________________ 6 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. गुण तत्ताते चिंतयत्येवं, चित्तांतः सा सन्नांतरे // श्लोकं पठंती तत्रागाद्यत्रास्ते गरुमध्वजः // 45 // चरित्र. राक्षसोक्तं वचो नूपस्तदा सस्मार चेतसि // राक्षसश्च ततश्चक्रे, स तस्या मतिविनमः // 6 // आ प्रमाणे शंकर राजा मनमां विचार करतो हतो एवामां ते. राजकन्या मभाना अंदर श्लोक बोलती ती त्यां आवी के. ज्यां गरुडध्वज राजा बेठो हतो. // 45 // ते दखते गरुडध्वज राजाए राक्षसे कहेलां वचनने मनमां संभारछु, तेथी राक्षसे सरस्वतानी बुद्धिने भ्रम करो नांखा. // 46 // सा स्थाने सर्वशब्दस्य, पुण्यशब्दं प्रयुज्यत // श्लोकं पपाठ तच्छुत्वा, सर्वो लोको विसिष्मिये॥ पुण्यकार्याणि यः कुर्यान्मउक्तानि निरंतरम् // वरः स मेऽन्यथा नास्ति, विवाहेन प्रयोजनम् // तेथी ते राजकन्याये " सर्व कार्यने ठेकाणे पुण्यकार्य शब्द जोडो दोधो अने तेम. श्लोक बोलवा लागी. 2 ते सांभली सर्व राजाओ विश्मय पामी गया. // 47 // जे पुरुष म्हारां कहेलां पुण्यकार्यो निरंतर करे, ते म्हारो * पति थाओ. ए विना म्हारे विवाहयो कांइ प्रयोजन नथी. " // 48 // इति श्रुत्वा महिपालस्तन्मालार्थी बन्नृव सः॥ सा निचिकेप सोकलं, तत्कंठे वरस्त्रजम् // 3 // दिप्तायां वरमालायां, बालया मतिविन्रमः॥ परिझातः परं प्रोता, वरं वोक्ष्य गुणालयम् // 5 // | ते सरस्वतीनां एवां वचन सांभली गरूडध्वज राजा तेनी मालानो अर्थी थयो. मरस्वतीये पण उत्साह सहित तेना कंठने विषे वरमाला पहेरावो. // 49 // वरमाला पहेराव्या पछा राजकुमारोये पोतानो बुद्धि नोभ्रम जाण्यो; परंतु गुणवंत एवा पतिने जोइ प्रसन्न थइ. // 50 // ततस्तत्र तयोर्जाते, पाणिग्रहमहोत्सवे // विसृष्टा नूनुजः सर्वे, स्थानं निजनिजं ययुः // 51 // गरुमध्वजन्नपोऽपि, स्थित्वा तत्र कियदिनान् // तया सह समायतः स्वपुरं समहोत्सवम् // 53 पछी त्यां तेमनो विवाहमहोत्सव थया पछा रजा आपेला सर्व राजाओ पात पोताने स्थानके गया. 151 // गरुडध्वज राजा पण त्यां शिवपुरमा केटलाक दिवसो रहाने ते सरस्वती सहित म इंद्रपुर आव्यो . // 52 // दशा Jun Gun Aaradhak Trust ताना