________________ ॥पना PP.AC.Gunratnasuri M.S. गुणविमृश्याहं करिष्यामीत्युक्त्वा तौ हौ विसृज्य सः॥चिंतयाचांत चित्तोऽस्थात्तं दृष्ट्वा च सुता जगौ॥ चरित्र. खिद्यसेऽद्य कथं तात, स्वरुपे कथितेऽमुना ॥सा प्रोचे वरनामाकं, क्रियतां पत्रिकाध्यम् 194 // ___ पछी " हुं विचार करोने कहोश." एम कहोने ते बन्ने प्रधानोने रजा आपो सागरमंत्री चिंताथी व्याकुल चित्तवालो थयो एटले तेने जोइने पुत्री कमललोचनाए कह्यु. / / 293 // “हे तात ! आजे केम खेद पामो र छो?" सागर पोतानी ते वात कही एटले कमललोचनाए कह्यं के, " वरना नामनी वे चीठीओ करावो." * कुलदेवोकरे न्यस्य, योग्यं देहीतिनाषकः // अन्यथा कन्यया पत्रोमेकमादाय निर्णयः // 5 // * एवमेव कृते तेन, प्राप्ता सुसतिपत्रिका // प्रबनं सा ततस्तस्मै, प्रेषील्लेखं स्वपाणिना // 296 // . पछी ते वन्ने चीठीयो कुलदेवीना हाथमा मूकीने " योग्य आपो." एम कही वोजो कोइ कुमारो पासे ए* क चीठी उपडावीने निर्णय करवो. // 295 // सागरे एज प्रमाणे करयुं एटले सुमतिना नामनी पत्रिका प्राप्त * थइ. पछी कमललोचनाए पोताना हाथथी लखेलो गुप्त पत्र सुमति उपर मोकल्यो. // 29 // नूनं मयाहतोऽसि त्वं, स्वबुध्या बुद्धिसागर // मंत्री त्वया तथा वार्यो, यथा कोपं करोति न॥ वाचयित्वेति तं लेखं, वलमानं लिलेख सः // सापि तं वाचयामास, समेतं नृत्यपाणिना 297 “हे बुद्धिना समुद्र ! निश्चे में पोतानी बुद्धिथी तमारो आदर करयो छे, माटे तमारे मंत्रीने तेवी रीते वा* रवा के, जेवी रीते ते कोप करे नहि." // 297 // आ प्रमाणे ते पत्रने वांची सुमतिये वजतो पत्र लख्यो. क मललोचनाए पण सेवकना हाथथी पोताने मलेला ते पत्रने बांच्यो के, // 298 // आगतो नवतीलेखो, नव्यमेव नविष्यति // अस्मदागमने सोप्याह्वातव्यो बुद्धिसागरः श्एए॥ तथा बुद्धिविधास्यामि, यथा कोऽपि न रोक्ष्यति // तथैव कारयामास, वाचयित्वेति तं मुदा // हारो पत्र आव्यो, सारुंज थशे अने अमे त्यां आवोये एटले बुद्धिसागरने तेडायवो. // 299 // हुँ तेवी रीते करीश के, जेथी कोइ रीश पामशे नहि." आ प्रमाणे पत्रने हर्पथी वांचीने कमललोचनाए ते प्रमाणे कराव्यु. // Jun Gun Aaradhak Trust