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________________ P.P.A. Gunratnasuti MS मदोयमानसे योऽस्ति, मनोरथतरुर्महान् // तनंजनार्थमायाता, विजया करिणीसमा // 36 // 2 इति ध्यायति नूपे सा, निविष्टा नविष्टरे॥ इत्येवं स्पृष्टमाचष्ट, प्राणेश श्रूपतां वचः // 366 * पछी " म्हारा मनमां जे मनोरथरुप म्हॉटुं वृक्ष छे, तेने तोडी पाडवा माटे हाथणी सरखी आ विजया as आवी छे." // 366 // राजा आ प्रमाणे विचार करतो हतो एवामां भद्रासन उपर वेसीने राणी विज्याए आ प्रमाणे स्पष्ट कह्यु के, “हे प्राणनाथ ! म्हारां वचन सांभलो. // 366 // 2 यः पर्व मे प्रदत्तोऽस्ति, वरं स्मरसि तं प्रिय // यदि स्मरसि तत्राथ, यद्याचे तत्प्रसाद ततस्तु नपतिर्दध्याव निष्टत्त्वेन तझिरि // विस्तरेण तया व्याप्तं, कार्यमेव न जल्पति 350 हे प्रिय ! आपे पूर्व मने जे वरदान आप्यो हतो, ते वर आपने सांभरे छे ? जो ते सांभरतो होय तो आजे जे मागं ते आपो." // 367 // पछी तेनी वाणीमां अनिष्टपणाथी राजा विचार करवाना विस्तारथी व्याप्त एवं कार्य न कह्यु. // 367 // ततो हमिति राझोक्ते, सा जगाद ततः प्रिय // दापय संयमो मह्यं, गुरुपादांतिकेऽधनाRETU श्रत्वेति नपति प्रीतः,प्रोताः सचिवपुंगवाः॥सर्वेऽपि श्लाघयामास, साधु साध्विति तां महः॥ __ पछो 'हं' एम राजाए कयु एटले राणोये कह्यु के, " हे प्रिय ! हरणां मने गुरु पासे चार maavप्रियानां आवां वचन सांभली राजा प्रसन्न थयो, तेमज श्रेष्ट प्रधानो पण खशी थयाः तेथी ते मौ तेनां "बहु सारुं बहु सारूं." एम वारंवार वखाण करवा लाग्या. // 370 // जपः प्रोचे प्रियेगं ते,कोमलं कठिनं वृत्तम् ॥कथमौचित्यमत्रास्ति,मोहोऽपि खल इस्त्यजः। माख्यरूपदेशेन, व्यामोहो मेऽवलीयत // पश्यामि सकलं विश्वं, ततोऽहं सदृशं दृशा 10 सजाए को."हे प्रिया ! न्हालं अंग कोमल छे तेमज वृत कठीण छे, माटे ए योग्य शी रीते पण नि दस्त्यज छे." // 371 // विजयाए कछु."गुरुना उपदशथी म्हारो मोह नाश पामी गयो छे. तेथी। दृष्टिथी सर्व विश्वने समान देखुर्छ. // 372 / / XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust 372
SR No.036439
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Hathishang
PublisherMaganlal Hathishang
Publication Year1902
Total Pages242
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size300 MB
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