________________ P.P.A. Gunratnasuti MS तत्दणं मिलिता लोकाः, परेऽपि स्वजना अपि // नूपतिस्तत्पिता चापि, सर्वेऽप्येवं बनापिरे॥ श्यं बाला विशालाको, वरं त्वामेव वांचति // ततो विवाहं मन्यस्व, कागेन्यं नोचितं तव // आ वखते तुरत बीजा अने पोताना माणसो एकठा थइ गया. राजा अने ते गंधराजनो पिता (सुबुद्धि) पण आव्या अने सर्वे एम बोलवा लाग्या के, // 147 ॥"आ विशाल नेत्रवाली बाला तनेज पोतानो पति इच्छे छे, माटे विवाह कबुल कर. कारण तने योग्य कठीणपणुं नथी." / / 148 // श्त्यर्थितोऽसौ नूपेन, जनैस्तैः स्वजनैरपि॥ प्रशस्तांगोमुपायंस्त, तां महोत्सवपूर्वकम् // 14 // तत्पाणिमोचने तस्मै, राज्यं राजा निजं ददौ // समं वरवधूच्यां च, गुरुपादानवंदत॥१५०॥ ए प्रमाणे राजाए, बीजा माणसोए अने स्वजनोए पण विनंती करेलो गंधराज ते मनोहर अंगवाली कन्याने महोत्सव पूर्वक परण्यो. // 149 // ते कन्याना हस्तमेलाप वखते ते गंधराजने राजा सिंहे पोतार्नु राज्य आप्यु. वली ते वहु वरे साथेन गुरुना चरणने वंदना करी. // 150 // अप्रादोच्च प्रनो कस्मात्पुत्र्या सुगंधतान्नवत् // प्रनावो गंधराजस्य, करे केन च कर्मणा // सूरिः प्राह पुरा हेमपुरे श्रेष्ठी शिवोऽन्नवत् // कमलाविमलानाम्न्यौ, है नार्ये तस्य बंधुरे // वली राजाए सूरिने पूछयु के, " हे प्रभो ! शा कारणथी पुत्रीने दुर्गध थयो अने गंधराजना हाथने विषे * कया कर्मथी एवो अद्भुत प्रभाव थयो ?" || 151 // सूरिये कह्यु. “पुर्वे हेमपुर नगरमां शिव नामनो शेठ रहेतो * हतो, ते शेठने कमला अने विमला नामनी उत्तम वे स्त्रीयो हतो. // 15 // पूजयंतो जिनं प्रोचे, विमला कमलां प्रति॥ तमानीयतां धूपो, गंधपूजां करोम्यहम् // 153 साप्रोचे कर्मकुर्वाणा, विना गंधं नवेन किम् // जिनेश्स्याप्यहो देहे,कापि धुगंधतास्ति किम। कोइ वखते जिनराजनुं पूजन करतो विमलाए कमलाने कछु के, "तुं झट धूप लावो आप, हं गंधपजा करुंडूं." // 153 // कमला घरनुं काम करती हतो तेथी तेणे उत्तर आप्यो के, "धूप विनाशं पजा नथी थतो ? अहो ! जिनेश्वरना देहने विषे पण काइ दुर्गधता रहि छे के शुं ? // 15 // Jun Gun Aaradhak Trust