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________________ चरि A Gunratnasuti MS नृपमुचे तयोरेकः, स विवेक निशम्यताम् // सारंगपुरमित्यस्ति, नगरं सागरांतिके // 76 // ते बे 'पुरुषोमांथी एके राजाने कहूं. "हे विवेकवंत सांभल. समुद्रनी पासे सारंगपुर ए नामर्नु नगर छे.॥७६॥ तत्र चित्रांगदो राजा, राझी तस्य मनोरमा // यया मनोरमाकारात्कारिता दास्यमिंदिरा॥७॥ तां हृत्वा चंमवेगाख्यः, खेचरः खेचरन्नय॥ गत्वा जलनिधेमध्ये, हीपे क्वचिदवस्थितः // 70 या चित्रांगद नामे राजा छे अने तेने मनोरमा नामनी राणी छे. जे मनोरमाए पोताना मनोहरस्वरुपथी लक्ष्मीने पण दासीपणुं कराव्यु छे. // 77 // हवे चंडवेग नामनो विद्याधर ते मनोरमाने हरण करी आकाश मार्गे जतो छतो समुद्रनी मध्ये जइने कोइ द्वीपमा रह्यो. // 78 // परनार्यपहारेण, धरणे व्यवस्थया // विद्यानंसोऽन्नवत्तस्य, स तत्रैवास्त्यवस्थितः // 79 // नैमित्तिकाच्च तदात्वा, दध्यौ चित्रांगदो नृपः॥ कथंकारं रिपुं हन्मि, काम्यकांतापहारकम् // धरणेंद्रे करेली व्यवस्थान लीधे ( धरणेंद्रे परस्रीन हरण करवानी ना कही हती तोपण तेणे करेला ) परस्त्रीना हरणथी तेनी आकाशगामिनी विद्यानो नाश थइ गयो तेथी ते विद्याधर त्यांज रह्यो छे. // 79 // पछी निमित्तियाथी ते वात जाणी चित्रांगदराजा विचार करवा लाग्यो के, " हुं मनोहर स्त्रीनु हरण करनारा शत्रने शी रीते हणं." // 80 // एवंचिंतयतः सिह, पुरुषस्तस्य हपथम् // संप्राप्तो बहुमानेन, तेन भक्त्या च तोषितः // 71 ___आ प्रमाणे विचार करता एवा ते राजानी आगल कोइ सिद्ध पुरुष आव्यो. राजाए बहु मानथी अने भक्तिथी तेने संतोष पमाडयो. // 81 // आकाशगामिनी विद्या, विद्य चिंतितवानी // प्राप्त्यादिमहाविद्यावन्महाबलवत्तरे // // हे विद्ये नूनुजे तस्मै, तेन दत्ते मनिषिणा।। एक्या गम्यते व्योम्नि, वाईते शस्त्रमन्यया कया॥ प्रज्ञप्त्यादि महा विद्याना सरखी महा वलबंत एवी एक आकाशगामिनो विद्या अने वीजी चिंतित शस्त्रने वधारनारी विद्या एवी ए वे विद्याओ ते सिद्ध पुरुष ते चित्रांगद राजाने आपी के, जे एक विद्याथी आकाशमां जवाय अने बीजी विद्याथी शस्त्र वृद्धि पामे. // 82 // 83 // Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036439
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Hathishang
PublisherMaganlal Hathishang
Publication Year1902
Total Pages242
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size300 MB
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