________________ GusMS गुण चित्तमा खेद पामतो छतो विचार करवा लाग्यो के, “संसारमा मोहनी विटंबनाने धिक्कार छे! धिक्कार छे!! 152 चरित्र. कस्य पुत्राः कलत्राणि, सुहृदाः कस्य वलन्नाः॥ देवाधिनं जगत्सर्वं, न प्रभुः कोऽपि वर्तते / 153 * // 6 // मयि सत्यप्यसूरेण, चौरेण तनुजा हृता // असार एष संसारस्त्याज्य एव ततो मया // 154 // कोना पुत्रो ? कोनी स्त्रीयो ? अने कोना वहाला मित्रो ? आ सर्व जगत् दैवाधिन छे. कोइपण समर्थ न2 थी. // 153 // म्हारा उतां पण कोइ असुर अथवा चोरे म्हारी पुत्री- हरण करयु. माटे म्हारे असार एवो आ संसार त्यजी देवो योग्य छे. // 15 // . .. * इति ध्यात्वा हृदा पुत्रं, स्थापयित्वा निजे पदे // गृहितसंयमः प्राप्तावधिज्ञानोऽ हमेव सः॥१५॥ कुमारस्तं मुनिं प्रोचे,स्वप्ने या विदिता मया॥ सा सैव किं न सान्या वा,मुनिरुचे च सैव सा१५६ | आ प्रमाणे मनमा विचार करीने अने पोताना पदे पुत्रने स्थापन करीने धारण करी छे दीक्षा जेणे तथा as प्राप्त थयु छ अवधिज्ञान जेने एवो ते अवंतिसेन राजा हुँ पोतेज छं." // 155 // कुलभूषण कुमारे ते मुनिने र al कह्यु. " में स्वप्नामां जे कन्या जोइ छे. ते तेज के वीजी कोइ छे ?" मुनिये कयु. “ते तेज कन्या छे." 156 / * विद्यादेवतयादर्शि, यस्तस्याः स्वप्नमध्यगः॥ स नरः खेचरोऽन्यो वा, मुनिरुचे त्वमेव सः॥१५॥ विद्यादेवतया तस्यै, तुभ्यं चापि परस्परम् // रूपे प्रदर्शिते वे दे, योग्ययोगविधित्सया // 15 // कुमारे कह्यु. " विद्यादेवीये ते राजकन्याने स्वप्ननी मध्ये जे पुरुष देखाडयो ते माणम छे के बीजो कोई विद्याधर छे ?" मुनिये कयुं. ते तुं पोतेज छे. // 157 // विद्यादेवीये योग्य योग मेलबवानी इच्छाथी ते राजकन्याने अने तने परस्पर ववे रूप देखाडयां छे. " // 158 // कुमारः प्रोतिन्नाक् प्रोचे, द्वितोयस्य मुनेरपि // वैराग्यकारणं ब्रूहि, श्रोतृपोयुषपारणम् // 159 साधुः प्रोवाच वैताढये, गिरौ गगनवलन्ने॥ पुरेऽनूद्रत्नचूडाख्यः, प्रख्यातः खेचराग्रणी // 16 // पछी प्रसन्न थयेला कुमारे वीजा मुनिने पण का. " हे मुनि ! तमे पण कानने अमृतना पारणा सर त Jun Gun Aaradhak Trust