________________ PP.AC.Gunratnasuri M.S. S तयोर्यात्रा विधातव्या, संघतश्च परस्परम् // द्वयोरपिध्वजारोपः, कथमेतद्विधियते // 6 // संघथी परस्पर ते वन्ने पर्वतने विषे यात्रा करवी अने उपर ध्वजा चडाववी. ए शी रीते करी शकाय!!॥६८॥ मौनमाधाय नूपाले, स्थिते चिंतातुरे सति // गता सरस्वतीदेवी, नितांतंखिन्नमानसा // 6 // सचिवो ज्ञातवृत्तांतस्तांमुवाच विचक्षणः // स्वामिनि प्रायो वक्तव्यं, युक्तमेव हि सर्वथा // 70 ___ पछी मौन राखी गरुडध्वज राजा चिंतातुर थइ वेसी रह्ये छते अत्यंत खेदयुक्त मनवाली सरस्वती राणी | चाली गइ. // 69 // पछी जाण्युं छे वृत्तांत जेणे एवा चतुर प्रधाने राणीने कयु के, हे महादेवी ! निश्वे माणसोए घणुं करीने सर्वथा प्रकारे योग्यज बोलवू जोइये. // 70 // सा जगाद सन्नामध्ये, यन्मया कश्रितं मुदा॥अन्यथात्वं बजत्यत्र, जीवितान्मे मृतिवरम् // इति तनिश्चयं ज्ञात्वा राजा चित्तेऽतिखितः॥ रात्रावनुक्त्वा कस्यापि, निर्ययौ निजमंदिरात्॥ * सरस्वतीये का. " में सभामां हर्षर्थ जे कहेलुं छे ते जो बीजी रीते थायतो म्हारे जीववाथो मरवू सारूं."* * // 71 // तेना आवा निश्चयने जाणी चित्तमा अत्यंत दुःखी थयेलो राजा गरुडध्वज कोइने पण कह्या विना * रात्रीये पोताना घरैथी चाली नीकल्यो. // 72 // स्थाने स्थाने ब्रमनेष, तुंगशृंगाभिधं गिरिम् // निरीक्ष्य नृगुपाताय, गन्नालोकयन्नरौ // 73 // तौ शीर्षे ग्रंथिकां कृत्वा, बतौ पर्वतं प्रति // तथैवाचलितौ तूर्णं, तथाकारौ पुनःपुनः // 4 // ठेकाणे ठेकाणे भमता एवा ते राजाए तुंगशिखर नामना पर्वतने जोइ तेना उपरथी झंपापात करवाने अर्थे / जता एवा ते राजाए कोई बे पुरुषोने दीठा. // 73 // ते बन्ने पुरुषो माथे गांसडीओ मूकी पर्वत उपर जता, ते5 वीज रीते तुरत उभा रहेता, एम वारंवार करता इता, // 74 // . * विलोक्य भूपतिश्च तावुचे हे सुहृदौ कथम् // गमागमौ विघीयेते, युक्तं चेत्तर्हि कथ्यताम्॥७॥ - राजाए तेओने जोइने कह्यु. “हे मित्रो! तमे मा माटे जावआव करो छो? जो योग्य होयतो कहो. // 7 // Jun Gun Aaradhak Trust