________________ PPAC Gunratsuti MS गुण तान्यां विद्याध्यं दत्तं, विधिपूर्वक मेजसा // नूपतिः साधयामास, निर्नीकः सिंहसंनिधौ ए३ चरित्र. सिइविद्यो विसृज्येतो, नृपतिः स्वपुरं ययौ // मंत्रिन्निः संमुखायातैः, सह मंदिरमागतः एव पछी ते बन्ने पुरुषोए विधिपूकज बळथी बन्ने विद्या आपी. निर्भय एवा गरुडध्वज राजाए पण ते विद्या सिंहनी पासे साधी. // 93 // पछी विद्यासिद्ध थयेलो राजा ते वन्ने पुरुषोने त्यजी दइ पोताना नगरप्रत्ये आव्यो; त्यां सामा आवेला मंत्रियोनो साथे ते पोताना घेर आव्यो. // 9 // न देवि नवने क्वापि, दृश्यते नोजनादनु॥ति पुति नूपाले, मंत्री कृष्णाननो जगौ॥९५ तदा विनिर्गतान युष्मान् ,सर्वत्रापिच सोधितान्॥अलब्ध्वा सकलो राजलोको फुःखाकुलोऽन्नवत् / त्यां भोजन करया पछी " मंदिरमा क्यांइ पण पट्टराणी देखाती नथी ? " एम राजाए पूछयु एटले जेनुं * श्याम वर्ण मुख थइ गयुं छे एवा मंत्रीये कह्यु.॥ 95 // ते वखते चाल्या गयेला तमने सर्व स्थानके शोध्या, पण क्यांइथी मल्या नहि तेथी सर्वे राजलोको दुःखथी आकुल व्याकुल थवा लाग्या. // 96 // देवी त्वत्यंतऽःखार्ता, स्वं निंदती कदाग्रहम् // लोकेन वार्यमाणापि, गवाक्षा त्पतिता भुवि ए७ आकाशात्पतिता दृष्टा, न पतंती नुवस्तले // न ज्ञायते गता क्वापि, देवीवृत्तमिदं प्रत्नोए॥ वली अत्यंत दुःखथी पीडा पामेलां देवीये पोताना कदाग्रहने निंदता छता लोके वारयां तो पण गोखमाथी पृथ्वी उपर पडयां. // 97 // उंचेथी पडतां दीठां पण पृथ्वी उपर पडेलां दीठां नहि. क्यां पण गयेलां जN णातां नथी. हे प्रभु ! आ प्रमाणे सरस्वती देवीनु वृत्तांत छ. // 98 // नृपः श्रुत्वेति सूत्कारान् , मुंचंश्चित्ते व्यचितयत् // यदर्थेऽहमुपक्रांतः सैव देवेन दूरिता // 19 // इति चिंतयति मापे, वर्ध्यसे देव वर्ध्यसे // जल्पंतीति समायाता, दासी प्रीतिमतिर्जगौ 100 ___ मंत्रीनां आवां वचन सांभलीने राजा निशाशा मूकतो छतो मनमा विचार करवा लाग्यो के, " जेने पाटे हुँ अहिं आव्यो तेनेज देवे दूर करी छे. // 99 // आ प्रमाणे राजा विचार करतो हतो एवामां " हे देव ! वधाइ छे ! वधाइ छे !! एम बोलतो आवेली दासी मितिमतिये को के. // 10 // Jun Gun A nak