________________ PP.AC.Gunratnasuri M.S. MAXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX हुं अवमरे कहीश." // 144 // एम कहीने शेठे तुरत पुत्रनी पासे सर्व लखावी लीधु, अने रात्रीये वार्ता करता तेणे पुत्रने पोतानी पासे सूवारयो. // 145 // अर्थी रात्रीये शेठे पुत्रने कयुं. " हे वत्स ! तुं जागे छ के नहिं ?" RSS पछी जागता एवा पुत्रे पोताना पिताने उंचे रहेला दोठा. // 146 // वली एक पृथ्वी उपर सूतेलाने जोई पुत्रे पिताने कह्यु. " हे तात ! हुं तमारां वे रूप देखु छु ते शुं छे ? // 1.47 // शेठे कह्यु. " हे पुत्र ! तने ते वात l कहुं छु. " तुं चंद्रावती गयो त्यार पछी म्हारं शरीर काई पीडायु क थयुं. // 148 // पछी हुं स्वभावथी जम्हारी इत्युक्त्वा श्रेष्ठिना शीघ्र, लेख्यं पुत्रेण कॉरितम्॥अरे स्वापित चौधे, रात्री वाती प्रकुर्वता॥ * अईराने गौ श्रेष्टो, वत्स जागर्षि किं न वा॥'सोऽय जागरितोऽशकोई धं पितरं निम्॥ मौ शयानमेकं चे, दृष्टा सो पितरं जगौ // "किमिदं दृश्यते तात, तेव रूपक्ष्यं मया१४७ श्रेष्टी जंगाद हेवत्स, स्वरूपं कथ्यते तव // त्वयि चंशवतीं यातेऽनन्मे किंचिदेपाटवम् // स्वन्नावेनैवें सम्यक्त्वार्युच्चार स्वयमेव हि // कृत्वा सुतःप्रमोलायाभे भृत्वा सुरोऽनवम्॥ अवधिज्ञानतो ज्ञात्वा स्वरूपं सर्वमात्मनः॥ गृहसूत्राय कायस्व स्तन्दैणादेश्रितो मया // प्रेष्य तंत्र तंतो लेखे, शीघ्रंमाकारितो नवान् // नार्या नटस्य रूपंच, केवा कष्टं निवारितम्॥ कारितं लेख्यक सर्वे, त्वं सदैव सुखी नवेः॥ स्वर्ग यौस्यायंथ स्थातुं, मर्त्यलोके न शक्यते॥ इति प्रोच्य गते तस्मिन् , विद्युतात्कारकारिणी॥शवमेव पुरो दृष्टा, चपुत्कारमौतनोत् // पोतानी मेले स्वम्यक्त्वादिकनो उच्चार करीने सूतो अने रात्रीने विषे मृत्यु पामीने देवता. थयो. // 149 // पछी अवधिज्ञानथी पोतानुं सर्व वृत्तांत जाणोने में गृहसूत्रने माटे तुरत पोतानी पूर्व कायानो आश्रय करयो. // 150 // पछी त्यां पत्र मोकलोने तने तुरत तेडाव्यो. वली स्त्री अने सुभटनुं स्वरूप करीने त्हारं कष्ट नि* वारयं. // 151 // छेवट सर्व लेख पण कराव्यो. तुं निरंतर सुखी था अने हवे हं स्वर्ग प्रत्ये जास्त : देवथी मृत्युलोकमा रहि शकातुं नथी." // 152 / / एम कहीने विजलीनी पेठे झात्कार करतो एपो ते देव चा XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust