________________ PP.AC.Gunratnasuri M.S.. XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX | जय त्वं पृथिवीनाथ, परीकेयं कृता मया॥ Jहाणैतानि पुष्पाणि, कुरु पंजी जिनेशेतुः॥१॥ चरित्र, पूजां कृत्वा च नुक्त्वा चे, नेपो यावत्सुखं स्थितः॥ तावनागेन बैशेरिन गपासैःसमागतः।। ___हे भूपाल! तुं जयवंतो रहे. में आ रहारी परीक्षा करीछे. आ पुष्पो ले अने जिनेश्वरचं पूजन कर. // 71 // पछी पूमा करी अने भोजन करी राजा विजयचंद्र जेटलामां सुखे बेठो छे तेटलामा नागे नागपासथी वधिलो शत्रु महामल्ल त्यां आव्यो. // 72 // मानयित्वा निजामाझा, सेनेपेन विमोचितः॥ ततो येयौ निजं स्थानं, महोत्सवपुरस्सरम्॥ पालयित्वा चिरं राज्यं, प्रोंते दत्वा स्वसूनवे ॥गुरोः संयममाप्या सौ, सौधर्मत्रिदिवं ययौ॥ - पंछी विजयचंद्रे तेनी पासे पोतानी आज्ञा मनावीने छोडी दीधो अने पोते महोत्सवपूर्वक पोताना नगरप्रत्ये आव्यो. // 73 // त्यां ते बहु काल राज्य पाली अंते पोताना पुत्रने आपो पोते गुरु पासे चारित्र लइ पोते सौधर्म देवलोक प्रत्ये गयो. // 74 // सुखान्यसौं चिरं नुक्त्वा, देवलोकार्ततयुतः // पंचमः पद्मनामाननयस्ते नेरेश्वर॥५॥ . (नरवर्मा गुणवर्माने कहेछे के,) हे राजन्! त्यां ते वहुकाल सुख भोगवी अने पछी देवलोकथी चवीने ते त्हारो पद्म नामनो पांचमो पुत्र थयो छे. // 75 / / // इति पुष्पपूजाधिकारे लक्ष्मीधर कथा // Jun Gun Aaradhak Trust * माल्यपूजा कृता येने, फैलं तस्य निर्गद्यते // नरतक्षेत्रमध्येऽस्त्ययोध्यानाम महापुरी॥६॥ __जेणे माल्यपूजा करी छे तेनुं फल कहेवाय छे. आ भरतक्षेत्रनी मध्ये अयोध्या नामनो महानगरी छे.॥७६॥ 1 // RTILITIET ATMITTIT