________________ P.P.A. Gunnatut MS तक्तपुण्यकार्याणि, कुर्वाणः प्रीतमानसः // समयं गमयामास, नृपः सुखमयं सदा // 53 // * गवाहस्थस्तया साकमन्यदा नूपतिर्वने // समेतं संघमशदीत्कुतश्चित्प्रौढतोर्थतः // 55 // . ____सरस्वतीये कहेलां पुण्यकार्यों करता एवो प्रसन्न पनवालो राजा हमेशां सुखमय कालने निवृत्त करवा ला| ग्यो. // 53 // कोइ वखते ते सरस्वतीनी साथे गोखमां बेठेला राजाए उद्यानमा कोइ म्होटा तीर्थथी आवता / | एवा संघने दीठो. // 54 // तया सह नृपस्तत्र, संघ इष्टुं वने ययौ // संघोऽप्यावर्जयामास, नृपति स्वयमागतम् // 55 // संघसार्थे समायातान् ,धर्मघोषाह्वयान गुरुन्॥प्रणम्य नूपतिस्तत्र, सकांतोऽपि निषएगवान् // __पछी राजा सरस्वती सहित संघने जोवा माटे त्यां वनमां गयो. संघे पण पोतानी मेले आवेला राजानो सत्कार करचो. // 55 // संवनी साथे आवेला धर्मघोष नामना मुनिने प्रणाम करी त्यां प्रिया सहित गरुडध्वज राजा वेठो. // 56 // समेतं तत्र संघेशं, नृपतिर्बहुमानयन् // गुरूपदेशं शुश्राव, तीर्थयात्राधिकारिणम् // 57 // समेतेऽष्टापदे शत्रुजये रैवतपर्वते // वाराणस्यादितोर्थेषु, नव्यैर्यात्रा विधियते // 5 // ___ पछी त्यां आवेला संघपतिने बहु मान आपता एवा राजाए तीर्थयात्राना अधिकाररुप गुरुए आपेलो धर्म उपदेश सांभल्यो. // 57 // भव्यजनो! संमेतशिखर, अष्टापद, शत्रुजय रेवताचल अने वाराणसी विगेरे तीर्थोने विषे यात्रा करे छे. // 58 // . ( इंद्रवज्रा वृत्तम् ) तीर्थेषु ये श्रीजिननाथन्नक्तिं, कृत्वा कृतार्थी रचयंति लक्ष्मीम् // त एव धन्या धरणीतलेऽत्र, नवंति नाराय परे मनुष्याः // एए॥ “जे माणसो तीर्थने विषे श्री जिनराजनी भक्ति करो लक्ष्मीने कृतार्थ (सफल) करे छे, तेज माणसोने आ पृथ्वी उपर धन्य छे. बीजा माणसो तो नरकने अर्थे थाय छे." // 59 // . Jun Gun Aaradhatust