले कलाकलापज्ञाः, प्रज्ञा प्राग्नारतोऽनवन् // उपाध्यापस्य सानिध्यात्पुत्रास्ते गु गवर्मणः धर्मरुप समुद्रना वेलाने चंद्रमा समान अने वरफना हार सरखा उज्वल यशना समूहरूप नरवर्मा मुनि पण IS विहार करी गया. // 567 // पछी अवमरे उपाध्यायनी पासे अभ्यास करवाथी ते गुणवो राजाना पुत्रो बुद्धिना बहु योगथी कलाना समूहना जाण थया. // 569 // *116 //
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________________ PPA Gunnatasun MS - क्रमेण शैशवं हित्वाश्रितास्ते यौवनं वनम् ॥वधूवल्लीनिराश्लिष्टा, रेजिरे कल्पवृक्षवतपणा पश्चिमे रजनीयामे, गुणवर्मा नृपोऽन्यदा // नावनां नावयामास, स एव नवनाशनीम // _अनुक्रमे बाल्यावस्थान त्यजी दई यौवनावस्थारूप वननो आश्रय करी रहेला ते पुत्रो वारुपा लतानो * आश्रय करो रहेला कल्पवृक्षनी पेठे शोनवा लाग्या. // 570 // कोइ वखते रात्रीना पाछला पहोरे तेज गण वो राजा संसारनो नाश करनारी भावना भाववा लाग्यो. // 571 // नक्तं राज्यं चिरं जाता, पुत्राः पौत्रादिन्नित्ताः॥ संवृत्ता एव नात्येते, व्यापाराःपापदेता - नानिलैःपूर्यते व्योम, वारिधिः सलिलैर्न च // वन्हिस्तृप्यति काष्टैर्न, जीवो न विषयैस्तथा। . दीर्घकाळ राज्य भोगव्युं, पुत्रो पण पुत्रवाळा थया, ए सर्व एकठा थयेला पापना कारणरूप व्यापार Kel देखाय छे. // 572 // मांगिक्यांकमां कर्तुं छे के, जेम आकाश पवनथी पूरातुं नथो, समुद्र पाणोथोपरानो AXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX** Jun Gun Aaradhak Trust अभिरामा श्मा रामाः, कामासक्तैकचेतसाम् ॥शाम्यस्पृशा दृशा दृष्टाऽनिष्टा एव ताःपनी 2 यदि प्रातः समायाति, तातः केवलनास्करः // राज्यं पुत्रेषु विन्यस्य,तदा दोकामपाटापार कामथी अशक्त चित्तवाळाने आ स्त्रीयो मनोहर लागे छे, परंतु समभावने पामेला दृष्टिवाळाने दोटो ते स्वीयो अनिष्ट देखाय छे. // 575 // जो सहवारे केवलज्ञाने करोने सूर्यरूप पिता (नरवर्मा केवलो ) | आवे तो हुं पुत्रोने राज्य सौंपी तेमनी पासे दीक्षा लउं // 575 // एवं चिंतयतस्तस्य, प्रन्नात समयोऽनवत् ॥नेऽमंगलतूर्याणि, प्रोचुमंगल पाठकाः // 5 // यावत्तल्पं नृपो हित्वा, कृतप्रान्नातिकक्रियः // समायाति सन्नां तावदागत्यारामिको गणवर्मा राजा आ प्रमाणे विचार करतो हतो एवामां प्रभातसमय थयो, जेथा मंगळवार्जीत्रो वागवा लाया अने मंगळपाठको (मागध लोको) गावा लाग्या.॥ 576 // पछा जेटलामां शय्या सजी दर असे संबंधो सर्व क्रिया करी राजा सभामां आव्यो तेटनामां वागवाने आवोने तेने आ प्रमाणे काम त //
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________________ PPA Gunratnasuti MS गुण वनं पुनति ते तातपादाः संप्रति नूपते // सुरासुरकृते स्वर्णकमले हंसवस्थिताः // 578 // चरित्र. श्रुत्वेति नूपतिःप्रोतमानसः सपरिचदः // तत्र गत्वा मुनि नत्वा, पुरतः सन्निविष्टवान् // 575 " हे भपति ! हवणां आपना पिताना चरणो उपवनने पवित्र करे छे, अने देव तथा दानवोए रचेला सुवर्ण कमलमां हंसनी पेठे ते पोते विराजीत थयेला छे. // 578 // बागवानना आवां वचन सांभली प्रसन्न थयेलो ना IN राजा परिवार सहित त्यां गयो अने मुनिने नमस्कार करी तेमनी पासे वेठो. // 579 // केवली देशना चके, नोनव्या नववारिधौ // चिंतामणिसमं मृर्त्यः, न पुनः प्राप्यते जनैः // तत्रापि जैनधर्मोऽयं, जैनधर्मेऽपि संयमः॥ संयमेनैव सा स्याच्च, प्राणिनां सिझिकामिनी // परी केवलीये देशना आपी के, हे भव्यजनो! आ संसार समुद्रमां चिंतामणिरत्नसमान मनुष्य जन्मने मासो वारंवार पामता नथी. // 580 // तेमां पण आ जैन धर्म, ले धर्मने विषे पण संयम मलयो दुष्कर छे. संयममां पण प्राणीओने मिद्धिवधु मेलववी दुष्कर ले." // 581 // इति श्रुत्वा मुनि नत्वा, गृहं गत्वा नरेश्वरः॥ पुत्र प्रथमराजाख्यं, निजराज्ये न्यवीविशत् // प्रथक् प्रथक् स्वदेशेषु, पुत्रानिवेश्य सः स्वयम् // नरवर्मामुनेः पार्थे, संयममाददे मुदा // 583 केवलीनो आवो उपदेश सांभली गुणवर्मा राजार मुनिने नमस्कार करी घरे जइ पोताना म्होटा पुत्र प्रथम राज नामनाने राज्यासन उपर बेसारयो. // 572 // वली वीजा पुत्रोने पोताना जूदा जूदा देशने विषे राज्य मोपी पोते नरवर्मा मुनिनी पासे हर्षथी चारित्र लीधुं. // 573 // दधानो विविधां शिकां, चतुर्दशपूर्वन्नृत् // प्राप्य सूरिपदं पृथ्व्यां, व्याहरत्सपरिबदः॥५८४॥ गुणवर्मसुतास्ते च, राज्येषु स्वेषु संस्थित्मः॥ राज्यानि पालयामातुरन्योऽन्यं प्रीतिशालिनः / वे प्रकारनी शिक्षाने धारण करता अने चोद पूर्वी थयेला ते गुणवर्मा मुनि त्रिपद पामीने परिवार महित पृथ्वी उपर वि.ार करवा लाग्या. // 584 // पोत पातानां राज्यने विष रहेला ते गुणवर्माना पुत्रो परस्पर प्रीतीवंत थइ राज्योन पालवा लाग्या.।। 585 // // 117 // Jun Gun Aaradhak Trust KXXXXXXXXX
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX | जैनें नवनं विंबं, तत्प्रतिष्टा च पुस्तकम् // चतुर्दा संघन्नक्तिं ते, तीर्थयात्रां च चक्रिरें // 576 सर्वप्रकारैःसर्वेऽमी, त्रिसंध्यं जिनपूजनम् // चक्रिरे निजदेशे च, सप्तव्यसनवारणाम्॥५॥ वली ते पुगेए जिनभुवन, विंध, प्रतिष्टा, पुस्तक अने चार प्रकारना संघनी भक्ति तेमज तीर्थयात्रा करी // वली ते पुत्रोए सर्व प्रकारे त्रणे काल जिनपूजन कराव्युं अने पोताना देशमा सात व्यसननो निषेध करयो.॥५८७ अन्येद्युस्तीर्थयात्रायां, समेता हस्तिनापुरे॥ मिलिताःबांधवाःसर्वे, तेऽन्योऽन्यं प्रीतिशालिनः॥ नरवर्ममुनौ सिडिं, संप्राप्ते विहरन्महीम् // गुणवर्मगुरुस्तत्र, तमागातीर्थयात्रया // 5 // ____ कोइ वरखते तीर्थयात्रामा हस्तिनापुर नगरपां ते प्रीतिवन सर्व बंधुओ एकठा थया. // 588 // श्री नरवर्षा केवली सिद्धिपद पाम्या पछी पृथ्वी उपर विहार करता एवा गुणवमा गुरु ते वखते सां तीर्थयात्रा करवा आल्या. // 509 // अनन्नवृष्टोवत्प्राप्नं, तातं दृष्ट्वा प्रमोदतः // तेऽमुं ववंदिरे प्रीत्या, शुश्रुवुर्धर्म देशनाम् // 5 // धर्मार्थकाममोकेषु धर्मो मूलं निगधते // अर्थादयो मूलरूपाइदिन्ये प्रजायते // 5 // 1 // वादलां विनानी दृष्टिनी पेठे पिताने ओचिंता आवंला जोइ ते पुत्रोए तेमने हर्षथी वंदना करीने प्रीतिथी धर्म देशना सांभलो. // 50 // धर्म, अर्थ, काम अने मोक्षने विषे धर्म मूळरूप कहेवाय छे अने मूलरूप धर्मथी अ| थादि बोजा उत्पन्न थाय छे. // 591 // - तारणाय नवांनोधौ, धर्मस्तावत्तरीसमः // चारित्रमेव चारित्रतुलां तत्रबिनलाम् // 5 // राज्यमाज्यमिव त्याज्यं, संवज्वरेण धीमता // यतःस्वल्पसुखं जंतोरत्यंत दुःखसंचयः॥५९३ __संसार समुद्रने तारवा माटे धर्म प्रथम वहाण समान छे अने तेमां चारित्र त चारित्रनी तुल्यताने धारण करे छे. / / 592 // ताववालो जेम घीने त्यजी दे तेम बुद्धिमान पुरुषे राज्यने त्यजी देवू. कारण के, ते राज्यथी प्राणीने बहु थोडं सुख अने बहु दुःख थाय छे. // 593 // EXXXXXXXKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX GAS *tara tirman
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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS गुण ज्ञानदर्शनचारित्ररत्नत्रयविनूषितम् // जीवं सौदर्यतःस्वैरं, वृणुते सिधिकामिनी // 595 ॥*चा .इति श्रुत्वा समं प्राप्तवैराग्यास्ते नरेश्वराः॥न्यस्य राज्ये निजान्पुत्रान्, चादः संयम मुदा॥ // 11 // ____ ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप त्रण रत्नथी मुशोभित एवा जीवने सौदर्यपणाथी सिद्धि पोतानी इच्छाथी वरे छे." // 594 // आवो गुणवर्मा मुनिनों उपदेश सांभली साथेज वैराग्य पामेला ते सत्तर पुत्रोए पोत पोताना पुत्रोने राज्य उपर वेसारीने हर्षयी चारित्र ली . / / 595 // . कोधो निर्मूलितः पश्चान्मानस्तै रपमानितः // मायाछाया परित्यक्ता, लोनदोन्नश्च वारितः ते गुरुणां मूखांनोजादागमं मकरंदवत् // पिवंतो मुंगवनेजुः, परं मालिन्यवर्जिताः // 5 // __पछी ते मुनिओए क्रोधने मूलमाथी उखेडी नाख्यो, मानने अपमान आप्युं, मायारुप छायाने त्यजी दीधी अने लोभना क्षोभने चारी नांख्यो.॥५९६ // भमरो जेम मकरंदन पान करे तेम मलिनतारहित एवा ते मुनिओ गुरुना मुखथी उत्तम एवा आगमनुं पान करता हता. // 597 / / पंचवाणस्य बाणानां, पंचानामपि वारणो // पंचधासमितिस्तेषां,चित्तेषु स्थितिमातनोत् // गुणवर्मगुरुयोग्य, गुणान्वितं निजे पदे // शिदं संस्थापयामास, शासनस्य प्रवर्तकम् एएए कामदेवनां पांच बाणोने वारनारी पांच प्रकारनी समितिए तेओनां चित्तने विषे निवास करयो. // 19 // पछी गुणवर्मा गुरुए शासनना प्रवर्तक एवा गुणवंत योग्य शिष्यने शिक्षण आपी पोताना पदे स्थाप्या. 599 . ते सर्वे रायुरापूर्य, गृहीतानशनास्ततः॥ शुन्नध्यानपरा मृत्वा, ब्रह्मलोकं दिवं ययुः // 600 // चिरं सुखान्यमो नुक्त्वा, देवलोकात्ततच्युताः // समात्पद्य विदेहेषु,सिडिमाप्स्यति सिहिदाः ____ पछी ते सर्वे आयुष्यना पूर्ण अवसरे अनशन लइ शुन्न ध्यानथी मृत्यु पामी ब्रह्मदेवलोक प्रत्ये गया.॥६०० सिद्धिना पामनारा ते मुनियो त्यां देवलोकमां दीर्धकाल सुख भोगवीने पछी त्यांची चवीने महाविदेह क्षेत्रने विषे उत्पन्न थइ मिद्धिपद पामशे. // 601 // Jun Gun Aaradhak Trust 11 //
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________________ श्रुत्वा मुदार्चनविधिप्रमुख प्रकारान्, पंचात्र तत्फलविलासविचारसारान् / / तानादतः स्तुवतु सप्तदशापि पुण्य, माणिक्यसुंदररुचिं नविका नजध्वम् / / 60 // . हे भविको! आ पूजननी विधि विगेरे भेदोने हर्पी सांभली अने तेमां पांच तेना फलना विचारना सार ने जाणीने ते सत्तर भेदोने आदिथी स्तवो अंने पवित्र एवा माणिक्यसुंदरसूरिने भनो.॥६०२॥ // इति श्री अंचलगन्छेश श्री मणिक्यसूरिविरचिते पूजाधिकारे / गुणवर्मा चरित्रे सादताष्टमांगलिकपूजाफल वर्णनो नाम पंचम सर्गः॥ Jun Gun Aaradhak Trust // अथ प्रशस्तिः // एवं स्नात्रविलोपनां शुकयुगाध्यारोपवासार्चना पुष्पस्रग्वरवर्णसिंचनचयालंकारपुष्पालया // सत्पुष्पप्रकरोऽकतार्चनमयो धूपं च गोतं तया,वाचं नाट्य नयो जयंतु जगतां नायस्यपूजाइमाः एप्रकारे स्नात्र, विलेपन, वस्रारोपण, पुष्प, माला, चूर्ग, अलंकारभूत पूष्पनीमाला, उत्तम पुष्पनो समूह, * अक्षत एमया तथा धुप, गीत, वाद्य अने नाट्य पद ते आ जग प्रभुनी पूजा जयवंती वर्ती॥1॥ आसां कथा व्यरचयञ्च गुरूपदेशान्मा पत्यसुंदरगुरुर्जगतां हिताय // - तान्वाचयंतु मुनयः परिनावयंनु, त नार्चनविधोनुपदेशयंतु // 2 // गुरुना उपदशथी आ सत्तर प्रकारी पूनानी कथा जगन्ना हितने माटे रची छे, माटे मुनिओ ते कथाओने वांचो, भावो अने ते प्रकारे जिनेश्वरने पूजन करवाना विपिनो उपदेश करो. // 2 // XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ चरित्र. // 11 // Jun Gun Aaradhak Trust .: चतुरशोत्यधिकेषु समा चतु-र्दश च तेषु गतेषु च विक्रमात् / / / अयमनूऊिनपूजनसत्कथा-समुदयः स करोत्विह मंगलम् // 3 // विक्रम संवत 1484 गया पछी आ जिनपूनना सत्तर प्रकारनी कथानो समूह रचेलो छे. ते आ पृथ्वीने विषे सर्वनुं मंगल करो. // 3 // श्री वर्धमान जिनन्नवन-नूषिते रचित एष सत्यपुरे // ग्रंथः श्रीमउपाध्याय-धर्मनंदनविसिष्टसानिध्यात् // 4 // - श्री वर्धमान स्वामीना मंदिरथी सुशोभित एवा सत्यपुरने विषे श्री उपाध्याय धर्मनंदना समिपपणाथी रच्यो छे. // 4 // माणिक्यांकश्चतुप:, शुकराजकया तथा // पृथ्वीचंश्चरित्रं च, ग्रंथा एतेऽस्य बांधवाः // 5 // श्री माणिक्यांक, चतुरपूर्वी तेमन शुकराजनी कथा अने पृथ्वीचंद्रनुं चरित्र ए आ ग्रंथना बांधवो छे. अ र्थात् ते सर्वेना धनावनार श्री माणिक्यसुंदरसूरि एकज छे. // 5 // यावत्मेरु महिर्यावद्यावश्चंद्रदिवाकरौ // वाच्यमानौ जनैस्तावत्, ग्रंथोऽयं नुवि नंदतात् // 6 // ज्यांमधी मेरु, पृथ्वी, सूर्य अने चंद्र छे त्यांसूधी माणसोथी वंचातो आ ग्रंथ पृथ्वी उपर विस्तार पामो.॥६॥ मंगलं सर्वसंघाय, कर्त्रे नवतु मंगलम् // व्याख्यायकेन्यो मांगल्यं, श्रोत्रे नवतु मंगलम् 7 सर्व संघने मंगल हो, कर्ताने मंगल हो, व्याख्यानकर्ताने मंगल अने सांभलनारने पण मंगळ हो. // 7 // // इति प्रशस्ति // P.P.A. Gunratnasuti M.S