________________ PP.AC.Gunratnasus M.S. साफल्यं जायते किंतु, पुष्पाणां जिनपूजनात्॥श्रतोऽस्य पूजनं कार्य, श्रेयोर्थ कुसुमोत्करैः कुमारस्य नवे प्राच्ये,श्रुतेऽनूऊन्मनःस्प॑तिः॥'विशेषादोर्हतं धर्म, 'प्रपेदेऽसौ ततो मुंनेः॥६॥ वली जिनराजना पूजनथी पुष्पोर्नु पण साफल्य थायडे, माटे कल्याणने अर्थे पूष्पना समूहथी जिनराजनुं पूजन करवं. // 63 // पूर्वभव सांभले छते कुमारने जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न थयु, तेथो तेणे मुनिनी पासे विशेषे अरिहंत धर्म आदरयो. // 64 // * मुनि नत्वा पुरं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसुनवे॥पतिर्विमः प्रौप्य, संयम शिवमासदत॥६॥ | अंथो विजयचंशेडेपि,प्राज्यं राज्यपालयत्॥ ग्रीष्मे रिपुं महामन्चं, 'निर्जेसं गतोऽन्यदा॥ पछी मुनिने नमस्कार करी, नगरमा जइ अने पोताना पुत्रने राज्य आपी राजा विक्रम चारित्र लइ मोक्ष - पाम्यो. // 65 // पछी विजयचंद्र पण समृद्धिवंत एवा राज्यनुं पालन करवा लाग्यो. कोइ दिवस ते उनालानी रुतुमां महामल्ल नामना शत्रुने जितवा माटे चाल्यो. // 66 // सैन्ये गते महाटव्यां, स्थिते सति महीपतौ // जिनपूजोद्यते नागस्तदा पुष्पाणि नोनयेत् // देवदग्धमायां चाटव्यामपि जनःवचित्॥ न लेने कुसुमं कंचित् , सर्व खिनं ततो बैलम्।। म्होटा अरण्यमा आवी पहोचेला सैन्ये पडाव करयो अने राजा त्यां जिनराजनुं पूजन करवा तैयार थयो, परंतु ते वखते हमेशनी पेठे नाग पुष्पो लाग्यो नहि. // 67 // वली माणस दावानलथी दग्ध थयेला ते वनमा कोइ ठेकाणे कांइ पुष्प मेलवी शक्या नहि, तेथी सर्व सैन्य खेद पाम्यु. // 68 // . सामंता नृपति प्राहुः, पूजां चंदनकेशरैः॥ कुंरूष्व नोजनं चापि, शेरीरं सहते ने हि // तथापि निश्चले राझि, नोजनं "नै कुर्वति॥ दिनस्य पश्चिमे पामे, नौगो व्योनि समापयौ॥ ____सामंतोये राजाने का. " हे महाराज ! चंदन केशरथी पूजा करो अने भोजन पण करो. कारण निश्चे शरीर भूख सहन करी शकशे नहि." // 69 // सामंतोये कह्या छतां पण निश्चल एवा राजाए भोजन करयु नहि, एवामां दिवसना पाछला प्रहरे नाग आकाशमां आव्यो.॥ 70 // Jun Gun Aaradhak Trust