________________ गुण ATKARXXX P.P.A. Gunanasuti MS जिनेश्वरनी पूजाना प्रभावथो तेने महा अद्भुत एवं राज्य प्राप्त थयु. वलो वर्णिकाना विशेष पूजनथी जे फल एण प्राप्त थयुं ते कहेवाय छे. // 207 // वली ते वखते आ कुमारे कृत्रिम पुष्पो राक्षसने चडाव्यां पण वर्णिक पूजाना विशेषपणाथी अकृत्रिम थइ गयां. // 208 // सुनुमचक्रिणः स्थानं, नृणां पुण्याढ्यनुपते // चक्रित्वं कुलिशत्वंच, प्रपेदाते हि पुण्यतः॥ पुण्येन कर्करो रत्नं, पुण्येन च विषं सुंधा // सर्प-पुण्येन मला स्यात् कुमारस्य तथान्नवत्॥ हे पुण्यवंत राजा! माणसोने सुभुम चक्रवर्तीतुं स्थान, चक्रवर्तीपगुं अने इंद्रपणुं पुण्यथोज प्राप्त थाय छे. // 209 // पुण्यथो कांकरो रत्न थाय छे, पुण्पथो विष अमृत थाय छे अने पुण्यथो सर्प पुष्यनो माला थाय' * छे. तेम कुमारने पण थयु छे. // 210 // * कुंमारोऽपि मुनि ग्राह, पूर्व येर्ने हतोऽस्म्यहम्॥ स वोजो न स्थले 'दृष्टो, न च दृष्ठं सरोवरम्॥ को हेतु प्रोचिवान् सूरिहेमचूलस्य यः पिता॥ जातोऽस्ति ध्यंतरस्ते ,पुरवासाय तत्कृतम् कुमारे पण मुनिने कडं. "हे मुनि! पूर्वे जेणे मारुं हरण कर्यु हतुं ते अश्व ते स्थानके में न दीठो अने ते सरोवर पण में न दीर्छ, तेनुं शुं कारण?" सूरिये कयुं. "हेमचूलनो पिता जे व्यंतर देवता थयो हतो तेणे तेने . पोतानां नगरमा राखवा माटे ते सर्व कर्यु हतुं // 211 // 212 // लक्ष्मीधरो नवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मृति ययौ // विशेष(दहितं धर्म, 'प्रपदे मुनिसंनिधौ // - मुनिं नत्वा गृहं गत्वा, राज्यं लक्ष्मीधरे सुते // निवेय श्रीधरो राजा,जैगृहे संयम स्वयम् // लक्ष्मीधर पण पोताना पूर्वभवने सांभलो जातिस्मरण ज्ञान पाम्यो; तेथी तेणे मुनि पासे विशेष अरिहंत* नो धर्म धारण कर्यो. // 213 // श्रीधर राजाए पण मुनिने नमस्कार करो, घरे जइ अने लक्ष्मोधर पुत्रने रा ज्य आपी पोते चारित्र लीधं. // 214 // अय लक्ष्मीधरो नूपः, पालयन् पृथिवी चिरम् // जिनपूजापवित्रात्मा, धर्मकर्म चंकार संः॥ Jun Gun Aaradhak Trust //