________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. ततस्त्वया रहो वध्य, इति लेख प्रवाच्य सः॥ विसृज्य मंत्रिणं सोयान्हे "तमाकोग्यत्पुनः // रहो नीत्वासिमाकृष्य, तहतुं स प्रवृत्तवानास्मिंत्वोचे संचिवः सत्वं, शृंगपुचोप्रितः पशुः // माटे तमारे एकांते मारवो.” आ प्रमाणे पत्र वांची हमचंद्र राजाए तेने रजा आपीने फरी मांजे तेने बोला* व्यो. // 307 // हेमचंद्र राजा तेने एकांतमां लइ जइ तरवार खेंची मारवा तैयार थयो एटले रत्नाकर * हसोने बोल्यो के, " तुं शीगडा अने पुच्छडा विनानो पशु देखाय छे.” // 308 // नृपः प्रोचे नवद्भर्तुर्मया शिदया विधीयते // सावक "तेनैवे' मूर्खत्वं,नाति मे"नॅपते तवे॥ नेनु मैऊन्मनि प्रोक्तं, देवैः सांवत्सरिति // तनुस्थाने हा 'संति, पतीता बलवतरा // 310 // राजाए कह्यं. "हारा राजानो हुकम म्हारे मानवो जोइए. " मंत्री रत्नाकरे कडं. "हे राजन् ! तेथीज हारुं मूर्खपणुं मने जणाय छे. // 309 // निश्चे म्हारा जन्म वखते चतुर एवा जोशी लोकोए एम को हतुं के, आना देहभुवनमा बहु बलवंत ग्रहो पडेला छे. // 310 // मृत्युः करिष्यते यत्र, बलादेस्य केदाचन // द्वात्रिंशतंत्र वर्षाणि, निदं नितिष्यति // 311 देण स्वामिनास्माकं, प्रहितोऽस्मि तत स्तव॥ मया हेतुरयं प्रोक्तो, यऽभ्यं तत्कुरुष्वं नो॥ - कयारे पण वलथो आर्नु मृत्यु जे ठेकाणे करीश त्यां वत्रीश वर्ष पर्यंत दुर्भिक्ष पडशे. // 311 // हे राज- : * न् ! माटे चतुर एवा म्हारा राजाए मने मोकल्यो छे. में आ हेतु तने कह्यो. हवे जे योग्य होय ते करो."॥३१२॥ उर्लिकनीतोनूपोऽवक, स्वामी ते न सुदृन्मम॥सत्यं बंधुरै सि त्वं तु,येन में "विहितं हितम्॥ * संवृत्य खजमालिंग्य, समान्य वसैनादिन्निः ॥विसृष्टः सोऽपि संप्राप्तः, संदृष्टः स्वपुरं ततः // पछी दुर्भिक्षथी भय पामेला राजाए कह्यु के, "हाग राजा म्हारो मित्र नथी, परंत मत्य तुंज मित्र , के.जे ते म्हारु हित कयु. // 313 // पछी खड्गने म्यानमा नांखी अने तने भेटी तेमज वस्त्र विगेरेथा सत्कार करी रजा आपेला ते रत्नाकर पण हर्ष पामतो छतो पोताना नगरे आव्यो. // 314 // Jun Gun Aaradhak Trust