________________ // 6 // PP.AC.Gunratnasun M.S. कर्तिकां नर्तयन् पाणौ, बलादपि पलादराट् // नूनुजा तामितः शीर्षेट्टहासस्फेटितांवरः॥३१ चा चकर्न कर्तिकां चाशु, करवालेन नूपतिः // रदकोऽवादोन ते कोलस्त्वं धोराणां शिरोमणिः॥३२ राक्षस पण वलथी हाथमां कातरने नचावतो छतो सामो आव्यो. तेने राजाए माथामां ताडन करयो तेथी तणे अट्टाटहासथी आकाशने गजावी मूक्युः // 31 // राजा गरुडध्वजे राक्षसनी कातरने तरवारवडे / ae तुरत कापी नाखो; तेथी राक्षसे कह्यु के, “हे राजन् ! तने क्षोभ थयो नहि, माटे तुं धोर पुरुषोमां शिरोमणो छे. साहसात्तव तुष्टोऽस्मि, वरं वृणु समोहितम् // स जगाद स्मृतो येन, तस्य त्वं सिक्ष्तां नज॥ सिइमेतत्परं स्वार्थ, प्रार्थयेति तदीरितः // स प्रोवाच तथा कार्य, यथा सा वियते मया।३।। द्वारा साहस पणाथी हं प्रसन्न थयो. माहे इलित वर माग." राजाए कॉ. “जेणे तने संभारयो छ तेना तुं सिद्धपणाने पाम." // // 33 // " एतो सिद्ध ययुं, परंतु तुं पोताना स्वार्थने माग." एम राक्षसे कह्यु. एटले राजाए कयु के, ते सरस्वती मने वरे तेम त्हारे कर." // 34 // नमित्युक्त्वा पलादेन, विसृष्टः स्ववलं गतः // प्रातश्च चलितो भूपः, क्रमाधिवपुरं ययौ // 35 // तत्र सिंहासनासीने, नूपवृंदे स्वयंवरे // वरमाला करे बिज्रत्यागता सा सरस्वती // 36 // "बहु सारूं." एम कहीने राक्षसे रजा आपवाथी राजा पोतानी सेनामां आव्यो. पछी सवारे चालेलो त्र ते अनुक्रमे शिवपुर नगर प्रत्ये आवो पहोच्यो. // 35 // त्यां स्वयंवरमां राजाओनो समूह सिंहासन उपर बेठे - छते वरमालाने हाथमां धारण करती एंवी ते राजकन्या सरस्वती आधी. // 36 // तां प्रोवाच प्रतिहारी, हारीकृतरदद्युतिम् // अंगुल्या दर्शयंतो तानामग्राहं नरेश्वरान् // 37 // अंगवंगतिलंगानां, कलिंगानां महीनुजः // मिलिताः संति सर्वेऽपि, कृतार्थ्यतां त्वया दशा // ___ हार सरखो करी छे दांतनी कांती जेणे एवी प्रतिहारीये आंगली वड़े नाम ग्रहण करवा पूर्वक ते राजाओने देखाडती छती सरस्वताने कहेवा लागी. // 37 // " हे राजकुमारी ! अंग, वंग, तैलंग अने कलिंग देशोना आ राजाओ मलेला छे, ते सर्वने तुं हारी दृष्टिथी कृतार्थ कर."॥ 38 // // 6 // ***XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXK Jun Gun Aarada Trust