________________ P.P.A. Gunatnesut MS आगळ कहेवी !!" // 211 // ए प्रमाणे विचार करोने सभा विसर्जन थया पछी राजाए पुत्रने कयु के, "हारे ए वस्त्रो क्यांथी आव्यां छे, ते कहे ? // 212 // “आवेलां शुं कहेवाय छे ?" एम लीलाथी वोळतो कुमार राजाने नमस्कार करी पोताने घेर आव्यो.॥ 213 // भोजन करया पछी ते कुमार विचार करवा लाग्यो के, "निश्चे सभामा जता छतां म्हारो योग्य वेश पण राजाने रुच्यो नहि. // 21 // ए प्रमाणे विचार करीने रत्न| ध्वजे यत्नथी ते बन्ने वस्त्रोने गोपीने पोतानी दासी साथे राजाने धारण करवाने अर्थे मोकल्यां // 215 // ध्यात्वत्यसौ विसृष्टायां, सन्नायां नंदनं जगोपीयातानि कुतस्तानि वस्त्राणि तव कथ्यताम् // आयातानि किमुच्येत, सलोलमिति जपतानत्वा नृपं विनिर्गत्य,कुमारेग गते गृहम्॥१३॥ लोजनार्दनु दध्यौ स,रांझे शोऽपिरोचितः॥"नोचितो में ततो नूनं,सजायांगवतः संतः॥ * चिंतयित्वेत्य सौ वस्त्रयुग्मं संवत्य यत्नतः॥ स्वचेच्या प्रेसयामास, परिधानाय ननुजे॥१५॥ किमिदं वस्त्रयुग्मं रे, केन च प्रहितं वृया // गठ वत्सस्य वस्त्राच्यामिह नास्ति प्रयोजनम्॥ इति जल्पति नूपाले, कुमारोऽपि समागतः // प्राह तात नैवद्योग्यं, वैस्त्रयुग्मॅमिदं खेलु // नूपोऽवग् वत्स ते पूर्ववस्तु विस्मृतिमागतम्॥"किमनेनाधुना तर्हि, गृहित्वा वत्स गम्यताम्॥ जपे निषिध्यति प्रोजैः, कुमारे चं प्रयचति // से]ण राज्ञा तद्दत्तं, मोगधायांबरच्यम्॥१॥ कचेतास्ततो गत्वा, कुमारोदध्यिवानिति ॥स्वल्पेन वस्तुना किं स्या दाप्तापि न गौरवम्॥ Pal "अरे! आवे वस्त्र शां? अने ते फोगट कोणे मोकल्यां छे ? जा, अहिं ए पुत्रनां वस्त्रनुं प्रयोजन नथी." // 21 // राजा आ प्रमाणे बोलतो हतो एवामां कुमार पण त्यां आव्यो अने तेणे कर्वा के, "हे तात! आ बन्ने वर आपने योग्य छे. // 217 // राजाए कह्यु. “हे वत्स! तुं पूर्वनी वस्तु भूली गयो? जो एम थयु होय तो हमणां आवस्यवडे ? माटे ते लइने चाल्यो जा. // 218 // राजा ना कहेतो हतो अने कुमार आपतो हतो, तेथी ईवित राजाए ते वन्ने वस्त्र चारणने आपी दीधा // 219 // पछी क्रोधयुक्त चित्तवालो कुमार चाली निक Jun Gun Aaradha Trust