________________ PPS VS नाग पराप] कारण पहा. // 19 // साए काल. 'पताहय परत उपर गगनयनभ नगरन विप रत्नच नामनो प्रख्यात विद्याधर राजा हतो. // 160 // चंद्रचूडः सुतः सोऽस्य, येन मे नंदिनो हृता॥ असौ तं वारयामास, कन्या हरणतस्तदा॥१६१॥ तथापि सो मुचन्नतां, स्थापयित्वा ग्रहे स्थितः॥न सेहे तस्य नामापि, साकदाप्यर्थिता सती॥१६ ते चंद्रचूड आ रत्नचूडनो पुत्र हतो के जेणे म्हारी पुत्रीनु हरण करयुं हतुं. ते वखते आ राजा कन्याना हरणथी तेने वारतो हतो. // 161 / / तो पण ते तेने न त्यजी देतां घरमा राखीने रह्यो. वली तेणे याचना करेली छतां पण ते कन्या क्यारे पण तेनु नाम पण सहन करती नहि. // 162 // विद्यादेवतया स्वप्ने, दर्शितो योऽस्ति लक्षणैः॥ स एव मे वरो नान्यः, सेत्युक्त्वा तं न्यषेधयत् // 163 / तत्पिता रत्नचूडोऽय, दृष्ट्वा तत्पुत्रचेष्टितं॥ दध्यौ वैराग्यमापनो,धिक धिक् कामविडंबनाम्॥१६॥ वली “विद्यादेवीए स्वप्नामां लक्षणोवडे जे पुरुष देखाडयो छे, तेज म्हारो पति छे. बीजो नहि." एम x कहीने ते कन्या चंद्रचूडने निवारती हती. // 163 // पछी ते चंद्रचूडनो पिता रत्नचूड तेवा पुत्रना कृत्यने जोइने वैराग्य पाम्यो छतो विचार करवा लाग्यो के, " काम विडंवनाने धिक्कार छे ! धिक्कार छे ! ! // 16 // नवंति ग्रहिला वीक्ष्य, महिला अपि पंमिताः॥कामस्य पारवश्येनावश्यं त्याज्यो नवस्ततः 165 चिंतयित्वेति तं पुत्रं,राज्यचिंता विधायकम् ॥मुक्त्वा संयममादाय,विचरनिह सोऽमिलत् // 166 / / पंडित पुरुषा पण स्त्रीयाने जोइने कामना परवशपणाथी गांडा थइ जाय छे. माटे म्हारे निश्चय संमार * त्यजी देवो. // 165 // ए प्रमाणे विचार करीने राज्यनी चिंता करनारा पुत्रने त्यजी दइ संयम लइ विचरता छता अहिं ते आ मुनि मल्या छ. // 166 // द्वावप्यावामिह स्वैरं, वैरंगिकतया स्थितौ // शिलातलसमासीनौ, तिष्टावः कष्टवर्जितौ // 16 // कुमारस्तं पुनः प्राद,नान्यथा नवतां वचः॥अहमत्रास्मि सा तत्र,कथं योगो नविष्यति॥१६॥ Jun Gun A kust