________________ गुण चरित्र. चा // 99 // PP.Ac:Gunratnasun M.S. ते अनुक्रमे वाणारसी नगरी प्रत्ये जइ मृत्यु पामवा माटे पर्वत उपर चडयो, त्यां कृपालु एवा कोइ संन्या- सीए कह्यु के. // 293 // “तुं अकाले पण आ प्रमाणे शा माटे मृत्यु पामे छे ?" पछी तेणे ते संन्यासी पासे पोतार्नु दुःखीपणुं अने कुरूपपणुं कही देखाडयु. // 294 // स प्राह नव सोत्साहः, कुरूपत्वेऽपि यत्तव // राज्यं संपत्स्यते प्राज्यं, रम्या रामा च निश्चितम् कलामेकां प्रदास्यामि, रंजितो नूपतिर्यया // अाईराज्यं च कन्यां च, स्वयमेव प्रदास्यति // - संन्यासीये कह्यु. तुं उत्साहवंत था. कारण के, तने आ कुरुपपणामां पण निश्चे समृद्धिवंत राज्य अने उतम स्त्री मलशे. // 25 // हुं तने एक कला आपीश के, जेथी प्रसन्न थयेलो राजा पोतेज तने अर्ब राज्य अने कन्या आपशे. // 296 // ततस्त्वया तया साकं, कार्य केलिकुतुहलम् // अधुना मृत्युना किं ते, गृह्यतां जन्मनः फलम्॥ आराध्यतां त्वया देवी, नवानी सिंहवाहना // सा तुष्टा सर्वकार्याणि, करिष्यति तवान्वहम् // पछी त्हारे ते कन्यानी साथे कीडाकुतुहल करवू. हमणां तने मृत्यु पामवाथी शुं ? जन्मनु फल गृहण कर. // 297 // तुं सिंहवाहन वाली जवानीदेवीनू आराधन कर के, जेथी प्रसन्न थयेली देवी त्हारां निरंतर सर्व कार्य करशे // 298 // | तदाराधनविद्या मे, दत्ता तेन मनीषिणा // साधयित्वा च तां सोऽहं, संप्राप्तोऽस्मि तवातिकम्॥ नृपःप्रोचे ततः शिघ्रं, कुरुष्व निजसजताम् // अथासावुबितोऽचालोत्सिंहानयनहेतवे॥३०॥ (स्कंदिलं, कोर्तिचंद्र राजाने कहे छे के) हे राजन् ! पछी ते संन्यासीये मने देवीनी आराधनविद्या आपी अने तेने साधीने हुं पण तमारी पासे आव्यो छु." // 299 // राजाए कह्यु. " तो पछी तुं ज्ञट त्हारी तैयारी कर." पछी ते स्कंदिल त्यांथी उठीने सिंहने लाववा माटे चाली निकल्यो. // 30 // लोकैः परिगतो गत्वा, वनांतमंत्रपूर्वकम् // पूर्वस्यां दिशि चिकेप, सादेपं सर्पवानसौ॥३१॥ कृतफाले मृगेंऽऽय, समेते सति विन्यतम् // लोकं निवार्यहत्तेन, तं दध्र केसरेष्वसौ॥३०२॥ Jun Gun A chat Trust Sh99 //