________________ / PP Ad Gunratnasuti MS मुनि नत्वा गृहं गत्वा, पालयित्वा चिरं भुवः // दत्वा राज्यं स्वपुत्राय, गुराः संयममग्रहात् // प्रपाख्य निरतिचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // विहितानशनः प्राते, सौधर्मे त्रिदशोऽन्नवत् // पछो मुनिने नमस्कार करी, घेर जइ, बहुकाल पृथ्वीनु पालन करी, पोताना पुत्रने राज्य आपीने ते ग2 रुडध्वज राजाए संयम लीधो. // 117 // अतिचार रहित श्रेष्ट उज्वल चारित्र पालीने छेवट अनशन लइ ते * गरुडध्वन मुनि सौधर्म देवलोकने विषे देवता थया. // 118 // *चिरं सुखान्य सौ नुक्त्वा, देवलोकाततश्चयुतः॥ नवमो नागनामा नूतनयस्तव नूपते॥११॥ A (नरवर्मा केवली गुणवर्मा राजाने कहे छे के,) हे राजन् ! ए गरुडध्वजनो जीव त्यां दीर्घकाल मुधी सुख * भोगवी अने पछी ले देवलोकथी चवीने त्हारो नाग नामनो नवमो पुत्र थयो छे. // 119 // // इति ध्वजारोपप्रभाववर्णने कनक कुमार कथा समाप्ता. // Jun Gun Aaradhak Trust येनान्तरण पूजात्र, विहिता तत्फलं ब्रुवे // अत्रास्ति नरतत्रे, मिथिलानामतः पुरो॥१२॥ हे राजन् ! अहिं जेणे आभरणपूजा करी छे, तेनुं फल कहुं छु. आ भरतक्षेत्रने विपे मिथिला नामनी * नगरी छे. // 120 // तत्र शत्रुजयो राजा, शत्रूणां जयकारकः॥ श्री चंज्ञनाम तत्पत्नी, चंज्योत्स्नेव निर्मला // जीवोऽय कनकानस्य, तदा तत्कुदिमागतः // समये च तया सूतः, पित्रा चके महोत्सवम // - ते नगरमां शत्रुनो विजय करनारो शत्रुजय नामनो राजा राज्य करतो हतो. चंद्रज्योत्स्नाना सरखी निमल श्रा चंद्रानामनी तेने स्त्री हती. // 121 // हवे कनकाभनो जीव ते वखते श्री चंद्राना उदरने विषे आव्यो अने तेणे अवसरे पुत्रने जन्म आप्यो एटले पिताए महोत्सव करयो. // 122 //