SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ P.P.A. Gunratnasuti MS विवाहसमये तत्र, मिलिते स्वजनेऽखिले // समेते सहपुत्रण, साचव वाइसागर // 3 // मतिसारे निविष्टे च, जायमाने महोत्सवे // सुमतिसुहृदा ज्ञातसंकेतेनेत्यन्नाषत // 30 // पछी विवाहना अवसरे त्यां सर्व स्वजनो एकठा थया अने बुद्धिसागर प्रधान पुत्र सहित आव्यो. 301 // KE मतिसार प्रधान पण सभामां बेठो अने महोत्सव चालु थयो ते वखते संकेतना जाण सुमतिना मित्रे आ प्रमाणे कडं. // 302 // मिलिताः स्वजना एते, गौरवार्हा गुणान्विताः // स्वयमेवागतैः पुष्पैः, कुरुध्वं प्रकरानिहं // सर्वेष वीक्ष्यमाणेष, वक्रमेव परस्परम्॥ जयचंमसौ प्रोचे, बुद्धिसागरनंदनम् // 304 // गोरखने योग्य अने गुणवंत एवा आ स्वजनो एकठा थया छे. तेओ पोतानी मेलेज पडेलां पुष्पोथी अहिं गला करो," // 303 // पछो सर्व परस्पर मुख जोवा लाग्या एटले ए सुमतिना मित्रे बुद्धिसागरना पुत्र जa यचंद्रने कयुं. // 304 // * यदि शक्तिस्ते, सुमतिः कुरुतेऽन्यथा // यः करिष्यति तत्कार्य, स कन्यां परिणेष्यति // as परैरपि प्रोक्ते, सुमतिस्तदणादपि // तं वृदयंतरं स्मृत्वा, पुष्पाणा प्रकरान् व्यधात् // - जोहारी शक्ति होयतो तुं पुष्पदृष्टि कराव्य, नहि तो सुमति करावे. जे आ कार्य करशे तेज कन्याने परणशे. * प्रमाणे वीजाने पण कडं एटले सुमतिये तुरत ते वृक्षना अधिष्टाक व्यंतुरनु स्मरण करी पुष्पोना प्रकारो बनाव्या. बाला सोत्कंगिता मालामस्य कंठे व्यवेशयत् // पाणिग्रहोत्सवश्वके, पितृभ्या मेतयोस्ततः३०७ तीये दिवसेऽकस्मादपुत्रस्तत्र नूपतिः // केनापि घातकेनाशु, प्रविश्य निशि संहतः // 308 // पछी उत्साहवंत कमललोचनाए ए सुमतिना कंठमां वरमाला पहेरावी, जेथी तेमना मातापिताए तेओनो विवाह उत्सव करयो. // 307 // हवे त्रोजे दिवसे त्यां कोइपण घातके तुरत रात्रीने विषे प्रवेश करी अपत्र एवा ते महाबल राजाने मारी नाख्यो. // 308 // IXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXYYYA Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036439
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Hathishang
PublisherMaganlal Hathishang
Publication Year1902
Total Pages242
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size300 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy