________________ PPA Guntars MS __ पछी बन्नेना रक्षणने माटे म्हारे श्यामिका ते ब्राह्मणने आपवी. कारण के, अन्नी सलगी उठे त्यार वचमा / छोकराने पण आडा धराय छे. // 285 // पुत्री पिताना पुण्यवाली होती नथी; परंतु आत्मपुण्यवाली होय छे, तो पछी शी चिंता करवी?" एम विचार करीने ते राजा सभामां आव्यो. // 286 // नूपति मंत्रिणः प्राहुः पुनर्विप्रं विलोक्यताम् // अत्र नास्ति कला काचिदाकारोऽपि वदत्यदः // आकारसदृशा प्रज्ञा, प्रझया सदृशागमः // आगमैः सदृशारंन्नः, प्रारंनसदृशोदयः // 28 // प्रधाने राजाने कह्यं. “महाराज ! फरी ब्राह्मण सामु जूओ- एने विषे कांइ पण कला नथी; एम आ तेनी आकृतिज कही आपे छे // 287 // कडं छे केः-आकृती समान वुद्धि होय छे, बुद्धि समान अभ्यास होय छे, अभ्यास समान आरंभ होय छे अने आरंभ समान उदय होय छे. // 288 / / ततो विप्रं नृपःप्राह, सत्यं नो क्षिप्रमुच्यताम् // कलाप्राप्तिः कुतस्तेऽनदोहदः पूर्यते यया नए स प्रोवाच महाराज, पुरं राजपुरं परम् // तत्रास्ति ब्राह्मणश्चैत्रस्तस्य जातावुन्नौ सुतौ / पछी राजाए ब्राह्मणने कह्यु. " हे विप्र! तुं झट सत्य कहे के, तने कलानी प्राप्ति क्याथी थइ छ के, जेथी तुं दोहदने पूर्ण करे छे. // 279 // ब्राह्मणे कयुं. " महाराज ! उत्तम एवं राजपुर नामर्नु नगर छे, त्यां चैत्र नामनो ब्राह्मण रहे छे, तेने बे पुत्रो छे. // 290 // एको नदिलनामासीदपरः स्कंदिलःपुनः॥ नदिलोऽनूत्सलावण्यः, सदाकारो मनोरमः 2U ] समान्यः सर्वलोकोनां, जातः पितुरनंतरम् // स्कंदिलस्त्वीदृशाकारो, निर्गतो नगराहिः। ___एक भद्दिल अने बीजो स्कंदिल. तेमां भदिल लावण्यवालो, उत्तम आकृतिवालो अने मनोहर इतो. पिता मत्य पाम्या पछी भदिल सर्व लोकोने मान्य थयो जेथीर्थ्याने लीधे कुरूपवालो स्कंदिल नगरथी बहार चालो निकल्यो. वाणारस्यामसौ गत्वाचले मृत्युकृतेऽचटत् // तत्र संन्यासिकेनोचे, केनाप्येष कृपालुना शU३ अकालेऽपि त्वया मृत्युः, कथमेवं विधीयते // स प्रोचे निजदौस्थ्यं च, कुरूपत्वं च तत्पुरः॥ Jun Gun Aaradha Trust