________________ गुण ॥श्न PPA Gunrata MS चार ज्ञानना धारणहार मुनि चंद्रसूरि चंद्रावती नगरी प्रत्ये आव्या अने चंदनसार सहित चंद्रशेखर राजा तेमने वंदना करवा गयो.॥१७०॥ त्यां राजाए धर्मोपदेश सांभलीने मुनिने पूछयु के, “चंदनवृक्षनी पेठे आ चंदनसारनो अधिक महिमा शाथी थयो ? // 171 // मुनिये चंदननो पूर्वभव कह्यो के, “हस्तिनापुर नगरमां धनदत्त शेठने वसुदत्त नामनो पुत्र थयो हतो. // 172 // पूजा करचे छते ते चंदनसारे जिनेश्वरने चंदननुं विलेपन करयुं हतुं, तेथी दे चंदननुं सौभाग्य आश्चर्यकारी . // 173 // चंदनसार पण पोतानो पूर्वभव सांभलीने जाति र धर्मोपदेशमाकर्ण्य, मुनि प्रोचे महीपतिः॥ मैहिमा चंदनस्येवं, चंदनस्य कुतोऽधिकः 171 मुनिःपूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे॥ श्रेष्टिनो धनदत्तस्य, वसुदत्तः सुतो जनि // 17 // पूजायां क्रियमाणायां, चंदनस्य विलेपनम् // कृतं जिनस्य तेनास्य, तेन सौभाग्यमनतम्॥ चंदनोऽपि नवं पूर्व, श्रुत्वा जातिस्मरोऽनवत् // विशेषादर्हितं धर्म, 'प्रपेदे मुनिसंनिघौ // चशेखरचं तौ, मुनि नत्वा पुरं गतौ // राज्यं चंदनलाराय, दत्वा प्रविजतां मुंदा // 175 // रोजा चंदनसारोऽपि, प्राज्यं राज्यपालयत् // प्राप्तप्रौढप्रतापोडेपि, प्रजातापहरः परः 176 समये सोमपुत्राय, राज्यं देवा नरेश्वरः // पाल्य संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽनवत् // चिरं सौरव्यानि नुक्त्वासौ, देवलोकार्त्ततच्यतः॥हितीय सिंह नामान्नूतनयस्तव नूपतः॥ | स्मरण ज्ञान पाम्यो, तथा तेणे मुनिनी पासे विशेष अरिहंत धर्म आदरयो. // 17 // // पछी चंद्रशेखर अने चं दनसार बन्ने जणा मुनिने नमस्कार करी नगरमां गया, त्यां चंद्रशेखरे चंदनसारने राज्य आपी हपंथी दीक्षा लीधी.॥ 175 // महा प्रतापवालो छतां पण प्रजाना तापने दर करनारा राजा चंदनसारे पण विस्तारवंत एवा राज्यर्नु पालन करयु.॥ 176 / / पछी चंदनसार राजा अवसरे सौमपुत्रने राज्य आपी पोते चारित्रने पाली अंते सौधर्म देवलोकने विषे देवता थयो.॥१७७॥ हे राजन्! त्यां ते दीर्घकाल सुधी सुख भोगवी अने पछी चवीने त्हारो सिंह नामनो बीजो पुत्र थयो छे. // 178 // // इति विलेपन पूजायां वसुदत्त कथा // enना