________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. XXXXXXXXX | पुमपा जगादता, कृत्वा राज्यस्य सूत्रणाम् // आददाने गुरोर्दादां, मयि त्वमपि तां नज॥ चरित्र M परीक्षार्थ पुनः सोऽवक्, कस्मै राज्यं प्रदास्यते ॥सा जगौ तत्र जानामि, यद्योग्यं तत्समाचर // 10 // दास राजाए फरो तेने कह्यु. "राज्यनी व्वस्था करीने हं गुरु पासे दीक्षा लउ एटले तुं पण दोक्षा लेजे"॥३७॥ वली राजाए परीक्षा माटे कह्यु के, " राज्य कोने आपीशुं ?" विज्याए उत्तर आप्यो के, हुं जाणुंछ के तमे राज्य सिंहनादनेज आपशो, माटे जे योग्य होय ते आचरो. // 374 // हृष्टो राजा विसृज्यैनां, सिंहनादाय सूनवे // राज्यं दत्वा तया साकं, गुरूपांतेऽग्रहीद्रतम् // अथ राज्यं पपौ तत्र, सिंहनादो नरेश्वरः // प्रतापाक्रांतदिकचक्रः, शक्रोपमपराक्रमः // 376 न ____ पछी हर्ष पामेला राजाए विज्याने रजा आपीने सिंहनाद पुत्रने राज्य सोप्यु. पछी तेणे विज्या सहित गुरु पासे चारित्र लीधुं. // 375 // पछी प्रतापथी सर्व दिशाओने वश्य करनारो अने इंद्रना सरखी उपमा वालो सिंहनाद राजा राज्यनुं पालन करवा लाग्यो. // 376 // | अन्येद्युपतेस्तस्य, समज्यामधितस्थुषः // रवेबिमिवायासीद्विमानं व्योममंझले // 37 // नई पश्यत्सु लोकेषु, रत्नानः खेचरस्ततः // श्यामया सहितः प्रापदास्थानं तन्नरेशितुः 378 __ कोइ वखते ते राजा सभामां बेठो हतो एवामां आकाशने विषे सूर्यना मंडल समान वैमान आव्यु. 377 पछी सर्व लोको उचुं जोता हता एटलामा रत्नाभ विद्याधर श्यामा सहित ते राजानो सभामां आव्यो // 378 // नत्याय नूपतिः साकं, सन्नया सन्नया सह // तौ हौ गौरवयामास, स्वसारं नगिनीपतिम् * स्वस्त्रा प्रीत्या प्रदत्ताशीस्तनिर्दिष्टः स विष्टरे // आसीनः खेचरं वीक्ष्य, पप्रच्च कुशलं नृपः॥ पछी राजा, समा अने सभा सहित उठीने ते पोतानो व्हेन अने बनेवी ए वन्नेनो सत्कार करवा लाग्यो. व्हेने प्रीतिथी आशीप आपेला अने आसन उपर वेठेला राजाए रत्नाभ विद्याधरने जोइने कुशल पूछयु।।३८०॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust