________________ P.P.A. Gunratnasuti MS EARXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Se] कुंडल अने मुकुटथी सुशोभित यनेला, मनोहर लावण्यनी लीलाथी युक्त, उपमा न आपाशकाय एवा स्वरूप वाला अने " मनेवर. " एम बोलता एवा कोइ पुरुषने दीठो. // 144 // 145 / / प्रबुद्धा स्वप्नदृष्टं तं, नरं निरुपमं श्रिया // स्मारंस्मारं स्मराक्रांतमानसा सा व्यचिंतयत् // पछी जागो उठेला अने कामथी खेचायेला मनवाली अमरसुंदरी स्वप्नमां दाठेला अने कांतिथो उपमा रहित एवा ते पुरुषने वारंवार स्मरण करती छती विचार करदा लागी. // 16 // यदि इक्ष्यामि तादृदं, वरिष्यामि ततो वरम् // अन्ययाहं मरिष्यामि, न करिष्ये करग्रहम् // * वरेषु वीक्ष्यमाणेषु, तातं सा तं न्यवारयत् // अत्याग्रहे बन्नाषेसा,वरिष्ये वीक्षितं वरम् 147 जो हुं तेवा वरने देखीश तो वरीश. नहितो मृत्यु पामीश, पण विवाह करीश नहि." // 147 // पछी | अवंतिसेन राजा पुत्रीना वरनी शोधं करवा लाग्ये छते अमरसुंदरीये ते पिताने ना कही. पछी बहु आग्रह क रयो एटले ते पुत्रीये कह्यु के, " हुं पसंद पडेला वरने वरीश." // 148 // नूपतिः कारयामास, सप्तवारं स्वयंवरम् // परं न तस्याः संजझे, वरःकोऽपि विचिंतितः१४॥ अन्यदा तां गवाहस्थां, चंञ्चूमोऽहरत्खगः // याति यातीति जल्पाके वीक्ष्यमाणे जनेऽखिले // राजाए सातवार स्वयंवर कराव्यो, परंतु तेने कोइ इच्छितवर मल्यो नहि. // 159 // एक दिवम चंद्रघड नामना विद्याधरे गोखमां बेठेली कन्याने " आ जाय आ जाय" एम सर्व माणसो बोलता छतां अने जोता - छतां हरण करी. // 150 // न नूभून नटश्चापि, नानू कोऽपि पराक्रमः // आकाशचारिणा साकं, नूचराणां कियबलम् // तत्पिताहरणं तस्या,वोक्ष्य चित्ते विषमवान् ॥चिंतयामास संसारे,धिधिक् मोहविटंबना 15 नहि राजा के नहि बीजो सुभट. एम कोइ पण पराक्रमी थयु नहि. कारण आकाशमां गति करनारा विद्याधरोनी साथे पृथ्वी उपर गति करनारा माणसो केटलुं बल. पछी अवंतिसेन राजा पुत्रीना हरणने जोइ