________________ गुण P.PAd Gunratnasuti MS श्चमाकएर्य संघेशवल्लनासंसदि स्थिता // प्रतिराझोमिति स्माह, सोत्साहहृदया मुदा॥६॥ गुरुना एवां वचन सांभलीने सभामां बेठेली अने हर्षथी उत्साहवंत हृदयवाली संघपतिनी स्त्रीये राणी // 63 // सरस्वतीने आ प्रमाणे कयु. // 6 // अस्मानिर्विहिता यात्रा, पूर्व शत्रुजये ततः॥ रेवताझै च किंवत्र, कौतुहलमिदं पुनः // 61 // शत्रुजये रैवते चाप्येके एव महाध्वजः // दत्तश्चितप्रमोदेन, एवं न दास्यते परः // 6 // अमे प्रथम शत्रुजयने विषे यात्रा करी अने त्यार पछी रेवताचले यात्रा करी; परंतु अहिं वली ए आश्चर्य हतुं / / 61 // अमे शत्रुजय पर्वत उपर अने रेवताचल पर्वत उपर हर्षित चित्तथी एकज महाध्वज चडाव्यो छे. ए प्रमाणे बीजो नहि चढावे. // 62 // राझो हसित्वा तां प्राह, संमेतेऽष्टापदेऽपि च // अस्मानिःक्रियते यात्रा, हृदये चिंत्यते पुनः॥ एतयोस्तीर्थयो रेवमेक एव महाध्वजः॥ दीयते किं त्वया श्लाघा स्वयमेव विधीयते // 6 // राणीए हसोने कह्यु." अमे पण समेतशिखर अने अष्टापदने विषे यात्रा करीए. वली ते मनमा विचार | करवा लागी के. // ए तीर्थने विषे तो एकज ध्वजा चडावायछे, तेमां तुं पोतानाज शुं वखाण करे छे?"॥६॥ नूपो विसृज्य संघेशं, पत्न्या सह गृहं ययौ // समये च तयानाणि, पूस्यकर्तव्यमस्ति नौ // संघेशवल्लन्नाग्रे यत् , पूर्व प्रोक्तं तया रयात् // तदेव कथयामास, पुरतो नूपतेरपि // 66 // पछी राजा संघपतिने रजा आपी पोते स्त्री सहित घरे आव्यो. वली अवसरे स्त्री सरस्वतीये तेने कह्यु के, 2 " आपणे पूण्यकार्य करवू छ." // 65 // पछी तेणे पूर्व जे संघपतिनी स्त्री आगल कयुं हतुं तेज तुरत राजानी * आगल पण कडुं. // 66 // तनु त्वा नूपतिर्दध्यावहो प्रोक्तं किमेलया // कुत्राष्टपदशैलेशः, कच संमेतपर्वतः // 67 // ते सांभली राजा विचार करवा लाग्यो. अहो ! आ स्त्रीये शुं कडं !!! अष्टापद पर्वत क्यां ! अने समेत शिखर पर्वत क्यां!!॥६॥ EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXKARI Jun Gun Aaradhak Trust