________________ PPA Gunnatut MS XXXXXXXX तत्र रत्नान्निधो मंत्रवादी प्राह निशम्यताम् // दोषस्य निग्रहं कुर्वे, सर्वे तिष्टिति चेजनाः 73 अथासौ मंडलं कृत्वा, गुग्गुलाग्राहपूर्वकम् // निवेश्य तत्र तां मंत्रैरनाषयत मांत्रिकः // 4 // - तेमां रत्न नामना मंत्रवादीये कह्यु. “मान लो. जो सर्वे माण ग उभा रहो तो हुं दोपने दूर करूं. // 3 // पछी ते मांत्रिक गुगलनो धूप करवा पूर्वक मंडल करी अने त्यां ते पाश्रीने वेपारी मंत्रोवडे बोलवा लाग्यो 84 साप्रोचे सैष नूतोऽस्मि, लग्नः कासारसंनिधौ॥ मोक्ष्यामि सर्वथा नैतां, हनिष्याम्येव लीलया अस्याःशोणितमांसान्यामेकविंशतिमाहुतीम् // यदि दास्यथ तजावितव्यं नवति नान्यथा॥ ते वखते ते पद्मश्री बोली. ते या हु भूत छ, तलावने कांठेथी तने वलग्या छं. हुं तेने कोइ रीते छोडीश 'नहि, परंतु लीलाथी मारो नांखीश. / / 85 // जो आ पद्मश्रीना रुधिर अने मांसथी एकविश आहुति आपशो तो ते जीवश, नहि तो नहि जोव. // 6 // अस्या यदि न दोयेत, तन्नर्तुश्च ददातु मे // इत्युक्त्वा विरतो नूतो, सचिंतोऽनूऊनोऽखिलः 7 र कांतानुरागवान्पनाकरो धैर्यधरोऽवदत् // किमिदं प्राणसैन्यासमेतदर्थ करोम्यहम् // 88 // जो आ पद्मश्रीनां रुधिर अने मांमनी आहुति न आपो तो तेना पनिनां साधर अने यांमनी आइति मने आपो."श्रा प्रमाणे कहो भूत न बोल्यो एटले मर्वे माणसो चिंतातुर थया. // 87 // पछी पियाने विषे प्रेघधारी अने धैर्यवत एका पद्माकरे कडुं. आ शरीर शा कामर्नु छ ? माटे हुं तेना माटे म्हारा रुधिरथी आइति आपशि. // 88 // बेदं बेदं स्वमांसानां, खंडानि रुधिरैः समम् // एतस्यामेव पश्यंन्या, जुहाव ज्वलितानले नए अष्टावाहुतयो यावङाता नूतो जगाद तम् // तावदेतेन कार्येण, पूर्ण तुष्टोऽस्मि धैर्यतः // 9 // _ पछी ते पद्माकरे कापी कापीने पोताना गांनना ककडा रुधिर सहित ए पद्मश्री जोतां छनां अग्नियां हाम्या. // 89 // जेटलामा आठ आहुति परी थइ तेटले भूते पद्माकरने कयुं के, " आ कार्य करवावडे हारा धेयथी हुं बहु प्रसन्न थयोछु. / / ए० // XXXXXXXXXXXXXXYYY XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust