________________ PPAC Gunun MS MAKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX यथा शस्त्रस्य वृद्धिः स्यात्तरस्यापि तथा नवेत् // योजनाना शत वाहः सहस्त्रमाप लाग्यतः | जेवीरीते शस्त्रनी वृद्धि होय तेवी रीते वेग पण थाय. सो योजन वधे तेमज भाग्यर्थी हजार योजन पण थाय. चक्रिणो दंझरत्नस्य, सहस्त्रं वृष्हिरूच्यते // चर्मउत्रयस्यास्य, वृद्धिदशयोजनी // 85 // * विद्याया बहुरूपित्या, रूपाणि च सहस्त्रशः // जायते कौतुकं नात्र, विद्यान्निःकिं न साध्यते॥ चक्रवर्तीनी दंडरत्ननी हजार योजन वृद्धि कही छे.तेमज तेना चर्म अने छत्र रत्ननी वार योजन वृद्धि कहीछे.वली * बहु रुपिणी विद्याथी हजारो रूपो थायछ.एमां आश्चर्य नधी.कारण विद्याथी शं नथी सघा तुं?अर्थात् सर्व सघायछे.८६ विद्याइयेन सिइन, यत्र तत्र स्थितौ रिपुः // हेलया हन्यते मित्र, साधने युक्तिरूच्यते // 8 // यत्र सिंहो वसत्यशै, साध्यते तत्र सा निशि // विद्यां साधयतः पुंसो, हरिः शांतोऽवतिष्टते॥ - ए वन्ने विद्याथी सिद्ध थयेलो पुरुष ज्यां त्यां रहेला शत्रुने लीलामात्रथी मारी शके छे. हे मित्र हवे ते विद्याने साधवानी युक्ति कहुंछु के // 87 // जे पर्वतने विष सिंह रहे छे त्यां ते विद्या रात्रोये सधाय छे. पुरुष विद्या साधन करवा लाग्ये छते सिंह शांत धइ बेसी रहे छे. // 88 // पुष्पगुग्गुलधूपानां, वहतौ ग्रंथिकामिमां // पितापुत्रौ समायातावावामिह दिनात्यये // // गच्छावः पर्वतं यावत्त्वरितं साधनेछया // सिंहनादममुं श्रुत्वा, तिष्टावस्तावता निया ॥ए॥ - सिद्ध पुरुपना आवां वचन सांभली मंत्रसाधन करवा जवाना पुरुषोमांथी एकजण कहे छे के पुष्प, गुगुल, धूपनी आ गांसडीयो लइने अमे पिता पुत्र अहिं सायंकाले आव्या. / / 89 // पछी साधननी इच्छाथी जेटलामा * अमे उतावला पर्वत उपर जता हता तेवामां आ हवणां थयेलासिंहना शब्दने सांभलीने भयथी उभा रह्या.॥२०॥ आवां किं कुर्व हे मित्र, न स्थिरं चित्तमाययौ // विद्यासिनिवेनो वा, सिंहान्मृत्युस्तु निश्चितम्॥ * नृपः प्रोचे नवज्यां चेन्मह्यं विद्या प्रदीयते॥साधयित्वा ततः शीघ्रं, दर्शये प्रत्ययं युवाम् // हे मित्र! हवे अमे शुं करीए ? अमारुं चित्त स्थिर नथी र हेतु.कारण विद्यासिद्धि थाय अथवा न थाय, परंतु सिंहथी मृत्यु तो निश्चय थायज. राजाएक झुं. "जो तमे मने विद्या आपो तो हुंझट साधीने तमने विश्वास देखा९.९२ Jun Gun A nak Trust