________________ गुण // 6 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. भो वात सांभली चंद्र विचार करवा लाग्यो के, " अहो ! ते स्त्रीये आपणा उपर केवो उपकारकरयो!!! // 136 // // 136 // चरित्र. पछी ते चंद्र कोई रस्तामां विषम एवा वनमां भोजन करवा माटे रोकायो, तें वखते तेना भुख्या एवा सर्वे सुभटो भोजन करवा बेठा. // 137 // ते वखते त्यां पर्वतना भिलोनी धाड मलिन एवा मेघनी मालानी पेठे बाणोनो वर्षाद वरसावती आवी पहोची. // 138 // ते वखते सुभटो व्याकुल थवा लाग्या अने चंद्र पण विचारमां पडयो; एवामां कोई पण घोडा उपर बेठेलो अने महातेजवंत एवो मुभट त्यांथी निकल्यो. // 139 // ते मुभटे भालाथी त्रास पमाडेला सर्वे भिलो पर्वत तरफ नासी गया. परंतु पाछा आवता ते सुभटने कोईये क्याई न विषमे सोऽय कांतारे,नोजनाय स्थितोऽतरा॥'नोक्तुं निविष्टौंःसर्वेऽपिनयास्तस्यहुँधातुराः॥ तेवं गिरिनिल्लाना, धाटी तंत्र समागताः // मलिना मेघमालेव, शरासारं वित॑न्वती॥१३॥ नटेषु व्याकुलेषूच्चैश्चं चिंतातुरे संति // निर्गत: सुन्नटः कापि, ह्यारुढो महाद्युतिः॥ लल्लेन त्रासितास्तेन,सर्वे निल्ला गिरि ययुः।। यावर्त्तमानो नो दृष्टः, सुन्नटः क्वापि केनचित्॥ चंश्चित्रमिदं चित्ते, दानः संपरिछदः // ाजगाम पुरी चपां, पितुश्चके पैरों मुंदम्॥११॥ नोजनार्दनु तातेन, सृष्टं पुत्र तवाध्वंनि // कष्टक्ष्यं समायातं, नद्यां कांतार एव च // 12 // पुत्रोऽवादीत् कथं तात, नवता झायते घई। कथं को वाँ समायातः, पूर्वमेवे ममार्गमात्॥ पिता प्रोचे न कोप्यागाळानामि स्वयमेव हि // पुत्रेण कैयमित्युक्ते', समये कथयिष्यते॥ पण दीठो नहीं. // 130 // चंद्र परिवार सहित चित्तमां आ आश्चर्य धरतो छतो चंपानगरी प्रत्ये आव्यो अनेर पिताने बहु हर्षित करया. // 141 // भोजन करी रह्या पछी पिताए पुछयु. " हे पुत्र! तने मार्गने विषे नदोमां अने अरण्यमां वे कष्ट प्राप्त थयां हतां?"॥१४२॥ पुत्रे का. “हे तात! आपे निश्चे आवात शो रोते जाणी? वा म्हारा आव्या पहेलां शृं कोइ आव्यो छे ? // 143 // पिताए कह्यु. " कोई पण त्हारा पहेला आव्युं नथी. निश्चे हुं म्हारी पोतानी मेले जाणुं छु. पुढे " तमे शी रीते जाणो छो?" एम कर्तुं एटले पिताए कह्यु के, ते // 6 // XXI Jun Gun Aaradhak Trust